बॉडीगार्ड
Posted: 07 Nov 2014 21:54
बॉडीगार्ड
“साहब, यहाँ दो लाशें मिली है” हवलदार ने बोला तो इनस्पेक्टर विक्रांत वॉकी टॉकी रख कर दौड़ा दौड़ा उस जगह पर पहुँच गया. “पानी में रहने के कारण शरीर इतना फूल गया है के शिनाख्त करना मुश्किल है अभी” विक्रांत के वहाँ पहुँचते ही हवलदार बोला. यह सॉफ पता चल रहा था के एक लाश लड़की की है और दूसरी किसी आदमी की.
“ह्म्म..एक लाश तो इनस्पेक्टर विक्रम की लग रही है. हाथ के टॅटू से पता चलता है. लगता है विक्रम के केस से इस का कुछ लेना देना है. ले चलो इससे मुर्दाघर में. देखते हैं के इसका क्या कर सकते हैं.” विक्रांत बोला और फिर अपनी जीप में बैठ कर पोलीस स्टेशन चला गया.
2 दिन पहले
“सुन बे.. तू कोमिशनर होगा अपने घर का. तेरे को एक बार बोला के कल पप्पू को एक जैल में से दूसरी में शिफ्ट करना है, तो मान जा.”
“यह धमकी तुम किसी और को देना. अगर मैं ऐसी गीदड़ धमकियों से डरने वाला होता तो कभी पोलीस फोर्स जाय्न नही करता. मैं जानता हूँ के पप्पू को तुम इसलिए शिफ्ट करवाना चाहते हो ताकि उसको रास्ते में से उठा सको. मेरे जीते जी यह मुमकिन नही होगा”
“अपना नहीं तो अपनी 19 साल की बच्ची का तो कुछ सोच कमिशनर. महानगर जैसी जगह पर तूने उससे भेज तो दिया है, लेकिन उसस्की हिफ़ाज़त कैसे करेगा? चल सौदा कर लेते हैं. तेरी बेटी की जान के बदले में पप्पू की जैल बदली का ऑर्डर. मंज़ूर है?”
“मुझे कुछ भी मंज़ूर नही है. और जहाँ तक मेरी बेटी का सवाल है, वो बिल्कुल सुरक्षित है. मैने भी कोई कच्ची गोलियाँ नही खेली हैं.”
“ठीक है.. तो फिर कल सुबह 10 बजे तुझे कॉल करूँगा. उम्मरर्द करता हूँ के तब तक तू सारे पेपर्स तय्यार रखेगा पप्पू की रिहाई के लिए” और फोन कट गया
कमिशनर ने फटाफट एक और फोन घुमाया. “विक्रम.... सब कुछ ठीक है ना वहाँ... आज हमला हो सकता है. मेरी बेटी को मेरे तक पहुँचाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है”
“सब कुछ बिल्कुल ठीक है. वो मेरी नज़रों के सामने ही है सर. मैं उससे लेकर वापस मुंबई आता हूँ” विक्रम ने बोला और फोन काट दिया. कमिशनर ने फिर से एक फोन घुमाया.
“हेलो बेटी.. कैसी हो.. और यह शोर कैसा है”
“पापा मैं दोस्त की पार्टी में हूँ. बाद में बात करते हैं”
“बेटी मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हारी जान को ख़तरा है. मेरा एक इनस्पेक्टर तुम्हारे पास आएगा और जल्द ही तुम्हें ले कर वापस यहाँ आएगा. इनस्पेक्टर का नाम विक्रम है. ध्यान से रहना”
“क्या पापा आप भी. छ्होटी छ्होटी बातों पर चिंतित हो जाते हैं.. कुछ नही होगा मुझे..”
“जैसा मैं कहता हूँ, वैसा करो बस. मुझे आगे कुछ नही सुनना” कमिशनर ने कहा और फोन काट दिया. “यह आज कल के बच्चे.. यह सोचते हैं के इनके मा बाप बस पागल ही हैं. इतनी इंपॉर्टेंट बात है और साहबज़ादी को पार्टी की पड़ी है” उसने अपनी पत्नी से कहा.
दूसरी तरफ महानगर के एक बहुत ही पॉपुलर डिस्को में निशा का पारा चढ़ा हुआ तहा. “यार यह तो हद ही हो गयी है. किसी भी छ्होटे-मोटे क्रिमिनल की धमकियों से डर कर पापा पता नही मेरी ज़िंदगी में क्यूँ अड़चने डालते हैं. कभी यहाँ शिफ्ट करते हैं तो कभी वहाँ. यही कारण है के इस उमर में आज तक मेरा कोई बॉय फ्रेंड नही बना” अपने बालों को पीछे करते हुए और वोड्का का शॉर्ट लेते हुए निशा ने अंजलि से कहा
“साहब, यहाँ दो लाशें मिली है” हवलदार ने बोला तो इनस्पेक्टर विक्रांत वॉकी टॉकी रख कर दौड़ा दौड़ा उस जगह पर पहुँच गया. “पानी में रहने के कारण शरीर इतना फूल गया है के शिनाख्त करना मुश्किल है अभी” विक्रांत के वहाँ पहुँचते ही हवलदार बोला. यह सॉफ पता चल रहा था के एक लाश लड़की की है और दूसरी किसी आदमी की.
“ह्म्म..एक लाश तो इनस्पेक्टर विक्रम की लग रही है. हाथ के टॅटू से पता चलता है. लगता है विक्रम के केस से इस का कुछ लेना देना है. ले चलो इससे मुर्दाघर में. देखते हैं के इसका क्या कर सकते हैं.” विक्रांत बोला और फिर अपनी जीप में बैठ कर पोलीस स्टेशन चला गया.
2 दिन पहले
“सुन बे.. तू कोमिशनर होगा अपने घर का. तेरे को एक बार बोला के कल पप्पू को एक जैल में से दूसरी में शिफ्ट करना है, तो मान जा.”
“यह धमकी तुम किसी और को देना. अगर मैं ऐसी गीदड़ धमकियों से डरने वाला होता तो कभी पोलीस फोर्स जाय्न नही करता. मैं जानता हूँ के पप्पू को तुम इसलिए शिफ्ट करवाना चाहते हो ताकि उसको रास्ते में से उठा सको. मेरे जीते जी यह मुमकिन नही होगा”
“अपना नहीं तो अपनी 19 साल की बच्ची का तो कुछ सोच कमिशनर. महानगर जैसी जगह पर तूने उससे भेज तो दिया है, लेकिन उसस्की हिफ़ाज़त कैसे करेगा? चल सौदा कर लेते हैं. तेरी बेटी की जान के बदले में पप्पू की जैल बदली का ऑर्डर. मंज़ूर है?”
“मुझे कुछ भी मंज़ूर नही है. और जहाँ तक मेरी बेटी का सवाल है, वो बिल्कुल सुरक्षित है. मैने भी कोई कच्ची गोलियाँ नही खेली हैं.”
“ठीक है.. तो फिर कल सुबह 10 बजे तुझे कॉल करूँगा. उम्मरर्द करता हूँ के तब तक तू सारे पेपर्स तय्यार रखेगा पप्पू की रिहाई के लिए” और फोन कट गया
कमिशनर ने फटाफट एक और फोन घुमाया. “विक्रम.... सब कुछ ठीक है ना वहाँ... आज हमला हो सकता है. मेरी बेटी को मेरे तक पहुँचाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है”
“सब कुछ बिल्कुल ठीक है. वो मेरी नज़रों के सामने ही है सर. मैं उससे लेकर वापस मुंबई आता हूँ” विक्रम ने बोला और फोन काट दिया. कमिशनर ने फिर से एक फोन घुमाया.
“हेलो बेटी.. कैसी हो.. और यह शोर कैसा है”
“पापा मैं दोस्त की पार्टी में हूँ. बाद में बात करते हैं”
“बेटी मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हारी जान को ख़तरा है. मेरा एक इनस्पेक्टर तुम्हारे पास आएगा और जल्द ही तुम्हें ले कर वापस यहाँ आएगा. इनस्पेक्टर का नाम विक्रम है. ध्यान से रहना”
“क्या पापा आप भी. छ्होटी छ्होटी बातों पर चिंतित हो जाते हैं.. कुछ नही होगा मुझे..”
“जैसा मैं कहता हूँ, वैसा करो बस. मुझे आगे कुछ नही सुनना” कमिशनर ने कहा और फोन काट दिया. “यह आज कल के बच्चे.. यह सोचते हैं के इनके मा बाप बस पागल ही हैं. इतनी इंपॉर्टेंट बात है और साहबज़ादी को पार्टी की पड़ी है” उसने अपनी पत्नी से कहा.
दूसरी तरफ महानगर के एक बहुत ही पॉपुलर डिस्को में निशा का पारा चढ़ा हुआ तहा. “यार यह तो हद ही हो गयी है. किसी भी छ्होटे-मोटे क्रिमिनल की धमकियों से डर कर पापा पता नही मेरी ज़िंदगी में क्यूँ अड़चने डालते हैं. कभी यहाँ शिफ्ट करते हैं तो कभी वहाँ. यही कारण है के इस उमर में आज तक मेरा कोई बॉय फ्रेंड नही बना” अपने बालों को पीछे करते हुए और वोड्का का शॉर्ट लेते हुए निशा ने अंजलि से कहा