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गुड़िया

Posted: 12 Oct 2014 21:04
by raj..
गुड़िया
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"यू वाना शो मी इनसाइड?" मेहरा ने घूम कर मेरी तरफ देखा

"यू नो वॉट?आइ वुड राथेर स्टे आउट. आइ कॅन गिव यू दा कीस सो यू कॅन गो इन आंड लुक" मैने जेब से चाभी निकालते हुए कहा

"अरे यू किडिंग मी? आप मुझे ये घर बेचना चाहती है और खुद मुझे ये कह रही है के यहाँ भूत रहते हैं? यू बिलीव दट शिट अबौट दा हाउस? आपको सीरियस्ली लगता है के ये घर हॉंटेड है?" मेहरा हस्ता हुआ बोला

"भूत ओर नो भूत, मैं इस घर के अंदर नही जाना चाहती" मैने चाबी उसकी और बढ़ाई.

मेहरा ने चाबी मेरे हाथ से ली और हस्ते हुए गर्दन ऐसे हिलाई जैसे ताना मार रहा हो.


30 साल से ये घर मेरी प्रॉपर्टी है. मरने से पहले डॅड ये मेरे नाम कर गये थे पर पिच्छले 30 साल से यहाँ कोई नही रहा, या यूँ कह लीजिए के मैने रहने नही दिया. मेरे पति ने कई बार कोशिश की इस घर को बेच दिया जाए पर घर की लोकेशन ऐसी थी के बाहर का कोई खरीदने में इंट्रेस्टेड नही था और आस पास के लोग तो इस घर के नाम से ही डरते थे, खरीदना तो दूर की बात थी.


मेरी इस घर से डर और नफ़रत की वजह बस इतनी ही थी के इस घर की हर चीज़ मुझे 30 साल पहले की वो रात याद दिलाती है जब मेरे परिवार की खुशियाँ इस घर की कुर्बानी चढ़ गयी थी. उस रात यहाँ जो कुच्छ हुआ था उसके बाद मेरी मम्मी ने अपनी बाकी की ज़िंदगी एक मेंटल इन्स्टिटुशन में गुज़ारी और पापा ने शराब की बॉटल में.


कहते हैं के ब्रिटिश राज के दौरान किसी ब्रिटिश ऑफीसर ने इंग्लेंड वापिस जाने के बजाय इंडिया में ही रहने का इरादा कर यहाँ पहाड़ों के बीच एक खूबसूरत वादी में ये घर बनाया था. लोगों की मानी जाए तो ये उस ऑफीसर की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ग़लती थी. कहते हैं के घर बनने के कुच्छ अरसे बाद ही एक सुबह उस ऑफीसर और उसके बीवी बच्चों की लाशें घर के बाहर मिली थी. कोई नही जानता के उन्हें किसने मारा था पर लाशों की हालत देख कर यही अंदाज़ा लगाया गया के ये किसी जुंगली जानवर का काम था.


घर का दूसरा मालिक भी एक अँग्रेज़ ही था. एक महीना घर में रहने के बाद वो और उसकी बीवी ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग. बहुत कोशिश की गयी पर उन दोनो का कोई पता नही चला, लाशें तक हासिल नही हुई. एक बार फिर इल्ज़ाम जुंगली जानवरों पर डाल दिया गया.


घर का तीसरा मालिक एक आर्मी मेजर था. घर खरीदने के एक महीने बाद वो अपने कमरे के फन्खे से झूलता हुआ पाया गया. स्यूयिसाइड की कोई वजह सामने नही आ पाई. कहते हैं के मेजर अपनी ज़िंदगी से बहुत खुश था और अपने आपको मारने की उसके पास कोई वजह नही थी. उसने ऐसा क्यूँ किया ये कोई नही बता पाया पर उसके बाद इस घर में रहने की किसी ने कोशिश नही की.


मेरे पिता कभी भूत प्रेत में यकीन नही रखते थे. उनका मानना था भूत, शैतान जैसे चीज़ें इंसान ने सिर्फ़ इसलिए बनाई हैं ताकि उसका विश्वास भगवान में बना रहे. घर उन्हें कोडियों के दाम मिल रहा था और अपना एक वाकेशन होम होने का सपना पूरा करने के लिए उन्होने फ़ौरन खरीद भी लिया. जब मेरी माँ ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होने हॅस्कर कहा था,


"हाउसस डोंट किल पीपल. पीपल किल पीपल"


और फिर एक साल गर्मियों की छुट्टियाँ मानने हम लोग पहली बार इस घर में रहने आए. मेरे पापा ने काफ़ी खर्चा करके घर को रेनवेट किया था और उस वक़्त देखने से लगता ही नही था के ये घर इतना पुराना था.


"साहिब मेरी बात मान लीजिए. वो घर मनहूस है, वहाँ जो रहा ज़िंदा नही बचा. क्यूँ आप अपने परिवार की ज़िंदगी ख़तरे में डाल रहे हैं?" वो टॅक्सी ड्राइवर जो हमें घर तक छ्चोड़ने जा रहा था रास्ते में बोला था

"ऐसा कुच्छ नही होता बहादुर" पापा ने हॅस्कर उसकी बात ताल दी "अगर कोई मरता है तो उसकी वजह होती है एक. बेवजह किसी की जान नही जाती"

"और जो लोग यहाँ मरे हैं उसकी वजह ये घर है साहिब. इस घर में जो कुच्छ भी बस्ता है, वो नही चाहता के उसके सिवा इस घर में कोई रहे" बहादुर ने हमें रोकने की एक आखरी कोशिश की थी पर पापा का इरादा नही बदला.


मेरी उमर उस वक़्त 10 साल थी और मेरे भाई की 12. पापा और भाई यहाँ आकर काफ़ी खुश थे और मम्मी जो पहले घबरा रही थी अब पापा की बातें सुन सुनकर काफ़ी हद तक अपने आपको संभाल चुकी थी. रही मेरी बात तो एक 10 साल की बच्ची के लिए यही बहुत होता है के वो अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मानने जा रही है जहाँ वो लोग बहुत मस्ती करने वाले थे. घर, भूत प्रेत इन सब बातों से तो मुझे मतलब ही नही था.


और घर में आने के पहले ही दिन वो मुझे स्टोर रूम में पड़ी मिली थी. करीब 2 फ्ट की वो गुड़िया जो उस वक़्त मेरी कमर तक आती थी और देखने से ही बहुत पुरानी लगती थी. उसकी एक आँख नही थी और एक टाँग टूटी हुई थी.


"वॉट अन अग्ली डॉल" मेरे भाई ने मेरे हाथ में वो गुड़िया देखी तो कहा.

"आइ लाइक इट" मैने उसको उठाकर धूल झाड़ते हुए कहा और लेकर अपने कमरे में चली गयी. काश मुझे खबर होती के आने वाली कुच्छ रातों में सब कुच्छ किस तरह से बदल जाने वाला था.

अगले तकरीब एक हफ्ते तक सब कुच्छ नॉर्मल रहा. ऐसा कुच्छ नही हुआ जिसका मेरी माँ को डर था. वो हर रात सोने से पहले कुच्छ पढ़कर हमारे उपेर फूँक मारा करती थी. बाद में मुझे पता चला था के वो किसी पीर बाबा की बताई हुई दुआ था जिसको पढ़कर फूँक मार देने से भूत प्रेत या कोई गैर-इंसानी कोई नुकसान नही पहुँचा सकती थी. वो पहली कुच्छ रातों में मेरे सोने तक मेरे कमरे में रहती और रात में भी कई बार आकर देखती के सब ठीक तो था.


उन्हें क्या खबर थी के जिस मुसीबत से मुझे बचाने के लिए वो इतना कुच्छ कर रही थी, उस मुसीबत को तो मैं अपने अपनी बगल में ही लेकर सोती थी.


उस गुड़िया को देखने से ही मालूम होता था के वो काफ़ी पुरानी थी. जिस तारह की गुड़िया आज कल बनाई जाती हैं, वो उस तरह की नही थी. बॉल भी किसी पुरानी ज़माने की फिल्म की हेरोयिन की तरह बनाए हुए थे.


वो कम से कम 2 फुट ऊँची थी आर उस वक़्त बड़ी आसानी से मेरी कमर तक आती थी. चेहरे पर कई जगह से घिसी हुई थी और उन सब जगहों पर काले रंग के धब्बे बने हुए थे. राइट हॅंड की 2 अँगुलिया इस तरह से कटी हुई जैसे चाकू से काटी गयी हों.


प्यार से मैने उसका नाम रखा गुड्डो.

मैने घर में काफ़ी ढूँढने की कोशिश की थी पर उस गुड़िया की एक आँख मुझे मिली नही. जब पापा ने देखा के मुझे वो गुड़िया कुच्छ ज़्यादा ही पसंद है तो उन्होने आँख की जगह एक बटन चिपका दिया जो उसकी दूसरी आँख से काफ़ी मिलता जुलता था. प्लास्टिक की उसकी टाँग काफ़ी बुरी तरह से टूटी हुई थी पर फिर भी उन्होने उसे भी कोशिश करके काफ़ी हद तक ठीक कर दिया.


एक तरह से कहा जाए तो वो गुड़िया काफ़ी बदसूरत थी जिसे शायद कोई बच्चा अपने पास ना रखना चाहे पर ना जाने क्यूँ मैने रखा और हर रात बिस्तर में अपने साथ ही लेकर सोती थी.


हमें आए घर में एक हफ़्ता हो चुका था. उस रात भी हमेशा की तरह मैं बिस्तर में गुड़िया के साथ लेटी, मेरी माँ ने कुछ पढ़कर मेरे उपेर फूँका और मेरा माथा चूम कर अपने कमरे में चली गयी.


उनके जाते ही मैने गुड़िया को खींच कर अपने से सटाया और उससे लिपट कर सो गयी.

देर रात एक आहट से मेरी आँख खुली. कह नही सकती के आवाज़ क्या थी पर एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे कोई हसा हो. मैं आधी नींद में थी इसलिए आवाज़ पर ध्यान ना देकर फिर से सोने के लिए आँखें बंद कर ली और फिर गुड़िया के साथ लिपट गयी.
दूसरी बार जब मेरी आँख खुली तो मुझे पूरा यकीन था के मैने किसी के बोलने की आवाज़ सुनी थी. मैं फ़ौरन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गयी और नाइट बल्ब की रोशनी में आस पास देखने की कोशिश करने लगी.


कमरा काफ़ी ठंडा हो रखा था और ठंड से मैं काँप रही थी. कुच्छ पल बाद जब मेरी आँखें हल्की रोशनी की आदि हुई तो मेरा ध्यान कमरे की खिड़की की तरफ गया जो कि पूरी तरह खुली हुई थी. मुझे अच्छी तरह याद था के जाने से पहले माँ खिड़की बंद करके गयी थी क्यूंकी पहाड़ी इलाक़ा होने के कारण रात को सर्दी काफ़ी बढ़ जाती थी और ठंडी हवा चलने लगती थी जबकि उस वक़्त ना की सिर्फ़ खिड़की खुली
हुई थी बल्कि परदा भी पूरा एक तरफ खिसकाया हुआ था.


मैं उठकर बिस्तर से उतरी और खिड़की तक पहुँची. वो घर काफ़ी पुराना था इसलिए पुराने ज़माने के घर की तरह ही उस कमरे की खिड़की भी काफ़ी बड़ी और थोड़ी ऊँचाई पर थी. हाइट में छ्होटी होने की वजह से मेरे हाथ खिड़की तक नही पहुँच रहे थे. 2-3 बार मैने उच्छल कर खिड़की तक पहुँचने की कोशिश की मगर कर ना सकी.

Re: गुड़िया

Posted: 12 Oct 2014 21:05
by raj..
हार कर मैने अपने चारो तरफ देखा. कमरे में बेड के पास एक छ्होटा सा स्टूल रखा था. मैने अंदाज़ा लगाया तो उसपर खड़े होकर मेरे हाथ बहुत आसानी से खिड़की तक पहुँच सकते थे. मैं स्टूल उठाने के लिए बिस्तर की तरफ बढ़ी ही थी तभी मेरा ध्यान अपने बिस्तर की तरफ गया.


सोते वक़्त जो गुड़िया मेरे साथ मेरे बिस्तर पर थी वो अब वहाँ से गायब थी.
मैने एक नज़र नीचे ज़मीन पर डाली के शायद वो सोते हुए मेरे हाथ लगने से नीचे गिर गयी हो पर गुड़िया का नीचे भी कोई निशान नही था. मैं अपने घुटनो के बल नीचे बैठी और बिस्तर के नीचे देखने लगी.


गुड़िया तो नही मिली पर तभी मेरे कमरे के दरवाज़े पर हल्की सी आहट हुई जैसे कोई दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहा हो. उस घर के दरवाज़े काफ़ी बड़े और भारी थे, इतने के कभी कभी तो मुझे भी कोई दरवाज़ा खोलने में परेशानी होती थी. दरवाज़ा कमरे के अंदर की तरफ खुलता था और उस वक़्त आ रही आवाज़ को सुनकर ऐसा लगता था जैसे कोई दरवाज़े के उस पार खड़ा खोलने की कोशिश कर रहा हो.
एक पल के लिए मेरी जैसे जान ही निकल गयी और पर फिर अगले पल ध्यान आया के वो शायद मेरी मम्मी थी जो आदत के हिसाब से रात को कई बार मेरे कमरे में मुझे देखने आती थी. मैं राहत की साँस ली और खिसक कर बिस्तर के नीचे से निकल ही रही थी के दरवाज़ा एक झटके से पूरा गया.


मैं अब भी बिस्तर के नीचे ही थी जब मैने दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़ा पूरा नही खुला था, सिर्फ़ थोड़ा सा जितना के अंदर देखने के लिए काफ़ी हो. और दरवाज़े के पिछे से एक जाना पहचाना चेहरा कमरे के अंदर झाँक रहा था. गुड्डो का चेहरा. जैसे वो कमरे के अंदर झाँक कर ये तसल्ली कर रही हो के मैं अब तक सो रही हूँ.


मुझे अच्छी तरह याद है के वो पूरी रात मैने यूँ ही बिस्तर के नीचे रोते हुए गुज़ारी थी और अगली सुबह मुझे सर्दी से बुखार चढ़ गया था.

अगले दिन मैने पुछा तो मुझे बताया गया के गुड़िया नीचे के कमरे में सोफे पर बैठी हुई मिली.


ड्रॉयिंग रूम में टीवी ऑन था जिसके लिए पापा उसके लाख इनकार करने पर भी मेरे भाई और मम्मी को ही ज़िम्मेदार मान रहे थे.

"रात को 9 बजे के बाद कोई टीवी नही और जाने से पहले टीवी बंद करके जाया करो" मैने पापा को भाई पर चिल्लाते हुए सुना.


डॉक्टर आया और मुझे दवाई देकर चला गया. बुखार काफ़ी तेज़ था और मैं पूरी सुबह अपने कमरे में बिस्तर पर ही रही.

"और ये है मेरी प्यार गुड़िया की गुड्डो" कहते हुए पापा गुड़िया हाथ में लिए मेरे कमरे में दाखिल हुए.


और उस गुड़िया को देखते ही फ़ौरन मेरे दिमाग़ में कल रात की याद ताज़ा हो गयी के किस तरह वो दरवाज़े के पिछे खड़ी मेरे कमरे में झाँक रही थी. डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी और मैं पास बैठी मम्मी से लिपट गयी.

"अर्रे क्या हुआ?" कहते हुए पापा फ़ौरन हाथ में थामे मेरी तरफ बढ़े और मैं इस तरह से चीखने लगी जैसे वो कोई साँप हाथ में ला रहे हो और मुँह मम्मी के पल्लू में च्छूपा लिया.


थोड़ी देर के लिए किसी को कुच्छ समझ नही आया पर मेरा बर्ताव देख कर मम्मी समझ गयी और पापा को इशारे से गुड़िया दूर करने को कहा.

"क्या हुआ बेटा? आइ थॉट यू लाइक्ड इट" पापा के जाने के बाद उन्होने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

"शी ईज़ अलाइव" मैने सुबक्ते हुए कहा "आइ सॉ हर वॉकिंग लास्ट नाइट"और उसके बाद मैने कल रात की पूरी बात उन्हें बताई. के किस तरह मेरे कमरे की खिड़की खुली हुई थी, और कैसे वो गुड़िया दरवाज़ा खोल कर कमरे से बाहर निकल गयी थी.

"टीवी उसने ऑन छ्चोड़ा था मम्मी" मैने उन्हें समझाना चाहा "वो मेरे कमरे से निकल कर बाहर गयी और टीवी ऑन करके खुद टीवी देख रही थी. और कमरे की खिड़की भी उसने खोली थी"

मेरी बात सुन कर माँ हस पड़ी.


"ऐसा कैसे हो सकता है बच्चे? वो छ्होटी सी गुड़िया इतनी बड़ी खिड़की कैसे खोलेगी? उस खिड़की तक तो आपना हाथ भी नही पहुँचेगा"

"तो खिड़की कैसे खुली?" मैने पुछा

"मैं भूल गयी थी खिड़की बंद करना. ऐसे ही अपने कमरे में चली गयी और मेरी प्यार बच्ची बीमार पड़ गयी. और वो गुड़िया टीवी देख कर क्या करेगी?" उन्होने हस्ते हुए कहा पर मैं जानती थी के वो मुझे बहलाने के लिए झूठ बोल रही हैं.


थोड़ी देर बाद पापा मेरे कमरे में आए और उन्होने बताया के वो गुड़िया को घर से बहुत दूर फेंक कर आ गये हैं.

"अब आपको डरने की कोई ज़रूरत नही"

"वो वापिस आ गयी तो?" मैने फिर भी डरते हुए पुछा

"हम उसे वहाँ दूर खाई में फेंक कर आए हैं" पापा ने कहा "और वो गुड़िया तो वैसे भी लंगड़ी है, चाहे भी तो इतना दूर नही चल सकती. और फिर आपके कमरा भी तो 1स्ट्रीट फ्लोर पर है ना. आपके कमरे की सीढ़ियाँ वो लंगड़ी गुड़िया कैसे चढ़ेगी भला?"

मैं उनकी बात सुनकर हस दी पर फिर भी दिल को जैसे तसल्ली नही हुई.


"मैने आपके साथ सो जाऊं प्लीज़?" मैने उनसे पुछा

"मम्मी यहाँ आपके कमरे में आपके साथ सोएगी" मम्मी ने बेड पर मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा

"और वैसे भी तो आपकी तबीयत खराब है ना बच्चे. हम आपको अकेला कैसे सोने दे सकते हैं?"

Re: गुड़िया

Posted: 12 Oct 2014 21:05
by raj..
पूरा दिन मेरे बुखार में कोई तब्दीली नही आई जिसका नतीजा ये हुआ के मैं बिस्तर से उठ ही नही पाई. दवाइयाँ खाए मैं बेड पर पड़ी पूरा दिन सोती रही.

"आप आज मेरे साथ सोएंगी ना?" मैने डिन्नर टेबल पर माँ से पुछा. शाम होते होते मेरा बुखार काफ़ी कम हो चुका था इसलिए रात के डिन्नर के लिए पापा मुझे उठाकर नीचे ही ले आए थे. मुझे डर था के कहीं ये सोच कर के मेरा बुखार उतर गया है, मम्मी मेरे साथ सोने का अपना इरादा बदल ना दें.


"हां जी बेटा" मान ने जवाब दिया "मम्मी आपके साथ ही सोएगी"


और ऐसा हुआ भी. उस रात जब मैं सोई, तो मेरा सर माँ की बगल में था. मैं पूरा दिन सोई थी इसलिए माँ के सोने के बाद भी काफ़ी देर तक जागती रही थी. और जब सोई, तो ऐसी कच्ची नींद के हल्की सी आहट पर भी मेरी आँख खुल जाती थी. और जैसे ही मेरी आँख खुलती, मैं सबसे पहले मम्मी को देख कर ये तसल्ली करती के वो अब भी मेरे साथी ही हैं और उसके बाद दूसरी तसल्ली ये करती के
दरवाज़ा खुला हुआ नही है.


"वो लंगड़ी गुइडया भला कैसे आपके कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ेगी?" मुझे पापा की कही बात याद आती तो थोड़ा हौसला और मिल जाता.


रात यूँ ही आँखों आँखों में और जागने सोने का खेल करते हुए गुज़र रही थी.

ऐसी ही एक आहट पर मेरी आँख फिर खुली. हर बात की तरह इस बार भी सबसे पहले मैने मम्मी और फिर दरवाज़ा बंद होने की तसल्ली की. फिर मेरा ध्यान उस आवाज़ की तरफ गया जिसकी वजह से मेरी आँख खुली थी.


आवाज़ दरवाज़े की तरफ से आ रही थी. मैं डर से सहम गयी और मम्मी का हाथ थाम लिया. आहट एक बार फिर हुई तो मुझे यकीन हो गया के आवाज़ दरवाज़े की बाहर से आ रही थी.


"एक ......"


आवाज़ फिर आई तो इस बार मुझे साफ सुनाई दी. बड़ी अजीब सी आवाज़ थी जैसे कोई हांफता हुआ बोल रहा हो.


"दो ......"


आवाज़ के साथ साथ साँस की आवाज़ भी सॉफ सुनाई दे रही थी जैसे कोई बहुत भाग कर आया हो और बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हो.


"तीन ......."


और इसके साथ ही पापा की कही बात भी जैसे एक बार फिर मेरे कान में गूँज उठी.


"हम उसे बहुत दूर फेंक कर आए हैं बेटा ..... और वैसे भी, लंगड़ी गुड़िया आपके कमरे की सीढ़ियाँ कैसे चढ़ेगी?"


"वो मेरे कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ रही है .... वो वापिस आ गयी है !!!!!" मेरे दिमाग़ में जैसे बॉम्ब सा फटा.


"चार ......"


और इसके साथ ही मैने बगल में लेटी अपनी माँ के कंधे को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया.


थोड़ी देर बाद ही सुबह की हल्की हल्की रोशनी चारो तरफ फेल गयी पर हमारे घर में सब लोग जाग चुके थे.


"मैने कहा था ना के यहाँ मत आओ. कुच्छ है इस घर में" बाहर मम्मी पापा के साथ झगड़ा कर रही थी.

"ओह कम ऑन !!!" पापा ने जवाब दिया "तुम भी क्या बच्चो की बातों में आ गयी. वो एक छ्होटी बच्ची है और डरी हुई है"

"जो भी है पर क्या तुमने नही देखा के डर के मारे उस बेचारी की हालत कैसी हो रखी है? बुखार में काँप रही है वो. डर के मारे उसका गला बैठ गया है. शी कॅन बेर्ली स्पीक"

"डॉक्टर को बुला भेजा है मैने" पापा ने जवाब दिया

"बात डॉक्टर की नही है. आइ डोंट वाना स्टे इन दिस हाउस अनीमोर. लेट्स गो बॅक"

"आंड रूयिंड और वाकेशन?"

"ईज़ युवर वाकेशन वर्त दा लाइफ ऑफ युवर डॉटर?"

इस बात का शायद पापा के पास भी कोई जवाब नही था. कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.

"ऑल राइट, वी विल हेड बॅक टुमॉरो" उन्होने मम्मी की ज़िद के आगे हथियार डालते हुए कहा.


मैं बड़ी मुश्किल से अपने बेड से उठी और दरवाज़े तक आई. दरवाज़ा खोलकर मैने अपने कमरे के बाहर की सीढ़ियाँ गिनी. पूरी 11 सीढ़ियाँ.


रात की आवाज़ की तरफ मैने फिर से ध्यान दिया. सीढ़ियों पर कोई निशान तो नही थे पर मुझे यकीन था के वो आवाज़ उस गुड़िया के घिसटने की थी. वो लंगड़ी थी और अपने एक पावं को खींचते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.


मैने फ़ौरन दरवाज़ा बंद किया और आकर बेड पर लेट गयी.


"वी विल हेड बॅक टुमॉरो" पापा की कही बात ने मुझे तसल्ली तो दी थी पर एक बड़ा सवाल अब भी बाकी था. आज की रात कुच्छ हुआ तो?

"बाइ दा वे, वो गुड़िया है कहाँ?" मम्मी की बाहर से फिर आवाज़ आई

"आइ थ्र्यू इट इन दा बेसमेंट"