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कानपुर की एक घटना

Posted: 15 Dec 2014 17:00
by The Romantic
कानपुर की एक घटना


ये घटना वर्ष २००३ जून महीने की है, मुझे महाशक्तिपीठ कामख्या से आये हुए कोई हफ्ता ही बीता था, कि एक दिन मेरे पास मेरे किसी परिचित का फ़ोन आया, उन्होंने किन्ही रमेश श्रीवास्तव के के बारे में बताया जो कि कानपुर देहात के किसी सरकारी बैंक में अधिकारी थे, उन्होंने कहा कि २ दिनों के बाद वो रमेश जी को मेरे पास भेज रहे हैं, कोई गंभीर समस्या है, उसका निवारण आवश्यक है, मैंने कहा कि ठीक है आप भेज दीजिये, और इतना कह के उन्होंने फ़ोन काट दिया, ठीक २ दिनों के बाद रमेश जी आ गए और उनके साथ उनकी श्रीमती जी भी आई थीं, मैंने उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछा, इस से पहले कि रमेश जी कुछ बोलते, उनकी श्रीमती जी फूट फूट के रोने लगीं, रमेश जी ने उनको चुप कराया, मै समझ गया कि समस्या कोई गंभीर ही है, मैंने उनको हिम्मत बंधाई और उनसे उनकी समस्या पूछी,

"बताइए क्या बात है?" मैंने पूछा

रमेश जी ने कहना शुरू किया,
"हमारे २ बच्चे हैं, एक बड़ी लड़की, शिवानी, जो कि अब कॉलेज में है और द्वित्य वर्ष की छात्रा है, एक लड़का है, हिमांशु, जो कि ११ वी कक्षा में पढ़ रहा है, मै कानपुर देहात के एक सरकारी बैंक में उप-प्रबंधक हूँ, मेरी श्रीमती जी कानपुर देहात के ही एक सरकारी विद्यालय में हिंदी कि शिक्षिका हैं, आज से करीब ४ महीने पहले घर में सब-कुछ सही चल रहा था, सुख-शान्ति थी, लेकिन उसके बाद घर में एक विचित्र समस्या शुरू हो गयी" रमेश जी ने धीमे स्वर में ये बात कही,

"कैसी विचित्र समस्या?" मैंने प्रश्न किया,

"ये कोई १२ फरवरी की बात है, हम लोग रात्रि का खाना खा के सो चुके थे, मुझे अचानक ही मेरी बेटी के कमरे से कुछ गिरने की आवाज़ आई, मेरी नींद खुल गयी, मैंने सोचा कि शायद शिवानी से ही कुछ गिर गया होगा, मैंने घडी पे नज़र डाली तो २ बजे थे, अभी मै दुबारा लेटने ही वाला था की इस बार भी वैसी ही आवाज़ आई, आवाज़ इस बार तेज़ थी, मेरी पत्नी की आँख भी खुल गयी, और मेरा बेटा भी अपने कमरे से बाहर आ गया, मेरे बेटे ने शिवानी को आवाज़ लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, मै दरवाज़े पे गया और खटखटाया, २ बार, ३ बार, ४ बार लेकिन न तो दरवाज़ा ही खुला और न ही शिवानी की आवाज़ ही आई, मन में अजीब से ख़याल आने लगे, कि न जाने क्या बात है, जब बार-बार चिल्लाने पर भी दरवाज़ा नहीं खुला तो मैंने और मेरे बेटे ने दरवाज़ा तोड़ दिया, हम कमरे में दाखिल हुए, वहाँ अँधेरा था, मैंने लाइट जलाई, तो देखा शिवानी एक तकिये पर बैठी हुई थी, और कुछ बडबडा रही थी, मैंने जाके उसको जैसे ही छुआ, उसने मुझे धक्का दे कर मारा, मेरे बेटे ने भी जैसे उसको पकड़ा तो उसको भी लात दबा के मारी, अब वो जो बडबडा रही थी, वो अरबी या उर्दू भाषा थी, न तो शिवानी उर्दू की पढाई करती थी, न कभी की थी, न मैंने, और परिवार में भी नहीं, मारे भय के पाँव तले ज़मीन निकल गयी" रमेश जी ने ऐसा कह के २ घूँट पानी पिया और रुमाल से अपना मुंह पोंछा...........

रमेश जी ने दुबारा कहना शुरू किया,
" वो हंसती जा रही थी, खिलखिला के, बुरी तरह, मै लगतार उसको 'शिवानी मेरी बेटी, शिवानी मेरी बेटी' कहे जा रहा था,अब हम बुरी तरह से घबरा गए थे, अचानक ही वो खड़ी हुई और चिल्ला के बोली,

"निकल जाओ यहाँ से, मै तुम्हारी शिवानी नहीं हूँ", और फिर हंसने लगी, मेरी पत्नी से ये देखा नहीं गया और रोते-रोते उसके पास गयी, शिवानी ने मेरी माँ को ऊपर से नीचे की और देखा और बिस्तर से उतर गयी, उतरने के बाद वो अपनी गर्दन हिलाते हुई बोली,
"तू कौन है?" मेरी पत्नी ने रोते हुए उसके सर पे हाथ रखा, तो वो कुछ नहीं बोली मगर ऐसे देखती रही की जैसे पहली बार देखा हो, हम बुरी तरह से घबरा गए थे, मैंने अपने बेटे को डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा, वो डॉक्टर को लेने चला गया, शिवानी फिर से बिस्तर पर चढ़ गयी और फिर से आँखें बंद करके बडबडाने लगी, मेरी पत्नी और मै एकटक उसके ऐसे ही देखते रहे, २० मिनट बीत चुके थे, तभी मेरा बेटा डॉक्टर को लेके आ गया, जैसे ही डॉक्टर आगे बाधा, शिवानी ने चुटकी बजाते हुए उसको वहाँ से जाने को कहा, यहाँ तक की अपशब्द भी बोले, डॉक्टर ने अपना बैग उठाते हुए कहा की शिवानी को मानसिक इलाज की ज़रुरत है, आप इसको मानसिक-चिकित्सालय ले जाइए, वहीँ इसका इलाज हो सकेगा, और डॉक्टर जैसे आया था, वैसे ही चला गया, अब ये और घबराने की बात थी, तभी शिवानी खड़े होते हुई और बोली,
"अब निकल जाओ यहाँ से, मुझे गुस्सा न दिलाओ, अगर गुस्सा आ गया तो घर में ३ लाश बिछा दूंगा! मुझे हैरत हुई, 'दूँगा?', ये अजीब सी बात थी, उसने कभी भी इस तरह से बात नहीं की थी, वो चिल्लाई और बोली,
"अब जाते हो या मै निकालूं तुमको?", तब हम तीनों वहाँ से निकल के अपने कमरे में आ गए, अब तक ४ बज चुके थे, नींद आँखों से ग़ायब हो गयी थी, शिवानी के कमरे से अभी भी जोर-जोर से हंसने की आवाज़ आ रही थी, हमारी हिम्मत ही नहीं हुई की हम उसके कमरे में जाएँ" ऐसा कहते हुए रमेश जी न अपनी जेब से मुझे शिवानी का फोटो दिखाया.....

Re: कानपुर की एक घटना

Posted: 15 Dec 2014 17:01
by The Romantic
शिवानी का फोटो देखने पर मुझे ऐसा नहीं लगा की वो लड़की किसी अत्यंत-आधुनिक विचारधारा से ओत-प्रोत हो, वो एक साधारण सी लड़की थी, हाँ, नैन-नक्श काफी अच्छे थे, शरीर भी मजबूत किस्म का लग रहा था, पढाई में भी वो मेधावी थी, ये मुझे रमेश जी की पत्नी ने बताया, मैंने एक बार फिर से फोटो देखा और वापिस रमेश जी को दे दिया, उन्होंने वो फोटो अपनी जेब में रख लिया,

"क्या आपने उसको कहीं ऊपरी इलाज करने वाले के पास दिखाया?" मैंने पूछा,

अबकी बार शिवानी की माता जी ने कहना शुरू किया,
"हाँ, हम उसको हर उस जगह ले गए, जहां हमको जैसा जिसने बताया, हाँ, एक बात ग़ौर करने की है, जब भी हम उसको कहीं ले जाते थे तो वो सामान्य हो जाती थी, और उत्सुक रहती थी, परन्तु कभी-कभार रास्ते में कहती थी की उसको कहीं भी ले जाओ, कोई कुछ नहीं कर सकेगा, और ऐसा होता भी था, कई ओझाओं ने तो मन ही कर दिया, कई तांत्रिक जो घर पे आये वो सर पे पाँव लेके भागे, फिर एक दिन एक मौलवी साहब आये, शिवानी ने उनको अपने हाथ से पानी पिलाया, मौलवी साहब ने कहा की शिवानी को और उनको अकेला छोड़ दिया जाए, करीब १ घंटे के बाद मौलवी साहब वापिस हमारे पास आये, उन्होंने जो बताया, उसको सुनके हमारे होश उड़ गए, उन्होंने बताया की शिवानी पर एक जिन्न आशिक है, और वो जिन्न बेहद ज़िद्दी है, कहता है की वो शिवानी को कभी नहीं छोड़ेगा, चाहे कुछ भी कर लो, और उन्होंने कहा की एक बार हम उसको अजमेर-शरीफ ले के जाएँ, हो सकता है की शिवानी वहां बिलकुल ठीक हो जाये, और अब मौलवी साहब इसमें कुछ नहीं कर सकते" रमेश जी की पत्नी ने अपनी साड़ी से अपने आंसू पोंछते हुए ये बात कही...


"तो क्या आप उसको अजमेर-शरीफ लेके गए?" मैंने रमेश जी से पूछा,
"हाँ साहब, हम लेके गए थे उसको, कुछ नहीं हुआ, बल्कि अब शिवानी का मिजाज और कड़वा हो गया था, बात-बात पर गाली-गलौज करने लगी थी, हाँ, अब सजने-धजने ज्यादा लगी थी, दिन में ४ बार नहाने लगी थी, मुझे तो लगता है की अब वो हमारी बिटिया है ही नहीं, कोई अनजान लड़की है हमारे घर में" अपनी जेब से रुमाल निकालते हुए रमेश जी ने बोला,

मैंने भी अपनी गर्दन हिलाई और इस समस्या पर विचार करने लगा,

"क्या शिवानी अभी घर पे ही है?" मैंने सवाल किया,

"जी हाँ, वो घर पे ही है, मेरी बहन आई हुई है घर पे, तभी हम यहाँ आये है आपके पास" रमेश जी बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
"ठीक है, रमेश जी, मै शिवानी को आपके घर पे ही जाके देखूंगा, आज सोमवार है मै इस शुक्रवार को कानपुर रवाना हो जाऊँगा, आप अपना पता और फ़ोन नंबर लिख के दे दीजिये, सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप चिंता न करें!" मैंने रमेश जी के कंधे पे हाथ रखते हुए ऐसा कहा,

रमेश जी की पत्नी के आंसू फिर से निकल आये थे, वो कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन रुलाई में कुछ नहीं कह पायीं, मै एक माँ-बाप का दर्द समझ सकता था,
रमेश जी ने एक कागज़ पर अपना फ़ोन नंबर और पता लिख कर दे दिया, और उठ के खड़े हो गए, मै भी उनको बाहर तक छोड़ने आया, उनका ऑटो खड़ा था सो वो उसमे बैठ के नमस्कार कहते हुए वहां से चले गए......

Re: कानपुर की एक घटना

Posted: 15 Dec 2014 17:02
by The Romantic

मेरे एक शिष्य हैं, शर्मा जी, शिष्य कम परन्तु मित्र अधिक हैं, एक तो उम्र में मुझसे बड़े भी हैं और बेहद ईमानदार भी, मैंने उनको फ़ोन मिलाया और उनको शुक्रवार की २ रेल-टिकेट लेने को कहा, और ये भी बताया की वो मेरे साथ कानपुर चल रहे हैं, उन्होंने कहा कि ठीक है, और इस तरह हमारा कार्यक्रम शुक्रवार के लिए निर्धारित हो गया, अब मुझे वहाँ के लिए तैयारी करनी थी, जिन्न का मसला था, जिन्नात बेहद अकड़ वाले, ताक़तवर और अक्ल वाले होते हैं, आप जो भी अमल करोगे वो उनको पहले से ही पता चल जाता है, इसीलिए उनके लिए तैयारी अलग ही होती है, मेरे पास ४ दिन थे, और मै इस तरह तैयारी में लग गया,

शुक्रवार को हम दोनों कानपुर के लिए रेल में सवार हो गए, हम साढे तीन बजे दिन में कानपुर पहुँच चुके थे, आगे के रास्ते के लिए हमने बस ले ली, हालाँकि, रमेश जी हमको लेने आ सकते थे अगर मै कहता तो, लेकिन मैंने उनको मना कर दिया था, की आप कहीं न जाना, हम खुद ही आ जायेंगे, क्यूंकि मै नहीं चाहता था की शिवानी को कुछ भी आभास हो, हम चुपके से वहां पहुंचना चाहते थे, थोड़ी देर सफ़र करने के बाद हम उस जगह पहुँच गए, और पैदल-पैदल वहां तक चलने लगे, रास्ता काफी टेढ़ा-मेढ़ा सा था, मैंने एक दुकान वाले से पता पूछा तो उसने बता दिया, हम उसके बताये हुए रास्ते पर चल दिया, करीब १० मिनट के बाद हम रमेश जी के घर के सामने खड़े थे, घर बढ़िया बना हुआ था, पेड़-पौधे काफी चुन के लगाए थे रमेश जी ने!
मैंने रमेश जी के घर कि घंटी बजाई, उनका बेटा बाहर आया, मैंने उनको बताया कि हम दिल्ली से आये हैं, उसने नमस्कार किया और अन्दर ले गया, रमेश जी भी बाहर आने ही वाले थे, हमारी मुलाक़ात हुई और वो हमको अपने कमरे में ले गए, रमेश जी कि पत्नी भी वहां आ गयीं, हम कमरे में बैठे, तब तक रमेश जी कि पत्नी रसोई में जा चुकी थीं, मैंने रमेश जी से पूछा,
"शिवानी क्या कर रही है?"
"अभी सोयी हुई है" उन्होंने जवाब दिया
"ठीक है, आप ज़रा हमारे हाथ-मुंह धुलवा दीजिये" मैंने कहा,
वो उठे, और हम उनके पीछे हो लिए, वो हमे अपने बाथरूम तक ले गए, मैंने और शर्मा जी ने अपने हाथ-मुंह धोये और वापिस उसी कमरे में आ गए, तब तक चाय आ चुकी थी, हमने चाय का प्याला उठाया और मै रमेश जी से बोला,
"क्या आस-पड़ोस वालों को शिवानी के बारे में मालूम है?"
"हाँ साहब, ऐसी बातें ज्यादा देर तक नहीं छुपतीं, लोग कहने लगे हैं कि रमेश जी कि लड़की पागल हो गयी है" उन्होंने भारी मन से ये बात कही,
मैंने कहा, "कोई बात नहीं, अब हम आ गए हैं, घबराइये नहीं"
"बस अब तो आपका ही सहारा है साहब, नहीं तो बर्बाद होने में कोई कसर नहीं रही" रमेश जी बोले,
"आप घबराइये नहीं, ईश्वर ने चाहा तो आपकी बेटी हमेशा कि लिए ठीक हो जायेगी" मैंने चाय का प्याला मेज़ पर रखते हुए ये बात बोली,
" ठीक है रमेश जी, आप हमे कोई कमरा दीजिये, मै आज रात्रि यह काम करूँगा" मै उठते हुए बोला, उन्होंने अपने बेटे का कमरा हमे दे दिया, उन्होंने खाने के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि रात को ही खाना खायेंगे आप परेशान न हों, हमे अभी भूख नहीं है..