राज ने अपना सर उपर उठाया और पवन की तरफ देखा.
पवन दरवाजे के बाहर गया और उसने दरवाजा खींचकर बंद किया.
"सर देखिए अब..." वह बाहर से ज़ोर से चिल्लाया.
राज ने देखा की दरवाजे की अंदर की कुण्डी धीरे धीरे खिसक कर बंद हो गयी. राज भौचक्का देखता ही रह गया.
"सर आपने देखा क्या...?" उधर से पवन का आवाज़ आया.
फिर धीरे धीरे दरवाज़े की कुण्डी दूसरी तरफ खिसकने लगी और थोड़ी ही देर मे कुण्डी खुल गयी..
राज को बहुत आस्चर्य हो रहा था.
पवन दरवाज़ा खोलकर अंदर आया, उसके हाथ मे पीछे की और कुछ तो छिपाया हुआ था.
"तुमने यह कैसे किया...?" राज ने आसचार्ययुक्त उत्सुकतसे पूछा.
पवन ने एक बड़ा सा मॅगनेट अपने पीछे छुपाया था वह निकाल कर राज के सामने टेबल पर रख दिया.
"यह सब करामात इस चुंबक की है क्योंकि वह दरवाजे की कुण्डी लोहे की बनी हुई है..." पवन ने कहा.
"पवन फोर युवर काइंड इन्फ़ौरमेशन... घटनास्थलपर मिली सब दरवाज़े की कुण्डी अल्यूमिनियम की थी..." राज ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा.
"ओह्ह... अल्यूमिनियम की थी..." फिर और कोई आइडिया दिमाग़ मे आए जैसे उसने कहा, "कोई बात नही.. उसका हल भी है मेरे पास..."
राज ने अविश्वास से उसकी तरफ देखा.
पवन ने अपने गले मे पहना एक स्टोन्स का नेकलेस निकालकर उसका धागा तोड़ दिया, सब स्टोन्स एक हाथ मे लेकर उसमे से पिरोया हुआ नाइलॉन का धागा दूसरे हाथ से खींच लिया. उसने हाथ मे जमा हुए सारे स्टोन्स जेब मे रख दिए. अब उसके दूसरे हाथ मे वह नाइलॉन का धागा था.
राज असमंजस की स्थिति मे उसकी तरफ वह क्या कर रहा है यह देखने लगा.
"अब देखिए यह दूसरा आइडिया... आप सिर्फ़ मेरे साथ कमरे के बाहर आईए..." पवन ने कहा.
राज उसके पीछे पीछे जाने लगा.
पवन दरवाज़े के पास गया. दरवाज़े के कुण्डी मे उसने वह नाइलॉन का धागा अटकाया. धागे के दोनो सिरे एक हाथ मे पकड़ कर उसने राज से कहा, "अब आप दरवाज़े से बाहर जाइए..."
राज दरवाज़े के बाहर गया. पवन भी अब धागे के दोनो सिरे एक हाथ मे पकड़ कर दरवाज़े से बाहर आगया और उसने दरवाज़ा खींच लिया.
दरवाज़ा बंद था लेकिन वह धागा जो पवन के हाथ मे था दरवाज़े के दरार से अब भी अंदर की कुण्डी को अटकाया हुआ था. पवन ने धीरे धीरे उसे धागे के दोनो सिरे खींच लिए और फिर धागे का एक सिरा हाथ से छोड़कर दूसरे सिरे के सहारे धागा खींच लिया. पूरा धागा अब पवन के हाथ मे था.
"अब दरवाज़ा खोलकर देखिए..." पवन ने राज से कहा.
राज ने दरवाज़ा धकेलकर देखा और आस्चर्य की बात दरवाज़ा अंदर से बंद था.
राज भौचक्का सा पवन की तरफ देखने लगा.
"अब मुझे पूरा विश्वास होने लगा है..." राज ने कहा.
"किस बात का...?" पवन ने पूछा.
"कि इस नौकरी के पहले तुम कौन से धन्दे करते होंगे..." राज ने मज़ाक मे कहा.
दोनो एक दूसरे की तरफ देख मुस्कुराए.
"लेकिन एक बता..." राज ने कहा.
पवन ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे राज की तरफ देखा.
"कि अगर दरवाज़े को अंदर से अगर ताला लगा हो तो...?" राज ने पूछा.
"नही... उस हाल मे... फिर एक ही संभावना है..." पवन ने कहा.
"कौन सी...?"
"कि वह दरवाज़ा खोलने के लिए किसी अमानवी शक्ति का ही होना ज़रूरी है..." पवन ने कहा.
पोलीस स्टेशन के कान्फरेन्स रूम मे मीटिंग चल रही थी. सामने दीवार पर टाँगे हुए सफेद स्क्रीनपर प्रोजेक्टर से एक लेआउट डाइयग्रॅम प्रॉजेक्ट किया था. उस डाइयग्रॅम मे दो मकान के लेआउट एक के पास एक निकले हुए दिख रहे थे. लाल लेस्सर पायंटर का इस्तेमाल का इंस्पेक्टर राज सामने बैठे लोगों को अपने प्लान की जानकारी दे रहा था…
“मिस्टर. शिकेन्दर और मिस्टर. अशोक …” राज ने शुरुआत की सामने बाकी पोलीस के लोगों के साथ शिकेन्दर और अशोक बैठे हुए थे. वे लोग राज जो कुछ जानकारी दे रहा था वह ध्यान देकर सुन रहे थे.
“… आपके घर मे इस जगह हम कॅमरा बिठाने वाले है.. बेडरूम मे तीन और घर मे दूसरे जगह तीन ऐसे कुल मिलाकर 6 कॅमरा दोनो घर मे बिठाए जाएँगे… वह कॅमरा सर्किट टीवी से जोड़ दिए जाएँगे जहाँ हमारी टीम घर के सारी हरकतों पर लगातार नज़र रखी हुई होगी.
“आपको लगता है इससे कुछ होगा…?” शिकेन्दर अशोक के कान मे व्यंगतपूर्वक फुसफुसाया.
अशोक ने शिकेन्दर की तरफ देखा और कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त नही की और फिर राज से पूछा, “अगर खूनी कॅमरा से दूर रहा तो…?”
“जेंटल्मेन हम घर मे मूविंग कॅमरा लगाने वाले है.. जिसकी वजह से आपका पूरा घर हमारी टीम के निगरानी के नीचे रहनेवाला है… और हाँ… में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह सबसे कारगर और एफेक्टिव उपाय हम खूनी को पकड़ने के लिए इस्तेमाल कर रहे है.. क़ातिल ने अगर अंदर घुसने की कोशिश की तो वह किसी भी हालत मे हमसे बच नही पाएगा.. हमारे टेक्निकल टीम ने रात दिन काफ़ी मशक्कत कर यह ट्रॅप तैय्यार किया है…”
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
“अच्छा वह सब ठीक है.. और अगर इतना करने बाद अगर क़ातिल आपके हाथों मे आता है तो आप उसके साथ क्या करने वाले हो…?” शिकेन्दर ने पूछा.
“जाहिर है हम उसे कोर्ट के सामने पेश करेंगे… और क़ानून के हिसाब से जो भी सज़ा उसे ठीक लगे वह कोर्ट तय करेगा…” राज ने कहा.
“और गर वह छूट कर भाग गया तो…?” शिकेन्दर ने आगे पूछा.
“जैसे मीनू के क़ातिल उसका खून कर भाग गये वैसे…” पवन ने व्यंग्तापूर्वक कहा.
शिकेन्दर और अशोक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा.
“तुम्हे क्या हम खूनी लगते है…” अशोक ने उसे गुस्से से प्रतिप्रश्न किया…
“याद रखो अबतक हमें कोर्ट गुनहगार साबित नही कर पाया है..” शिकेन्दर गुस्से से चिढ़कर बोला.
“मिस्टर. अशोक & मिस्टर. शिकेन्दर… ईज़ी…ईज़ी… मुझे लगता है हम असली मुद्दे से भटकते जा रहे है… फिलहाल असली मुद्दा है कि आप लोगों को प्रोटेक्षन कैसे दिया जाय… आप लोग मीनू के खून के लिए ज़िम्मेदार हो या नही यह बाद का मुद्दा हुआ..” राज ने उन्हे शांत करने के उद्देश्य से कहा.
“आप लोग भी पहले हमारे प्रोटेक्षन के बारे मे सोचो… बाकी बाते बाद मे देखी जाएगी…” शिकेन्दर अधिकार वाणी से खांस कर पवन के तरफ देख कर बोला, जिसने उसे छेड़ा था. पवन को इन दो लोगों के प्रोटेक्षन के लिए तैनात टीम मे शामिल किया था, यह बात कुछ खल नही रही थी. राज ने भी पवन को शांत रहने का इशारा किया. पवन गुस्से से उठकर वहाँ से चला गया. उसके जाने से मौहाल थोड़ा ठंडा हो गया और राज फिर से अपनी योजना के बारे मे सब लोगों को विस्तृत जानकारी देने लगा.
शिकेन्दर और अशोक पोलीस उनका प्रोटेक्षन कर पाएँगे कि नही इसके बारे मे अभी भी संजीदा थे. लेकिन उन्हे उनके प्रोटेक्षन की ज़िम्मेदारी उनपर सौपने के आलवा दूसरा कुछ चारा भी तो नही था.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
पोलीस स्टेशन मे राज के खाली कुर्सी के सामने एक आदमी बैठा हुआ था. राज जल्दी जल्दी वहाँ आकर अपनी कुरसीपर बैठ गया.
“हाँ… तो आपके पास इस केस के सन्दर्भ मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है…?” राज ने पूछा.
“हाँ… साहब”
राज ने एकबार उस आदमी को उपर से नीचे तक देखा और फिर वह क्या बोलता है यह सुनने लगा.
“साहब हमारे पड़ोस मे वह लड़की मीनू, जिसका खून होगया ऐसा बोलते है, उसका भाई रहता है…” उस आदमी ने शुरुआत की और वह आगे पूरी कहानी कथन करने लगा….
…. एक चोल्ल मे एक घर था, उस घर को चारो तरफ काँच की खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ थी. इतनी कि उस घर मे क्या चल रहा है वह पड़ोसी को भी पता चले. एक खिड़की से हॉल मे मीनू का भाई अंकित बैठा हुआ दिख रहा था. अब वह पहले से कुछ ज़्यादा अजीब और पागल जैसा लग रहा था. दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए. मस्तक पर एक बड़ा सा किसी चीज़ का टीका लगा हुआ. वह फाइयर्प्लेस के सामने हाथ मे एक कपड़े का गुड्डा लेकर बैठा हुआ था. शायद वह गुड्डा उसने ही बनाया हुआ होगा. बगल मे रखे प्लेट्स से उसने हाथ से कुछ उठाया और वह कुछ तन्त्र-मन्त्र जैसे शब्द बड़बड़ाने लगा.
“एबेस ती बा रास केतिन स्तत…”
उसने प्लेट से जो उठाया था वह सामने फाइयर्प्लेस के आग मे फेंक दिया. आग भड़क उठी. फिर से वह वैसे ही कुछ विचित्र तन्त्र मन्त्र बोलने लगा.
“कातसी… नतंदी…वानशारपट…रेरवरत स्टता…”
फिर से उसने उस प्लेट से धान जैसा कुछ अपने हाथ मे उठाकर उस आग के स्वाधीन किया. इस बार आग और ज़ोर से भड़क उठी.
उसने अपने हाथ से वह गुड्डा वहीं बगल मे रख दिया, आगे के सामने झुक कर, फर्शपर अपना मस्तक घिसा.
एक आदमी पड़ोस से अंकित के घर मे क्या चल रहा है यह उत्सुकतावश देख रहा था.
मस्तक घिसने के बाद अंकित उठकर खड़ा हुआ और अजीब तरह से ज़ोर से चीखा. जो पड़ोस से झाँक कर देख रहा था वह भी एक पल के लिए डर से और सहम गया. अंकिता ने झुक कर बगल मे रखा हुआ वह गुड्डा उठाया और फिर से एक बार ज़ोर से अजीब तरह से चिल्लाया. सब तरफ एक अजीब, भयानक सन्नाटा छा गया.
“अब तू मरने के लिए तैय्यार हो जा चंदन…” अंकित ने उस गुड्डे से कहा.
“नही… नही… मुझे मरना नही है इतनी जल्दी.. अंकित में तुम्हारे पैर पड़ता हूँ… मुझे माफ़ कर दे… आइ एम सॉरी.. मेने जो किया वह ग़लत किया… मुझे अब उसका एहसास हो गया है.. में तुम्हारे लिए तुम जो कहोगे वह करूँगा… लेकिन मुझे माफ़ कर दो…” अंकित मानो वह गुड्डा बोल रहा है वैसे उस गुड्डे के संवाद बोल रहा था.
“तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो…? तुम मेरी बहन को वापस ला सकते हो..?” अंकित ने अब उसके खुद के संवाद बोले.
“नही… में वह कैसे कर सकता हूँ..? वह अगर मेरे हाथ मे होता तो में ज़रूर करता.. वह एक चीज़ छोड़कर कुछ भी माँगो… में तुम्हारे लिए करूँगा…” अंकित गुड्डे के संवाद बोलने लगा.
“अच्छा…. तो फिर अब मरने के लिए तैय्यार हो जाओ…”अंकित ने उस गुड्डे से कहा.
वह पड़ोस का आदमी अब भी अंकित के खिड़की से छुपकर अंदर झाँक रहा था.
क्रमशः……………………
“जाहिर है हम उसे कोर्ट के सामने पेश करेंगे… और क़ानून के हिसाब से जो भी सज़ा उसे ठीक लगे वह कोर्ट तय करेगा…” राज ने कहा.
“और गर वह छूट कर भाग गया तो…?” शिकेन्दर ने आगे पूछा.
“जैसे मीनू के क़ातिल उसका खून कर भाग गये वैसे…” पवन ने व्यंग्तापूर्वक कहा.
शिकेन्दर और अशोक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा.
“तुम्हे क्या हम खूनी लगते है…” अशोक ने उसे गुस्से से प्रतिप्रश्न किया…
“याद रखो अबतक हमें कोर्ट गुनहगार साबित नही कर पाया है..” शिकेन्दर गुस्से से चिढ़कर बोला.
“मिस्टर. अशोक & मिस्टर. शिकेन्दर… ईज़ी…ईज़ी… मुझे लगता है हम असली मुद्दे से भटकते जा रहे है… फिलहाल असली मुद्दा है कि आप लोगों को प्रोटेक्षन कैसे दिया जाय… आप लोग मीनू के खून के लिए ज़िम्मेदार हो या नही यह बाद का मुद्दा हुआ..” राज ने उन्हे शांत करने के उद्देश्य से कहा.
“आप लोग भी पहले हमारे प्रोटेक्षन के बारे मे सोचो… बाकी बाते बाद मे देखी जाएगी…” शिकेन्दर अधिकार वाणी से खांस कर पवन के तरफ देख कर बोला, जिसने उसे छेड़ा था. पवन को इन दो लोगों के प्रोटेक्षन के लिए तैनात टीम मे शामिल किया था, यह बात कुछ खल नही रही थी. राज ने भी पवन को शांत रहने का इशारा किया. पवन गुस्से से उठकर वहाँ से चला गया. उसके जाने से मौहाल थोड़ा ठंडा हो गया और राज फिर से अपनी योजना के बारे मे सब लोगों को विस्तृत जानकारी देने लगा.
शिकेन्दर और अशोक पोलीस उनका प्रोटेक्षन कर पाएँगे कि नही इसके बारे मे अभी भी संजीदा थे. लेकिन उन्हे उनके प्रोटेक्षन की ज़िम्मेदारी उनपर सौपने के आलवा दूसरा कुछ चारा भी तो नही था.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
पोलीस स्टेशन मे राज के खाली कुर्सी के सामने एक आदमी बैठा हुआ था. राज जल्दी जल्दी वहाँ आकर अपनी कुरसीपर बैठ गया.
“हाँ… तो आपके पास इस केस के सन्दर्भ मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है…?” राज ने पूछा.
“हाँ… साहब”
राज ने एकबार उस आदमी को उपर से नीचे तक देखा और फिर वह क्या बोलता है यह सुनने लगा.
“साहब हमारे पड़ोस मे वह लड़की मीनू, जिसका खून होगया ऐसा बोलते है, उसका भाई रहता है…” उस आदमी ने शुरुआत की और वह आगे पूरी कहानी कथन करने लगा….
…. एक चोल्ल मे एक घर था, उस घर को चारो तरफ काँच की खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ थी. इतनी कि उस घर मे क्या चल रहा है वह पड़ोसी को भी पता चले. एक खिड़की से हॉल मे मीनू का भाई अंकित बैठा हुआ दिख रहा था. अब वह पहले से कुछ ज़्यादा अजीब और पागल जैसा लग रहा था. दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए. मस्तक पर एक बड़ा सा किसी चीज़ का टीका लगा हुआ. वह फाइयर्प्लेस के सामने हाथ मे एक कपड़े का गुड्डा लेकर बैठा हुआ था. शायद वह गुड्डा उसने ही बनाया हुआ होगा. बगल मे रखे प्लेट्स से उसने हाथ से कुछ उठाया और वह कुछ तन्त्र-मन्त्र जैसे शब्द बड़बड़ाने लगा.
“एबेस ती बा रास केतिन स्तत…”
उसने प्लेट से जो उठाया था वह सामने फाइयर्प्लेस के आग मे फेंक दिया. आग भड़क उठी. फिर से वह वैसे ही कुछ विचित्र तन्त्र मन्त्र बोलने लगा.
“कातसी… नतंदी…वानशारपट…रेरवरत स्टता…”
फिर से उसने उस प्लेट से धान जैसा कुछ अपने हाथ मे उठाकर उस आग के स्वाधीन किया. इस बार आग और ज़ोर से भड़क उठी.
उसने अपने हाथ से वह गुड्डा वहीं बगल मे रख दिया, आगे के सामने झुक कर, फर्शपर अपना मस्तक घिसा.
एक आदमी पड़ोस से अंकित के घर मे क्या चल रहा है यह उत्सुकतावश देख रहा था.
मस्तक घिसने के बाद अंकित उठकर खड़ा हुआ और अजीब तरह से ज़ोर से चीखा. जो पड़ोस से झाँक कर देख रहा था वह भी एक पल के लिए डर से और सहम गया. अंकिता ने झुक कर बगल मे रखा हुआ वह गुड्डा उठाया और फिर से एक बार ज़ोर से अजीब तरह से चिल्लाया. सब तरफ एक अजीब, भयानक सन्नाटा छा गया.
“अब तू मरने के लिए तैय्यार हो जा चंदन…” अंकित ने उस गुड्डे से कहा.
“नही… नही… मुझे मरना नही है इतनी जल्दी.. अंकित में तुम्हारे पैर पड़ता हूँ… मुझे माफ़ कर दे… आइ एम सॉरी.. मेने जो किया वह ग़लत किया… मुझे अब उसका एहसास हो गया है.. में तुम्हारे लिए तुम जो कहोगे वह करूँगा… लेकिन मुझे माफ़ कर दो…” अंकित मानो वह गुड्डा बोल रहा है वैसे उस गुड्डे के संवाद बोल रहा था.
“तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो…? तुम मेरी बहन को वापस ला सकते हो..?” अंकित ने अब उसके खुद के संवाद बोले.
“नही… में वह कैसे कर सकता हूँ..? वह अगर मेरे हाथ मे होता तो में ज़रूर करता.. वह एक चीज़ छोड़कर कुछ भी माँगो… में तुम्हारे लिए करूँगा…” अंकित गुड्डे के संवाद बोलने लगा.
“अच्छा…. तो फिर अब मरने के लिए तैय्यार हो जाओ…”अंकित ने उस गुड्डे से कहा.
वह पड़ोस का आदमी अब भी अंकित के खिड़की से छुपकर अंदर झाँक रहा था.
क्रमशः……………………
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--12
गतान्क से आगे………………………
आधी रात होकर उपर काफ़ी समय गुजर चुक्का था. बाहर रास्ते पर कोई भी दिख नही रहा था. अंकित धीरे से अपने घर से बाहर आया, चारो और एक नज़र घुमाई. उसके हाथ मे एक थैल्ली थी जिसमे उसने वह गुड्डा ठूंस दिया और दरवाज़े को ताला लगा कर वह बाहर निकल गया. कॉंपाउंड के बाहर आते हुए उसने फिर से अपनी पैनी नज़र चारो और दौड़ाई. सामने रास्ते पर जिधर देखो उधर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ दिख रहा था. अब रास्ते से वह तेज़ी से अपने कदम बढ़ाते हुए चलने लगा. उस पड़ोस के आदमी ने अपने खिड़की से छुपकर अंकित को बाहर जाते हुए देख लिया. जैसे ही अंकित रास्ते पर आगे चलने लगा वह आदमी अपने घर से बाहर आ गया वह आदमी उसे कुछ आहट ना हो या वह उसे दिखाई ना दे इसका ख़याल रख रहा था. अंकित तेज़ी से अपने कदम आगे बढ़ाते हुए चल रहा था. अंकित काफ़ी आगे निकल जाने के बाद वह आदमी उसके पीछा करते हुए उसके पीछे पीछे जाने लगा.
वह आदमी अंकित का पीछा करते हुए कब्रिस्तान तक पहुँच गया, कब्रिस्तान के आसपास घने पेड थे. शायद उसे पेड़ो मे छुपकर उल्लू मुर्दों की राह देखते होंगे.. काफ़ी दूर कुत्तों के रोने जैसे अजीब सी आवाज़े आ रही थी. उस आदमी को इस सारे माहौल मे डर लग रहा था. लेकिन उसे अंकित यहाँ किस लिए आया है यह जानना था. अंकित कब्रिस्तान मे घुस गया और वह आदमी बाहर ही कॉंपाउंड वॉल के पीछे छुपकर अंकित क्या कर रहा है यह देखने लगा. चाँद के रोशनी मे उस आदमी को अंकित का साया दिखा रहा था. अंकित ने एक जगह तय की और वह वहाँ खोदने लगा. एक गड्ढा खोदने के बाद उसने उसके थैल्ली से वह गुड्डा निकाला. उस गुड्डे को अंकित ने ऐसा दफ़न किया कि मानो वह गुड्डा ना होकर कोई शव हो. वह उपर से मट्टी डालने लगा और मट्टी डालते वक्त भी उसका कुछ मन्त्र तन्त्र जैसे बड़बड़ाना अब भी जारी था. उस गुड्डे के उपर मट्टी डालने के बाद जब वह गड्ढा मट्टी से भर गया तो अंकित उस मट्टी पर खड़ा होकर उसे अपने पैरों से दबाने लगा…
…. वह आदमी कथन कर रहा था और राज ध्यान देकर सुन रहा था, उस आदमी ने आगे कहा –
“दूसरे दिन जब मुझे पता चला कि चंदन का कत्ल हो चुका है तब मुझे विश्वास नही हुआ…”
काफ़ी देर तक कोई कुछ नही बोला. अब इन सारी बातों ने एक नया ही मोड़ लिया था.
राज सोच ने लगा.
“तुम्हे क्या लगता है अंकित खूनी होगा…?” राज ने अपने इनवेस्टिगेटर की भूमिका मे प्रवेश करते हुए पूछा.
“नही… मुझे लगता है कि वह उसका काला जादू इन सारे कत्ल करने के लिए इस्तेमाल करता होगा.. क्योंकि जिस दिन सुनील का कत्ल हुआ उसके पहले दिन रात को अंकित ने वैसा ही एक गुड्डा बनाकर उसे कब्रिस्तान मे दफ़न किया था…” उस आदमी ने कहा.
“तुम इन सारी चीज़ों मे विश्वास रखते हो..?” राज ने थोड़ा व्यंगात्मक ढंग से ही पूछा.
“नही.. में विश्वास नही रखता… लेकिन जो अपनी खुली आँखों से सामने दिख रहा हो उन चीज़ों पर विश्वास रखना ही पड़ता है…” उस आदमी ने कहा.
राज का पार्ट्नर जो इतनी देर से दूर से सब उनकी बातें सुन रहा था, चलते हुए उनके पास आकर बोला –
“मुझे पहले ही शक था कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त है…”
सारे कमरे मे एक सन्नाटा फैल गया.
“अब उसने और एक नया गुड्डा बनाया हुआ है…” उस आदमी ने कहा.
अंकित के मकान के खिड़की से अंदर का सबकुछ दिख रहा था. आज भी वह फाइयर्प्लेस के सामने बैठा हुआ था. उसने अपने हाथ से वह गुड्डा बगल मे ज़मीन पर रख दिया और झुककर आग के सामने फर्शपर अपना मस्तक रगड़ने लगा. यह सब करते हुए उसका कुछ बड़बड़ाना जारी ही था. थोड़ी देर से वह खड़ा हो गया और अजीब ढंग से ज़ोर से किसी पागल की तरह चीखा. इतना अचानक और ज़ोर से चीखा कि बाहर खिड़की से झाँक रहे राज , पवन और उनको साथ मे जो लेकर आया था वह आदमी, सब्लोग चौंक कर सहम से गये. उस चीख के बाद वातावरण मे एक अजीब भयानक सन्नाटा छा गया.
"मिस्टर. अशोक अब तुम्हारी बारी है..." अंकित वह नीचे रखा हुआ गुड्डा अपने हाथ मे लेते हुए बोला.
लेकिन इतने मे दरवाज़े के बेल बजी. अंकित ने पलटकर दरवाज़े की तरफ देखा. गुड्डो को फिर से नीचे ज़मीन पर रख दिया और उठकर दरवाज़ा खोलने के लिए सामने आ गया.
दरवाज़ा खोला, सामने राज और पवन था, वह तीसरा आदमी शायद वहाँ से पहले ही खिसक गया था.
"मिस्टर. अंकित हम आपको चंदन और सुनील के कत्ल के एक सस्पेक्ट के तौर पर गिरफ्तार करने आए है... आपको चुप रहने का पूरी तरह हक है.. और कुछ बोलने के पहले आप अपने वकील के साथ संपर्क कर सकते है.. और ख़याल रहे कि आप जो भी बोलेगे वह कोर्ट मे आपके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा..." राज ने दरवाज़ा खोलते ही बराबर एलान कर दिया.
अंकित का चेहरा एकदम भावशून्य था, वह बड़े इम्तिनान के साथ उनके सामने आ गया.
उसे अरेस्ट करने के पहले राज ने कुछ सवाल पूछने की ठान ली.
"यहाँ आपके साथ कौन-कौन रहता है...?"राज ने पहला सवाल पूछा.
"में अकेला ही रहता हूँ..." उसने जवाब दिया.
"लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार आपके साथ आपके पिताजी भी रहते थे..."
"हाँ रहते थे... लेकिन... अब वे इस दुनिया मे नही रहे..."
"ओह्ह... सॉरी.. यह कब हुआ...? मतलब वे कब गुजर गये..?"
"मीनू की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ दिन मे ही वे चल बसे..."
"अच्छा आप चंदन और सुनील को पहचानते थे क्या...?"
"हाँ उन हैवानो को में अच्छी तरह से पहचानता हूँ..."
चंदन और सुनील का नाम लेने के बाद राज ने एक बात गौर की कि उनके उपर का गुस्सा और द्वेष उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था. या फिर उसने वह छिपाने की कोशिश भी नही की थी..
अब राज ने सीधे असली मुद्दे पर उससे बात करने की ठान ली...
"आपने चंदन और सुनील का खून किया क्या...?"
"हाँ..." उसने ठंडे स्वर मे कहा.
गतान्क से आगे………………………
आधी रात होकर उपर काफ़ी समय गुजर चुक्का था. बाहर रास्ते पर कोई भी दिख नही रहा था. अंकित धीरे से अपने घर से बाहर आया, चारो और एक नज़र घुमाई. उसके हाथ मे एक थैल्ली थी जिसमे उसने वह गुड्डा ठूंस दिया और दरवाज़े को ताला लगा कर वह बाहर निकल गया. कॉंपाउंड के बाहर आते हुए उसने फिर से अपनी पैनी नज़र चारो और दौड़ाई. सामने रास्ते पर जिधर देखो उधर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ दिख रहा था. अब रास्ते से वह तेज़ी से अपने कदम बढ़ाते हुए चलने लगा. उस पड़ोस के आदमी ने अपने खिड़की से छुपकर अंकित को बाहर जाते हुए देख लिया. जैसे ही अंकित रास्ते पर आगे चलने लगा वह आदमी अपने घर से बाहर आ गया वह आदमी उसे कुछ आहट ना हो या वह उसे दिखाई ना दे इसका ख़याल रख रहा था. अंकित तेज़ी से अपने कदम आगे बढ़ाते हुए चल रहा था. अंकित काफ़ी आगे निकल जाने के बाद वह आदमी उसके पीछा करते हुए उसके पीछे पीछे जाने लगा.
वह आदमी अंकित का पीछा करते हुए कब्रिस्तान तक पहुँच गया, कब्रिस्तान के आसपास घने पेड थे. शायद उसे पेड़ो मे छुपकर उल्लू मुर्दों की राह देखते होंगे.. काफ़ी दूर कुत्तों के रोने जैसे अजीब सी आवाज़े आ रही थी. उस आदमी को इस सारे माहौल मे डर लग रहा था. लेकिन उसे अंकित यहाँ किस लिए आया है यह जानना था. अंकित कब्रिस्तान मे घुस गया और वह आदमी बाहर ही कॉंपाउंड वॉल के पीछे छुपकर अंकित क्या कर रहा है यह देखने लगा. चाँद के रोशनी मे उस आदमी को अंकित का साया दिखा रहा था. अंकित ने एक जगह तय की और वह वहाँ खोदने लगा. एक गड्ढा खोदने के बाद उसने उसके थैल्ली से वह गुड्डा निकाला. उस गुड्डे को अंकित ने ऐसा दफ़न किया कि मानो वह गुड्डा ना होकर कोई शव हो. वह उपर से मट्टी डालने लगा और मट्टी डालते वक्त भी उसका कुछ मन्त्र तन्त्र जैसे बड़बड़ाना अब भी जारी था. उस गुड्डे के उपर मट्टी डालने के बाद जब वह गड्ढा मट्टी से भर गया तो अंकित उस मट्टी पर खड़ा होकर उसे अपने पैरों से दबाने लगा…
…. वह आदमी कथन कर रहा था और राज ध्यान देकर सुन रहा था, उस आदमी ने आगे कहा –
“दूसरे दिन जब मुझे पता चला कि चंदन का कत्ल हो चुका है तब मुझे विश्वास नही हुआ…”
काफ़ी देर तक कोई कुछ नही बोला. अब इन सारी बातों ने एक नया ही मोड़ लिया था.
राज सोच ने लगा.
“तुम्हे क्या लगता है अंकित खूनी होगा…?” राज ने अपने इनवेस्टिगेटर की भूमिका मे प्रवेश करते हुए पूछा.
“नही… मुझे लगता है कि वह उसका काला जादू इन सारे कत्ल करने के लिए इस्तेमाल करता होगा.. क्योंकि जिस दिन सुनील का कत्ल हुआ उसके पहले दिन रात को अंकित ने वैसा ही एक गुड्डा बनाकर उसे कब्रिस्तान मे दफ़न किया था…” उस आदमी ने कहा.
“तुम इन सारी चीज़ों मे विश्वास रखते हो..?” राज ने थोड़ा व्यंगात्मक ढंग से ही पूछा.
“नही.. में विश्वास नही रखता… लेकिन जो अपनी खुली आँखों से सामने दिख रहा हो उन चीज़ों पर विश्वास रखना ही पड़ता है…” उस आदमी ने कहा.
राज का पार्ट्नर जो इतनी देर से दूर से सब उनकी बातें सुन रहा था, चलते हुए उनके पास आकर बोला –
“मुझे पहले ही शक था कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त है…”
सारे कमरे मे एक सन्नाटा फैल गया.
“अब उसने और एक नया गुड्डा बनाया हुआ है…” उस आदमी ने कहा.
अंकित के मकान के खिड़की से अंदर का सबकुछ दिख रहा था. आज भी वह फाइयर्प्लेस के सामने बैठा हुआ था. उसने अपने हाथ से वह गुड्डा बगल मे ज़मीन पर रख दिया और झुककर आग के सामने फर्शपर अपना मस्तक रगड़ने लगा. यह सब करते हुए उसका कुछ बड़बड़ाना जारी ही था. थोड़ी देर से वह खड़ा हो गया और अजीब ढंग से ज़ोर से किसी पागल की तरह चीखा. इतना अचानक और ज़ोर से चीखा कि बाहर खिड़की से झाँक रहे राज , पवन और उनको साथ मे जो लेकर आया था वह आदमी, सब्लोग चौंक कर सहम से गये. उस चीख के बाद वातावरण मे एक अजीब भयानक सन्नाटा छा गया.
"मिस्टर. अशोक अब तुम्हारी बारी है..." अंकित वह नीचे रखा हुआ गुड्डा अपने हाथ मे लेते हुए बोला.
लेकिन इतने मे दरवाज़े के बेल बजी. अंकित ने पलटकर दरवाज़े की तरफ देखा. गुड्डो को फिर से नीचे ज़मीन पर रख दिया और उठकर दरवाज़ा खोलने के लिए सामने आ गया.
दरवाज़ा खोला, सामने राज और पवन था, वह तीसरा आदमी शायद वहाँ से पहले ही खिसक गया था.
"मिस्टर. अंकित हम आपको चंदन और सुनील के कत्ल के एक सस्पेक्ट के तौर पर गिरफ्तार करने आए है... आपको चुप रहने का पूरी तरह हक है.. और कुछ बोलने के पहले आप अपने वकील के साथ संपर्क कर सकते है.. और ख़याल रहे कि आप जो भी बोलेगे वह कोर्ट मे आपके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा..." राज ने दरवाज़ा खोलते ही बराबर एलान कर दिया.
अंकित का चेहरा एकदम भावशून्य था, वह बड़े इम्तिनान के साथ उनके सामने आ गया.
उसे अरेस्ट करने के पहले राज ने कुछ सवाल पूछने की ठान ली.
"यहाँ आपके साथ कौन-कौन रहता है...?"राज ने पहला सवाल पूछा.
"में अकेला ही रहता हूँ..." उसने जवाब दिया.
"लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार आपके साथ आपके पिताजी भी रहते थे..."
"हाँ रहते थे... लेकिन... अब वे इस दुनिया मे नही रहे..."
"ओह्ह... सॉरी.. यह कब हुआ...? मतलब वे कब गुजर गये..?"
"मीनू की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ दिन मे ही वे चल बसे..."
"अच्छा आप चंदन और सुनील को पहचानते थे क्या...?"
"हाँ उन हैवानो को में अच्छी तरह से पहचानता हूँ..."
चंदन और सुनील का नाम लेने के बाद राज ने एक बात गौर की कि उनके उपर का गुस्सा और द्वेष उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था. या फिर उसने वह छिपाने की कोशिश भी नही की थी..
अब राज ने सीधे असली मुद्दे पर उससे बात करने की ठान ली...
"आपने चंदन और सुनील का खून किया क्या...?"
"हाँ..." उसने ठंडे स्वर मे कहा.