“हवालात मैं चुद गई” – चुद गयी , झड़ गयी , लुट गयी ! !
“हवालात मैं चुद गई” – चुद गयी , झड़ गयी , लुट गयी ! !
हवालात मे चुदाई
उस दीन कुछ अच्छा नही लग रह था. सुबह से ही मन् में भारीपन लग रहा था. ऐसे ही अलसाई हूई अपने रुम में सोयी पडी थी. काम करने में जीं नहीं लग रह था. तभी ग्ली में शोर होने लगा. अपने पलंग से उठकर बरामदे की खिड़की से ग्ली में झाँकने लगी.
बाबु के माकन के सामने भीड़ एक्कठी हो रही थी. क्या हुआ होगा सोचकर अपनी आंखें उनके गेट पेर गडा दी. भीड़ में फुसफुसाहट हो रही थी. तभी खिड़की के सामने से एक आदमी गुजरा तो उससे पूछ लीया, “आरे भैया, क्या हो गया?”
आदमी ने चलते-चलते जवाब दीया, “किसी ने बाबु को चाक़ू मार दीया.”
यह सुनकर मैं डर्र गयी. दीन-दहाड़े ग्ली मे हत्या. उफ़! क्या हो गया है इस दुनीया को. बाबु से हमारे घरवालों की जमती नही थी. अब घरवाले कौन? एक मेरा मरद और दूसरी में. अभी तीन-चार दीन पहले ही मेरे मरद, का झगड़ा बाबु से कुछ लें- दें को लेकर हो गया था. लेकीन इससे क्या? आखीर ग्ली में किसी की हत्या हो तोः बुरा तोः लगता ही है.
मैं मन् ही मन् डर्र रही थी. सोच रही थी की श्याम जल्दी घर आजाये तो अच्छा है. लेकीन उन्हें तो शाम को ही आना था. दुसरे गांव गए हुये थे. ऐसा ही बोल कर सुबह जल्दी निकल गए थे.
थोड़ी देर बाद वापस खिड़की खोल कर बाबु के घर की और झाँका तोः देखा आदमी तोः ज्यादा नही थे बल्की ६-७ पुलिस वाले जरूर खडे थे. अब हत्या हूई है तोः पोलीस वाले तोः आएंगे ही. तभी देखा ३- ४ पुलिसवाले मेरे घर की तरफ आ रहे है. मेरा मन् और खराब होने लगा. पोलीस वाले मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे है? मैं झट से खिड़की बंद करके वापस अपने कमरे की तरफ बढने लगी.
दुसरे पल ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी. मैं झट से कमरे की जगह अपने घर के मैं दरवाजे की तरफ बढ गयी और गेट खोल दीया. पुलिस वाले धद्धादते हुये घर में घुस गए.
मैंने हडब्डाकर उनसे पूछा, “आरे ये क्या कर रहे हो?”
एक पोलीस वाला कड़कती आवाज में पूछा, “श्याम कीधर है?”
मैंने वापस पूछा, “क्या काम है मेरे मरद से?”
तभी दूसरा पोलीस वाला दहडा, “साली, हमसे पूछती है क्या काम है? कीधर छुपा कर रखा है अपने मरद को?”
मैं सहमकर बोली, “वो तोः घर पर नही है. दुसरे गांव गए हुये है. शाम को आएंगे?”
तभी उसने कठोरता से पूछा, “साली, घर में छुपा कर रखा है और बोलती है की नहीं है. बता कीधर छुपाया है.”
“साहेब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ. वो तोः सुबह से ही गए हुये है. लेकीन बात क्या है?”
तभी तीसरे पोलीस वाले ने कहा, “तेरा मरद शाम है ना?”
जवाब में मैंने अपना सीर हाँ में हिला दीया.
“साले ने बाबु का ख़ून कीया है.”
मेरे ऊपर मनो पहाड़ गीर गया. लेकीन सँभालते हुये बोली, “कैसे साहेब? वो तो सुबह से ही यहाँ नही है.”
“कैसे नही है. बहार कई लोगों ने उसे अभी थोड़ी देर पहले ही उसे भागते हुये देखा है. वो कोई झूठ नहीं बोल रहे हैं.”
मेरी तोः आवाज ही बंद हो गयी. तभी एक पोलीस वाला पूरा घर दूंधने के बाद बोला, “इधर तोः श्याम नही है. लगता है साला भाग गया.”
तोः दुसरे पोलीस वाले ने उससे कहा, “जा साहेब को बता कर आ.”
मैं चुप-चाप जमीन पेर बैठ गयी और रोने लगी. वीशवाश ही नही हो रहा था. जरूर कीसी ने अपना बदला निकलने के लीये झूठ-मूठ पोलीस वाले को कह दीया होगा. श्याम के साथ मेरी शादी को सिर्फ ६ महिने ही हुये थे. इन् ६ महीनो में हमने ख़ूब मज़ा कीया. ३-४ महीने तक तोः वो घर से बहार बहुत ही कम वक़्त के लीये बहार निकलता था. हम दोनो दीन-रात बिस्तेर पर, kitchen में, बाथरूम में और यहाँ तक की आंगने में मज़ा लूट ते रहते थे. वक़्त कब का निकल गया समझ में ही नहीं आया. लेकीन आज..
श्याम २५ साल का एक गबरू जवान था. कसरती बदन और थोडा सांवले रंग का लेकीन मजबूत मरद था. बिस्तर पर उसका कोई जवाब ही नही था. उसका हथियार भी उसके बदन जैसा मूसल और लम्बा-मोटा. मेरे बीते भर से बड़ा और मेरी कलाई से आधा. उसके साथ ब्याह होने के बाद में अपने पुरे जीवन को भूल चुकी थी.
हाँ. मैं शादी होने के पहले अपने दो-तीन दोस्तो से यारी कर बैठी थी. और उनके साथ हम्बिस्तर भी. लेकीन श्याम से शादी होने के बाद मैंने कभी भी उनको याद नहीं कीया. अब जो कुछ भी था तोः वोह श्याम ही था.
उस दीन कुछ अच्छा नही लग रह था. सुबह से ही मन् में भारीपन लग रहा था. ऐसे ही अलसाई हूई अपने रुम में सोयी पडी थी. काम करने में जीं नहीं लग रह था. तभी ग्ली में शोर होने लगा. अपने पलंग से उठकर बरामदे की खिड़की से ग्ली में झाँकने लगी.
बाबु के माकन के सामने भीड़ एक्कठी हो रही थी. क्या हुआ होगा सोचकर अपनी आंखें उनके गेट पेर गडा दी. भीड़ में फुसफुसाहट हो रही थी. तभी खिड़की के सामने से एक आदमी गुजरा तो उससे पूछ लीया, “आरे भैया, क्या हो गया?”
आदमी ने चलते-चलते जवाब दीया, “किसी ने बाबु को चाक़ू मार दीया.”
यह सुनकर मैं डर्र गयी. दीन-दहाड़े ग्ली मे हत्या. उफ़! क्या हो गया है इस दुनीया को. बाबु से हमारे घरवालों की जमती नही थी. अब घरवाले कौन? एक मेरा मरद और दूसरी में. अभी तीन-चार दीन पहले ही मेरे मरद, का झगड़ा बाबु से कुछ लें- दें को लेकर हो गया था. लेकीन इससे क्या? आखीर ग्ली में किसी की हत्या हो तोः बुरा तोः लगता ही है.
मैं मन् ही मन् डर्र रही थी. सोच रही थी की श्याम जल्दी घर आजाये तो अच्छा है. लेकीन उन्हें तो शाम को ही आना था. दुसरे गांव गए हुये थे. ऐसा ही बोल कर सुबह जल्दी निकल गए थे.
थोड़ी देर बाद वापस खिड़की खोल कर बाबु के घर की और झाँका तोः देखा आदमी तोः ज्यादा नही थे बल्की ६-७ पुलिस वाले जरूर खडे थे. अब हत्या हूई है तोः पोलीस वाले तोः आएंगे ही. तभी देखा ३- ४ पुलिसवाले मेरे घर की तरफ आ रहे है. मेरा मन् और खराब होने लगा. पोलीस वाले मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे है? मैं झट से खिड़की बंद करके वापस अपने कमरे की तरफ बढने लगी.
दुसरे पल ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी. मैं झट से कमरे की जगह अपने घर के मैं दरवाजे की तरफ बढ गयी और गेट खोल दीया. पुलिस वाले धद्धादते हुये घर में घुस गए.
मैंने हडब्डाकर उनसे पूछा, “आरे ये क्या कर रहे हो?”
एक पोलीस वाला कड़कती आवाज में पूछा, “श्याम कीधर है?”
मैंने वापस पूछा, “क्या काम है मेरे मरद से?”
तभी दूसरा पोलीस वाला दहडा, “साली, हमसे पूछती है क्या काम है? कीधर छुपा कर रखा है अपने मरद को?”
मैं सहमकर बोली, “वो तोः घर पर नही है. दुसरे गांव गए हुये है. शाम को आएंगे?”
तभी उसने कठोरता से पूछा, “साली, घर में छुपा कर रखा है और बोलती है की नहीं है. बता कीधर छुपाया है.”
“साहेब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ. वो तोः सुबह से ही गए हुये है. लेकीन बात क्या है?”
तभी तीसरे पोलीस वाले ने कहा, “तेरा मरद शाम है ना?”
जवाब में मैंने अपना सीर हाँ में हिला दीया.
“साले ने बाबु का ख़ून कीया है.”
मेरे ऊपर मनो पहाड़ गीर गया. लेकीन सँभालते हुये बोली, “कैसे साहेब? वो तो सुबह से ही यहाँ नही है.”
“कैसे नही है. बहार कई लोगों ने उसे अभी थोड़ी देर पहले ही उसे भागते हुये देखा है. वो कोई झूठ नहीं बोल रहे हैं.”
मेरी तोः आवाज ही बंद हो गयी. तभी एक पोलीस वाला पूरा घर दूंधने के बाद बोला, “इधर तोः श्याम नही है. लगता है साला भाग गया.”
तोः दुसरे पोलीस वाले ने उससे कहा, “जा साहेब को बता कर आ.”
मैं चुप-चाप जमीन पेर बैठ गयी और रोने लगी. वीशवाश ही नही हो रहा था. जरूर कीसी ने अपना बदला निकलने के लीये झूठ-मूठ पोलीस वाले को कह दीया होगा. श्याम के साथ मेरी शादी को सिर्फ ६ महिने ही हुये थे. इन् ६ महीनो में हमने ख़ूब मज़ा कीया. ३-४ महीने तक तोः वो घर से बहार बहुत ही कम वक़्त के लीये बहार निकलता था. हम दोनो दीन-रात बिस्तेर पर, kitchen में, बाथरूम में और यहाँ तक की आंगने में मज़ा लूट ते रहते थे. वक़्त कब का निकल गया समझ में ही नहीं आया. लेकीन आज..
श्याम २५ साल का एक गबरू जवान था. कसरती बदन और थोडा सांवले रंग का लेकीन मजबूत मरद था. बिस्तर पर उसका कोई जवाब ही नही था. उसका हथियार भी उसके बदन जैसा मूसल और लम्बा-मोटा. मेरे बीते भर से बड़ा और मेरी कलाई से आधा. उसके साथ ब्याह होने के बाद में अपने पुरे जीवन को भूल चुकी थी.
हाँ. मैं शादी होने के पहले अपने दो-तीन दोस्तो से यारी कर बैठी थी. और उनके साथ हम्बिस्तर भी. लेकीन श्याम से शादी होने के बाद मैंने कभी भी उनको याद नहीं कीया. अब जो कुछ भी था तोः वोह श्याम ही था.
Re: “हवालात मैं चुद गई” – चुद गयी , झड़ गयी , लुट गयी ! !
श्याम और मेरे पुराने यारों की नज़रों मे मैं गोरी चिठ्ठी हसीं गुदिया थी. मेरे लंबे-लंबे बाल, मेरे गोरे-गोरे गाल, मेरे मद्मुस्त होठ, मेरे अनार जैसे कड़क संतरे की साइज़ के मुम्मे, भरी हूई झंघे. ऐसा ही कहते थे वोह सुब. और मैं अपनी प्रसंसा सुनकर फूला नही समाती थी.
तभी थानेदार की कड़कती हूई आवाज़ ने मुझे जगा दीया, “कहां है उसकी बीबी?” मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आंखें मेरे जिस्म पर गीद्ध की आँखों जैसे चिपक गयी.
तभी मुझे एक पोलीस वाले ने पकड़ कर खड़ा कर दीया और बोला, “येही है उसकी बीबी.”
थानेदार मेरे जिस्म को तौलता हुवा बोला, “कहां है श्याम?”
मैंने सहमते हुये कहा, “मुझे नही मालूम. वोह तोः सुबह से बहार गए हुये है.”
“बता दे वर्ना मुझे और भी तरीके आते है.” थानेदार ने गरजती हूई आवाज़ में पूछा.
मैं चुप-चाप खडी रही. बहार भीड़ देख कर थानेदार ने और तोः कुछ नही बोला लेकीन मैं मेह्शूश कर रही थी उसकी नज़रों को अपने जिस्म में धंसते हुये. थानेदार अपने आदमियों को कुछ बताने लगा और मुझे घूरते हुये बहार चला गया.
शाम की ४-५ बज गयी. पोलीस party अपने थाने चली गयी. मैंने चेन की सांस ली. लेकीन रात को ८-८.३० बजे फीर एक पोलीस वाला आया. मुझसे श्याम के बारे में पूछने लगा. मैंने ना में जवाब दीया.
“ऐसे कैसे हो सकता है. तू सुबह बोल रही थी ना की वोह शाम को वापस आएगा. अब तोः रात हो चुकी है,” पोलीस वाले ने पूछा.
“उन्होने सुबह ऐसा ही कहा था,” मैंने जवाब दीया.
“लगता है तू ऐसे नही मानेगी. अब तेरे से हाथ-लात से बात करनी पडेगी,” उसने घुड्ते हुये कहा.
मेरी धुक-धुक बढने लगी. मुझे श्याम पर ग़ुस्सा आ रहा था. अब तक नही आया. ग्ली मैं एक ख़ून हो गया और बीबी घर में अकेली. लेकीन उसका कोई पता ही नही. तभी फीर सोचा. उससे क्या मालूम की हत्या हो गयी है. अगर मालूम होता तोः दोपहर में ही नही आजाता. क्या उसने ही हत्या…
“साली को थाने ले चल,” पोलीसवाला अपने साथी से कहा. “साहेब ने कहा है अगर श्याम नही मीलता तो उसकी बीबी को थाने लेकर आना.”
मैं तो यह सुनकर रोने लगी.
“चल. चल. ज्यादा नाटक नहीं कर,” एक पोलीस वाला मेरी कलाई पकड़े हुये बोला. और फीर जोर-जबरदस्ती से मुझे पोलीस-वन में बैठा दीया और थाने पहुंच गए हम लोग.
“क्या हुवा श्याम नही मीला?” थानेदार ने मुझे देखते हुये ही पूछा.
जवाब में ना में सीर हीला दीया पुलिसवाले ने.
“चल साली को लाक-उप में बंद कर. अपने आप ही इसका मरद आएगा इसको छुड़ाने,” थानेदार ने अपनी seat पर बैठे बैठे कहा.
मुझे लाक-उप में दाल दीया जोकी उसकी सात के सामने ही थी. पोलीस स्टेशन उस थानेदार के अलावा ५ हवालदार थे. कोई थाने में अंदर आ रहा था तोः कोई बहार जा रहा था. रात के ११ बजने में आ रही थी. इन् २ घंटों में थानेदार मुझे १०० बार घूर चूका था. मुझे अपनी आंखों से तौल रहा था. ऐसे मर्दों की आँखें मुझे पता है कैसी होती है. बाज़ार जाते हुये या मंदीर जाते हुये ऐसी ही नज़रों का सामना में कब से कर रही हूँ. लेकीन तब और आब में सिर्फ एक फरक था. तब मैं अपनी मर्जी की मालीक होती थी और अब्ब हवालात में बेबस कैदी की तरह थाने में.
तभी थानेदार ने अपने हवाल्दारों को बुलाया और २-२ की २ team बाना कर एक को मेरे घर के पास छुपने को कह दीया और दुसरे को बस्स स्टैंड जाने को कह दीया. साथ ही हिदयात देदी की सुबह तक निगरानी रखनी है. अब बचे एक हवालदार के कान में कुछ कहा और वोह हवालदार भी बहार चला गया.
थाने में मैं और वोह थानेदार दो ही बचे थे. हवालात में और कोई कैदी भी नही था. मुझे उसके इरादे अच्छे नही लग रहे थे. वोह अपनी कमीज उतार कर कोई filmi गाना गाते हुये अपनी seat पर बैठ गया और मुझे घूरने लगा. अब थानेदार मुझे लगातार घूर रहा था और उसके होंठों में एक कुटील मुस्कान आ रही थी और जा रही थी.
तभी लास्ट वाला हवालदार एक कागज का पैकेट थानेदार के हाथ में पकडा दीया और एक ग्लास और पानी की बोत्त्ले उसकी टेबल पर रख दीया. फीर हवालदार थानेदार का इशारा पाकर थाने से बहार चला गया. थानेदार ने कागज के पैकेट से एक बोत्त्ले बहार निकली.
“दारु!” मैं मन् में सोचकर कांप उठी. “दारु पीकर थानेदार अकेले हवालात में और मैं भी थाने में अकेली…”
थानेदार ने आधे गांठे में ४-५ पैग बाना कर दारु पी डाली और उठ खड़ा हुवा. उसकी चाल में कोई फरक नही था लेकीन आंखों में दारु का नशा और वासना दोनो झलक रहा था. उसने मैं गेट के पास जाकर गेट को बंद कीया और कड़ी लगा दी. अब मेरे हवालात की तरफ आ कर उसका ताला खोल कर मैन गेट पर लगा दीया और चाबी जेब मैं दाल ली. फीर मेरी तरफ बढने लगा. मेरी रूह कांप रही थी.
तभी थानेदार की कड़कती हूई आवाज़ ने मुझे जगा दीया, “कहां है उसकी बीबी?” मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आंखें मेरे जिस्म पर गीद्ध की आँखों जैसे चिपक गयी.
तभी मुझे एक पोलीस वाले ने पकड़ कर खड़ा कर दीया और बोला, “येही है उसकी बीबी.”
थानेदार मेरे जिस्म को तौलता हुवा बोला, “कहां है श्याम?”
मैंने सहमते हुये कहा, “मुझे नही मालूम. वोह तोः सुबह से बहार गए हुये है.”
“बता दे वर्ना मुझे और भी तरीके आते है.” थानेदार ने गरजती हूई आवाज़ में पूछा.
मैं चुप-चाप खडी रही. बहार भीड़ देख कर थानेदार ने और तोः कुछ नही बोला लेकीन मैं मेह्शूश कर रही थी उसकी नज़रों को अपने जिस्म में धंसते हुये. थानेदार अपने आदमियों को कुछ बताने लगा और मुझे घूरते हुये बहार चला गया.
शाम की ४-५ बज गयी. पोलीस party अपने थाने चली गयी. मैंने चेन की सांस ली. लेकीन रात को ८-८.३० बजे फीर एक पोलीस वाला आया. मुझसे श्याम के बारे में पूछने लगा. मैंने ना में जवाब दीया.
“ऐसे कैसे हो सकता है. तू सुबह बोल रही थी ना की वोह शाम को वापस आएगा. अब तोः रात हो चुकी है,” पोलीस वाले ने पूछा.
“उन्होने सुबह ऐसा ही कहा था,” मैंने जवाब दीया.
“लगता है तू ऐसे नही मानेगी. अब तेरे से हाथ-लात से बात करनी पडेगी,” उसने घुड्ते हुये कहा.
मेरी धुक-धुक बढने लगी. मुझे श्याम पर ग़ुस्सा आ रहा था. अब तक नही आया. ग्ली मैं एक ख़ून हो गया और बीबी घर में अकेली. लेकीन उसका कोई पता ही नही. तभी फीर सोचा. उससे क्या मालूम की हत्या हो गयी है. अगर मालूम होता तोः दोपहर में ही नही आजाता. क्या उसने ही हत्या…
“साली को थाने ले चल,” पोलीसवाला अपने साथी से कहा. “साहेब ने कहा है अगर श्याम नही मीलता तो उसकी बीबी को थाने लेकर आना.”
मैं तो यह सुनकर रोने लगी.
“चल. चल. ज्यादा नाटक नहीं कर,” एक पोलीस वाला मेरी कलाई पकड़े हुये बोला. और फीर जोर-जबरदस्ती से मुझे पोलीस-वन में बैठा दीया और थाने पहुंच गए हम लोग.
“क्या हुवा श्याम नही मीला?” थानेदार ने मुझे देखते हुये ही पूछा.
जवाब में ना में सीर हीला दीया पुलिसवाले ने.
“चल साली को लाक-उप में बंद कर. अपने आप ही इसका मरद आएगा इसको छुड़ाने,” थानेदार ने अपनी seat पर बैठे बैठे कहा.
मुझे लाक-उप में दाल दीया जोकी उसकी सात के सामने ही थी. पोलीस स्टेशन उस थानेदार के अलावा ५ हवालदार थे. कोई थाने में अंदर आ रहा था तोः कोई बहार जा रहा था. रात के ११ बजने में आ रही थी. इन् २ घंटों में थानेदार मुझे १०० बार घूर चूका था. मुझे अपनी आंखों से तौल रहा था. ऐसे मर्दों की आँखें मुझे पता है कैसी होती है. बाज़ार जाते हुये या मंदीर जाते हुये ऐसी ही नज़रों का सामना में कब से कर रही हूँ. लेकीन तब और आब में सिर्फ एक फरक था. तब मैं अपनी मर्जी की मालीक होती थी और अब्ब हवालात में बेबस कैदी की तरह थाने में.
तभी थानेदार ने अपने हवाल्दारों को बुलाया और २-२ की २ team बाना कर एक को मेरे घर के पास छुपने को कह दीया और दुसरे को बस्स स्टैंड जाने को कह दीया. साथ ही हिदयात देदी की सुबह तक निगरानी रखनी है. अब बचे एक हवालदार के कान में कुछ कहा और वोह हवालदार भी बहार चला गया.
थाने में मैं और वोह थानेदार दो ही बचे थे. हवालात में और कोई कैदी भी नही था. मुझे उसके इरादे अच्छे नही लग रहे थे. वोह अपनी कमीज उतार कर कोई filmi गाना गाते हुये अपनी seat पर बैठ गया और मुझे घूरने लगा. अब थानेदार मुझे लगातार घूर रहा था और उसके होंठों में एक कुटील मुस्कान आ रही थी और जा रही थी.
तभी लास्ट वाला हवालदार एक कागज का पैकेट थानेदार के हाथ में पकडा दीया और एक ग्लास और पानी की बोत्त्ले उसकी टेबल पर रख दीया. फीर हवालदार थानेदार का इशारा पाकर थाने से बहार चला गया. थानेदार ने कागज के पैकेट से एक बोत्त्ले बहार निकली.
“दारु!” मैं मन् में सोचकर कांप उठी. “दारु पीकर थानेदार अकेले हवालात में और मैं भी थाने में अकेली…”
थानेदार ने आधे गांठे में ४-५ पैग बाना कर दारु पी डाली और उठ खड़ा हुवा. उसकी चाल में कोई फरक नही था लेकीन आंखों में दारु का नशा और वासना दोनो झलक रहा था. उसने मैं गेट के पास जाकर गेट को बंद कीया और कड़ी लगा दी. अब मेरे हवालात की तरफ आ कर उसका ताला खोल कर मैन गेट पर लगा दीया और चाबी जेब मैं दाल ली. फीर मेरी तरफ बढने लगा. मेरी रूह कांप रही थी.
Re: “हवालात मैं चुद गई” – चुद गयी , झड़ गयी , लुट गयी ! !
“बोल कीधर है तेरा मरद.”
मैं चुप चाप रही.
“अबे साली, तेरा मरद है की नही?”
“……”
“लगता है तेरा मरद नही है. अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.”
“…….”
मेरे नजदीक आ कर मेरे हाथों को पकड़ लीया और झुमते हुये बोला, “कीसी का हाथ पकडा नही या हाथ छोड़ कर चला गया.”
मैंने अपने हाथ को चुडाते हुये कहा, “साहेब आपने पी ली है. अभी बात नही करो मुझसे.”
“वह… क्या idea दी है तूने. अभी बात में time वास्ते नही करने का… अभी काम करने का…”
“साहेब छोडो मुझे.”
“क्या बोली तुम. चोदो मुझे,” बड़ी बेशर्मी से हँसते हुये थानेदार बोला.
“ऐसी गंदी बात करते हुये तुम्हे शरम नही आती…” मैंने वीरोध कीया.
“अच्छा तुझे मालूम है की क्या गंदी है और क्या अच्छी. यानिके तुझे सुब मालूम लगता है. चोदो… चुदाई… सुब मालूम है तुझे,” बड़ी बेशर्मी से बोलता जा रहा था.
मैंने अपने कान बंद कर लीये और मदद के लीये चिल्लाने लगी. तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गलों पर पड़ा.
“साली. रांड. चील्लाती है. एक तो श्याम का पता नहीं बता रही है और पूछताछ में चिल्लाती है,” कहते हुये थानेदार मेरी साड़ी को खींचने लगा और बोला, “चिल्ला. जीतना चिल्लाना है चिल्ला. देखता हूँ मैन कौन आता है इधर.”
मैन बेबस चिल्लाना भूलकर अपनी साड़ी को उससे छुडाने मे लग गयी लेकीन उसने अपने दम पर मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दीया. अब मैन अपने पेतीकोअत और ब्लौस मे उसके सामने रोते हुये खडी थी. अपने हाथो को अपने सीने से लगा कर रखा था लेकीन थानेदार ने मेरे एक हाथ को पकड़कर उल्टा मोड़ दीया तोः दरद के मारे अपने दुसरे हाथ से उसको छुडाने लगी. इस्सका फायदा उठाते हुये उसने मेरे ब्लौसे के सामने के सारे हूक झटक कर तोड़ दीये. अब मेरा ब्लौसे एक-दो हूक के सहारे झूल रहा था.
अपने दुसरे हाथ से जब ब्लौस को बचने गयी तोः बेदरद थानेदार ने मेरे पहले वाले हाथ को और जोर से मोड़ दीया. मैन दर्द से कराह उठी और ब्लौस क छोड़ अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस्सी तरह करते हुये उसने मेरा ब्लौस और मेरी चोली दोनो को मेरे बदन से जुदा कर दीया. अब मैन अपने दोनो हाथों से अपने दोनो मुम्मो को छुपाते हुये इधर से उधर दौड़ने लगी. लेकीन थानेदार हँसता हुवा मेरे पीछे-पीछे भागता हुवा कीसी भी तरह से हाथ को छुदाता और मेरे मुम्मो को मसल देता. मैन चीख कर दया की बीख माँग कर अपने को बचाती और भागती. ऐसे में थानेदार को मज़ा आ रहा था और मैन रोती हूई इधर-उधर भाग रही थी.
थोड़ी देर खेल ऐसे ही चलता रहा. फीर थानेदार ने मुझे छोड़ मेरे जमीन पर पडे ब्लौस और चोली को उठा कर उन्हें सुन्घ्ता हुवा अपनी डेस्क पर गया और पैग बनाकर और दारु पीने लगा. फीर कुछ रूक कर मुझसे पूछा, “तू भी पीयेगी?”
“……”
“आरे पी ले. नशे में बड़ा मज़ा आता है चुदवाने में.”
मैन जोर से रो पडी. मेरे आंशु थमने के नाम ही नही ले रहे थे. मैंने गिद्गीदते हुये कहा, “मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा. क्यो मेरी इज़्ज़त के पीछे पडे हो?”
“तूने नही बिगडा. तेरे नशीली हुस्न ने बिगाड़ा है मेरा,” कहते हुये अपनी पैंट की चेन पर हाथ रखते हुये बोला, “देख कैसे फाड़- फाडा रहा है लंडवा मेरा. इसका बिगडा है तेरी जवानी को देख कर. अब इसको ठण्डा कर….”
उसका लंड पैंट के ऊपर से ही ताना हुवा दीख रहा था. मानो पैंट को फाड़ कर बहार आ जाएगा. अपनी जवानी को अब लूटने के करीब देख कर मेरा धीरज जवाब देर रहा था. मैन अपने को बचने के लीये जोर से चिल्लाई, “कोई है…. बचाओ मुझे…”
थानेदार दारु की बोत्त्ले पकड़े हुये मेरे पास आया और फीर जोरदार का थप्पड़ मारा. इस बार उसने दारु की बोत्त्ले उठा कर जोर से बोला, “चुप होती की साली या मारू इस बोत्ल को तेरे सीर पर.”
मैन एक दम से चुप्प्प्प्प्प्प.
फीर उसने मेरे सीर को पकड़ कर बोत्त्ले मेरे मुहं में लगा दी. मैन अपना मुहं हीला-हीला कर बोत्त्ले से अपने मुहं को हटाने की कोशीश करने लगी लेकीन उसने जबरदस्ती करके डेड-दो पैग मेरे अंदर उधेल ही दीया. छाती जलने लगी. उबकाई आने लगी. सीर चकराने लगा. पेट गरम हो उठा. पहली बार दारु पेट में गयी थी. चिल्ला रही थी लेकीन थानेदार हंस रहा था.
बोत्ल का जो कुछ भी बचा-खुचा था वोह थानेदार ने पी लीया और बोत्ल को अपनी डेस्क के नीचे लुढ़का दीया. फीर सीधे मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे मुम्मे को मसलने लगा. दोनो हाथो में मेरे दोनो मुम्मे. आटे की तरह गुन्थ्ने लगा. फोकट का माल जो मील रहा था. दारु अंदर जाने के बाद ऐसे हमले के लीये मैन तयार नही थी. और अपने आप को बचा नही पा रही थी. उसने एक मुम्मे को अपने हाथ में पकड़ दुसरे मुम्मे को अपने होंठों के बीच ले चूसना शुरू कर दीया. मेरे संतरे उसके लीये चूसने वाले संतरे बन गए.
मैं चुप चाप रही.
“अबे साली, तेरा मरद है की नही?”
“……”
“लगता है तेरा मरद नही है. अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.”
“…….”
मेरे नजदीक आ कर मेरे हाथों को पकड़ लीया और झुमते हुये बोला, “कीसी का हाथ पकडा नही या हाथ छोड़ कर चला गया.”
मैंने अपने हाथ को चुडाते हुये कहा, “साहेब आपने पी ली है. अभी बात नही करो मुझसे.”
“वह… क्या idea दी है तूने. अभी बात में time वास्ते नही करने का… अभी काम करने का…”
“साहेब छोडो मुझे.”
“क्या बोली तुम. चोदो मुझे,” बड़ी बेशर्मी से हँसते हुये थानेदार बोला.
“ऐसी गंदी बात करते हुये तुम्हे शरम नही आती…” मैंने वीरोध कीया.
“अच्छा तुझे मालूम है की क्या गंदी है और क्या अच्छी. यानिके तुझे सुब मालूम लगता है. चोदो… चुदाई… सुब मालूम है तुझे,” बड़ी बेशर्मी से बोलता जा रहा था.
मैंने अपने कान बंद कर लीये और मदद के लीये चिल्लाने लगी. तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गलों पर पड़ा.
“साली. रांड. चील्लाती है. एक तो श्याम का पता नहीं बता रही है और पूछताछ में चिल्लाती है,” कहते हुये थानेदार मेरी साड़ी को खींचने लगा और बोला, “चिल्ला. जीतना चिल्लाना है चिल्ला. देखता हूँ मैन कौन आता है इधर.”
मैन बेबस चिल्लाना भूलकर अपनी साड़ी को उससे छुडाने मे लग गयी लेकीन उसने अपने दम पर मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दीया. अब मैन अपने पेतीकोअत और ब्लौस मे उसके सामने रोते हुये खडी थी. अपने हाथो को अपने सीने से लगा कर रखा था लेकीन थानेदार ने मेरे एक हाथ को पकड़कर उल्टा मोड़ दीया तोः दरद के मारे अपने दुसरे हाथ से उसको छुडाने लगी. इस्सका फायदा उठाते हुये उसने मेरे ब्लौसे के सामने के सारे हूक झटक कर तोड़ दीये. अब मेरा ब्लौसे एक-दो हूक के सहारे झूल रहा था.
अपने दुसरे हाथ से जब ब्लौस को बचने गयी तोः बेदरद थानेदार ने मेरे पहले वाले हाथ को और जोर से मोड़ दीया. मैन दर्द से कराह उठी और ब्लौस क छोड़ अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस्सी तरह करते हुये उसने मेरा ब्लौस और मेरी चोली दोनो को मेरे बदन से जुदा कर दीया. अब मैन अपने दोनो हाथों से अपने दोनो मुम्मो को छुपाते हुये इधर से उधर दौड़ने लगी. लेकीन थानेदार हँसता हुवा मेरे पीछे-पीछे भागता हुवा कीसी भी तरह से हाथ को छुदाता और मेरे मुम्मो को मसल देता. मैन चीख कर दया की बीख माँग कर अपने को बचाती और भागती. ऐसे में थानेदार को मज़ा आ रहा था और मैन रोती हूई इधर-उधर भाग रही थी.
थोड़ी देर खेल ऐसे ही चलता रहा. फीर थानेदार ने मुझे छोड़ मेरे जमीन पर पडे ब्लौस और चोली को उठा कर उन्हें सुन्घ्ता हुवा अपनी डेस्क पर गया और पैग बनाकर और दारु पीने लगा. फीर कुछ रूक कर मुझसे पूछा, “तू भी पीयेगी?”
“……”
“आरे पी ले. नशे में बड़ा मज़ा आता है चुदवाने में.”
मैन जोर से रो पडी. मेरे आंशु थमने के नाम ही नही ले रहे थे. मैंने गिद्गीदते हुये कहा, “मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा. क्यो मेरी इज़्ज़त के पीछे पडे हो?”
“तूने नही बिगडा. तेरे नशीली हुस्न ने बिगाड़ा है मेरा,” कहते हुये अपनी पैंट की चेन पर हाथ रखते हुये बोला, “देख कैसे फाड़- फाडा रहा है लंडवा मेरा. इसका बिगडा है तेरी जवानी को देख कर. अब इसको ठण्डा कर….”
उसका लंड पैंट के ऊपर से ही ताना हुवा दीख रहा था. मानो पैंट को फाड़ कर बहार आ जाएगा. अपनी जवानी को अब लूटने के करीब देख कर मेरा धीरज जवाब देर रहा था. मैन अपने को बचने के लीये जोर से चिल्लाई, “कोई है…. बचाओ मुझे…”
थानेदार दारु की बोत्त्ले पकड़े हुये मेरे पास आया और फीर जोरदार का थप्पड़ मारा. इस बार उसने दारु की बोत्त्ले उठा कर जोर से बोला, “चुप होती की साली या मारू इस बोत्ल को तेरे सीर पर.”
मैन एक दम से चुप्प्प्प्प्प्प.
फीर उसने मेरे सीर को पकड़ कर बोत्त्ले मेरे मुहं में लगा दी. मैन अपना मुहं हीला-हीला कर बोत्त्ले से अपने मुहं को हटाने की कोशीश करने लगी लेकीन उसने जबरदस्ती करके डेड-दो पैग मेरे अंदर उधेल ही दीया. छाती जलने लगी. उबकाई आने लगी. सीर चकराने लगा. पेट गरम हो उठा. पहली बार दारु पेट में गयी थी. चिल्ला रही थी लेकीन थानेदार हंस रहा था.
बोत्ल का जो कुछ भी बचा-खुचा था वोह थानेदार ने पी लीया और बोत्ल को अपनी डेस्क के नीचे लुढ़का दीया. फीर सीधे मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे मुम्मे को मसलने लगा. दोनो हाथो में मेरे दोनो मुम्मे. आटे की तरह गुन्थ्ने लगा. फोकट का माल जो मील रहा था. दारु अंदर जाने के बाद ऐसे हमले के लीये मैन तयार नही थी. और अपने आप को बचा नही पा रही थी. उसने एक मुम्मे को अपने हाथ में पकड़ दुसरे मुम्मे को अपने होंठों के बीच ले चूसना शुरू कर दीया. मेरे संतरे उसके लीये चूसने वाले संतरे बन गए.