होली में फट गई चोली.....................

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Fuck_Me
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:23

जल्दी से मैंने सलवार चढाई, कुरता सीधा किया और बाहर निकली. दर्द से चला भी नहीं जा रहा था. किसी तरह सासु जी के बगल में पलंग पे बैठ के बात की. मेरी छोटी ननद ने छेड़ा, “क्यों भाभी, बहुत दर्द हो रहा है.?”
मैंने उसे उस वक्त खा जाने वाली नज़रों से देखा. सासु बोली, “बहु, लेट जाओ…” लेटते ही जैसे मेरे चूतडो में करंट दौड़ गया हो. एक भयंकर दर्दभरी टीस उठी. उन्होंने समझाया, “करवट हो के लेट जाओ, मेरी ओर मुँह कर के…” और मेरी जेठानी से बोली, “तेरा देवर बहुत बदमाश है, मैं फूल-सी बहु इसीलिए थोड़ी ले आई थी.”
“अरी माँ, इसमें भैया का क्या दोष.? मेरी प्यारी भाभी है ही इत्ती प्यारी और फिर ये भी तो मटका-मटका कर……..” उनकी बात काट के मेरी ननद बोली.
“लेकिन इस दर्द का एक ही इलाज है, थोड़ा और दर्द….. कुछ देर के बाद आदत पड़ जाती है.” मेरा सर प्यार से सहलाते हुए मेरी सासु जी धीरे से मेरे कान में बोली.
“लेकिन भाभी भैया को क्यों दोष दे? आपने ही तो उनसे कहा था मारने के लिये…… खुजली तो आपको ही हो रही थी.” सब लोग मुस्कुराने लगे और मैं भी अपनी गाण्ड में हो रही टीस के बावजूद मुस्कुरा उठी.
सुहागरात के दिन से ही मुझे पता चल गया था की यहाँ सब कुछ काफी खुला हुआ है. तब तक वो आके मेरे बगल में रजाई में घुस गए. सलवार तो मैंने ऐसे ही चढा ली थी. इसलिए आसानी से उसे उन्होंने मेरे घुटने तक सरका दी और मेरे चूतडो को सहलाने लगे.
मेरी जेठानी उनसे मुस्कुराकर छेड़ते हुए बोली, “देवर जी, आप मेरी देवरानी को बहोत तंग करते है और तुम्हारी सजा ये है की आज रात तक अब तुम्हारे पास ये दुबारा नहीं जायेगी.”
मेरी सासु जी ने उनका साथ दिया. जैसे उनके जवाब में उन्होंने मेरे गाण्ड के बीच में छेदती उँगली को पूरी ताकत से एक ही झटके में मेरी गाण्ड में पेल दिया. गाण्ड के अंदर उनका वीर्य लोशन की तरह काम कर रहा था. फिर भी मेरी चीख निकल गई. मुस्कराहट दबाती हुई सासु जी किसी काम का बहाना बना बाहर निकल गई. लेकिन मेरी ननद कहाँ चुप रहने वाली थी.
वो बोली, “भाभी, क्या हुआ.? किसी चींटे ने काट लिया क्या.?”
“अरे नहीं लगता है, चीटा अंदर घुस गया है.” छोटी वाली बोली.
“अरे मीठी चीज होगी तो चीटा लगेगा ही. भाभी आप ही ठीक से ढँक कर नहीं रखती हो क्या.?” बड़ी वाली ने फिर छेड़ा.
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Fuck_Me
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:24

तब तक उन्होंने रजाई के अंदर मेरा कुरता भी पूरी तरह से ऊपर उठा के मेरी चूची दबानी शुरू कर दी थी और उनकी उँगली मेरी गाण्ड में गोल-गोल घूम रही थी.
“अरे चलो बेचारी को आराम करने दो, तुम लोगों को चींटे से कटवाउंगी तो पता चलेगा.” ये कह के मेरी जेठानी दोनों ननदों को हांक के बाहर ले गई. लेकिन वो भी नहीं थी. ननदों को बाहर करके वो आई और सरसों के तेल की शीशी रखती बोली, “ये लगाओ, Anti-Septic भी है.”
तब तक उनका हथियार खुल के मेरी गाण्ड के बीच धक्का मार रहा था. निकल कर बाहर से उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.
फिर क्या था.? उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा दिया और पेट के नीचे दो तकिये लगा के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए. सरसों का तेल अपने लंड पे लगा के सीधे शीशी से ही उन्होंने मेरी गाण्ड के अंदर डाल दिया.
वो एक बार झड़ ही चुके थे इसलिए आप सोच ही सकते है इस बार पूरा एक घंटा गाण्ड मारने के बाद ही वो झडे और जब मेरी जेठानी शाम की चाय ले आई तो भी उनका मोटा लंड मेरी गाण्ड में ही घुसा था.
उस रात फिर उन्होंने दो बार मेरी गाण्ड मारी और उसके बाद से हर हफ्ते दो-तीन बार मेरे पिछवाड़े का बाजा तो बज ही जाता है.

मेरी बड़ी ननद रानू मुझे Flash-back से वापस लाते हुए बोली, “क्या भाभी, क्या सोच रही है अपने भाई के बारे में..???”
“अरे नहीं तुम्हारे भाई के बारे में…” तब तक मुझे लगा कि मैं क्या बोल गई.? और मैं चुप हो गई.
“अरे भाई नहीं अब मेरे भाईयों के बारे में सोचिये, फागुन लग गया है और अब आपके सारे देवर आपके पीछे पड़े है. कोई नहीं छोड़ने वाला आपको और ननदोई है सो अलग..” वो बोली.
“अरे तेरे भाई को देख लिया है तो देवर और ननदोई को भी देख लूंगी……” गाल पे चिकौटी काटती मैं बोली.

होली के पहले वाली शाम को वो आया……..
पतला, गोरा, छरहरा किशोर. अभी रेखा आई नहीं थी. सबसे पहले मेरी छोटी ननद मिली और उसे देखते ही वो चालू हो गई, ‘चिकना’
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:24

वो भी बोला, “चिकनी…” और उसके उभरते उभारों को देख के बोला, “बड़ी हो गई है.” मुझे लग गया कि जो ‘होने’ वाला है वो ‘होगा’. दोनों में छेड़-छाड़ चालू हो गई.
वो उसे ले के जहाँ उसे रुकना था, उस कमरे में ले गई. मेरे bed room से एकदम सटा, Ply का Partition कर के एक कमरा था उसी में उसके रुकने का इंतज़ाम किया गया था. उसका bed भी, जिस Side हम लोगों का bed लगा था, उसी से सटा था.
मैंने अपनी ननद से कहा, “अरे कुछ पानी-वानी भी पिलाओगी बेचारे को या छेड़ती ही रहोगी..???”
वो हँस के बोली, “भाभी अब इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.” और गिलास दिखाते हुए कहा, “देखिये इस साले के लिये खास पानी है.”
जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हँस के गिलास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके ऊपर उड़ेल दिया. बेचारे की सफ़ेद शर्ट पर…. लेकिन वो भी छोड़ने वाला नहीं था. उसने उसे पकड़ के अपने कपड़े पे लगा रंग उसकी frock पे रगड़ने लगा और बोला, “अभी जब मैं डालूँगा ना अपनी पिचकारी से रंग, तो चिल्लाओगी”
वो छूटते हुए बोली, “बिल्कुल नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी में कुछ रंग है भी कि सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो..???”
वो बोला, “सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एकदम गाढ़ा सफ़ेद”
उन दोनों को वही छोड़ के मैं गई रसोईघर में जहाँ होली के लिये गुझिया बन रही थी और मेरी सास, बड़ी ननद और जेठानी थी. गुझिया बनाने के साथ-साथ आज खूब खुल के मजाक, गालियाँ चल रही थी. बाहर से भी कबीर गान, गालियों कि आवाज़ें, फागुनी बयार में घुल-घुल के आ रही थी.
ठण्डाई बनाने के लिये भांग रखी थी और कुछ बर्फी में डालने लिये.
मैंने कहा, “कुछ गुझिया में भी डाल के बना देते है, लोगों को पता नही चलेगा.?!!! और फिर खूब मज़ा आएगा.”
मेरी ननद बोली, “हाँ, और फिर हम लोग वो आप को खिला के नंगा नचायेंगे…..”
मैं बोली, “मैं इतनी भी बेवकुफ नहीं हूँ, भांग वाली और बिना भांग वाली गुझिया अलग-अलग डब्बे में रखेंगे.”
हम लोगों ने तीन डिब्बों में, एक में Double Dose वाली, एक में Normal भांग की और तीसरे में बिना भांग वाली रखी. फिर मैं सब लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने चल दी.
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