होली में फट गई चोली.....................

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Fuck_Me
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:25

मेरी सिसकियाँ भी बगल वाले कमरे में सुनाई पड़ रही होंगी, इसका मुझे पूरा अंदाजा था. लेकिन उस समय तो बस यही मन कर रहा था कि ‘वो’ चोद-चोद कर के बस झाड़ दे मेरी चूत. जैसे ही मैं झड़ने के कगार पर पहुँची, पता नही उन्हें कैसे पता चल गया और उन्होंने लंड निकाल लिया.
मैं चिल्लाती रही, “राजा बस एक बार मुझे झाड़ दो, बस एक मिनट के लिये….”
लेकिन आज उनके सर पर दूसरा ही भुत सवार हो गया. उन्होंने मुझे उल्टा कर के कुतिया जैसा बना दिया और बोले, “चल साली पहले गाण्ड मरा…”
एक धक्के में ही आधा लंड अंदर, “ओह्ह…ओह..फटी…फट गई..मेरी गाण्ड.” मैं चीखी कस के.
पर उन्होंने मेरे मस्त चूतड़ों पे दो हाथ कस के जमाए और बोले, “यार, क्या मस्त गाण्ड है तेरी….” साथ-साथ पूछा, “होली में चल तो रहा हूँ ससुरी पर ये बोल कि सालियां चुदवाएगी कि नहीं..???”
मैं चूतड़ों को मटकाते हुए बोली, “अरे सालियां है तेरी, ना माने तो जबर्दस्ती चोद देना.”
खुश होके जब उन्होंने अगला धक्का दिया तो पूरा लंड गाण्ड के अंदर. ‘वो’ मजे से मेरी Clit सहलाते हुए मेरी गाण्ड मारने लगे. अब मुझे भी मस्ती चढ़ने लगी. मैं सिसकियां भरती बोलने लगी, “हाय मुझे उंगली से झाड़ दो….ओह्ह्ह…ओह्ह…मज़ा आ रहा है …ओह्ह्ह…”
उन्होंने कस के Clit को Pinch करते हुए पूछा, “हे पर बोल पहले तेरी बहनों की गाण्ड भी मारूंगा, मंजूर..???”
“हां…हां…ओओह्ह्ह…ओ…हा…अआ…जो चाहो…. बोले तो….. तेरी सालियाँ है जो चाहे करो….जैसे चाहे करो…”
पर अबकी फिर जैसे मैं कगार पे पँहुची उन्होंने हाथ हटा लिया. इसी तरह सारी रात 7-8 बार मुझे किनारे पँहुचा के वो रोक देते, मेरी देह में कम्पन्न चालू हो जाता लेकिन फिर वो कच-कचा के काट लेते.
झडे वो जरूर लेकिन वो भी सिर्फ दो बार. पहली बार मेरी गाण्ड में जब लंड (Penis) ने झड़ना शुरू किया तो उसे निकाल के सीधे मेरी चूची, चेहरे और बालों पे.
बोले, “अपनी पिचकारी से होली खेल रहा हूँ.”
और दूसरी बार एकदम सुबह मेरी गाण्ड में. जब मेरी ननद दरवाजा खटखटा रही थी. उस समय तक रात भर के बाद उनका लंड (penis) पत्थर की तरह सख्त हो चुका था. झुका के कुतिया की तरह करके पहले तो उन्होंने अपना लंड (penis) मेरी गाण्ड में खूब अच्छी तरह फैला के, कस के पेल दिया. फिर जब वो जड़ तक, अंदर तक घुस गया तो मेरे दोनों पैर सिकोड़ के अच्छी तरह चिपका के, कचा-कच, कचा-कच पेलना शुरू कर दिया.
पहले तो मेरे दोनों पैर फैले हुए थे, उसके बीच में उनका पैर, और अब उन्होंने जबरन कस के अपने पैरों के बीच में मेरे पैर सिकोड़ रखे थे. मेरी कसी गाण्ड और सकरी हो गई थी. मुक्के की तरह मोटा उनका लंड (penis) गाण्ड में कसमसा रहा था.
जब मेरी ननद ने दरवाजा खटखटाया, वो एकदम झड़ने के कगार पे थे और मैं भी. उनकी तीन उंगलियां मेरी बुर में और अंगूठा Clit पे रगड़ रहा था.
लेकिन खट-खट की आवाज के साथ उन्होंने मेरी बुर के रस में सनी अपनी उंगलियां निकाल के कस के मेरे मुँह में ठूस दी. दूसरे हाथ से मेरी कमर उठा के सीधे मेरी गाण्ड में झड़ने लगे.
उधर ननद बार-बार दरवाजा खटखटा रही थी और इधर ‘ये’ मेरी गाण्ड में झड़ते जा रहे थे. मेरी गीली प्यासी चूत भी बार-बार फुदक रही थी. जब उन्होंने गाण्ड से लंड निकला तो गाढ़े थक्केदार वीर्य की धार, मेरे चूतडों से होते हुए मेरे जांघ पर……
पर इसकी परवाह किये बिना मैंने जल्दी से सिर्फ चोली पहनी और साड़ी लपेटकर दरवाजा खोल दिया.
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:25

बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें होली की तैयारी के साथ.
“अरे भाभी, ये आप सुबह-सुबह क्या कर….. मेरा मतलब करवा रही थी.? देखिये आपकी सास तैयार है” बड़ी ननद बोली.
(मुझे कल ही बता दिया था कि नई बहु की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इसमें शराफ़त की कोई जगह नहीं होती, दोनों खुल के खेलते है.).
जेठानी ने मुझे रंग पकड़ाया. झुक के मैंने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी तो जेठानी जी बोली, “अरे आज पैरों में नहीं, पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है.”
और यही नहीं उन्होंने सासु जी का साड़ी साया (Peticot) भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चुकती.? मुझे मालूम था की सासु जी को गुद-गुदी लगती है. मैंने हल्के से गुद-गुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फ़ैल गए. फिर क्या था.? मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे. इस उम्र में भी (और उम्र भी क्या.? 40 से कम की ही रही होगी.), उनकी जांघें थोड़ी स्थूल तो थी लेकिन एकदम कड़ी और चिकनी बिलकुल केले के तने जैसी. अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में. मैं एक पल सहमी, लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढ़ाया, “अरे जरा अपने ससुर जी की कर्मभूमि और पति की जन्म-भूमि का तो स्पर्श कर लो.”
उंगलियां तब तक घुंघराली रेशमी जाटों को छू चुकी थी. (ससुराल में कोई भी Panty नहीं पहनता था, यहाँ तक कि मैंने भी पहनना छोड़ दिया.). मुझे लगा की कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और खुद बोली, “अरे स्पर्श क्या, दर्शन कर लो बहु.”
और पता नहीं उन्होंने कैसे खिंचा कि मेरा सर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई. जैसे वो अभी-अभी (Bathroom) कर के आयी हो और उन्होंने जब तक मैं सर निकलने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड़ के फिर अपनी भारी-भारी जांघों से कस के दबोच लिया. उनकी पकड़ उनके लड़के की पकड़ से कम नही थी. मेरे नथुनों में एक तेज महक भर गई और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थी.
हल्के से झुक के वो बोली, “दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोड़ा…”
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Re: होली में फट गई चोली.....................

Unread post by Fuck_Me » 17 Sep 2015 11:25

जब मैं किसी तरह वहाँ से अपना सर निकल पाई तो वो तीखी गंध अब एकदम मस्त वाली सी तेज, मेरा सर घूम-सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होंने तडपाया था, बिना एक बार भी झड़ने दिये और ऊपर से ये.!!! मेरा सर बाहर निकलते ही मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का गिलास लगा दिया लबालब भरा, कुछ पीला-सा और होंठ लगते ही एक तेज भभका सा मेरे नाक में भर गया.
“अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का…. होली की सुबह का पहला प्रसाद…” ननद ने उसे धकेलते हुए कहा. सास ने भी उसे पकड़ रखा था. मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गई. ननद मुझे चिढ़ा रही थी कि भाभी कल तो खारा शरबत पीना पड़ेगा, नमकीन तो आप है ही, वो पी के आप और नमकीन हो जायेंगी. सास ने चढ़ाया था, “अरे तो पी लेगी मेरी बहु…तेरे भाई की हर चीज़ सहती है तो ये तो होली की रस्म है….”
जेठानी बोली, “ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नहीं छोड़ेगी.”
मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था.
मैं बोली, “मैंने सुना है की गाँव में गोबर से होली खेलते है…”
बड़ी ननद बोली, “अरे भाभी गोबर तो कुछ भी नहीं…. हमारे गाँव में तो….”
सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोली, “अरे शादी में तुमने पञ्च गव्य तो पिया होगा. उसमे गोबर के साथ गो-मूत्र भी होता है.”
मैं बोली, “अरे गो-मूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओ में पड़ता है….” उसमे मेरी बात काट के बड़ी ननद बोली कि “अरे गो माता है तो सासु जी भी तो माता है और फिर इंसान तो जानवरों से ऊपर ही तो……फिर उसका भी चखने में……”
मेरे ख्यालो में खो जाने से ये हुआ कि मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शरबत’ मेरे ओंठों से नीचे…… सासु जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे-धीरे कर के मैं पूरा डकार गई. मैंने बहुत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड़ बड़ी तगड़ी थी. मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही महक भर गई जो जब मेरा सर उनकी जांघों के बीच में था.
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