कायाकल्प - Hindi sex novel
Re: कायाकल्प - Hindi sex novel
“ओह गॉड! आई वांट यू सो मच!” कहते हुए मैं संध्या के ऊपर झुक गया और अपने होंठो को उसकी गर्दन से लगा कर मैंने संध्या को चूमना शुरू किया – एक पल को वह हलके से चौंक गयी, लेकिन फिर मेरे प्रत्येक चुम्बन के साथ उठने वाले कामुक आनंद का मज़ा लेने लगी। मैंने अपनी जीभ को संध्या के मुख में डालने का प्रयास किया तो संध्या ने भी अपना मुख खोल कर पूरा सहयोग दिया। हमारी जिह्वाओं ने एक अद्भुत प्रकार का नृत्य आरम्भ कर दिया, जिसका अंत (जैसी मेरी उम्मीद थी) हमारे शरीर करते। संध्या ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल कर मुझे अपनी तरफ समेट लिया और मैंने उसको कमर से थाम रखा था। भाव प्रवणता से चल रहे हमारे चुम्बन ने हम दोनों में ही यौनेच्छा की अग्नि पुनः जला दी।
उसकी गर्दन को चूमते हुए मैं नीचे की तरफ आने लगा और जल्दी ही उसके कोमल स्तनों को चूमने लगा। मुझे उनको देख कर ऐसा लगा की वो मेरे ही प्रेम और दुलार का इंतज़ार कर रहे थे। यहाँ पर मैंने काफी समय लगाया – उसके निप्पलों को अपने मुंह में भर कर मैंने उनको अपनी जीभ से सावधानीपूर्वक खूब मन भर कर चाटा, और साथ ही साथ दोनों स्तनों के बीच के सीने को चूमा। मेरी आवभगत का प्रभाव उसके निप्पलो ने तुरंत ही खड़े होकर प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। कुछ और देर उसके स्तनों को दुलार करने के बाद, मैंने अनिच्छा से और नीचे बढ़ना आरम्भ कर दिया। उसके निप्पल्स को चूमना और चूसना सबसे रोमांचक अनुभव था। मेरा अगला निशाना उसका पेट था, जिसको चूमते हुए मैं अपने चेहरे को उस पर रगड़ता भी रहा।
खैर, जैसा विधि का विधान है, मैं कुछ ही देर में उसके पैरों के बीच में पहुँच गया। मेरे चेहरे पर, मैं उसकी योनि की आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग ‘सामन’ मछली के रंग के जैसा था। संध्या की योनि के दोनों होंठ, उसके जीवन के पहले रति-सम्भोग के कारण सूजे हुए थे। मैंने उन्ही पर अपनी जीभ का स्नेह-लेप लगान शुरू कर दिया, और बहुत ही धीरे-धीरे अन्दर की तरफ आता गया। मुझे संध्या के मन का प्रावरोध कम होता हुआ सा लगा – उसने मेरे चुम्बन पर अपने नितम्बों को हिलाना चालू कर दिया था – और मैं यह शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ की उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ देर ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के बाद संध्या के कोमल और कामुक कूजन का स्वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसकी योनि से काम-रस भी रिसने लगा। इसको देख कर मुझे शक हुआ की संभवतः उसका रस मेरे वीर्य से मिला हुआ था। लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं थी – वस्तुतः, यह देख कर मेरा रोमांच और बढ़ गया। मैंने उसकी जांघें थोड़ी और खोल दी, जिससे मुझे वहां पर लपलपा कर चाटने में आसानी रहे।
मेरी जीभ ने जैसे ही उसकी योनि के अन्दर का जायजा लिया उसकी हलकी सी चीख निकल गयी, “ऊई माँ!”
संध्या के मज़े को देख कर मैंने अपने काम की गति को और बढ़ा दिया – अब मैं उसकी पूरी योनि को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा, और अपने खाली हाथों से उसके स्तनों और निप्पलों को दबाने कुचलने लगा। जब उसके निप्पल दुबारा खड़े हो गए, तब मैंने अपने हाथो को वहां से हटा कर संध्या के नितम्ब को थाम लिया। फिर धीरे धीरे, मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों की मालिश शुरू कर दी। मेरा मुंह और जीभ पहले से ही उसकी योनि पर हमला कर रहे थे। संध्या की तेज़ होती हुई साँसे अब मुझे सुनाई भी देने लग गयी थी।
संध्या धीरे से फुसफुसाई, “धीरे .. धीरे …” लेकिन मेरी गति पर कोई अंकुश नहीं था … “आअह्ह्ह्ह! प्लीज! बस … बस … अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती ….”
प्रत्यक्ष ही है, की यह सब संध्या के लिए काफी हो चुका था। वह कल रात की गतिविधियों के फलस्वरूप तकलीफ में थी। फिर भी मैंने अभी बंद करना ठीक नहीं समझा – लड़की अगर यहाँ तक पहुंची है, तो उसको अंत तक ले चलना मेरी जिम्मेदारी भी थी, और एक तरह से कर्त्तव्य भी। मेरे हाथ इस समय उसके नितम्बो के मध्य की दरार पर फिर रहे थे। मैंने कुछ देर तक अपनी उंगली उस दरार की पूरी लम्बाई तक चलाई – मन तो हुआ की अपनी उंगली उसकी गुदा में डाल दूँ – लेकिन कुछ सोच कर रुक गया, और उसकी योनि को चूसने – चाटने का कार्य करता रहा।
उसकी गर्दन को चूमते हुए मैं नीचे की तरफ आने लगा और जल्दी ही उसके कोमल स्तनों को चूमने लगा। मुझे उनको देख कर ऐसा लगा की वो मेरे ही प्रेम और दुलार का इंतज़ार कर रहे थे। यहाँ पर मैंने काफी समय लगाया – उसके निप्पलों को अपने मुंह में भर कर मैंने उनको अपनी जीभ से सावधानीपूर्वक खूब मन भर कर चाटा, और साथ ही साथ दोनों स्तनों के बीच के सीने को चूमा। मेरी आवभगत का प्रभाव उसके निप्पलो ने तुरंत ही खड़े होकर प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। कुछ और देर उसके स्तनों को दुलार करने के बाद, मैंने अनिच्छा से और नीचे बढ़ना आरम्भ कर दिया। उसके निप्पल्स को चूमना और चूसना सबसे रोमांचक अनुभव था। मेरा अगला निशाना उसका पेट था, जिसको चूमते हुए मैं अपने चेहरे को उस पर रगड़ता भी रहा।
खैर, जैसा विधि का विधान है, मैं कुछ ही देर में उसके पैरों के बीच में पहुँच गया। मेरे चेहरे पर, मैं उसकी योनि की आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग ‘सामन’ मछली के रंग के जैसा था। संध्या की योनि के दोनों होंठ, उसके जीवन के पहले रति-सम्भोग के कारण सूजे हुए थे। मैंने उन्ही पर अपनी जीभ का स्नेह-लेप लगान शुरू कर दिया, और बहुत ही धीरे-धीरे अन्दर की तरफ आता गया। मुझे संध्या के मन का प्रावरोध कम होता हुआ सा लगा – उसने मेरे चुम्बन पर अपने नितम्बों को हिलाना चालू कर दिया था – और मैं यह शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ की उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ देर ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के बाद संध्या के कोमल और कामुक कूजन का स्वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसकी योनि से काम-रस भी रिसने लगा। इसको देख कर मुझे शक हुआ की संभवतः उसका रस मेरे वीर्य से मिला हुआ था। लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं थी – वस्तुतः, यह देख कर मेरा रोमांच और बढ़ गया। मैंने उसकी जांघें थोड़ी और खोल दी, जिससे मुझे वहां पर लपलपा कर चाटने में आसानी रहे।
मेरी जीभ ने जैसे ही उसकी योनि के अन्दर का जायजा लिया उसकी हलकी सी चीख निकल गयी, “ऊई माँ!”
संध्या के मज़े को देख कर मैंने अपने काम की गति को और बढ़ा दिया – अब मैं उसकी पूरी योनि को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा, और अपने खाली हाथों से उसके स्तनों और निप्पलों को दबाने कुचलने लगा। जब उसके निप्पल दुबारा खड़े हो गए, तब मैंने अपने हाथो को वहां से हटा कर संध्या के नितम्ब को थाम लिया। फिर धीरे धीरे, मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों की मालिश शुरू कर दी। मेरा मुंह और जीभ पहले से ही उसकी योनि पर हमला कर रहे थे। संध्या की तेज़ होती हुई साँसे अब मुझे सुनाई भी देने लग गयी थी।
संध्या धीरे से फुसफुसाई, “धीरे .. धीरे …” लेकिन मेरी गति पर कोई अंकुश नहीं था … “आअह्ह्ह्ह! प्लीज! बस … बस … अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती ….”
प्रत्यक्ष ही है, की यह सब संध्या के लिए काफी हो चुका था। वह कल रात की गतिविधियों के फलस्वरूप तकलीफ में थी। फिर भी मैंने अभी बंद करना ठीक नहीं समझा – लड़की अगर यहाँ तक पहुंची है, तो उसको अंत तक ले चलना मेरी जिम्मेदारी भी थी, और एक तरह से कर्त्तव्य भी। मेरे हाथ इस समय उसके नितम्बो के मध्य की दरार पर फिर रहे थे। मैंने कुछ देर तक अपनी उंगली उस दरार की पूरी लम्बाई तक चलाई – मन तो हुआ की अपनी उंगली उसकी गुदा में डाल दूँ – लेकिन कुछ सोच कर रुक गया, और उसकी योनि को चूसने – चाटने का कार्य करता रहा।
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अब संध्या के मुख से “आँह .. आँह ..” वाली कामुक कराहें निकल रही थी। मानो वह दीन-दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो। अच्छे संस्कारों वाली यह सीधी-सादी लड़की अगर ऐसी निर्लज्जता से कामुक आवाजें निकाले तो इसका बस एक ही मतलब है – और वह यह की लोहा बुरी तरह से गरम है – चोट मार कर चाहे कैसा भी रूप दे दो। पहले तो मेरा ध्यान बस मुख-मैथुन तक ही सीमित था, लेकिन अब मेरा लक्ष्य था की संध्या को इतना उत्तेजित कर दूं, की सेक्स के लिए मुझसे खुद कहे।
यह सोच कर मैंने अपना मुँह उसकी योनि से फिर से सटाया, और अपनी जीभ को उसके जितना अन्दर पहुंचा सकता था, उतना डाल दिया। मेरे इस नए हमले से वह बुरी तरह तड़प गयी – उसने अपनी टाँगे पूरी तरह से खोल दी, लेकिन योनि की मांस-पेशियों को सिकोड़ ली। ऐसा नहीं है मेरे मन पर मेरा पूरा नियंत्रण था – मेरा लिंग खुद भी पूरी तरह फूल कर झटके खा रहा था।
आप सभी ने तो देखा ही होगा – ‘ब्लू फिल्मों’ में हीरो कुछ इस तरह दिखाए जाते हैं की मानो वो चार-चार घंटे लम्बे यौन मैराथन को भी मजे में कर सकते हैं। और इतनी देर तक उनका लिंग भी खड़ा रहता है और उनकी टांगो और जांघों में ताकत शेष रहती है। संभव है की कुछ लोग शायद ऐसा करते भी होंगे, और उनकी स्त्रियों से मुझे पूरी सहानुभूति भी है। मुझे अपने बारे में मालूम था की मैं ऐसे मैराथन नहीं खेल सकता हूँ। वैसे भी मैं आज तक किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जिसने ऐसा दावा किया हो। खैर, यह सब कहने का मतलब यह है की मेरे लिए यह सब जल्दी ही ख़तम होने वाला था ….
मैंने ऊपर जा कर संध्या के होंठ चूमने शुरू कर दिए – हम दोनों ही कामुकता के उन्माद के चरम पर थे और एक दूसरे से उलझे जा रहे थे। संध्या की टाँगे मेरे कंधो पर कुछ इस तरह लिपटी हुई थी की मुझे कुछ भी करने से पहले उसकी टांगो को खोलना पड़ता। मैंने वही किया और उसके सामानांतर आकर उसको पकड़ लिया। ऐसा करने से मेरा उन्नत शिश्न अपने तय निशाने से जा चिपका।
मुझे लगता है की यौन क्रिया हम सभी को नैसर्गिक रूप में मिलती है – चाहे किसी व्यक्ति को वात्स्यायन की विभिन्न मुद्राओं का ज्ञान न भी हो, फिर भी स्त्री-पुरुष दोनों ही सेक्स की आधारभूत क्रिया से भली भाँति परिचित होते ही हैं। कुछ ऐसा ही ज्ञान इस समय संध्या भी दिखा रही थी। वह अभी भी कामुकता के सागर में गोते लगा रही थी और पूरी तरह से अन्यमनस्क थी। लेकिन उसका जघन क्षेत्र धीरे-धीरे झूल रहा था – कुछ इस तरह जिससे उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर चल फिर रही थी और उसके अनजाने में ही, मेरे लिंग को अपने रस से भिगो रही थी।
संध्या अचानक से रुक गयी – उसने अपनी पलकें खोल कर, अपनी नशीली आँखों से मुझे देखा। और फिर बिस्तर पर लेट गयी।
‘कहीं यह आ तो नहीं गयी!’ मेरे दिमाग में ख़याल आया। ‘ये तो सारा खेल चौपट हो गया।’
मैं एक पल अनिश्चय की हालत में रुक गया और अगले ही पल संध्या ने लेटे-लेटे ही अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसको अपनी योनि की दिशा में खीचने लगी। मैं भी उसकी ही गति के साथ साथ चलता रहा। अंततः, वह मेरे लिंग को पकड़े हुए अपनी योनि द्वार पर सटा कर सहलाने लगी।
यह पूरी तरह से अविश्वसनीय था।
संध्या मुझे सेक्स करने के लिए खुद ही आमंत्रित कर रही थी!!
कामोन्माद का ऐसा प्रदर्शन!
वाह!
अब आगे जो मुझे करना था, वह पूरी तरह साफ़ था। मैंने बिलकुल भी देर नहीं की। संध्या को मन ही मन इस निमंत्रण के लिए धन्यवाद करते हुए मैंने उसको हौले से अपनी बाँहों में पकड़ लिया। ऐसा करने से उसके दोनों निप्पल (जो अब पूरी तरह से कड़क हो चले थे) मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने संध्या को फिर से कई बार चूमा – और हर बार और गहरा चुम्बन। चूमने के बाद, मैंने उसके नितम्बों को पकड़ कर हौले हौले दबा दिया; साथ ही साथ मैंने अपने पैरों को कुछ इस तरह व्यवस्थित किया जिससे मेरा लिंग, संध्या की योनि को छूने लगे।
मैंने लिंग को हाथ से पकड़ कर, पहले संध्या के भगनासे पर फिराया, और फिर वहां से होते हुए उसके भगोष्ठ के बीच में लगा कर अन्दर की यात्रा प्रारंभ की। मेरे लिंग की इस यात्रा में उसका साथ संध्या ने भी दिया। जैसे ही मैंने आगे की तरफ जोर लगाया, नीचे से संध्या ने भी जोर लगाया। इन दोनों प्रयासों के फलस्वरूप, मेरा लिंग, संध्या की योनि में कम से कम तीन चौथाई समां गया। संध्या की उत्तेजना इसी बात से प्रमाणित हो जाती है। मैंने संध्या की गर्मागरम, कसी हुई, गीली, रसीली योनि में और अन्दर सरकना चालू कर दिया। संध्या की आँखें बंद थी, और हम दोनों में से कोई भी कुछ भी नहीं बोल रहा था। लेकिन फिर भी, ऐसा लगता था मानो हम दोनों इस नए ‘केबल-कनेक्शन’ के द्वारा बतला रहे हों। इस समय शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं थी। मैंने महसूस किया की मैं अपनी डार्लिंग के अन्दर पूरी तरह से समां गया हूँ।
यह सोच कर मैंने अपना मुँह उसकी योनि से फिर से सटाया, और अपनी जीभ को उसके जितना अन्दर पहुंचा सकता था, उतना डाल दिया। मेरे इस नए हमले से वह बुरी तरह तड़प गयी – उसने अपनी टाँगे पूरी तरह से खोल दी, लेकिन योनि की मांस-पेशियों को सिकोड़ ली। ऐसा नहीं है मेरे मन पर मेरा पूरा नियंत्रण था – मेरा लिंग खुद भी पूरी तरह फूल कर झटके खा रहा था।
आप सभी ने तो देखा ही होगा – ‘ब्लू फिल्मों’ में हीरो कुछ इस तरह दिखाए जाते हैं की मानो वो चार-चार घंटे लम्बे यौन मैराथन को भी मजे में कर सकते हैं। और इतनी देर तक उनका लिंग भी खड़ा रहता है और उनकी टांगो और जांघों में ताकत शेष रहती है। संभव है की कुछ लोग शायद ऐसा करते भी होंगे, और उनकी स्त्रियों से मुझे पूरी सहानुभूति भी है। मुझे अपने बारे में मालूम था की मैं ऐसे मैराथन नहीं खेल सकता हूँ। वैसे भी मैं आज तक किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जिसने ऐसा दावा किया हो। खैर, यह सब कहने का मतलब यह है की मेरे लिए यह सब जल्दी ही ख़तम होने वाला था ….
मैंने ऊपर जा कर संध्या के होंठ चूमने शुरू कर दिए – हम दोनों ही कामुकता के उन्माद के चरम पर थे और एक दूसरे से उलझे जा रहे थे। संध्या की टाँगे मेरे कंधो पर कुछ इस तरह लिपटी हुई थी की मुझे कुछ भी करने से पहले उसकी टांगो को खोलना पड़ता। मैंने वही किया और उसके सामानांतर आकर उसको पकड़ लिया। ऐसा करने से मेरा उन्नत शिश्न अपने तय निशाने से जा चिपका।
मुझे लगता है की यौन क्रिया हम सभी को नैसर्गिक रूप में मिलती है – चाहे किसी व्यक्ति को वात्स्यायन की विभिन्न मुद्राओं का ज्ञान न भी हो, फिर भी स्त्री-पुरुष दोनों ही सेक्स की आधारभूत क्रिया से भली भाँति परिचित होते ही हैं। कुछ ऐसा ही ज्ञान इस समय संध्या भी दिखा रही थी। वह अभी भी कामुकता के सागर में गोते लगा रही थी और पूरी तरह से अन्यमनस्क थी। लेकिन उसका जघन क्षेत्र धीरे-धीरे झूल रहा था – कुछ इस तरह जिससे उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर चल फिर रही थी और उसके अनजाने में ही, मेरे लिंग को अपने रस से भिगो रही थी।
संध्या अचानक से रुक गयी – उसने अपनी पलकें खोल कर, अपनी नशीली आँखों से मुझे देखा। और फिर बिस्तर पर लेट गयी।
‘कहीं यह आ तो नहीं गयी!’ मेरे दिमाग में ख़याल आया। ‘ये तो सारा खेल चौपट हो गया।’
मैं एक पल अनिश्चय की हालत में रुक गया और अगले ही पल संध्या ने लेटे-लेटे ही अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसको अपनी योनि की दिशा में खीचने लगी। मैं भी उसकी ही गति के साथ साथ चलता रहा। अंततः, वह मेरे लिंग को पकड़े हुए अपनी योनि द्वार पर सटा कर सहलाने लगी।
यह पूरी तरह से अविश्वसनीय था।
संध्या मुझे सेक्स करने के लिए खुद ही आमंत्रित कर रही थी!!
कामोन्माद का ऐसा प्रदर्शन!
वाह!
अब आगे जो मुझे करना था, वह पूरी तरह साफ़ था। मैंने बिलकुल भी देर नहीं की। संध्या को मन ही मन इस निमंत्रण के लिए धन्यवाद करते हुए मैंने उसको हौले से अपनी बाँहों में पकड़ लिया। ऐसा करने से उसके दोनों निप्पल (जो अब पूरी तरह से कड़क हो चले थे) मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने संध्या को फिर से कई बार चूमा – और हर बार और गहरा चुम्बन। चूमने के बाद, मैंने उसके नितम्बों को पकड़ कर हौले हौले दबा दिया; साथ ही साथ मैंने अपने पैरों को कुछ इस तरह व्यवस्थित किया जिससे मेरा लिंग, संध्या की योनि को छूने लगे।
मैंने लिंग को हाथ से पकड़ कर, पहले संध्या के भगनासे पर फिराया, और फिर वहां से होते हुए उसके भगोष्ठ के बीच में लगा कर अन्दर की यात्रा प्रारंभ की। मेरे लिंग की इस यात्रा में उसका साथ संध्या ने भी दिया। जैसे ही मैंने आगे की तरफ जोर लगाया, नीचे से संध्या ने भी जोर लगाया। इन दोनों प्रयासों के फलस्वरूप, मेरा लिंग, संध्या की योनि में कम से कम तीन चौथाई समां गया। संध्या की उत्तेजना इसी बात से प्रमाणित हो जाती है। मैंने संध्या की गर्मागरम, कसी हुई, गीली, रसीली योनि में और अन्दर सरकना चालू कर दिया। संध्या की आँखें बंद थी, और हम दोनों में से कोई भी कुछ भी नहीं बोल रहा था। लेकिन फिर भी, ऐसा लगता था मानो हम दोनों इस नए ‘केबल-कनेक्शन’ के द्वारा बतला रहे हों। इस समय शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं थी। मैंने महसूस किया की मैं अपनी डार्लिंग के अन्दर पूरी तरह से समां गया हूँ।
Re: कायाकल्प - Hindi sex novel
इस छण में हम दोनों कुछ देर के लिए रुक गए – अपनी साँसे संयत करने के लिए। साथ ही साथ एक दूसरे के शरीर के स्पर्श का आनंद भी लेने के लिए। करीब बीस तीस सेकंड के आराम के बाद मैंने लिंग को थोडा बाहर निकाल कर वापस उसकी योनि की आरामदायक गहराई में ठेल दिया। संध्या की योनि के अन्दर की दीवारों ने मेरे लिंग को कुछ इस तरह कस कर पकड़ लिया जैसे की ये दोनों ही एक दूसरे के लिए ही बने हुए हों। अब मैंने अपने लिंग को उसकी योनि में चिर-परिचित अन्दर बाहर वाली गति दे दी। साथ ही साथ, हम दोनों एक दूसरे को चूमते भी जा रहे थे।
मेरी कामना थी की यह कार्य कम से कम दस मिनट तक किया जा सके, लेकिन मैं सिर्फ पच्चीस से तीस धक्कों तक ही टिक सका। अपने आखिरी धक्के में मैं जितना भी अन्दर जा सकता था, चला गया। शायद मेरे इशारे को समझते हुए संध्या ने भी अपने नितम्ब को ऊपर धकेल दिया। मेरा पूरा शरीर स्खलन के आनंद में सख्त हो गया – मेरे लिंग का गर्म लावा पूरी तीव्रता से संध्या की कोख में खाली होता चला गया। पूरी तरह से खाली होने के बाद मैंने संध्या को बिस्तर से उठा कर अपने से कस कर लिपटा लिया, और उसके कोमल मुख को बहुत देर तक चूमता रहा। यह आभार प्रकट करने का मेरा अपना ही तरीका था।
हम लोग कुछ समय तक ऐसे ही एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए यौन क्रिया के आनंद रस पीते रहे, की अचानक संध्या कसमसाने लगी। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।
“क्या हुआ?”
“जी … टॉयलेट जाना है ….” उसने कसमसाते हुए बोला।
जैसा की मैंने पहले ही बताया है, संध्या को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। वैसे भी सुबह उठने के बाद सभी को यह एहसास तो होता ही है … लिहाज़ा संध्या को और भी तीव्र अनुभूति हो रही थी। उसके याद दिलाने से मुझे भी टॉयलेट जाने का एहसास होने लगा। और इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था – मतलब अब तो कमरे से बाहर घर के अन्दर वाले बाथरूम में जाना पड़ेगा। इतनी सुबह तो बाहर बगीचे में तो जाया नहीं जा सकता न। वैसे भी अब उठने का समय तो हो ही गया था। आज के दिन कुछ पूजायें करनी थी, और उसके लिए नहाना धोना इत्यादि तो करना ही था।
हम दोनों ही उठ गए। मूर्खता की बात यह की हम दोनों के सारे सामान इस कमरे में नहीं थे। संध्या ने न जाने कैसे कैसे अपने आप को सम्हाल कर साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहना। स्पष्ट ही था की वो साड़ी नियमित रूप से नहीं पहनती थी – संभवतः हमारा विवाह पहला अवसर था जब उसने साड़ी पहनी हो। और इस कारण से वो ठीक से पहनी नहीं गयी, और चीख चीख कर हमारी कल रात की हरकतों की सबसे चुगली रही थी। यह सब करते करते हम दोनों को कम से कम दस मिनट लग गए। इस बीच मैंने भी अपना कुरता और पजामा पहन लिया। उस बेचारी का इस समय बुरा हाल हो रहा होगा – एक तो सेक्स का दर्द और ऊपर से मूत्र का तीव्र एहसास! संध्या धीरे-धीरे चलते हुए दरवाज़े तक पहुंची। दरवाज़ा खोलने से पहले उसको कुछ याद आया, और उसने अपने सर को पल्लू से ढक लिया।
‘हह! भारतीय बहुओं के तौर तरीके! ये लड़की तो अपने मायके से ही शुरू हो गयी!’ मैंने मज़े लेते हुए सोचा।
“जाग गयी बेटा!” ये शक्ति सिंह थे … अब उनको क्या बताया जाए की जाग तो बहुत देर पहले ही गए हैं। और ऐसा तो हो नहीं सकता की अपनी बेटी की कामुक कराहें उन्होंने न सुनी हो। संध्या प्रत्युत्तर में सिर्फ मुस्कुरा कर रह गयी। उसने जल्दी से बाथरूम की तरफ का रुख किया। संध्या के पीछे ही मैं कमरे से बाहर निकला। मैंने यह ध्यान दिया की वहाँ उपस्थित सभी लोग संध्या के अस्त-व्यस्त कपड़े और चेहरे को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
“… आइये आइये ..” शक्ति सिंह जी ने मुझे देख कर कहना जारी रखा, “बैठिये .. नीलम बेटा, जीजाजी के लिए चाय लाओ ….. आप जल्दी से फ्रेश हो जाइये … आज भी काफी सारे काम हैं।”
कम जान पहचान होने के कारण मैं मना नहीं कर सका। वैसे भी, गरम चाय इस ठण्डक में आराम तो देगी ही। अब मैंने अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाई – घर में सामान्य से अधिक लोग थे।
‘शादी-ब्याह का घर है’, मैंने सोचा, ‘… सारे रिश्तेदार आये होंगे ..’
मेरी कामना थी की यह कार्य कम से कम दस मिनट तक किया जा सके, लेकिन मैं सिर्फ पच्चीस से तीस धक्कों तक ही टिक सका। अपने आखिरी धक्के में मैं जितना भी अन्दर जा सकता था, चला गया। शायद मेरे इशारे को समझते हुए संध्या ने भी अपने नितम्ब को ऊपर धकेल दिया। मेरा पूरा शरीर स्खलन के आनंद में सख्त हो गया – मेरे लिंग का गर्म लावा पूरी तीव्रता से संध्या की कोख में खाली होता चला गया। पूरी तरह से खाली होने के बाद मैंने संध्या को बिस्तर से उठा कर अपने से कस कर लिपटा लिया, और उसके कोमल मुख को बहुत देर तक चूमता रहा। यह आभार प्रकट करने का मेरा अपना ही तरीका था।
हम लोग कुछ समय तक ऐसे ही एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए यौन क्रिया के आनंद रस पीते रहे, की अचानक संध्या कसमसाने लगी। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।
“क्या हुआ?”
“जी … टॉयलेट जाना है ….” उसने कसमसाते हुए बोला।
जैसा की मैंने पहले ही बताया है, संध्या को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। वैसे भी सुबह उठने के बाद सभी को यह एहसास तो होता ही है … लिहाज़ा संध्या को और भी तीव्र अनुभूति हो रही थी। उसके याद दिलाने से मुझे भी टॉयलेट जाने का एहसास होने लगा। और इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था – मतलब अब तो कमरे से बाहर घर के अन्दर वाले बाथरूम में जाना पड़ेगा। इतनी सुबह तो बाहर बगीचे में तो जाया नहीं जा सकता न। वैसे भी अब उठने का समय तो हो ही गया था। आज के दिन कुछ पूजायें करनी थी, और उसके लिए नहाना धोना इत्यादि तो करना ही था।
हम दोनों ही उठ गए। मूर्खता की बात यह की हम दोनों के सारे सामान इस कमरे में नहीं थे। संध्या ने न जाने कैसे कैसे अपने आप को सम्हाल कर साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहना। स्पष्ट ही था की वो साड़ी नियमित रूप से नहीं पहनती थी – संभवतः हमारा विवाह पहला अवसर था जब उसने साड़ी पहनी हो। और इस कारण से वो ठीक से पहनी नहीं गयी, और चीख चीख कर हमारी कल रात की हरकतों की सबसे चुगली रही थी। यह सब करते करते हम दोनों को कम से कम दस मिनट लग गए। इस बीच मैंने भी अपना कुरता और पजामा पहन लिया। उस बेचारी का इस समय बुरा हाल हो रहा होगा – एक तो सेक्स का दर्द और ऊपर से मूत्र का तीव्र एहसास! संध्या धीरे-धीरे चलते हुए दरवाज़े तक पहुंची। दरवाज़ा खोलने से पहले उसको कुछ याद आया, और उसने अपने सर को पल्लू से ढक लिया।
‘हह! भारतीय बहुओं के तौर तरीके! ये लड़की तो अपने मायके से ही शुरू हो गयी!’ मैंने मज़े लेते हुए सोचा।
“जाग गयी बेटा!” ये शक्ति सिंह थे … अब उनको क्या बताया जाए की जाग तो बहुत देर पहले ही गए हैं। और ऐसा तो हो नहीं सकता की अपनी बेटी की कामुक कराहें उन्होंने न सुनी हो। संध्या प्रत्युत्तर में सिर्फ मुस्कुरा कर रह गयी। उसने जल्दी से बाथरूम की तरफ का रुख किया। संध्या के पीछे ही मैं कमरे से बाहर निकला। मैंने यह ध्यान दिया की वहाँ उपस्थित सभी लोग संध्या के अस्त-व्यस्त कपड़े और चेहरे को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
“… आइये आइये ..” शक्ति सिंह जी ने मुझे देख कर कहना जारी रखा, “बैठिये .. नीलम बेटा, जीजाजी के लिए चाय लाओ ….. आप जल्दी से फ्रेश हो जाइये … आज भी काफी सारे काम हैं।”
कम जान पहचान होने के कारण मैं मना नहीं कर सका। वैसे भी, गरम चाय इस ठण्डक में आराम तो देगी ही। अब मैंने अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाई – घर में सामान्य से अधिक लोग थे।
‘शादी-ब्याह का घर है’, मैंने सोचा, ‘… सारे रिश्तेदार आये होंगे ..’