Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
माँ बोली- होता है किसी किसी के साथ ऐसा…
मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो,
फिर देखो !
माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ?
तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि
अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा
था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी
उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात
को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं
क्या होगा।
उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं!
और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा
मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से
मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता
नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।
तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।
हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन
की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की
धड़कन बढ़ गई।
माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल
तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।
फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर
बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…
‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने
लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि
अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ
बोली- अरे कैसे?
फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक
आओगी?
तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं,
परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान
रखना।
मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो
अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।
तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया,
पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?
तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो
गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो
दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था!
वो कैसे?
तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई
थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के
लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका
रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और
हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में
ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।
तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?
तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के
पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी
और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से…
इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा
जल्दी, देर न कर !
तो मैं बोला- ठीक है माँ!
और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर
रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस
भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी
जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई
और इस्तेमाल नहीं करता था।
फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को
चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे
हमें मौका मिल सकता है।
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस
विषय पर बात की जाये।
मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो,
फिर देखो !
माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ?
तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि
अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा
था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी
उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात
को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं
क्या होगा।
उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं!
और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा
मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से
मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता
नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।
तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।
हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन
की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की
धड़कन बढ़ गई।
माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल
तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।
फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर
बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…
‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने
लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि
अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ
बोली- अरे कैसे?
फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक
आओगी?
तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं,
परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान
रखना।
मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो
अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।
तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया,
पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?
तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो
गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो
दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था!
वो कैसे?
तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई
थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के
लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका
रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और
हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में
ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।
तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?
तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के
पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी
और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से…
इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा
जल्दी, देर न कर !
तो मैं बोला- ठीक है माँ!
और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर
रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस
भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी
जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई
और इस्तेमाल नहीं करता था।
फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को
चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे
हमें मौका मिल सकता है।
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस
विषय पर बात की जाये।
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फिर मैं यही विचार मन में लिए उनके घर की बजाये, पास में ही
एक पार्क था, तो मैं वहाँ चल दिया, और दिमाग लगाने लगा
कि कैसे स्थिति को अनुरूप किया जा सके। फिर यही सोचते
सोचते पार्क में बैठा ही था कि माया का फोन आया- क्यों
राजा बाबू, माँ ने अभी परमिशन नहीं दी क्या?
मैं- नहीं, उन्होंने तो भेज दिया है।
‘फिर तू अभी तक आया क्यों नहीं?’
तो मैं बोला- अरे, ऐसा नहीं है, मैं थोड़ा परेशान हूँ, इसी लिए
पार्क में बैठा हूँ।
उन्होंने मुझसे मेरी परेशानी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें कहा-
आप मदद तो कर सकती हो, पर कैसे… यह सोच रहा हूँ।
तो वो बोली- अरे बात तो बता पहले, ये क्या पहेलियाँ बुझा
रहा है?
तो मैंने उन्हें अपने मन की अन्तर्पीड़ा बताई तो वो बोली-
पागल, पहले क्यों नहीं बताया? यह तो मैं भी चाहती थी।
मैं बोला- फिर आपके पास कोई प्लान है?
वो बोली- नहीं, पर तुम कोई जुगाड़ सोचो!
मैं बोला- अच्छा, फिर मैं ही कुछ सोचता हूँ, बस आप मेरा
साथ देना, बाकी का मैं खुद ही देख लूंगा।
तो वो बोली- बिल्कुल मेरे राजा, पर थोड़ा जल्दी से सोच
और घर आ जा!
मैं पुनः सोच ही रहा था कि पास बैठे कुछ बच्चों के गानों
की आवाज़ आई, मैंने देखा लो वहाँ कुछ बच्चे ग्रुप में बट कर
अन्ताक्षरी खेल रहे हैं और हारने पर एक दूसरे को कुछ न कुछ दे रहे
थे जैसे कि कभी कोई टॉफी तो कभी चॉकलेट, कभी
लोलीपोप!
तो मेरे दिमाग में तुरंत यह बात बैठ गई और मैंने सोचा कि क्यों
न इस खेल को बड़े स्तर पर खेला जाये?
और प्लान बनाते ही बनाते मैं मन ही मन चहक सा उठा
क्योंकि इस प्लान से मुझे ऐसी आशा की किरण दिखने लगी
थी जिसकी परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात
नहीं थी, यहाँ तक मैंने भी कुछ देर पहले ऐसा कुछ भी नहीं
सोचा था पर मुझे प्रतीत हो गया था कि अब मेरे कार्य में
किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी।
बस अब रूचि को तैयार करना था साथ देने के लिए तो मैंने तुरंत
ही अपना फ़ोन निकाला और रूचि को कॉल किया। जैसे जैसे
उधर फोन पर घंटी बज रही थी, ठीक वैसे ही वैसे मेरे दिल की
घंटी यानि धड़कन…
खैर कुछ देर बाद फ़ोन उठा पर मैं निराश हो गया क्योंकि उधर
से फ़ोन रूचि ने नहीं बल्कि मेरे दोस्त विनोद ने उठाया था।
जैसे उसकी आवाज़ मेरे कान में पड़ी, मैं तो इतना हड़बड़ा गया
था, जैसे मेरे तोते ही उड़ गए हों। फिर उधर से तीन चार बार
‘हेलो हेलो’ सुनने के बाद मैं ऐसे बोला जैसे उल्टा चोर
कोतवाल को डांटे… मैं बोला- क्यों बे, फोन की जब बेटरी
चार्ज नहीं कर सकते तो रखता क्यों है, कब से तेरा फोन मिला
रहा हूँ!
अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैंने क्यों कहा, तो आपको बता दूँ
कि हर भाई को अपनी बहन की चिंता होती है और मेरे
अचानक से उसके फोन पर फोन करने उसके मन पर कई तरह के
प्रश्न उठ सकते थे क्योंकि ऐसा पहली बार था जब मैंने रूचि
को अपने फोन से काल की थी।
एक पार्क था, तो मैं वहाँ चल दिया, और दिमाग लगाने लगा
कि कैसे स्थिति को अनुरूप किया जा सके। फिर यही सोचते
सोचते पार्क में बैठा ही था कि माया का फोन आया- क्यों
राजा बाबू, माँ ने अभी परमिशन नहीं दी क्या?
मैं- नहीं, उन्होंने तो भेज दिया है।
‘फिर तू अभी तक आया क्यों नहीं?’
तो मैं बोला- अरे, ऐसा नहीं है, मैं थोड़ा परेशान हूँ, इसी लिए
पार्क में बैठा हूँ।
उन्होंने मुझसे मेरी परेशानी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें कहा-
आप मदद तो कर सकती हो, पर कैसे… यह सोच रहा हूँ।
तो वो बोली- अरे बात तो बता पहले, ये क्या पहेलियाँ बुझा
रहा है?
तो मैंने उन्हें अपने मन की अन्तर्पीड़ा बताई तो वो बोली-
पागल, पहले क्यों नहीं बताया? यह तो मैं भी चाहती थी।
मैं बोला- फिर आपके पास कोई प्लान है?
वो बोली- नहीं, पर तुम कोई जुगाड़ सोचो!
मैं बोला- अच्छा, फिर मैं ही कुछ सोचता हूँ, बस आप मेरा
साथ देना, बाकी का मैं खुद ही देख लूंगा।
तो वो बोली- बिल्कुल मेरे राजा, पर थोड़ा जल्दी से सोच
और घर आ जा!
मैं पुनः सोच ही रहा था कि पास बैठे कुछ बच्चों के गानों
की आवाज़ आई, मैंने देखा लो वहाँ कुछ बच्चे ग्रुप में बट कर
अन्ताक्षरी खेल रहे हैं और हारने पर एक दूसरे को कुछ न कुछ दे रहे
थे जैसे कि कभी कोई टॉफी तो कभी चॉकलेट, कभी
लोलीपोप!
तो मेरे दिमाग में तुरंत यह बात बैठ गई और मैंने सोचा कि क्यों
न इस खेल को बड़े स्तर पर खेला जाये?
और प्लान बनाते ही बनाते मैं मन ही मन चहक सा उठा
क्योंकि इस प्लान से मुझे ऐसी आशा की किरण दिखने लगी
थी जिसकी परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात
नहीं थी, यहाँ तक मैंने भी कुछ देर पहले ऐसा कुछ भी नहीं
सोचा था पर मुझे प्रतीत हो गया था कि अब मेरे कार्य में
किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी।
बस अब रूचि को तैयार करना था साथ देने के लिए तो मैंने तुरंत
ही अपना फ़ोन निकाला और रूचि को कॉल किया। जैसे जैसे
उधर फोन पर घंटी बज रही थी, ठीक वैसे ही वैसे मेरे दिल की
घंटी यानि धड़कन…
खैर कुछ देर बाद फ़ोन उठा पर मैं निराश हो गया क्योंकि उधर
से फ़ोन रूचि ने नहीं बल्कि मेरे दोस्त विनोद ने उठाया था।
जैसे उसकी आवाज़ मेरे कान में पड़ी, मैं तो इतना हड़बड़ा गया
था, जैसे मेरे तोते ही उड़ गए हों। फिर उधर से तीन चार बार
‘हेलो हेलो’ सुनने के बाद मैं ऐसे बोला जैसे उल्टा चोर
कोतवाल को डांटे… मैं बोला- क्यों बे, फोन की जब बेटरी
चार्ज नहीं कर सकते तो रखता क्यों है, कब से तेरा फोन मिला
रहा हूँ!
अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैंने क्यों कहा, तो आपको बता दूँ
कि हर भाई को अपनी बहन की चिंता होती है और मेरे
अचानक से उसके फोन पर फोन करने उसके मन पर कई तरह के
प्रश्न उठ सकते थे क्योंकि ऐसा पहली बार था जब मैंने रूचि
को अपने फोन से काल की थी।
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
तो वो बोला- बेवकूफ हो का बे? मेरा फोन तो ओन है।
मैंने बोला- फिर झूट बोले?
तो बोला- सच यार… अभी रुक और उसने अपने फोन से कॉल
की ओर देखा मेरा नंबर वेटिंग पर आ रहा है।
मैंने बोला- हम्म आ तो रहा है पर मिल क्यों नहीं रहा था?
वो बोला- होगा नेटवर्क का कोई इशू…
मैं बोला- चल छोड़, यह बता मैं आ रहा था तो सोच रहा हूँ
बाहर से कुछ ले आऊँ खाने पीने के लिए?
वो बोला- रहने दे यार, माँ खाना बना ही रही है।
तब मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी जो रूचि की थी पर मुझे यह तब
मालूम पड़ा जब उसने खुद विनोद से फोन लेकर हेलो कहा,
बोली- अरे आप हो कहाँ? आये नहीं अभी तक?
मैंने बोला- पास में विनोद हो तो थोड़ा दूर हटकर बात करो,
जरूरी बात करनी है।
वो बोली- अच्छा!
और फिर कुछ रुक कर बोली- वैसे आप लाने वाले क्या थे?
मैं बोला- जो तुम कहो?
तो वो बोली- खाना तो बन ही गया है, आप थम्स-अप लेते
आना, खाने के बाद पी जाएगी।
साथ बैठकर कहती हुई वो विनोद से दूर जाने लगी और उचित
दूरी पर पहुँच कर मुझसे बोली- हाँ बताओ, क्या जरूरी बात
थी?
मैं बोला- मेरे दिमाग में एक प्लान है जिसे सुनकर तुम झन्ना
जाओगी और सबके साथ रहते हुए भी हम साथ में वक़्त गुजार
पाएंगे।
तो वो बोली- लव यू राहुल, क्या ऐसा हो सकता है?
मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!
फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान
तो बताओ?
मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे
ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ
जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर
माइंड निकले तुम तो!
कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।
मैंने बोला- बस अभी आया!
और फ़ोन काट दिया।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा प्लान मैंने
बनाया जिससे मेरी चूत इच्छा आसानी से पूरी हो सकती
थी, वो भी सबके रहते हुए?
मैंने बोला- फिर झूट बोले?
तो बोला- सच यार… अभी रुक और उसने अपने फोन से कॉल
की ओर देखा मेरा नंबर वेटिंग पर आ रहा है।
मैंने बोला- हम्म आ तो रहा है पर मिल क्यों नहीं रहा था?
वो बोला- होगा नेटवर्क का कोई इशू…
मैं बोला- चल छोड़, यह बता मैं आ रहा था तो सोच रहा हूँ
बाहर से कुछ ले आऊँ खाने पीने के लिए?
वो बोला- रहने दे यार, माँ खाना बना ही रही है।
तब मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी जो रूचि की थी पर मुझे यह तब
मालूम पड़ा जब उसने खुद विनोद से फोन लेकर हेलो कहा,
बोली- अरे आप हो कहाँ? आये नहीं अभी तक?
मैंने बोला- पास में विनोद हो तो थोड़ा दूर हटकर बात करो,
जरूरी बात करनी है।
वो बोली- अच्छा!
और फिर कुछ रुक कर बोली- वैसे आप लाने वाले क्या थे?
मैं बोला- जो तुम कहो?
तो वो बोली- खाना तो बन ही गया है, आप थम्स-अप लेते
आना, खाने के बाद पी जाएगी।
साथ बैठकर कहती हुई वो विनोद से दूर जाने लगी और उचित
दूरी पर पहुँच कर मुझसे बोली- हाँ बताओ, क्या जरूरी बात
थी?
मैं बोला- मेरे दिमाग में एक प्लान है जिसे सुनकर तुम झन्ना
जाओगी और सबके साथ रहते हुए भी हम साथ में वक़्त गुजार
पाएंगे।
तो वो बोली- लव यू राहुल, क्या ऐसा हो सकता है?
मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!
फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान
तो बताओ?
मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे
ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ
जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर
माइंड निकले तुम तो!
कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।
मैंने बोला- बस अभी आया!
और फ़ोन काट दिया।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा प्लान मैंने
बनाया जिससे मेरी चूत इच्छा आसानी से पूरी हो सकती
थी, वो भी सबके रहते हुए?