"ठंडा कर दू तुझे"
"कैसे करेगा ठंडा"
"डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झल देता हू", फॅन चलाने
पर तो इस्त्री ही ठंडी पर जाएगी"
"रहने दे तेरे डंडे वाले पँखे से भी कुच्छ नही होने जाने का,
छ्होटा सा तो पंखा है तेरा"
कह कर अपने हाथ उपर उठा कर माथे पर छलक आए पसीने को
पोछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पूरी भीग गई है
और उसके गर्देन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउस के अंदर उसके दोनो
चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लाउस को भेगा रहा
होता.,,,,,,,,,,, तो
घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी इस कारण से
उसके पतले ब्लाउस को पसीना पूरी तरह से भीगा देता था और, उसकी
चुचिया उसके ब्लाउस के उपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो
हल्के रंगा का ब्लाउस पहनी होती तो उसके मोटे मोटे भूरे रंग के
निपल नज़र आने लगते. ये देख कर मेरा लंड खरा होने लगता था.
कभी कभी वो इस्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटिकोट को उठा के
पसीना पोच्छने के लिए अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके
के इंतेज़ार में बैठा रहता था, क्योंकि इस वाक़ूत उसकी आँखे तो
पेटिकोट से ढक जाती थी पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसका
टाँगे पूरा जाग तक नंगी हो जाती थी और मैं बिना अपनी नज़रो को
चुराए उसके गोरी चिटी मखमली जाहनघो को तो जी भर के देखता
था. मा अपने चेहरे का पसीना अपनी आँखे बंद कर के पूरे आराम से
पोचहति थी और मुझे उसके मोटे कंडली के ख़भे जैसे जघो को पूरा
नज़ारा दिखती थी. गाओं में औरते साधारणतया पनटी ना पहनती
है और कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झतो की हल्की सी झलक
देखने को मिल जाती. जब वो पसीना पोच्च के अपना पेटिकोट नीचे
करती तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बर्दस्त करना
संभव नही हो पता मैं जल्दी से घर के पिच्छवारे की तरफ भाग
जाता अपने लंड के कारेपन को थोरा ठंडा करने के लिए. जब मेरा
लंड डाउन हो जाता तब मैं वापस आ जाता. मा पुचहति कहा गया था
तो मैं बोलता "थोरी ठंडी हवा खाने बरी गर्मी लग रही थी"
" ठीक किया बदन को हवा लगते रहने चाहिए, फिर तू तो अभी बरा
हो रहा है तुझे और ज़यादा गर्मी लगती होगी"
" हा तुझे भी तो गर्मी लग रही होगी मा जा तू भी बाहर घूम कर
आ जा थोरी गर्मी शांत हो जाएगी" और उसके हाथ से इस्त्री ले लेता.
पर वो बाहर नही जाती और वही पर एक तरफ मोढ़े ( वुडन प्लांक)
पर बैठ जाती अपने पैरो घुटने के पास से मोर कर और अपने
पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेत लेती. मा जब भी
इस तरीके से बैठती थी तो मेरा इस्त्री करना मुस्किल हो जाता था.
उसके इस तरह बैठने से उसकी घुटनो से उपर तक की जांगे और
दिखने लगती थी.
"अर्रे नही रे रहने दे मेरी तो आदत पर गई है गर्मी बर्दस्त करने
की"
"क्यों बर्दाश्त करती है गर्मी दिमाग़ पर चाड जाएगी जा बाहर घूम
के आ जा ठीक हो जाएगा"
धोबन और उसका बेटा
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Re: धोबन और उसका बेटा
"जाने दे तू अपना काम कर ये गर्मी ऐसे नही शांत होने वाली, तेरा
बापू अगर समझदार होता तो गर्मी लगती ही नही, पर उसे क्या वो तो
कारही देसी पी के सोया परा होगा" शाम होने को आई मगर अभी तक
नही आया"
"आरे, तो इसमे बापू की क्या ग़लती है मौसम ही गर्मी का है गर्मी तो
लगेगी ही"
"अब मैं तुझे कैसे समझोउ की उसकी क्या ग़लती है, काश तू थोरा
समझदार होता" कह कर मा उठ कर खाना बनाना चल देती मैं भी
सोच में परा हुआ रह जाता की आख़िर मा चाहती क्या है.
रात में जब खाना खाने का टाइम आता तो मैं नहा धो कर किचन
में आ जाता, खाना खाने के लिए. मा भी वही बैठा के मुझे
गरम गरम रोटिया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो
पेटिकोट और ब्लाउस में ही होती थी क्यों की किचन में गर्मी
होती थी और उसने एक छ्होटा सा पल्लू अपने कंधो पर डाल रखा
होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोचहति रहती और खाना खिलती
जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.
मैने मज़ाक करते हुए बोलता " सच में मा तुम तो गरम इस्त्री
(वुमन) हो". वो पहले तो कुच्छ साँझ नही पाती फिर जब उसकी समझ
में आता की मैं आइरन इस्त्री ना कह के उसे इस्त्री कह रहा हू तो वो
हसने लगती और कहती
"हा मैं गरम इस्त्री हू", और अपना चेहरा आगे करके बोलती "देख
कितना पसीना आ रहा है, मेरी गर्मी दूर कर दे"
" मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठंडी
चीज़ खाया कर"
"अक्चा, कौन से ठंडी चीज़ मैं ख़ौ की मेरी गर्मी दूर हो जाएगी"
"केले और बैगान की सब्जिया खाया कर"
इस पर मा का चेहरा लाल हो जाता था और वो सिर झुका लेती और
धीरे से बोलती " अर्रे केले और बैगान की सब्जी तो मुझे भी आक्ची
लगती है पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सब्जिया लाने
से रहा, ना तो उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगान"\
"तू फिकर मत कर मैं ला दूँगा तेरे लिए"
"ही, बरा अक्चा बेटा है, मा का कितना ध्यान रक्ता है"
मैं खाना ख़तम करते हुए बोलता, "चल अब खाना तो हो गया ख़तम,
तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले", "अर्रे नही अभी तो तेरा बापू
देसी चढ़ा के आता होगा, उसको खिला दूँगी तब खूँगी, तब तक नहा
लेती हू" तू जेया और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है". मुझे
भी ध्यान आ गया की हा कल तो नदी पर भी जाना है मैं छत पर
चला गया. गर्मियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे.
ठंडी ठंडी हवा बह रही थी, मैं बिस्तरे पर लेट गया और अपने
हाथो से लंड मसालते हुए मा के खूबसूरत बदन के ख्यालो में
खोया हुआ सपने देखने लगा और कल कैसे उसको बदन को ज़यादा से
ज़यादा निहारँगा ये सोचता हुआ कब सो गया मुझे पता ही नही लगा
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Re: धोबन और उसका बेटा
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ जब मेरी नींद खुली तो देखा एक
तरफ बापू अभी भी लुढ़का हुआ है और मा शायद पहले ही उठ कर जा
चुकी थी मैं भी जल्दी से नीचे पहुचा तो देखा की मा बाथरूम
से आ के हॅंडपंप पर अपने हाथ पैर धो रही थी. मुझे देखते ही
बोली "चल जल्दी से तैयार हो जा मैं खाना बना लेती हू फिर जल्दी से
नदी पर निकाल जाएँगे, तेरे बापू को भी आज शहर जाना है बीज
लाने, मैं उसको भी उठा देती हू". थोरी देर में जब मैं वापस
आया तो देखा की बापू भी उठ चुक्का था और वो बाथरूम जाने की
तैइय्यारी में था. मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपरो
के गत्थर बना के तैइय्यार कर दिया. थोरी देर में हम सब लोग
तैइय्यार हो गये. घर को ताला लगाने के बाद बापू बस पकरने के
लिए चल दिया और हम दोनो नदी की ओर. मैने मा से पुचछा की बापू
कब तक आएँगे तो वो बोली "क्या पता कब आएगा मुझे तो बोला है
की कल आ जौंगा पर कोई भरोसा है तेरे बापू का, चार दिन भी
लगा देगा, ". हम लोग नदी पर पहुच गये और फिर अपने काम में
लग गये, कपरो की सफाई के बाद मैने उन्ह एक तरफ सूखने के लिए
डाल दिया और फिर हम दोनो ने नहाने की तैइय्यारी सुरू कर दी. मा ने
भी अपनी सारी उतार के पहले उसको साफ किया फिर हर बार की तरह
अपने पेटिकोट को उपर चढ़ा के अपनी ब्लाउस निकली फिर उसको साफ
किया और फिर अपने बदन को रगर रगर के नहाने लगी. मैं भी
बगल में बैठा उसको निहारते हुए नहाता रहा बेकयाली में एक दो
बार तो मेरी लूँगी भी मेरे बदन पर से हट गई थी पर अब तो ये
बहुत बार हो चक्का था इसलिए मैने इस पर कोई ध्यान नही दिया,
हर बार की तरह मा ने भी अपने हाथो को पेटिकोट के अंदर डाल
के खूब रगर रगर के नहाना चालू रखा. थोरी देर बाद मैं नदी
में उतर गया मा ने भी नदी में उतर के एक दो डुबकिया लगाई और
फिर हम दोनो बाहर आ गये. मैने अपने कापरे चेंज कर लिए और
पाजामा और कुर्ता पहन लिया. मा ने भी पहले अपने बदन को टॉवेल से
सूखाया फिर अपने पेटिकोट के इज़रबंद को जिसको की वो छाती पर
बाँध के रखती थी पर से खोल लिया और अपने दंटो से पेटिकोट को
पाकर लिया, ये उसका हमेशा का काम था, मैं उसको पठार पर बैठ
के एक तक देखे जा रहा था. इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गये
थे अब उसने ब्लाउस को पहन ने के लिए पहले उसने अपना बाया हाथ उसमे
घुसाया फिर जैसे ही वो अपना दाहिना हाथ ब्लाउस में घुसने जा
रही थी की पता नही क्या हुआ उसके दंटो से उसकी पेटिकोट च्छुत गई
और सीधे सरसरते हुए नीचे गिर गई. और उसका पूरा का पूरा नंगा
बदन एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने दिखने लगा. उसके बरी बरी
चुचिया जिन्हे मैने अब तक कपरो के उपर से ही देखा था और उसके
भारी बाहरी चूतर और उसकी मोटी मोटी जांघे और झाट के बॉल सब एक
पल के लिए मेरी आँखो के सामने नंगे हो गये.
तरफ बापू अभी भी लुढ़का हुआ है और मा शायद पहले ही उठ कर जा
चुकी थी मैं भी जल्दी से नीचे पहुचा तो देखा की मा बाथरूम
से आ के हॅंडपंप पर अपने हाथ पैर धो रही थी. मुझे देखते ही
बोली "चल जल्दी से तैयार हो जा मैं खाना बना लेती हू फिर जल्दी से
नदी पर निकाल जाएँगे, तेरे बापू को भी आज शहर जाना है बीज
लाने, मैं उसको भी उठा देती हू". थोरी देर में जब मैं वापस
आया तो देखा की बापू भी उठ चुक्का था और वो बाथरूम जाने की
तैइय्यारी में था. मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपरो
के गत्थर बना के तैइय्यार कर दिया. थोरी देर में हम सब लोग
तैइय्यार हो गये. घर को ताला लगाने के बाद बापू बस पकरने के
लिए चल दिया और हम दोनो नदी की ओर. मैने मा से पुचछा की बापू
कब तक आएँगे तो वो बोली "क्या पता कब आएगा मुझे तो बोला है
की कल आ जौंगा पर कोई भरोसा है तेरे बापू का, चार दिन भी
लगा देगा, ". हम लोग नदी पर पहुच गये और फिर अपने काम में
लग गये, कपरो की सफाई के बाद मैने उन्ह एक तरफ सूखने के लिए
डाल दिया और फिर हम दोनो ने नहाने की तैइय्यारी सुरू कर दी. मा ने
भी अपनी सारी उतार के पहले उसको साफ किया फिर हर बार की तरह
अपने पेटिकोट को उपर चढ़ा के अपनी ब्लाउस निकली फिर उसको साफ
किया और फिर अपने बदन को रगर रगर के नहाने लगी. मैं भी
बगल में बैठा उसको निहारते हुए नहाता रहा बेकयाली में एक दो
बार तो मेरी लूँगी भी मेरे बदन पर से हट गई थी पर अब तो ये
बहुत बार हो चक्का था इसलिए मैने इस पर कोई ध्यान नही दिया,
हर बार की तरह मा ने भी अपने हाथो को पेटिकोट के अंदर डाल
के खूब रगर रगर के नहाना चालू रखा. थोरी देर बाद मैं नदी
में उतर गया मा ने भी नदी में उतर के एक दो डुबकिया लगाई और
फिर हम दोनो बाहर आ गये. मैने अपने कापरे चेंज कर लिए और
पाजामा और कुर्ता पहन लिया. मा ने भी पहले अपने बदन को टॉवेल से
सूखाया फिर अपने पेटिकोट के इज़रबंद को जिसको की वो छाती पर
बाँध के रखती थी पर से खोल लिया और अपने दंटो से पेटिकोट को
पाकर लिया, ये उसका हमेशा का काम था, मैं उसको पठार पर बैठ
के एक तक देखे जा रहा था. इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गये
थे अब उसने ब्लाउस को पहन ने के लिए पहले उसने अपना बाया हाथ उसमे
घुसाया फिर जैसे ही वो अपना दाहिना हाथ ब्लाउस में घुसने जा
रही थी की पता नही क्या हुआ उसके दंटो से उसकी पेटिकोट च्छुत गई
और सीधे सरसरते हुए नीचे गिर गई. और उसका पूरा का पूरा नंगा
बदन एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने दिखने लगा. उसके बरी बरी
चुचिया जिन्हे मैने अब तक कपरो के उपर से ही देखा था और उसके
भारी बाहरी चूतर और उसकी मोटी मोटी जांघे और झाट के बॉल सब एक
पल के लिए मेरी आँखो के सामने नंगे हो गये.