छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:58

मैने कहा, चुप कर ये अपनी बकवास, और एक ऑटो वाले को रोका और घर चली आई. उसको कॉलेज से निकाले जाने पर सभी लड़किया खुश थी.

उसके बाद, मैने उसे कॉलेज के आस पास भी नही देखा और मैने चैन से कॉलेज की डिग्री हाँसिल की. थोड़े दीनो बाद, मेरी शादी संजय से हो गयी और मैं इस सहर मे आ गयी.

ये घटना, मुझे इसलिए याद आई, क्योंकि आज भी, मुझे डर लग रहा था कि, कही ये, बिल्लू मेरे साथ कोई, ग़लत हरकत ना कर दे. मुझे अपनी और अपने परिवार की इज़्ज़त की चिंता हो रही थी.

पर आज सब कुछ मेरी अपनी ग़लती के कारण हो रहा था. अगर मैं, खिड़की वाला किस्सा, आगे ना बढ़ने देती, तो मैं आज इस मुसीबत मे ना होती.

मैं पछता रही थी कि मुझे उस बिल्लू की बात नही सुन-नि चाहिए थी, और उस दूसरे रिक्से मे घर चलना चाहिए था.

तेज हवा चल रही थी और बारिश कभी भी आ सकती थी. मैने पूछा ये कोन सा रास्ता है. वो बोला, तुझे घर जाना है ना, मैं तुझे घर ही ले जा रहा हू, ये शॉर्टकट है.

अचानक मुझे, अपने घर के पीछे का भाग दीखा और मेरी जान मे जान आई.

उसने रिक्शा, सीधे मेरी किचन की, खिड़की के पास ला कर, रोक दिया, और मैं सहम गयी कि, अब क्या होगा.

चारो तरफ अंधेरा था, और दूर-दूर तक कोई नही था. वाहा तो, दिन मे ही कोई नही होता था, रात मे तो किसी के होने का, सवाल ही नही था. यही कारण था कि, मैं घबरा रही थी.

पर मुझे ये भी सेकून था की अब मैं अपने घर के पास तो हू. मैं रिक्शे से उतर गई. वो भी उतर कर मेरे पास आ गया और बोला कि लो तुम्हारा घर आ गया.

मैने उस से पूछा कि कितने पैसे हुवे. वो बोला मुझे तेरे पैसे नही चाहिए. मैं जल्दी से जल्दी, वाहा से, चल देना चाहती थी. मैने 50 रुपये निकाले और कहा ये रख लो, पर उसने नही लिए. मैने सोचा यहा खड़े रहना ठीक नही है और, मैं अपने घर की तरफ चल दी.

चारो तरफ घास, फूस और लंबी झाड़िया थी, जो की अंधारे के कारण और भी भयनक लग रही थी.

अचानक, उसने आगे बढ़ कर, मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला कि, क्या तू थोड़ी देर रुक सकती है.

मैने कहा नही, और उसने मेरा हाथ छोड़ दिया, और बोला आराम से जा, मैं यही खड़ा हू, कोई डरने की ज़रूरत नही है.

मैं झाड़ियो से निकल कर, अपने घर के सामने आ गयी, और अपने घर का दरवाजा खोल कर, अंदर आ गयी.

मैने घर के अंदर आ कर चैन की साँस ली. मैने सोचा हे भगवान मैं आज बाल-बाल बच गयी.

मुझे इस बात का, सेकून था कि, बिल्लू ने वाहा अंधेरी झाड़ियो मे, मेरे साथ कोई ग़लत हरकत नही की, और मुझे चुपचाप घर आने दिया.

मैने पानी पिया, और सीधे हमारे बेडरूम मे, आ गयी. मैने देखा की, संजय सोए हुवे है. मैने कपड़े चेंज किए और किचन मे खाना बनाने लग गई.

तभी मुझे चिंटू का ख्याल आया. मैने सोचा आराम से खाना बनाने के बाद मैं चिंटू को मौसी के यहा से ले आउन्गि.

मैने बिल्लू का दिया खाना, जान-बुझ कर, उसके रिक्शे मे ही, छोड़ दिया था. मैने, रिक्से मे बैठे, बैठे ही ये सोच लिया था कि, ये किस्सा आज यही ख़तम कर दूँगी.

मुझे बहुत ही, गिल्टी फीलिंग हो रही थी कि, मैं कैसे इस लड़के की गंदी हरकते, और गंदी बाते, बर्दास्त कर रही थी. मुझे चुलु भर पानी मे, डूब जाना, चाहिए था.

मैने उसे एक बार भी ये अहसास नही कराया था कि मैं उसके साथ कुछ करूँगी या उसे कुछ दूँगी. वो खुद ही बेकार की अश्लील बाते कर रहा था. ये सब सोचते-सोचते खाना बन गया, पर संजय अभी, शो ही रहे थे. मैने उन्हे उठना, सही नही समझा.

मैं फ्रेश होने के लिए, नहाने चली गयी. मैं नहा कर, बाहर आई तो मुझे बारिश की आवाज़ सुनाई दी, मैने मन ही मन, चैन की साँस ली कि, शुक्र है बारिश पहले नही आई, वरना वो बिल्लू पागल हो जाता. मैं बारिश का नज़ारा लेने के लिए किचन की खिड़की मे आ गयी.

मैने बाहर देखा तो, हैरान रह गई कि, बिल्लू अभी भी, खिड़की के पास खड़ा है. मुझे देख कर, वो खिड़की के, और पास आ गया. मैने पूछा, क्या हुवा ? तुम अभी तक गये क्यो नही.

वो बोला, ऐसे मौसम मे, मैं घर जा कर, क्या करूँगा, घर जा कर भी, बार-बार तेरी याद आएगी, और मैं मूठ मार कर सो जा-उँगा, इससे अछा है मैं यही खड़ा रहू.

बाहर अंधेरा बहुत था, पर मैं उसे हल्का हल्का देख पा रही थी. मैने कहा पागल मत बनो, यहा से चले जाओ.

वो बोला, नही आज मैं यही रिक्शा पर सो

जा-उँगा.

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:58

मैं असमंजस मे पड़ गई कि क्या करू. अगर किशी ने इशे यहा देख लिया तो क्या होगा.

ये सच था कि, वाहा पीछे कोई नही आता जाता, पर अगर, बाइ चान्स किसी ने, उसे यहा मेरी खिड़की पर, नज़र गड़ाए देख लिया तो, मेरी बदनामी होगी.

मुझे उस पर भी, तरस आ रहा था कि बेचारा यहा मेरे लिए, यहा बारिश मे भीग रहा है. मैने सोचा इसे पीछे जा कर समझाती हू.

मैं बेडरूम मे गई, देखा संजय अभी भी सोए हुवे है. मैने सोचा, मैं जल्दी से उसे, यहा से भेज कर, वापस आ सकती हू. मैं चुपचाप छाता ले कर घर से बाहर आई, तो पाया की बारिश और तेज हो गयी थी.

ये एक तरह से अछा ही हुवा, अब मुझे कोई घर के पीछे जाते हुवे, नही देख सकता था, क्योंकि सभी लोग घरो मे थे.

कोई 2 मिनूट चलने के बाद, झाड़ियो से होते हुवे, मैं अपने घर के, पीछे आ गयी. मुझे यकीन था कि, मुझे किसी ने नही देखा.

मैने देखा कि, बिल्लू एक पेड़ के नीचे खड़े हुवे, मेरे किचन की तरफ देख रहा है.

मुझे देखते ही वो खिल उठा. वो भाग कर मेरे पास आया, और बोला अरे मैं तो, तुझे कब से, खिड़की मे बुला रहा था, और तुम यहा आ गयी.

मैने कहा, ये क्या पागल पन है ? वो बोला, आओ पहले उस पेड़ के नीचे चलो. मैं उसके पीछे,पीछे उस पेड़ के नीचे आ गयी जहा वो पहले खड़ा था.

मैने कहा, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है, मेरे पति किसी भी वक्त उठ सकते है, तुम प्लीज़ यहा से चले जाओ.

मैने कहा, देखो कितनी तेज बारिश हो रही है, ऐसी बारिश मे कोई बाहर रहता है क्या.

वो बोला, मैं तेरे जैसी मस्त आइटम को यहा छोड़ कर घर पर क्या करूँगा.

मैने कहा, देखो अब मज़ाक बंद करो. मैं शादी, शुदा हू, और मैं, अपने परिवार मे खुस हू. मेरा एक छोटा बेटा है. मेरी कुछ मर्यादाए है, जो मैं नही लाँघ सकती. तुम मुझ पर, वक्त बर्बाद मत करो, और किसी अपनी उमर की, लड़की से दोस्ती कर लो.

वो बोला, ये क्या मर्यादाओ की बात करती है, तू किस जमाने मे जी रही है, सेक्स मे कोई मर्यादा नही होती.

मैने कहा, सेक्स मे मर्यादा हो, या ना हो, पर मेरी जिंदगी मे मर्यादा है.

वो बोला, अगर तुझे मर्यादाए, इतनी ही प्यारी थी, तो तू रोज खिड़की मे आ कर, मेरा लंड क्यो देखती थी, और क्यो, मेरी सेक्सी बाते सुन-ती थी. मैं कुछ भी ना कह सकी, और शर्मिंदगी से, आँखे झुका ली.

मैने हिम्मत जुटा कर कहा, मैं भी एक इंसान हू, मुझसे ग़लती हो गई, पर अब मैं अपनी ग़लती सुधारना चाहती हू.

मैने उससे कहा, मैं आज के बाद तुम्हे नही मीलुन्गि और ना ही खिड़की पर से तुम्हे देखने आउन्गि, ये मेरा वादा है. तुम भी अब, सही रास्ते पर आ जाओ. अगर तुम्हे सेक्स की, इतनी ही भूक है, तो जल्दी से किसी लड़की से शादी कर लो.

वो तुरंत बोला, अरे मेरी उमर अभी शादी की नही है, और रही बात लड़कियो की मैने बहुत लड़कियो को ठोका है, मुझे सेक्स की नही तुम्हारी भूक है.

मैने कहा, तो फिर मुझे अफ़सोस है कि, तुम्हारी ये भूक, कभी नही बुझेगी. थोड़ी देर वाहा शांति छा गई, और हम दोनो कुछ नही बोले, मैने सोचा शायद वो मेरी बात समझ रहा है.

पर मैं ग़लत थी, उसने अचानक अपना दाया हाथ मेरे नितंबो पर रख दिया और उन्हे मसालने लगा. मेरे शरीर मे बिजली सी कोंध गयी.

मैने उसका हाथ, वाहा से फॉरन हटा दिया, और बोली, प्लीज़ ऐसा मत करो. मैं तुम्हे यहा समझाने आई हू, ना कि ये सब, बदतमीज़ी झेलने, आई हू. दुबारा ऐसा मत करना, वरना मैं चली जा-उंगी.

पर उस पर, मानो कोई असर नही हुवा, और मेरे नितंबो पर फिर से हाथ टीका दिया और उन्हे मसल्ने लगा. पहली बार किसी गैर मर्द के हाथ मेरे नितंबो पर थे, और मैं खुद पर शर्मिंदा हो रही थी.

मेरे नितंबो को, मसालते-मसालते, वो बोला, तू मुझे, कुछ मत दे, पर कम से कम, तेरी बॉडी को छू कर, महसूस तो कर लेने दे. मैं फिर यहा नही आ-उँगा. बस प्लीज़ एक बार मुझे तेरे शरीर को आछे से महसूस कर लेने दे.

मैं कुछ नही बोल पाई, और नज़रे झुका कर, खड़ी हो गयी.

मैं सोच मे पड़ गयी कि, क्या करू इस लड़के का, ये यहा से जाने को तैयार ही नही है. और मैं हर हाल मे उसे वाहा से दफ़ा करना चाहती थी.

मैने सोचा, ये मेरे नितंबो पर फिदा है, चलो इसे, उन्हे छू लेने दो. ये कहानी अगर, नितंबो से, ख़तम होती है तो, हरज ही क्या है, इसके बाद, मुझे मन की शांति तो मिलेगी.

मैने उसका हाथ, अपने नितंबो से हटाया, और बोली कि, यहा छूने से पहले, तुम वादा करो कि तुम, मेरे नितंबो को छूने, के बाद यहा से चले जा-ओगे, और फिर यहा नही आ-ओगे.

वो मेरी आँखो मे देख कर बोला, पक्का वादा, मैं तेरी गांद को, आछे से, महसूस करके, यहा से चला जा-उँगा, और दुबारा यहा नही आ-उँगा.

ये सब सुन कर, मेरा रोम-रोम कांप उठा. मैं असमंजस मे थी कि कही मई ग़लत तो नही कर रही. मैने अपने फ़ैसले को, सही ठहराने के लिए, तरक दिया कि मेरी, छोटी सी भूल की, शायद यही सज़ा है.


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:59

मैं सोच रही थी की, मुझे, कुछ ना कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.

वो बोला, मैं आराम से, तेरी गांद दबो-चुँगा, कोई जल्दी-जल्दी मत करना. मैने शरम और गिल्ट से अपनी नज़रे झुका ली और चुप-चाप खड़ी रही.

वो मेरे पीछे आ कर, खड़ा हो गया और अपने दोनो हाथो मे, मेरे नितंबो का एक-एक भाग थाम लिया और बोला, कब से तम्माना थी तेरी गांद पर हाथ फिराने की, कसम से तेरी गांद बड़ी कातिल है साली, जब भी तुझे मार्केट मे, देखता था, यही तम्माना होती थी कि, तेरी गांद को हाथो मे थाम कर, देखु कि, कैसी मुलायम है तेरी गांद. मैं तेरी गांद छूने को, तरसता रहता था, और तू अपनी गांद छलकती हुई चलती जाती थी. तू बहुत कमिनि चीज है.

मैने उसे कहा प्लीज़ कुछ मत बोलो मुझे शरम आती है, बस चुप-चाप छूते रहो. पर उसने मेरी बात नही मानी. वो तरह तरह से मेरे नितंबो को छू रहा था और गंदी-गंदी बाते बोल रहा था.

मैं ये सब सुन कर शरम से लाल हो गयी , और चुप-चाप नज़रे झुकाए वाहा खड़ी रही ताकि वो मेरे नितंबो से खेल कर, खुस हो कर, अपना जी भर कर, वाहा से हमेसा के लिए चला जाए.

उसने अचानक, बड़े ज़ोर से मेरे नितंबो को दबो-चा और मेरे मूह से अचानक निकल गया, आई… आराम से दबो-चो, दर्द होता है.

मैं वाहा चुपचाप, शर्मिंदगी से, नज़रे झुकाए खड़ी रही, और वो बड़ी बेशर्मी से मेरे, नितंबो से खेलता रहा.

मैं घबरा रही थी कि, कही किसी ने कुछ, देख लिया तो मेरा क्या होगा, मेरा परिवार बीखर जाएगा.

ये तो अछा था कि, बारिश बहुत तेज, हो रही थी, आस पास के सभी लोग घरो मे थे. मैं सोच रही थी कि, ये बदमास लड़का कब रुकेगा.

चारो तरफ अंधेरा था, जिस से मुझे बहुत डर लग रहा था. सुक्र है, मैं अपने किचन की, लाइट जला कर छोड़ आई थी. खिड़की से रोस्नी जहा हम खड़े थे वाहा तक पहुँच रही थी. ज़्यादा तो नही थी, पर मेरा डर कम करने को काफ़ी थी.

अचानक मैं चीख पड़ी ‘आईईईईई’, ये क्या किया. बदमास बिल्लू ने, मेरे नितंबो के दाए भाग पर काट खाया था. मैने कहा, बिल्लू दुबारा ऐसा मत करना. वो बोला, सॉरी, ग़लती से दाँत लग गये.

अचानक अपने सामने मुझे, झाड़िया हिलती हुई दीखाई दी. मेरा ये सोच कर, बुरा हाल हो गया कि, कही कोई, यहा आ तो नही रहा.

पर मैने सोचा इस बारिश मे यहा झाड़ियो मे किसी का क्या काम. मैने बिल्लू को कहा, बिल्लू रुक जाओ, वाहा झाड़ियो मे कोई है.

बारिश की आवाज़ मे शायद उसने कुछ नही सुना. तभी एक कुत्ता, झाड़ियो से उभरा, और हमे वाहा देख कर रुक गया.

मुझे कुत्ते को देख कर, चैन मिला क़ि सुक्र है वाहा कोई और नही था, पर मुझे हँसी आ गयी कि कुत्ता सामने खड़ा है और ये बिल्लू खुद कुत्ते की तरह मुझे काट रहा है.

वह कुत्ता, हुमे घूरते हुवे, वाहा से आगे गुजर गया. मैं डर रही थी कि कही वो हमारी तरफ ना, आ जाए.

बिल्लू अपने काम मे लगा हुवा था. अचानक वह रुक गया, और मैने महसूस किया कि, उसके हाथ मेरे नितंबो पर नही है. मैने सोचा चलो काम ख़तम हुवा, अब मैं घर जा सकती हू.

पर मैने, पीछे मूड कर देखा तो, चोंक गयी. बिल्लू अपने दोनो हाथो से, अपने पॅंट की, ज़िप खोल रहा था.

जैसे ही, मैने पीछे देखा, उसने मेरी तरफ बड़े ही, वहसी तरीके, से देखा. मैं सहम गयी, और इस से पहले कि, मुझे उसका लिंग दीखाई दे, मैने अपनी गर्दन वापस सामने घुमा ली.

मैं उसका लिंग नही देखना चाहती थी. उसे देखने के कारण ही तो मैं इस मुसीबत मे पड़ गयी थी.

मुझे खुद पर, शरम आ रही थी कि, मैं अपने ही घर के पीछे, यहा झाड़ियो मे, इस लड़के के हाथो का खिलोना बने खड़ी थी. पर मुझे संतोस था कि आज ये कहानी यही ख़तम होगी.

मैने बिल्लू को कहा, बिल्लू देखो, अब बहुत हो गया. मैं काफ़ी देर से यहा खड़ी हू. मैं घर से ईतनी देर तक, बाहर नही रह सकती, मेरे पति उठ गये तो क्या सोचेंगे.

पर वो कुछ नही बोला. एक मिनूट हो गया, और मुझे अपने नितंबो पर, कुछ महसूस नही हुवा. मैने पीछे मूड कर देखा, तो वो अभी भी अपनी पॅंट की ज़िप खोलने मे लगा था.

उसकी ज़िप शायद अटक गयी थी. मैं सोच रही थी कि चलो अछा हुवा.

वो बोला, मेरी मदद करो ना, देखना ये अटक गयी है. वह परेशान दीख रहा था. मैने कोई जवाब नही दीया.

मैने कहा बिल्लू, अब मैं जा रही हू, और वो बोला एक मिनूट-एक मिनूट, बस खुल गयी. मैने तुरंत अपनी गर्दन आगे घुमा ली.

मैने बिल्लू से कहा, प्लीज़ इसे, पॅंट के अंदर ही रखो.

उसने फिर से, दोनो हाथो से, मेरे नितंबो को थमा, और मेरे नितंबो के बीच अपना लिंग लगा कर धक्के मारने लगा.


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