मैने कहा, बिल्लू ये ग़लत बात है, बात सिर्फ़ हाथो से
छूने की हुई थी, अपने लिंग को मुझ से दूर रखो.
पर वो नही रुका और धक्के लगाता रहा. उसका लिंग, मेरे नितंबो मे, चुभता हुवा महसूस हो रहा था.
वह बोला, तू भी क्या बात करती है, गांद को क्या, लंड के बीना, कोई महसूस कर सकता है. ये कह कर, उसने मेरे नितंबो से, अपने हाथ हटा कर, मुझे पीछे से, बाहो मे भर लिया, और नितंबो पर लिंग लगा कर धक्के मारने लगा. वो बोला, मैं तुझे आछे से, महसूस कर के ही, यहा से जाउन्गा.
मैं ये सुन कर पानी, पानी हो गयी. मेरी योनि से पानी की नादिया बह नीकली.
फीर उसने, अचानक अपने दोनो हाथो से, मेरा नाडा थाम लिया, और उसे खोलने लगा, मैने उसे डाँट दिया, बिल्लू सिर्फ़ कपड़ो के उपर-उपर से करो, और उसके हाथ अपने नाडे से दूर झटक दीए.
मैने सोचा, ये लड़का कितना चालक है, आगे ही आगे बढ़ता जा रहा है. मैं अब उसकी बाँहो मे थी और वो पीछे से धक्के मारे जा रहा था.
मैने सोचा, ईतना बहुत है. बल्कि मुझे अहसास हो रहा था क़ी, ये कुछ ज़्यादा ही, हो रहा है, और मुझे अब इशे दफ़ा कर के, अपने परिवार मे लॉट जाना चाहिए. मैने उसे अब यही, रोकने का फ़ैसला कीया और बोली, बस बिल्लू रुक जाओ, मैं अब जा रही हू.
वो बोला, अरे रूको ना, अभी तो, मज़ा आना, शुरू हुवा है.
मैने कहा, बस चुप हो जाओ ,छोड़ो मुझे और जाने दो.
वह बोला क्या तुम्हे मज़ा नही आ रहा.
मैने उससे कहा, अपने हाथ हटाओ, मैं यहा अपने मज़े के लिए नही खड़ी हू.
वो बोला, पर फिर भी तुझे मज़ा तो आ रहा होगा. मैने कहा, अगर तुमने, एक और गंदी बात बोली, तो मैं पथर उठा कर तुम्हारा सर फोड़ दूँगी.
उसने मुझे छोड़ दिया और बोला आ फोड़ दे सर.
मैं थोड़ी शांत हुई, और वो फिर से, मेरे नितंबो पर लिंग मसल्ने लगा.
मैं घूमी, और बोली की मैं अब जा रही हू. घूमते ही, मेरी नज़र उशके लिंग पर गयी, वह पूरा तना हुवा था, और ईतने करीब से, और भी ज़्यादा बड़ा लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई काला नाग मेरी तरफ फन उठाए खड़ा है, मैं उसे ईतने करीब से देख कर डर गयी.
उसने मुझे, उसके लिंग को घूरते हुवे, देख लिया और बोला, अछा लगता है ना तुझे ये.
मैने शरम से, नज़रे झुका ली, और कुछ नही बोली.
उसने मेरा हाथ पकड़ा, और अपने लिंग की तरफ खींचते हुवे बोला, ले, पकड़ ले, शरमाती क्यो है, ये पूरा का पूरा, तेरा ही है. मैने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया.
मेरे रोम-रोम मे बीजली की ल़हेर दौड़ गयी.
मैं सोच रही थी कि, आख़िर इसका, ईतना मोटा और लंबा क्यो है.
अब तक मैने सिर्फ़ अपने पति का ही देखा था, और आज उसे ईतने करीब से देख कर लग रहा था के संजय का शायद इस से आधा ही होगा.
मैने सोचा, मैं संजय से, लिंग के साइज़ के बारे मे बात करूँगी, वो डॉक्टर है, उन्हे कुछ ज़रूर पता होगा.
मैं सोच मे, डूबी हुई थी, और बिल्लू कब मेरे नज़दीक आ गया मुझे पता ही नही चला.
उसका लिंग, मेरी योनि से, टकराने ही वाला था कि, मई तुरंत पीछे हट गयी.
मैने खुद को, कोसा की हे भगवान, मैं ये कैसी बाते सोच रही थी. मुझे लगा इश्का लिंग बार बार मुझे फसा देता है.
मैने अब बिल्लू की तरफ देखा और बोली, बिल्लू अब बहुत हो गया. प्लीज़ अब इसे पॅंट मे वापस डाल लो मुझे कुछ-कुछ होता है. वो बोला क्या होता है.
मैने उसे डाँटते हुवे कहा, तुम नही समझ सकते. मैने अपनी खिड़की की और देखा और उसे कोसने लगी.
मैं मूड कर चलने लगी, पर उसने, आगे बढ़ कर मेरा हाथ थम लिया. वो बोला एक मिनूट रुक तो.
मैने कहा ठीक है, पहले उसे पॅंट मे डालो.
उसने अपना लिंग पॅंट मे वापस डाल लीया और बोला, मैं बहुत खुस हू, मुझे बहुत-बहुत मज़ा आया. ईतना मज़ा तो किसी लड़की की चूत ले कर भी नही आया था, जितना मज़ा तेरी गांद से खेल कर आ गया.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
मैं शरमा उठी, और नज़रे झुका कर बोली, प्लीज़ ऐसी बाते मत करो. पर वो बोला, नही पर ये सच है.
मैने कहा, मैं चलती हू, तुम अब यहा से चले जाओ, और अपना वादा मत भूलना कि, तुम अब यहा नही आ-ओगे.
वह बोला, ठीक है, मैं जेया रहा हू, तेरे यहा अब नही आउन्गा, पर अगर तुझे कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो, मदन एलेक्ट्रॉनिक्स की, शॉप पर चली आना, वो तेरे ब्यूटी पार्लर के बिल्कुल साथ मे ही है.
मैने कहा, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नही है, मैं अपने पति के साथ खुस हू. वो बोला, पर तू अभी, मेरा लंड तो, ऐसे देख रही थी जैसे की, तुझे कोई कमी हो.
मैं बोली, बिल्लू चुप कर, मुझे अपनी जिंदगी मे कोई कमी नही है, तुम अब चले जाओ और बाते मत बनाओ.
वो बोला, ठीक है मैं अब चलता हू. वह मेरे कानो के पास, अपना मूह लाकर बोला, थॅंकआइयू ऋतु, तेरी गांद मुझे हमेशा याद रहेगी.
मुझे अब गुस्सा आ गया, और बोली कि तुम अब जाते हो या नही. वह बोला सॉरी बाबा, मैं जा रहा हू. वह अपने, रिक्शे की और, बढ़ गया और मैं छाता उठा कर अपने घर की और चल दी.
मैं पूरी तरह भीग गयी थी. मैने सोचा, अगर संजय देखेंगे, तो पूछेंगे की, छाता होते हुवे भी कैसे भीग गयी. मैं डरते, डरते, झाड़ियो को, पार करके, अपने घर मे आ गयी.
मैने चुपके से, बेडरूम मे झाँक कर देखा तो, पाया कि, संजय अभी भी सो रहे थे. मैने फॉरन, गीले कपड़े उतारे, और नहाने चली गयी. मैने उन कपड़ो को अख़बार मे लपेट कर कूड़ेदान मे डाल दिया. मैं आज के दिन की कोई याद अपने साथ नही रखना चाहती थी.
मैं नहाने के, बाद किचन मे आकर, डिन्नर सर्व करने की तैयारी करने लगी. अचानक मुझे, अपने नितंबो पर, हाथ की छुवन महसूस हुई, और मेरे होंटो तक तुरंत आया बिल्लू, पर मैने खुद को ये बोलने से रोक लिया, क्योकि मैं समझ गयी थी कि संजय मेरे पीछे खड़े है, और उनका हाथ मेरे नितंबो पर है.
मैने पूछा, आप कब उठे, वो बोले, बस अभी उठा हू, और मेरी गर्दन को चूम लिया. मैं पछता रही थी कि काश आज का दिन मेरी जिंदगी मे ना होता.
संजय बोले, कब आई पार्लर से, मैने डरते, डरते जवाब दिया यही , यही कोई एक घंटा पहले. उन्होने पूछा चिंटू कहा है, मैने कहा मौसी के यहा है, हम अभी उसे लेने चलेंगे.
हम दोनो छाता लेकर, चिंटू को लेने निकल पड़े. संजय बोले आज मौआसम बहुत बढ़िया है ना, मैने बड़ी मायूसी से, जवाब दिया हा है तो सही.
घर वापस आ कर, हमने खाना खाया और मैं सब काम कर के सोने के लिए लेट गयी. संजय बाहर बारिश का मज़ा ले रहे थे.
अचानक वो कमरे मे आए, और मुझ से लिपट गये, और मुझे बेतहासा चूमने लगे. वो बोले, आज मौसम ईतना अछा है, और तुम सो रही हो. मैने मन ही मन कहा ये, मौसम क्या आज मेरी जान लेगा.
उन्होने जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतारे और मुझे यहा वाहा चूमने लगे. उन्होने मुझे उल्टा घुमाया और मेरी पीठ से लेकर टाँगो तक चूमने लगे.
अचानक वो बोले, अरे ये तुम्हारे चूतड़ पर लाल निशान क्यो है. मेरे तो, पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी. मैने अपने कपड़े तो, फेंक दिए, पर ये भूल गयी कि, बिल्लू ने मेरे नितंबो पर काटा था. मुझे ध्यान ही, नही रहा कि वाहा, उसके काटे का निसान भी हो सकता है.
मैने मन ही मन मे, कहा, कुत्ता कही का और सोचने लगी कि वो बदमास लड़का चला तो गया पर जाते-जाते मेरे नितंबो पर अपना निशान छोड़ गया.
मैं सोच रही थी कि क्या जवाब दू संजय को. मुझे खामोस देख कर वो फिर से बोले की बताओ ना ये निशान कैसा है.
मैने डरते डरते कहा क..क…कुछ नही, मैं आज बाथरूम मे फिसल गयी थी, सायड उसका निशान होगा.
उन्होने कहा कि, मुझे बताना था ना, और आगे बढ़ कर उस निशान को चूम लिया और बोले ये अब ठीक हो जाएगा.
वो उसी पोज़िशन मे, मुझे तैयार करने लगे, और मेरी योनि को छू कर बोले, अरे आज तुम कुछ ज़्यादा ही गीली हो. मेरे पास इसका कोई जवाब नही था.
वो मुझ मे, समा गये और मैं खोती चली गयी. जैसे ही वो मुझ मे समाए, मेरे कानो मे बिल्लू के वो बोल गूँज गये कि, आज तेरा पति तेरी ज़रूर लेगा. मैं हैरान थी कि वो बदमास मेरे दीमाग मे भी अपनी छाप छोड़ गया है. फिर मैने सब कुछ भुला दीया और संजय के प्यार मे डूब गयी.
मैने कहा, मैं चलती हू, तुम अब यहा से चले जाओ, और अपना वादा मत भूलना कि, तुम अब यहा नही आ-ओगे.
वह बोला, ठीक है, मैं जेया रहा हू, तेरे यहा अब नही आउन्गा, पर अगर तुझे कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो, मदन एलेक्ट्रॉनिक्स की, शॉप पर चली आना, वो तेरे ब्यूटी पार्लर के बिल्कुल साथ मे ही है.
मैने कहा, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नही है, मैं अपने पति के साथ खुस हू. वो बोला, पर तू अभी, मेरा लंड तो, ऐसे देख रही थी जैसे की, तुझे कोई कमी हो.
मैं बोली, बिल्लू चुप कर, मुझे अपनी जिंदगी मे कोई कमी नही है, तुम अब चले जाओ और बाते मत बनाओ.
वो बोला, ठीक है मैं अब चलता हू. वह मेरे कानो के पास, अपना मूह लाकर बोला, थॅंकआइयू ऋतु, तेरी गांद मुझे हमेशा याद रहेगी.
मुझे अब गुस्सा आ गया, और बोली कि तुम अब जाते हो या नही. वह बोला सॉरी बाबा, मैं जा रहा हू. वह अपने, रिक्शे की और, बढ़ गया और मैं छाता उठा कर अपने घर की और चल दी.
मैं पूरी तरह भीग गयी थी. मैने सोचा, अगर संजय देखेंगे, तो पूछेंगे की, छाता होते हुवे भी कैसे भीग गयी. मैं डरते, डरते, झाड़ियो को, पार करके, अपने घर मे आ गयी.
मैने चुपके से, बेडरूम मे झाँक कर देखा तो, पाया कि, संजय अभी भी सो रहे थे. मैने फॉरन, गीले कपड़े उतारे, और नहाने चली गयी. मैने उन कपड़ो को अख़बार मे लपेट कर कूड़ेदान मे डाल दिया. मैं आज के दिन की कोई याद अपने साथ नही रखना चाहती थी.
मैं नहाने के, बाद किचन मे आकर, डिन्नर सर्व करने की तैयारी करने लगी. अचानक मुझे, अपने नितंबो पर, हाथ की छुवन महसूस हुई, और मेरे होंटो तक तुरंत आया बिल्लू, पर मैने खुद को ये बोलने से रोक लिया, क्योकि मैं समझ गयी थी कि संजय मेरे पीछे खड़े है, और उनका हाथ मेरे नितंबो पर है.
मैने पूछा, आप कब उठे, वो बोले, बस अभी उठा हू, और मेरी गर्दन को चूम लिया. मैं पछता रही थी कि काश आज का दिन मेरी जिंदगी मे ना होता.
संजय बोले, कब आई पार्लर से, मैने डरते, डरते जवाब दिया यही , यही कोई एक घंटा पहले. उन्होने पूछा चिंटू कहा है, मैने कहा मौसी के यहा है, हम अभी उसे लेने चलेंगे.
हम दोनो छाता लेकर, चिंटू को लेने निकल पड़े. संजय बोले आज मौआसम बहुत बढ़िया है ना, मैने बड़ी मायूसी से, जवाब दिया हा है तो सही.
घर वापस आ कर, हमने खाना खाया और मैं सब काम कर के सोने के लिए लेट गयी. संजय बाहर बारिश का मज़ा ले रहे थे.
अचानक वो कमरे मे आए, और मुझ से लिपट गये, और मुझे बेतहासा चूमने लगे. वो बोले, आज मौसम ईतना अछा है, और तुम सो रही हो. मैने मन ही मन कहा ये, मौसम क्या आज मेरी जान लेगा.
उन्होने जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतारे और मुझे यहा वाहा चूमने लगे. उन्होने मुझे उल्टा घुमाया और मेरी पीठ से लेकर टाँगो तक चूमने लगे.
अचानक वो बोले, अरे ये तुम्हारे चूतड़ पर लाल निशान क्यो है. मेरे तो, पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी. मैने अपने कपड़े तो, फेंक दिए, पर ये भूल गयी कि, बिल्लू ने मेरे नितंबो पर काटा था. मुझे ध्यान ही, नही रहा कि वाहा, उसके काटे का निसान भी हो सकता है.
मैने मन ही मन मे, कहा, कुत्ता कही का और सोचने लगी कि वो बदमास लड़का चला तो गया पर जाते-जाते मेरे नितंबो पर अपना निशान छोड़ गया.
मैं सोच रही थी कि क्या जवाब दू संजय को. मुझे खामोस देख कर वो फिर से बोले की बताओ ना ये निशान कैसा है.
मैने डरते डरते कहा क..क…कुछ नही, मैं आज बाथरूम मे फिसल गयी थी, सायड उसका निशान होगा.
उन्होने कहा कि, मुझे बताना था ना, और आगे बढ़ कर उस निशान को चूम लिया और बोले ये अब ठीक हो जाएगा.
वो उसी पोज़िशन मे, मुझे तैयार करने लगे, और मेरी योनि को छू कर बोले, अरे आज तुम कुछ ज़्यादा ही गीली हो. मेरे पास इसका कोई जवाब नही था.
वो मुझ मे, समा गये और मैं खोती चली गयी. जैसे ही वो मुझ मे समाए, मेरे कानो मे बिल्लू के वो बोल गूँज गये कि, आज तेरा पति तेरी ज़रूर लेगा. मैं हैरान थी कि वो बदमास मेरे दीमाग मे भी अपनी छाप छोड़ गया है. फिर मैने सब कुछ भुला दीया और संजय के प्यार मे डूब गयी.
Re: छोटी सी भूल
“मैं हरी, हरी घास पर लेटी हुई हू. मेरे शरीर पर, कोई कपड़ा नही है. चारो तरफ, घास, फूस और झाड़िया है. मेरी टाँगे हवा मे उपर उठी हुई है. बिल्लू ने मेरी टाँगो को अपने शीने पर थाम रखा है. बिल्लू मुझ मे, समाया हुवा है और जनवरो की तरह मुज़मे धक्के लगा रहा है. बिल्लू गंदी, गंदी बाते बोल रहा है, जिन्हे सुन कर मेरा सर फटा जा रहा है. मेरे चहरे पर अजीब सी गर्मी है. मैं ज़ोर से चिल्लाती हू “नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई”
और मैं उठ कर अपने बेड पर बैठ जाती हू.
संजय ने, तुरंत उठ कर, मेरे कंधो पर हाथ रखा, और पूछा, कोई बुरा सपना देखा क्या.
मैने कहा, हा बहुत ही बुरा और भयनक सपना था. उसने पूछा, क्या था सपने मे. और मैं चुप हो गयी. बताती भी, तो क्या बताती.
मैने होश संभाला, और कहा अब कुछ याद नही आ रहा. मैने घड़ी मे, वक्त देखा, अभी बस रात के 1:30 ही बजे थे. मैने चैन की साँस ली कि, सुक्र है, ये सपना सच नही होगा, क्योकि सुबह के सपने ही सच होते है.
मैं पानी पी कर वापस लेट गयी और संजय को कहा, सो जाओ, कोई चिंता की बात नही है.
पर मैं सोच मे थी कि, ये बिल्लू क्या, मेरी जींदगी का इतना बड़ा हिस्सा बन गया है कि अब मुझे उसके सपने भी आने लगे है.
मैं ध्यान से सपने का अनॅलिसिस करने लगी. सपने वाली जगह पता नही कोन सी जगह थी. चारो तरफ झाड़िया और पेड़ (ट्री) थे, लगता था कि किसी जंगल का द्रिश्य है.
मैं ये जानना चाहती थी कि ये सपना मुझे क्यो आया. पर कुछ नतीजा नही निकल पाया. अचानक मैने अपनी पॅंटी मे हाथ डाल कर देखा तो पाया की मैं वाहा पर गीली थी. मैं हैरान रह गयी और खुद पर शर्मिंदा हो गयी.
मैं सोच रही थी कि, वो कमीना बिल्लू, मुझे ये कैसी अजीब शी परेशानी दे गया है. पहले उसने, मेरे नितंबो पर अपने दांतो के निशान छोड़ दिए, जिशे संजय ने देख लिया, और मैं बाल-बाल बची.
फिर उसकी कही बाते मेरे दीमाग मे घूम रही थी, और अब मुझे ये इतना गंदा सपना आ गया.
ये बिल्लू आख़िर मेरी जींदगी से दफ़ा क्यो नही होता. मैने सोचा ताज़ा,ताज़ा बात है. शायद धीरे, धीरे सब ठीक हो जाएगा.
मैं सुबह 7 बजे उठी, और चैन की साँस ली कि चलो कल का भयानक दिन अब बीत गया, आज एक नया दिन है और एक नयी सुरुवात है.
संजय क्लिनिक चले गये और चिंटू स्कूल चला गया. मैं घर के काम मे लग गयी.
सुबह के 11 बज चुके थे. जब मैं किचन मे पहुँची तो सोचा की अब इस खिड़की को अलविदा बोल देती हू और मैने फ़ैसला किया कि मैं कम से कम खिड़की की ओर जाउन्गि.
2 कब बज गये पता ही नही चला. मुझे ख्याल आया कि मुझे बाहर देखना तो चाहिए कि, वह अब आता है कि नही, और यहा ना आने का, अपना वादा, निभाता है कि नही.
मैं खिड़की मे आ गयी और चारो तरफ नज़रे घुमा कर देखा, पर वाहा कोई नही था.
मेरे मन को तसल्ली मिली कि सुक्र है, ये कहानी यही ख़तम हुई.
मैं वापस अपने काम मे लग गयी, पर बार बार बाहर देखने के लिए खिड़की की और आने लगी. पर मुझे कोई नही दिखा.
मैने गहरी साँस ली और सोचा, ठीक ही तो है, ये सब यही ख़तम होना चाहिए था और मैं सोचने लगी कि बिल्लू ने अपना वादा निभाया है.
काई दिन बीत गये और मुझे यकीन हो गया कि वो अब दुबारा यहा नही आएगा.
अब मैं, खिड़की से झाँकना लग भग बंद कर चुकी थी. कभी अगर, बाहर देखा भी तो पाया की वाहा कोई नही है.
एक दिन, संजय शाम को जल्दी घर आ गये और बोले, चलो आज मूवी देखने चलते है. और मैं फॉरन सज-संवर कर तैयार हो गयी. मुझे मूवीस देखना, ख़ासकर थियेटर मे बहुत अछा लगता है.
मुझे पानी की प्यास लगी और मैं किचन मे आ गयी. मैने एक बॉटल निकाली और एक गिलास मे पानी डाला. पानी का गिलास ले कर मैं अचानक खिड़की की और मूड गयी.
मैने बहेर देखा तो पानी पीना भूल गयी. खिड़की के बाहर बिल्लू खड़ा था.
मैं सोच मे डूब गयी कि अब क्या करू ?
उसे बहुत दीनो बाद, देख कर मेरे मन मे अजीब सी बेचानी हो रही थी.
मैं हाथ मे पानी का गिलास लिए खड़ी रही और उसे देखती रही.
वह खिड़की के पास आ गया और बोला कैसी है तू.
इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती, अंदर से संजय की आवाज़ आई, ऋतु कहा हो, हम लेट हो रहे है.
और मैं उठ कर अपने बेड पर बैठ जाती हू.
संजय ने, तुरंत उठ कर, मेरे कंधो पर हाथ रखा, और पूछा, कोई बुरा सपना देखा क्या.
मैने कहा, हा बहुत ही बुरा और भयनक सपना था. उसने पूछा, क्या था सपने मे. और मैं चुप हो गयी. बताती भी, तो क्या बताती.
मैने होश संभाला, और कहा अब कुछ याद नही आ रहा. मैने घड़ी मे, वक्त देखा, अभी बस रात के 1:30 ही बजे थे. मैने चैन की साँस ली कि, सुक्र है, ये सपना सच नही होगा, क्योकि सुबह के सपने ही सच होते है.
मैं पानी पी कर वापस लेट गयी और संजय को कहा, सो जाओ, कोई चिंता की बात नही है.
पर मैं सोच मे थी कि, ये बिल्लू क्या, मेरी जींदगी का इतना बड़ा हिस्सा बन गया है कि अब मुझे उसके सपने भी आने लगे है.
मैं ध्यान से सपने का अनॅलिसिस करने लगी. सपने वाली जगह पता नही कोन सी जगह थी. चारो तरफ झाड़िया और पेड़ (ट्री) थे, लगता था कि किसी जंगल का द्रिश्य है.
मैं ये जानना चाहती थी कि ये सपना मुझे क्यो आया. पर कुछ नतीजा नही निकल पाया. अचानक मैने अपनी पॅंटी मे हाथ डाल कर देखा तो पाया की मैं वाहा पर गीली थी. मैं हैरान रह गयी और खुद पर शर्मिंदा हो गयी.
मैं सोच रही थी कि, वो कमीना बिल्लू, मुझे ये कैसी अजीब शी परेशानी दे गया है. पहले उसने, मेरे नितंबो पर अपने दांतो के निशान छोड़ दिए, जिशे संजय ने देख लिया, और मैं बाल-बाल बची.
फिर उसकी कही बाते मेरे दीमाग मे घूम रही थी, और अब मुझे ये इतना गंदा सपना आ गया.
ये बिल्लू आख़िर मेरी जींदगी से दफ़ा क्यो नही होता. मैने सोचा ताज़ा,ताज़ा बात है. शायद धीरे, धीरे सब ठीक हो जाएगा.
मैं सुबह 7 बजे उठी, और चैन की साँस ली कि चलो कल का भयानक दिन अब बीत गया, आज एक नया दिन है और एक नयी सुरुवात है.
संजय क्लिनिक चले गये और चिंटू स्कूल चला गया. मैं घर के काम मे लग गयी.
सुबह के 11 बज चुके थे. जब मैं किचन मे पहुँची तो सोचा की अब इस खिड़की को अलविदा बोल देती हू और मैने फ़ैसला किया कि मैं कम से कम खिड़की की ओर जाउन्गि.
2 कब बज गये पता ही नही चला. मुझे ख्याल आया कि मुझे बाहर देखना तो चाहिए कि, वह अब आता है कि नही, और यहा ना आने का, अपना वादा, निभाता है कि नही.
मैं खिड़की मे आ गयी और चारो तरफ नज़रे घुमा कर देखा, पर वाहा कोई नही था.
मेरे मन को तसल्ली मिली कि सुक्र है, ये कहानी यही ख़तम हुई.
मैं वापस अपने काम मे लग गयी, पर बार बार बाहर देखने के लिए खिड़की की और आने लगी. पर मुझे कोई नही दिखा.
मैने गहरी साँस ली और सोचा, ठीक ही तो है, ये सब यही ख़तम होना चाहिए था और मैं सोचने लगी कि बिल्लू ने अपना वादा निभाया है.
काई दिन बीत गये और मुझे यकीन हो गया कि वो अब दुबारा यहा नही आएगा.
अब मैं, खिड़की से झाँकना लग भग बंद कर चुकी थी. कभी अगर, बाहर देखा भी तो पाया की वाहा कोई नही है.
एक दिन, संजय शाम को जल्दी घर आ गये और बोले, चलो आज मूवी देखने चलते है. और मैं फॉरन सज-संवर कर तैयार हो गयी. मुझे मूवीस देखना, ख़ासकर थियेटर मे बहुत अछा लगता है.
मुझे पानी की प्यास लगी और मैं किचन मे आ गयी. मैने एक बॉटल निकाली और एक गिलास मे पानी डाला. पानी का गिलास ले कर मैं अचानक खिड़की की और मूड गयी.
मैने बहेर देखा तो पानी पीना भूल गयी. खिड़की के बाहर बिल्लू खड़ा था.
मैं सोच मे डूब गयी कि अब क्या करू ?
उसे बहुत दीनो बाद, देख कर मेरे मन मे अजीब सी बेचानी हो रही थी.
मैं हाथ मे पानी का गिलास लिए खड़ी रही और उसे देखती रही.
वह खिड़की के पास आ गया और बोला कैसी है तू.
इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती, अंदर से संजय की आवाज़ आई, ऋतु कहा हो, हम लेट हो रहे है.