*-*-*-*-*-*-*-*-* "गोआ में खुशी मिली"*-*-*-*-*-*-*-*-*
हाय दोस्तो, मेरा नाम रोहित है और मैं 35 साल का अविवाहित हूँ मगर मेरी सेहत बहुत ही अच्छी है और मैं दिखने में भी ठीकठाक हूँ। शायद अविवाहित होने का ही यह एक फ़ायदा है। मैं इस समय गोआ में एक थ्री स्टार होटेल में मैनेजर के पद पर काम कर रहा हूँ।
मैं आपको एक सच्ची आपबीती सुनाता हूँ। मेरे होटेल में मुम्बई से एक सात लोगों के ग्रुप की बुकिंग थी जिसमें चार लड़कियाँ और तीन लड़के थे यानि के तीन जोड़े शादीशुदा थे और एक अकेली थी, उसके साथ कोई नहीं था। उनके चार कमरे बुक थे।
मैंने उन चारों कमरों में उन्हें चेक-इन करवा दिया और अपने काम में लग गया।
दोस्तो, लोग गोआ में मस्ती करने आते हैं और मेरा काम है कि होटल में किसी मेहमान को कोई तकलीफ़ ना हो।
मैं यों ही होटल में राऊन्ड मार कर देख़ रहा था कि सब अपना काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं कि तभी मैंने देखा कि वो लड़की जो उस ग्रुप के साथ थी, वो स्वीमिंग पूल के एक तरफ़ खड़ी अपने दोस्तों को मजे करते हुए गुमसुम सी देख रही थी।
मैं यों ही उसके पास गया और उसे गुड मोर्निंग बोल कर उससे पूछा- आपको होटल में कोइ असुविधा तो नहीं है?
तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।
तो मैंने कहा- मैडम, मैं इस होटल का मैनेजर हूँ, मेरा नाम रोहित है, अगर आप को किसी भी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बोलें, मुझे आपकी मदद करने में बहुत खुशी होगी।
उसने मेरी तरफ़ एकदम से देखा और बोली- ठीक है, मेरे पति को यहाँ ला दो ताकि मैं भी मजे कर सकूँ।
और रोते हुए वो अपने कमरे की तरफ़ चली गई।
मैं उसकी तरफ़ देखता ही रह गया कि मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया। बाद में उनके ग्रुप के लोगों से पता चला कि उसका नाम सोनल (काल्पनिक नाम) है वो एक विधवा है और उसके पति को गुजरे एक साल और कुछ महीने ही हुए हैं।
मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि उसकी उम्र 30-32 साल होगी और देखने में भी खूबसूरत थी। मैंने ऊपर वाले को बहुत गाली दी और अपने काम में लग गया।
दूसरे दिन वो मुझे होटल के रेस्तराँ में मिल गई, वह नाश्ता कर रही थी। मैंने उसे दूर से ही स्माइल दी और नजदीक जाकर पूछा- आप अकेली नाश्ता कर रही हैं, आपके सभी दोस्त कहाँ गये?
तो उसने बताया कि सब "कलनगुट बीच" पर गये हैं पर मैं नहीं गई।
मैंने कहा- आपको जाना चाहिये था।
तो उसने कहा- मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिये नहीं गई।
मैंने बोला- आपको खुश रहना चाहिए और आप जब तक गोआ में हैं उसमें जितना हो सके, खुश रहने की कोशिश करनी चाहिये। किसी की याद में दुखी होने के बजाय जो साथ है उनके साथ खुश रहो और याद रखो कि यह दुनिया बहुत खूबसूरत है।
और मैं वहाँ से चला आया, मैंने सोचा कि अगर मैंने कुछ ज्यादा बोला तो कहीं वो फिर ना रोने लगे।
शाम को मेरी छुट्टी थी, मैंने नाईट मार्केट (ग़ोआ का नाईट में लगने वाला बाजार जिसमें ज्यादातर विदेशी जाते हैं) जाने की योजना बनाई क्योंकि मुझे वहाँ बहुत मजा आता है।
मैं बाईक से निकल ही रहा था कि सोनल मेरे सामने आ गई और पूछा- कहीं जा रहे हो?
तो मैंने उसे बताया कि मैं कहाँ जा रहा हूँ।
तो उसने पूछ लिया- क्या मैं भी साथ चल सकती हूँ?
मैंने कहा- क्यों नहीं !
और उसे बोला- रुको, मैं कार निकाल लेता हूँ।
तो उसने मना किया और कहा- बाइक पर चलेंगे तो पेट्रोल भी बचेगा और पार्किंग की भी समस्या नहीं होगी !
मैंने कहा- ठीक है, चलो !
तो उसने जल्दी से अपने दोस्तों को जाकर बताया कि वो मेरे साथ जा रही है। उन लोगों ने भी कोई आपत्ति नहीं की और बोले- ठीक है।
सोनल ने कपड़े बदले, नीली जीन्स और गुलाबी टीशर्ट पहन ली।
क्या लग रही थी वो ! मैं कह नही सकता।
सोनल बाहर आकर मेरे बाइक के पीछे बैठ गई।
बाईक मैं आराम से चला रहा था और सोनल को गोआ के टूरिस्ट-स्पाट्स के बारे में बता रहा था। वो भी रुचि ले रही थी मेरी बातों में ! और मैं भी खुश था कि चलो एक सुन्दर औरत की कम्पनी मिल रही थी।
मार्केट जाकर मैंने उसे पूरा मार्केट दिखाया, वो हैरान रह गई कि विदेशी इतने कम कपड़े कैसे पहनते हैं।
मैंने सोनल से पूछा- क्या ड्रिन्क लोगी?
तो पहले तो ना कहा पर बाद में उसने अपने लिये बीयर ली और मैंने भी साथ देने के लिये बीयर ही ली।
बाद में मैं वहाँ से उसे टिटो क्लब में ले गया और उसके साथ बीयर पीते हुए डान्स किया।
रात के दो बज रहे थे, वो वापस जाना चाह रही थी। मैंने कहा- ठीक है, चलो।
शायद सोनल ने बीयर ज्यादा पी ली थी। मैंने उसे बेमतलब छूने की कोई कोशिश नहीं की थी, शायद वो इसी वजह से मेरे साथ इतनी कम्फ़रटेबल थी। रास्ते में ज्यादा बात तो नहीं की पर उसने मेरे पीठ पर अपना पूरा शरीर चिपका दिया। तो मेरी हालत खराब होने लगी।
किसी तरह हम होटल पहुँचे और उसे मैं उसके कमरे तक ले गया। जैसे ही मैं उसे बिस्तर पर लिटा कर जाने लगा, सोनल मेरे गले में अपने हाथ डाल कर बोली- तुम बहुत अच्छे हो !
और मुझे चूम लिया। तब तक तो मैं कन्ट्रोल में था और वैसे भी ऐसे काम में कभी किसी की मजबूरी का फ़ायदा नहीं उठाना चाहिये। मुझे लगा कि शायद वो नशे में है तो मैं बाहर जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और पूछा- क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?
तो मैंने कहा- नहीं, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो !
तो उसने कहा- तुम मुझे खुश होने का मौका क्यों नहीं देते? तुमने ही तो कहा था कि हमेशा खुश रहना चाहिये ! तो मुझे खुश क्यों नहीं करते?
वो मेरी तरफ़ देखने लगी।
अब मेरी बारी थी, मैंने प्यार से उसके ओठों पर अपने ओंठ रखे और उसे चूमने लगा, वो मेरा साथ देने लगी। उसकी बेताबी बता रही थी कि वो प्यार की भूखी थी।
मैं अपने ओठों की प्यास बुझाते हुए सोनल के शरीर पर अपना हाथ फिराने लगा। तब वो पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और पता ही नहीं चला कि कब हमारे शरीर के सारे कपड़े हमसे अलग हो गये। अब उसका स्तन मेरे मुँह में था और मैं उन्हें एक एक करके चूस रहा था।
वो एकदम से बेचैन हो गई मगर मैंने अपना काम चालू रखा और धीरे-धीरे मैंने अपनी जीभ का कमाल दिखाया और उसकी दोनों टाँगों के बीच के फ़ूल को मैंने बड़ी ही कोमलता से चूसने लगा।
सोनल के मुंह से अजीब-अजीब सी आवाज आने लगी- चूसो ! और चूसो ! रुकना मत प्लीज़ ! और और और आह आह आह !
और अचानक उसने मेरा सर अपनी जांघों के बीच कस कर दबा लिया। मैं समझ गया कि अब वो झड़ने वाली है और वो झड़ गई।
सोनल ने तब कहीं जाकर मेरा सर छोड़ा। उसने मेरा चुम्बन लिया और हम एक दूसरे की गोद में आराम करने लगे।
थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे में गया और कोन्डम का एक पैकेट ले आया, फ़िर हम एक दूसरे को अब हराने के खेल में लग गये।
मैंने कोन्डम पहन लिया था, मैं सोनल के ऊपर था उसकी प्यास बुझाने को एकदम तैयार !
मैंने अपना हथियार निकाला और उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। उससे रहा नहीं गया तो सोनल ने कहा- अब चोदो भी ! और इन्तजार मत करवाओ।
उसकी बात को मानते हुए मैं धीरे धीरे अपना लण्ड अन्दर दबाने लगा अन्दर जाते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। सायद वो पूरा मजा चूस लेना चाहती थी। किसी तरह मैंने उसकी पकड़ ढीली की और धीरे धीरे अपनी कमर हिलाने लगा।
सोनल भी अब अपना कमर हिला हिला कर मेरा साथ देने लगी। थोड़ी देर बाद मैंने सोनल के कहने पर आसन बदला, अब सोनल ऊपर थी और मैं नीचे !
तब सोनल ने जो घुड़सवारी की उसको मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता।
हम दोनों लगभग एक साथ झड़े। सोनल मेरी बाहों में थी और उसके चेहरे पर पूरी सन्तुष्टि थी।
थोड़ी देर में वो सो गई तो मैं उठा और अपने कमरे में चला आया।
सुबह के छः बज रहे थे इसलिये मैं नहा कर अपने डयूटी पर जाकर खड़ा हो गया और उनके दोस्तो को बोल दिया कि वो अभी अभी सोई है तो किसी ने डिस्टर्ब नहीं किया।
सोनल थोड़ी देर तक सोती रही और उसी दिन उनके ग्रुप का मुम्बई लौटने की योजना थी तो मैंने आधे दिन की छुट्टी ली और सोनल और उसके ग्रुप को थोड़ी-बहुत शॉपिंग करा दी। शाम को वो होटल से अपना सामान लेकर जब चले तो मैंने देखा कि सोनल का चेहरा रोने वाला हो रहा था तो मैंने बड़ी ही अदा से कहा- मैडम, मैं इस होटल का मैनेजर हूँ, मेरा नाम रोहित है, अगर आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बोलें, मुझे आपको खुश रखने की कोशिश करने में बहुत खुशी होगी।
इतना कहना था कि सोनल हंस पड़ी।
सोनल आज भी मुझे फ़ोन करती है और मैं उसे खुश रखने की कोशिश करता हूँ।
हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
कुछ सुहागरात सा
मैं एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो स्कूल कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। बी एड के बाद मैं तब से इसी टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है।
जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है। बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप... लेस्बियन के क्लिप... कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।
फिर अन्तर्वासना की दिलकश कहानियाँ... लगता है मेरा दिल किसी ने बाहर निकाल कर रख दिया हो। इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी। पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी।
फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं तेल लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी। फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी।
उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरे पिता के मित्र का लड़का लक्की किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया। उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी... फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी।
मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे... क्योंकि मुझे लक्की को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था। उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।
इन सब बातों से बेखबर मैंने लक्की से कहा- नहा लो ! चलो... फिर कपड़े भी बदल लेना...
पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई। पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि लक्की का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई।
वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था। उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार... उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई... मेरा दिल तेजी से धड़क उठा। मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की... और लक्की भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का...
जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी। लक्की ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया।
पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा।
फिर एकाएक उसके सुर बदल गये... वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है... जब आप छोटी थी... मैं भी...
"जी हाँ ! आप भी छोटे थे... पर अब तो आप बड़े हो गये हो..."
"आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी... मेरा मतलब है... बड़ी हो गई हैं।"
मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।
"लक्की जी, आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़..."
"बहुत मुलायम है जी लक्ष्मी जी... जी करता है कि..."
"बस... बस... छोड़िये ना मेरा हाथ... हाय राम कोई देख लेगा..."
लक्की ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब... वो नहीं था...
मेरी हिचकी सी बंध गई थी।
उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।
"ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया... खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।"
शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे... लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे... बिजली भी चमक रही थी... लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और लक्की ने भोजन को गर्म करके खा लिया। मुझे लगा कि लकी की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी।मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई। मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ... मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई।
बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया... मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।
"लक्की भैया... यहीं आ जाओ... देखो ना कितनी बिजली कड़क रही है। कहीं गिर गई तो?"
"अरे छोड़ो ना दीदी... ये तो आजकल रोज ही गरजते-बरसते हैं।"
ठण्डी हवा का झोंका, पानी की हल्की फ़ुहारें... आज तो मन को डांवाडोल कर रही थी। मन में एक अजीब सी गुदगुदी लगने लगी थी। लक्की भी मेरे पास खिड़की के पास आ गया। बाहर सूनी सड़क... स्ट्रीटलाईट अन्धेरे को भेदने में असफ़ल लग रही थी। कोई इक्का दुक्का राहगीर घर पहुँचने की जल्दी में थे। तभी जोर की बिजली कड़की फिर जोर से बादल गर्जन की धड़ाक से आवाज आई।
मैं एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो स्कूल कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। बी एड के बाद मैं तब से इसी टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है।
जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है। बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप... लेस्बियन के क्लिप... कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।
फिर अन्तर्वासना की दिलकश कहानियाँ... लगता है मेरा दिल किसी ने बाहर निकाल कर रख दिया हो। इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी। पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी।
फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं तेल लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी। फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी।
उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरे पिता के मित्र का लड़का लक्की किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया। उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी... फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी।
मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे... क्योंकि मुझे लक्की को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था। उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।
इन सब बातों से बेखबर मैंने लक्की से कहा- नहा लो ! चलो... फिर कपड़े भी बदल लेना...
पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई। पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि लक्की का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई।
वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था। उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार... उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई... मेरा दिल तेजी से धड़क उठा। मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की... और लक्की भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का...
जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी। लक्की ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया।
पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा।
फिर एकाएक उसके सुर बदल गये... वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है... जब आप छोटी थी... मैं भी...
"जी हाँ ! आप भी छोटे थे... पर अब तो आप बड़े हो गये हो..."
"आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी... मेरा मतलब है... बड़ी हो गई हैं।"
मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।
"लक्की जी, आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़..."
"बहुत मुलायम है जी लक्ष्मी जी... जी करता है कि..."
"बस... बस... छोड़िये ना मेरा हाथ... हाय राम कोई देख लेगा..."
लक्की ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब... वो नहीं था...
मेरी हिचकी सी बंध गई थी।
उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।
"ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया... खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।"
शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे... लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे... बिजली भी चमक रही थी... लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और लक्की ने भोजन को गर्म करके खा लिया। मुझे लगा कि लकी की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी।मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई। मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ... मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई।
बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया... मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।
"लक्की भैया... यहीं आ जाओ... देखो ना कितनी बिजली कड़क रही है। कहीं गिर गई तो?"
"अरे छोड़ो ना दीदी... ये तो आजकल रोज ही गरजते-बरसते हैं।"
ठण्डी हवा का झोंका, पानी की हल्की फ़ुहारें... आज तो मन को डांवाडोल कर रही थी। मन में एक अजीब सी गुदगुदी लगने लगी थी। लक्की भी मेरे पास खिड़की के पास आ गया। बाहर सूनी सड़क... स्ट्रीटलाईट अन्धेरे को भेदने में असफ़ल लग रही थी। कोई इक्का दुक्का राहगीर घर पहुँचने की जल्दी में थे। तभी जोर की बिजली कड़की फिर जोर से बादल गर्जन की धड़ाक से आवाज आई।
Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
मैं सिहर उठी और अन्जाने में ही लक्की से लिपट गई,"आईईईईईई... उफ़्फ़ भैया..."
लक्की ने मुझे कस कर थाम लिया,"अरे बस बस भई... अकेले में क्या करती होगी...?" वो हंसा।
फिर शरारत से उसने मेरे गालों पर गुदगुदी की। तभी मुहल्ले की बत्ती गुल हो गई। मैं तो और भी उससे चिपक सी गई। गुप्प अंधेरा... हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
"भैया मत जाना... यहीं रहना।"
लक्की ने शरारत की... नहीं शायद शरारत नहीं थी... उसने जान करके कुछ गड़बड़ की। उसका हाथ मेरे से लिपट गया और मेरे चूतड़ के एक गोले पर उसने प्यार से हाथ घुमा दिया। मेरे सारे तन में एक गुलाबी सी लहर दौड़ गई। मेरा तन को अब तक किसी मर्द के हाथ ने नहीं छुआ था। ठण्डी हवाओं का झोंका मन को उद्वेलित कर रहा था। मैं उसके तन से लिपटी हुई... एक विचित्र सा आनन्द अनुभव करने लगी थी।
अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी। लक्की ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।
मैंने अन्जानी चाह से लक्की को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... विक्की ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई। उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।
उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
"लक्की... अह्ह्ह्ह...!"
"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है ना..."
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।
ओह्ह ! यह क्या ?
मेरे घूमते ही लक्की मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। लक्की ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
"भैया ! बहुत अच्छा है... मोटा है... लम्बा है... ओह्ह्ह्ह्ह !"
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था राम... !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"
"क्या...?"
"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
"नहीं... वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।"
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"
मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।
वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा। मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है राम..."
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी लक्की भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।
लक्की ने मुझे कस कर थाम लिया,"अरे बस बस भई... अकेले में क्या करती होगी...?" वो हंसा।
फिर शरारत से उसने मेरे गालों पर गुदगुदी की। तभी मुहल्ले की बत्ती गुल हो गई। मैं तो और भी उससे चिपक सी गई। गुप्प अंधेरा... हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
"भैया मत जाना... यहीं रहना।"
लक्की ने शरारत की... नहीं शायद शरारत नहीं थी... उसने जान करके कुछ गड़बड़ की। उसका हाथ मेरे से लिपट गया और मेरे चूतड़ के एक गोले पर उसने प्यार से हाथ घुमा दिया। मेरे सारे तन में एक गुलाबी सी लहर दौड़ गई। मेरा तन को अब तक किसी मर्द के हाथ ने नहीं छुआ था। ठण्डी हवाओं का झोंका मन को उद्वेलित कर रहा था। मैं उसके तन से लिपटी हुई... एक विचित्र सा आनन्द अनुभव करने लगी थी।
अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी। लक्की ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।
मैंने अन्जानी चाह से लक्की को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... विक्की ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई। उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।
उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
"लक्की... अह्ह्ह्ह...!"
"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है ना..."
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।
ओह्ह ! यह क्या ?
मेरे घूमते ही लक्की मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। लक्की ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
"भैया ! बहुत अच्छा है... मोटा है... लम्बा है... ओह्ह्ह्ह्ह !"
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था राम... !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"
"क्या...?"
"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
"नहीं... वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।"
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"
मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।
वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा। मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है राम..."
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी लक्की भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।