Hindi Sex Stories By raj sharma
Re: Hindi Sex Stories By raj sharma
सोते सोते मेरी आँख अचानक खुल गयी. हाथ लगा कर देखा तो ए.सी. ऑन के बावजूद माथे पर पसीने की बूँदें थी. मैं फ़ौरन उठकर बिस्तर पर सीधा बैठ गया.
नीलम अपनी जगह पर मौजूद नही थी.
मैने साइड वेल ड्रॉयर से एक सिगरेट निकाली और जलाकर हल्के काश लगाने लगा. यूँ तो बेडरूम में सिगरेट या शराब पीने की मुझे सख़्त मनाही थी पर फिर भी कभी कभी मैं परेशान होता तो नीलम के मना करने के बावजूद एक सिगरेट जला ही लेता था.
मेरे साथ रह रहकर वो भी थोड़ी बहुत पीने लगी थी पर जाने क्यूँ बेडरूम में सिगरेट या शराब ले जाना उसे बिल्कुल पसंद नही था.
सिगरेट पीता हुआ मैं अपने ख्वाब के बारे में सोचने लगा. हैरत की बात थी के ख्वाब मैने अभी थोड़ी देर पहले ही देखा था पर मुझे कुच्छ भी याद नही आ रहा था के एग्ज़ॅक्ट्ली हुआ क्या था.
हां इतना ज़रूर याद था के आख़िर में एक गोली चली थी जिसके आवाज़ से घबरा कर मेरी नीद टूट गयी थी. गोली चलने से पहले क्या हुआ था, मुझे कुच्छ याद ही नही आ रहा था.
एक सिगरेट ख़तम होने के बाद मैं दूसरी जला ही रहा था तो मेरा ध्यान खाली पड़े बिस्तर की तरफ गया. जब मैने पहले नीलम को बेड पर नही पाया तो मुझे लगा के वो बाथरूम में होगी पर बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था और अंदर लाइट ऑफ थी मतलब के वो अंदर नही थी.
"शायद बाहर होगी" सोचता हुआ मैं बेड से उठा और दूसरी सिगरेट जलाते हुए बेडरूम से बाहर निकला.
लिविंग रूम में पूरी तरह से अंधेरा था बस कोने में एक ज़ीरो वॉल्ट का बल्ब जल रहा था. रोशनी ना के बराबर ही थी.
लिविंग रूम के ही एक कोने में हम लोगों ने एक छ्होटा सा बार बना रखा था था जहाँ थोड़ी बहुत, पर उम्दा और महेंगी, शराब की बॉटल्स होती थी. बार बेडरूम के दरवाज़े की एकदम सीध में था इसलिए बाहर निकलते ही सबसे पहले नज़र आता था.
बार के काउंटर पर हाथ में एक शराब का ग्लास लिए नीलम बैठी थी.
मैं थोड़ी देर वहीं खड़ा उसे देखता रहा. कमरे के उस हिस्से में काफ़ी अंधेरा था पर बेडरूम का दरवाज़ा खुला होने की वजह से रोशनी सीधी नीलम पर पड़ रही थी. वो हाथ में एक ग्लास पकड़े बैठी हुई सो रही थी.
मुझे समझ नही आया के वो नींद में बैठी पी रही थी या शराब के नशे में सो रही थी.
बेडरूम से बाहर आकर मैं सबसे पहले बाथरूम की तरफ गया और जब फारिग होकर बाहर निकला तो वो तब भी वैसे ही ग्लास पकड़े बैठी सो रही थी.
"एक वक़्त था जब ये शराब सिगरेट के बिल्कुल खिलाफ थी और आज अकेली बैठी पी रही है" दिल ही दिल में सोचकर मैं हस पड़ा.
तभी कमरे में लगे पुराने आंटीक स्टाइल बड़े से घंटे ने 4 बजाए. उसकी अचानक आवाज़ से एक पल के लिए मैं ठिठक गया और बार पर बैठी नीलम के शरीर में भी हरकत हुई.
"खुल गयी आँख" मैं उसकी तरफ देख कर सोचता हुआ मुस्कुराया.
मैने कुच्छ बोलने के लिए मुँह खोला ही था के फिर मैने अपना इरादा बदल कर उसको डराने की सोची. मैं जिस जगह पर खड़ा था वहाँ पूरी तरह अंधेरा था और नीलम ने अब तक मुझे देखा नही था. मतलब मैं चुप चाप पिछे से जाकर उसे डरा सकता था.
ऐसा करने की एक वजह ये भी थी के वो अक्सर ऐसा मेरे साथ करती थी. कभी बेख़बर बैठे हुए, कभी सोते हुए, कभी खाते हुए , अचानक पिछे से आती और ज़ोर से चिल्ला कर मेरी जान निकाल देती थी.
"आज मेरी बारी है जानेमन" मैं सोचा और बहुत खामोशी से अपना एक कदम आगे बढ़ाया.
मुझे हैरत तब हुई नीलम तेज़ी के साथ मेरी तरफ पलटी. जो आखरी चीज़ मैने देखी वो उसके हाथ में थमी मेरी रेवोल्वेर थी.
जो आखरी चीज़ मैने सुनी वो एक गोली की आवाज़ थी.
जो आखरी चीज़ मैने महसूस कि वो मेरी छाती में उठी दर्द की लहर थी.
समाप्त
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तजुर्बा
उईईईइमाआआअ…..बसस्स्स्सस्स करूऊओ नाआ….. आआज्ज्ज्ज तो तुम मेरी जान लेने का इरादा कर के आए हो.धीरे-धीरे करो ना,मैं कही भागी तो नही जा रही…..रात भर यही रहूंगी तुम्हारे पास.किरण मेरे साथ है तो मेरे घर वाले भी मेरी चिंता नही करेंगे. मैं बाहर खड़ी ये सब सुन रही थी और वैशाली की मस्त आवाज़े मेरे कान मे समा कर मेरे गालो को और भी लाल कर रहे थे. मुझे रह-रह कर आज शाम(ईव्निंग) की बाते याद आ रही थी जब ये मेरे स्टाफ क्वॉर्टर मे आकर मुझसे मिली थी………….
किरण!प्लीज़ आज तू मेरे घर पर बोल दे ना कि मैं तेरे साथ रात मे यही रुकूंगी…डॉक्टर.अशोक का मेरे साथ पार्टी मे जाने का प्लान है. पार्टी मे नही पगली! तेरी बजाने का प्लान है ये बोल,मैने हसते हुए कहा. ओये-होये तू इतनी भी सीधी-सादी नही है जितनी मैं तुझे समझती हू. अब ये तो तेरे पर निर्भर है की तू मुझे ग़लत समझती है, मैं रिज़र्व-नेचर हू पर ईडियट नही हू. तू जो भी सही पर मेरे घर मे तेरी इमेज बेहद मजबूत कॅरक्टर वाली लड़की की है वैशाली ने चिढ़ाते हुए कहा. सो तो मैं हू ही, मैने हंस के जवाब दिया. अरे यार हमसे छ्होटी उम्र की लड़किया हमसे आगे निकल गई है और हमे आज तक दुनिया की रंगीनियो का कोई तजुर्बा ही नही हुआ. देख वैशाली तुझे जो करना है वो तू कर पर मुझे इन सबमे मत घसीट, मेरे अतीत के बारे मे जानते हुए भी तू ऐसा कैसे कह सकती है.
कौन सा अतीत,कहे का अतीत, अरे जब उसमे तेरी कोई ग़लती थी ही नही तो तू अपने आप को कैसे सज़ा दे सकती है. तेरी शादी एक आर्मी के सेकेंड-ल्यूटेनेंट से हुई, शादी वाले दिन ही बिना अपनी सुहा रात मनाए वो बॉर्डर पर चला गया, और वाहा आतंकवादियो के साथ मुठभेड़ मे शहीद हो गया तो इसमे तेरी ग़लती कहा से हुई भला. तेरे सास ससुर ने तुझे अपने घर से मनहूस कह कर निकाल दिया,तेरे भाई-लोगो ने तुझे बोझ समझ कर तुझे अपने से दूर यहा इस छ्होटे से हॉस्पिटल मे नर्स बनवा कर यही रहने को मजबूर कर दिया, इन सब मे कहा से तेरी कोई ग़लती साबित होती है. मैने सरेंडर सा करते हुए वैशाली से कहा…….ठीक है मेरी मा,तू जीती मैं हारी. अब बता मुझे क्या करना है,ये सुनते ही वैशाली के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और उसने कहा, ज़्यादा कुच्छ नही बस मेरे घर फोन कर दे,मुझे अपनी एक मस्त सी साड़ी दे-दे जिसमे मैं गजब की सेक्सी लगू और वो स्साला ड्र.अशोक मुझे सिस्टर वैशाली की जगह डार्लिंग वैशाली कहने लगे.इतना सुनते ही नमई हंस पड़ी जिसमे वैशाली ने भी मेरा साथ दिया. अरे हां! एक और बात , उसने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा . अब और क्या! मैने खीझते हुए कहा. तुझे भी मेरे साथ पार्टी मे चलना होगा. पार्टी यही पास वाले डॉक्टर्स बिल्डिंग के टेरेस पर है और मेडम किरण जी मेरे साथ आ रही हैं न तट’स फाइनल. उसकी बात सुनकर पहले तो मैने उसे मना करना चाहा पर फिर मैने सोचा कि सच मे मेरी जिंदगी कितनी बे-नूर और फीकी हो गयी है. ना दोस्तो का साथ बसेक ढर्रे पर चलती हुई बेमानी जिंदगी.
मैने वैशाली को अपने कलेक्षन की बेस्ट साड़ी पहन’ने को दी और खुद एक आसमानी रंग का साधारण सा सलवार-कुर्ता पहन लिया. वैशाली ने ज़बरदस्ती मेरे चेहरे पर अपने साथ लाया हुआ मेक-अप के सामान से कुछ क्रीम,लोशन्स,लिपस्टिक लगा दिया जिससे मेरी सुंदरता मे सादगी के बावजूद चार चाँद लग गये. कॉलेज के टाइम मे मेरे पीछे कयि लड़के पड़े थे मगर मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी थी. खैर वैशाली और मैं ड्र.अशोक की पार्टी मे गये.वाहा पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी. कुच्छ को तो मैं जानती थी पर काफ़ी सारे चेहरे मेरे लिए अंजाने थे. ड्र.अशोक ने हमारा हॉस्पिटल नया-नया जाय्न किया था, सारी फीमेल स्टाफ मे वो आते ही काफ़ी मश’हूर हो गये थे. वैशाली अपने चंचल स्वाभाव के कारण सबकी चहेती थी. शीघ्र ही वो ड्र.अशोक के दिल मे उतर गयी. आज तो वैसे ही वैशाली मेरी वाली साड़ी मे गजब ढा रही थी. ड्र.अशोक ने हम दोनो का स्वागत किया और हमे अपने केयी अन्य दोस्तो से भी मिलवाया . सबके के साथ मिलते हुए जब हम दोनो उनके एक बेहद करीबी दोस्त(जोकि आज ही यूएसए से अपना एम.एस. कंप्लीट करके आया था)से मिलवाया. इनसे मिलो ये मेरा जिगरी दोस्त सौरभ है, ये मेरा हम-प्याला,हम-नीवाला और भी काई ‘हम-वाला’ है, जो सुन कर हम सब हंस दिए.सौरभ ने एकदम विलायती अंदाज मे पहले वैशाली तथा बाद मे मुझे अपने गले लगा कर हमारे गालो को चूम लिया.
उसकी ये बेबाकी हमे ख़ास तौर पर मुझे बड़ी अजीब लगी मगर उसकी आँखो की कशिश ने मुझे कुछ कठोर शब्द कहने से रोक दिया. रात के 12:30 बजते-बजाते पार्टी की भीड़ छाटने लगी थी और चंद ख़ास लोग ही वाहा बचे थे,वैशाली को काई बार इशारो मे मैने भी कहा कि अब चलो यहा से बहुत लेट हो गये है मगर वो ‘बस थोड़ी देर और’ कहते हुए और देर करे जा रही थी. उसको ड्र.अशोक की संगत का असर खूब रास आ रहा था. उसने शायद कुच्छ हार्ड-ड्रिंक्स भी किए थे जिसका सुरूर उसकी आँखो से पता चल रहा था. फिर वो मेरे पास आकर बोली कि ड्र.अशोक हम दोनो को रुकने के लिए बार रिक्वेस्ट कर रहे हैं और मैं उनका रिक्वेस्ट ठुकरा नही पा रही हू . पल्ल्ल्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ नाराज़ मत हो और मेरे साथ रुक जाओ ना, वैशाली जब ऐसे बच्चो की तरह मचल कर मुझसे कोई बात कहती थी तो मैं उसे मना नही कर पाती थी. वही आज भी हो रहा था. मैं पार्टी मे होते हुए भी अकेला महसूस कर रही थी की तभी मुझे अपने पीछे से आवाज़ सुनाई दी
ढलती शाम सी खामोश हो,
हँसी ले चेहरे पर यू उदास हो,
मैने तेरे दीदार मे पाया है कुच्छ ऐसा,
जैसे तेरी आँखो से ही मुझे कुच्छ आस हो.
पीछे मूड कर देखने पर मैने पाया कि सौरभ अपने दोनो हाथो मे ग्लास लेकर खड़ा था.उसने मुझे एक ग्लास पकड़ा दिया,मैने एक मुस्कुराहट के साथ उससे पुच्छा कि गोयो आप शायर भी हैं, उसने उसी बेबाक अंदाज मे मेरी आँखो मे झाँकते हुए कहा
यू तो मैं कुछ कहता नही,
सबसे यू घुलके-मिलता नही,
पर तेरी संगत है या रंगत तेरे चहरे की ,
दिल बेचारा अब संभाले यू संभलता नही.
ये सुनते ही मैं खिलखिला कर हंस पड़ी जिसे देख कर सौरभ ने ताली बजाते हुए कहा! ये आज शाम का पहला ओरिजिनल लाफटर दिया है आपने. मैने शर्मा कर नज़र नीचे कर ली मगर मेरी मुस्कुराहट अभी कायम थी, जिसे देख कर उसने फिर से कहा कि अब ऐसा तो कोई गुनाह नही हुआ मुझसे जो आप हमे अपनी नायाब हँसी देखने से वंचित रखेंगी. मैने उसे कहा! आप कि भाषा और लहजे से आप यूरोप रिटर्न कम और लनोव रिटर्न ज़्यादा लगते है, उसने तुरंत जवाब दिया की मोह्तर्रिमा आपने खाकसार को क्या खूब पहचाना, नाचीज़ वही की पैदावार है. एम.एस. तो मैने अपने बाप की ख्वाहिश पूरी करने के लिया किया है पर दिल से एकदम लिटरेचर की पूजा करता हू. आपको देखकर सोचता हू कि आपके पेशेंट्स पर क्या गुजरती होगी जब वो आपको बुलाते होंगे. क्या मतलब,मैं समझी नही…….मैने हैरानी से कहा. अरे जब आप जैसी हसीना को कोई बेचारा ‘सिस्टर’ बुलाता होगा तब उसके दिल पर तो च्छूरिया चल जाती होंगी. ओह ऐसाआ……..मैं फिर से उसकी बात समझ कर हँसने लगी.
तजुर्बा
उईईईइमाआआअ…..बसस्स्स्सस्स करूऊओ नाआ….. आआज्ज्ज्ज तो तुम मेरी जान लेने का इरादा कर के आए हो.धीरे-धीरे करो ना,मैं कही भागी तो नही जा रही…..रात भर यही रहूंगी तुम्हारे पास.किरण मेरे साथ है तो मेरे घर वाले भी मेरी चिंता नही करेंगे. मैं बाहर खड़ी ये सब सुन रही थी और वैशाली की मस्त आवाज़े मेरे कान मे समा कर मेरे गालो को और भी लाल कर रहे थे. मुझे रह-रह कर आज शाम(ईव्निंग) की बाते याद आ रही थी जब ये मेरे स्टाफ क्वॉर्टर मे आकर मुझसे मिली थी………….
किरण!प्लीज़ आज तू मेरे घर पर बोल दे ना कि मैं तेरे साथ रात मे यही रुकूंगी…डॉक्टर.अशोक का मेरे साथ पार्टी मे जाने का प्लान है. पार्टी मे नही पगली! तेरी बजाने का प्लान है ये बोल,मैने हसते हुए कहा. ओये-होये तू इतनी भी सीधी-सादी नही है जितनी मैं तुझे समझती हू. अब ये तो तेरे पर निर्भर है की तू मुझे ग़लत समझती है, मैं रिज़र्व-नेचर हू पर ईडियट नही हू. तू जो भी सही पर मेरे घर मे तेरी इमेज बेहद मजबूत कॅरक्टर वाली लड़की की है वैशाली ने चिढ़ाते हुए कहा. सो तो मैं हू ही, मैने हंस के जवाब दिया. अरे यार हमसे छ्होटी उम्र की लड़किया हमसे आगे निकल गई है और हमे आज तक दुनिया की रंगीनियो का कोई तजुर्बा ही नही हुआ. देख वैशाली तुझे जो करना है वो तू कर पर मुझे इन सबमे मत घसीट, मेरे अतीत के बारे मे जानते हुए भी तू ऐसा कैसे कह सकती है.
कौन सा अतीत,कहे का अतीत, अरे जब उसमे तेरी कोई ग़लती थी ही नही तो तू अपने आप को कैसे सज़ा दे सकती है. तेरी शादी एक आर्मी के सेकेंड-ल्यूटेनेंट से हुई, शादी वाले दिन ही बिना अपनी सुहा रात मनाए वो बॉर्डर पर चला गया, और वाहा आतंकवादियो के साथ मुठभेड़ मे शहीद हो गया तो इसमे तेरी ग़लती कहा से हुई भला. तेरे सास ससुर ने तुझे अपने घर से मनहूस कह कर निकाल दिया,तेरे भाई-लोगो ने तुझे बोझ समझ कर तुझे अपने से दूर यहा इस छ्होटे से हॉस्पिटल मे नर्स बनवा कर यही रहने को मजबूर कर दिया, इन सब मे कहा से तेरी कोई ग़लती साबित होती है. मैने सरेंडर सा करते हुए वैशाली से कहा…….ठीक है मेरी मा,तू जीती मैं हारी. अब बता मुझे क्या करना है,ये सुनते ही वैशाली के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और उसने कहा, ज़्यादा कुच्छ नही बस मेरे घर फोन कर दे,मुझे अपनी एक मस्त सी साड़ी दे-दे जिसमे मैं गजब की सेक्सी लगू और वो स्साला ड्र.अशोक मुझे सिस्टर वैशाली की जगह डार्लिंग वैशाली कहने लगे.इतना सुनते ही नमई हंस पड़ी जिसमे वैशाली ने भी मेरा साथ दिया. अरे हां! एक और बात , उसने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा . अब और क्या! मैने खीझते हुए कहा. तुझे भी मेरे साथ पार्टी मे चलना होगा. पार्टी यही पास वाले डॉक्टर्स बिल्डिंग के टेरेस पर है और मेडम किरण जी मेरे साथ आ रही हैं न तट’स फाइनल. उसकी बात सुनकर पहले तो मैने उसे मना करना चाहा पर फिर मैने सोचा कि सच मे मेरी जिंदगी कितनी बे-नूर और फीकी हो गयी है. ना दोस्तो का साथ बसेक ढर्रे पर चलती हुई बेमानी जिंदगी.
मैने वैशाली को अपने कलेक्षन की बेस्ट साड़ी पहन’ने को दी और खुद एक आसमानी रंग का साधारण सा सलवार-कुर्ता पहन लिया. वैशाली ने ज़बरदस्ती मेरे चेहरे पर अपने साथ लाया हुआ मेक-अप के सामान से कुछ क्रीम,लोशन्स,लिपस्टिक लगा दिया जिससे मेरी सुंदरता मे सादगी के बावजूद चार चाँद लग गये. कॉलेज के टाइम मे मेरे पीछे कयि लड़के पड़े थे मगर मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी थी. खैर वैशाली और मैं ड्र.अशोक की पार्टी मे गये.वाहा पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी. कुच्छ को तो मैं जानती थी पर काफ़ी सारे चेहरे मेरे लिए अंजाने थे. ड्र.अशोक ने हमारा हॉस्पिटल नया-नया जाय्न किया था, सारी फीमेल स्टाफ मे वो आते ही काफ़ी मश’हूर हो गये थे. वैशाली अपने चंचल स्वाभाव के कारण सबकी चहेती थी. शीघ्र ही वो ड्र.अशोक के दिल मे उतर गयी. आज तो वैसे ही वैशाली मेरी वाली साड़ी मे गजब ढा रही थी. ड्र.अशोक ने हम दोनो का स्वागत किया और हमे अपने केयी अन्य दोस्तो से भी मिलवाया . सबके के साथ मिलते हुए जब हम दोनो उनके एक बेहद करीबी दोस्त(जोकि आज ही यूएसए से अपना एम.एस. कंप्लीट करके आया था)से मिलवाया. इनसे मिलो ये मेरा जिगरी दोस्त सौरभ है, ये मेरा हम-प्याला,हम-नीवाला और भी काई ‘हम-वाला’ है, जो सुन कर हम सब हंस दिए.सौरभ ने एकदम विलायती अंदाज मे पहले वैशाली तथा बाद मे मुझे अपने गले लगा कर हमारे गालो को चूम लिया.
उसकी ये बेबाकी हमे ख़ास तौर पर मुझे बड़ी अजीब लगी मगर उसकी आँखो की कशिश ने मुझे कुछ कठोर शब्द कहने से रोक दिया. रात के 12:30 बजते-बजाते पार्टी की भीड़ छाटने लगी थी और चंद ख़ास लोग ही वाहा बचे थे,वैशाली को काई बार इशारो मे मैने भी कहा कि अब चलो यहा से बहुत लेट हो गये है मगर वो ‘बस थोड़ी देर और’ कहते हुए और देर करे जा रही थी. उसको ड्र.अशोक की संगत का असर खूब रास आ रहा था. उसने शायद कुच्छ हार्ड-ड्रिंक्स भी किए थे जिसका सुरूर उसकी आँखो से पता चल रहा था. फिर वो मेरे पास आकर बोली कि ड्र.अशोक हम दोनो को रुकने के लिए बार रिक्वेस्ट कर रहे हैं और मैं उनका रिक्वेस्ट ठुकरा नही पा रही हू . पल्ल्ल्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ नाराज़ मत हो और मेरे साथ रुक जाओ ना, वैशाली जब ऐसे बच्चो की तरह मचल कर मुझसे कोई बात कहती थी तो मैं उसे मना नही कर पाती थी. वही आज भी हो रहा था. मैं पार्टी मे होते हुए भी अकेला महसूस कर रही थी की तभी मुझे अपने पीछे से आवाज़ सुनाई दी
ढलती शाम सी खामोश हो,
हँसी ले चेहरे पर यू उदास हो,
मैने तेरे दीदार मे पाया है कुच्छ ऐसा,
जैसे तेरी आँखो से ही मुझे कुच्छ आस हो.
पीछे मूड कर देखने पर मैने पाया कि सौरभ अपने दोनो हाथो मे ग्लास लेकर खड़ा था.उसने मुझे एक ग्लास पकड़ा दिया,मैने एक मुस्कुराहट के साथ उससे पुच्छा कि गोयो आप शायर भी हैं, उसने उसी बेबाक अंदाज मे मेरी आँखो मे झाँकते हुए कहा
यू तो मैं कुछ कहता नही,
सबसे यू घुलके-मिलता नही,
पर तेरी संगत है या रंगत तेरे चहरे की ,
दिल बेचारा अब संभाले यू संभलता नही.
ये सुनते ही मैं खिलखिला कर हंस पड़ी जिसे देख कर सौरभ ने ताली बजाते हुए कहा! ये आज शाम का पहला ओरिजिनल लाफटर दिया है आपने. मैने शर्मा कर नज़र नीचे कर ली मगर मेरी मुस्कुराहट अभी कायम थी, जिसे देख कर उसने फिर से कहा कि अब ऐसा तो कोई गुनाह नही हुआ मुझसे जो आप हमे अपनी नायाब हँसी देखने से वंचित रखेंगी. मैने उसे कहा! आप कि भाषा और लहजे से आप यूरोप रिटर्न कम और लनोव रिटर्न ज़्यादा लगते है, उसने तुरंत जवाब दिया की मोह्तर्रिमा आपने खाकसार को क्या खूब पहचाना, नाचीज़ वही की पैदावार है. एम.एस. तो मैने अपने बाप की ख्वाहिश पूरी करने के लिया किया है पर दिल से एकदम लिटरेचर की पूजा करता हू. आपको देखकर सोचता हू कि आपके पेशेंट्स पर क्या गुजरती होगी जब वो आपको बुलाते होंगे. क्या मतलब,मैं समझी नही…….मैने हैरानी से कहा. अरे जब आप जैसी हसीना को कोई बेचारा ‘सिस्टर’ बुलाता होगा तब उसके दिल पर तो च्छूरिया चल जाती होंगी. ओह ऐसाआ……..मैं फिर से उसकी बात समझ कर हँसने लगी.
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ऐसे ही बातो का सिलसिला चल निकाला, उसकी बातो से हँसते-हँसते मेरी आँखो से पानी निकलने लगा और पेट दर्द करने लगा.मुझे याद नही कि मैं आख़िरी बार कब इतना हँसी थी.कब रात के 2 बज गये मुझे पता ही नही चला. अचानक मेरा ध्यान मेरी घड़ी की तरफ गया और मैं चौंक पड़ी.जिंदगी मे पहली बार मैं इतनी देर तक घर से बाहर रही हू. मैने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखा,मुझे वैशाली कही नज़र नही आई.मेरे हाथ मे पकड़ा ग्लास भी अब खाली हो चुका था, सौरभ की बातो को एंजाय करते हुए मैने ध्यान भी नही दिया कि मैने पिया क्या था पर वो जो भी था पीने मे अच्च्छा लगा और पीने के बाद भी मुझे अच्च्छा महसूस हो रहा था. मेरे हाथ-पाँवो मे रात की ठंडक अब सिहरन बन कर दौड़ रही थी. मैने ड्र.अशोक के लिए भी चारो तरफ नज़र दौड़ाई मगर वैशाली की तरह वो भी नदारद थे. मुझे यू इधर-उधर देखते हुए पाकर सौरभ ने मुस्कुरा कर कहा की जिनको आप ढूँढ रही हैं उन्ही दोनो ने मुझे आपका ख़याल रखने को कहा है. मैं उसकी तरफ ना-समझने वाले अंदाज मे देखा तो उसने कहा कि वैशाली और अशोक ने ही मुझे आपकी तन्हाई का ख्याल रखने को कह कर खुद किसी तन्हाई की तलाश मे गये हैं.
मैने उसकी बातो का मतलब समझते हुए उससे पुछा कि क्या तुम्हे कुच्छ अंदाज़ा है कि वो कहाँ गये है.उसका जवाब था की हां मैं जानता हू की वो दोनो कहा गये है पर उनकी प्राइवसी का ख्याल रखते हुए मैं आपको वाहा जाने से मना ही करूँगा. क्यो? ऐसा क्यो भला?मैने हैरानी जताते हुए पुच्छा. आप जानती नही या ना-समझी का नाटक कर रही है. मैने अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए उसको फिर से पुच्छा की वैशाली कहा है, मुझे अभी उससे मिलना है. उसने धीरे से मेरे कान मे कहा ,बता तो क्या मैं दिखा भी दूँगा मगर आप उनको डिस्टर्ब नही करेंगी……ऐसा प्रॉमिसस करने के बाद ही मैं आपको वाहा ले जाउन्गा.मैने झक मार कर प्रॉमिसस कर दिया कि चलो तुम मुझे जल्दी से वाहा ले चलो.सौरभ ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे टेरेस से नीचे बने फ्लॅट्स की तरफ ले जाने लगा जहा एक फ्लॅट मे अंदर जाते हुए उसने अपनी एक उंगली को अपने होंठो पर रखते हुए मुझे खामोश रहने का इशारा किया,मैने भी हामी मे सर हिला दिया. फ्लॅट के अंदर मैने वही आवाज़ सुनी जिसका ज़िकरा मैने उपर किया था.
कुच्छ-कुच्छ समझते हुए मेरे हाथ पाँव ढीले पड़ गये थे. तभी मुझे एहसास हुआ की मैं एक ऐसे शख्स के साथ खड़ी हू जिसे मैं अभी मुश्किल से 3-4घंटो पहले मिली हू . सौरभ मेरे ठीक पिछे खड़ा था और उसने मेरे कानो मे अपना मूह(माउत) सटा कर धीरे से कहा , क्या तुम ये सब देखना भी चाहती हो? मैं निरुत्तर वही खड़ी रही, उसने फिर से अपना सवाल दोहराया….. इससबार मैने ना जाने कैसे हा मे सर हिला दिया,वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूसरे कमरे ले गया जहा की एक आल्मीराः के पिछे लगे शीशे का परदा हटाने से वो सब दिख रहा था जो उस कमरे मे हो रहा था. मेरे सभी मसामो से पसीने छूट गये.पढ़ा-सुना अलग होता है मगर आँखो के सामने सजीव(लाइव) सेक्स होता देख कर और वो भी अपने जाने-पहचाने लोगो के बीच, मैं तो अर्धमुरछछित अवस्था मे आ गयी.पूरे कमरे मे उन्न दोनो के कपड़े फैले पड़े थे जिनको देख कर समझा जा सकता है की ये उतारे गये थे या नोचे गये थे.सामने एक बेड के उपर अशोक और वैशाली एकदम जन्मजात नग्न-अवस्था मे लिपटे हुए थे अशोक बेतहाशा वैशाली के यौवन-उभारो को चूसे जा रहा था और बीच-बीच मे उनपर अपने दाँत(टीत) भी गढ़ा देता जिसकी वजह से वैशाली के मूह से कामुक सिसकी निकल जाती. वैशाली के हाथो मे अशोक का लंबा-मोटा लिंग था जिसे वो अपने हाथो से सहला रही थी. अशोक ने उसके हाथो को पकड़ कर उसके सर के उपर ले गया और वैशाली की आँखो मे देखते हुए अपने लिंग को वैशाली की योनि पर रगड़ने लगा.वैशाली का तो मानो बुरा हाल हो गया वो उत्तेजना से च्चटपटाने लगी और अशोक से लिंग को अपनी योनि मे घुसाने की विनती करने लगी. अशोक पर भी मस्त पूरी सवार थी उसने अपने खेल को जो जाने कितनी देर से चल रहा था उसको और लंबा ना खींचते हुए अपने लिंग को वैशाली की योनि मे प्रवेश करवा दिया.उययययीीईईईईईई….माआआआआआअ….
.पहले ही अपने जीभ और दांतो से मुझे इतना घायल कर दिया था और अब इसको भी एक झटके घुस्साअ दिया.और ये सब कहते हुए अपने मूह से ज़ोर-ज़ोर से कुच्छ बड़बड़ाती हुई वैशाली अपनी कमर को उचकाने लगी.कमरे मे थ्वप-थ्वप की आवाज़े गूंजने लगी और कमरे का तापमान बढ़ने लगा.