शिकेन्दर ने भी मानो पूर्वनियोजन की तहत उसका चाकू निकाल कर शरद के गर्दन पर रखा और उसका मुँह दबाकर उसे दबोच लिया. मानो अब पूरी स्थिति उनके कब्ज़े मे आई हो इस तरह से वे एकदुसरे की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराए.
"चंदन इसका मुँह बाँध..." शिकेन्दर ने चंदन को आदेश दिया.
जैसे ही मीनू ने चिल्लाने की कोशिश की अशोक ने उसका मुँह ज़ोर से दबाते हुए और मजबूती से उसे दबोच लिया.
"सुनील इसका भी बाँध.."
चंदन ने शरद के मुँह, हाथ और पैर टेप से बाँध दिया. सुनील ने मीनू के मुँह और हाथ बाँध दिए.
उन्होने जिस फुर्ती से यह सब हरकतें की उससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे ऐसे कामो मे बड़े तरबेज़ हो.
अब शिकेन्दर के चेहरे पर एक वहशी मुस्कुराहट छुपाए नही छुप रही थी.
"आए... इसके आखोंपर कुछ बाँध रे... बेचारे से देखा नही जाएगा..." शिकेन्दर ने कहा.
चंदन ने उनके ही सामने से एक कपड़ा निकाल कर शरद की आँखों पर बाँध दिया. अब शरद को सिर्फ़ अंधेरे के सिवा कुछ दिखाई नही दे रहा था और सिर्फ़ सुनाई दे रहा था वह उन गिदडो की वहशी और राक्षशी हँसी और मीनू का दब-दबाया हुआ चीत्कार...
शरद को एकदम सबकुछ शांत और स्तब्ध होने का एहसास हुआ.
"आए उसके आखोंपर बँधा कपड़ा छोड़ रे...." शिकेन्दर चिढ़ा हुआ स्वर गूंजा.
शरद को उसके आखोंपर से कोई कपड़ा निकाल रहा है इसका एहसास हुआ. उसका आक्रोश आँसुओं के द्वारा बाहर निकलकर वह कपड़ा पूरी तरफ गीला हुआ था.
जैसे ही उन्होने उसके आँखों से वह कपड़ा निकाला, उसने सामने का द्रिश्य देखा. उसके जबड़े कसने लगे, आँखें अँगारे बरसाने लगी, सारा शरीर गुस्से से काँपने लगा था. वह खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगा. उसके सामने उसकी मीनू निर्वस्त्र पड़ी हुई थी. उसकी गर्दन एक तरफ लटक रही थी. उसकी आखें खुली थी और सफेद हो गयी थे. उसका शरीर निश्चल हो चुका था. उसके प्राण कब के जा चुके थे.
अचानक उसे एहसास हुआ कि उसके सरपार किसी भारी वास्तुका प्रहार हुआ और वह धीरे धीरे होश खोने लगा.
जब शरद होश मे आया, उसे एहसास हुआ कि अब वह बँधा हुआ नही था. उसके हाथ पैर बंधन से मुक्त थे. लेकिन जहाँ कुछ देर पहले मीनू की बॉडी पड़ी हुई थी वहाँ अब कुछ भी नही था. वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया, उसने चारो और अपनी नज़र घुमाई.
वह मुझे गिरा हुआ कोई भयानक सपना तो नही था....
हे भगवान वह सपना ही हो...
वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा....
लेकिन वह सपना कैसे होगा...
"मीनू..." उसने एक आवाज़ दिया.
उसे मालूम था कि उसे कोई प्रतिसाद आनेवाला नही है...
लेकिन एक झुटि आस....
उसके सर मे पीछे की तरफ से बहुत दर्द हो रहा था. इसलिए उसने सर को पीछे हाथ लगाकर देखा. उसका हाथ लाल लाल खून से सन गया.
उन लोगों ने प्रहार कर उसे बेसुद्ध किया था उसका वह जख्म और निशानी थी. अब उसे पक्का विश्वास हुआ था कि वह कोई सपना नही था.
वह तेजिसे रूम के बाहर दौड़ पड़ा. बाहर इधर उधर ढूँढते हुए वह गलियारे से दौड़ रहा था. वह लिफ्ट के पास गया और लिफ्ट का बटन दबाया. लिफ्ट मे घुसने से पहले फिर से उसने एक बार चारों तरफ अपनी ढूँढती नज़र दौड़ाई...
कहाँ गये वे लोग...?
और मीनू की बॉडी किधर है...?
कि उन्होने लगा दिया उसे ठिकाने...
वह होटेल के बाहर आकर अंधेरे मे पागलों की तरह इधर उधर दौड़ रहा था. सब तरफ अंधेरा था. आधी रात होकर गयी थी. रास्ते पर भी आने जानेवाले बहुत ही कम दिखाई दे रहे थे. एक कोने पर खड़ा एक टॅक्सिवाला उसे दिखाई दिया.
उसे शायद पता हो...
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
वह उसे टॅक्सी के पास गया, टॅक्सी वाले से पूछा. उसने दाई तरफ इशारा कर कुछ तो कहा. शरद टॅक्सी मे बैठ गया और उसने टॅक्सी वाले को टॅक्सी उधर लेने को कहा....
निराश, हताश हुआ शरद धीमे गति से चलता हुआ अपने रूम के पास वापस आ गया. रूम मे जाकर उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
उसने बेड की तरफ देखा... बेड शीट पर झुर्रिया पड़ी हुई थी. वह बेड पर बैठ गया...
क्या किया जाय...?
पोलीस के पास जाऊ तो वे मुझे ही गिरफ्तार करेंगे...
और खून का इल्ज़ाम मुझ पर ही लगाएँगे...
और वैसे देखा जाए तो में ही तो हूँ उसके खून के लिए ज़िम्मेदार...
सिर्फ़ खून ही नही तो उसपर हुई बलात्कार के लिए भी...
उसने आपने पैर मॉड्कर घुटने पेट के पास लिए और घुटनो मे अपना मुँह छिपाया और वह फूटफूटकर रोने लगा.
रोते हुए उसका ध्यान वह कपाट के नीचे गिरे काग़ज़ के टुकड़े ने खींच लिया. वह खड़ा होगया अपने आँसू अपने आस्तीन से पोंछ लिए.
काग़ज़ का टुकड़ा...? यहाँ कैसे...?
उसने वह काग़ज़ का टुकड़ा उठाया...
काग़ज़पार चार अँग्रेज़ी अक्षर लिखे हुए थे - एसेच, ए, एस & सी और उन अक्षरों के सामने कुछ नंबर्स लिखे हुए थे. शायद वे कोई पत्तों के ग़मे के पायंट्स होंगे...
उसने वह काग़ज़ उलट पुलटकार देखा. काग़ज़ के पीछे एक नंबर था. शायद मोबाइल नंबर होगा.
वह दृढ़तापूर्वक खड़ा हो गया -
"अशोक.... में तुम्हे छोड़ूँगा नही..." वह गाराज़ उठा.
इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठकर सब सुन रहा था. वह कब की कहानी पूरी कर चुका था. लेकिन वह दर्दभरी कहानी सुनकर कमरे मे सारे लोग इतने दर्द से अभिभूत हो गये थे कि बहुत देर तक कोई कुछ नही बोला. कमरे मे एक अनसर्गिक सन्नाटा छाया था.
एक प्रेम कहानी का ऐसा भयानक दर्दनाक अंत होगा...?
किसी ने नही सोचा था...
मीनू और शरद की प्रेम कहानी कॅबिन मे उपस्थित सभी लोगों के दिल को छू गयी थी.
थोड़ी देर बाद इंस्पेक्टर राज ने अपनी भावनाओं को काबू मे करते हुए पूछा,
"क्या शरद ने पोलीस स्टेशन मे रिपोर्ट दर्ज़ की थी...?"
"नही..."
"फिर... यह सब तुम्हे कैसे पता...?"
"क्योंकि मीनू का भाई... अंकित ने रिपोर्ट दर्ज़ की थी..."
"लेकिन उसने भी रिपोर्ट कैसे दर्ज़ की...? मेरा मतलब है उसे वह सबकुछ पता कैसे चला...? क्या शरद उसे मिला था...?" राज ने एक के बाद एक सवालों की छड़ी लगा दी.
"नही... शरद उसे उस घटना के बाद कभी नही मिला..." धरम ने कहा.
"फिर उसे खूनी कौन है यह कैसे पता चला...?" राज को अब उसे सता रहे सारे सवालों के जवाब मिलने की जल्दी हो रही थी..
"कुछ महीने पहले शरद ने मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे खत लिख कर सब जानकारी लिखी थी... उसमे उसने उन चार लोगों के नाम पते भी लिखे थे.."
"फिर रिपोर्ट का नतीजा क्या निकला...?" राज ने अगला सवाल पूछा.
"... इस केस पर हमने ही तहक़ीक़ात की थी... लेकिन ना मीनू की डेड बॉडी मिली थी.. ना शरद मिला जो कि इस घटना का अकेला और बहुत अहम चश्मदीद गवाह था... इसलिए केस बिना कुछ नतीजे के वैसी ही लटका रहा... और अभी भी वैसे ही लटका पड़ा है..."
"अच्छा... शरद का कुछ अता पता ?" राज ने पूछा.
"उसके बारे मे किसी को भी कुछ पता नही चला... उस घटना के बाद वह कभी उसके अपने घर भी नही आया... वह जिंदा है या मरा... इसका भी कुछ पता नही चला... सिर्फ़ उसके अंकित को आए खत से ऐसा लगता है कि वह जिंदा होना चाहिए... लेकिन अगर वह जिंदा है तो छिप क्यो रहा है...? यही एक बात समझ मे नही आती..."
"उसका कारण सीधा है..." इतनी देर से ध्यान देकर सुन रहे पवन ने कहा.
"हाँ... उसका एक ही कारण हो सकता है कि... हाल ही मे जो दो कत्ल हुए उसमे शरद का ही हाथ हो सकता है.. और इसलिए ही मेने तुम्हे यहाँ बुलाकर यह सब जानकारी तुम्हे देना मुनासिब समझा..." धरम ने कहा.
"बराबर है तुम्हारा... इस खून मे शरद का हाथ हो सकता है ऐसा मान लेने की काफ़ी गुंजाइश है.. लेकिन मुझे एक बात समझ मे नही आती है कि.. जब वह कमरा या मकान अंदर से और सब तरफ से बंद होता है तब वह खूनी अंदर पहुचता कैसे है..? वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है यह एक ना सुलझनेवाली पहेली बन चुकी है..."
"अच्छा अब मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे पता चला तो उसकी प्रतिक्रिया क्या थी..? और अब केस के नतीजे मे देरी हो रही है इसके बारे मे उसकी प्रतिक्रिया कैसी है...?"
"वह आदमी पागलों जैसा हो चुका है... इस पोलीस स्टेशन मे उसका हमेशा चक्कर रहता है.. और केस का आगे क्या हुआ यह वह हमेश पूछता रहता है.. वह यह सब फोन करके भी पूछ सकता है.. लेकिन नही वह खुद यहाँ आकर पूछता है.. मुझे तो उसपर बहुत तरस आता है.. लेकिन अपने हाथ मे जितना है उतना ही हम कर सकते है..." धरम ने कहा.
"इसका मतलब हाल ही मे जो दो खून हुए उसका कातिल मीनू का भाई अंकिता भी हो सकता है..." राज ने कहा.
"आपने उसे देखना चाहिए... उसकी तरफ देख कर तो ऐसा नही लगता..." धरम ने कहा.
"लेकिन यह एक संभावना है जिसे हम झुटला नही सकते..." राज ने प्रतिवाद किया.
इंस्पेक्टर धरम ने थोड़ी देर सोचा और फिर हाँ मे अपना सर हिलाया...
क्रमशः……………………
निराश, हताश हुआ शरद धीमे गति से चलता हुआ अपने रूम के पास वापस आ गया. रूम मे जाकर उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
उसने बेड की तरफ देखा... बेड शीट पर झुर्रिया पड़ी हुई थी. वह बेड पर बैठ गया...
क्या किया जाय...?
पोलीस के पास जाऊ तो वे मुझे ही गिरफ्तार करेंगे...
और खून का इल्ज़ाम मुझ पर ही लगाएँगे...
और वैसे देखा जाए तो में ही तो हूँ उसके खून के लिए ज़िम्मेदार...
सिर्फ़ खून ही नही तो उसपर हुई बलात्कार के लिए भी...
उसने आपने पैर मॉड्कर घुटने पेट के पास लिए और घुटनो मे अपना मुँह छिपाया और वह फूटफूटकर रोने लगा.
रोते हुए उसका ध्यान वह कपाट के नीचे गिरे काग़ज़ के टुकड़े ने खींच लिया. वह खड़ा होगया अपने आँसू अपने आस्तीन से पोंछ लिए.
काग़ज़ का टुकड़ा...? यहाँ कैसे...?
उसने वह काग़ज़ का टुकड़ा उठाया...
काग़ज़पार चार अँग्रेज़ी अक्षर लिखे हुए थे - एसेच, ए, एस & सी और उन अक्षरों के सामने कुछ नंबर्स लिखे हुए थे. शायद वे कोई पत्तों के ग़मे के पायंट्स होंगे...
उसने वह काग़ज़ उलट पुलटकार देखा. काग़ज़ के पीछे एक नंबर था. शायद मोबाइल नंबर होगा.
वह दृढ़तापूर्वक खड़ा हो गया -
"अशोक.... में तुम्हे छोड़ूँगा नही..." वह गाराज़ उठा.
इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठकर सब सुन रहा था. वह कब की कहानी पूरी कर चुका था. लेकिन वह दर्दभरी कहानी सुनकर कमरे मे सारे लोग इतने दर्द से अभिभूत हो गये थे कि बहुत देर तक कोई कुछ नही बोला. कमरे मे एक अनसर्गिक सन्नाटा छाया था.
एक प्रेम कहानी का ऐसा भयानक दर्दनाक अंत होगा...?
किसी ने नही सोचा था...
मीनू और शरद की प्रेम कहानी कॅबिन मे उपस्थित सभी लोगों के दिल को छू गयी थी.
थोड़ी देर बाद इंस्पेक्टर राज ने अपनी भावनाओं को काबू मे करते हुए पूछा,
"क्या शरद ने पोलीस स्टेशन मे रिपोर्ट दर्ज़ की थी...?"
"नही..."
"फिर... यह सब तुम्हे कैसे पता...?"
"क्योंकि मीनू का भाई... अंकित ने रिपोर्ट दर्ज़ की थी..."
"लेकिन उसने भी रिपोर्ट कैसे दर्ज़ की...? मेरा मतलब है उसे वह सबकुछ पता कैसे चला...? क्या शरद उसे मिला था...?" राज ने एक के बाद एक सवालों की छड़ी लगा दी.
"नही... शरद उसे उस घटना के बाद कभी नही मिला..." धरम ने कहा.
"फिर उसे खूनी कौन है यह कैसे पता चला...?" राज को अब उसे सता रहे सारे सवालों के जवाब मिलने की जल्दी हो रही थी..
"कुछ महीने पहले शरद ने मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे खत लिख कर सब जानकारी लिखी थी... उसमे उसने उन चार लोगों के नाम पते भी लिखे थे.."
"फिर रिपोर्ट का नतीजा क्या निकला...?" राज ने अगला सवाल पूछा.
"... इस केस पर हमने ही तहक़ीक़ात की थी... लेकिन ना मीनू की डेड बॉडी मिली थी.. ना शरद मिला जो कि इस घटना का अकेला और बहुत अहम चश्मदीद गवाह था... इसलिए केस बिना कुछ नतीजे के वैसी ही लटका रहा... और अभी भी वैसे ही लटका पड़ा है..."
"अच्छा... शरद का कुछ अता पता ?" राज ने पूछा.
"उसके बारे मे किसी को भी कुछ पता नही चला... उस घटना के बाद वह कभी उसके अपने घर भी नही आया... वह जिंदा है या मरा... इसका भी कुछ पता नही चला... सिर्फ़ उसके अंकित को आए खत से ऐसा लगता है कि वह जिंदा होना चाहिए... लेकिन अगर वह जिंदा है तो छिप क्यो रहा है...? यही एक बात समझ मे नही आती..."
"उसका कारण सीधा है..." इतनी देर से ध्यान देकर सुन रहे पवन ने कहा.
"हाँ... उसका एक ही कारण हो सकता है कि... हाल ही मे जो दो कत्ल हुए उसमे शरद का ही हाथ हो सकता है.. और इसलिए ही मेने तुम्हे यहाँ बुलाकर यह सब जानकारी तुम्हे देना मुनासिब समझा..." धरम ने कहा.
"बराबर है तुम्हारा... इस खून मे शरद का हाथ हो सकता है ऐसा मान लेने की काफ़ी गुंजाइश है.. लेकिन मुझे एक बात समझ मे नही आती है कि.. जब वह कमरा या मकान अंदर से और सब तरफ से बंद होता है तब वह खूनी अंदर पहुचता कैसे है..? वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है यह एक ना सुलझनेवाली पहेली बन चुकी है..."
"अच्छा अब मीनू के भाई को इस घटना के बारे मे पता चला तो उसकी प्रतिक्रिया क्या थी..? और अब केस के नतीजे मे देरी हो रही है इसके बारे मे उसकी प्रतिक्रिया कैसी है...?"
"वह आदमी पागलों जैसा हो चुका है... इस पोलीस स्टेशन मे उसका हमेशा चक्कर रहता है.. और केस का आगे क्या हुआ यह वह हमेश पूछता रहता है.. वह यह सब फोन करके भी पूछ सकता है.. लेकिन नही वह खुद यहाँ आकर पूछता है.. मुझे तो उसपर बहुत तरस आता है.. लेकिन अपने हाथ मे जितना है उतना ही हम कर सकते है..." धरम ने कहा.
"इसका मतलब हाल ही मे जो दो खून हुए उसका कातिल मीनू का भाई अंकिता भी हो सकता है..." राज ने कहा.
"आपने उसे देखना चाहिए... उसकी तरफ देख कर तो ऐसा नही लगता..." धरम ने कहा.
"लेकिन यह एक संभावना है जिसे हम झुटला नही सकते..." राज ने प्रतिवाद किया.
इंस्पेक्टर धरम ने थोड़ी देर सोचा और फिर हाँ मे अपना सर हिलाया...
क्रमशः……………………
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--11
गतान्क से आगे………………………
लगभग आधी रात को अशोक और शिकेन्दर हॉल मे विस्की पी रहे थे. एक के बाद एक उनके दो साथियों का कत्ल हुआ था. पहली बार जब चंदन का खून हुआ तभी उन्हे शक हुआ था कि हो ना हो यह मामला मीनू के खून से संबंधित है. लेकिन बाद मे सुनील कत्ल के बाद उनका शक यकीन मे बदल गया था कि यह मीनू के खून की वजह से ही हो रहा है.. कुछ भी हो जाय हम घबराएँगे नही ऐसा ठान लेने के बाद भी उनको रह रहकर अगला नंबर उन दोनो मे से ही किसी एक का स्पष्ट रूपसे दिख रहा था. इसलिए उनके चेहरे से चिंता और डर हटने के लिए तैय्यार नही था. वे विस्की के एक के बाद एक ना जाने कितने ग्लास खाली कर रहे थे और अपना डर मिटाने की कोशिश कर रहे थे.
"मेने नही कहा था तुम्हे...?" शिकेन्दर ने आवेश मे आकर कहा.
अशोक ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.
"उस साले हरामी को जिंदा मत छोड़ कर के... उसको हमने तभी ठिकाने लगाना चाहिए था.. उस लड़की के साथ..." शिकेन्दर विस्की का कड़वा घूँट लेते हुए बूरासा मुँह बनाते हुए बोला.
उन्हे शक नही.. पक्का यकीन था कि शरद का ही इन दो वारदातों मे हाथ होगा..
"हमे लगा नही कि साला इतना डेंजरस निकलेगा..." अशोक ने कहा.
"इंतकाम... इंतकाम आदमी को डेंजरस बना देता है.." शिकेन्दर ने कहा.
"लेकिन एक बात मेरे ख़याल मे नही आ रही है कि वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है.. पोलीस जब वहाँ पहुचती है तब घर अंदर से बंद किया हुआ रहता है और बॉडी अंदर पड़ी हुई... और यही नही तो सुनील के गलेका तोड़ा हुआ माँस का टुकड़ा मेरे किचन मे कैसे आया...? और खास बात तब मैने मेरा घर खिड़कियाँ, दरवाजे सब कुछ अच्छी तरह से बंद किया था..." अशोक आस्चर्य जताते हुए बोला...
अशोक कही शुन्य मे देख कर सोचते हुए बोला,
"यह सब देखते हुए एक बात मुमकिन लगती है.."
"कौन सी...?" शिकेन्दर ने विस्की का खाली हुआ ग्लास भरते हुए पूछा.
"तुम्हारा भूतों पर विश्वास है...?" अशोक ने बोले या ना बोले इस मन की द्विधा स्थिति मे पूछा. क्योंकि उसने तो वो नज़ारा खुद देखा था लेकिन कैसे ना कैसे करके अशोक बच निकला था..
"मूर्ख की तरह कुछ भी मत बको.. उसके पास कुछ तो ट्रिक है जिसको इस्तेमाल करके वह इस तरह से कत्ल कर रहा है..." शिकेन्दर ने कहा.
"मुझे भी वही लगता है... लेकिन कभी कभी अलग अलग तरह के शक मन मे आते है..." अशोक ने कहा.
"चिंता मत करो... वह हमारे तक पहुँचने के पहले ही हम उसके पास पहुँचते है और उसको ठिकाने लगाते है..." शिकेन्दर उसे सांत्वना देने के कोशिश करते हुए बोला...
"हमे पोलीस प्रोटेक्षन लेना चाहिए..." अशोक ने सोच कर कहा.
"पोलीस प्रोटेक्षन...? पागल हो गये हो क्या...? हम उन्हे क्या बोलने वाले है.. कि सरकार हमने उसे लड़की को मारा है.. हमारे से ग़लती हो गयी... सॉरी.. ऐसी ग़लती हमारे से फिर नही होगी.. कृपया हमारा रक्षण कीजिए...सरकार" शिकेन्दर दारू के नशे मे माफी माँगने के हावभाव करते हुए बोला.
"वह बाद की बात हो गयी... पहले अपना प्रोटेक्षन सबसे अहम है.. वह क्या है कि... सर सलामत तो पगड़ी पच्चास..." अशोक ने कहा.
"लेकिन पोलीस के पास जाकर उनसे प्रोटेक्षन माँगना.... कुछ..."
पोलीस प्रोटेक्षन का ख़याल आते ही अशोक अपने डर से काफ़ी उभर गया था.
"उसकी चिंता तुम मत करो.. वह सब मुझपर छोड़ दो..." अशोक ने उसका वाक्य बीच मे ही तोड़ते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहा...
राज अपने कॅबिन मे सर नीचे झुकाकर सोच मे डूबा हुआ बैठा था. इतने मे, पवन उसका असिस्टेंट वहाँ आगया.
"सर... वह कातिल कत्ल की जगह कैसे पहुँचता होगा और फिर कैसे बाहर जाता होगा... इसके बारे मे मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया है.." पवन ने उत्साह भरे स्वर मे कहा.
गतान्क से आगे………………………
लगभग आधी रात को अशोक और शिकेन्दर हॉल मे विस्की पी रहे थे. एक के बाद एक उनके दो साथियों का कत्ल हुआ था. पहली बार जब चंदन का खून हुआ तभी उन्हे शक हुआ था कि हो ना हो यह मामला मीनू के खून से संबंधित है. लेकिन बाद मे सुनील कत्ल के बाद उनका शक यकीन मे बदल गया था कि यह मीनू के खून की वजह से ही हो रहा है.. कुछ भी हो जाय हम घबराएँगे नही ऐसा ठान लेने के बाद भी उनको रह रहकर अगला नंबर उन दोनो मे से ही किसी एक का स्पष्ट रूपसे दिख रहा था. इसलिए उनके चेहरे से चिंता और डर हटने के लिए तैय्यार नही था. वे विस्की के एक के बाद एक ना जाने कितने ग्लास खाली कर रहे थे और अपना डर मिटाने की कोशिश कर रहे थे.
"मेने नही कहा था तुम्हे...?" शिकेन्दर ने आवेश मे आकर कहा.
अशोक ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.
"उस साले हरामी को जिंदा मत छोड़ कर के... उसको हमने तभी ठिकाने लगाना चाहिए था.. उस लड़की के साथ..." शिकेन्दर विस्की का कड़वा घूँट लेते हुए बूरासा मुँह बनाते हुए बोला.
उन्हे शक नही.. पक्का यकीन था कि शरद का ही इन दो वारदातों मे हाथ होगा..
"हमे लगा नही कि साला इतना डेंजरस निकलेगा..." अशोक ने कहा.
"इंतकाम... इंतकाम आदमी को डेंजरस बना देता है.." शिकेन्दर ने कहा.
"लेकिन एक बात मेरे ख़याल मे नही आ रही है कि वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है.. पोलीस जब वहाँ पहुचती है तब घर अंदर से बंद किया हुआ रहता है और बॉडी अंदर पड़ी हुई... और यही नही तो सुनील के गलेका तोड़ा हुआ माँस का टुकड़ा मेरे किचन मे कैसे आया...? और खास बात तब मैने मेरा घर खिड़कियाँ, दरवाजे सब कुछ अच्छी तरह से बंद किया था..." अशोक आस्चर्य जताते हुए बोला...
अशोक कही शुन्य मे देख कर सोचते हुए बोला,
"यह सब देखते हुए एक बात मुमकिन लगती है.."
"कौन सी...?" शिकेन्दर ने विस्की का खाली हुआ ग्लास भरते हुए पूछा.
"तुम्हारा भूतों पर विश्वास है...?" अशोक ने बोले या ना बोले इस मन की द्विधा स्थिति मे पूछा. क्योंकि उसने तो वो नज़ारा खुद देखा था लेकिन कैसे ना कैसे करके अशोक बच निकला था..
"मूर्ख की तरह कुछ भी मत बको.. उसके पास कुछ तो ट्रिक है जिसको इस्तेमाल करके वह इस तरह से कत्ल कर रहा है..." शिकेन्दर ने कहा.
"मुझे भी वही लगता है... लेकिन कभी कभी अलग अलग तरह के शक मन मे आते है..." अशोक ने कहा.
"चिंता मत करो... वह हमारे तक पहुँचने के पहले ही हम उसके पास पहुँचते है और उसको ठिकाने लगाते है..." शिकेन्दर उसे सांत्वना देने के कोशिश करते हुए बोला...
"हमे पोलीस प्रोटेक्षन लेना चाहिए..." अशोक ने सोच कर कहा.
"पोलीस प्रोटेक्षन...? पागल हो गये हो क्या...? हम उन्हे क्या बोलने वाले है.. कि सरकार हमने उसे लड़की को मारा है.. हमारे से ग़लती हो गयी... सॉरी.. ऐसी ग़लती हमारे से फिर नही होगी.. कृपया हमारा रक्षण कीजिए...सरकार" शिकेन्दर दारू के नशे मे माफी माँगने के हावभाव करते हुए बोला.
"वह बाद की बात हो गयी... पहले अपना प्रोटेक्षन सबसे अहम है.. वह क्या है कि... सर सलामत तो पगड़ी पच्चास..." अशोक ने कहा.
"लेकिन पोलीस के पास जाकर उनसे प्रोटेक्षन माँगना.... कुछ..."
पोलीस प्रोटेक्षन का ख़याल आते ही अशोक अपने डर से काफ़ी उभर गया था.
"उसकी चिंता तुम मत करो.. वह सब मुझपर छोड़ दो..." अशोक ने उसका वाक्य बीच मे ही तोड़ते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहा...
राज अपने कॅबिन मे सर नीचे झुकाकर सोच मे डूबा हुआ बैठा था. इतने मे, पवन उसका असिस्टेंट वहाँ आगया.
"सर... वह कातिल कत्ल की जगह कैसे पहुँचता होगा और फिर कैसे बाहर जाता होगा... इसके बारे मे मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया है.." पवन ने उत्साह भरे स्वर मे कहा.