एक बार फ़िर से मैदान में आ गया था अजय का छोटू. इधर चाची अपने भतीजे के इस महान हथियार का स्वाद लेने में जुटी हुईं थीं उधर अजय की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अपने दोनों हाथों को चाची के सिर पर रख कर नीचे से अपनी कमर हिला हिला कर उनके मुहं को ही चोदने लग गया. "ए अजय" चाची के मुहं से गुर्राहट सी निकली "मैं कर रही हूं ना. चुपचाप पड़े रहो, नहीं तो चाची चली जायेगी". बिचारे अजय ने कमर को तो रोक लिया लेकिन किसी प्राक्रतिक प्रतिक्रिया के वशीभूत होकर अपना सर ज़ोर ज़ोर से इधर उधर पटकने लगा. भई, किसी ना किसी चीज को तो हिलना ही था. सिर उठा कर नीचे देखा की चाची क्या कर रही है. हे भगवान! अब तक देखी किसी भी ब्लू फ़िल्म और उसके सपनों से भी ज्यादा सेक्सी था ये तो. बिखरे हुये लम्बे काले बाल, गले से लटका हुआ मन्गलसूत्र और उसके ठीक पीछे उछलते हुए दो बड़े बड़े भारी चूंचे. मानो पके हुये आमों की तरह अभी कोई बस चूस ले. चाची कि मांग में भरा हुआ सिन्दूर और उनकी सांत्वना देती मुस्कुराहट. कुल मिला कर अजय के लिये तो वो एक देवी जैसी थी. एक ऐसी वासना की देवी जो आज उसके कुमारत्व को छीनकर उसे पूर्ण पुरुष बना देगी.
शोभा एक क्षण के लिये रुकी और अपने मुंह में इकट्ठे हुये थूक को अजय के सुपारे पर उगल दिया. फ़िर दोनो होंठों को गोल करके सुपाड़े के ऊपर से फ़िसलाते एक ही झटके में अजय का ७ इन्च लंबा लन्ड निगल लिया. चाची के मुहं के अन्दर खुरदुरी जीभ अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही थी. लन्ड की त्वचा पर चाची की जीभ का स्पर्श पा कर तो अजय की जैसे जान ही निकल गई. "अरे चाचीईईईईईई, मैं मरा, मेरा लन्ड पिघल जायेगा....चुसो मुझे.. जोर जोर से जल्दी चुसो. हां हां.. उफ़." बिस्तर की चद्दर उसकी मुठ्ठी में थी और खुद वो पागलों की तरह सिसकार रहा था. अजय कि बेकाबू कमर अपने आप ही उछल रही थी. चाची का मन्गलसूत्र उसके टट्टों से टकरा कर मादक सन्गीत पैदा कर रहा था. शोभा चाची का एक हाथ अजय के बाल भरे मांसल सीने पर घूम रहा था तो दूसरे ने उन्गलियों से लन्ड को थाम रखा था. कुछ देर पहले का खुद का विचार कि अजय को एक बार मुठ्ठ मार कर वो चली जायेगी उन्हें अब बेमानी लग रहा था. आखिर कैसे छोड़ कर जायेगी अपने प्यारे भतीजे को ऐसी तड़पती हालत में. और खुद उसकी चूत में जो बुलबुले उठ रहे है उसका एक मात्र समाधान भी अजय का ये बलशाली चर्बीदार लन्ड ही था.
चाची अब फ़ाईनल राउन्ड की तैयारी में थीं. उन्होनें अजय के लन्ड पर से अपना मुहं हट लिया. वासना और वास्तविकता के बीच फ़र्क करना बहुत जरुरी था. कमरे के अधखुले दरवाजे से किसी भी व्यक्ति के अन्दर आने का जोखिम तो था ही. पर देह की सुलगती प्यास में दोनों दीन दुनिया से बेखबर हो चुके थे. चाची पूरी तरह से अजय के ऊपर आ चुकी थीं. अजय तो बस जैसे इसी मौके की तलाश में था. तुरन्त ही उसके हाथों ने आगे बढ़कर चाची के विशाल थनों को दबोच लिया. एक चूचें की निप्पल को होठों मे दबा वो चाची की जवानी का रस पीने में मश्गूल हो गया तो दूसरी तरफ़ चाची ने भी खुद को अजय के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करते हुये अपने हाथों से अजय के विशाल हथौड़े जैसे लन्ड को टपकती चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही चूत की मुलायम पन्खुड़ियों ने अजय के पौरुष को अन्दर समाया, अजय हुंकारा "आह!. बहुत गरम है चाची आपकी चूत, मैं झड़ जाऊंगा". "हां मेरे लाल, सब्र रख, कुछ नहीं होगा" बरसों से इसी तरह अजय को कदम कदम पर हिम्मत बधांती आई थी शोभा. "अब चोद दे आज मुझे, चोद अपनी चाची को. इस लन्ड को मार मेरी चूत में." अजय का हौसला बढ़ाने के लिये शोभा ने उसे ललकारा. अजय ने चाची की विशाल गोल गांड को हथेली मे दबाया और चल पड़ा पुरुषत्व के आदिम सफ़र पर. अजय की कमर के लयबद्ध वहशी धक्कों के साथ उसका लन्ड चाची की रिसती चूत में अन्दर बाहर होने लगा. "हां चाची, ले लो मुझे. मेरा लन्ड सिर्फ़ आपका है. मैं अपना पानी आपकी चूत में भर देना चाहता हूं. आह! आह! हाय! मां!" अजय चीख पड़ा. शोभा समझ गयी कि अजय की इन आवाजों से कोई न कोई जाग जायेगा. चाची ने तुरन्त ही अपने रसीले होंठ अजय के होठों पर रख दिये. "म्ममह" अजय चाची के मुंह मे कराह रहा था. "खट खट" अचानक ही किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया "बेटा, सब ठीक तो है ना?" दीप्ति का स्वर सुनाई दिया. शायद उसे कुछ आवाजें सुनाय़ी दे गई थी और चिन्तावश वो अजय को देखने उसके कमरे के दरवाजे तक चली आईं थीं. कमरे के अन्दर आना दीप्ति ने दो महीने पहले ही छोड़ दिया था जब एक रात गलती से वो उसके कमरे में घुस आई थी और उस वक्त अजय पूरे जोश के साथ मुठ्ठ मारने में लगा हुआ था. मां और पुत्र की आंखें मिलते ही दीप्ति बिना कुछ कहे उलटे पांव वापिस लौट गयी और फ़िर अजय से इस बारे में कभी जिक्र भी नहीं किया. किन्तु उसके बाद अजय के साथ ऐसे किसी भी हादसे से वो बचती थी.
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -3
"हां - मम्मी, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण चाची की फ़ुदकती चूत थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी. शोभा के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी चूत के हाथों लाचार थी. दो क्षण रुकने के बाद चाची फ़िर से शुरु हो गयीं.
अजय अभी तक झड़ा नहीं था. शोभा ने तो सोचा था कि नौजवान है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन अजय तो पहले ही दो बार लन्ड का तेल निकाल चुका था. पहली बार चाची के कमरे में आने के ठीक पहले और दूसरी बार खुद चाची के हाथों से. जो भी हो पर शोभा चाची का अजय के लन्ड पर कूदना नहीं रुका. अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ अजय का लन्ड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था. दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा. फ़िर पहली बार शोभा चाची को अपनी चूत में एक सैलाब उठता महसूस हुआ. जबर्दस्त धड़ाके भरा आर्गैसम था. चाची के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी. होठों के किनारे से निकल कर थूक गर्दन तक बह आया था. ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी. जिस भतीजे को खुद पाल पोस कर बड़ा किया है आज उसी के कुमारत्व को लेने क सौभाग्य भी उनको प्राप्त हुआ था. और क्या पुरुष था उनका भतीजा, अजय. निश्चित ही आने वाले समय में कई सौ चूतों को पावन करने का अवसर उसे मिल सकता है. अचानक कमरे का दरवाजा खुला. दीप्ति दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ी हुई थी. "बेटा, सबकुछ ठीक है ना, मुझे फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी." शायद दीप्ति ने कुछ भी देखा नहीं था. अजय फ़िर से मुठ्ठ मार रहा है और ये उसी की आवाजें है, यही सोचकर दीप्ति अन्दर नहीं आई. "कुछ नहीं मम्मी". अजय को तो सिर्फ़ अपनी चाची की पनीयाई चूत से मतलब था. चाची को बिस्तर पर पटक कर वो खुद उनके ऊपर आ गया. "रुको, बेटा" चाची ने रोका उसे. चाची ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले अजय के लन्ड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया. काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये. शोभा अब उसके सुखे लन्ड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी.
लेकिन शोभा चाची ने शायद यहां कुछ गलती कर दी. अजय को बच्चा समझ कर उन्होनें लन्ड से चिकना पानी साफ़ किया था. परन्तु जब अजय ने एक ही झटके में पूरा का पूरा जननांग चाची की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया. सात इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे हथियार से और क्या उम्मीद की जा सकती है. उन्हें समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था. अजय का लन्ड किसी मोटर पिस्टन की भांति चाची कि चूत पर कार्यरत था. अजय के हर धक्के के साथ ही चाची की जान सी निकल रही थी. पूरा शरीर, स्तन, दिमाग यहां तक की आखें भी झटकों की ताल में हिल रहे थे. अजय की तेजी और बैल जैसी ताकत का मुकाबला नहीं था. नाखूनों को भतीजे के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली. किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती थी चाची इस समय. हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था. कई बार अजय के सीने पर दांत गड़ाए. अजय को सिग्नल करने के इरादे से चाची ने अपने तलुओं से उसकी कमर को भी जकड़ा. लेकिन इससे तो उसकी उत्तेजना में और वृद्धि हो गई. चन्द वहशी ठेलों के पश्चात अजय ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर लिया. "चाची, चाची..हां चाची, मेरा पानी निकल रहा है. मैं अपना वीर्य आप की चूत में ही खाली कर रहा हूं. आह." शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था. लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी. शोभा ने अजय को अपने बदन से चिपका लिया. वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपन भतीजे के नितम्बों को निचोड़ती. कभी अजय के टट्टों को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती. अजय का बदन अभी तक झटके ले रहा था. "श्श्श्श. हां मेरे लाल. मैं हूं यहां पर. तेरी चाची है ना तेरे लिये". अजय ने भी चाची के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया.
जब दोनों शांत हुये तो चाची को याद आया कि कहां तो उनका अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मारने में मदद करने का इरादा था और कहां इस समय उनका जवान भतीजा उन्हें अपने नीचे दबाये वीर्य की अन्तिम बूंद तक उनकी कोख में उड़ेल रहा है. खुद की चिकनी जाघों पर गरमा गरम लावा और कुछ नहीं बल्कि अजय का वीर्य और उनकी चूत का मिल जुला रस था. चाची का नशा अब तक उतर चुका था और जो भूल वो दोनों कर चुके थे उसको सुधारा नहीं जा सकता था. अपने ही भतीजे के भारी शरीर के नीचे दबकर चाची के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था.
"हां - मम्मी, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण चाची की फ़ुदकती चूत थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी. शोभा के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी चूत के हाथों लाचार थी. दो क्षण रुकने के बाद चाची फ़िर से शुरु हो गयीं.
अजय अभी तक झड़ा नहीं था. शोभा ने तो सोचा था कि नौजवान है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन अजय तो पहले ही दो बार लन्ड का तेल निकाल चुका था. पहली बार चाची के कमरे में आने के ठीक पहले और दूसरी बार खुद चाची के हाथों से. जो भी हो पर शोभा चाची का अजय के लन्ड पर कूदना नहीं रुका. अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ अजय का लन्ड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था. दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा. फ़िर पहली बार शोभा चाची को अपनी चूत में एक सैलाब उठता महसूस हुआ. जबर्दस्त धड़ाके भरा आर्गैसम था. चाची के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी. होठों के किनारे से निकल कर थूक गर्दन तक बह आया था. ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी. जिस भतीजे को खुद पाल पोस कर बड़ा किया है आज उसी के कुमारत्व को लेने क सौभाग्य भी उनको प्राप्त हुआ था. और क्या पुरुष था उनका भतीजा, अजय. निश्चित ही आने वाले समय में कई सौ चूतों को पावन करने का अवसर उसे मिल सकता है. अचानक कमरे का दरवाजा खुला. दीप्ति दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ी हुई थी. "बेटा, सबकुछ ठीक है ना, मुझे फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी." शायद दीप्ति ने कुछ भी देखा नहीं था. अजय फ़िर से मुठ्ठ मार रहा है और ये उसी की आवाजें है, यही सोचकर दीप्ति अन्दर नहीं आई. "कुछ नहीं मम्मी". अजय को तो सिर्फ़ अपनी चाची की पनीयाई चूत से मतलब था. चाची को बिस्तर पर पटक कर वो खुद उनके ऊपर आ गया. "रुको, बेटा" चाची ने रोका उसे. चाची ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले अजय के लन्ड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया. काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये. शोभा अब उसके सुखे लन्ड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी.
लेकिन शोभा चाची ने शायद यहां कुछ गलती कर दी. अजय को बच्चा समझ कर उन्होनें लन्ड से चिकना पानी साफ़ किया था. परन्तु जब अजय ने एक ही झटके में पूरा का पूरा जननांग चाची की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया. सात इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे हथियार से और क्या उम्मीद की जा सकती है. उन्हें समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था. अजय का लन्ड किसी मोटर पिस्टन की भांति चाची कि चूत पर कार्यरत था. अजय के हर धक्के के साथ ही चाची की जान सी निकल रही थी. पूरा शरीर, स्तन, दिमाग यहां तक की आखें भी झटकों की ताल में हिल रहे थे. अजय की तेजी और बैल जैसी ताकत का मुकाबला नहीं था. नाखूनों को भतीजे के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली. किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती थी चाची इस समय. हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था. कई बार अजय के सीने पर दांत गड़ाए. अजय को सिग्नल करने के इरादे से चाची ने अपने तलुओं से उसकी कमर को भी जकड़ा. लेकिन इससे तो उसकी उत्तेजना में और वृद्धि हो गई. चन्द वहशी ठेलों के पश्चात अजय ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर लिया. "चाची, चाची..हां चाची, मेरा पानी निकल रहा है. मैं अपना वीर्य आप की चूत में ही खाली कर रहा हूं. आह." शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था. लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी. शोभा ने अजय को अपने बदन से चिपका लिया. वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपन भतीजे के नितम्बों को निचोड़ती. कभी अजय के टट्टों को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती. अजय का बदन अभी तक झटके ले रहा था. "श्श्श्श. हां मेरे लाल. मैं हूं यहां पर. तेरी चाची है ना तेरे लिये". अजय ने भी चाची के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया.
जब दोनों शांत हुये तो चाची को याद आया कि कहां तो उनका अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मारने में मदद करने का इरादा था और कहां इस समय उनका जवान भतीजा उन्हें अपने नीचे दबाये वीर्य की अन्तिम बूंद तक उनकी कोख में उड़ेल रहा है. खुद की चिकनी जाघों पर गरमा गरम लावा और कुछ नहीं बल्कि अजय का वीर्य और उनकी चूत का मिल जुला रस था. चाची का नशा अब तक उतर चुका था और जो भूल वो दोनों कर चुके थे उसको सुधारा नहीं जा सकता था. अपने ही भतीजे के भारी शरीर के नीचे दबकर चाची के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था.
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय को धकेल कर साइड से सुलाया और अपने कपड़े ढूढने लगीं. अबकी बार चाची को सही दरवाजे का पता था. बिस्तर के पास पड़ा हुया अपना पेटीकोट उठा कर कमर तक चढ़ाया, साड़ी को इकठ्ठा कर के बदन के चारों तरफ़ शॉल की तरह लपेट लिया. ब्लाऊज के कुछ बटन अजय की खींचातानी से टूट गये थे फ़िर वैसे ही एक हाथ से साड़ी पकड़े और दुसरे से ब्रा, पैंटी और पेटीकोट का नाड़ा दबाये चाची कमरे से बाहर निकल गईं. अपने कमरे का दरवाजा बन्द करते वक्त उन्हें दीप्ति के कमरे के दरवाजे के धीरे से बन्द होने की आवाज सुनाई दी. लेकिन ये सब सोचने का समय कहां था. उनकी चूत से तो झरना सा बह रहा था. आज की चुदाई ये साबित करने के लिये काफ़ी थी कि ४० की उमर में भी उनकी जवानी ढली नही थी या शायद आज तक उनकी जवानी को जी भर के लूटने वाला उनके पास नहीं था. शोभा चाची ने सारे कपड़े दरवाजे के पास ही छोड़ दिये उनको सवेरे भी देखा जा सकता है. पेटीकोट से अपनी जांघों और चूत को पोंछा और झट से नाईटी पहन कर कुमार के साथ बिस्तर में घुस गयीं. कुमार से आज रात दूर रहना बहुत जरूरी था. ऊपर से नीचे तक अजय के थूक, पसीने और वीर्य से सनी हुई वो इतनी रात में नहाने भी नहीं जा सकती थीं. जवान भतीजे से चुदने के बाद अपने पति को छुने में भी उन्हें गलत महसूस हो रहा था. कुमार पूरी तरह से सो नहीं रहा था, बीवी के कमरे में आने की आहट पाकर वो जाग गया "कुछ सुना तुमने, शोभा". "भैया और भाभी इस उमर में भी कितने जोश से एक दूसरे को चोद रहे थे."
"आप दीप्ति भाभी और भाई साहब की बात कर रहे हैं? वो तो मैने सुना, काफ़ी देर हो गई ना उनको खत्म करके तो." चाची ने धड़कते दिल से पूछा. कहीं अजय और उसकी चुदाई का शोर उसके पति ने ना सुन लिया हो. अपनी और अजय की जन्गली चुदाई ने दोनों को ही दीन दुनिया भूला दी थी. "कहां बहुत देर पहले? अभी दो मिनट पहले ही तो खत्म किया है. दो घन्टे से चल रही थी चुदाई. कल दोनों शायद देर से ही उठेंगे. शोभा चाची के तो होश ही गुम हो गये. वास्तव में उसके पति ने चाची भतीजे की चुदाई की आवाजें सुनी थी. किस्मत ही अच्छी है कि कुमार उन आवाजों को दीप्ति और गोपाल की मान बैठा था. प्रार्थना कर रही थीं कि बस अब पतिदेव चुप होकर सो जायें कि तभी कुमार का हाथ उनकी गांड पर आ गया. "बड़ी देर कर दी जानेमन, सो गयीं थीं क्या?" चाची की नाईटी को ऊपर करते हुए कमर तक नंगा किया. "आज उस फ़िल्म में देखा, कैसे उस आदमी ने उस हिरोईन को पीछे से चोदा." चाची थोड़ा सा कसमसाई. पर कुमार चाचा का हाथ उनकी टांगों के बीच में घुस चुका था. कुमार ने शोभा की एक टांग को घुटनों से मोड़ कर अलग कर दिया. पेट के बल लेटी शोभा की चूत को कुमार के पिद्दी से लन्ड ने ढूंढ ही लिया. शोभा चाहकर भी कुमार को रोक नहीं सकती थी. कुमार ने दोनो हाथों से अपनी पत्नी की फ़ूली हूई गान्ड को दबोचा और एक ही झटके में अपना चार इंच का लन्ड उनकी चूत में पेल दिया. अब आश्चर्यचकित होने की बारी कुमार की थी. चूत को अन्दर से तर पाकर उसके मुहं से निकला "अरे! तुम भी गीली हो, शायद उस फ़िल्म का ही असर है". बिचारे को क्या पता था की उसका लन्ड इस वक्त उसके खुद के भतीजे के बनाये हुये दरीया में गोते लगा रहा है. शोभा ने उसे चुप करने के उद्देश्य से अपने दोनों को पीछे ले जाकर कुमार की गांड को जकड़ा और उसे अपने करीब खींचा.
कुमार को तो जैसे मनचाहा आसन मिल गया था. बिना रुके ताबड़ तोड़ धक्के लगाने लगा. शोभा चाची भी फ़िर से उत्तेजित हो चली थीं. एक ही रात में दो अलग अलग मर्दों से चुदने के रोमान्च ने ग्लानि को दबा दिया. सही गलत की सीमा तो वो पहले ही लांघ चुकी थीं. कुमार ने अब गांड को छोड़ शोभा चाची के ऊपर झुकते हुये उनके मुम्मे दोनों हाथ में भर लिये. शोभा चाची की गान्ड को अपनी कमर से चिपका कर कुमार जोर जोर से उछलने लगा. "पता है, भाभी कितना चीख चिल्ला रही थी. भैया तो शायद जानवर ही हो गये थे. आज मैं भी तुमको ऐसे ही चोदूंगा". शर्म और उत्तेजना की मिली जुली भावना ने चाची के दिलोदिमाग को अपने काबू में कर लिया था. कुछ ही क्षणों में कुमार के लंड ने उलटी कर दी. कुमार का वीर्य अपने भतीजे के वीर्य से जा मिला. शायद इसी को पारिवारिक मिलन कहते है. अजय के विपरीत कुमार का हर झटका पहले के मुकाबले कमजोर था और वीर्य की पिचकारी में भी वैसा दम नहीं था. आखिर ४० पार कर चुके मर्द की भी अपनी सीमा होती है. चाची की चूत में से सिकुड़ा हुआ लन्ड अपने आप बाहर निकल आया और कुमार तुरन्त ही दूसरी तरफ़ करवट बदल कर सो गया.
"आप दीप्ति भाभी और भाई साहब की बात कर रहे हैं? वो तो मैने सुना, काफ़ी देर हो गई ना उनको खत्म करके तो." चाची ने धड़कते दिल से पूछा. कहीं अजय और उसकी चुदाई का शोर उसके पति ने ना सुन लिया हो. अपनी और अजय की जन्गली चुदाई ने दोनों को ही दीन दुनिया भूला दी थी. "कहां बहुत देर पहले? अभी दो मिनट पहले ही तो खत्म किया है. दो घन्टे से चल रही थी चुदाई. कल दोनों शायद देर से ही उठेंगे. शोभा चाची के तो होश ही गुम हो गये. वास्तव में उसके पति ने चाची भतीजे की चुदाई की आवाजें सुनी थी. किस्मत ही अच्छी है कि कुमार उन आवाजों को दीप्ति और गोपाल की मान बैठा था. प्रार्थना कर रही थीं कि बस अब पतिदेव चुप होकर सो जायें कि तभी कुमार का हाथ उनकी गांड पर आ गया. "बड़ी देर कर दी जानेमन, सो गयीं थीं क्या?" चाची की नाईटी को ऊपर करते हुए कमर तक नंगा किया. "आज उस फ़िल्म में देखा, कैसे उस आदमी ने उस हिरोईन को पीछे से चोदा." चाची थोड़ा सा कसमसाई. पर कुमार चाचा का हाथ उनकी टांगों के बीच में घुस चुका था. कुमार ने शोभा की एक टांग को घुटनों से मोड़ कर अलग कर दिया. पेट के बल लेटी शोभा की चूत को कुमार के पिद्दी से लन्ड ने ढूंढ ही लिया. शोभा चाहकर भी कुमार को रोक नहीं सकती थी. कुमार ने दोनो हाथों से अपनी पत्नी की फ़ूली हूई गान्ड को दबोचा और एक ही झटके में अपना चार इंच का लन्ड उनकी चूत में पेल दिया. अब आश्चर्यचकित होने की बारी कुमार की थी. चूत को अन्दर से तर पाकर उसके मुहं से निकला "अरे! तुम भी गीली हो, शायद उस फ़िल्म का ही असर है". बिचारे को क्या पता था की उसका लन्ड इस वक्त उसके खुद के भतीजे के बनाये हुये दरीया में गोते लगा रहा है. शोभा ने उसे चुप करने के उद्देश्य से अपने दोनों को पीछे ले जाकर कुमार की गांड को जकड़ा और उसे अपने करीब खींचा.
कुमार को तो जैसे मनचाहा आसन मिल गया था. बिना रुके ताबड़ तोड़ धक्के लगाने लगा. शोभा चाची भी फ़िर से उत्तेजित हो चली थीं. एक ही रात में दो अलग अलग मर्दों से चुदने के रोमान्च ने ग्लानि को दबा दिया. सही गलत की सीमा तो वो पहले ही लांघ चुकी थीं. कुमार ने अब गांड को छोड़ शोभा चाची के ऊपर झुकते हुये उनके मुम्मे दोनों हाथ में भर लिये. शोभा चाची की गान्ड को अपनी कमर से चिपका कर कुमार जोर जोर से उछलने लगा. "पता है, भाभी कितना चीख चिल्ला रही थी. भैया तो शायद जानवर ही हो गये थे. आज मैं भी तुमको ऐसे ही चोदूंगा". शर्म और उत्तेजना की मिली जुली भावना ने चाची के दिलोदिमाग को अपने काबू में कर लिया था. कुछ ही क्षणों में कुमार के लंड ने उलटी कर दी. कुमार का वीर्य अपने भतीजे के वीर्य से जा मिला. शायद इसी को पारिवारिक मिलन कहते है. अजय के विपरीत कुमार का हर झटका पहले के मुकाबले कमजोर था और वीर्य की पिचकारी में भी वैसा दम नहीं था. आखिर ४० पार कर चुके मर्द की भी अपनी सीमा होती है. चाची की चूत में से सिकुड़ा हुआ लन्ड अपने आप बाहर निकल आया और कुमार तुरन्त ही दूसरी तरफ़ करवट बदल कर सो गया.