मेरी उस के लंड की धीरे धीरे चुसाई और धीरे धीरे मुठ मारे अब तेज हो चली थी. मेरी दोनों चूचियां हवा में लटक रही थी और आगे पीछे हिल रही थी, मेरी गांड में उसकी ऊँगली भी बराबर घूम रही थी.
जब मैंने महसूस किया की मैं उस को उसके लंड की चुसाई से और मुठ मार कर आधे रास्ते तक ले आई हूँ और अब चूत और लंड की चुदाई में हम साथ साथ झड़ सकतें है, तो मैंने उस के तनतनाते हुए लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला.
वो पेसेंजर सीट पर उसी तरह अधलेटा था और उस ने मुझे उसी पोजीसन में अपने ऊपर आने को कहा. मैं उस पर लेट गई. मेरी पीठ उस की छाती पर थी और उस का खड़ा हुआ चुदाई का औजार, उस का लंड मेरी गांड के नीचे था. उस के दोनों पैरो को मैंने अपने दोनों पैरो के बीच में ले कर चुदाई की पोजीसन बनाई. एक हाथ से मैंने मैंने कार के दरवाजे के ऊपर के हँडल का सहारा और सपोर्ट लिया और मेरा दूसरा हाथ ड्राईवर सीट के ऊपर था. मैं अब उस के लंड पर सवारी करने को तैयार थी. अपने दोनों हाथो के सपोर्ट से मैंने अपनी गांड ऊपर की तो उस का लंड राजा मेरी गीली, गरम और चिकनी चूत के नीचे आ गया.
हम इस तरह की अधलेटी पोजीसन में पहली बार चुदाई करने जा रहे थे और वो भी कार में. ये एक यादगार चुदाई होने वाली थी. उस के लम्बे लंड को अपनी चूत के दरवाजे पर लाने के लिए मुझे अपनी गांड काफी ऊपर उठानी पड़ी. उसने अपने लंड को अपने हाथ से पकड़ कर मेरी चूत के दरवाजे पर सही जगह लगाया. अब ये मेरी जिम्मेदारी थी की मैं उस को अपनी सुविधा के अनुसार अपनी चूत में उतारूँ. मैंने अपनी गांड थोड़ी नीचे की तो उसके गरम लंड का अगला भाग मेरी चूत में घुस गया. ये छोटी जगह में चुदाई के लिए एक मुश्किल पोजीसन थी. अब जरूरत थी हम दोनों को अपनी चुदाई की काबलियत दिखने की ताकि हम एक अच्छी चुदाई का मज़ा ले सकें. लग रहा था जैसे मैं उस के लंड डंडे पर बैठी हूँ. मैंने अपनी पकड़ दरवाजे के हँडल पर थोड़ी ढीली की तो मेरी गांड थोड़ी और नीचे आई जिस से उस का औजार मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों को रगड़ता हुआ और थोड़ा मेरी चूत में घुस गया. मैंने अभी भी दरवाजे के उपरी हँडल और ड्राईवर सीट का सहारा ले रखा था. मैं थोड़ी ऊपर हुई तो उस का लंड करीब करीब मेरी चूत से बाहर आ गया. सिर्फ उस के लंड का सुपाडा ही मेरी रसीली चूत के अन्दर था. मैंने अचानक मेरे हाथों का सपोर्ट छोड़ दिया और झटके के साथ अपनी नंगी गांड नीचे की. मेरी चूत में झटके से उसके लम्बे लंड के घुसने से मेरी चूत में थोड़ा दर्द जरूर हुआ पर उस का पूरा का पूरा लंड मेरी चूत ने खा लिया. उस का पूरा लौड़ा मेरी फुद्दी में लिए मैं उस के लंड पर, उस की गोद में बैठी थी और लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी. मैंने नीचे देखा, उस की गोलियों की थैली उस के पैरों के बीच लटक रही थी. उस के लम्बे लंड का मुंह मेरी चूत में, मेरे पेट टक पहुँच चुका था. चुदाई करने के लिए धक्के लगाने के लिए हमने अपनी पोजीसन बनाई और मैंने फिर से एक बार अपनी गांड ऊपर की. अब नीचे से वो अपने गांड ऊपर नीचे करके अपने लंड को मेरी चूत में अन्दर बाहर करके मुझे आसानी से चोद सकता था और मैं भी ऊपर से चोद सकती थी और चुदवा सकती थी. उसने एक धक्का मेरी चूत में अपने लंड का अपनी गांड उठाकर लगाया तो उस का लंड फिर मेरी चूत में घुस गया. जब उस ने अपनी गांड नीचे की तो फिर उस का लंड थोड़ा बाहर आया. मैं भी हँडल और सीट पकड़ कर धक्के लगाने में उसका साथ देने लगी. जब उस की गांड नीचे होती तो मैं अपनी गांड ऊपर करती ताकि लंड थोड़ा बाहर आये और जब उसकी गांड ऊपर होती तो मैं अपनी गांड नीचे करती ताकि लंड पूरी तरह फिर मेरी रसीली चूत में घुस जाए.
इस तरह उस का लंड मेरी चूत में अन्दर बाहर होता हुआ मुझे चोदने लगा और मैं अपनी चूत चुदवाने लगी. हम दोनों को ही इस नयी चुदाई की पोजीसन में मज़ा आ रहा था. उस ने भी अपने हाथ मेरी गांड के नीचे रखे जिस से मुझे सहारा मिला और मैं और भी ज्यादा आराम से अपनी गांड ऊपर नीचे हिला सकती थी. वो मेरी गांड को दबा रहा था, पकड़ रहा था, सहारा दे रहा था और हमारे बीच चुदाई का कार्यक्रम हाइवे के पास, नीचे जंगल में खड़ी कार में चलने लगा और किसी को पता नहीं चल रहा था की वहां हम दोनों के बीच में चुदाई हो रही है. दो चुदक्कड़ एक दुसरे को पूरी ताकत से, पूरी काबलियत से चोद कर मज़ा ले रहे थे, मज़ा दे रहे थे.
जुली को मिल गई मूली compleet
Re: जुली को मिल गई मूली
हमारा धक्के मारना, चोदना और चुदवाना लगातार जारी था और जरूरत के अनुसार हमारी गति बढती गई. मेरी चूत की अंदरूनी दीवार उस के लंड की रगड़ खा कर मस्त हो गई. चुदाई की गर्मी कार के अन्दर बढती गई और बाहर लगातार बरसात होती रही. हमारे चोदने - चुदवाने की गति जोर जोर से लंड चूत के धक्कों के साथ बढती चली गई. मेरा सिर आगे पीछे हो रहा था और गांड ऊपर नीचे हो रही थी, वो मेरी गांड दबा रहा था और बीच बीच में मेरे बोबे भी मेरे टॉप के ऊपर से दबा देता था. बाहर बरसात का संगीत था, पानी की बूँदें कार की छत पर गिर कर आवाज कर रही थी तो अन्दर कार में उस का लम्बा मोटा लंड मेरी चूत को रगड़ता हुआ, अन्दर बाहर होता हुआ, फचा फच की आवाज कर रहा था. मेरे दोनों हाथों में अपने शरीर का वजन सँभालने की वजह से दर्द होने लगा तो मैंने अपने हाथ छोड़ कर, थोड़ा झुक कर अपने दोनों हाथ उस की जांघों पर रख लिए जिस से मुझे थोड़ा आराम मिला. चुदाई लगातार जारी थी. उसका लंड मेरी चूत को चोदते जा रहा था, .......... चोदते जा रहा था.
मैं चुदवाते हुए झड़ने के करीब पहुँच चुकी थी और मुझे लग रहा था की उस के लंड का रस भी मेरे झड़ने के साथ ही निकलेगा क्यों की उस के लंड का सुपाडा मेरी चूत में मोटा होता जा रहा था और उस के धक्कों की रफ़्तार बढ़ रही थी.
मेरे पैरों में ऐंठन होने लगी जो की झड़ने के करीब होने का सबूत था. मैंने मज़े के मारे अपना नीचे का होंठ दांतों में दबा लिया और मैं करीब करीब चिल्ला ही उठी - " आह -- ओह आह...... मैं तो गई डार्लिंगग्गग्गग्गग! "
और मैं झड़ चुकी थी. मेरा हो गया था. मैंने चुदाई की मंजिल पा ली थी. मैंने उस के धक्के मारते लंड को अपनी चूत में जकड़ा तो वो बोला - " जूली ........ मेरा भी निकलने वाला है ...... डार्लिंग जूली.......... आह............."
मैंने अपनी चूत की पकड़ उस के लंड पर ढीली की और वो मुझे फिर से चोदने लगा. और कोई १० / १२ धक्कों के बाद वो भी आनंद के कारण चिल्लाया ..." जूली.इ इ इ इ .............. "
और एक जोरदार धक्के के साथ उस के लंड ने अपने प्रेम रस की बरसात मेरी चूत के अन्दर करनी शुरू करदी. उस का लंड मेरी चूत को अन्दर से अपने प्रेम रस से भरने लगा. उस ने मुझे कस कर पकड़ लिया और उस का लंड नाच नाच कर मेरी चूत में अपने पानी का फव्वारा छोड़ रहा था. मैंने उस के लंड को अपनी चूत मे जकड़ लिया और पीछे हो कर, उसकी छाती पर अपनी पीठ टिका कर उस के ऊपर, उस के जैसे अधलेटी हो गई.
हम दोनों ही खुश थे क्यों की मेरे विदेश जाने और उस के दिल्ली जाने के पहले हम एक शानदार और यादगार चुदाई कर चुके थे.
हम कुछ देर यूँ ही पड़े रहे और उस का लंड नरम होने लगा था, उस के लंड का मेरी चूत में छोड़ा हुआ प्रेम रस मेरी चूत से वापस बाहर निकलना शुरू हो गया था. मेरे थोड़ी सी गांड हिलाते ही उस का नरम पड़ता लंड मेरी चूत से बाहर निकल आया. इस के साथ ही उस के लंड का काफी सारा पानी मेरी चूत से बाहर निकल आया.
मैं उठ कर ड्राईवर सीट पर आ गई और कार के देश बोर्ड से टिश्यू पेपर निकाले ताकि मैं अपनी चूत पूँछ सकूँ और कुछ टिश्यू पेपर रमेश को भी दिए ताकि वो भी अपना लंड साफ़ कर सके और जहाँ जहाँ उस के लंड से निकला पानी गिरा था, वो भी साफ़ कर सके.
इतनी देर चुदवाने के बाद मैं अब मूतना चाहती थी. बाहर अभी भी बरसात हो रही थी तो मैंने रमेश को कहा की मुझे मूतना है और उस से पुछा की क्या कार में छतरी है तो उस ने कहा की नहीं है और उस ने कहा की वो भी मूतना चाहता है. हम दोनों साथ में हंस पड़े. उस ने मुझसे कहा की वो कार के बाहर जाए बिना ही, कार के अन्दर से बाहर मूत सकता है. एक मर्द होने का ये फायदा है. और उस ने अपनी तरफ का कार का दरवाजा थोड़ा खोला और अपने लंड को पकड़ कर, लंड से मूत की धार बाहर फेंकता हुआ, कार में सीट पर बैठा बैठा ही मूतने लगा. उस के लंड से मूत की तेज धार निकल रही थी जो दूर तक जा रही थी. बिना कार में मूत की एक भी बूँद गिराए उस ने अपना मूतना पूरा किया और कार का दरवाजा वापस बंद करते हुए बोला की "बरसात बहुत जोर से हो रही है. वापस जाते समय रास्ते में जो भी पहला होटल मिलेगा, वहां मैं गाडी रोक दूंगा और तुम वहां आराम से मूत लेना. "
मैं बोली " मैं भी यहाँ तुम्हारी तरह मूतने की कोशिश करती हूँ. "
वो हंस पड़ा और बोला " ओक ! ठीक है. कोशिश करो पर कार के अन्दर मत मूत देना. "
मैंने कार का ड्राईवर साइड का दरवाजा खोला, अपने पैर कार की बाहर की तरफ घुमाए, पैर चौड़े किये, अपनी चूत के होठों पर दोनों तरफ दो उँगलियाँ रखी और अपने गांड उठाली और जोर लगा कर तेजी से अपना मूत बाहर फेंकने लगी. मेरी उँगलियों का दबाव मेरी मूत करती चूत पर होने की वजह से मेरे मूत की धार बाहर तक जा रही थी. मैंने इस काम को सफलता पूर्वक कर लिया और फिर से टिश्यू पेपर से अपनी चूत साफ़ की. मेरे मूत की कुछ बूँदें नीचे, कार के दरवाजे / सीट के पास गिरी थी पर बाहर होती बरसात का पानी भी उन पर गिरा था सो अपने आप ही सफाई हो गई थी.
मेरे पैर भी थोड़े बरसात के पानी से मूतने के समय गीले हो गए थे. मैंने अपनी चड्डी और जीन पहनने के पहले अपने पैरों को भी पूंछा. उस ने मेरी ब्रा का हुक पीछे से लगाया और अपने कपड़े पहनने लगा. मैंने अपने टॉप के खुले हुए बटन बंद किये.
हम अब घर जाने के लिए तैयार थे. हम दोनों ही एक मजेदार चुदाई बाहर होती बरसात में कार के अन्दर कर चुके थे और वो भी हाइवे के पास, बिना किसी को पता चले. ये एक बहुत ही रोमांचक और याद रहने वाली चुदाई थी.
हम दोनों वापस अपने घर की तरफ कार में बीअर पीते हुए चल पड़े.
क्रमशः..........................
मैं चुदवाते हुए झड़ने के करीब पहुँच चुकी थी और मुझे लग रहा था की उस के लंड का रस भी मेरे झड़ने के साथ ही निकलेगा क्यों की उस के लंड का सुपाडा मेरी चूत में मोटा होता जा रहा था और उस के धक्कों की रफ़्तार बढ़ रही थी.
मेरे पैरों में ऐंठन होने लगी जो की झड़ने के करीब होने का सबूत था. मैंने मज़े के मारे अपना नीचे का होंठ दांतों में दबा लिया और मैं करीब करीब चिल्ला ही उठी - " आह -- ओह आह...... मैं तो गई डार्लिंगग्गग्गग्गग! "
और मैं झड़ चुकी थी. मेरा हो गया था. मैंने चुदाई की मंजिल पा ली थी. मैंने उस के धक्के मारते लंड को अपनी चूत में जकड़ा तो वो बोला - " जूली ........ मेरा भी निकलने वाला है ...... डार्लिंग जूली.......... आह............."
मैंने अपनी चूत की पकड़ उस के लंड पर ढीली की और वो मुझे फिर से चोदने लगा. और कोई १० / १२ धक्कों के बाद वो भी आनंद के कारण चिल्लाया ..." जूली.इ इ इ इ .............. "
और एक जोरदार धक्के के साथ उस के लंड ने अपने प्रेम रस की बरसात मेरी चूत के अन्दर करनी शुरू करदी. उस का लंड मेरी चूत को अन्दर से अपने प्रेम रस से भरने लगा. उस ने मुझे कस कर पकड़ लिया और उस का लंड नाच नाच कर मेरी चूत में अपने पानी का फव्वारा छोड़ रहा था. मैंने उस के लंड को अपनी चूत मे जकड़ लिया और पीछे हो कर, उसकी छाती पर अपनी पीठ टिका कर उस के ऊपर, उस के जैसे अधलेटी हो गई.
हम दोनों ही खुश थे क्यों की मेरे विदेश जाने और उस के दिल्ली जाने के पहले हम एक शानदार और यादगार चुदाई कर चुके थे.
हम कुछ देर यूँ ही पड़े रहे और उस का लंड नरम होने लगा था, उस के लंड का मेरी चूत में छोड़ा हुआ प्रेम रस मेरी चूत से वापस बाहर निकलना शुरू हो गया था. मेरे थोड़ी सी गांड हिलाते ही उस का नरम पड़ता लंड मेरी चूत से बाहर निकल आया. इस के साथ ही उस के लंड का काफी सारा पानी मेरी चूत से बाहर निकल आया.
मैं उठ कर ड्राईवर सीट पर आ गई और कार के देश बोर्ड से टिश्यू पेपर निकाले ताकि मैं अपनी चूत पूँछ सकूँ और कुछ टिश्यू पेपर रमेश को भी दिए ताकि वो भी अपना लंड साफ़ कर सके और जहाँ जहाँ उस के लंड से निकला पानी गिरा था, वो भी साफ़ कर सके.
इतनी देर चुदवाने के बाद मैं अब मूतना चाहती थी. बाहर अभी भी बरसात हो रही थी तो मैंने रमेश को कहा की मुझे मूतना है और उस से पुछा की क्या कार में छतरी है तो उस ने कहा की नहीं है और उस ने कहा की वो भी मूतना चाहता है. हम दोनों साथ में हंस पड़े. उस ने मुझसे कहा की वो कार के बाहर जाए बिना ही, कार के अन्दर से बाहर मूत सकता है. एक मर्द होने का ये फायदा है. और उस ने अपनी तरफ का कार का दरवाजा थोड़ा खोला और अपने लंड को पकड़ कर, लंड से मूत की धार बाहर फेंकता हुआ, कार में सीट पर बैठा बैठा ही मूतने लगा. उस के लंड से मूत की तेज धार निकल रही थी जो दूर तक जा रही थी. बिना कार में मूत की एक भी बूँद गिराए उस ने अपना मूतना पूरा किया और कार का दरवाजा वापस बंद करते हुए बोला की "बरसात बहुत जोर से हो रही है. वापस जाते समय रास्ते में जो भी पहला होटल मिलेगा, वहां मैं गाडी रोक दूंगा और तुम वहां आराम से मूत लेना. "
मैं बोली " मैं भी यहाँ तुम्हारी तरह मूतने की कोशिश करती हूँ. "
वो हंस पड़ा और बोला " ओक ! ठीक है. कोशिश करो पर कार के अन्दर मत मूत देना. "
मैंने कार का ड्राईवर साइड का दरवाजा खोला, अपने पैर कार की बाहर की तरफ घुमाए, पैर चौड़े किये, अपनी चूत के होठों पर दोनों तरफ दो उँगलियाँ रखी और अपने गांड उठाली और जोर लगा कर तेजी से अपना मूत बाहर फेंकने लगी. मेरी उँगलियों का दबाव मेरी मूत करती चूत पर होने की वजह से मेरे मूत की धार बाहर तक जा रही थी. मैंने इस काम को सफलता पूर्वक कर लिया और फिर से टिश्यू पेपर से अपनी चूत साफ़ की. मेरे मूत की कुछ बूँदें नीचे, कार के दरवाजे / सीट के पास गिरी थी पर बाहर होती बरसात का पानी भी उन पर गिरा था सो अपने आप ही सफाई हो गई थी.
मेरे पैर भी थोड़े बरसात के पानी से मूतने के समय गीले हो गए थे. मैंने अपनी चड्डी और जीन पहनने के पहले अपने पैरों को भी पूंछा. उस ने मेरी ब्रा का हुक पीछे से लगाया और अपने कपड़े पहनने लगा. मैंने अपने टॉप के खुले हुए बटन बंद किये.
हम अब घर जाने के लिए तैयार थे. हम दोनों ही एक मजेदार चुदाई बाहर होती बरसात में कार के अन्दर कर चुके थे और वो भी हाइवे के पास, बिना किसी को पता चले. ये एक बहुत ही रोमांचक और याद रहने वाली चुदाई थी.
हम दोनों वापस अपने घर की तरफ कार में बीअर पीते हुए चल पड़े.
क्रमशः..........................
Re: जुली को मिल गई मूली
जुली को मिल गई मूली – 9
गतान्क से आगे…………………….
मैं अपनी जिंदगी मे चुदाई के मज़े मे पूरा विश्वास रखती हूँ और एक अच्छी चुदाई के लिए तय्यार रहती हूँ. बहुत से पढ़ने वाले सोचते है कि मैं बहुत चुड़क्कड़ हूँ और कोई भी मुझे चोद सकता है. मोस्ट्ली रीडर्स मुझको चोद्ना चाहते है, ये उनकी मैनल से पता चलता है.
हां.......... मैं बहुत सेक्सी हूँ, पर सब को पता होना चाहिए कि मैं अपने चाचा और अपने प्रेमी से चुद्वा कर पूरी तरह सन्तुस्त हूँ. जब भी मेरा चुदाई का मन होता है, चाचा और प्रेमी तय्यार है, और जब उनके लंड को चूत चाहिए, मेरी चूत तय्यार है. कभी कभी ऐसा मौका भी आता है जब दोनो मे से कोई भी अवेलबल ना हो तो मैं अपनी उंगलियों का या मेरे वाइब्रटर का इस्तेमाल करती हूँ.
एक बार ऐसा मौका आया जब मेरे चाचा और मेरा प्रेमी दोनो ही कुछ समय के लिए बाहर गये थे, तब मैने थोड़े समय के लिए एक कमसिन लड़के से चुद्वाया था. उस लड़के के साथ ये कुछ दिनो का ही चुदाई का रिश्ता था, इसलिए मैने इस के बारे मे दोनो को ही, मेरे चाचा को और मेरे प्रेमी को नही बताया. ये राज़ सिर्फ़ मेरे तक है.
कभी कभी मुझे बहुत बुरा महसूस होता है कि मैने सच्चाई च्छुपाई है पर मैं ये सोच कर चुप हो जाती हूँ कि मेरी किस्मत मे ये ही था क्यों कि उस समय मैं चुदाई के लिए मजबूर हो गयी थी.
मैं ये लिख कर ये साबित नही करना चाहती की मैने जो किया सही किया, पर मेरे मे सच को कबूल करने की ताक़त है, भले ही वो सही हो या ग़लत, पर मैने जो किया, वो कबूल किया. मेरा ये मान ना है कि जो एक बार हो गया, उसको फिर "बिना किया" नही किया जा सकता और हम को सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा. मुझे पता है कि बहुत से लोग है, लड़का/लड़की तथा आदमी/औरत, जिन्होने अपने परिवार मे चुदाई की है या चुदाई करवाई है, पर वो सब इस को सीक्रेट रखते है. मैने भी अपने चाचा से चुद्वाया और इस को अपने पेरेंट्स से सीक्रेट रखा. पर, मुझे गर्व है अपने आप पर की मैने अपने चाचा से चुद्वाने की बात अपने प्रेमी से सीक्रेट नही रखी. उस को सब कुछ सच सच बता दिया, और आप सब रीडर्स को भी तो बताया है.
खैर................ अब असली कहानी पर आती हूँ.......
उस समय मैं करीब 24 साल की थी और किसी भी लड़की से बेहतर अपनी चुदाई की जिंदगी के मज़े ले रही थी. मैने अपनी ग्रॅजुयेशन पूरी करली थी और मैं अब पूरी तरह अपने परिवारिक बिज़्नेस को देख रही थी. जैसा कि मैने पहले बताया है, हमारा फार्म प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट्स का बिज़्नेस है और मैं अपने चाचा के साथ एक्सपोर्ट मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी उठा रही थी. मेरे पापा खेती और प्रोडक्षन का काम देखते है. हमारा बहुत बड़ा फार्म है जहाँ हम काजू और आम की खेती करतें है. हमारे फार्म का एक बड़ा हिस्सा अभी भी एक घना जंगल है जिसको हम ने अभी भी अपने नेचर लव की वजह से डेवेलप नही किया. या यौं कहिए कि अभी तक इस की ज़रूरत ही नही पड़ी थी हमारे प्रॉडक्ट के लिए.
हमारे फार्म मे काम करने वालों के लिए हम ने इसी जंगल मे जाने वाले रास्ते पर उनको घर बना कर दिए है उनके रहने के लिए. इसी तरह फार्म के एक किनारे हमारा कॉटेज भी है. जब भी मैं वहाँ जाती थी, अपने फार्म का पूरा चक्कर लगाती थी और प्रोग्रेस देखती थी खेती की. मैं जंगल मे भी जाती थी घूमने के लिए और किसी पेड़ के नीचे बैठ कर कभी कभी आराम भी कर लेती थी क्यों कि मुझे जंगल मे घूमना, नेचर को देखना अच्छा लगता था. इस जंगल मे कोई भी जंगली जानवर नही था.
मेरा प्रेमी देल्ही मे सर्विस करता था और उस समय देल्ही मे ही था. जब भी लीव मिलती, वो गोआ आ जाता था. मेरे चाचा काम से गोआ के बाहर गये हुए थे.
एक दिन, मैं अपने फार्म पहुँची. उस समय दोपहर के 3.00 बजे थे. मैने अपनी कार कॉटेज मे पार्क की और फार्म का एक राउंड लिया. वो गर्मी का समय था. जब मैं जंगल के पास थी तो मैने थोड़ी थकान महसोस की. मैं जंगल के अंदर गयी तो घने पेड़ों के बीच बहुत ही अच्छा फील हुआ. वहाँ ठंडी हवा चल रही थी. मैने अपनी पानी की बॉटल निकाली और एक बड़े पेड़ के नीचे बैठ कर पानी पिया. मुझे वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था और मैने कुछ देर पेड़ के नीचे आराम करने की सोची. पता नही, बैठे बैठे कब मेरी आँख लग गई. मैं करीब आधे घंटे के बाद उठी.
गतान्क से आगे…………………….
मैं अपनी जिंदगी मे चुदाई के मज़े मे पूरा विश्वास रखती हूँ और एक अच्छी चुदाई के लिए तय्यार रहती हूँ. बहुत से पढ़ने वाले सोचते है कि मैं बहुत चुड़क्कड़ हूँ और कोई भी मुझे चोद सकता है. मोस्ट्ली रीडर्स मुझको चोद्ना चाहते है, ये उनकी मैनल से पता चलता है.
हां.......... मैं बहुत सेक्सी हूँ, पर सब को पता होना चाहिए कि मैं अपने चाचा और अपने प्रेमी से चुद्वा कर पूरी तरह सन्तुस्त हूँ. जब भी मेरा चुदाई का मन होता है, चाचा और प्रेमी तय्यार है, और जब उनके लंड को चूत चाहिए, मेरी चूत तय्यार है. कभी कभी ऐसा मौका भी आता है जब दोनो मे से कोई भी अवेलबल ना हो तो मैं अपनी उंगलियों का या मेरे वाइब्रटर का इस्तेमाल करती हूँ.
एक बार ऐसा मौका आया जब मेरे चाचा और मेरा प्रेमी दोनो ही कुछ समय के लिए बाहर गये थे, तब मैने थोड़े समय के लिए एक कमसिन लड़के से चुद्वाया था. उस लड़के के साथ ये कुछ दिनो का ही चुदाई का रिश्ता था, इसलिए मैने इस के बारे मे दोनो को ही, मेरे चाचा को और मेरे प्रेमी को नही बताया. ये राज़ सिर्फ़ मेरे तक है.
कभी कभी मुझे बहुत बुरा महसूस होता है कि मैने सच्चाई च्छुपाई है पर मैं ये सोच कर चुप हो जाती हूँ कि मेरी किस्मत मे ये ही था क्यों कि उस समय मैं चुदाई के लिए मजबूर हो गयी थी.
मैं ये लिख कर ये साबित नही करना चाहती की मैने जो किया सही किया, पर मेरे मे सच को कबूल करने की ताक़त है, भले ही वो सही हो या ग़लत, पर मैने जो किया, वो कबूल किया. मेरा ये मान ना है कि जो एक बार हो गया, उसको फिर "बिना किया" नही किया जा सकता और हम को सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा. मुझे पता है कि बहुत से लोग है, लड़का/लड़की तथा आदमी/औरत, जिन्होने अपने परिवार मे चुदाई की है या चुदाई करवाई है, पर वो सब इस को सीक्रेट रखते है. मैने भी अपने चाचा से चुद्वाया और इस को अपने पेरेंट्स से सीक्रेट रखा. पर, मुझे गर्व है अपने आप पर की मैने अपने चाचा से चुद्वाने की बात अपने प्रेमी से सीक्रेट नही रखी. उस को सब कुछ सच सच बता दिया, और आप सब रीडर्स को भी तो बताया है.
खैर................ अब असली कहानी पर आती हूँ.......
उस समय मैं करीब 24 साल की थी और किसी भी लड़की से बेहतर अपनी चुदाई की जिंदगी के मज़े ले रही थी. मैने अपनी ग्रॅजुयेशन पूरी करली थी और मैं अब पूरी तरह अपने परिवारिक बिज़्नेस को देख रही थी. जैसा कि मैने पहले बताया है, हमारा फार्म प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट्स का बिज़्नेस है और मैं अपने चाचा के साथ एक्सपोर्ट मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी उठा रही थी. मेरे पापा खेती और प्रोडक्षन का काम देखते है. हमारा बहुत बड़ा फार्म है जहाँ हम काजू और आम की खेती करतें है. हमारे फार्म का एक बड़ा हिस्सा अभी भी एक घना जंगल है जिसको हम ने अभी भी अपने नेचर लव की वजह से डेवेलप नही किया. या यौं कहिए कि अभी तक इस की ज़रूरत ही नही पड़ी थी हमारे प्रॉडक्ट के लिए.
हमारे फार्म मे काम करने वालों के लिए हम ने इसी जंगल मे जाने वाले रास्ते पर उनको घर बना कर दिए है उनके रहने के लिए. इसी तरह फार्म के एक किनारे हमारा कॉटेज भी है. जब भी मैं वहाँ जाती थी, अपने फार्म का पूरा चक्कर लगाती थी और प्रोग्रेस देखती थी खेती की. मैं जंगल मे भी जाती थी घूमने के लिए और किसी पेड़ के नीचे बैठ कर कभी कभी आराम भी कर लेती थी क्यों कि मुझे जंगल मे घूमना, नेचर को देखना अच्छा लगता था. इस जंगल मे कोई भी जंगली जानवर नही था.
मेरा प्रेमी देल्ही मे सर्विस करता था और उस समय देल्ही मे ही था. जब भी लीव मिलती, वो गोआ आ जाता था. मेरे चाचा काम से गोआ के बाहर गये हुए थे.
एक दिन, मैं अपने फार्म पहुँची. उस समय दोपहर के 3.00 बजे थे. मैने अपनी कार कॉटेज मे पार्क की और फार्म का एक राउंड लिया. वो गर्मी का समय था. जब मैं जंगल के पास थी तो मैने थोड़ी थकान महसोस की. मैं जंगल के अंदर गयी तो घने पेड़ों के बीच बहुत ही अच्छा फील हुआ. वहाँ ठंडी हवा चल रही थी. मैने अपनी पानी की बॉटल निकाली और एक बड़े पेड़ के नीचे बैठ कर पानी पिया. मुझे वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था और मैने कुछ देर पेड़ के नीचे आराम करने की सोची. पता नही, बैठे बैठे कब मेरी आँख लग गई. मैं करीब आधे घंटे के बाद उठी.