ट्यूशन का मजा compleet
Re: ट्यूशन का मजा
मुझे बहुत मजा आ रहा था. अब अपने आप मेरा बदन ऊपर नीचे होकर सर के हाथ की पकड़ मेरे लंड पर बढ़ाने की कोशिश कर रहा था. सर ने मेरी आंखों में झांकते हुए मुस्कराकर अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और मैं उसे चूसने लगा. अब मैं भी मजे ले लेकर चूमा चाटी कर रहा था. चौधरी सर के मुंह का स्वाद मुझे अच्छा लग रहा था, जीभ एकदम गीली और रसीली थी. सर का लंड अब उनकी पैंट के नीचे से ही साइकिल के डंडे सा मेरी जांघों के बीच सट गया था और मुठिया मुठिया कर मुझे बार बार ऊपर उठा रहा था. मैं सोचने लगा कि कितना तगड़ा होगा सर का लंड जो मेरे वजन को भी आसानी से उठा रहा है.
दस मिनिट चूमा चाटी करके सर आखिर रुके "तेरे चुम्मे तो लीना से भी मीठे हैं अनिल. तुझे उससे ज्यादा मार्क मिले इस लेसन में. अब अगला लेसन करेंगे, जवानी के रस वाला. लीना का रस तो बड़ा मीठा था, अब तेरा कैसा है जरा दिखा"
मैं उनकी ओर देखने लगा. मेरी सांस तेज चल रही थी. लंड कस कर खड़ा था. मुझे नीचे सोफ़े पर बिठाते हुए सर बोले ’तू बैठ आराम से, देख मैं क्या करता हूं. सीख जरा, ये लेसन बड़ा इंपॉर्टेंट है"
सर मेरे सामने बैठ गये, फ़िर मेरे लंड को पास से देखने लगे. "मस्त है, काफ़ी रसीला लगता है" फ़िर जीभ से धीरे से मेरे सुपाड़े को गुदगुदाया. मैं सिहर उठा. सहन नहीं हो रहा था. "क्यों रे तुझे भी कैसा कैसा होता है लीना जैसे?" और फ़िर से मेरे सुपाड़े पर जीभ रगड़ने लगे.
"हां सर ... प्लीज़ सर ... मत कीजिये सर ... मेरा मतलब है और कीजिये सर ... अच्छा भी लगता है सर पर ... सहन नहीं होता है" मैं बोला.
"अच्छा, अब बता, ये अच्छा लगता है?" कहकर उन्होंने मेरे लंड को ऊपर करके मेरे पेट से सटाया और उसकी पूरी निचली मांसल बाजू नीचे से ऊपर तक चाटने लगे. मुझे इतना मजा आया कि मैंने उनका सिर पकड़ लिया ’ओह .. ओह .. सर ... बहुत मजा आता है"
"ये बात हुई ना, याद रखना इस बात को और अब देख, ये कैसा लगता है?" कहकर वे बीच बीच में जीभ की नोक से मेरे सुपाड़े के जरा नीचे दबाते और गुदगुदाने लगते. मैं दो मिनिट में झड़ने को आ गया. "सर ... सर ... आप ... आप कितने अच्छे हैं सर .... ओह ... ओह ... " और मेरा लंड उछलने लगा.
चौधरी सर मुस्कराये और बोले "लगता है रस निकलने वाला है तेरा. जल्दी निकल आता है अनिल, पूरा मजा भी नहीं लेने देता तू. यहां मार्क कम मिलेंगे तुझे. वो लीना भी ऐसी झड़ने ही की जल्दबाजी वाली थी. खैर तुमको भी क्या कहें, आखिर नौसिखिये हो तुम दोनों, सिखाना पड़ेगा तुम लोगों को और" कहकर उन्होंने मेरे लंड को पूरा मुंह में ले लिया और चूसने लगे. साथ ही वे मेरी जांघों को भी सहलाते जाते थे. चौधरी सर की जीभ अब मेरे लंड को नीचे से रगड़ रही थी और उनका तालू मेरे सुपाड़े से लगा था. मैंने कसमसा कर उनका सिर पकड़ा और अपने पेट पर दबा कर उचक उचक कर उनके मुंह में लंड पेलने लगा. सर कुछ नहीं बोले, बस चूसते रहे.
अगले ही पल मेरी हिचकी निकल गयी और मैं झड़ गया. मैंने सर का सिर पकड़कर हटाने की कोशिश की पर सर चूसते रहे, मेरे उबल उबल कर निकलते वीर्य को वे निगलते जा रहे थे. जब मेरा लंड आखिर शांत हुआ तो मैंने उनका सिर छोड़ा और पीछे सोफ़े पर टिक कर लस्त हो गया. सर अब भी मेरे लंड को चूसते रहे. फ़िर उसे मुंह से निकालकर हथेली में लेकर रगड़ने लगे. "तेरा रस बहुत मीठा है अनिल, लीना से भी, वैसे उसका भी एकदम मस्त है, तुझे फ़ुल मार्क इस टेस्ट में, तू बोल, तुझे मजा आया?"
"हां सर .... बहुत .... लगता था पागल हो जाऊंगा, सर ... थैंक यू सर ... इतना मजा कभी नहीं आया था जिंदगी में पर सर ... वो मैंने आपका सिर हटाने की कोशिश तो की थी ... आपने ही ... सब मुंह में ले लिया ..."
"क्या ले लिया?"
"यही सर ... याने ये सफ़ेद ..."
"ये जो सफ़ेद मलाई निकली तेरे लंड से, उसको क्या कहते हैं?"
"वीर्य कहते हैं सर" मैंने कहा.
"शाबास. तुझे मालूम है. वीर्य याने सच में जवानी का टॉनिक होता है, बेशकीमती, उसको कभी वेस्ट मत करना, जब जब हो सके, उसे मुंह में ही लेना, निगलने की कोशिश करना, सेहत के लिये मस्त होता है"
Re: ट्यूशन का मजा
वे मेरे लंड से खेलते रहे. दोनों हाथों में लेकर बेलन से बेलते, कभी मुठ्ठी में लेकर दबाते और कभी अंगूठे और उंगली में लेकर मसलते "अब बोल, क्या कह रहा था तू कि लड़का है? तो लड़के याने मर्द आपस मजा नहीं कर सकते क्या ऐसे? तुझे मजा आया कि नहीं? मैं भी लड़का हूं, तू भी लड़का है, पर इससे कोई फ़रक पड़ा तेरी मस्ती में? बोल, कैसा लगा ये लेसन?"
"सर आप बहुत अच्छा सिखाते हैं" मैं उन्हें देखकर शरमाता हुआ बोला.
’और दिखने में कैसा लगता हूं? कि लड़का हूं इसलिये अच्छा नहीं लगता?" चौधरी सर ने मेरे लंड के सुपाड़े को चूमते हुए पूछा.
"नहीं सर, बहुत प्यारे लगते हैं, मैडम जैसे ही. कितने हैंडसम हैं आप" मैं अब हाथ को मेरी गोद में झुके उनके सिर के घने बालों में चला रहा था.
अब तक मेरे लंड में फ़िर गुदगुदी होने लगी थी और वह सिर उठाने लगा था. देख कर चौधरी सर ने उसे फ़िर मुंह में ले लिया और चूसने लगे. एक हाथ से वे अब मेरे पैर के तलवे में गुदगुदी कर रहे थे. मेरा जल्द ही पूरा खड़ा हो गया.
"तो ये पाठ पसंद आया तुझे?" चौधरी सर उठ कर सोफ़े पर बैठकर मुझे फ़िर बांहों में भरके बोले. अब मेरी हिम्मत बंध गयी थी. चौधरी सर ने जिस तरह से मेरा लंड चूसा था, मैं उनका गुलाम ही हो गया था. इसलिये अब बिना हिचकिचाहट मैंने खुद ही उनके होंठ चूम लिये. "हां सर, आप बहुत अच्छे हैं सर"
"तो अब चल, पाठ में जो सीखा, कर के बता. मेरे ऊपर कर" मेरा हाथ पकड़कर उन्होंने अपने तंबू पर रखते हुए कहा.
मैं बिना शरमाये सर के तंबू पर हाथ फ़िराने लगा. मेरा दिल भी अब उनका लंड देखने का कर रहा था पर थोड़ा डर भी लग रहा था कि शायद चूसना पड़ेगा!
मेरे हाथ से मस्त होकर सर बोले "हां ... बहुत अच्छे ... और चलाओ हाथ अपना अनिल ... लगता है ऐसा ही करते हो क्लास में क्यों? तभी तजुर्बा है लगता है ... बदमाश कहीं के!"
दो मिनिट बाद सर बोले "अब ज़िप खोलो बेटे, मेरा लंड बाहर निकालो"
मैंने ज़िप खोली. अंदर सर ने जांघिया पहना था और लंड खड़ा हो कर अपने आप स्लिट से बाहर आ गया था. ज़िप खोलते ही पूरा टन्न से बाहर आ गया.
"बाप रे ..." मेरे मुंह से निकल आया.
"क्या हुआ?" चौधरी सर मुस्करा रहे थे.
"बहुत बड़ा है सर, मुझे पता नहीं था कि किसीका इतना बड़ा होता है" सर के तन्ना कर खड़े लंड की ओर आंखें फ़ाड़ कर देखता हुआ मैं बोला.
"अच्छा लगा तुझे? ठीक से देख, हाथ में ले" सर बोले.
मैंने लंड हाथ में लिया.
"कैसा है, पूरा वर्णन करके बता"
"सर ऐसा लगता है जैसा गोरा मोटा मूसल है, गन्ने जैसा रसीला लगता है" मैं बोला.
"हां, और बोल" मस्त होकर सर बोले.
"सर नसें उभरी हुई हैं, एकदम मस्त दिखती हैं सर. और सर ये गोल गोल ...."
"इसे क्या कहते हैं बोल? मालूम होगा तुझे, अगर नहीं मालूम है तो एक तमाचा मारूंगा" सर मस्ती भरी आवाज में बोले.
"सुपाड़ा सर"
"ये हुई ना बात. तो बोल, कैसा है सुपाड़ा?"
"सर ....किसी टमाटर जैसा रसीला लग रहा है, लाल लाल फ़ूला हुआ. कभी रसीले सेब जैसा लगता है."
"और ?"
"सर स्किन ऐसे तनी है जैसे हवा भरा गुब्बारा ... कैसी मखमल सी लगती है ये गुलाबी स्किन ..."
"चल अब ठीक से पकड़" चौधरी सर ने कहा. मैंने लंड को दो मुठ्ठियों में लिया, फ़िर भी पूरा नहीं आया, डंडे का दो इंच भाग और सुपाड़ा मेरी ऊपर की मुठ्ठी के बाहर निकले थे.
"सर बहुत बड़ा है सर, दो हथेली में भी पकड़ाई में नहीं आता है. सर .... नाप के देखूं?" मैंने उसुकता से पूछा.
क्रमशः। ...........................
Re: ट्यूशन का मजा
ट्यूशन का मजा-5
गतांक से आगे.............................
"बिलकुल देख. इसे कहते हैं असली स्टूडेंट! हर चीज की उत्सुकता होनी चाहिये. इस पाठ में तू अच्छा करेगा अनिल. जा, उस ड्रावर में से टेप ले आ"
मैं टेप ले आया.
"पहले खुद का नाप. बता कितना है?"
मैंने अकेले में कई बार नापा था फ़िर भी सर के सामने फ़िर से नापा. "सर, पांच इंच से ज्यादा है पर साढ़े पांच इंच के नीचे है"
"चल ठीक है, अब मेरा नाप. यहां नीचे से लगा, जड़ से और ऊपर तक ले जा. कितना है?"
"सर पौने आठ इंच है सर. ठहरिये सर फ़िर से देखता हूं" कहकर मैंने फ़िर टेप ठीक से लगायी "आठ इंच है सर! कितना बड़ा है!! इतना मोटा और लंबा!" मैं सुपाड़े को हथेली में भरकर बोला. "दूर से तो ऐसा लगता है जैसे फुट भर का हो"
"अब मोटाई देख. ऐसे नहीं मूरख, पाई सिखाया है ना तुझे? याद है ना? नहीं तो मारूंगा. टेप को डंडे में लपेट और देख. फ़िर मोटाई बता" सर ने कहा.
मैंने डंडे के चारों ओर टेप लपेटी. "सर सवा छह इंच के करीब है. याने ...."
"जल्दी बता .... सर्कमफ़्रेंस अगर साढ़े छह इंच है तो डायमीटर कितना है" मैं हिसाब लगाने लगा. "३.१४ से भाग करके .... कितना होगा .... ?" मैं बुदबुदाया. सिर चकराने लगा.
चौधरी सर ने मेरी पीठ में एक घूंसा मारा, हल्के से. "अरे मूरख, यहां क्या पेपर पेन्सिल लेकर गुणा भाग करेगा? पाई बराबर ३ समझ ले, अब बता"
"सर दो से जरा सा ज्यादा हुआ. याने आपका लंड दो इंच से थोड़ा ज्यादा मोटा है" मैं बोला.
"बहुत अच्छे. अब सुपाड़ा नाप" सर खुश होकर बोले. सुपाड़े के चारों ओर टेप लपेटी तो साढ़े सात इंच नाप आया. मैंने झट तीन से भागा" सर, अढ़ाई इंच के करीब है, बाप रे कितना मोटा है सुपाड़ा, लगता है जैसे आधे पाव का एक टमाटर हो" मेरे मुंह से निकल पड़ा.
"देखा ना, कैसा लगा सर का लंड अब बता?" सर बड़े गर्व से बोले. वे अब खुद ही अपने लंड को सहला रहे थे.
"सर बहुत .... बहुत .... मतवाला है सर. बहुत सुंदर, बहुत .... रसीला लगता है सर और कितना मजबूत और जानदार है सर"
"मान गया ना? अरे मेरा लंड ऐसा है कि किसी को भी स्वर्ग की सैर करवा दे, बस सैर करने वाला शौकीन होना चाहिये. रस चखेगा इसका? बोल?"
"हां सर, लगता है कि अभी चबा चबा कर खा जाऊं सर"
"तो शुरू हो जा. खेल उससे, उसे मस्त कर, स्वाद देख. याद है वह सब करना है जो मैंने किया था" सर पीछे टिक कर बैठते हुए बोले.
अगले दस मिनिट मैं चौधरी सर के लंड से खेलता रहा. उसे तरह तरह से हाथ में लिया, दबाया, रगड़ा, पुचकारा, अपने गाल और माथे पर रगड़ा. फ़िर सर के सामने जमीन पर बैठ कर चाटने लगा.
"आ ऽ ह ऽ ... अब आया मजा मेरे बेटे. ऊपर से नीचे तक चाट! कुत्ते चाटते हैं ना वैसे, पूरी जीभ सटा के!" सर मस्त होकर बोले.
सर का लंड चाटने में बहुत मजा आ रहा था. पर मन सुपाड़े का स्वाद लेने को करता था. मैंने लंड को फ़िर से मुठ्ठी में पकड़ा और सुपाड़े की सतह पर जीभ फ़िराने लगा जैसे आइसक्रीम का कोन हो. एकदम मुलायम रेशमी चमड़ी थी, तनी हुई! लगता है कि मेरे नौसिखिये होने के बावजूद सर को मजा आ गया क्योंकि वे ऊपर नीचे होने लगे "हां .... हां बेटे ... और चाट .... वो नोक पर छेद देखता है ना .... वहां जीभ लगा"
मैंने देखा कि सुपाड़े के बीचे के मूतने के छेद पर एक सफ़ेद मोती सा छलक आया था. "सर वहां तो ...." मैंने हिचकते हुए कहा.
"वहां क्या .... बोल .... बोल... क्या है वहां?" सर ने मेरे बाल पकड़कर कहा.
"सर वीर्य की बूंद है"
"अब उसका क्या करना है? बोलो बोलो अनिल ... उसका क्या करना है?" उन्होंने कड़ी आवाज में पूछा. फ़िर खुद ही बोले "उसे चाटना है, स्वाद लेना है, अंदर के खजाने का कैसा जायका है यह आजमाना है. समझा ना?"
जवाब में मैंने हिचकते हुए उसे बूंद को जीभ से टीप लिया. खारा सा कसैला सा स्वाद था. मुझे अच्छा लगा. मैंने सुपाड़े का आधा हिस्सा मुंह में लिया और चूसने लगा. सर "ओह ...ओह" करने लगे. फ़िर मेरे बाल खींच कर बोले "अरे मूरख दांत क्यों लगा रहा है? पर चल कोई बात नहीं, उससे भी मुझे मजा आ रहा है ... हां .... हां .... ऐसे ही बेटे"
"सर ... मुंह में ठीक से लेकर चूसूं सर?" मैंने पूछा. सर तो तैयार ही बैठे थे. मेरे कान पकड़कर बोले "तो और क्या कह रहा हूं मैं तब से नालायक लड़के?"
"सर ... बहुत बड़ा है सर. मुंह में नहीं आयेगा" मैंने हिचकते हुए कहा.
"पूरा मुंह खोल, फ़िर आयेगा. मैं मदद करता हूं चल. पर पहले बता. मुंह में लेकर क्या करेगा?"
"सर चूसूंगा"
"कैसे चूसेगा?"
"सर कुल्फ़ी चूसते हैं वैसे चूसूंगा."
"कब तक चूसेगा?" सर मेरे बाल सहलाते हुए बोले.
"जब तक आप झड़ नहीं जाते सर"
"झड़ने के बाद क्या करेगा? वीर्य थूक डालेगा, है ना? अच्छे बच्चे ऐसा ही करते हैं ना? बोल ... जल्दी बोल!" सर ने मेरी आंखों में देख कर कहा.
"नहीं सर" हिचकिचाते हुए मैंने कहा "निगल जाऊंगा सर"
"क्या समझ कर? बोलो बोलो क्या समझ कर?"
मैं चुप रहा. समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूं. सर ने फ़िर कड़ाई के स्वर में पूछा "बोलो अनिल. क्या समझकर निगलोगे अपने सर का वीर्य? कड़वी दवाई समझ कर?"
"नहीं सर." मैं बोल पड़ा "आप का प्रसाद समझकर"
गतांक से आगे.............................
"बिलकुल देख. इसे कहते हैं असली स्टूडेंट! हर चीज की उत्सुकता होनी चाहिये. इस पाठ में तू अच्छा करेगा अनिल. जा, उस ड्रावर में से टेप ले आ"
मैं टेप ले आया.
"पहले खुद का नाप. बता कितना है?"
मैंने अकेले में कई बार नापा था फ़िर भी सर के सामने फ़िर से नापा. "सर, पांच इंच से ज्यादा है पर साढ़े पांच इंच के नीचे है"
"चल ठीक है, अब मेरा नाप. यहां नीचे से लगा, जड़ से और ऊपर तक ले जा. कितना है?"
"सर पौने आठ इंच है सर. ठहरिये सर फ़िर से देखता हूं" कहकर मैंने फ़िर टेप ठीक से लगायी "आठ इंच है सर! कितना बड़ा है!! इतना मोटा और लंबा!" मैं सुपाड़े को हथेली में भरकर बोला. "दूर से तो ऐसा लगता है जैसे फुट भर का हो"
"अब मोटाई देख. ऐसे नहीं मूरख, पाई सिखाया है ना तुझे? याद है ना? नहीं तो मारूंगा. टेप को डंडे में लपेट और देख. फ़िर मोटाई बता" सर ने कहा.
मैंने डंडे के चारों ओर टेप लपेटी. "सर सवा छह इंच के करीब है. याने ...."
"जल्दी बता .... सर्कमफ़्रेंस अगर साढ़े छह इंच है तो डायमीटर कितना है" मैं हिसाब लगाने लगा. "३.१४ से भाग करके .... कितना होगा .... ?" मैं बुदबुदाया. सिर चकराने लगा.
चौधरी सर ने मेरी पीठ में एक घूंसा मारा, हल्के से. "अरे मूरख, यहां क्या पेपर पेन्सिल लेकर गुणा भाग करेगा? पाई बराबर ३ समझ ले, अब बता"
"सर दो से जरा सा ज्यादा हुआ. याने आपका लंड दो इंच से थोड़ा ज्यादा मोटा है" मैं बोला.
"बहुत अच्छे. अब सुपाड़ा नाप" सर खुश होकर बोले. सुपाड़े के चारों ओर टेप लपेटी तो साढ़े सात इंच नाप आया. मैंने झट तीन से भागा" सर, अढ़ाई इंच के करीब है, बाप रे कितना मोटा है सुपाड़ा, लगता है जैसे आधे पाव का एक टमाटर हो" मेरे मुंह से निकल पड़ा.
"देखा ना, कैसा लगा सर का लंड अब बता?" सर बड़े गर्व से बोले. वे अब खुद ही अपने लंड को सहला रहे थे.
"सर बहुत .... बहुत .... मतवाला है सर. बहुत सुंदर, बहुत .... रसीला लगता है सर और कितना मजबूत और जानदार है सर"
"मान गया ना? अरे मेरा लंड ऐसा है कि किसी को भी स्वर्ग की सैर करवा दे, बस सैर करने वाला शौकीन होना चाहिये. रस चखेगा इसका? बोल?"
"हां सर, लगता है कि अभी चबा चबा कर खा जाऊं सर"
"तो शुरू हो जा. खेल उससे, उसे मस्त कर, स्वाद देख. याद है वह सब करना है जो मैंने किया था" सर पीछे टिक कर बैठते हुए बोले.
अगले दस मिनिट मैं चौधरी सर के लंड से खेलता रहा. उसे तरह तरह से हाथ में लिया, दबाया, रगड़ा, पुचकारा, अपने गाल और माथे पर रगड़ा. फ़िर सर के सामने जमीन पर बैठ कर चाटने लगा.
"आ ऽ ह ऽ ... अब आया मजा मेरे बेटे. ऊपर से नीचे तक चाट! कुत्ते चाटते हैं ना वैसे, पूरी जीभ सटा के!" सर मस्त होकर बोले.
सर का लंड चाटने में बहुत मजा आ रहा था. पर मन सुपाड़े का स्वाद लेने को करता था. मैंने लंड को फ़िर से मुठ्ठी में पकड़ा और सुपाड़े की सतह पर जीभ फ़िराने लगा जैसे आइसक्रीम का कोन हो. एकदम मुलायम रेशमी चमड़ी थी, तनी हुई! लगता है कि मेरे नौसिखिये होने के बावजूद सर को मजा आ गया क्योंकि वे ऊपर नीचे होने लगे "हां .... हां बेटे ... और चाट .... वो नोक पर छेद देखता है ना .... वहां जीभ लगा"
मैंने देखा कि सुपाड़े के बीचे के मूतने के छेद पर एक सफ़ेद मोती सा छलक आया था. "सर वहां तो ...." मैंने हिचकते हुए कहा.
"वहां क्या .... बोल .... बोल... क्या है वहां?" सर ने मेरे बाल पकड़कर कहा.
"सर वीर्य की बूंद है"
"अब उसका क्या करना है? बोलो बोलो अनिल ... उसका क्या करना है?" उन्होंने कड़ी आवाज में पूछा. फ़िर खुद ही बोले "उसे चाटना है, स्वाद लेना है, अंदर के खजाने का कैसा जायका है यह आजमाना है. समझा ना?"
जवाब में मैंने हिचकते हुए उसे बूंद को जीभ से टीप लिया. खारा सा कसैला सा स्वाद था. मुझे अच्छा लगा. मैंने सुपाड़े का आधा हिस्सा मुंह में लिया और चूसने लगा. सर "ओह ...ओह" करने लगे. फ़िर मेरे बाल खींच कर बोले "अरे मूरख दांत क्यों लगा रहा है? पर चल कोई बात नहीं, उससे भी मुझे मजा आ रहा है ... हां .... हां .... ऐसे ही बेटे"
"सर ... मुंह में ठीक से लेकर चूसूं सर?" मैंने पूछा. सर तो तैयार ही बैठे थे. मेरे कान पकड़कर बोले "तो और क्या कह रहा हूं मैं तब से नालायक लड़के?"
"सर ... बहुत बड़ा है सर. मुंह में नहीं आयेगा" मैंने हिचकते हुए कहा.
"पूरा मुंह खोल, फ़िर आयेगा. मैं मदद करता हूं चल. पर पहले बता. मुंह में लेकर क्या करेगा?"
"सर चूसूंगा"
"कैसे चूसेगा?"
"सर कुल्फ़ी चूसते हैं वैसे चूसूंगा."
"कब तक चूसेगा?" सर मेरे बाल सहलाते हुए बोले.
"जब तक आप झड़ नहीं जाते सर"
"झड़ने के बाद क्या करेगा? वीर्य थूक डालेगा, है ना? अच्छे बच्चे ऐसा ही करते हैं ना? बोल ... जल्दी बोल!" सर ने मेरी आंखों में देख कर कहा.
"नहीं सर" हिचकिचाते हुए मैंने कहा "निगल जाऊंगा सर"
"क्या समझ कर? बोलो बोलो क्या समझ कर?"
मैं चुप रहा. समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूं. सर ने फ़िर कड़ाई के स्वर में पूछा "बोलो अनिल. क्या समझकर निगलोगे अपने सर का वीर्य? कड़वी दवाई समझ कर?"
"नहीं सर." मैं बोल पड़ा "आप का प्रसाद समझकर"