लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:44


“बाबू एक बात बताऊँ ?”
“क्या ?”
“तुम जब मेरी चूचियों को मसलते हो और चूसते हो तो बड़ा मजा आता है !”
“मैं समझा नहीं कैसे ?”
“वो ... वो... एक बार ...?” कहते कहते अंगूर चुप हो गई।
“बताओ ना ?”
“वो... एक बार जीजू ने मेरे इतने जोर से दबा दिए थे कि मुझे तो 3-4 दिन तक दर्द होता रहा था ?”
“अरे वो कैसे ?”
“जब अनार दीदी के बच्चा होने वाला था तब मैं उनके यहाँ गई थी। मुझे अकेला पाकर जीजू ने मुझे दबोच लिया और मेरे चूचे दबा दिए। वो तो.... वो तो.... मेरी कच्छी के अन्दर भी हाथ डालना चाहता था पर मैंने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया तो अनार दीदी आ गई !”
“फिर ?”
“फिर क्या दीदी ने मुझे छुटाया और जीजू को बहुत भला बुरा कहा !”
“ओह ..... ?”
“एक नंबर का लुच्चा है वो तो !”
“अंगूर उसका दोष नहीं है तुम हो ही इतनी खूबसूरत !” मैंने मुस्कुराते हुए कहा और एक धक्का जोर से लगा दिया।
“ऊईईई .... अमाआआ .... जरा धीरे करो ना ?”
“अंगूर तुम्हारे उरोज छोटे जरूर हैं पर बहुत खूबसूरत हैं !”
“क्या आपको मोटे मोटे उरोज पसंद हैं ?”
“उ... न .... नहीं ऐसी बात तो नहीं है !”
“पता है गौरी मेरे से दो साल छोटी है पर उसके तो मेरे से भी बड़े हैं !”
“अरे वाह उसके इतने बड़े कैसे हो गए ?”
“वो... वो कई बार मोती रात को उसके दबाता है और मसलता भी है !”
“कौन मोती ?”
“ओह ... आप भी ... वो मेरा छोटा भाई है ना ?”
“ओह ... अच्छा ?”
“आप जब इन्हें मसलते हो और इनकी घुंडियों को दांतों से दबाते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है !”
“हुं...”
अब मैंने उसके उरोजों की घुंडियों को अपने दांतों से दबाना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सीत्कारें निकलने लगी। फिर मैंने उसके उरोजों की घाटी और गले के नीचे से फिर से चूसना चालू कर दिया तो उसने भी उत्तेजना के मारे सीत्कार करना चालू कर दिया। अब मैंने अपने पैर सीधे कर दिए तो उसने अपने पैर मेरे कूल्हों के दोनों और करके ऊपर उठा लिए और मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए। अब धक्के लगाने से उसके नितम्ब नीचे फर्श पर लगने लगे। उसे ज्यादा दर्द ना हो इसलिए मैंने बंद कर दिए और अपने लंड को उसकी बुर पर रगड़ने लगा। मेरे छोटे छोटे नुकीले झांट उसकी बुर की फांकों से रगड़ खाते और मेरे लंड का कुछ भाग अन्दर बाहर होते समय उसकी मदनमणि को भी रगड़ता। मैं जानता था ऐसा करने से वो जल्दी ही फिर से चरम उत्तेजना के शिखर पर पहुँच जायेगी और उसकी बुर एक बार फिर मीठा सफ़ेद शहद छोड़ देगी।
अब उसने अपने पैरों की कैंची खोल दी और अपनी जांघें जितना चौड़ी कर सकती थी कर दी। वो तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी थी और अपने नितम्बों को फिर से उछालने लगी थी। फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया। उसकी आह ... उन्ह ... और झटके खाते शरीर और बुर के कसाव को देख और महसूस करके तो मुझे लगा वो एक बार फिर से झड़ गई है। हमें कोई आधा घंटा तो हो ही गया था। अब मुझे भी लगने लगा था कि मैं मोक्ष को प्राप्त होने ही वाला हूँ। मैं अपने अंतिम धक्के उसे चौपाया (घोड़ी) बना कर लगाना चाहता था पर बाद में मैंने इसे दूसरे राउंड के लिए छोड़ दिया और जोर जोर से आखिरी धक्के लगाने चालू कर दिए।
“ऊईइ ..... आम्माआअ ..... ईईईईईईईईईईईईई ..... ” उसने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूसने लगी। उसका शरीर कुछ अकड़ा और फिर हल्के-हल्के झटके खाते वो शांत पड़ती चली गई। पर उसकी मीठी सीत्कार अभी भी चालू थी। प्रथम सम्भोग की तृप्ति और संतुष्टि उसके चहरे और बंद पलकों पर साफ़ झलक रही थी। मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में कस लिया और जैसे ही मैंने 3-4 धक्के लगाए मेरे वीर्य उसकी कुंवारी चूत में टपकने लगा।
मेरी पाठिकाएं शायद सोच रही होंगे कि बुर के अन्दर मैंने अपना वीर्य क्यों निकाला? अगर अंगूर गर्भवती हो जाती तो ? आप सही सोच रही है। मैंने भी पहले ऐसा सोचा था। पर आप तो जानती ही हैं मैं मधुर (मेरी पत्नी) को इतना प्रेम क्यों करता हूँ। उसके पीछे दरअसल एक कारण है। वो तो मेरे लिए जाने अनजाने में कई बार कुछ ऐसा कर बैठती है कि मैं तो उसका बदला अगले सात जन्मों तक भी नहीं उतार पाऊंगा।
ओह ... आप नहीं समझेंगी मैं ठीक से समझाता हूँ :
मैंने बताया था ना कि मधुर ने पिछले हफ्ते मुझे अंगूर के लिए माहवारी पैड्स लाने को कहा था ? आप तो जानती ही हैं कि अगर माहवारी ख़त्म होने के 8-10 दिन तक सुरक्षित काल होता है और इन दिनों में अगर वीर्य योनी के अन्दर भी निकाल दिया जाए तो गर्भधारण की संभावना नहीं रहती। ओह ... मैं भी फजूल बातें ले बैठा।
पढ़ते रहिए ..

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:45


“ऊईइ ..... आम्माआअ ..... ईईईईईईईईईईईईई ..... ” उसने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूसने लगी। उसका शरीर कुछ अकड़ा और फिर हल्के-हल्के झटके खाते वो शांत पड़ती चली गई। पर उसकी मीठी सीत्कार अभी भी चालू थी। प्रथम सम्भोग की तृप्ति और संतुष्टि उसके चहरे और बंद पलकों पर साफ़ झलक रही थी। मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में कस लिया और जैसे ही मैंने 3-4 धक्के लगाए मेरे वीर्य उसकी कुंवारी चूत में टपकने लगा।
मेरी पाठिकाएं शायद सोच रही होंगे कि बुर के अन्दर मैंने अपना वीर्य क्यों निकाला? अगर अंगूर गर्भवती हो जाती तो ? आप सही सोच रही है। मैंने भी पहले ऐसा सोचा था। पर आप तो जानती ही हैं मैं मधुर (मेरी पत्नी) को इतना प्रेम क्यों करता हूँ। उसके पीछे दरअसल एक कारण है। वो तो मेरे लिए जाने अनजाने में कई बार कुछ ऐसा कर बैठती है कि मैं तो उसका बदला अगले सात जन्मों तक भी नहीं उतार पाऊंगा।
ओह ... आप नहीं समझेंगी मैं ठीक से समझाता हूँ :
मैंने बताया था ना कि मधुर ने पिछले हफ्ते मुझे अंगूर के लिए माहवारी पैड्स लाने को कहा था ? आप तो जानती ही हैं कि अगर माहवारी ख़त्म होने के 8-10 दिन तक सुरक्षित काल होता है और इन दिनों में अगर वीर्य योनी के अन्दर भी निकाल दिया जाए तो गर्भधारण की संभावना नहीं रहती। ओह ... मैं भी फजूल बातें ले बैठा।
हम दोनों एक दूसरे की बाहों में जकड़े पानी की ठंडी फुहार के नीचे लेटे थे। मेरा लंड थोड़ा सिकुड़ गया था पर उसकी बुर से बाहर नहीं निकला था। वो उसे अपनी बुर के अन्दर संकोचन कर उसे जैसे चूस ही रही थी। मैं अभी उठने की सोच ही रहा था कि मुझे ध्यान आया कि अंगूर की बुर से तो खून भी निकला था। शायद अब भी थोड़ा निकल रहा होगा। चुदाई की लज्जत में उसे दर्द भले ही इतना ना हो रहा हो पर जैसे ही मेरा लंड उसकी बुर से बाहर आएगा वो अपनी बुर को जरूर देखेगी और जब उसमें से निकलते हुए खून को देखेगी तो कहीं रोने चिल्लाने ना लग जाए। मैं ऐसा नहीं होने देना चाहता था क्यों कि मुझे तो अभी एक बार और उसकी चुदाई करनी थी। मेरा मन अभी कहाँ भरा था। ओह ... कुछ ऐसा करना होगा कि थोड़ी देर उसकी निगाह और ध्यान उसकी रस टपकाती बुर पर ना जा पाए।
“अंगूर इस पानी की ठंडी फुहार में कितना आनंद है !” मैंने कहा।
“हाँ बाबू मैं तो जैसे स्वर्ग में ही पहुँच गई हूँ !”
“अंगूर अगर हम दोनों ही थोड़ी देर आँखें बंद किये चुपचाप ऐसे ही लेटे रहें तो और भी मज़ा आएगा !”
“हाँ मैं भी यही सोच रही थी।”
मैं धीरे से उसके ऊपर से उठ कर उसकी बगल में ही लेट सा गया और अपने हाथ उसके उरोजों पर हौले हौले फिराने लगा। वो आँखें बंद किये और जाँघों को चौड़ा किये लेटी रही। उसकी बुर की फांकें सूजी हुई सी लग रही थी और उनके बीच से मेरे वीर्य, उसके कामराज और खून का मिलाजुला हलके गुलाबी रंग का मिश्रण बाहर निकल कर शावर से निकलती फुहार से मिल कर नाली की ओर जा रहा था। उसकी मोटी मोटी सूजी गुलाबी लाल फांकों को देख कर तो मेरा मन एक बार फिर से उन्हें चूम लेने को करने लगा। पर मैंने अपना आप को रोके रखा।
कोई 10 मिनट तक हम चुप चाप ऐसे ही पड़े रहे। पहले मैं उठा और मैंने अपने लंड को पानी से धोया और फिर मैंने अंगूर को उठाया। उसकी बुर में अभी भी थोड़ा सा दर्द था। उसने भी नल के नीचे अपनी बुर को धो लिया। वो अपनी बुर की हालत देख कर हैरान सी हो रही थी। उसकी फांकें सूज गई थी और थोड़ी चौड़ी भी हो गई थी।
“बाबू देखो तुमने मेरी पिक्की की क्या हालत कर दी है ?”
“क्यों ? क्या हुआ ? अच्छी भली तो है ? अरे ... वाह... यह तो अब बहुत ही खूबसूरत लग रही है !” कहते हुए मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया तो अंगूर पीछे हट गई। वो शायद यही सोच रही थी कहीं मैं फिर से उसकी पिक्की को अपने मुँह में ना भर लूँ।
“दीदी सच कहती थी तुम मुझे जरूर खराब कर के ही छोड़ोगे !” वो कातर आँखों से मेरी ओर देखते हुए बोली।
हे भगवान् कहीं यह मधुर की बात तो नहीं कर रही ? मैंने डरते डरते पूछा,“क ... कौन ? मधुर ?”
“आप पागल हुए हो क्या ?”
“क... क्या मतलब ?”
“मैं अनार दीदी की बात कर रही हूँ !”
“ओह ... पर उसे कैसे पता ... ओह... मेरा मतलब है वो क्या बोलती थी ?” मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। कहीं अनार ने इसे हमारी चुदाई की बातें तो नहीं बता दी ?
“वो कह रही थी कि आप बहुत सेक्सी हो और किसी भी लड़की को झट से चुदाई के लिए मना लेने में माहिर हो !”
“अरे नहीं यार .... मैं बहुत शरीफ आदमी हूँ !”
“अच्छाजी .... आप और शरीफ ??? हुंह .... मैं आपकी सारी बातें जानती हूँ !!!” उसने अपनी आँखें नचाते हुए कहा फिर मेरी ओर देख कर मंद मंद मुस्कुराने लगी। फिर बोली,“दीदी ने एक बात और भी बताई थी ?”
“क ... क्या ?” मैं हकलाते हुए सा बोला। पता नहीं यह अब क्या बम्ब फोड़ने वाली थी।
“वो ... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !” उसने अपनी मुंडी नीचे कर ली।
मैंने उसके पास आ गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। मैंने उसकी ठोड़ी पर अंगुली रख कर उसकी मुंडी ऊपर उठाते हुए पूछा,“अंगूर बताओ ना .... प्लीज ?”
“ओह ... आपको सब पता है ... !”
“प्लीज !”
“वो ... बता रही थी कि आप बुर के साथ साथ गधापच्चीसी भी जरूर खेलते हो !” कहते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसके गालों पर तो लाली ही दौड़ गई। मेरा जी किया इस पर कुर्बान ही हो जाऊं।
“अरे उसे कैसे पता ?” मैंने हैरान होते हुए पूछा।
“उसको मधुर दीदी ने बताया था कि आप कभी कभी छुट्टी वाले दिन बाथरूम में उनके साथ ऐसा करते हो !”
अब आप मेरी हालत का अंदाज़ा बखूबी लगा सकते हैं। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पलकों, गालों, छाती, उरोजों, पेट और नाभि पर ले लिए। जैसे ही मैं उसकी पिक्की को चूमने के लिए नीचे होने लगा वो पीछे हटते हुए घूम गई और अपनी पीठ मेरी और कर दी। मैंने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया। मेरा शेर इन सब बातों को सुनकर भला क्यों ना मचलता। वो तो फिर से सलाम बजने लगा था। मेरा लंड उसके नितम्बों में ठीक उसकी गांड के सुनहरे छेद पर जा लगा। अंगूर ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये और मेरी गर्दन में डाल दिए। मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को पकड़ लिया और एक हाथ से उसकी बुर को सहलाने लगा। जैसे ही मेरा हाथ उसकी फांकों से टकराया वो थोड़ी सी कुनमुनाई तो मेरा लंड फिसल कर उसकी जाँघों के बीच से होता उसकी बुर की फांकों के बीच आ गया। उसने अपनी जांघें कस ली।
“अंगूर एक बार तुम भी इसका मज़ा लेकर तो देखो ना ?”
“अरे ना बाबा ... ना .... मुझे नहीं करवाना !”
“क्यों ?”
“मैंने सुना है इसमें बहुत दर्द होता है !”
“अरे नहीं दर्द होता तो मधु कैसे करवाती ?”
“पर वो... वो ... ?”

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:45


मुझे कुछ आस बंधी। मेरा लंड तो अब रौद्र रूप ही धारण कर चुका था। मेरा तो मन करने लगा बस इसे थोड़ा सा नीचे झुकाऊं और अपने खड़े लंड पर थूक लगा कर इसकी मटकती गांड में डाल दूं। पर मैं इतनी जल्दबाजी करने के मूड में नहीं था।
मेरा मानना है कि ‘सहज पके सो मीठा होय’
“अरे कुछ नहीं होता इसमें तो आगे वाले छेद से भी ज्यादा मज़ा आता है ! मधुर तो इसकी दीवानी है। वो तो मुझे कई बार खुद कह देती है आज अगले में नहीं पीछे वाले छेद में करो ?” मैंने झूठ मूठ उसे कह दिया।
थोड़ी देर वो चुप रही। उसके मन की दुविधा और उथल-पुथल मैं अच्छी तरह जानता था। पर मुझे अब यकीन हो चला था कि मैं जन्नत के दूसरे दरवाजे का उदघाटन करने में कामयाब हो जाउंगा।
“वो ... वो ... रज्जो है ना ?” अंगूर ने चुप्पी तोड़ी।
“कौन रज्जो ?”
“हमारे पड़ोस में रहती है मेरी पक्की सहेली है !”
“अच्छा ?”
“पता है उसके पति ने तो सुहागरात में दो बार उसकी गांड ही मारी थी ?”
“अरे वो क्यों ?”
“रज्जो बता रही थी कि उसके पति ने उसे चोदना चालू किया तो उसकी बुर से खून नहीं निकला !”
“ओह ... अच्छा... फिर ?”
“फिर वो कहने लगा कि तुम तो अपनी सील पहले ही तुड़वा चुकी लगती हो। मैं अब इस चुदे हुए छेद में अपना लंड नहीं डालूँगा। तुम्हारे इस दूसरे वाले छेद की सील तोडूंगा !”
“अरे ... वाह ... फिर ?”
“फिर क्या ... उसने रज्जो को उल्टा किया और बेचारी को बहुत बुरी तरह चोदा। रज्जो तो रोती रही पर उसने उस रात दो बार उसकी जमकर गांड मारी। वो तो बेचारी फिर 4-5 दिन ठीक से चल ही नहीं पाई !”
“पर रज्जो की बुर की सील कैसे टूट गई उसने बताया तो होगा ?” मैंने पूछा।
“वो.... वो.... 8 नंबर वाले गुप्ता अंकल से उसने कई बार चुदवाया था !”
“अरे उस लंगूर ने उसे कैसे पटा लिया ?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं किसी सर्कस का जानवर या एलियन हूँ। फिर वह बोली,“पता ही वो कितने अच्छे अच्छे गिफ्ट उसे लाकर दिया करते थे। कभी नई चप्पलें, कभी चूड़ियाँ, कभी नई नई डिजाइन की नेल पोलिश ! वो तो बताती है कि अगर गुप्ता अंकल शादीशुदा नहीं होते तो वो तो रज्जो से ही ब्याह कर लेते !”
मैं सोच रहा था कि इन कमसिन और गरीब घर की लड़कियों को छोटी मोटी गिफ्ट का लालच देकर या कोई सपना दिखा कर कितना जल्दी बहकाया जा सकता है। अब उस साले मोहन लाल गुप्ता की उम्र 40-42 के पार है पर उस कमसिन लौंडिया की कुंवारी बुर का मज़ा लूटने से बाज़ नहीं आया।
“स ... साला .... हरामी कहीं का !” मेरे मुँह से अस्फुट सा शब्द निकला।
“कौन ?”
ओह... अब मुझे ध्यान आया मैं क्या बोल गया हूँ। मैंने अपनी गलती छिपाने के लिए उसे कहा,“अरे नहीं वो ... वो मैं पूछ रहा था कि उसने कभी रज्जो की गांड भी मारी थी या नहीं ?”
“पता नहीं ... पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?”
“ओह ... वो मैं इसलिए पूछ रहा था कि अगर उसने गांड भी मरवा ली होती तो उसे सुहागरात में दर्द नहीं होता ?” मैंने अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फिरानी चालू कर दी और उसकी मदनमणि के दाने को भी दबाना चालू कर दिया। साथ साथ मैं उसके कानो की लटकन, गर्दन, और कन्धों को भी चूमे जा रहा था।
“वैसे सभी मर्द एक जैसे ही तो होते हैं !”
“वो कैसे ?”
“वो... वो.... जीजू भी अनार दीदी की गांड मारते हैं और .... और ... बापू भी अम्मा की कई बार रात को जमकर गांड मारते हैं !”
“अरे ... वाह ... तुम्हें यह सब कैसे पता ?”
“हमारे घर में बस एक ही कमरा तो है। अम्मा और बापू चारपाई पर सोते हैं और हम सभी भाई बहन नीचे फर्श पर सो जाते हैं। रात में कई बार मैंने उनको ऐसा करते देखा है।”
मुझे यह सब अनारकली ने भी बताया था पर मुझे अंगूर के मुँह से यह सब सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था। दरअसल मैं यह चाहता था कि इस सम्बन्ध में इसकी झिझक खुल जाए और डर निकल जाए ताकि यह भी गांड मरवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाए और गांड मरवाते समय मेरे साथ पूरा सहयोग करे। पहले तो यह जरा जरा सी बात पर शरमा जाया करती थी पर अब एक बार चुदने के बाद तो आसानी से लंड, चूत, गांड और चुदाई जैसे शब्द खुल कर बोलने लगी है।
मैंने बात को जारी रखने की मनसा से उसे पूछा,“पर गुलाबो मना नहीं करती क्या ?”
“मना तो बहुत करती है पर बापू कहाँ मानते हैं। वो तो अम्मा को अपना हथियार चूसने को भी कहते हैं पर अम्मा को घिन आती है इसलिए वो नहीं चूसती इस पर बापू को गुस्सा आ जाता है और वो उसे उल्टा करके जोर जोर से पिछले छेद में चोदने लग जाते हैं। अम्मा तो बेचारी दूसरे दिन फिर ठीक से चल ही नहीं पाती !”
“तुम्हारा बापू भी पागल ही लगता है उसे ठीक से गांड मारना भी नहीं आता !”
वो तो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई। थोड़ी देर रुक कर वो बोली,“बाबू मेरे एक बात समझ नहीं आती ?”
“क्या ?”
“अम्मा बापू का चूसती क्यों नहीं। अनार दीदी बता रही थी कि वो तो बड़े मजा ले ले कर चूसती है। वो तो यह भी कह रही थी कि मधुर दीदी भी कई बार आपका .... ?” कहते कहते अंगूर रुक गई।
मैं भी कितना उल्लू हूँ। इतना अच्छा मौका हाथ में आ रहा है और मैं पागलों की तरह ऊलूल जुलूल सवाल पूछे जा रहा हूँ।
ओह ... मेरे प्यारे पाठको ! आप भी नहीं समझे ना ? मैं जानता हूँ मेरी पाठिकाएं जरूर मेरी बात को समझ समझ कर हँस रही होंगी। हाँ दोस्तो, कितना बढ़िया मौका था मेरे पास अंगूर को अपने लंड का अमृतपान करवाने का। मैं जानता था कि मुझे बस थोड़ी सी इस अमृतपान कला की तारीफ़ करनी थी और वो इसे चूसने के लिए झट से तैयार हो जाएगी। मैंने उसे बताना शुरू किया।
पढ़ते रहिए .....

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