छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 21:48

गतांक से आगे ............. जो भी मेरे साथ उस दिन हुवा, वो मेरी समझ के बिल्कुल बाहर था. मैं बिल्कुल भी विस्वास नही कर पा रही थी कि बिल्लू फिर से मेरे साथ इतना कुछ कर गया.

पर कहते है कि भावनायें जब बहक जाती है तो कदमो को थामना मुस्किल हो जाता है, कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुवा था.

बिल्लू के जाने के बाद मैं बेडरूम में आ कर अपने बेड पर गिर गयी. मेरी साँसे अभी तक तेज तेज चल रही थी और दिल भी ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.

मैं बिल्लू से ज़्यादा खुद पर हैरान थी कि आख़िर मुझे हो क्या गया था.

मैं हैरान थी कि आख़िर उस धोकेबाज बिल्लू ने मुझ पर कैसा जादू कर दिया कि मैं मदहोश हो कर वाहा दरवाजे पर उशके हाथो का खिलोना बन कर खड़ी रही.

पर फिर अचानक मैं अजीब सी मदहोशी में खो गयी. जो भी अभी थोड़ी देर पहले बिल्लू मेरे साथ कर के गया था वो एक मूवी की तरह मेरी आँखो में घूमने लगा और मेरी साँसे थमने की बजाए फिर से तेज़ी पकड़ने लगी.

इस बात को झुटलाना बहुत मुस्किल था कि बिल्लू के होन्ट मेरी योनि पर मुझे ना चाहते हुवे भी बहुत प्यारा सा अहसाश दे गये थे. ये ऐसा अहसाश था जिशे मैने अभी तक अपनी शादी शुदा जिंदगी में भी महसूस नही किया था.

मैने मन ही मन महसूस किया कि मेरा एक मन तो इतना आनंद पा कर आकाश में उड़ा जा रहा है, और एक मन गिल्ट और शर्मिंदगी में डूबा जा रहा है, ऐसा लगता था कि मैं 2 टुकड़ो में बट गयी हूँ.

एक पल मैं खुद को कोस रही थी कि आख़िर मैने फिर से ये सब कैसे होने दिया और वो भी अपने घर में. और दूसरे पल मैं बिल्लू के साथ बिताए एक एक पल में खो जाती थी, ऐसा मेरे साथ पहले कभी भी नही हुवा था.

एक पल को ये भी ख़याल आया कि काश बिल्लू ही मेरा पति होता तो मैं खुल कर उशके साथ खो पाती और मुझे गिल्ट और शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता.

मैं जानती थी कि ये सब सोचना मेरे लिए पाप के समान है, पर मेरा मन मेरे बस में कहा था, ये विचार तो खुद ही जाने कहा से मेरे मन में आ रहे थे, कुछ ऐसा असर किया था बिल्लू ने मेरे दिलो, दीमाग पर.

अब सवाल ये नही था कि मैं बिल्लू से कैसे निपतुँगी, बल्कि सवाल ये था कि जो अहसास वो मुझे दे गया था उन्हे मैं कैसे भुला पाउन्गि.

फिर अचानक में एक गहरी चिंता में डूब गयी. मुझे ख़याल आया कि जब कल बिल्लू मुझे लेने आएगा तो मैं उसे कैसे मना कर पाउन्गि.

मैं भावनाओ में बह कर बिल्लू के साथ जाने को तैयार तो हो गयी, पर मैं ये आछे से जानती थी कि मेरी मर्यादायें मुझे ये सब नही करने देंगी.

पूरा दिन में जाने अंजाने बिल्लू के ख़यालो में खोई रही. लगता था जैसे मुझे बिल्लू से प्यार हो गया है. पर मैं ये भी सोच रही थी कि जिसने मुझे इतना बड़ा धोका दिया उसे मैं कैसे अपने दिल में जगह दे सकती हूँ.

फिर भी मैने फ़ैसला किया कि मुझे हर हाल में अपने बहकते कदमो को थामना होगा. और मुझे यकीन भी था कि मैं कुछ ना कुछ ज़रूर कर पाउन्गि.

सारा दिन इशी कसम्कश में कट गया और रात होते ही बेचानी की कोई शीमा नही रही.

मैं बार, बार करवटें बदल रही थी और संजय दूसरी तरफ करवट लिए पड़े थे.

बिल्लू के होंटो की छुवन मेरी योनि पर अभी तक ताज़ा थी, और मैं मन ही मन ना चाहते हुवे भी बार बार उन पॅलो में खो जाती थी जब बिल्लू की जीभ मेरी योनि की गहराई तक फिसल रही थी और मुझे भी भावनाओ की अजीब सी गहराई में खींच रही थी.

समझ में नही आ रहा था कि मैं अपने मन में उठते इन विचारो को कैसे रोकू. मैं बार बार भगवान से यही दुवा कर रही थी की मेरे मन को शांति दो ताकि मैं अपनी मर्यादाओ में रह संकु और अपने बहकते कदमो को थाम संकु.

मुझे कब नींद आई पता नही, पर इतना ज़रूरत पता है कि जब मैं सुबह उठी तो मेरे तन बदन में अजीब सी घबराहट और बेचानी हो रही थी.

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 21:49

इसी बेचानी में मैने ब्रेकफास्ट बनाया और जैसे तैसे संजय और चिंटू को खिलाया. पर मैं एक निवाला भी ठीक से नही खा पाई.

मैं संजय से अपनी हालत छुपाने की कोशिश कर रही थी, पर मेरे अंदर बेचानी हर पल बढ़ती जा रही थी.

संजय और चिंटू चले गये और मैं बेडरूम में आ कर लेट गयी. घड़ी में 9:45 बज रहे थे.

आँखे बंद करते ही मेरी आँखो में उस दिन का नज़ारा घूम गया जब में अपने घर के पीछे झाड़ियो में झुकी हुई थी और बिल्लू मेरे पीछे मेरे नितंबो में लिंग डाले हुवे था.

मैं फॉरन हड़बड़ा कर उठ गयी और अपने ध्यान को यहा वाहा लगाने की कोशिस करने लगी. मैने एक गिलास पानी पिया और फिर से लेट गयी.

पर फिर से ना जाने क्यो वो पल याद आ गया जब बिल्लू ने मेरे नितंबो में धक्के लगाते हुवे पूछा था कि, “कैसा लग रहा है” और मैने जवाब दिया था कि “बहुत अछा”.

मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर ऐसे विचार मुझे क्यो आ रहे है.

मैं बेड से उठ कर किचन में आ गयी.

इस कसम्कश में मुझे ध्यान ही नही रहा कि पूरा घर बिखरा पड़ा है.

मैं जैसे तैसे अपने काम में लग गयी पर दिमाग़ अभी भी इसी उधैीडबुन में था कि अब मुझे क्या करना चाहिए.

बिल्लू आने वाला था, और मैं कोई फ़ैसला नही कर पा रही थी.

पर इतना ज़रूर था कि मेरे लिए उशके साथ चलना मुमकिन नही था.

उशके घर में मेरे साथ जो कुछ हुवा था उशके बाद, वाहा जाना मेरे लिए किसी भी हालत में मुनासिब नही था.

10:45 बज गये और बिल्लू नही आया, मुझे लगा अछा हुवा मैं अपने मन की दुविधा से बच गयी.

मैं ये सोच ही रही थी की डोर बेल बज उठी.

मैं फिर से बेचन हो गयी.

मुझे यकीन था कि ये बिल्लू ही होगा.

मैने हल्का सा दरवाजा खोला, सामने बिल्लू खड़ा था.

वो मुझे देख कर बोला, सॉरी थोड़ा लेट हो गया.

मैने कहा, बिल्लू मैं तुम्हारे साथ नही जा सकती, तुम यहा से चले जाओ.

उसने कहा, क्यो क्या हुवा ?

मैने कहा, मुझे नही पता, तुम प्लीज़ जाओ कोई देख लेगा.

उसने दरवाजा धकैलते हुवे कहा, अंदर बैठ कर बात करें.

मैने दरवाजा ज़ोर से थाम कर कहा, नही तुम अब जाओ.

उसने कहा, पूरी रात मैं सो नही पाया, सारी रात तू मेरे ख़यालो में घूमती रही और अब तू कहती है कि मैं जाउ, मैं कहा जाउ ?

उसने फिर से दरवाजे को धकैला पर मैं दरवाजे को मजबूती से थामे रही.

उसने कहा, देखो कोई देख लेगा, मुझे जल्दी अंदर आने दो, थोड़ी देर मुझ से बात ही कर लो, मैं चला जाउन्गा.

मुझे पता तो था कि वो ये सब क्यो कह रहा है पर फिर भी दरवाजे पर मेरे हाथो की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गयी और वो झट से दरवाजा धकेल कर अंदर आ गया.

अंदर आ कर उसने दरवाजे की कुण्डी लगा दी और मेरे सामने खड़ा हो गया.

उसने पूछा, क्या बात है ?

मैने कहा, कुछ नही मुझे ये सब ठीक नही लग रहा.

उसने कहा, इस में ठीक लगने, ना लगने की क्या बात है ? ये तो एक खेल है, मज़े से खेलो और भूल जाओ, तू बेकार में चिंता कर रही है.

मैने कहा, तुम आदमी हो, एक औरत की मजबूरी तुम नही समझ सकते.

उसने कहा, अगर मैं तुझे मजबूर कर रहा हूँ तो मैं ज़रूर ग़लत हूँ, पर अगर तेरा मन खुद मेरे साथ एंजाय करना चाहता है तो, तुझे खुद को ज़बरदस्ती नही रोकना चाहिए, ये जवानी बार बार नही आएगी.

मैने कहा, पर में कैसे भूल जाउ की में किसी की पत्नी हूँ ? मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूँ, मुझ से ये सब नही होगा, तुम प्लीज़ जाओ.

उसने कहा, क्या तुझे यकीन है कि संजय ही तेरा पति है और मैं नही ?

मैने हैरानी में पूछा, क्या मतलब ?

उसने कहा, क्या ऐसा नही हो सकता कि शायद किसी जनम में तुम मेरी पत्नी रही हो.

मैने गुस्से में कहा, हां, हां बिल्कुल हो सकता है, और ये भी हो सकता है कि वो कमीना अशोक भी किसी जनम में मेरा पति रहा हो, तभी तुम मुझे उशके पास ले गये थे.

बिल्लू थोड़ा सकपका गया.


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 21:50

थोड़ा सोचने के बाद वो बोला, वक्त आने पर तुझे सारी सचाई पता चल जाएगी. तू अशोक को भूल जा, मैने कल माफी तो माँगी थी, और तूने मुझे माफ़ भी किया था, क्या कल तू नाटक कर रही थी ?

मैने कहा, नाटक तो तुम करते हो, मुझे क्या पता नाटक क्या होता है.

बिल्लू मेरे कदमो में बैठ गया और बोला, तू गुस्से में और भी ज़्यादा प्यारी लग रही है.

मैने कोई जवाब नही दिया.

प्लीज़ मुझ पर रहम खाओ, मैं तुझसे फिर से माफी माँगता हू. कल सारी रात मैं तेरे लिए तड़प्ता रहा, तुझे क्या पता मेरी क्या हालत हो रही है तेरे प्यार में.

मैने कहा, अगर तुम्हे मुझ से प्यार था तो मुझे धोका क्यो दिया.

वो बोला, तुमने मुझे अभी तक माफ़ नही किया, मैं क्या करूँ, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो.

मैने कहा, ठीक है, ठीक है, अब उठ जाओ और यहा से जाओ.

उसने पूछा, क्या तू मेरे साथ नही चलेगी.

मैने कहा, मैं तुम्हारे साथ नही जा सकती समझा करो, तुम्हे मुझसे जो चाहिए था, वो तुम्हे मिल तो गया.

उसने कहा, एक बार फिर से दे दो ना.

मेरे होंटो से अचानक निकल गया, क्या ? और मैं ना चाहते हुवे भी शर्मा गयी.

उसने बेशर्मी से हंसते हुवे कहा, वही दे दो जहा कल मैने अपनी जीभ घुमाई थी, सच कल सारी रात मेरा लंड मेरी जीभ को कोस्ता रहा कि क्या किशमत पाई है.

ये सुन कर एक पल को मेरे होश उड़ गये. मेरे मन का एक कोना भी तो ऐसा ही चाहता था कि बिल्लू मुझ में गहराई तक समा जाए.

पर फिर मैने खुद को संभाला और कहा, चुप करो, मैं ऐसा नही कर सकती, जितना तुम्हे मिलना था मिल चुका, अब मैं और कुछ नही कर सकती.

उसने पूछा, सच बता क्या दुबारा तुझे मेरा लंड लेने की इच्छा नही हुई ? क्या तुझे कभी वो पल याद नही आया जब मैने तेरी गांद मारी थी ?

ये सब सुन कर मैं फिर से अपने होश खो बैठी, मेरी आँखो में फिर से वो पल घूम गया जब बिल्लू बहुत तेज-तेज मेरे नितंबो में धक्के लगा रहा था और मैं उशके हर धक्के का मज़ा ले रही थी.

उसने फिर पूछा, बता ना शर्मा मत क्या तुझे कभी याद नही आया कि तूने कैसे उस दिन मज़े से दी थी, मुझे तो वो दिन रोज याद आता है और मैं बार बार यही दुआ करता हूँ कि तेरी फिर से वैसे ही मिल जाए.

वो ऐसी बाते कर रहा था कि कोई भी सुन कर बहक जाता, मैं भी थोड़ा सा बहक गयी, पर फिर मैने कहा, नही मुझे कुछ याद नही आया, तुम अब जाओ, मेरा पीछा छोड़ दो और मुझे मेरे परिवार में खुश रहने दो.

वो बोला, तू तो खुश ही है मैं ही दीवानो की तरह यहा वाहा भटक रहा हूँ.

मैने कहा, तो मैं क्या करूँ मैने तो तुम्हे मेरे पीछे नही लगाया.

वो बोला, ठीक है ग़लती मेरी ही है, जो सब कुछ छोड़ कर तेरे पीछे पड़ा हूँ, मैं चला जाउन्गा पर एक बार अपनी चूत तो चुस्वा लो.

मैं कुछ नही कह पाई.

उसने बैठे बैठे मेरे नितंबो को थाम लिया और सलवार के उपर से ही मेरी योनि पर मूह रगड़ने लगा.

मैं हड़बड़ा कर पीछे हट गयी.

उसने कहा, अब कम से कम जो कल किया था वही कर लेने दो.

मैने कोई जवाब नही दिया.

बिल्लू ने आगे बढ़ कर मेरी योनि पर फिर से अपना मूह सटा दिया.

मैं अब पीछे नही हट पाई.

मैं जानती थी कि अगर मई बहक गयी तो खुद को थामना मुश्किल हो जाएगा, पर ना जाने क्यो मैने फिर उसे नही रोका.

वक्त जैसे खुद को दोहरा रहा था, जैसा कल हुवा था, वैसा ही आज भी हो रहा था.

मैं चुपचाप वाहा खड़ी रही और वो मेरी योनि को कपड़ो के उपर से ही चूमता रहा, मैने खुद को थामने की बहुत कॉसिश की पर मैं मदहोश होती चली गयी.

थोड़ी देर बाद वो बोला, यार मज़ा नही आ रहा, नाडा खोल दो ना.

कल के एक्सपीरियेन्स के कारण मैं खुद ऐसा ही चाहती थी, पर मैं खुद उशके लिए अपना नाडा नही खोल सकती थी.

उसने फिर कहा प्लीज़ खोल दो ना, मज़ा नही आ रहा.

मेरी साँसे तेज हो गयी, मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ.

वो दोनो हातो से मेरे नितंबो को लगातार मसल रहा था और मेरी योनि पर यहा वाहा मूह रग़ाद रहा था.

मेरी हालत और कराब होती जा रही थी.

उसने कहा, थोड़ा खोल दो ना, तुम्हे और ज़्यादा मज़ा आएगा, कल का मज़ा भूल गयी क्या.

मैने झीज़कते हुवे कहा, तुम खुद ही खोल लो ना.

उसने सर उठा कर मुस्कुराते हुवे मेरी और देखा और बोला, ना बाबा ना, तू खुद ही खोल, मैं खोलूँगा तो ऐसा लगेगा कि मैं तुझे मजबूर कर रहा हू.

मैं मन ही मन सोच रही थी कि इस बिल्लू को तो पॉलिटिक्स में होना चाहिए, बहुत ही डिप्लोमॅटिक बाते करता है.

वो वैसे ही मेरी योनि को चूमता रहा और अपने दोनो हाथो से मेरे नितंबो को मसलता रहा.

मैं ना चाहते हुवे भी बहकति चली गयी.

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