संजय ने विवेक से कहा, चलो मेरे कॅबिन में चलते है, अभी ऋतु बेहोश है, उसे आराम करने देते है.
पर मुझ से रहा नही गया और मैने संजय को आवाज़ लगाई, संजय !!
संजय दौड़ कर मेरे पास आ गये.
विवेक अभी तक वही था.
मैने धीरे से कहा, मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहती हूँ.
विवेक मेरी बात समझ गया और कमरे से बाहर चला गया.
संजय ने रूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
मैने संजय की आँखो में देख कर कहा, मुझे माफ़ कर दो !!
संजय ने कहा, किस बात के लिए, इस में तुम्हारी क्या ग़लती ?
मेरी आँखो में फिर से आँसू उतर आए और मैने धीरे से कहा, ग़लती मेरी ही है संजय, मैं खुद इस सब के लिए ज़िम्मेदार हूँ.
संजय ने मेरे सर पर हाथ रखा और प्यार से बोले ये क्या कह रही हो ? ये घटना तो किसी के साथ भी हो सकती है, तुम अपने आप को दोष मत दो.
एक पल को मुझे फिर लगा कि मैं बड़े आराम से झूठ बोल कर बच सकती हूँ, क्योंकि जैसा मैने अभी सुना था, वो सभी कामीने मारे जा चुके है, अब कोई ये बात साबित नही कर सकता था कि मैं खुद इस गुनाह में शामिल थी.
पर अगले ही पल मुझे किसी की कही एक बात याद आ गयी
“दा ट्रूथ विल सेट यू फ्री, बट फर्स्ट इट विल मेक यू मिज़रबल”
और मैने मन ही मन ठान लिया कि मेरे साथ चाहे कुछ भी हो मैं संजय को सब कुछ, सच-सच बता दूँगी.
ये सोचने के बाद मैने धीरे से कहा, संजय मैं तुम्हे सच बताना चाहती हूँ.
अब संजय के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे.
मैने हकलाते हुवे कहा, मैं…खुद… बिल्लू…… से….. मिलने घर के पीछे गयी थी.
इतना सुनते ही संजय आग बाबूला हो उठे और गुस्से में बोले, क्या मतलब ? तुम खुद वाहा तीन लोगो के साथ…….. छी……… आइ कॅंट बिलीव दिस !!
मेरी आँखो में फिर से आँसू भर आए.
मैने रोते हुवे कहा, मैं बिल्लू के बहकावे में आ गयी थी, उन दो लोगो के बारे में मुझे नही पता वो कब वाहा आ गये.
संजय ने ये सुनते ही मेरा गला दबा दिया.
मेरा दम घुटने लगा.
मैने खुद को छुड़ाने की कोई कोशिश नही की क्योंकि मैं सब कुछ सहने के लिए तैयार थी.
वो बोले, साली कुतिया, तो ये सब तेरा किया धरा है, मैं ये सोच भी नही सकता था, क्या कुछ नही दिया मैने तुझे, और तू……….. ?
उनका शीकंज़ा मेरे गले पर कसता चला गया
वो बोले, अब पता चला ये चूत चटवाने के ख्याल तुझे कहा से आते थे, वो कुत्ता ज़रूर तेरी चाटता होगा, है ना.
मेरी साँसे घुटने लगी, ऐसा लग रहा था कि मैं अब मरने ही वाली हूँ, और सच पूछो तो मैं इस के लिए तैयार थी. पर तभी चिंटू का चेहरा दीमाग में घूम गया, मैं सोचने लगी कि मेरे बाद चिंटू का क्या होगा.
अचानक किसी ने रूम का दरवाजा खड़काया.
और संजय ने मेरी गर्दन छोड़ दी और बोले मैं तेरे गंदे खून से अपने हाथ नही रंगना चाहता.
ये कह कर संजय गुस्से में दरवाजे की ओर बढ़ गये.
जैसे ही उन्होने दरवाजा खोला, मैने देखा कि मेरे पापा वाहा खड़े थे.
मैने अपने पापा को देखते ही आँखे बंद कर ली.
मेरे पापा ने मुझे जीवन में हमेशा अछी सीक्षा दी थी और वो मेरे आदर्श थे, उन्हे वाहा देख कर मैं फिर से और ज़्यादा परेशान हो उठी.
मैं समझ नही पा रही थी कि मैने संजय को तो ये सब बता दिया पर अपने पापा को क्या कहूँगी.
अब मैं यही दुआ कर रही थी कि हे भगवान मुझे इस दुनिया से उठा लो.
मुझे दूर से ही पापा की आवाज़ आई, उन्होने संजय से पूछा, कैसी है ऋतु ?
संजय ने गुस्से में कहा, आप खुद देख लीजिए ?
मैं चुपचाप आँखे बंद किए पड़ी रही ?
पापा मेरे पास आए और मेरे सर पर हाथ रख कर बोले, बेटा कैसी है तू, मैं आ गया हूँ, घबराने की कोई बात नही है.
वो ऐसा पल था जब वक्त जैसे रुक गया था. पापा को देख कर मेरी आँखो में आंशु भर आए.
मैने बड़ी मुश्किल से भारी मन से कहा, पापा, मैं कुछ नही बता सकती, प्लीज़ अभी कुछ मत पूछो.
पापा, बोले, ठीक है बेटा, तुम किसी बात की चिंता मत करो, मैं आ गया हूँ ना. तुम अभी आराम करो, कुछ खाने को लाउ क्या ?
मैने कहा, नही अभी कुछ नही चाहिए.
पापा ने कहा, मैं ज़रा संजय से मिल कर आता हूँ, उस से तो ठीक से बात ही नही हुई, पता नही क्यो वो थोड़ा परेशान लग रहा था.
ये कह कर पापा कमरे से बाहर चले गये.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
मैं अब यही सोच रही थी कि संजय सच जान-ने के बाद क्या करेंगे. मैं ये आछे से जानती थी कि वो मुझे कभी माफ़ नही कर पाएँगे.क्योंकि जब मैं खुद ही अपने से नफ़रत करने लगी थी तो वो कैसे मुझे माफ़ कर सकते थे ??
पर इतना ज़रूर था कि मैं संजय को सब कुछ बता कर खुद को हल्का महसूष कर रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे सर से कोई बोझ हट गया हो.
पर सच अगर कड़वा होता है तो उशके परिणाम
उस-से भी ज़्यादा भयानक होते है. इश्लीए मैं अंदर ही अंदर खुद को किसी भी हालात का सामना करने के लिए तैयार कर रही थी.
मैं जानती थी कि अगर संजय मुझे डाइवोर्स देंगे तो अपनी जगह सही होंगे, अगर मैं उनकी जगह होती तो शायद मैं भी ऐसा ही करती, पर फिर भी मुझे हल्की सी उम्मीद थी कि शायद संजय मुझे माफ़ कर दे.
अचानक मुझे ख्याल आया कि काश में बहुत पहले संजय को सब कुछ बता देती तो ये दिन मेरी जींदगी में कभी ना आता.
और तभी मुझे ध्यान आया कि बिल्लू भी तो मुझे संजय को सब कुछ बताने के लिए बोल रहा था, आख़िर उसका इस सब के पीछे क्या मकसद था ?
और संजय और विवेक की बातो के अनुशार तो शायद बिल्लू ने ही संजय को वाहा बुलाया था, पर क्यो ? मुझे कुछ समझ नही आ रहा था !!
फिर मैं संजय और विवेक की बाते सोचने लगी. मैं समझ तो कुछ नही पा रही थी पर इतना ज़रूर सोच रही थी कि आख़िर संजय और विवेक बिल्लू को कैसे जानते है !!
मैं इन विचारो में खोई थी कि अचानक मुझे तेज कदमो की आहट शुनाई दी. मैने आँखे खोल कर देखा तो पाया कि संजय मेरी तरफ आ रहे थे.
मेरे पास आ कर वो बोले, चलो उठो, और दफ़ा हो जाओ यहा से, मैं एक पल भी तुम्हे यहा बर्दास्त नही कर सकता.
संजय ने ज़ोर से झटका दे कर ग्लूकोस की पाइप मेरे हाथ से निकाल दी, मैं दर्द से कराह कर रह गयी.
मैने गिड़गिदाते हुवे कहा, प्लीज़ क्या तुम मुझे एक मोका नही दे सकते ??
संजय बोले, दे तो रहा हूँ तुम्हे मोका मैं, तुम्हे जींदा छोड़ रहा हूँ, जाओ कही और जा कर अपना मूह काला करो, मैं अब तुम्हारे साथ नही रह सकता. इतना बड़ा धोक्का, वो भी मेरे साथ, मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा. उस दिन शर्मा अंकल ने जिसे देखा था वो बिल्लू ही था, है ना ??
मैने गर्दन हां के इशारे में हिला दी.
वो चील्ला कर बोले, यू बिच !!!
और ये कह कर उन्होने मेरे मूह पर ज़ोर से थप्पड़ रसीद कर दिया. मेरा पूरा शरीर झन्ना उठा.
तभी पापा भी अंदर आ गये, शायद वो कमरे के बाहर खड़े हुवे सब कुछ सुन रहे थे.
पापा को देख कर संजय थोड़ा शांत हो गये.
पापा ने कहा, बेटा संजय, ये वक्त ऐसी बाते करने का नही है, ऋतु को अभी आराम करने दो. घर चल कर बात करेंगे.
संजय बोले, सब कुछ जान-ने के बाद भी आप ऐसा कह रहे है, और इसे हुवा क्या है जो इसे आराम की ज़रूरत है, विश्वास तो मेरा टूटा है !!
मैने देखा कि पापा ने बड़े गुस्से में संजय की और देखा और संजय अचानक चुप हो गये.
पापा मेरे पास आए और बोले, बेटा, मुझे संजय की बात पर यकीन नही है, चलो हम अपने घर चलते है.
ये सुन कर मैं फुट-फुट कर रोने लगी और पापा से कहा, “पापा प्लीज़ आप यहा से चले जाओ और मुझे मेरे हाल पर छ्चोड़ दो, सारा कसूर मेरा है” !!
पर इतना ज़रूर था कि मैं संजय को सब कुछ बता कर खुद को हल्का महसूष कर रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे सर से कोई बोझ हट गया हो.
पर सच अगर कड़वा होता है तो उशके परिणाम
उस-से भी ज़्यादा भयानक होते है. इश्लीए मैं अंदर ही अंदर खुद को किसी भी हालात का सामना करने के लिए तैयार कर रही थी.
मैं जानती थी कि अगर संजय मुझे डाइवोर्स देंगे तो अपनी जगह सही होंगे, अगर मैं उनकी जगह होती तो शायद मैं भी ऐसा ही करती, पर फिर भी मुझे हल्की सी उम्मीद थी कि शायद संजय मुझे माफ़ कर दे.
अचानक मुझे ख्याल आया कि काश में बहुत पहले संजय को सब कुछ बता देती तो ये दिन मेरी जींदगी में कभी ना आता.
और तभी मुझे ध्यान आया कि बिल्लू भी तो मुझे संजय को सब कुछ बताने के लिए बोल रहा था, आख़िर उसका इस सब के पीछे क्या मकसद था ?
और संजय और विवेक की बातो के अनुशार तो शायद बिल्लू ने ही संजय को वाहा बुलाया था, पर क्यो ? मुझे कुछ समझ नही आ रहा था !!
फिर मैं संजय और विवेक की बाते सोचने लगी. मैं समझ तो कुछ नही पा रही थी पर इतना ज़रूर सोच रही थी कि आख़िर संजय और विवेक बिल्लू को कैसे जानते है !!
मैं इन विचारो में खोई थी कि अचानक मुझे तेज कदमो की आहट शुनाई दी. मैने आँखे खोल कर देखा तो पाया कि संजय मेरी तरफ आ रहे थे.
मेरे पास आ कर वो बोले, चलो उठो, और दफ़ा हो जाओ यहा से, मैं एक पल भी तुम्हे यहा बर्दास्त नही कर सकता.
संजय ने ज़ोर से झटका दे कर ग्लूकोस की पाइप मेरे हाथ से निकाल दी, मैं दर्द से कराह कर रह गयी.
मैने गिड़गिदाते हुवे कहा, प्लीज़ क्या तुम मुझे एक मोका नही दे सकते ??
संजय बोले, दे तो रहा हूँ तुम्हे मोका मैं, तुम्हे जींदा छोड़ रहा हूँ, जाओ कही और जा कर अपना मूह काला करो, मैं अब तुम्हारे साथ नही रह सकता. इतना बड़ा धोक्का, वो भी मेरे साथ, मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा. उस दिन शर्मा अंकल ने जिसे देखा था वो बिल्लू ही था, है ना ??
मैने गर्दन हां के इशारे में हिला दी.
वो चील्ला कर बोले, यू बिच !!!
और ये कह कर उन्होने मेरे मूह पर ज़ोर से थप्पड़ रसीद कर दिया. मेरा पूरा शरीर झन्ना उठा.
तभी पापा भी अंदर आ गये, शायद वो कमरे के बाहर खड़े हुवे सब कुछ सुन रहे थे.
पापा को देख कर संजय थोड़ा शांत हो गये.
पापा ने कहा, बेटा संजय, ये वक्त ऐसी बाते करने का नही है, ऋतु को अभी आराम करने दो. घर चल कर बात करेंगे.
संजय बोले, सब कुछ जान-ने के बाद भी आप ऐसा कह रहे है, और इसे हुवा क्या है जो इसे आराम की ज़रूरत है, विश्वास तो मेरा टूटा है !!
मैने देखा कि पापा ने बड़े गुस्से में संजय की और देखा और संजय अचानक चुप हो गये.
पापा मेरे पास आए और बोले, बेटा, मुझे संजय की बात पर यकीन नही है, चलो हम अपने घर चलते है.
ये सुन कर मैं फुट-फुट कर रोने लगी और पापा से कहा, “पापा प्लीज़ आप यहा से चले जाओ और मुझे मेरे हाल पर छ्चोड़ दो, सारा कसूर मेरा है” !!
Re: छोटी सी भूल
पापा ने कहा, बेटा , तुम अपना कसूर मान रही हो ये क्या कम बड़ी बात है, कितने लोग है इस दुनिया में जो सच कहने की हिम्मत रखते है, मुझे गर्व है तुम पर. चलो अपने घर चलते है, मुझे नही लगता कि इस वक्त तुम्हे यहा रहना चाहिए. मुझे तुम पर पूरा यकीन है, तुम ग़लत हो ही नही सकती, ज़रूर इस बेरहम जमाने ने तुम्हारे साथ कोई भयानक खेल खेला है.
तभी संजय बोले, हां हां ग़लत तो सिर्फ़ मैं हूँ, और ये कह कर वो वाहा से रूम का दरवाजा पटक कर बाहर चले गये.
मैने पापा को बहुत समझाया कि मुझे मेरे हाल पर छ्चोड़ दो, मैं खुद अपनी जींदगी संभाल लूँगी, पर पापा ने मेरी एक नही सुनी और मुझे और चिंटू को अपने साथ घर ले आए.
हर कोई अपने घर आ कर खुस होता है पर मैं ऐसे हालात में घर आ कर बिल्कुल खुस नही थी.
मम्मी और सोनू ( मेरा छोटा भाई ) ने मुझ से कुछ नही पूछा, शायद पापा ने उन्हे समझा दिया था. मेरे लिए तो ये अछा ही था. वैसे भी मैं किसी को कुछ भी बताने या समझाने की हालत में नही थी.
चिंटू अपने नाना, नानी के घर कयि दीनो बाद आया था इश्लीए काफ़ी खुस था. सारा दिन वो घर में उछल कूद करता फिरता था. वो इस बात से बिल्कुल अंजान था कि उशके मा बाप की जींदगी, एक तूफान में फँसी है.
ऐसा लगता ही नही था कि मैं अपने उसी घर में आई हूँ, जहाँ बचपन से लेकर जवानी तक मैने बहुत सारे हसीन लम्हे गुज़ारे थे. मैं हर वक्त अपने कमरे में पड़ी रहती थी.
कुछ दिन यू ही बीत गये. पर मेरे मन को कोई शांति नही मिली. संजय ने कोई फोन नही किया और ना ही मेरा फोन उठाया.
एक दिन सुबह सुबह दीप्ति मिलने आ गयी, मुझे उसे देख कर बहुत ख़ुसी हुई.
मैने पूछा, तुम्हे कैसे पता चला कि मैं यहा घर पर हूँ.
वो बोली, आंटी ने कल फोन किया था कि तू यहा आई हुई है, इश्लीए मिलने आ गयी.
मैं समझ गयी कि मम्मी मेरे लिए परेशान है, शायद इश्लीए उन्होने दीप्ति को फोन किया होगा कि वो मुझ से मिलने आएगी तो मुझे अछा लगेगा. और मुझे वाकाई दीप्ति का आना बहुत अछा लगा.
बुरे वक्त में अगर कोई हल्का सा दामन थाम ले तो मुश्किल से मुश्किल रास्ता आसान हो जाता है. मुझे भी किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत थी. वो दीप्ति ही थी जिससे में अपनी आप बीती खुल कर शुना सकती थी. वो कॉलेज के दिनो से मेरी बेस्ट फ्रेंड रही थी.
थोड़ा हाल चाल पूछने के बाद, दीप्ति ने पूछा, यार तू कुछ खोई खोई सी लग रही है, आंटी भी कल फोन पर कह रही थी कि तुम आजकल गुम-सूम सी रहती हो, आख़िर बात क्या है.
मैने गहरी साँस ले कर कहा, दीप्ति जीश ऋतु को तुम जानती थी वो अब मर चुकी है.
दीप्ति हैरानी भरे शब्दो में बोली, ये क्या कह रही है, दीमाग तो ठीक है तेरा ?
मैने कहा, दीमाग ठीक होता तो मैं इस वक्त यहा नही होती.
दीप्ति बोली, अरे तुम अपने मायके में ही तो हो, इसमें यहा, वाहा का क्या मतलब !!
मैने कहा, दीप्ति, संजय ने मुझे घर से निकाल दिया है.
दीप्ति बोली, क्या ?? ये कब कैसे !! क्यों ??
मैने कहा, क्योंकि मैने उन्हे धोका दिया है, इसलिए.
दीप्ति बोली, ये क्या बोल रही है तू, मुझे कुछ समझ नही आ रहा.
मैने कहा, तुम्हे अजीब लगेगा, पर मेरे किचन की खिड़की ने मुझे बर्बाद कर दिया.
दीप्ति बोली वो कैसे ?
मैने गहरी साँस ले कर कहा, एक दिन मैं यू ही ताजी हवा लेने के लिए किचन की खिड़की में आई थी कि अचानक एक लड़का मुझे पेसाब करता हुवा दीखा गया………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………… मैने बिना रुके दीप्ति को सारी बात बता दी.
दीप्ति बोली, यार मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा कि तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया, वाकाई में सारी ग़लती तुम्हारी ही है. उस कामीने अशोक ने तुझे फँसा ही लिया.
मैने कहा, हां मैं जानती हूँ कि ग़लती मेरी ही है तभी तो खुद पर शर्मिंदा हूँ. लगता है मैं अब कभी जींदगी में मुस्कुरा नही पाउन्गि.
दीप्ति बोली, ऐसा कुछ नही है, वक्त हर ज़ख़्म भर देता है, मुझे देख मैं भी तो अपनी जींदगी में खुस हूँ, वरना जींदगी ने कौन से झटके नही दिए
मैने पूछा, तुम्हे क्या हुवा है ?
दीप्ति बोली, रहने दे यार फिर कभी, तू खुद अभी परेशान है.
मैने कहा, दर्द बाँटने से कम होता है, मैं खुद तुम्हे सब कुछ बता कर, खुद को हल्का महसूस कर रही हूँ.
वो बोली, मेरी कहानी तेरे जैसी ट्रॅजिक तो नही है पर फिर भी मैं बहुत परेशान हूँ आजकल.
मैने कहा, बताओ तो सही क्या बात है.
तभी संजय बोले, हां हां ग़लत तो सिर्फ़ मैं हूँ, और ये कह कर वो वाहा से रूम का दरवाजा पटक कर बाहर चले गये.
मैने पापा को बहुत समझाया कि मुझे मेरे हाल पर छ्चोड़ दो, मैं खुद अपनी जींदगी संभाल लूँगी, पर पापा ने मेरी एक नही सुनी और मुझे और चिंटू को अपने साथ घर ले आए.
हर कोई अपने घर आ कर खुस होता है पर मैं ऐसे हालात में घर आ कर बिल्कुल खुस नही थी.
मम्मी और सोनू ( मेरा छोटा भाई ) ने मुझ से कुछ नही पूछा, शायद पापा ने उन्हे समझा दिया था. मेरे लिए तो ये अछा ही था. वैसे भी मैं किसी को कुछ भी बताने या समझाने की हालत में नही थी.
चिंटू अपने नाना, नानी के घर कयि दीनो बाद आया था इश्लीए काफ़ी खुस था. सारा दिन वो घर में उछल कूद करता फिरता था. वो इस बात से बिल्कुल अंजान था कि उशके मा बाप की जींदगी, एक तूफान में फँसी है.
ऐसा लगता ही नही था कि मैं अपने उसी घर में आई हूँ, जहाँ बचपन से लेकर जवानी तक मैने बहुत सारे हसीन लम्हे गुज़ारे थे. मैं हर वक्त अपने कमरे में पड़ी रहती थी.
कुछ दिन यू ही बीत गये. पर मेरे मन को कोई शांति नही मिली. संजय ने कोई फोन नही किया और ना ही मेरा फोन उठाया.
एक दिन सुबह सुबह दीप्ति मिलने आ गयी, मुझे उसे देख कर बहुत ख़ुसी हुई.
मैने पूछा, तुम्हे कैसे पता चला कि मैं यहा घर पर हूँ.
वो बोली, आंटी ने कल फोन किया था कि तू यहा आई हुई है, इश्लीए मिलने आ गयी.
मैं समझ गयी कि मम्मी मेरे लिए परेशान है, शायद इश्लीए उन्होने दीप्ति को फोन किया होगा कि वो मुझ से मिलने आएगी तो मुझे अछा लगेगा. और मुझे वाकाई दीप्ति का आना बहुत अछा लगा.
बुरे वक्त में अगर कोई हल्का सा दामन थाम ले तो मुश्किल से मुश्किल रास्ता आसान हो जाता है. मुझे भी किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत थी. वो दीप्ति ही थी जिससे में अपनी आप बीती खुल कर शुना सकती थी. वो कॉलेज के दिनो से मेरी बेस्ट फ्रेंड रही थी.
थोड़ा हाल चाल पूछने के बाद, दीप्ति ने पूछा, यार तू कुछ खोई खोई सी लग रही है, आंटी भी कल फोन पर कह रही थी कि तुम आजकल गुम-सूम सी रहती हो, आख़िर बात क्या है.
मैने गहरी साँस ले कर कहा, दीप्ति जीश ऋतु को तुम जानती थी वो अब मर चुकी है.
दीप्ति हैरानी भरे शब्दो में बोली, ये क्या कह रही है, दीमाग तो ठीक है तेरा ?
मैने कहा, दीमाग ठीक होता तो मैं इस वक्त यहा नही होती.
दीप्ति बोली, अरे तुम अपने मायके में ही तो हो, इसमें यहा, वाहा का क्या मतलब !!
मैने कहा, दीप्ति, संजय ने मुझे घर से निकाल दिया है.
दीप्ति बोली, क्या ?? ये कब कैसे !! क्यों ??
मैने कहा, क्योंकि मैने उन्हे धोका दिया है, इसलिए.
दीप्ति बोली, ये क्या बोल रही है तू, मुझे कुछ समझ नही आ रहा.
मैने कहा, तुम्हे अजीब लगेगा, पर मेरे किचन की खिड़की ने मुझे बर्बाद कर दिया.
दीप्ति बोली वो कैसे ?
मैने गहरी साँस ले कर कहा, एक दिन मैं यू ही ताजी हवा लेने के लिए किचन की खिड़की में आई थी कि अचानक एक लड़का मुझे पेसाब करता हुवा दीखा गया………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………… मैने बिना रुके दीप्ति को सारी बात बता दी.
दीप्ति बोली, यार मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा कि तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया, वाकाई में सारी ग़लती तुम्हारी ही है. उस कामीने अशोक ने तुझे फँसा ही लिया.
मैने कहा, हां मैं जानती हूँ कि ग़लती मेरी ही है तभी तो खुद पर शर्मिंदा हूँ. लगता है मैं अब कभी जींदगी में मुस्कुरा नही पाउन्गि.
दीप्ति बोली, ऐसा कुछ नही है, वक्त हर ज़ख़्म भर देता है, मुझे देख मैं भी तो अपनी जींदगी में खुस हूँ, वरना जींदगी ने कौन से झटके नही दिए
मैने पूछा, तुम्हे क्या हुवा है ?
दीप्ति बोली, रहने दे यार फिर कभी, तू खुद अभी परेशान है.
मैने कहा, दर्द बाँटने से कम होता है, मैं खुद तुम्हे सब कुछ बता कर, खुद को हल्का महसूस कर रही हूँ.
वो बोली, मेरी कहानी तेरे जैसी ट्रॅजिक तो नही है पर फिर भी मैं बहुत परेशान हूँ आजकल.
मैने कहा, बताओ तो सही क्या बात है.