हम कोई रात 10:30 पर फरीदाबाद पहुँच गये.
मनीष एक प्रिवेते हॉस्पिटल में था, जो की संजय के क्लिनिक से काफ़ी दूर था.
जैसे ही हम हॉस्पिटल पहुँचे, बाहर हमें मनीष का असिश्टेंट रहमान मिल गया.
दीप्ति ने रहमान से पूछा, “कैसा है मनीष अब”
वो बोला, अभी अभी होश आया है, राइट लेग में फ्रेक्चर आया है, रोड डालनी पड़ी है, डॉक्टर ने कहा है कि वो 2 या 3 महीने चल नही सकेंगे.
“ओह माइ गोद, इतना ज़्यादा सीरीयस हमला था क्या” --- दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“हां मेडम, मैं भी उस वक्त उनके साथ ही था, हम आज सुबह प्रिंसटीन माल की ओर जा रहे थे. मैं फुटपॅत पर बैठे एक सिगरेट वाले से सिगरेट लेने लगा कि अचानक एक कार ने मनीष सर को टक्कर मार दी” --- रहमान ने कहा
“ पर तुम तो कह रहे थे कि हमला हुवा है, ये तो आक्सिडेंट लग रहा है” ---- दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“एक टक्कर मारने के बाद वो कार फिर से, मूड कर मनीष सर की ओर आ रही थी, जैसे की एक और टक्कर मारनी हो, पर मैने जल्दी से मनीष सर को वाहा से हटा लिया” ---- रहमान ने कहा
“तुमने किसी का चेहरा देखा कि कौन था कार में” ---- डिप्टी ने पूछा
“ नही मेडम कार में ब्लॅक स्क्रीन लगी हुई थी, अंदर कौन था, कुछ नही दीख रहा था” ---- रहमान ने बताया.
“ह्म्म…. चलो ठीक है, हम मनीष के पास चलते है, कौन से कमरे में है वो” दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“जी, रूम नंबर 7…… आप चलिए मैं ज़रा अपना फोन रीचार्ज कराने जा रहा हूँ” --- रहमान ने दीप्ति से कहा.
जैसे ही हम रूम नंबर 7 में घुस्से हमने देखा कि मनीष, किन्ही गहरे विचारो में खोया हुवा है, और बिस्तर पर पड़े हुवे रूम की छत को घूर रहा है.
हमें देखते ही वो उठने की कोशिस करने लगा, उशके चेहरे पर दर्द के भाव सॉफ दीख रहे थे.
“अरे लेट रहो उठो मत, देखो तुमसे मिलने कौन आया है” ----- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने मुझे एक नज़र उठा कर देखा और विश करके अपनी नज़रे झुका ली.
बहुत कम आदमी एक औरत को ऐसी रेस्पेक्ट दे पाते है. ज़्यादा तर लोग तो किसी भी लड़की को उपर से नीचे तक हवश भरी नज़रो से देखते है.
मुझे तब अहसास हुवा कि, रियली मनीष ईज़ ए नाइस मॅन
“सॉरी ऋतु जी आपका काम पूरा नही हो पाया पर मुझ पर भरोसा रखिए, मैं ठीक होते ही आपको पूरी सचाई बता दूँगा” --- मनीष सॉरी फील करते हुवे बोला.
“मुझे कोई जल्दी नही है, आप अपना ख्याल रखिए, मेरे साथ तो जो होना था, सो हो चुका” ----- मैने मनीष से कहा.
“पर क्या तुम्हे कुछ पता चला कि ये हमला किसने करवाया है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा
“देखो अभी बहुत कुछ उलझा हुवा है, कुछ नही कह सकते कि कौन ऐसा करवा सकता है, हां इतना ज़रूर है कि कोई है जो नही चाहता की हम कुछ जान पायें” --- मनीष ने कहा.
“कौन हो सकता है वो” --- दीप्ति ने पूछा
“कोई भी हो सकता है, बिल्लू का कोई साथी हो सकता है, या फिर……” ---- मनीष ने कहा.
“या फिर मतलब” – दीप्ति ने मनीष से पूछा.
‘मतलब की कोई भी हो सकता है, अभी कुछ क्लियर नही है” ---- मनीष ने कहा.
मैं चुपचाप सब कुछ शुन रही थी.
“अछा तुम तो कह रहे थे कि कल तक सब कुछ पता चल जाएगा, क्या तुम इस राज के बहुत करीब पहुँच गये थे” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा
“मुझे परसो एक फोन आया था, किसी वीना जोसेफ का, उन्होने मुझे आज सुबह 10 बजे प्रिस्टिन माल के बाहर मिलने को कहा था, मैं रहमान के साथ वहीं जा रहा था कि ये सब हो गया.” --- मनीष ने दीप्ति की ओर देखते हुवे कहा.
“अब ये वीना जोसेफ कौन हैउसका इस सब से क्या लेना देना है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा.
वीना का नाम सुन कर मैं चोंक गयी थी, उसे मैं जानती थी. वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी. उसकी उमर कोई 40 या 42 साल की होगी.
“वही तो पता करने मैं जा रहा था, मुझे बिल्लू के घर के पास रहने वाले एक पदोषी ने बताया था कि एक-दौ बार उसने वीना जोसेफ को बिल्लू के घर आते जाते देखा था. मैं वीना जोसेफ के घर का पता लगा कर, उशके घर पहुँच गया , पर वो उस वक्त घर पर नही मिली. मैं एक चिट वीना जोसेफ के घर छ्चोड़ आया था कि जब वो फ्री हो तो मुझे फोन करें, मुझे बिल्लू के बारे में कुछ बात करनी है. मैने अपना फोन नंबर चिट पर लीख दिया था” --- मनीष ने कहा
“मैं कुछ कहूँ” ? मैने मनीष और दीप्ति को रोकते हुवे कहा
दीप्ति बोली, “हां हां कहो क्या बात है”
“एक वीना जोसेफ को मैं जानती हूँ, वो केरला से थी, उमर कोई 40 या 42 साल, और अभी एक साल पहले तक वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी” ----- मैने उन दौनो से कहा
“अछा ये बात पहले क्यो नही बताई” ---- दीप्ति ने मुझ से पूछा.
“अरे भाई, मुझे क्या पता था कि उसका इस मामले से कोई लेना देना है” ---- मैने दीप्ति की और देखते हुवे कहा.
“आप ठीक कह रही है” ---- मनीष मेरी और देखते हुवे बोला.
“अछा अब क्या होगा” --- दीप्ति ने पूछा.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
“मुझे यकीन था कि वीना जोसेफ से मिल कर सारे राज खुल जाएँगे, पर…..” --- मनीष ने गहरी साँस ले कर कहा.
“पर क्या, उस से हम मिल लेते है या फिर रहमान मिल लेगा, इस में परेशानी वाली क्या बात है” --- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और दीप्ति को देते हुवे बोला, “अभी किसी ने, एक नर्स के हाथो, ये मेरे कमरे में भीज़वाया था, पढ़ो तुम खुद समझ जाओगी”
वो काग़ज़ पढ़ कर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया
मैने उशके हाथ से वो काग़ज़ ले कर पढ़ा, तो मेरे पैरो के नीचे से भी ज़मीन निकल गयी
उस में लीखा था
“ आबे डीटेक्टिव, बहुत होशियार समझता है क्या खुद को, चुपचाप ये बेकार की इनक़ुआरी बंद कर और यहा से रफ़ा दफ़ा हो जा. जीश से तुम आज मिलने जा रहे थे, वो वीना जोसेफ भी मारी जा चुकी है. तुम्हारी किशमत अछी है कि तुम आज बच गये, पर अगर यहा से नही गये तो अगली बार नही बचोगे”
मैने रोते हुवे कहा. “प्लीज़ बंद करो अब ये सब, इस सब से मिलने वाला भी क्या है”
“लगता है तुम ठीक कह रही हो ऋतु, मनीष इस काम को फॉरन बंद करो, और जल्दी यहा से चलो, यहा मुझे अब डर लग रहा है” दीप्ति ने कहा.
उशके कहने के अंदाज़ से सॉफ लग रहा था की वो काफ़ी डरी हुई है.
मनीष बोला, “मैने आज तक ऐसा केस नही देखा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई कि कोई मुझे यू हॉस्पिटल में पहुँचा दे. पर मैं अपना कोई काम अधूरा नही छ्चोड़ता. अब वैसे भी ये मेरा पर्सनल काम हो गया है. जिसने भी मेरे साथ ऐसा किया है, उशे मैं नही छ्चोड़ूँगा”
दीप्ति बोली, "अपनी हालत देखो मनीष, तुम अभी 2 या 3 महीने तक चल नही पाओगे, बाद में सोचेंगे की क्या करना है इस बारे में, फिलहाल यहा से निकलते है".
हम मनीष को कन्विन्स करके जैसे तैसे वाहा से देल्ही ले आए.
……….
अभी तक कहानी वही की वही लटकी हुई है. मनीष के घाव भर गये है पर वो अभी भी ठीक से चलने की हालत में नही नही.
ये सब बाते थी जिनके कारण मैने ये डाइयरी लीखने का फैंसला किया. संजय से डेवोर्स के बाद, फ्रस्ट्रेशन में मैने अपनी अब तक की कहानी लीख दी है. देखते है की आगे क्या होता है.
वैसे मैं अब सब कुछ भुला कर, नयी शुरूवात करना चाहती हूँ.
आज मैं सपनो के सहर मुंबई में हूँ, नयी शुरूवात करने की इस से अछी जगह और क्या हो सकती है.
………………………………
डेट : 8-01-09
आज मुझे ऑफीस में कोई ऐसा मिला जिश्कि कि मुझे बिल्कुल उम्मीद नही थी. सिधार्थ को वाहा देख कर मैं चोंक गयी थी
“अरे ऋतु, तुम यहा, कैसे” --- सिधार्थ ने पूछा
“मैं यहा असिश्टेंट मॅनेजर हूँ” --- मैने जवाब दिया.
“अछा फिर तो तुम मेरी क्लाइंट हुई” --- उसने हंसते हुवे कहा.
“वो कैसे सिधार्थ” --- मैने हैरानी में पूछा.
“वो ऐसे कि मैं तुम्हारी कंपनी का का हूँ, सारे फाइनान्षियल मॅटर्स मैं ही तो संभालता हूँ, ख़ासकर टॅक्स से रिलेटेड” --- सिधार्थ ने मुझे समझाते हुवे कहा.
मेरे लिए संजय से पहले सिधार्थ का ही रिस्ता आया था, मुझे वो बहुत पसंद आया था और मैने पापा को उशके लिए हां कह दी थी. सिधार्थ ने सभी के सामने कहा था कि “मुझे ऋतु बहुत पसंद है, मैं ऋतु को अपनी पत्नी बना कर खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा”
हम ने नज़रो ही नज़रो में एक दूसरे के लिए बहुत सारे खवाब बुन लिए थे.
पर किशमत को ये रिस्ता मंज़ूर नही था.
सिधार्थ के पापा ने हम दोनो की कुंडली पर बवाल खड़ा कर दिया.
उन्हे किशी ज्योतिषी ने बता दिया था कि इस लड़की के आपके घर में आते ही, आप के घर में तबाही आ जाएगी.
इसीलिए रिस्ता बनते बनते बिगड़ गया.
उशके बाद सिधार्थ का काई बार घर पर फोन आया और वो बार बार मुझ से माफी माँगता रहा.
वो अपने पापा के कारण बहुत शर्मिंदा महसूष कर रहा था.
एक बार उसने मुझे फोन किया और बोला, ऋतु एक काम करते है”
मैने पूछा, “क्या”
“मैं तुम से अभी शादी करने को तैयार हूँ, भाड़ में जाए ये कुंडली का चक्कर. मुझे इन बातो पर बिल्कुल विश्वास नही है, चलो किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है” ---- सिधार्थ ने बड़े प्यार से कहा
एक पल को मुझे भी लगा की मुझे उशके साथ चल देना चाहिए
पर मैं अपने पापा के खिलाफ नही जा सकती थी.
मैने पापा को बता दिया था कि सिधार्थ शादी करने के लिए तैयार है, हमें क्या करना चाहिए
पापा ने मुझे समझाया “तुम्हारे लिए हज़ार रिस्ते है बेटा, तुम उशे भूल जाओ, बात सिर्फ़ तुम्हारी और सिधार्थ की नही है, शादी में दौ परिवार एक दूसरे से जुड़ते है. इस तरह ज़बरदस्ती शादी करके कुछ हाँसिल नही होगा. सिधार्थ के पापा तुम्हे कभी स्वीकार नही करेंगे”
मैने सिधार्थ को बड़ी मुश्किल से मना किया था.
“सिधार्थ मेरे पापा नही मान रहे है और मैं उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नही कर सकती” ---- मैने मायूसी में सिधार्थ से कहा था
“पर क्या, उस से हम मिल लेते है या फिर रहमान मिल लेगा, इस में परेशानी वाली क्या बात है” --- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और दीप्ति को देते हुवे बोला, “अभी किसी ने, एक नर्स के हाथो, ये मेरे कमरे में भीज़वाया था, पढ़ो तुम खुद समझ जाओगी”
वो काग़ज़ पढ़ कर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया
मैने उशके हाथ से वो काग़ज़ ले कर पढ़ा, तो मेरे पैरो के नीचे से भी ज़मीन निकल गयी
उस में लीखा था
“ आबे डीटेक्टिव, बहुत होशियार समझता है क्या खुद को, चुपचाप ये बेकार की इनक़ुआरी बंद कर और यहा से रफ़ा दफ़ा हो जा. जीश से तुम आज मिलने जा रहे थे, वो वीना जोसेफ भी मारी जा चुकी है. तुम्हारी किशमत अछी है कि तुम आज बच गये, पर अगर यहा से नही गये तो अगली बार नही बचोगे”
मैने रोते हुवे कहा. “प्लीज़ बंद करो अब ये सब, इस सब से मिलने वाला भी क्या है”
“लगता है तुम ठीक कह रही हो ऋतु, मनीष इस काम को फॉरन बंद करो, और जल्दी यहा से चलो, यहा मुझे अब डर लग रहा है” दीप्ति ने कहा.
उशके कहने के अंदाज़ से सॉफ लग रहा था की वो काफ़ी डरी हुई है.
मनीष बोला, “मैने आज तक ऐसा केस नही देखा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई कि कोई मुझे यू हॉस्पिटल में पहुँचा दे. पर मैं अपना कोई काम अधूरा नही छ्चोड़ता. अब वैसे भी ये मेरा पर्सनल काम हो गया है. जिसने भी मेरे साथ ऐसा किया है, उशे मैं नही छ्चोड़ूँगा”
दीप्ति बोली, "अपनी हालत देखो मनीष, तुम अभी 2 या 3 महीने तक चल नही पाओगे, बाद में सोचेंगे की क्या करना है इस बारे में, फिलहाल यहा से निकलते है".
हम मनीष को कन्विन्स करके जैसे तैसे वाहा से देल्ही ले आए.
……….
अभी तक कहानी वही की वही लटकी हुई है. मनीष के घाव भर गये है पर वो अभी भी ठीक से चलने की हालत में नही नही.
ये सब बाते थी जिनके कारण मैने ये डाइयरी लीखने का फैंसला किया. संजय से डेवोर्स के बाद, फ्रस्ट्रेशन में मैने अपनी अब तक की कहानी लीख दी है. देखते है की आगे क्या होता है.
वैसे मैं अब सब कुछ भुला कर, नयी शुरूवात करना चाहती हूँ.
आज मैं सपनो के सहर मुंबई में हूँ, नयी शुरूवात करने की इस से अछी जगह और क्या हो सकती है.
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डेट : 8-01-09
आज मुझे ऑफीस में कोई ऐसा मिला जिश्कि कि मुझे बिल्कुल उम्मीद नही थी. सिधार्थ को वाहा देख कर मैं चोंक गयी थी
“अरे ऋतु, तुम यहा, कैसे” --- सिधार्थ ने पूछा
“मैं यहा असिश्टेंट मॅनेजर हूँ” --- मैने जवाब दिया.
“अछा फिर तो तुम मेरी क्लाइंट हुई” --- उसने हंसते हुवे कहा.
“वो कैसे सिधार्थ” --- मैने हैरानी में पूछा.
“वो ऐसे कि मैं तुम्हारी कंपनी का का हूँ, सारे फाइनान्षियल मॅटर्स मैं ही तो संभालता हूँ, ख़ासकर टॅक्स से रिलेटेड” --- सिधार्थ ने मुझे समझाते हुवे कहा.
मेरे लिए संजय से पहले सिधार्थ का ही रिस्ता आया था, मुझे वो बहुत पसंद आया था और मैने पापा को उशके लिए हां कह दी थी. सिधार्थ ने सभी के सामने कहा था कि “मुझे ऋतु बहुत पसंद है, मैं ऋतु को अपनी पत्नी बना कर खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा”
हम ने नज़रो ही नज़रो में एक दूसरे के लिए बहुत सारे खवाब बुन लिए थे.
पर किशमत को ये रिस्ता मंज़ूर नही था.
सिधार्थ के पापा ने हम दोनो की कुंडली पर बवाल खड़ा कर दिया.
उन्हे किशी ज्योतिषी ने बता दिया था कि इस लड़की के आपके घर में आते ही, आप के घर में तबाही आ जाएगी.
इसीलिए रिस्ता बनते बनते बिगड़ गया.
उशके बाद सिधार्थ का काई बार घर पर फोन आया और वो बार बार मुझ से माफी माँगता रहा.
वो अपने पापा के कारण बहुत शर्मिंदा महसूष कर रहा था.
एक बार उसने मुझे फोन किया और बोला, ऋतु एक काम करते है”
मैने पूछा, “क्या”
“मैं तुम से अभी शादी करने को तैयार हूँ, भाड़ में जाए ये कुंडली का चक्कर. मुझे इन बातो पर बिल्कुल विश्वास नही है, चलो किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है” ---- सिधार्थ ने बड़े प्यार से कहा
एक पल को मुझे भी लगा की मुझे उशके साथ चल देना चाहिए
पर मैं अपने पापा के खिलाफ नही जा सकती थी.
मैने पापा को बता दिया था कि सिधार्थ शादी करने के लिए तैयार है, हमें क्या करना चाहिए
पापा ने मुझे समझाया “तुम्हारे लिए हज़ार रिस्ते है बेटा, तुम उशे भूल जाओ, बात सिर्फ़ तुम्हारी और सिधार्थ की नही है, शादी में दौ परिवार एक दूसरे से जुड़ते है. इस तरह ज़बरदस्ती शादी करके कुछ हाँसिल नही होगा. सिधार्थ के पापा तुम्हे कभी स्वीकार नही करेंगे”
मैने सिधार्थ को बड़ी मुश्किल से मना किया था.
“सिधार्थ मेरे पापा नही मान रहे है और मैं उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नही कर सकती” ---- मैने मायूसी में सिधार्थ से कहा था
Re: छोटी सी भूल
“ठीक है ऋतु, मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगा, पर तुम हमेशा मेरे दिल के करीब रहोगी” ---- सिधार्थ ने एमोटिनल हो कर कहा था
मैने रोते हुवे फोन काट दिया. उष वक्त यही करना ठीक लग रहा था
एक दम से सिधार्थ को आज सामने देख कर मुझे समझ नही आया कि मैं कैसे रिक्ट करूँ, पर इतना ज़रूर हुवा कि उसकी यादे मेरी आँखो में घूम गयी.
मैने सिधार्थ से ज़्यादा बात नही की और चुपचाप अपने कॅबिन में आ गयी. मैं नही चाहती थी कि वो मुझ से मेरी जींदगी के बारे में कोई सवाल करे और मैं किसी उलझन में फँस जाउ.
पर थोड़ी देर बाद सिधार्थ मेरे कॅबिन में झाँक कर बोला, “मे आइ कम इन ऋतु मेडम”
मैं क्या करती, उसे अंदर आने को कहना ही पड़ा. वैसे भी वो हमारी कंपनी का का था इसलिए उस से मुझे मिलना जुलना तो था ही.
“हां तो और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी शादी शुदा जींदगी” --- सिधार्थ ने पूछा.
“मेरा डाइवोर्स हो गया है, सिधार्थ” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा
“क्या, किस बेवकूफ़ ने तुम्हे डाइवोर्स दे दिया, तुमने दिया है या फिर तुम्हारे पति ने दिया है” ---- सिधार्थ ने पूछा.
“उस से क्या फरक पड़ता है, सिधार्थ, सचाई ये है की मेरा डाइवोर्स हो चुका है, बस” मैने सिधार्थ की और देखते हुवे कहा.
“श, सॉरी तो हियर दट” ---- सिधार्थ ने चेहरे पर सॉरी के भाव ला कर कहा.
मैं सिधार्थ के साथ उस वक्त अनकंफर्टबल महसूष कर रही थी, क्योंकि मुझे डर था की कही वो डाइवोर्स का कारण ना पूछ ले, क्योनि सच बोलना मेरे लिए मुश्किल था और झूठ मैं बोल नही पाउन्गि.
पर अचानक सिधार्थ का मोबाइल बज उठा और उसने मुझे कहा, “ओह मुझे जाना होगा, एक दूसरे क्लाइंट का फोन आ रहा है.
उसने जाते जाते कहा, “ऋतु मैं तुम्हे आज तक भुला नही पाया, पता नही तुम्हे आज मुझ से मिल कर कैसा लगा, पर मैं तो बहुत भावुक हो रहा हूँ”
मैने सिधार्थ की आँखो में देखा उनमें आज भी मेरे लिए वही प्यार नज़र आ रहा था.
मैने धीरे से पूछा, “तुम्हारी शादी कहा हुई है सिधार्थ”
“कहीं नही, मैने अब तक शादी नही की, कोई तुम्हारे जैसी मिली ही नही” --- सिधार्थ ने मेरी और देखते हुवे कहा
ये कह कर वो मूह फेर कर चला गया, शायद उसकी आँखो में आन्शु थे.
मुझे अब ये लग रहा है कि मैं कैसे रोज-रोज सिधार्थ का सामना कर पाउन्गि. कभी ना कभी तो वो मेरे डाइवोर्स के बारे में पूछेगा ही.
……………………..
डेट : 15-01-09
आज जब मैं ऑफीस में थी तो दीप्ति का फोन आया
उसने मुझे बताया कि मनीष कल अचानक फरीदाबाद चला गया.
मैने उस से पूछा, “तुमने उसे क्यो जाने दिया, अभी तो वो ठीक से चल भी नही पता”
वो बोली, “चलने तो वो लगा है, पर टाँगो में अभी भी काफ़ी वीकनेस है, वो बिना बताए वाहा चला गया है, वाहा पहुँच कर ही उसने फोन किया था. मुझे तो डर लग रहा है”
“ डर तो मुझे भी लग रहा है, मैं तो यही चाहती थी कि इस इन्वेस्टिगेशन को यही ख़तम किया जाए” ---- मैने दीप्ति से कहा
“चाहती तो मैं भी यही हूँ, पर मनीष अब इसे पर्सनली ले रहा है, वो इस केस को सॉल्व किए बिना नही मानेगा” --- दीप्ति ने कहा.
मैने उशे दिलासा दिया की हॉंसला रखो, सब कुछ ठीक होगा.
मुझे हिम्मत देने वाली लड़की आज खुद हिम्मत हारती नज़र आ रही थी. ये सब मनीष के कारण है. वो उसे बहुत प्यार करने लगी है.
मैने रोते हुवे फोन काट दिया. उष वक्त यही करना ठीक लग रहा था
एक दम से सिधार्थ को आज सामने देख कर मुझे समझ नही आया कि मैं कैसे रिक्ट करूँ, पर इतना ज़रूर हुवा कि उसकी यादे मेरी आँखो में घूम गयी.
मैने सिधार्थ से ज़्यादा बात नही की और चुपचाप अपने कॅबिन में आ गयी. मैं नही चाहती थी कि वो मुझ से मेरी जींदगी के बारे में कोई सवाल करे और मैं किसी उलझन में फँस जाउ.
पर थोड़ी देर बाद सिधार्थ मेरे कॅबिन में झाँक कर बोला, “मे आइ कम इन ऋतु मेडम”
मैं क्या करती, उसे अंदर आने को कहना ही पड़ा. वैसे भी वो हमारी कंपनी का का था इसलिए उस से मुझे मिलना जुलना तो था ही.
“हां तो और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी शादी शुदा जींदगी” --- सिधार्थ ने पूछा.
“मेरा डाइवोर्स हो गया है, सिधार्थ” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा
“क्या, किस बेवकूफ़ ने तुम्हे डाइवोर्स दे दिया, तुमने दिया है या फिर तुम्हारे पति ने दिया है” ---- सिधार्थ ने पूछा.
“उस से क्या फरक पड़ता है, सिधार्थ, सचाई ये है की मेरा डाइवोर्स हो चुका है, बस” मैने सिधार्थ की और देखते हुवे कहा.
“श, सॉरी तो हियर दट” ---- सिधार्थ ने चेहरे पर सॉरी के भाव ला कर कहा.
मैं सिधार्थ के साथ उस वक्त अनकंफर्टबल महसूष कर रही थी, क्योंकि मुझे डर था की कही वो डाइवोर्स का कारण ना पूछ ले, क्योनि सच बोलना मेरे लिए मुश्किल था और झूठ मैं बोल नही पाउन्गि.
पर अचानक सिधार्थ का मोबाइल बज उठा और उसने मुझे कहा, “ओह मुझे जाना होगा, एक दूसरे क्लाइंट का फोन आ रहा है.
उसने जाते जाते कहा, “ऋतु मैं तुम्हे आज तक भुला नही पाया, पता नही तुम्हे आज मुझ से मिल कर कैसा लगा, पर मैं तो बहुत भावुक हो रहा हूँ”
मैने सिधार्थ की आँखो में देखा उनमें आज भी मेरे लिए वही प्यार नज़र आ रहा था.
मैने धीरे से पूछा, “तुम्हारी शादी कहा हुई है सिधार्थ”
“कहीं नही, मैने अब तक शादी नही की, कोई तुम्हारे जैसी मिली ही नही” --- सिधार्थ ने मेरी और देखते हुवे कहा
ये कह कर वो मूह फेर कर चला गया, शायद उसकी आँखो में आन्शु थे.
मुझे अब ये लग रहा है कि मैं कैसे रोज-रोज सिधार्थ का सामना कर पाउन्गि. कभी ना कभी तो वो मेरे डाइवोर्स के बारे में पूछेगा ही.
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डेट : 15-01-09
आज जब मैं ऑफीस में थी तो दीप्ति का फोन आया
उसने मुझे बताया कि मनीष कल अचानक फरीदाबाद चला गया.
मैने उस से पूछा, “तुमने उसे क्यो जाने दिया, अभी तो वो ठीक से चल भी नही पता”
वो बोली, “चलने तो वो लगा है, पर टाँगो में अभी भी काफ़ी वीकनेस है, वो बिना बताए वाहा चला गया है, वाहा पहुँच कर ही उसने फोन किया था. मुझे तो डर लग रहा है”
“ डर तो मुझे भी लग रहा है, मैं तो यही चाहती थी कि इस इन्वेस्टिगेशन को यही ख़तम किया जाए” ---- मैने दीप्ति से कहा
“चाहती तो मैं भी यही हूँ, पर मनीष अब इसे पर्सनली ले रहा है, वो इस केस को सॉल्व किए बिना नही मानेगा” --- दीप्ति ने कहा.
मैने उशे दिलासा दिया की हॉंसला रखो, सब कुछ ठीक होगा.
मुझे हिम्मत देने वाली लड़की आज खुद हिम्मत हारती नज़र आ रही थी. ये सब मनीष के कारण है. वो उसे बहुत प्यार करने लगी है.