रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

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raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 09:15

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -18
गतान्क से आगे...

वैसे मेरा काम पूरा हो चुक्का था. स्वामी जी का इंटरव्यू मेरे डाइयरी मे और मेरे साथ लाए कमेरे मे बंद था. मगर मैं और कुच्छ वक़्त वहाँ गुज़ारना चाहती थी. वहाँ का उन्मुक्त वातावरण मुझे अच्च्छा लगा. और सबसे बड़ा कारण तो स्वामी जी थे. अब जब सब बता ही दिया तो इस बात को छिपाने से क्या फायडा की मैं जाने से पहले एक बार और स्वामी जी के साथ सेक्स करना चाहती थी. मैं एक बार उनके नग्न बदन से लिपटना चाहती थी. मैं उनका प्रसाद अपनी योनि मे भर लेना चाहती थी. मैने गाउन उठा कर बदन पर ओढ़ लिया. मैं कमरे से निकली तो रजनी आती हुई दिखी. वो मुझे आश्रम के ड्रेस मे देख कर मुस्कुरा उठी.



उसने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया. असराम के हॉल मे तब स्वामी जी का प्रवचन चल रहा था. पूरा हॉल श्रद्धालुओं से खचा खच भरा था. जब स्वामी जी बोलते तो वहाँ मौजूद समस्त लोग खुशी से भर उठते थे. सब भाव विभोर हो कर झूम रहे थे. उस रूप मे स्वामी जी साक्षात भगवान के रूप लग रहे थे. मगर वहाँ मौजूद लोगों को क्या पता था कि जो स्वामी जी की बातें सुन कर वो मंत्रमुग्ध हो उठते हैं उनका एक और रूप उनके शिष्यों को ही पता था. कोई युवती जो एक बार उनके संपर्क मे आ जाती वो कभी मुँह नही खोलती क्योंकि वो पहले संभोग के बाद अपनी खुशी से ही उनकी गुलाम बन जाती.



मैं खुद कायल हो चुकी थी उनके संभोग की. उनकी झलक पाते ही अब मेरा बदन तड़पने लगता था. मेरी योनि के अंदर खलबली मच जाती और उस जगह जागी सिहरन खुजली का रूप ले लेती. योनि के अंदर से अपने आप श्राव होने लगता. ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था कि मैं किसी मर्द से इतनी ज़्यादा प्रभावित हो गयी थी.



रजनी मुझे अपने कमरे मे लेकर गयी. उसने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया.



“ये लो शरबत पियो. इसे यहाँ रहने वाला हर व्यक्ति पीता है. इसमे मौजूद कुच्छ तत्व जिस्म मे सेक्स की भूख बढ़ा देते हैं.” रजनी ने कहा.



“तभी इसके पीते ही मेरा बदन हल्का हो जाता है और पूरे बदन पर चींटियाँ चलने लगती हैं.” मैने उस ग्लास को लेकर उससे घूँट भरते हुए कहा.



“बहन रश्मि यहाँ हर ओर सेक्स का उन्मुक्त वातावरण है. यहाँ की हवा मे भी सेक्स घुली हुई है. यहाँ आकर कोई भी चाहे वो पुरुष हो या महिला सेक्स से अछूता नही रह सकता.” रजनी ने मेरे हाथ से खाली ग्लास लेकर साइड टेबल पर रखते हुए कहा.



“मुझे यहाँ का वातावरण पसंद आया.” मैने कहा



“यहाँ किसी पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही है. स्वामी जी कहते हैं कि मन को मार कर कोई काम करना पाप कहलाता है. आप यहाँ किसी से भी सेक्स करने के लिए फ्री हो. कभी भी कहीं भी किसी के भी साथ आप सेक्स कर सकती हो. उसी तरह आपके साथ भी कोई भी जब चाहे संभोग करने के लिए फ्री है. दिन के वक़्त बंद कमरों मे और शाम के वक़्त कही भी कोई सेक्स करने के लिए स्वतंत्र है.”



“अगर किसी बाहर वाले को पता चल गया तो?” मैने उससे पूछा.



“इस बात का बहुत ध्यान रखा जाता है. सुबह दो घंटे जब स्वामी जी का प्रवचन होता है तब एवं शाम को जब पूजा होती है उसके अलावा किसी बाहर वाली का आना वर्जित है.” रजनी ने कहा “आश्रम के अलग क़ायदे क़ानून हैं जिसका बड़ी कड़ाई से पालन किया जाता है. और इसी लिए यहाँ के वातावरण मे शक़ और बदनामी की गंदगी घुस नही पाती. तुम एक पत्रकार हो तुमसे भी यही रिक्वेस्ट है कि इस बारे मे तुम कुच्छ मत लिखना.” रजनी ने मुझसे रिक्वेस्ट की.



“तुम घबराओ नही. मैं इस वातावरण का एक हिस्सा बन चुकी हूँ और आज के बाद इसे साफ रखना मेरी भी ज़िम्मेदारी है.” मैने कहा “मेरा इंटरव्यू इस तरह छपेगा की लोगों मे स्वामी जी की तारीफ ही तारीफ होगी और स्वामी जी का नाम चमकने लगेगा.”

raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 09:15

रजनी ने प्यार से मुझे चूम लिया. उस शरबत की वजह से मेरे बदन मे वापस उत्तेजना का प्रवाह शुरू हो गया था. उसने मेरे कमर पर कसी डोर की गाँठ को खींच कर खोल दिया और मेरे गाउन के पल्लों को सामने से हटा कर मेरे नग्न बदन को निहारने लगी.



“तुम वाक़ई खूबसूरत हो. एक एक अंग मानो साँचे मे ढला हुआ है. स्वामी जी ने लिए तुम्हे अपने आश्रम मे लेने के लिए इतनी तयारि की.” रजनी ने आगे बढ़ कर मेरे होंठ चूम लिए. मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह मे डाल कर उसकी जीभ से खेलने लगी. मैने भी उसके गाउन को बदन से उतार दिया. वो भी कम खूबसूरत नही थी. हल्का गेहुंआ रंग था लेकिन बदन कसा हुआ था. उसके उरोज तो सबसे खूबसूरत थे. मुझे उसके उरोज देख कर मज़ा आ गया. वैसे मैं समलंगिक नही हूँ. लेकिन सुंदर चीज़ों से परहेज भी नही है. उस दिन तो मुझे समलंगिक बनना भी अच्च्छा लग रहा था. बदन की आग मिटनी चाहिए तरीका कुच्छ भी हो. दोनो एक दूसरे से लिपट गये. हम दोनो अपने स्तानो को एक दूसरे से रगड़ने लगे. निपल इतने कड़े हो गये थे की रगड़ते वक़्त दूसरे के निपल बदन मे चुभ रहे थे.



वो मुझे लेकर बिस्तर पर लेट गयी. हम दोनो ने अपने अपने कपड़े त्याग दिए थे. फिर एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे. रजनी मेरे निपल को मुँह मे भर कर चूसने लगी. मैं एक हाथ से उसके स्तानो को मसल रही थी तो दूसरे हाथ से उसकी जंघें सहला रही थी. रजनी के हाथ मेरे नितंबों पर फिर रहे थे.



रजनी ने मुझे चित लिटा दिया और मेरे बदन पर चढ़ गयी. वो मेरे उपर चढ़ कर योनि की ओर मुँह कर उसपर झुक गयी. उसने अपनी जीभ मेरे जांघों पर फेरनी शुरू कर दी. उसके नितंबों को खींच कर मैने भी उसकी योनि के होंठों को अपनी उंगलियों से छेड़ना शुरू कर दिया. रजनी मेरे जांघों पर अपने दाँत गढ़ाने लगी थी बीच बीच मे वो अपनी जीभ नीचे झुक कर मेरी नाभि मे भी डाल देती थी. मैं उसकी जांघों के बीच उगे रेशमी बालों को अपने दाँतों से दबा कर खींच रही थी. रजनी ने मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल दी और मेरी योनि को अपनी जीभ से सहलाने लगी. मैने भी रजनी के साथ वैसा ही शुरू कर दिया. कुच्छ देर मे ही दोनो की योनि से रस बह निकला.



हम दोनो ने ही एक दूसरे के रस को चाट चाट कर साफ किया. फिर रजनी घूम कर मेरी बगल मे लेट गयी. हम दोनो एक दूसरे के नग्न बदन को सहलाने चूमने लगे.



“तुम….तुम लाजवाब औरत हो.” रजनी ने मुझसे कहा.



“तुम भी कुच्छ कम नही हो. आज पहली बार मैने किसी औरत के साथ सेक्स किया. मैं इसे एक गंदी चीज़ समझती थी. लेकिन तुम्हारे साथ मस्ती करने के बाद लगता है कभी कभी टेस्ट चेंज मे कोई बुराई नही है.”



रजनी मेरी बात सुन कर हँसने लगी.



“तुम आ गयी हो आश्रम मे तो इस तरह के मौके अक्सर मिल जाया करेंगे. वैसे मुझे भी बहुत मज़ा आया तुम्हारे साथ.” रजनी ने कहा.



“ एक बात पूच्छू? रजनी जी आप कैसे आइ आश्रम मे?” मैने झिझकते हुए पूछा.



“ हा…..बहुत लंबी कहानी है. कभी वक़्त मिला तो सुनाउन्गी. वैसे बता दूं. मैं मुंबई की रहने वाली हूँ. आज से पाँच साल पहले मेरी शादी हुई थी. मैं गुजरात के एक गाओं की सीधी साधी लड़की थी. मेरा पति एक छ्होटी सी कंपनी का सूपरवाइज़र था. हम मुंबई के एक झोपड़पट्टी मे रहते थे. मुंबई मे लोवर क्लास आदमियों को सिर छिपाने के लिए असरा ढूँढना एक बड़ी बात होती. बड़ी मुश्किल से एक रहने को जगह मिली. धारावी के एक चाव्ल मे रहने को जगह मिली थी. चारों तरफ गंदगी और बदबू भरे वातावरण के बीच भी मैं खुश थी. लेकिन मेरी खूबसूरती मेरा दुश्मन बन गयी.



रतन एक सीधा साधा अड्मिट हा. उसे दुनिया के लोगों की टेढ़ी चाल के बारे मे कुच्छ नही पाता था. हम दोनो अपने इस छ्होटी सी दुनिया मे खुश थे. हम ने अपने बूढ़े सास और ससुर को भी वहाँ बुला लिया था. हम अपनी इस छ्होटी सी दुनिया मे बहुत खुश थे. लेकिन लालची लोगों की गिद्ध दृष्टि मुझ पर पड़ चुकी थी. उस बस्ती के गुंडे मुझे आते जाते परेशान करने लगे थे. मेरा घर से निकलना मुश्किल हो गया था. मैं अपने पति से उनकी शिकायत करती तो वो उन बदमाशों के डर से चुप रह जाते थे.



मार्च का महीना था मैं एक दिन रात मे दस बजे के आसपास किराने के दुकान से कुच्छ ज़रूरी समान लेकर आ रही थी तभी उन मवालियों का झुंड उल्टी तरफ से आता हुआ दिखा. मैं उन लोगों को देख कर डर गयी. वो पाँच थे और मैं अकेली. उनकी नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी उनकी आँखों मे लाल डोरे तैरने लगे. वो पाँचों पिए हुए थे. दामु उर्फ दमले टपोरी उनका उस्ताद था. मैं जैसे ही उनसे कतरा कर उनके पास से गुजरने लगी तभी एक झटके मे उनके सरदार ने मेरी कलाई पकड़ ली. मैं घबरा कर उनसे अपनी कलाई छुड़ा कर वहाँ से भागने की कोशिश करने लगी मगर तब तक देर हो चुकी थी. मेरी कलाई सख्ती से दमले की मुट्ठी मे बंद थी और बाकी चारों मुझे घेर लिए थे जिससे मैं अगर भागने की कोशिश भी करती तो भी उनकी गिरफ़्त से बच कर नही निकल सकती थी. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः............

raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 07:47

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -19
गतान्क से आगे...

दमले ने मेरी कलाई को एक्ज़ोर से झटका दिया तो मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी. इससे पहले की मैं सम्हल पाती मैने अपने आप को दमले की बाँहों मे पाया. बाकी चारों मेरी च्चटपटाहत का मज़ा ले कर हंस रहे थे. मैं किसी जाल मे फँसी चिड़िया की तरह फड़फदा रही थी. पूरी ताक़त से अपने हाथ पैर चला कर उनसे छूटने की कोशिश कर रही थी. मगर उनके सामने मैं सफल नही हो पा रही थी. दमऊ ने मेरे बदन से नोच कर मेरी चुनरी फेंक दी और मुझे पीछे की ओर से अपनी बाँहों मे भर कर ज़मीन से उपर उठा लिया. मैं अपने पैरों को फेंक रही थी मगर एक भी वॉर उसके बदन पर सही जगह पर नही पड़ रहे थे. उसने मेरे बगलों के नीचे से अपने हाथ डाल कर मेरे दोनो स्तनो को थाम लिया था और उनको बेरहमी से मसल रहा था. आस पास के बने मकानो के लोग उन गुण्डों के डर से अपने अपने दरवाजे बंद कर चुके थे. मेरी चीख पुकार मेरे मुँह मे ही दब गयी थी क्योंकि मेरे मुँह पर एक भारी हाथ पड़ा हुया था.



तभी दमऊ ने एक हाथ से मुझे तामते हुए अपना दूसरा हाथ मेरी गिरेबान के अंदर डाल कर मेरी ब्रा को बीच से पकड़ कर एक झटका दिया तो ब्रा टूट कर हाथ मे आ गयी. दूसरे झटके के साथ ब्रा ने मेरे बदन का साथ छ्चोड़ दिया. मेरी कमीज़ के अंदर से खींच कर मेरी टूटी ब्रा को बाहर निकाल कर उसने सबके सामने लहराया. लोग उसे लपकने के लिए हाथ बढ़ा दिए थे. दमऊ ने उस टूटी ब्रा को एक बार अपने होंठों तक ले जाकर किस किया और फिर उसे उनके बीच उच्छाल दिया. उसने दोबारा अपने हाथ मेरी गिरहबान से डाल कर मेरे नंगे बूब्स को मसल्ने लगा. मैं जल बिन मच्चली की तरह तड़प रही थी उसके बंधन से छ्छूटने के लिए. मगर उसके हाथ लोहे के सांकॅल की तरह मजबूत थे और मैं उनके सामने बेबस थी. तभी उसका एक हाथ एक झटके से मेरी सलवार के अंदर घुस गया और सीधी जा कर मेरी योनि के उपर जा कर रुका. मैं उसकी इस हरकत पर बज़ुबान रह गयी. मैं फटी फटी आँखों से उसको देख रही थी. जैसे ही उसकी उंगलियाँ जगह बनाती हुई मेरी योनि के अंदर घुसी मैं एक दम से जैसे होश मे आइ. मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मैने उसके हाथ को अपनी सलवार के उपर से पकड़ लिया और मुझे छ्चोड़ देने के लिए गिड गिदाने लगी.



उसने अपना हाथ बाहर निकाल कर मेरी कमीज़ को फाड़ कर दो टुकड़ों मे अलग कर दिया. फिर उसने और उसके चम्चो ने मेरे बदन से कमीज़ को नोच कर अलग कर दिया. तब रात के सिर्फ़ दस बज रहे थे. मगर जैसे मोहल्ले वालों को साँप सूंघ गया था. कोई आगे नही आया मुझे बचाने के लिए. मैं उन भूखे भेड़ियों के सामने अर्धनग्न अवस्था मे अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए एक आख़िरी कोशिश कर रही थी. मगर मेरी फरियाद सुनने का ना तो किसी के पास टाइम था और ना ही हिम्मत.



तभी एक साथ कयी घटनाएँ हुई. मेरे बदन से उतरी कमीज़ के चीथदों को लपकने के लिए चारों टूट पड़े. उसी समय वहाँ से वर्दी मे कोई पोलीस वाला गश्त लगाता हुया पहुँचा. उसे देख कर दमऊ की पकड़ ढीली पड़ गयी. और मैं उसके बंधन से अपने को छुड़ा कर भाग निकली. मैने अपने दोनो हथेली से अपने नग्न स्तनो को ढकने की असफल कोशिश करते हुए मैं लगभग दौड़ते हुए घर पहुँची. मुझे इस तरह सिर्फ़ एक सलवार मे अपने उच्छलते स्तनो को हाथ से ढंपे भागते हुए देख कर लोग मज़े ले रहे थे.



मैं जितना तेज दौड़ते हुए घर तक पहुँची. मैने दरवाजा खटखटाया. मुझे कुच्छ होश नही कि किसने दरवाजा खोला. मैने अंदर घुस कर दरवाजे को मजबूती से अपने पीछे बंद कर दिया. मेरी साँसे धोन्क्नि की तरह चल रही थी. मैं अभी हुए हादसे से डर कर थर थर काँप रही थी. मेरी दोनो छातियाँ हर साँस के साथ उपर नीचे हो रही थी. मेरी आँखें बंद थी और गला सूख रहा था. अपने काँपते हुए जिस्म को सहारा देने के लिए मैने अपनी पीठ दरवाजे पर टीका दी थी. जब आँख खुली तो देखा सास, ससुर और रतन तीनो मूह फाडे मुझे देख रहे थे. मैने झट अपने नंगे बूब्स को अपनी हथेलियों से ढँका और फफक कर रोने लगी. मेरे ससुर जी झट से एक चादर लाकर मेरे बदन को ढँक दिए. मैं अपने पति के गले लग गयी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.



“क्या हुआ? कैसे हुआ ये सब?” तीनो मुझसे पूछ रहे थे. मैने रोते हुए पूरी घटना उनको सुना दी.



“ दााँ……दामले……” मैं इससे आगे और कुच्छ नही बोल पाई. मैं बुरी तरह रोए जा रही थी.



“ हां…हाआंन्न….. क्या हुआ? क्या किया दमले ने?’ रतन मुझसे पूच्छे जा रहा था.



“ मैने आप से कितनी बार कहा था कि उस गुंडे….उस हरम्जदे दमले की नीयत ठीक नही है. मगर आप ने नही माना. देख लो आज मैं गॅंगरेप से बच कर आ रही हूँ.”

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