Badla बदला compleet

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rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:14

गतान्क से आगे...
"ये बातरोब नही चलेगा....",अपने स्टूडियो मे खड़ा वीरेन सहाय अपनी
प्रेरणा कामिनी को देख रहा था,"..इसमे तो आपके बदन का आकार ही नही पता
चलता.",इस वक़्त वो 1 पेंटर था & कामिनी उसकी मॉडेल,"..1 मिनिट आप बैठिए
मैं कुच्छ करता हू.",ठुड्डी खुजाता वीरेन स्टूडियो के दूसरे कोने मे चला
गया.

कामिनी ने सर घुमा के स्टूडियो को देखा.बंगले के बड़े से हॉल मे वीरेन ने
अपना स्टूडियो बनाया था.1 कोने मे शेल्व्स & अलमारी मे पे उसके रंग,ब्रश
& बाकी समान था.उसके पास ही उसका ईज़ल पड़ा था.कमरे के दूसरे कोने मे 1
बड़ा सा पलंग था & उसी के बगल मे आयेटॅच्ड बाथरूम का दरवाज़ा.हॉल मे 1
बहुत बड़ी सी खिड़की थी & उसमे शीशे के दरवाज़े लगे हुए थे.इस वक़्त
बारिश की वजह से वो दरवाज़े बंद थे & एसी चालू था.खिड़किया इतनी बड़ी &
चौड़ी थी की उनपे 1 आदमी तो आराम से लेट सकता था,"आप ने इसे अपना बेडरूम
भी बनाया हुआ है क्या?" (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ
में पढ़ रहे है )

"नही..वो तो कभी कभार पैंटिंग करते हुए थक जाता हू तो यही सो जाता
हू.",वीरेन 1 अलमारी से कुच्छ कपड़े निकाल रहा था,"हां,मिल गयी."

"ये लीजिए.",उसने 1 लाल रंग की सारी & ब्लाउस कामिनी को दिया.

"ये औरतो के कपड़े आपके पास कैसे आए?",कामिनी ने मुस्कुराते हुए मज़ाक किया.

"कामिनी जी मैं 1 पेंटर हू..",वीरेन भी हंसा,"..वैसे तो मॉडेल्स को उनके
खुद के कपड़े लाने को कहता हू मगर कभी-कभार ज़रूरत पड़ ही जाती है तो ऐसे
कुच्छ कपड़े अपने पास रखने ही पड़ते हैं."

कामिनी बाथरूम मे जाके सारी पहनने लगी तो उसे कुच्छ भारी सामान फर्श पे
खींचने की आवाज़ आई.जब वो बाहर आई तो उसे उस आवाज़ का कारण पता चला,वीरेन
ड्रॉयिंग रूम से 1 दीवान खींच के वाहा ले आया था.दीवान 1 तरफ से इस तरह
उपर उठा हुआ था कि उसपे अढ़लेटी होके भी बैठा जा सकता था.

कामिनी के आते ही वीरेन ने उसे नज़र भर के सर से पाँव तक देखा,लाल लिबास
मे उसका गोरा रंग मानो भड़कते शोलो का धोखा दे रहा था.वो उसके करीब आया &
उसकी सारी को कमर के पास से पकड़ के थोड़ा ठीक किया.ऐसा करने से उसकी
उंगलिया कामिनी के चिकने पेट को छु गयी.मर्दाने एहसास से कामिनी के बदन
मे झुरजुरी सी हुई मगर वीरेन तो बस 1 पेंटर की हैसियत से उसके कपड़े ठीक
कर रहा था मगर ऐसा भी नही था कि उसे कुच्छ महसूस ना हुआ हो.कामिनी की
खूबसूरत & उसकी करीबी ने उसके दिल मे भी हलचल पैदा की थी मगर इस वक़्त
उसका ध्यान पूरी तरह से अपनी तस्वीर के उपर था.

"कामिनी आप इस्पे इस तरह से बैठिए.",वीरेन के कहे मुताबिक कामिनी अपनी
दाई करवट पे उस दीवान के उठे हिस्से पे अपनी दाई बाँह टीका के अदलेटी सी
लेट गयी,".(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
).हां,बस ऐसे ही.",वीरेन ने उसके चेहरे को ज़रा सा उपर घुमाया & फिर अपने
ईज़ल के पास जाके उसपे नया काग़ज़ लगाने लगा.

कामिनी अब किसी मूरत की तरह पड़ी हुई थी & वीरेन उसकी तस्वीर बना रहा
था.वो 1 पल को उसकी ओर देखता & फिर अपने हाथ उस काग़ज़ पे चलाने
लगता.स्टूडियो मे बिल्कुल खामोशी च्छाई थी अगर कोई आवाज़ थी तो वो थी
खिड़कियो के शीशो पे पड़ती तेज़ बारिश की.कोई 1 घंटे बाद वीरेन ने वाहा
छाई खामोशी तोड़ी,"कामिनी अब आप चाहे तो अपनी गर्दन हिला सकती हैं मगर
ध्यान रहे बाकी बदन वैसे ही रखिएगा....या फिर आप चाहे तो थोड़ी देर के
लिए ब्रेक ले लें?"

"बस थोड़ा पानी पीला दीजिए.",वीरेन ने उसे पानी पिलाया तो कामिनी फिर से
वैसे ही लेट गयी.उसने अपना सर उठाके छत की ओर कर लिया था & बाकी बदन वैसे
ही दाई बाँह पे टीका वीरेन की ओर घुमा हुआ था.वीरेन तेज़ी से हाथ चला रहा
था मगर उसने गर्दन घुमा के कामिनी की ओर देखा तो उसके हाथ जहा के तहा रुक
गये.कामिनी अपना सर उपर उठाए & आँखे बंद किए हुई थी & उसके लंबे,काले बॉल
पीछे दीवान से नीचे लटक रहे थे.उसकी सारी थोड़ा सरक गयी थी & उसका
चिकना,गोरा पेट & उसके बीच की गोल,गहरी नाभि सॉफ दिख रहे थे.

वीरेन उस हसीना की खूबसुअरती को बस निहारे जा रहा था की तभी कामिनी की
सारी का पल्लू उसके बाए कंधे से थोड़ा और नीचे हुआ & उसकी लाल ब्लाउस मे
कसी बाई छाती नुमाया हो गयी.कामिनी ने ब्रा गीला होने की वजह से तो पहना
नही था सो उसका निपल का उभार ब्लाउस के कपड़े मे से सॉफ-2 दिख रहा
था.वीरेन का गला सुख गया & उसने थूक गटका....ना केवल खूबसूरत मगर उतनी ही
मस्तानी थी ये लड़की!इस वक़्त वो 1 पेंटर की नही 1 मर्द की निगाहो से
कामिनी को देख रहा था.उसकी आँखे उसके चेहरे से फिसलते हुए उसके सीने पे
आती & फिर नीचे उसके पेट तक पहुँच के ये अंदाज़ा लगाने लगती कि इसके नीचे
छुपि हुई उसकी चूत भी क्या बाकी बदन जितनी ही नशीली होगी या फिर उस से भी
ज़्यादा?कामिनी को 1 ही पोज़िशन मे लेटे-2 थकान सी महसूस हुई तो उसने
पैरो के पंजो को नीचे की तरफ तानते हुए उनमे आ गयी अकड़न को भगाने की
कोशिश की.

लाल नैल्पोलिश से सजे उसके नाख़ून वाले गोरे पैरो की ये हरकत देख वीरेन
के दिल मे उस हुस्न परी की शान मे सर झुका उन्हे चूम लेने की हसरत पैदा
हुई.उसे पता भी नही चला था मगर उसका लंड खड़ा हो चुका था.उसने अपनी नज़रो
के सफ़र को वापस पाँव से सर तक शुरू किया & जैसे ही सूकी निगाहे कामिनी
के सीने तक पहुँची कामिनी ने उसकी ओर सर घुमा दिया.(ये कहानी आप राज
शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )दोनो की आँखे चार हुई तो
कामिनी ने उसकी आँखो मे झलक रही उसके जिस्म की तारीफ & चाह-दोनो को पढ़
लिया मगर वीरेन ने भी फ़ौरन अपनी आँखे वापस ईज़ल पे टीका दी & उसके हाथ
फिर से उसपे चलने लगे.

तो जनाब मुझे घूर रहे थे!....कामिनी मन ही मन हँसी & अपना सर घुमा के
नीचे अपने जिस्म को देखा तो उसे उसका कारण भी समझ आ गया मगर उसने अपने
पेट को या फिर चूची को ढँकने की कोई कोशिश नही की.इस खूबसूरत मर्द ने
उसके भी दिल को गुदगूदाया था & उसके साथ थोड़ी बहुत छेड़-छाड करने मे उसे
कोई बुराई नही दिखाई दी.कामिनी ने सर घुमा के वीरेन की ओर देखा तो पाया
की वो पैंटिंग कर रहा है.उसे देखते हुए वो वापस सर घुमा रही थी कि तभी
उसका ध्यान वीरेन के पाजामे पे गया जहा 1 तंबू बना हुआ था.तंबू के आकर ने
उसे भी बेचैन कर दिया & उसकी चूत मे भी कसक उठने लगी.उसने हल्के से अपनी
जाँघो को आपस मे रगड़ा & आँखे बंद कर अपना ध्यान इन गुस्ताख ख़यालो से
हटाने लगी.

दोनो 1 दूसरे से आँखे चुराए अपने-2 कामो मे मगन थे-वीरेन 1 पेंटर के &
कामिनी उसकी मॉडेल के,मगर सच तो ये था की दोनो के दिलो मे बहुत उथल-पुथल
मची हुई थी.दोनो अब सिर्फ़ 1 दूसरे के जिस्मो के बारे मे सोच रहे थे &
दोनो के दिलो मे बस 1 ही सवाल था....क्या ये इंसान मुझे खुद के करीब आने
देगा?

"आअहह...हाआन्न....बस..थोड़ी..दे...र..और......",देविका अपने उपर चढ़े
अपनी चुदाई करते अपने पति सेइल्तिजा कर रही थी.सुरेन सहाय के दिल को आज
उनका जोश संभालने मे काफ़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रह था.बड़ी मुश्किल
से उन्होने अपनी बीवी से ये बात च्छूपा के उसकी चुदाई जारी रखी थी.

"हां..हान्न..हान्न्न्न्न......",देविका तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ़
रही थी....बस थोड़ी देर और वो उसे ऐसे ही चोद्ते रहे की तभी सुरेन जी का
बदन झटके खाने लगा & उसे अपनी चूत मे उनका पानी भरता महसूस हुआ.उसे बड़ी
खिज महसूस हुई..अपनी मंज़िल के कितना करीब थी वो लेकिन उसने अपने जज़्बात
अपने पति से छुपाए & उन्हे ज़ोर से अपने आगोश मे भींच लिया & मस्ती मे
आहे भर झड़ने का नाटक करने लगी.सुरेन जी उसकी छातियो पे सर रखे हाँफ रहे
थे.

उसने महसूस किया की सुरेन जी ने सारा पनी छोड़ दिया है & उनका लंड अब
बिकुल सिकुदा सा उसकी चूत मे पड़ा है.उसे चिंता हुई की कही उनकी तबीयत
नसाज़ तो नही?

"सुनिए..",उसने उनका सर अपने सीने से उठाया,"..आपकी तबीयत ठीक है
ना?",उसने प्यार से उनके बालो मे हाथ फेरा.

"हां..हां..क्यू?",उन्होने झूठ बोला.वो उसे और परेशान नही करना चाहते थे
वैसे ही उनकी बीमारी & प्रसून की वजह से उसे क्या कोई कम तनाव था!

"मुझे आप थोड़ा परेशान लग रहे थे."

"ऐसी तो कोई बात नही.",सुरेन जी उसके उपर से उतरे & उसकी बगल मे लेट गये.

"आप अपनी दवाएँ तो समय से ले रहे हैं ना?",अपनी बाई कोहनी पे उचक उसने
उनके माथे को सहलाया.

"हां."

"बहुत अच्छे,अब सो जाइए.",वो प्यार से उनके बॉल सहलाने लगी.सुरेन जी ने
आँखे बंद कर ली....क्या वो दवा अब असर नही कर रही थी?..उन्हे इतनी घबराहट
क्यू महसूस हो रही थी देविका की चुदाई करते वक़्त?..अब डॉक्टर से मिलना
ही होगा मगर देविका को इस बात का पता नही चलना चाहिए नही तो वो और परेशान
हो जाएगी...इन्ही ख़यालो मे डूबे हुए कब उन्हे नींद ने आ घेरा उन्हे पता
ही ना चला.

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:14

कमरे मे उनके खर्राटे गूँज रहे थे मगर देविका अभी भी जागी हुई थी.उसे लगा
की सुरेन जी काम के ज़्यादा बोझ की वजह से थके हुए थे & इसलिए आज उसका
आख़िर तक साथ नही दे पाए.उसने गर्दन घुमा के उन्हे देखा वो गहरी नींद मे
खर्राटे भर रहे थे (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में
पढ़ रहे है )लेकिन वो अभी भी प्यासी थी.उसने करवट बदल सोने की कोशिश की
मगर उसका जिस्म उसे सोने नही दे रहा था.बेताब हो उसने 1 ऐसा कदम उठाने की
सोची जो उसने आज तक नही उठे था.उसने फर्श पे गिरी अपनी नाइटी को हाथो मे
लिया & बिस्तर से उठ गयी.साइड-टेबल की दराज से उसने अपने कमरे की चाभी
उठाई & कमरे से बाहर निकल गयी.

बाहर आ उसने कमरा लॉक किया & बढ़ गयी अपने प्रेमी शिवा के कमरे की
ओर.पूरे घर मे सन्नाटा पसरा था सिर्फ़ बाहर हो रही मूसलाधार बारिश का शोर
था.उसने शिवा के कमरे का दरवाज़ा खोला & अंदर दाखिल हो दरवाज़े की
च्षिटकॅनी लगा दी.शिवा गहरी नींद मे था.देविका ने उसके बदन पे पड़ी चादर
हटाई तो देखा की वो भी उसी की तरह बिल्कुल नंगा था.

उसने अपनी नाइटी & चाभी बिस्तर के पास पड़ी 1 कुर्सी पे रखे & बिस्तर पे
चढ़ घुटनो के बल बैठ अपने प्रेमी के लंड को मुँह मे भर लिया.नींद मे डूबे
शिवा को लगा कि वो सपना देख रहा है की उसकी जानेमन उसके लंड को अपनी
ज़ुबान से चाट रही है मगर जैसे ही नींद टूटी तो उसने पाया की ये सपना नही
हक़ीक़त है.उसका दिल बेइंतहा खुशी से भर गया.उसे जगा देख देविका ने लंड
को मुँह से अलग किया & मुस्कुराते हुए उसके उपर चढ़ गयी.

उसकी चूत मे आग लगी हुई थी & अभी उसे बुझाने के सिवा उसे कुछ नही सूझ रहा
था.अपने घुटने दोनो तरफ जमा कर उसने लंड को चूत का रास्ता दिखाया &
उच्छल-2 कर चुदने लगी.शिवा उठ बैठा & उसे अपनी बाहो मे भर उसके सीने मे
अपना चेहरा दफ़न कर दिया.उसके सर को थामे देविका बड़ी ज़ोर से उछल रही
थी.सुरेन जी ने जो काम शुरू किया था शिवा उसे अंजाम तक पहुँचा रहा
था.उसके बाल खींच उसके सर को उसने अपनी चूचियो मे बिल्कुल भींच दिया.शिवा
की ज़ुबान को वो अपनी गोलाईयो पे महसूस कर रही थी.उसके बड़े-2 हाथ उसके
रेशमी जिस्म को बेचैनी से सहला रहे थे,उसकी चूत मे बन रहा तनाव अब
बिल्कुल चरम पे पहुँचा & उसके बाद जैसे उसके बदन मे बिजलियो की कयि
धाराएँ 1 साथ फूट पड़ी.

तेज़ आहे भरती अपनी जंघे अंदर की ओर भींचती अपने प्रेमी को अपने सीने से
चिप्टा देविका झाड़ रही थी मगर शिवा के लिए तो अभी शुरुआत थी.वो वैसे ही
बैठा उसकी चूचिया चूस रहा था,"शिवा.."

"ह्म्म...",शिवा उसकी बाई चूची को ऐसे चूस रहा था मानो छोड़ेगा तो उसकी
जान चली जाएगी.

"ये नया मॅनेजर कैसा आदमी है?तुम्हारे बॉस तो बड़ी तारीफ कर रहे थे."

"मुझे....पता नही कैसे कहु..",शिवा ने चूची को मुँह से निकाल लिया & उसे
हाथ से दबाने लगा.देविका को उसकी उलझन थोड़ी अजीब लगी.

"क्यू क्या हुआ?",उसने उसके सर को उपर कर उसके होठ चूम लिए.

"देविका,उसके बारे मे सभी कुच्छ ठीक है.ईमानदार है,सच्चा है,लालची नही है
मगर फिर भी मुझे उसके बारे मे कुच्छ खटक रहा है.",अभी तक शिवा टाँगे
फैलाए बैठा था.अब उसने देविका की गंद की मांसल फांको को अपने हाथो मे
थामा & थोड़ा उठ कर अपने घुटने मोड़ के बैठ गया.देविका बे भी अपनी टाँगे
उसकी कमर पे कस दी.

"लेकिन क्या?",देविका ने अपने नाख़ून उसकी पीठ पे हल्के से फिराए तो शिवा
का बदन सिहर उठा & अपनेआप ही उसकी कमर हिलने लगी & 1 बार फिर देविका की
चुदाई शुरू हो गयी.

"यही तो मैं समझ नही पा रहा हू.",देविका को भी अब थोड़ी चिंता होने
लगी.मनेजर एस्टेट का सबसे अहम इंसान था अगर उसी के बारे मे कोई शुबहा तो
फिर एस्टेट का क्या होगा & फिर शिवा जैसा इंसान भी पशोपेश मे दिख रहा हो
तो चिंता तो लाज़मी थी (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ
में पढ़ रहे है )मगर अगले ही पल उसकी चिंता दूर हो गयी,"..मगर तुम परेशान
मत हो,मैं उसपे कड़ी नज़र रखूँगा & जब तक मेरे दिल की ये उलझन सुलझ ना
जाए मैं चैन से नही बैठूँगा.",उसने उसकी गंद की फांको को अपने हाथो तले
मसला & उसके होंठो को चूमते हुए उसे चोदने लगा.

देविका जानती थी की शिवा फालतू बाते नही करता.उसकी बातो से उसे बहुत
सहारा मिला.उसने अपनी बाँहे उसके गले पे कसते हुए अपनी जीभ उसकी जीभ से
लड़ाई & उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगी.

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क्रमशः...........

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:14

BADLA paart--16

gataank se aage...
"ye bathrobe nahi chalega....",apne studio me khada Viren Sahay apni
prerna Kamini ko dekh raha tha,"..isme to aapke badan ka aakar hi nahi
pata chalta.",is waqt vo 1 painter tha & kamini uski model,"..1 minute
aap baithiye main kuchh karta hu.",thuddi khujata viren studio ke
dusre kone me chala gaya.

kamini ne sar ghuma ke studio ko dekha.bungke ke bade se hall me viren
ne apna studio banaya tha.1 kone me shelves & almari me pe uske
rang,brush & baki saman tha.uske paas hi uska easel pada tha.kamre ke
dusre kone me 1 bada sa palang tha & usi ke bagal me aatached bathroom
ka darwaza.hall me 1 bahut badi si khidki thi & usme shishe ke darvaze
lage hue the.is waqt barish ki vajah se vo darwaze band the & AC
chalku tha.khidkiya itni badi & chaudi thi ki unpe 1 aadmi to aaram se
let sakta tha,"aap ne ise apna bedroom bhi banaya hua hai kya?"

"nahi..vo to kabhi kabhar painting karte hue thak jata hu to yahi so
jata hu.",viren 1 almari se kuchh kapde nikal raha tha,"haan,mil
gayi."

"ye lijiye.",usne 1 laal rang ki sari & blouse kamini ko diya.

"ye aurato ke kapde aapke paas kaise aaye?",kamini ne muskurate hue mazak kiya.

"kamini ji main 1 painter hu..",viren bhi hansa,"..vaise to models ko
unke khud ke kapde lane ko kehta hu magar kabhi-kabhar zarurat pad hi
jati hai to aise kuchh kapde apne paas rakhne hi padte hain."

kamini bathroom me jake sari pehanane lagi to use kuchh bhari saman
farsh pe khinchne ki aavaz aayi.jab vo bahar aayi to use us aavaz ka
karan pata chala,viren drawing room se 1 divan khinch ke vaha le aaya
tha.divan 1 taraf se is tarah upar utha hua tha ki uspe adhlete hoke
bhi baitha ja sakta tha.

kamini ke aate hi viren ne use nazar bhar ke sar se panv tak
dekha,laal libas me uska gora rang mano bhadakte sholo ka dhokha de
raha tha.vo uske kareeb aaya & uski sari ko kamar ke paas se pakad ke
thoda thik kiya.aisa karne se uski ungliya kamini ke chikne pet ko
chhu gayi.mardane ehsas se kamini ke badan me jhurjhuri si hui magar
viern to bas 1 painter ki haisiyat se uske kapde thik kar raha tha
magar aisa bhi nahi tha ki use kuchh mehsus na hua ho.kamini ki
khubsurat & uski kareebi ne uske dil me bhi hulchul paida ki thi magar
is waqt uska dhayn puri tarah se apni tasvir ke upar tha.

"kamini aap ispe is tarah se baithiye.",viren ke kahe mutabik kamini
apni dayi karwat pe us diwan ke uthe hisse pe apni dayi banh tika ke
adleti si let gayi,"..haan,bas aise hi.",viren ne uske chehre ko zara
sa upar ghumaya & fir apne easel ke paas jake uspe naya kagaz lagane
laga.

kamini ab kisi murat ki tarah padi hui thi & viren uski tasvir bana
raha tha.vo 1 pal ko uski or dekhta & fir apne hath us kagaz pe
chalane lagta.studio me bilkul khamoshi chhayi thi agar koi aavaz thi
to vo thi khidkiyo ke shisho pe padti tez barish ki.koi 1 ghante baad
viren ne vaha chhayi khamoshi todi,"kamini ab aap chahe to apni gardan
hila askti hain magar dhyan rahe baki badan vaise hi rakhiyega....ya
fir aap chahe to thodi der ke liye break le len?"

"bas thoda pani pila dijiye.",viren ne use pani pilaya to kamini fir
se vaise hi let gayi.usne apna sar uthake chhat ki or kar liya tha &
baki badan vaise hi dayi banh pe tika viren ki or ghuma hua tha.viren
tezi se hath chala raha tha magar usne gardan ghuma ke kamini ki or
dekha to uske hath jaha ke taha ruk gaye.kamini apna asr upar uthaey &
aankhe band kiye hui thi & uske lambe,kale baal peechhe diwan se
neeche latak rahe the.uski sari thoda rak gayi thi & uska chikna,gora
pet & uske beech ki gol,gehri nabhi saaf dikh rahe the.

viren us haseena ki khubsuarti ko bas nihare ja raha tha ki tabhi
kamini ki sari ka pallu uske baye kandhe se thoda aur neeche hua &
uski laal blouse me kasi bayi chhati numaya ho gayi.kamini ne bra gila
hone ki vajah se to pehna nahi tha so uska nipple ka ubhar blouse ke
kapde me se saaf-2 dikh raha tha.viren ka gala sukh gaya & usne thuk
gatka....na keval khubsurat magar utni hi mastani thi ye ladki!is waqt
vo 1 painter ki nahi 1 mard ki nigaho se kamini ko dekh raha tha.uski
aankhe uske chehre se fisalte hue uske seene pe aati & fir neeche uske
pet tak pahunch ke ye andaza lagane lagti ki iske neeche chhupi hui
uski chut bhi kya baki badan jitni hi nashili hogi ya fir us se bhi
zyada?kamini ko 1 hi position lete-2 thakan si mehsus hui to usne
pairio ke panjo ko neeche ki taraf taante hue unme aa gayi akdan ko
bhagane ki koshish ki.

laal nailpolish se saje uske nakhun vale goer pairo ki ye harkat dekha
viren ke dil me us husn pari ki shan me sar jhuka unhe chum lene ki
hasrat paida hui.use pata bhi nahi chala tha magr uska lund khada ho
chuka tha.usne apni nazro ke safar ko vapas panv se sar tak shuru kiya
& jaise hi suki nigahe kamini ke seene tak pahunchi kamini ne uski or
sar ghuma diya.dono ki aankhe char hui to kamini ne uski aankho me
jhalak rahi uske jism ki tarif & chah-dono ko pad liya magar viren ne
bhi fauran apni aankhe vapas easel pe tika di & uske hath fir se uspe
chalne lage.

to janab mujhe ghur rahe the!....kamini man hi man hansi & apna sar
ghuma ke neeche apne jism ko dekha to use uska karan bhi samajh aa
gaya magar usne apne pet ko ya fir choochi ko dhankne ki koi koshish
nahi ki.is khubsurat mard ne uske bhi dil ko gudgudaya tha & uske sath
thodi bahut chhed-chhad karne me use koi burai nahi dikhayi di.kamini
ne sar ghuma ke viren ki or dekha to paya ki vo painting kar raha
hai.use dekhte hue vo vapas sar ghuma rahi thi ki tabhi uska dhyan
viren ke pajame pe gaya jaha 1 tambu bana hua tha.tambu ke aakar ne
use bhi bechain kar diya & uski chut me bhi kasak uthne lagi.usne
halke se apni jangho ko aapas me ragda & aankhe band kar apna dhyan in
gustakh khayalo se hatane lagi.

dono 1 dusre se aankhe churaye apne-2 kaamo me magan the-viren 1
painter ke & kamini uski model ke,magar sach to ye tha ki dono ke dilo
me bahut uthal-puthal machi hui thi.dono ab sirf 1 dusre ke jismo ke
bare me soch rahe the & dono ke dilo me bas 1 hi sawal tha....kya ye
insan mujhe khud ke kareeb aane dega?

"Aaahhh...haaaann....bas..thodi..de...rr..aur......",Devika apne upar
chade apni chudai karte apne pati iltija kar rahi thi.Suren Sahay ke
dil ko aaj unka josh sambhalne me kafi mushkil ka samna karna pad rah
tha.badi mushkil se unhone apni biwi se ye bat chhupa ke uski chudai
jari rakhi thi.

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