शादी सुहागरात और हनीमून--22
गतान्क से आगे…………………………………..
वो बहुत ही हॅंडसम लग रहे थे. मेरी कुछ सहेलिया जो रिसेप्षन मे आई थी, ऐसे ललचा रही थी कि. उनका बस चलता तोसब ने मुझे कोंग्रथस किया कि मुझे इतने अच्छा हॅंडसम हज़्बेंड मिला है. और उनके साथ फोटो भी खिचवाई, वो भी ना सिर्फ़ कंधे पे हाथ रख के बल्कि खूब लिपट चिपेट के. उनके एक सीनियर भी आए थे,
किसी बड़ी इंपॉर्टेंट पोस्ट पे थे और साथ मे उनकी वाइफ. उन्होने हम दोनो को बधाइया दी और खास तौर पे उनको, मुझे पाने के लिए. उनकी वाइफ मेरी दून मे बोरडिंग मे 2*3 साल सीनियर निकल आई. उनकी निगाह मेरे 'सॉलिटेर' पे जमी थी. उन्होने हल्के से इशारा कर के पूछा, क्यो 'इन्होने' दिया है. मेने हामी भर दी. तो फिर धीमे से वो मुस्काराकर बोली, " एंट्री फीस" और जब मेने हाँ कहा तो फिर हम दोनो खिलखिला के हंस दिए. देर तक ऐसे ही मिलने वालो का ताँता लगा रहा.
मेरी निगाह बगल मे गयी तो चाट स्टॉल पे गोलगप्पे के स्टॉल पे लोग जमा थे. लेकिन उससे ज़्यादा वहाँ खड़ी गुड्डी और रजनी के पास. रजनी के पास तो मेरे ननदोयि, अश्विनी एकदम चिपके थे. उसे अपने हाथो से गोल गप्पे खिला रहे थे और साथ मे जब मेने कान पर सुने तो उनके मजेदार द्विअर्थि डायलाग भी चल रहे थे. " हे पूरा खोलो, ठीक से, " "हाँ अब ठीक है" "बस, एक बार और ले लो अंदर" "पूरा डालने दो", और वह भी मज़े से 'डलवाए जा रही' थी. उसके सुंदर किशोर चेहरे से लट हटाने के बहाने, उन्होने उसके गाल छू लिए. और जब वो नही बोली तो अगली बार कुछ सॉफ करने के बहाने से उनके हाथ कच्चे उरोजो पे. उसने 'उह' कर के उनका हाथ तो हटा दिया लेकिन और पास मे सॅट गई. गुड्डी जो अब तक लड़को से अलग थलग ही रहती थी, 4*5 लड़के उसके आस पास घेरे खड़े और वो भी गजब की जैसा मेने सेट किया था, एक उभार तो सॉफ दिख रहा था और जो दुपट्टे के अंदर था उसका भी उभार साइड से, और 'पॅड के चलते' 30 से सीधे 32 हो गया था.
किसी ने कहा था, कि जैसे जोबन पे उभार आता है लड़कियो मे अदा अपने आप आ जाती है. एक को वो अपने दोने से, चाट चाटाती और जैसे वो मूह आगे बढ़ता खुद चट कर जाती, दूसरा उससे सटा खड़ा था हाथ उसके पीठ पे, तीसरे के हाथ कंधे पे, और वह दुपट्टा एडजस्ट करने के बहाने बार बार अपने कभी छिपाती कभी दिखाती. और उसका क्या, सभी लड़कियो का यही हाल था, सभी एक से एक ड्रेस मे सजी धजी, कोई झिझक रही थी, कोई खुल रही थी. कोई सॅट रही थी, कोई पट रही थी. पार्टी पूरे शबाब पे थी. मिलने वाले लगभग ख़तम हो गये थे, बस खाने पीने का काम चल रहा था. ( ये बात अलग थी कि ये लोग पूरे वैष्ञेव 'टाइप' थे इसलिए नोन वेज और ड्रिंक्स का सवाल ही नही था. ). तभी उन्होने इशारा किया और मेरा ध्यान उधर से हटा. एक बुजुर्ग कपल बैठे थे, वो उठ के हम लोगो से मिलने आ रहे थे. उन्होने मुझसे कहा कि हम लोग ही चल के मिल लें, वो बुजुर्ग कहाँ उठ के आएँगे. मैं उन के साथ, जहाँ वो लोग बैठ थे चल दी.
लौटते समय मेरा पैर कुछ फँस सा गया. कुछ तो मेरी 3 इंच की हाइ हील का कमाल, और कुछ मेरा पैर उलझ गया. मैं लड़खड़ा सी गयी, लेकिन उन्होने मुझे स्महाल लिया. पर मेरे पाव से पायल कही सरक गयी थी. मेने झुकने की कोशिश की पर कॉरसेट के मारे झुक तो सकती नही थी. वो ही झुक के मेरे पाओ के पास पायल ढूंड रहे थे. मेरी एक शैतान सहेली ने देख लिया और पूछा,
" हे जीजू, मेरी सहेली के पैरो के बीच क्या ढूंड रहे है. "
" अरे तुम्हे नही मालूम, आपकी सहेली के पैरो के बीच मे जन्नत है, कहिए तो आप के पैरो के बीच भी ढूंड दू. "
वो बेचारी शरमा गयी. पायल ढूंड के, मेरे लाख ना नुकुर करने के बाद भी घुटनो के बल बैठ उन्होने उसे मेरे पाओ मे बाँध दी. और मेरी सहेली ने उनकी ऐसे करते फोटो खींच ली.
कुछ लड़खड़ाने के कारण और कुछ झुकने की कोशिश मेरे पैर मे मोच तो नही आई थी पर एक टीस सी हो रही थी. मैं क्या कहती लेकिन जैसे उन्होने बिना मेरे कुछ बोले मेरी बात सुन लेने क़ी कला सीख ली थी. गुड्डी से उन्होने मेरे लिए एक कुर्सी लाने को कहा और मेरे मना करने पे भी, मुझे उस पे बैठा दिया. कुछ लोग मिलने आए तो मेरे पीछे खड़े हो के उन्होने मेरे कंधे दबा के इशारा किया कि मैं बैठी ही रही हू. कुछ देर मे मिलने वाले लगभग ख़तम हो गये और भीड़ भी कम होने लगी थी.
जो बचे खुचे लोग तो वो फुड स्टालों की ओर ही थे. हम दोनो अकेले थे. तब तक वहाँ अश्विनी, मेरे नेंदोई, और उनके साथ, रजनी, गुड्डी, अंजलि, मेरी मझली ननद, रवि और कुछ ननदे आई. अंजलि और मझली ननद बोली, अश्विन जीजा और हम लोग भाभी को जॉइंट गिफ्ट देने आए है. मेने वो गिफ्ट अश्विनी, रवि, अंजलि और ननदो के हाथ से ले लिया.
तब तक इन्हे किसी ने बुला लिया.
अंजलि बोली, " भाभी, खोल के दिखाइए ना. " तो मेरी मझली ननद बोली, " क्या यही सबके सामने खुलावाएगी. " मुझे लगा कुछ गड़बड़ है. मैं भी अब बोलने लगी थी. मेने कहा "जो गिफ्ट दे रहा है वही खोले. "
अश्विनी तुरंत तैयार होके बोले "अगर सलहज खोलने को कहे और नेन्दोयि ना खोले"
और गिफ्ट खोलने लगे. अब मुझे अहसास हुआ कि, वो किस लिमिट तक जा सकते है और मेने मूह खोल के कितनी ग़लती की. वो बड़े धीमे धीमे गिफ्ट रॅप पॅकेट खोल रहे थे.
कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
मेरी एक ननद ने उन्हे चिढ़ाया, अरे जीजू आप तो इतने सम्हाल के खोल रहे हैं जैसे भाभी की गिफ्ट नही उनका लहंगा खोल रहे है.
सब हंस पड़े. तब तक मेरी जेठानी और एक दो और औरते खाने के लिए बोलने के लिए आ गयी थी.
पॅकेट मे 1 दर्जन कॉंडम के पॅकेट, वैसलीन की एक शीशी, एक लेसी ब्रा और पैंटी तथा एक बच्चे के लिए चूसने के लिए निपल था. सब खूब ज़ोर से हंस पड़े और मैं भी मुस्कराने लगी.
अंजलि ने पूछा, " क्यो भाभी पसंद आया, सब ज़रूरत की चीज़े है ना. "
" देखो, " कॉंडम की ओर इशारा करके मैं बोली, ये तो तुम्हारे भैया के काम की चीज़ है. तुम अपने हाथ से उनके हाथ मे दे के पूच्छ लो. हाँ मैं ये ज़रूर कह सकती हू कि कल सब लोग कह रहे थे ना कि तुम्हे उल्टिया आ रही थी, कुछ गड़बड़ हो गयी है. तो अगली बार इन्हे तुम इस्तेमाल कर सकती हो. मज़े का मज़ा और उल्तियो से भी बचत.
जहाँ तक ब्रा का सवाल है ये मेरी साइज़ से बहुत छोटी है. लगता है, अश्विनी नेंदोई जी को तुम्हारी नाप याद रही होगी. " मेरी जेठानी ने मेरी पीठ ठोकी कि मेने सही जवाब दिया. लेकिन वही मैं ग़लती कर बैठी. मेने ततैया के छत्ते को छेड़ दिया.
अश्विनी नेंदोई जी को छेड़ के, मैं गिफ्ट पॅक मे रखे निपल की ओर इशारा कर के बोली,
" और मुझ ये नही मालूम था कि अभी भी आप" मेरी बात पूरी करते वो मुस्करा के बोले,
" क्या कि मैं अभी भी निपुल चूसता हू यही ना. वास्तव मे मुझे निपल चूसना बहुत अच्छा लगता है तो क्या मेरे साले ने अभी तक आपकी नही. चलिए कोई बात नही,
वो कमी मैं पूरी कर दूँगा. तो बोलिए यही या घर चल के. और ये मैं गारंटी देता हू कि अगर एक बार आपने चुसवा लिया ने तोफिर कभी मना नही करेंगी" कॉरसेट से मेरे छलकते उभारो की ओर घुरते हुए वो मुस्काराकार बोले. और फिर तो सब के ठहाके गूँज गये.
ये रसीले मज़ाक मुझे भी अच्छे लगते थे. लेकिन मैं समझ गई कि मुझे अश्विनी को अपनी टीम मे शामिल करना पड़ेगा अगर ननदो को छकाना है तो. थोड़ी देर मे ये भी आ गये और हम सब खाने के लिए उठ गये.
खाने के समय भी मेरे ननदोयि चालू रहे लेकिन उनका एक हाथ अभी भी रजनी के कंधे पे थे. उसी बीच मेने अपना संधी प्रस्ताव पेश किया और वो तुरंत मान गये. फिर तो हम लोगो ने मिल के अंजलि और बाकी ननदो को.
दस बजते बजते हम लोग घर लौट आए. 'वो'तो तुरंत उपर चले गये कमरे मे और मैं अपनी सास का पैर छूने के लिए रुक गयी. काई लोगो ने उनसे कहा कि रिसेप्षन मे जो लोग भी आए थे, सब उनकी बहू की तारीफ़ कर रहे थे. और एक दो ने तो ये भी बोल दिया कि आज इसे नज़र ज़रूर लगी होगी. मेरी सास का तो सीना फूल के चौड़ा हो गया.
उन्होने तुरंत राई नोन मंगाई नज़र उतारने के लिए. और जब तक मेरी नज़र सासू जी उतार रही थी, दुलारी को मौका मिल गया. उसने मेरे पैरो मे खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर रच दिया. 10*15 मिनेट मे मेरी जेठानी जी मुझे पहुँचाने उपर आई. रास्ते मे मेने उनसे पूछा कि कल सुबह कितने बजेतो वो हंस के बोली, जितने बजे तुम चाहो, फिर उन्होने कहा कि साढ़े आठ के आस पास मेरी ननद कोई आ जाएगी मुझे लेने.
उन्होने ये भी कहा कि कल चूल्हा छूने की रसम होगी दिन मे और शाम को गाने गाने की. उन्होने जोड़ा कि शादी मे तुम्हारे यहा मुझे अंदाज लगा कि तुम्हे भी तो 'अच्छे वाले गाने ' अच्छी तरह आते होंगे तो कल ज़रा अपनी ननदो को सुना देना कस के. हाँ दूध, पान सब रख दिया है, सबसे पहले उनको दूध पीला देना, ये कह के वो वो कमरे के बाहर से ही चली गयी. अंदर घुस के मेने तुरंत दरवाजा बंद किया.
कमरा आज भी कल की तरह सज़ा था. फ़र्क सिर्फ़ ये था कि आज गुलाब की जगह चाँदनी और चमेली के फूल थे. उनकी लड़ियो से चारो ओर.. और बिस्तर पे भी चमेली और बेला के फुलो की पंखुड़िया साथ की साइड टेबल पे उसी तरह चाँदी की ग्लास मे दूध, तश्तरी मे चाँदी के बर्क मे पान और दूसरी तश्तरी मे मिठाइया. सिर्फ़ कल की तरह साइड मे ज़मीन पे बिस्तर नही था.
ये पहले से ही चेंज करके कुर्ते पाजामे मे बैठे थे. इन्होने मुझे स्टूल पे बैठने का इशारा किया और बोले कि अपने पैर इसमे डाल दो. गुनेगुने पानी और नेमक के साथ उसमे लगता है, और कुछ पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरे पैरो की सारी थकान और दर्द ( जो पैर मुड़ने, इतनी देर खड़े रहने और हाइ हील के चक्कर मे हो रहा था. ) गायब हो गया. फिर वो भी मेरे पैरो के पास बैठ के, एडी के उपर से घुटने तक दबाने लगे. बड़े ज़ोर से मना करते हुए मैं बोली,
" हे आप क्या करते है, मुझे कितने पाप पड़ेगा, मेरे पैर छू रहे है आप. " "और मेने पैर खींचने की कोशिश की. और जब मैं तुम्हारा पैर पकड़ के 'उस समय'कंधे पेरखता हू तो उस समय पाप नही लगता. दबाने दो, ये देह अब तेरी नही मेरी है और मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगा. " दबाते हुए, हंस के वो बोले.
उन्हे लगता है मेरी देह के सारे प्रेशर पायंट्स पता थे. क्षॅन भर मे सारा दर्द घुल के निकल गया. अब मुझे दूसरी चिंता सता रह थी, कॉरसेट के खोलने की. पहनेते समय तो गुड्डी थी परवो काम भी उन्ही से करवाया. पूरे समय गुनेगुने पानी मे पैर डाल के बैठी रही. जब मैं चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे पहुँची थी तक तक सारा दर्द छू मंतर हो गया था.
सब हंस पड़े. तब तक मेरी जेठानी और एक दो और औरते खाने के लिए बोलने के लिए आ गयी थी.
पॅकेट मे 1 दर्जन कॉंडम के पॅकेट, वैसलीन की एक शीशी, एक लेसी ब्रा और पैंटी तथा एक बच्चे के लिए चूसने के लिए निपल था. सब खूब ज़ोर से हंस पड़े और मैं भी मुस्कराने लगी.
अंजलि ने पूछा, " क्यो भाभी पसंद आया, सब ज़रूरत की चीज़े है ना. "
" देखो, " कॉंडम की ओर इशारा करके मैं बोली, ये तो तुम्हारे भैया के काम की चीज़ है. तुम अपने हाथ से उनके हाथ मे दे के पूच्छ लो. हाँ मैं ये ज़रूर कह सकती हू कि कल सब लोग कह रहे थे ना कि तुम्हे उल्टिया आ रही थी, कुछ गड़बड़ हो गयी है. तो अगली बार इन्हे तुम इस्तेमाल कर सकती हो. मज़े का मज़ा और उल्तियो से भी बचत.
जहाँ तक ब्रा का सवाल है ये मेरी साइज़ से बहुत छोटी है. लगता है, अश्विनी नेंदोई जी को तुम्हारी नाप याद रही होगी. " मेरी जेठानी ने मेरी पीठ ठोकी कि मेने सही जवाब दिया. लेकिन वही मैं ग़लती कर बैठी. मेने ततैया के छत्ते को छेड़ दिया.
अश्विनी नेंदोई जी को छेड़ के, मैं गिफ्ट पॅक मे रखे निपल की ओर इशारा कर के बोली,
" और मुझ ये नही मालूम था कि अभी भी आप" मेरी बात पूरी करते वो मुस्करा के बोले,
" क्या कि मैं अभी भी निपुल चूसता हू यही ना. वास्तव मे मुझे निपल चूसना बहुत अच्छा लगता है तो क्या मेरे साले ने अभी तक आपकी नही. चलिए कोई बात नही,
वो कमी मैं पूरी कर दूँगा. तो बोलिए यही या घर चल के. और ये मैं गारंटी देता हू कि अगर एक बार आपने चुसवा लिया ने तोफिर कभी मना नही करेंगी" कॉरसेट से मेरे छलकते उभारो की ओर घुरते हुए वो मुस्काराकार बोले. और फिर तो सब के ठहाके गूँज गये.
ये रसीले मज़ाक मुझे भी अच्छे लगते थे. लेकिन मैं समझ गई कि मुझे अश्विनी को अपनी टीम मे शामिल करना पड़ेगा अगर ननदो को छकाना है तो. थोड़ी देर मे ये भी आ गये और हम सब खाने के लिए उठ गये.
खाने के समय भी मेरे ननदोयि चालू रहे लेकिन उनका एक हाथ अभी भी रजनी के कंधे पे थे. उसी बीच मेने अपना संधी प्रस्ताव पेश किया और वो तुरंत मान गये. फिर तो हम लोगो ने मिल के अंजलि और बाकी ननदो को.
दस बजते बजते हम लोग घर लौट आए. 'वो'तो तुरंत उपर चले गये कमरे मे और मैं अपनी सास का पैर छूने के लिए रुक गयी. काई लोगो ने उनसे कहा कि रिसेप्षन मे जो लोग भी आए थे, सब उनकी बहू की तारीफ़ कर रहे थे. और एक दो ने तो ये भी बोल दिया कि आज इसे नज़र ज़रूर लगी होगी. मेरी सास का तो सीना फूल के चौड़ा हो गया.
उन्होने तुरंत राई नोन मंगाई नज़र उतारने के लिए. और जब तक मेरी नज़र सासू जी उतार रही थी, दुलारी को मौका मिल गया. उसने मेरे पैरो मे खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर रच दिया. 10*15 मिनेट मे मेरी जेठानी जी मुझे पहुँचाने उपर आई. रास्ते मे मेने उनसे पूछा कि कल सुबह कितने बजेतो वो हंस के बोली, जितने बजे तुम चाहो, फिर उन्होने कहा कि साढ़े आठ के आस पास मेरी ननद कोई आ जाएगी मुझे लेने.
उन्होने ये भी कहा कि कल चूल्हा छूने की रसम होगी दिन मे और शाम को गाने गाने की. उन्होने जोड़ा कि शादी मे तुम्हारे यहा मुझे अंदाज लगा कि तुम्हे भी तो 'अच्छे वाले गाने ' अच्छी तरह आते होंगे तो कल ज़रा अपनी ननदो को सुना देना कस के. हाँ दूध, पान सब रख दिया है, सबसे पहले उनको दूध पीला देना, ये कह के वो वो कमरे के बाहर से ही चली गयी. अंदर घुस के मेने तुरंत दरवाजा बंद किया.
कमरा आज भी कल की तरह सज़ा था. फ़र्क सिर्फ़ ये था कि आज गुलाब की जगह चाँदनी और चमेली के फूल थे. उनकी लड़ियो से चारो ओर.. और बिस्तर पे भी चमेली और बेला के फुलो की पंखुड़िया साथ की साइड टेबल पे उसी तरह चाँदी की ग्लास मे दूध, तश्तरी मे चाँदी के बर्क मे पान और दूसरी तश्तरी मे मिठाइया. सिर्फ़ कल की तरह साइड मे ज़मीन पे बिस्तर नही था.
ये पहले से ही चेंज करके कुर्ते पाजामे मे बैठे थे. इन्होने मुझे स्टूल पे बैठने का इशारा किया और बोले कि अपने पैर इसमे डाल दो. गुनेगुने पानी और नेमक के साथ उसमे लगता है, और कुछ पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरे पैरो की सारी थकान और दर्द ( जो पैर मुड़ने, इतनी देर खड़े रहने और हाइ हील के चक्कर मे हो रहा था. ) गायब हो गया. फिर वो भी मेरे पैरो के पास बैठ के, एडी के उपर से घुटने तक दबाने लगे. बड़े ज़ोर से मना करते हुए मैं बोली,
" हे आप क्या करते है, मुझे कितने पाप पड़ेगा, मेरे पैर छू रहे है आप. " "और मेने पैर खींचने की कोशिश की. और जब मैं तुम्हारा पैर पकड़ के 'उस समय'कंधे पेरखता हू तो उस समय पाप नही लगता. दबाने दो, ये देह अब तेरी नही मेरी है और मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगा. " दबाते हुए, हंस के वो बोले.
उन्हे लगता है मेरी देह के सारे प्रेशर पायंट्स पता थे. क्षॅन भर मे सारा दर्द घुल के निकल गया. अब मुझे दूसरी चिंता सता रह थी, कॉरसेट के खोलने की. पहनेते समय तो गुड्डी थी परवो काम भी उन्ही से करवाया. पूरे समय गुनेगुने पानी मे पैर डाल के बैठी रही. जब मैं चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे पहुँची थी तक तक सारा दर्द छू मंतर हो गया था.
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
चेंज करते समय मैं सोच रही थी, शाम के बारे मेकैसे वो सारे समय मेरे साथ थे और फिर झुक के मेरी पायल पहनाई, मेरे लिए कुर्सी म्मगवाई और फिर. . अब ये.. सो कियरिन्ग. मैं सोच रही थी कि मैं क्या कर सकती हू, और फिर मेने सोच लिया उनकी चीज़ उनको देने मे क्या शरम आज मेने तय किया कि और फिर मेने अपने सारा मेक अप उतार दिया, भारी गहने भी और बाल भी खोल दिए. अब मैं एक दम रिलेक्स महसूस कर रही थी. एक सेक्सी सी ऑलमोस्ट ट्रॅन्स्परेंट सिल्क, स्लिव लेस लो काट नाइटी जो भाभी ने दिल्ली मे खरीदी थी, मेने निकाली और साथ मे मैनचिंग, शियर, लेसी हाफ़ कप ब्रा और एक ठग लेसी पैंटी. पैंटी का पिछला हिस्सा तो मेने अपने नितंबो के बीच मे और आगे का भाग भी बेस्ब्रा सिर्फ़ नीचे से सपोर्ट कर रही, बल्कि और उभार रही थी. जब मेने शीशे मे देखा तो मन किया कि उनके सामने जा के बोल दूँगी, एक ट्वर्ल कर के, बोलो राजा मैं कैसी लगती हू.
लिपस्टिक और काजल को ज़रा और फ्रेश कर मैं बाहर निकली.
वो बेचारे उतावले, बेसबर जैसे ही मैं बैठी (बैठने का मतलब उनकी गोद मे ये मेने पहले दिन ही समझ लिया था) आज मेने कल की ग़लती नही की. चाँदी का दूध से भरा ग्लास उठा के.. पहले उनकी ओर बढ़ा के जैसे ही उन्होने मूह आगे बढ़ाया, मेने ग्लास पीछे खींच लिया और उसे अपने गुलाबी गालो से लगा के सहलाने लगी. फिर उन्हे दिखा के अपने होंठो से लगा के सीप कर लिया. और फिर ग्लास जो हटाया तो उन्हे दिखा के ग्लास पे चार पाँच बार किस कर लिया. जब ग्लास मेने उनके होंठो पे लगाया तो,
ठीक वही जहाँ मेरे होंठ लगे थे और गुलाबी लिपस्टिक के गाढ़े गाढ़े निशान थे. उनके तो दोनो हाथ 'व्यस्त' थे, एक मेरी पतली कमर पे और दूसरा नाइटी के अंदर से झलकते, ललचते मेरे उरोजो पे. और जब उनके पीने के बाद मेने पिया तो, उनके होंठ दूध के साथ मेरे अधर रस पीने को ज़्यादा व्याकुल थे. किसकी हिम्मत थी, जो 'किस' को मना करे. जब तक मेरे अधर उनके अधरो के बीच उलझे थे, मेरे हाथ ग्लास को बड़े साजेस्टिवली मेरे दोनो उभारो के बीच 'रोल'कर रहे थे. जब तक दूध ख़तम हुआ, हम दोनो की हालत खराब थी. कुछ दूध का असर, हम दोनो एक दम ताजदम हो गये थे. और कुछ छेड़खानी का असर, और उन पर असर तो मैं सॉफ साफ महसूस कर रही थी. उनका'वो' पूरी तरह उत्थित हो के मेरे नितंबो के नीचे से, इतने बेताब कि लग रहा था उनके पाजामे और मेरी नाइटी को फाड़ कर सीधे अंदर. मैं भी कम नही थी आँखे मुदि जा रही थी, सिर्फ़ उनकी उंगलियो की छुअन से मेरे उरोज पत्थर हो रहे थे.
जब उन्होने अपनी बाहो मे पकड़ के मुझे बिस्तर पे लिटाया तो नाइटी कमर तक सरक चुकी थी. मेने इशारे से बेड लाइट बंद करने को कहा, लेकिन उससे कोई खास फरक नही पड़ा. आज पूनो की रात थी और खिड़की पूरी तरह से खुली. छितकी चाँदनी से मेरा, पूरा बदन नहाया था. उनके होंठो ने मेरे लजाए, कजरारे नेनो से,
थोड़े से सपने चुराए, कुछ मिठास मेरे रसीले होंठो से ली और यौवन शिखरो पे चढ़ने के पहले, दम लेने के लिए घाटी मे बैठ गये. छोटे छोटे पग भरते,
उनके रस के प्यासे होंठ मेरे रस कलशो को छूते, उनका रस ढलकते धीरे धीरे पहुँच गये शिखर पे. अधीर उंगलियो ने पहले ही ब्रा के हल्के से पर्दे को थोड़ा खिसका दिया था. उनके होंठो ने पहले हल्के से छुआ, सहलाया, चूमा और फिर एक दम से गप्प से भर लिया, जैसे ना जाने कब के प्यासे हो. मेरे रस के प्याले छलकते रहे और वो पीता रहा. छक के पी के मेरे पिया के चुंबनो ने देह यात्रा शुरू की.
उरोजो की परिक्रमा कर, नीचे उतर कर सीधे, थोड़ी देर वो मेरी नेभी कूप मे सुस्ताये और फिर, मेरी पैंटी के किनारे किनारे उसकी जीभ ने जैसे लाइन खींच दी हो और फिर सीधे पैंटी के उपर से ही एक खूब तगड़ा सा चुंबन.. लेकिन जैसे कोई यात्री बहुत लालच के भी कही रुक ना पड़े, वो आगे बढ़ गये. मेरी रसीली कदली स्तम्भ सी चिकनी सरस जाँघो का रस लेते, उस पर फिसलते सीधे मेरे पैरो तक. मुझे डर था कि मेरे जिन पैरो को छूने से उन्हे पाप लगेगा, उन पाओ को तलुओ, को.. इतने चुंबन लिए कि मुझे लगा अब इन पाओ को मैं अब कभी ज़मीन पे नही रख पाउन्गि.
लिपस्टिक और काजल को ज़रा और फ्रेश कर मैं बाहर निकली.
वो बेचारे उतावले, बेसबर जैसे ही मैं बैठी (बैठने का मतलब उनकी गोद मे ये मेने पहले दिन ही समझ लिया था) आज मेने कल की ग़लती नही की. चाँदी का दूध से भरा ग्लास उठा के.. पहले उनकी ओर बढ़ा के जैसे ही उन्होने मूह आगे बढ़ाया, मेने ग्लास पीछे खींच लिया और उसे अपने गुलाबी गालो से लगा के सहलाने लगी. फिर उन्हे दिखा के अपने होंठो से लगा के सीप कर लिया. और फिर ग्लास जो हटाया तो उन्हे दिखा के ग्लास पे चार पाँच बार किस कर लिया. जब ग्लास मेने उनके होंठो पे लगाया तो,
ठीक वही जहाँ मेरे होंठ लगे थे और गुलाबी लिपस्टिक के गाढ़े गाढ़े निशान थे. उनके तो दोनो हाथ 'व्यस्त' थे, एक मेरी पतली कमर पे और दूसरा नाइटी के अंदर से झलकते, ललचते मेरे उरोजो पे. और जब उनके पीने के बाद मेने पिया तो, उनके होंठ दूध के साथ मेरे अधर रस पीने को ज़्यादा व्याकुल थे. किसकी हिम्मत थी, जो 'किस' को मना करे. जब तक मेरे अधर उनके अधरो के बीच उलझे थे, मेरे हाथ ग्लास को बड़े साजेस्टिवली मेरे दोनो उभारो के बीच 'रोल'कर रहे थे. जब तक दूध ख़तम हुआ, हम दोनो की हालत खराब थी. कुछ दूध का असर, हम दोनो एक दम ताजदम हो गये थे. और कुछ छेड़खानी का असर, और उन पर असर तो मैं सॉफ साफ महसूस कर रही थी. उनका'वो' पूरी तरह उत्थित हो के मेरे नितंबो के नीचे से, इतने बेताब कि लग रहा था उनके पाजामे और मेरी नाइटी को फाड़ कर सीधे अंदर. मैं भी कम नही थी आँखे मुदि जा रही थी, सिर्फ़ उनकी उंगलियो की छुअन से मेरे उरोज पत्थर हो रहे थे.
जब उन्होने अपनी बाहो मे पकड़ के मुझे बिस्तर पे लिटाया तो नाइटी कमर तक सरक चुकी थी. मेने इशारे से बेड लाइट बंद करने को कहा, लेकिन उससे कोई खास फरक नही पड़ा. आज पूनो की रात थी और खिड़की पूरी तरह से खुली. छितकी चाँदनी से मेरा, पूरा बदन नहाया था. उनके होंठो ने मेरे लजाए, कजरारे नेनो से,
थोड़े से सपने चुराए, कुछ मिठास मेरे रसीले होंठो से ली और यौवन शिखरो पे चढ़ने के पहले, दम लेने के लिए घाटी मे बैठ गये. छोटे छोटे पग भरते,
उनके रस के प्यासे होंठ मेरे रस कलशो को छूते, उनका रस ढलकते धीरे धीरे पहुँच गये शिखर पे. अधीर उंगलियो ने पहले ही ब्रा के हल्के से पर्दे को थोड़ा खिसका दिया था. उनके होंठो ने पहले हल्के से छुआ, सहलाया, चूमा और फिर एक दम से गप्प से भर लिया, जैसे ना जाने कब के प्यासे हो. मेरे रस के प्याले छलकते रहे और वो पीता रहा. छक के पी के मेरे पिया के चुंबनो ने देह यात्रा शुरू की.
उरोजो की परिक्रमा कर, नीचे उतर कर सीधे, थोड़ी देर वो मेरी नेभी कूप मे सुस्ताये और फिर, मेरी पैंटी के किनारे किनारे उसकी जीभ ने जैसे लाइन खींच दी हो और फिर सीधे पैंटी के उपर से ही एक खूब तगड़ा सा चुंबन.. लेकिन जैसे कोई यात्री बहुत लालच के भी कही रुक ना पड़े, वो आगे बढ़ गये. मेरी रसीली कदली स्तम्भ सी चिकनी सरस जाँघो का रस लेते, उस पर फिसलते सीधे मेरे पैरो तक. मुझे डर था कि मेरे जिन पैरो को छूने से उन्हे पाप लगेगा, उन पाओ को तलुओ, को.. इतने चुंबन लिए कि मुझे लगा अब इन पाओ को मैं अब कभी ज़मीन पे नही रख पाउन्गि.