जवानी की दहलीज compleet

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007
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Re: जवानी की दहलीज

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:48

जवानी की दहलीज-3

उसने दाहिना पांव करने के बाद मेरा दुपट्टा उस पांव पर बाँध दिया और घुटने पर दोबारा एक गरम तौलिया रख दिया। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। अब वह उठा और उसने मेरे दोनों पांव बिस्तर पर रख दिए और उनको एक चादर से ढक दिया। भोंपू अपनी कुर्सी खींच कर मेरे सिरहाने पर ले आया, वहाँ बैठ कर उसने मेरा सर एक और तकिया लगा कर ऊँचा किया और मेरे सर की मालिश करने लगा। मुझे इसकी कतई उम्मीद नहीं थी। उसकी उँगलियाँ मेरे बालों में घूमने लगीं और धीरे धीरे उसने अपना हुनर मेरे माथे और कपाल पर दिखाना शुरू किया। वह तो वाकई में उस्ताद था। उसे जैसे मेरी नस नस से वाकफियत थी। कहाँ दबाना है... कितना ज़ोर देना है... कितनी देर तक दबाना है... सब आता है इसको।

मैं बस मज़े ले रही थी... उसने गर्दन के पीछे... कान के पास... आँखों के बीच... ऐसी ऐसी जगहों पर दबाव डाला कि ज़रा ही देर में मेरा सर हल्का लगने लगा और सारा तनाव जाता रहा। अब वह मेरे गालों, ठोड़ी और सामने की गर्दन पर ध्यान देने लगा। मेरी आँखें बंद थीं... मैंने चोरी से एक आँख खोल कर उसे देखना चाहा... देखा वह अपने काम में तल्लीन था... उसकी आँखें भी बंद थीं। मुझे ताज्जुब भी हुआ और उस पर गर्व भी... मैंने भी अपनी आँखें मूँद लीं।

अब उसके हाथ मेरे कन्धों पर चलने लगे थे। उसने मेरी गर्दन और कन्धों पर जितनी गांठें थीं सब मसल मसल कर निकाल दीं...

जहाँ जहाँ उसकी मालिश खत्म हो रही थी, वहां वहां मुझे एक नया हल्कापन और स्फूर्ति महसूस हो रही थी।

अचानक वह उठा और बोला,"मैं पानी पीने जा रहा हूँ... तुम ऊपर के कपड़े उतार कर उलटी लेट जाओ।"

मेरी जैसे निद्रा टूट गई... मैं तन्मय होकर मालिश का मज़ा ले रही थी... अचानक उसके जाने और इस हुक्म से मुझे अचम्भा सा हुआ। हालाँकि, अब मुझे भोंपू से थोड़ा बहुत लगाव होने लगा था और उसकी जादूई मालिश का आनन्द भी आने लगा था... पर उसके सामने ऊपर से नंगी होकर लेटना... कुछ अटपटा सा लग रहा था। फिर मैंने सोचा... अगर भोंपू को मेरे साथ कुछ ऐसा वैसा काम करना होता तो अब तक कर चुका होता... वह इतनी बढ़िया मालिश का सहारा नहीं लेता।

तो मैंने मन बना लिया... जो होगा सो देखा जायेगा... इस निश्चय के साथ मैंने अपने ऊपर के सारे कपड़े उतारे और औंधी लेट गई... लेट कर मैंने अपने ऊपर एक चादर ले ली और अपने हाथ अपने शरीर के साथ समेट लिए... मतलब मेरे बाजू मेरे बदन के साथ लगे थे और मेरे हाथ मेरे स्तन के पास रखे थे। मैं थोड़ा घबराई हुई थी... उत्सुक थी कि आगे क्या होगा... और मन में हलचल हो रही थी।

इतने में ही भोंपू वापस आ गया। वह बिना कुछ कहे बिस्तर पर चढ़ गया और जैसे घोड़ी पर सवार होते हैं, मेरे कूल्हे के दोनों ओर अपने घुटने रख कर मेरे कूल्हे पर अपने चूतड़ रखकर बैठ गया। उसका वज़न पड़ते ही मेरे मुँह से आह निकली और मैं उठने को हुई तो उसने अपना वज़न अपने घुटनों पर ले लिया... साथ ही मेरे कन्धों को हाथ से दबाते हुए मुझे वापस उल्टा लिटा दिया।

अब उसने मेरे ऊपर पड़ी हुई चादर मेरी कमर तक उघाड़ दी और उसे अपने घुटनों के नीचे दबा दिया। मैं डरे हुए खरगोश की तरह अपने आप में सिमटने लगी।

"अरे डरती क्यों है... तेरी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं करूँगा, ठीक है?"

मैंने अपना सर हामी में हिलाया।

"आगे का इलाज कराना है?" उसने इलाज शब्द पर नाटकीय ज़ोर देते हुए पूछा।

मैंने फिर से सर हिला दिया।

"ऐसे नहीं... बोल कर बताओ..." उसने ज़ोर दिया।

"ठीक है... करवाना है" मैं बुदबुदाई।

"ठीक है... तो फिर आराम से लेटी रहो और मुझे अपना काम करने दो।" कहते हुए उसने मेरे दोनों हाथ मेरी बगल से दूर करते हुए ऊपर कर दिए। मुझे लगा मेरे स्तनों का कुछ हिस्सा मेरी बगल की दोनों ओर से झलक रहा होगा। मुझे शर्म आने लगी और मैंने आँखें बंद कर लीं।

उसने अपने हाथ रगड़ कर गरम किये और मेरे कन्धों और गर्दन को मसलना शुरू किया। मेरा शरीर तना हुआ था।

"अरे... इतनी टाईट क्यों हो रही हो... अपने आप को ढीला छोड़ो !" भोंपू ने मेरे कन्धों पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा।

मैंने अपने आप को ढीला छोड़ने की कोशिश की।

"हाँ... ऐसे... अब आराम से लेट कर मज़े लो !"

उसके बड़े और बलिष्ठ हाथ मेरी पीठ, कन्धों और बगल पर चलने लगे। उसका शरीर एक लय में आगे पीछे होकर उसके हाथों पर वज़न डाल रहा था। वैसे तो उसने अपना वज़न अपने घुटनों पर ले रखा था पर उसके ढूंगे मेरे नितम्बों पर लगे हुए थे... जब वह आगे जाते हुए ज़ोर लगा कर मेरी पीठ को दबाता था तो मेरे अंदर से ऊऊह निकल जाती... और जब पीठ पर उँगलियों के जोर से पीछे की ओर आता तो मेरी आह निकल जाती। मतलब वह लय में मालिश कर रहा था और मैं उसी लय में ऊऊह–आह कर रही थी...

अब उसने कुछ नया किया... अपने दोनों हाथ फैला कर मेरे कन्धों पर रखे और अपने दोनों अंगूठे मेरी रीढ़ की हड्डी की दरार पर रख कर उसने अंगूठों से दबा दबा कर ऊपर से नीचे आना शुरू किया... ऐसा करते वक्त उसकी फैली हुई उँगलियाँ मेरे बगल को गुदगुदा सी रही थीं। वह अपने अंगूठों को मेरी रीढ़ की हड्डी के बिलकुल नीचे तक ले आया और वहाँ थोड़ा रुक कर वापस ऊपर को जाने लगा।थोड़ा ऊपर जाने के बाद उसकी उँगलियों के सिरे मेरे पिचके हुए स्तनों के बाहर निकले हिस्सों को छूने लगे। मुझे बहुत गुदगुदी हुई। मैं सिहर गई और सहसा उठने लगी... उसने मुझे दबा कर फिर से लिटा दिया। वह मेरे शरीर पर अपना पूरा अधिकार सा जता रहा था... मुझे बहुत अच्छा लगा।

अब उसने अपनी दोनों हथेलियाँ जोड़ कर उँगलियाँ फैला दीं और मेरी पीठ पर जगह जगह छोटी उंगली की ओर से मारना शुरू किया। पहले छोटी उँगलियाँ लगतीं और फिर बाकी उँगलियाँ उनसे मिल जातीं... ऐसा होने पर दड़ब दड़ब आवाज़ भी आती... उसने ऐसे ही वार मेरे सर पर भी किये।

बड़ा अच्छा लग रहा था। फिर अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ बना कर मेरी पीठ पर इधर-उधर मारने लगा... कभी हल्के तो कभी ज़रा ज़ोर से। इसमें भी मुझे मजा आ रहा था। अब जो उसने किया इसका मुझे बिल्कुल अंदेशा नहीं था। वह आगे को झुका और अपने होटों से उसने मेरी गर्दन से लेकर बीच कमर तक रीढ़ की हड्डी पर पुच्चियाँ की कतार बना दी।

मैं भौचक्की हो गई पर बहुत अच्छा भी लगा।

"ओके, अब सीधी हो जाओ।" कह कर वह मेरे कूल्हों पर से उठ गया।

"ऊंह... ना !" मैंने इठलाते हुए कहा।

"क्यों?... क्या हुआ?"

"मुझे शर्म आती है।"

"मतलब तुम्हें बाकी इलाज नहीं करवाना?"

"करवाना तो है पर..."

"पर क्या?"

"तुम्हें आँखें बंद करनी होंगी।"

"ठीक है... पर मेरी भी एक शर्त है !!"

"क्या?"

"मैं आँखें बंद करके तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करूँगा... मंज़ूर है?"

"ठीक है।"

"पूरे बदन का मतलब समझती हो ना? बाद में मत लड़ना... हाँ?"

"हाँ बाबा... समझ गई।" मेरे मन में खुशी की लहर दौड़ गई पर मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"तो ठीक है... मैं तुम्हारे दुपट्टे को अपनी आँखों पर बाँध लेता हूँ।" और मैंने देखा वह बिस्तर के पास खड़ा हो कर दुपट्टा अपनी आँखों पर बाँध रहा था।

"हाँ... तो मैंने आँखों पर पट्टी बाँध ली है... अब तुम पलट जाओ।"


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Re: जवानी की दहलीज

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:50

मैंने यकीन किया कि उसकी आँखें बंधी हैं और मैं पलट गई। वह अपने हाथ आगे फैलाते हुए हुआ बिस्तर के किनारे तक आया। उसके घुटने बिस्तर को लगते ही उसने अपने हाथ नीचे किये और मुझे टटोलने लगा। मुझे उसे देख देखकर ही गुदगुदी होने लगी थी। उसका एक हाथ मेरी कलाई और एक मेरे पेट को लगा। पेट वाले हाथ को वह रेंगा कर नीचे ले गया और मेरे घाघरे के नाड़े को टटोलने लगा। मेरी गुदगुदी और कौतूहल का कोई ठिकाना नहीं था। मैं इधर उधर हिलने लगी। मैं नाड़े के किनारों को घाघरे के अंदर डाल कर रखती हूँ... उसकी उँगलियों को नाड़े की बाहरी गाँठ तो मिल गई पर नाड़े का सिरा नहीं मिला... तो उसने अपनी उँगलियाँ घाघरे के अंदर डालने की कोशिश की।

"ये क्या कर रहे हो?" मैंने अपना पेट अकड़ाते हुए पूछा।

"तुम मेरी शर्त भूल गई?"

"मुझे अच्छी तरह याद है... तुम बंद आँखों से मेरे पूरे बदन पर मालिश करोगे।"

"तो करने दो ना..."

"इसके लिए कपड़े उतारने पड़ेंगे?" मैंने वास्तविक अचरज में पूछा।

"और नहीं तो क्या... मालिश कपड़ों की थोड़े ही करना है... अब अपनी बात से मत पलटो।" कहते हुए उसने घाघरे में उँगलियाँ डाल दी और नाड़ा खोलने लगा। मेरी गुदगुदी और तीव्र हो गई... मैं कसमसाने लगी। भोंपू भी मज़े ले ले कर घाघरे का नाड़ खोलने लगा...उसकी चंचल उँगलियाँ मेरे निचले पेट पर कुछ ज्यादा ही मचल रही थीं। हम दोनों उत्तेजित से हो रहे थे... मुझे अपनी योनि में तरावट महसूस होने लगी।

"तुम बहुत गंदे हो !" कहकर मैं निढाल हो गई। उसकी उँगलियों का खेल मेरे पेट पर गज़ब ढा रहा था। उसने मेरे घाघरे के अंदर पूरा हाथ घुसा ही दिया और नाड़ा बाहर निकाल कर खोल दिया। नाड़ा खुलते ही उसने एक हाथ मेरे कूल्हे के नीचे डाल कर उसे ऊपर उठा दिया और दूसरे हाथ से मेरा घाघरा नीचे खींच दिया और मेरी टांगों से अलग कर दिया। मुझे बहुत शर्म आ रही थी... मेरी टांगें अपने आप ज़ोर से जुड़ गई थीं... मेरे हाथ मेरी चड्डी पर आ गए थे और मैंने घुटने मोड़ कर अपनी छाती से लगा लिए। भोंपू ने घाघरा एक तरफ करके जब मुझे टटोला तो उसे मेरी नई आकृति मिली। वह बिस्तर पर चढ़ गया और उसने बड़े धीरज और अधिकार से मुझे वापस औंधा लिटा दिया। वह भी वापस से मुझ पर 'सवार' हो गया और अपने हाथों को पोला करके मेरी पीठ पर फिराने लगा। मेरे रोंगटे खड़े होने लगे। अब उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर चलाने शुरू किये... पूरी पीठ को खुरचा और फिर पोली हथेलियों से सहलाने लगा। मुझे बहुत आनन्द आ रहा था... योनि पुलकित हो रही थी और खुशी से तर हो चली थी।

अब वह थोड़ा नीचे सरक गया और अपनी मुठ्ठियों से मेरे चूतड़ों को गूंथने लगा। जैसे आटा गूंदते हैं उस प्रकार उसकी मुठ्ठियाँ मेरे कूल्हों और जाँघों पर चल रही थीं। थोड़ा गूंथने के बाद उसने अपनी पोली उँगलियाँ चलानी शुरू की और फिर नाखूनों से खुरचने लगा। मुझ पर कोई नशा सा छाने लगा... मेरी टांगें अपने आप थोड़ा खुल गईं। उसने आगे झुक कर मेरे चूतड़ों के दोनों गुम्बजों को चूम लिया और मेरी चड्डी की इलास्टिक को अपने दांतों में पकड़ कर नीचे खींचने लगा।

ऊ ऊ ऊ ऊह... भोंपू ये क्या कर रहा है? कितना गन्दा है? मैंने सोचा। उसकी गरम सांस मेरे चूतड़ों में लग रही थी। पर वह मुँह से चड्डी नीचे करने में सफल नहीं हो रहा था। चड्डी वापस वहीं आ जाती थी। पर वह मानने वाला नहीं था। उसने भी एक बार ज़ोर लगा कर चड्डी को एक चूतड़ के नीचे खींच लिया और झट से दूसरा हिस्सा मुँह में पकड़ कर दूसरे चूतड़ के नीचे खींच लिया। अपनी इस सफलता का इनाम उसने मेरे दोनों नग्न गुम्बजों को चूम कर लिया और फिर धीरे धीरे मेरी चड्डी को मुँह से खींच कर पूरा नीचे कर दिया। चड्डी को घुटनों तक लाने के बाद उसने अपने हाथों से उसे मेरी टांगों से मुक्त करा दिया।

हाय ! अब मैं पूरी तरह नंगी थी। शुक्र है उसकी आँखों पर पट्टी बंधी है।

भोंपू ने और कुछ देर मेरी जाँघों और चूतड़ों की मालिश की। उसकी उँगलियाँ और अंगूठे मेरी योनि के बहुत करीब जा जा कर मुझे छेड़ रहे थे। मेरे बदन में रोमांच का तूफ़ान आने लगा था। मेरी योनि धड़क रही थी... योनि को उसकी उँगलियों के स्पर्श की लालसा सी हो रही थी... वह मुझे सता क्यों रहा था? यह मुझे क्या हो रहा है? मेरे शरीर में ऐसी हूक कभी नहीं उठी थी... मुझे मेरी योनि द्रवित होने का अहसास हुआ... हाय मैं मर जाऊँ... भोंपू मेरे बारे में क्या सोचेगा ! मैंने अपनी टांगें भींच लीं।

भोंपू को शायद मेरी मनोस्थिति का आभास हो गया था... उसने आगे झुक कर मेरे सर और बालों में प्यार से हाथ फिराया और एक सांत्वना रूपी चपत मेरे कंधे पर लगाई... मानो मुझे भरोसा दिला रहा था।

मैंने अपने आप को संभाला... आखिर मुझे भी मज़ा आ रहा था... एक ऐसा मज़ा जो पहले कभी नहीं आया था... और जो कुछ हो रहा था वह मेरी मंज़ूरी से ही तो हो रहा था। भोंपू कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं कर रहा था। इस तरह मैंने अपने आप को समझाया और अपने शरीर को जितना ढीला छोड़ सकती थी, छोड़ दिया। भोंपू ने एक और पप्पी मेरी पीठ पर लगाई और मेरे ऊपर से उठ गया।

"एक मिनट रुको... मैं अभी आया !" भोंपू ने मुझे चादर से ढकते हुए कहा और चला गया। जाते वक्त उसने अपनी आँखें खोल ली थीं।

कोई 3-4 मिनट बाद मुझे बाथरूम से पानी चलने की आवाज़ आई और वह वापस आ गया। उसके हाथ में एक कटोरी थी जो उसने पास की कुर्सी पर रख दी और बिस्तर के पास आ कर अपनी आँखों पर दुपट्टा बाँध लिया।

मैंने चोरी नज़रों से देखा कि उसने अपनी कमीज़ उतार कर एक तरफ रख दी। उसकी चौड़ी छाती पर हल्के हल्के बाल थे। अब उसने अपनी पैन्ट भी उतार दी और वह केवल अपने कच्छे में था। मेरी आँखें उसके कच्छे पर गड़ी हुई थीं। उसकी तंदरुस्त जांघें और पतला पेट देख कर मेरे तन में एक चिंगारी फूटी। उसका फूला हुआ कच्छा उसके अंदर छुपे लिंग की रूपरेखा का अंदाजा दे रहा था। मेरे मन ने एक ठंडी सांस ली।

मैं औंधी लेटी हुई थी... उसने मेरे ऊपर से चादर हटाई और पहले की तरह ऊपर सवार हो गया। उसने मेरी पीठ पर गरम तेल डाला और अपने हाथ मेरी पीठ पर दौड़ाने लगा। बिना किसी कपड़े की रुकावट से उसके हाथ तेज़ी से रपट रहे थे। उसने अपने हथेलियों की एड़ी से मेरे चूतड़ों को मसलना और गूंदना शुरू किया... उसके अंगूठे मेरे चूतड़ों की दरार में दस्तक देने लगे। भोंपू बहुत चतुराई से मेरे अंगों से खिलवाड़ कर रहा था... मुझे उत्तेजित कर रहा था।

अब उसने अपना ध्यान मेरी टांगों पर किया। वह मेरे कूल्हों पर घूम कर बैठ गया जिससे उसका मुँह मेरे पांव की तरफ हो गया। उसने तेल लेकर मेरी टांगों और पिंडलियों पर लगाना शुरू किया और उनकी मालिश करने लगा। कभी कभी वह अपनी पोली उँगलियाँ मेरे घुटनों के पीछे के नाज़ुक हिस्से पर कुलमुलाता... मैं विचलित हो जाती।

अब उसने एक एक करके मेरे घुटने मोड़ कर मेरे तलवों पर तेल लगाया। मेरे दाहिने तलवे को तो उसने बड़े प्यार से चुम्मा दिया। शायद वह कल की मालिश का शुक्रिया अदा कर रहा था !! मेरे तलवों पर उसकी उँगलियों मुझे गुलगुली कर रही थीं जिससे मैं कभी कभी उचक रही थी। उसने मेरे पांव की उँगलियों के बीच तेल लगाया और उनको मसल कर चटकाया। मैं सातवें आसमान की तरफ पहुँच रही थी।

उसने आगे की ओर पूरा झुक कर मेरे दोनों चूतड़ों को एक एक पप्पी कर दी और पोले हाथों से उनके बीच की दरार में उंगली फिराने लगा।

बस... न जाने मुझे क्या हुआ... मेरा पूरा बदन एक बार अकड़ सा गया और फिर उसमें अत्यंत आनन्ददायक झटके से आने लगे... पहले 2-3 तेज़ और फिर न जाने कितने सारे हल्के झटकों ने मुझे सराबोर कर दिया... मैं सिहर गई .. मेरी योनि में एक अजीब सा कोलाहल हुआ और फिर मेरा शरीर शांत हो गया।

इस दौरान भोंपू ने अपना वज़न मेरे ऊपर से पूरी तरह हटा लिया था। मेरे शांत होने के बाद उसने प्यार से अपना हाथ मेरी पीठ पर कुछ देर तक फिराया। मेरे लिए यह अभूतपूर्व आनन्द का पहला अनुभव था।

थोड़ी देर बाद भोंपू ने दोनों टांगों और पैरों की मालिश पूरी की और वह अपनी जगह बैठे बैठे घूम गया। मेरे पीछे के पूरे बदन पर तेल मालिश हो चुकी थी। उसने उकड़ू हो कर अपने आप को ऊपर उठाया और मेरे कूल्हे पर थपथपाते हुए मुझे पलट कर सीधा होने के लिए इशारा किया।

मैं झट से सीधी हो गई। वह एक बार फिर घूम कर मेरे पैरों की तरफ मुँह करके घुटनों के बल बैठ गया और तेल लगा कर मेरी टांगों की मालिश करने लगा। पांव से लेकर घुटनों के थोड़ा ऊपर तक उसने खूब हाथ चलाये। फिर वह थोड़ा पीछे खिसक कर मेरे पेट के बराबर घुटने टेक कर बैठ गया और उसने मेरी जाँघों पर तेल लगाना शुरू किया।

अब मुझे बहुत गुदगुदी होने लगी थी और मैं बेचैन होकर हिलने लगी थी। उसने मेरी टांगों को थोड़ा सा खोला और और जांघों के अंदरूनी हिस्से पर तेल लगाने लगा... उसके अंगूठे मेरे योनि के इर्द-गिर्द बालों के झुरमुट को छूने लगे थे... पर उसने मेरी योनि को नहीं छुआ... मेरी योनि से पानी पुनः बहने लगा था... उसके हाथ बड़ी कुशलता से मेरी योनि से बच कर निकल रहे थे।

मेरी व्याकुलता और बढ़ रही थी। अब मेरा जी चाह रहा था कि वह मेरी योनि में ऊँगली डाले। जब उसका अंगूठा या उंगली मेरी योनि के पास आती तो मैं अपने आप को हिला कर उसे अपनी योनि के पास ले जाने की कोशिश करती... पर वह होशियार था। उसे लड़की को सताना और बेचैन करना अच्छे से आता था।

कुछ देर मुझे इस तरह तड़पा कर उसने घूम कर मेरी तरफ मुँह कर लिया। वह मेरे पेट के ऊपर ही उकड़ू बैठा था। मैंने देखा कि उसका कच्छा बुरी तरह तना हुआ है। उसने हाथ में तेल लेकर मेरे स्तनों पर लगाया और उन्हें सहलाने लगा... सहला सहला कर उसने तेल पूरे स्तनों पर लगा दिया और फिर अपनी दोनों हथेलियाँ सपाट करके मेरे निप्पलों पर रख उन्हें गोल गोल घुमाने लगा। मेरे स्तन उभरने और निप्पल अकड़ने लगे। थोड़ी ही देर में निप्पल बिल्कुल कड़क हो गए तो उसने अपनी दोनों हथेलियों से मेरे मम्मों को नीचे दबा दिया। मुझे लगा मेरे निप्पल उसकी हथेलियों में गड़ रहे हैं।

अब वह मज़े ले ले कर मेरे मम्मों से खेल रहा था। मैं जैसे तैसे अपने आप को मज़े में उचकने से रोक रही थी। उसके बड़े बड़े मर्दाने हाथ मेरे नाज़ुक स्तनों को बहुत अच्छे लग रहे थे। कभी कभी मेरा मन करता कि वह उन्हें और ज़ोर से दबाए। पर वह बहुत ध्यान से उनका मर्दन कर रहा था।

भोंपू अब थोड़ा पीछे की ओर सरका और अपने चूतड़ मेरी जाँघों के ऊपर कर लिए। उसने अपने घुटनों और नीचे की टांगों पर अपना वज़न लेते हुए अपने ढूंगे मेरी जाँघों पर टिका दिए। इस तरह अपना कुछ वज़न मेरी जांघों पर छोड़ कर शायद उसे कुछ राहत मिली। वह काफी देर से उकड़ू बैठा हुआ था... उसके मुँह से एक गहरी सांस छूट गई।

kramashah.........................


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Re: जवानी की दहलीज

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:52

जवानी की दहलीज-4

कुछ पल सुस्ताने के बाद उसने आगे झुक कर मेरे दोनों मम्मों को एक एक करके चूमा। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मैं सिहर उठी। उसने और आगे झुकते हुए अपना सीना मेरी छाती से लगा दिया। फिर अपने पैर पीछे को पसारते हुए अपना पेट मेरे पेट से लगा दिया। अब वह घुटने और हाथों के बल मेरे ऊपर लेट सा गया था और उसने अपना सीना और पेट मेरी छाती और पेट पर गोल गोल घुमाने लगा था।

वाह ! क्या मज़ा दे रहा था !! उसका कच्छे में जकड़ा लिंग मेरी नाभि के इर्द-गिर्द छू रहा था... मानो उसकी परिक्रमा कर रहा हो। मेरे तन-मन में कामाग्नि ज़ोर से भडकने लगी थी। मेरा मन तो कर रहा था उसका कच्छा झपट कर उतार दूं और उसके लिंग को अपने में समा लूं। पर क्या करती... लज्जा, संस्कार और भय... तीनों मुझे रोके हुए थे। जहाँ मेरा शरीर समागम के लिए आतुर हो रहा था वहीं मेरे दिमाग में एक ज़ोर का डर बैठा हुआ था। सुना था बहुत दर्द होता है... खून भी निकलता है... और फिर बच्चा ठहर गया तो क्या? यह सोच कर मैं सहम गई और अपने बेकाबू होते बदन पर अंकुश डालने का प्रयास करने लगी।

पर तभी भोंपू घूमते घूमते थोड़ा और पीछे खिसका और अब उसका लिंग मेरे निचले झुरमुट के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरे अंग-प्रत्यंग में जैसे डंक लग गया और मेरी कामोत्तेजना ने मेरे दिमाग के सब दरवाज़े बंद कर दिए। मैं सहसा उचक गई और मेरी योनि से रस की धारा सी बह निकली।

भोंपू की आँखें बंद थीं सो वह मेरी दशा देख नहीं पा रहा था पर उसको मेरी स्थिति का पूरा अहसास हो रहा था।

"कैसा लग रहा है?" उसने अचानक पूछा।

उसकी आवाज़ सुनकर मैं चोंक सी गई... जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो। मैं कुछ नहीं बोली।

"क्यों... अच्छा नहीं लग रहा?"

मुझे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। कुछ भी कहने से ग्लानि-भाव और शर्म महसूस हो रही थी। मैं चुप ही रही।

"ओह... शायद तुम्हें मज़ा नहीं आया... देखो शायद अब आये..." कहते हुए वह ऊपर हुआ और उसने अपने होंट मेरे होंटों पर रख दिए।

मैं सकपका गई... मेरे होंट अपने आप बंद हो गए और मैंने आँखें बंद कर लीं। भोंपू ने अपनी जीभ के ज़ोर से पहले मेरे होंट और फिर दांत खोले और अपनी जीभ को मेरे मुँह में घुसा दिया। फिर जीभ को दायें-बाएं और ऊपर नीचे करके मेरे मुँह को ठीक से खोल लिया... अब वह मेरे मुँह के रस को चूसने लगा और अपनी जीभ से मेरे मुँह का अंदर से मुआयना करने लगा। साथ ही उसने अपना बदन मेरे पेट और छाती पर दोबारा से घुमाना चालू कर दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे मुँह में खेलने के बाद उसने मेरी जीभ अपने मुँह में खींच ली और उसे चूसने लगा।

धीरे धीरे मैं भी उसका साथ देने लगी और मुझे मज़ा आने लगा। मेरा इस तरह सहयोग पाते देख उसने अपने बदन को थोड़ा और नीचे खिसका दिया और अब उसका लिंग मेरे योनि द्वार पर दस्तक देने लगा... उसके हाथ मेरे स्तनों को मसलने लगे। मेरे तन-बदन में आग लग गई... मेरी टांगें अपने आप थोड़ा खुल गईं और उसके लिंग को मेरी जाँघों के कटाव में जगह मिल गई। मेरी हूक निकल गई और मैंने अपने घुटने मोड़ लिए... मेरा बदन रह रह कर ऊपर उचकने लगा... मेरी लज्जा और हया हवा हो गई। मैं चुदने के लिए तड़प गई...

"एक मिनट रुको !" कहकर भोंपू मुझ पर से उठा और उसने पास पड़ा तौलिया मेरे चूतड़ों के नीचे बिछा दिया। फिर उसने खड़े होकर अपना कच्छा उतार दिया। मैं लेटी हुई थी और वह बिस्तर पर मेरी कमर के दोनों तरफ पांव करके नंगा खड़ा हुआ था। उसका तना हुआ लंड मानो उसके शरीर को छोड़ के बाहर जाने को तैयार था। मैं जिस दशा में थी वहां से उसका लंड बहुत बड़ा और तगड़ा लग रहा था। भोंपू खुद भी मुझे भीमकाय दिख रहा था...

अब मुझे डर लगने लगा। उसकी आँखों पर अब भी दुपट्टा बंधा था। पर अब उसे आँखों की ज़रूरत कहाँ थी !! कहते हैं लंड की भी अपनी एक आँख होती है... जिससे वह अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है !

वह फिर से मेरे ऊपर पहले की तरह लेट गया... उसने अपनी दोनों बाहें मेरे घुटनों के नीचे से डाल कर मेरी टांगें ऊपर कर दीं और फिर अपने उफनते हुए लंड के सुपारे से मेरी कुंवारी योनि का द्वार ढूँढने लगा। वैसे तो उसकी आँखें बंद थीं पर अगर ना भी होतीं तो भी मेरी योनि के घुंघराले बालों में योनि नहीं दिखती... उसे तो ढूँढना ही पड़ता।

भोंपू योनि कपाट खोजने का काम अपने लंड की आँख से कर रहा था। वह शादीशुदा था अतः उसे यह तो पता था कहाँ ढूँढना है... उसका परम उत्तेजित लंड योनि के आस-पास हल्का हल्का दबाव डाल कर अपना लक्ष्य ढूंढ रहा था। मुझे इससे बहुत उत्तेजना हो रही थी... एक मजेदार खेल चल रहा था... मेरी योनि निरंतर रस छोड़ रही थी। मुझे अच्छा लगा कि भोंपू अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इस आँख-मिचोली में शायद दोनों को ही मज़ा आ रहा था। आखिरकार, लंड की मेहनत सफल हुई और सुपारे को वह हल्का सा गड्ढा मिल ही गया जिसे दबाने से भोंपू को लगा ये सेंध लगाने की सही जगह है।

उसने अपने आप को अपने घुटनों और हाथों पर ठीक से व्यवस्थित किया... साथ ही मेरे चूतड़ों को अपनी बाहों के सहारे सही ऊँचाई तक उठाया और फिर अपने सुपारे को मेरे योनि-द्वार पर टिका दिया। मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था... मैंने अपने बदन को कड़क कर लिया था... मेरी सांस तेज़ हो गई थी और डर के मारे मेरे हाथ-पैर ठन्डे पड़ रहे थे... पर नीचे मेरी योनि व्याकुल हो रही थी... सुपारे का योनि कलिकाओं से स्पर्श उसे पुलकित कर रहा था... योनि का मन कर रहा था अपने आप को नीचे धक्का देकर लंड को अंदर ले लूं... मैं सांस सी रोके भोंपू के अगले वार का इंतज़ार कर रही थी...

तभी मुझे आवाज़ सुनाई दी... "बोलो तैयार हो? पांव के दर्द का पूरा इलाज कर दूं?"

कितना गन्दा आदमी है ये... मुझे तड़पा तड़पा कर मार देगा... मैंने सोचा... पर जवाब क्या देती... चुप रही...

उसने अपने सुपारे से मेरे योनि-द्वार पर एक-दो बार हल्का हल्का दबाव डाल कर मेरी कामाग्नि के हवन-कुंड में थोडा और घी डाला और थोड़ा और प्रज्वलित किया और फिर से पूछा .. "बोलो ना..."

मैंने जवाब में उसके सिर पर प्यार से उँगलियाँ फिरा दीं और उसके सिर को पुच्ची कर दी।

"ऐसे नहीं... बोल कर बताओ?"

"क्या?"

"यही... कि तुम क्या चाहती हो?"

"तुम बहुत गंदे हो..." मैं क्या कहती... आखिर लड़की हूँ।

"तो मैं उठूँ?" कहते हुए उसने अपने लंड का संपर्क मेरी योनि से तोड़ते हुए पूछा।

मैं मचल सी गई। मैं बहुत जोर से चुदना चाहती थी यह वह जानता था। वह मुझे छेड़ रहा था यह मैं भी जानती थी। पर क्या करती? उसका पलड़ा भारी था... शायद मेरी ज़रूरत और जिज्ञासा अधिक थी। वह तो काफी अनुभवी लग रहा था।

"जल्दी बोलो..." उसने चुनौती सी दी।

"अब और मत तड़पाओ !" मुझे ही झुकना पड़ा...

"क्या करूँ?" भोंपू मज़े लेकर पूछ रहा था।

"मेरा पूरा इलाज कर दो।" मैंने अधीर होकर कह ही दिया।

"कैसे?" उसने नादान बनते हुए मेरे धैर्य का इम्तिहान लिया।

"अब जल्दी भी करो..." मैंने झुंझलाते हुए कहा।

शायद उसे इसी की प्रतीक्षा थी... उसने धीरे धीरे सुपारे का दबाव बढ़ाना शुरू किया... उसकी आँखें बंद थीं जिस कारण सुपारा अपने निशाने से चूक रहा था और योनि-रस के कारण फिसल रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था मुझे डर ज़्यादा लग रहा है या काम-वासना ज़्यादा हो रही है। मैं बिल्कुल स्थिर हो गई थी... मैं नहीं चाहती थी कि मेरे हिलने-डुलने के कारण भोंपू का निशाना चूक जाये। जब वह दबाव बढाता, मेरी सांस रुक जाती। मुझे पता चल रहा था कब उसका सुपारा सही जगह पर है और कब चूक रहा है। मैंने सोच लिया मुझे ही कुछ करना पड़ेगा...

अगली बार जैसे ही सुपारा ठीक जगह लगा और भोंपू ने थोड़ा दबाव डाला, मैंने ऊपर की ओर हल्का सा धक्का दे दिया जिससे सुपारे का मुँह योनि में अटक गया। मेरी दर्द से आह निकल गई पर मेरी कार्यवाही भोंपू से छिपी नहीं थी। उसने नीचे झुक कर मेरे होटों को चूम लिया। वह मेरे सहयोग का धन्यवाद दे रहा था।

उसने लंड को थोड़ा पीछे किया और थोड़ा और ज़ोर लगाते हुए आगे को धक्का लगाया। मुझे एक पैना सा दर्द हुआ और उसका लंड योनि में थोड़ा और धँस गया। इस बार मेरी चीख और ऊंची थी... मेरे आंसू छलक आये थे और मैंने अपनी एक बांह से अपनी आँखें ढक ली थीं।

भोंपू ने बिना हिले डुले मेरे गाल पर से आंसू चूम लिए और मुझे जगह जगह प्यार करने लगा। कुछ देर रुकने के बाद उसने धीरे से लंड थोड़ा बाहर किया और मुझे कन्धों से ज़ोर से पकड़ते हुए लंड का ज़ोरदार धक्का लगाया। मैं ज़ोर से चिल्लाई... मुझे लगा योनि चिर गई है... उधर आग सी लग गई थी... मैं घबरा गई। उसका मूसल-सा लंड मेरी चूत में पूरा घुंप गया था... शायद वह मेरी पीठ के बाहर आ गया होगा। मैं हिलने-डुलने से डर रही थी... मुझे लग रहा था किसीने मेरी चूत में गरम सलाख डाल दी है। भोंपू मेरे साथ मानो ठुक गया था... वह मुझ पर पुच्चियों की बौछार कर रहा था और अपने हाथों से मेरे पूरे शरीर को प्यार से सहला रहा था।

काफ़ी देर तक वह नहीं हिला... मुझे उसके लंड के मेरी योनि में ठसे होने का अहसास होने लगा... धीरे धीरे चिरने और जलने का अहसास कम होने लगा और मेरी सांस सामान्य होने लगी। मेरे बदन की अकड़न कम होती देख भोंपू ने मेरे होंटों को एक बार चूमा और फिर धीरे धीरे लंड को बाहर निकालने लगा। थोड़ा सा ही बाहर निकालने के बाद उसने उसे वापस पूरा अंदर कर दिया... और फिर रुक गया... इस बार उसने मेरे बाएं स्तन की चूची को प्यार किया और उसपर अपनी जीभ घुमाई... फिर से उसने उतना ही लंड बाहर निकाला और सहजता से पूरा अंदर डाल दिया... इस बार मेरे दाहिने स्तन की चूची की बारी थी... उसे प्यार करके उसने धीरे धीरे लंड थोड़ा सा अंदर बाहर करना शुरू किया... मुझे अभी भी हल्का हल्का दर्द हो रहा था पर पहले जैसी पीड़ा नहीं। मुझे भोंपू के चेहरे की खुशी देखकर दर्द सहन करने की शक्ति मिल रही थी।

उसने धीरे धीरे लंड ज़्यादा बाहर निकाल कर डालना शुरू किया और कुछ ही मिनटों में वह लंड को लगभग पूरा बाहर निकाल कर अंदर पेलने लगा। मुझे इस दर्द में भी मज़ा आ रहा था। उसने अपनी रफ़्तार तेज़ की और बेतहाशा मुझे चोदने लगा... 5-6 छोटे धक्के लगा कर एक लंबा धक्का लगाने लगा... उसमें से अजीब अजीब आवाजें आने लगीं...हर धक्के के साथ वह ऊंह... ऊंह... आह... आहा... हूऊऊ... करने लगा ..

"ओह... तुम बहुत अच्छी हो... तुमने बहुत मज़ा दिया है।" वह बड़बड़ा रहा था।

मैंने उसके सिर में अपनी उँगलियाँ चलानी शुरू की और एक हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगी। मुझे भी अच्छा लग रहा था।

"मन करता है तुम्हें चोदता ही रहूँ..."

...मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाना चाहती थी... मैं भी चाहती थी वह मुझे चोदता रहे... पर मैंने कुछ कहा नहीं... बस थोड़ा उचक कर उसकी आँखों पर से पट्टी हटा दी और फिर उसकी आँखों को चूम लिया।

वह बहुत खुश हो गया। उसने चोदना जारी रखते हुए मेरे मुँह और गालों पर प्यार किया और मेरे स्तन देखकर बोला," वाह... क्या बात है !" और उनपर अपने मुँह से टूट पड़ा।

मैंने महसूस किया कि चुदाई की रफ़्तार बढ़ रही है और उसके वार भी बड़े होते जा रहे हैं। उसना अपना वज़न अपनी हथेलियों और घुटनों पर ले लिया था और वह लंड को पूरा अंदर बाहर करने लगा था। उसने अपना मरदाना मैथुन जारी रखा। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और वह हांफने सा लगा था... एक बार लंड पूरा अंदर डालने के बाद वह एक पल के लिए रुका और एक लंबी सांस के साथ लंड पूरा बाहर निकाल लिया। फिर उसने योनि-द्वार बंद होने का इंतज़ार किया। कपाट बंद होते ही उसने सुपारे को द्वार पर रखा और एक ज़ोरदार गर्जन के साथ अपने लट्ठ को पूरा अंदर गाड़ दिया।

मेरे पेट से एक सीत्कार सी निकली और मैं उचक गई... मेरी आँखें पथरा कर पूरी खुल गई थीं... उनका हाल मेरी योनि जैसा हो गया था। उसने उसी वेग से लंड बाहर निकाला और घुटनों के बल हो कर मेरे शरीर पर अपने प्रेम-रस की पिचकारी छोड़ने लगा... उसका बदन हिचकोले खा खा कर वीर्य बरसा रहा था... पहला फव्वारा मेरे सिर के ऊपर से निकल गया... मेरी आँखें बंद हो गईं... बाकी फव्वारे क्रमशः कम गति से निकलते हुए मेरी छाती और पेट पर गिर गए।

मैंने आँखें खोल कर देखा तो उसका लंड खून और वीर्य में सना हुआ था। खून देख कर मैं डर गई।

"यह खून?" मेरे मुँह से अनायास निकला।

भोंपू ने मेरे नीचे से तौलिया निकाल कर मुझे दिखाया... उस पर भी खून के धब्बे लगे हुए थे और वीर्य से गीला हो रहा था।

"घबराने की बात नहीं है... पहली बार ऐसा होता है।"

"क्या?"

"जब कोई लड़की पहली बार सम्भोग करती है तो खून निकलता है... अब नहीं होगा।"

"क्यों?"

"क्योंकि तुम्हारे कुंवारेपन की सील टूट गई है... और तुमने यह सम्मान मुझे दिया है... मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ।" कहकर वह मुझ पर प्यार से लेट गया और मेरे गाल और मुँह चूमने लगा।

kramashah.........................


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