ज़िंदगी के रंग compleet

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rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:38

मोना वैसे ही खर्राटे मार के सोती रही. जवानी की नींद की बात ही कुछ और होती है सफ़र से मोना तो थॅकी भी हुई थी. बंसी कुछ देर वैसे ही हाथ उसकी गांद पे रख के खड़ा गौर से मोना की तरफ देखता रहा पर जब यकीन हो गया के वो अभी तक सो रही है तो उसकी हिम्मत और बढ़ गयी. "क्या मस्त गरमा गरम गांद है साली की और टाइट भी बहुत लगती है. इसको देख के वैसे भी लगता है के अभी इसने किसी से चुदाई नही करवाई. ये सब काम भी मुझे ही करना पड़ेगा." बंसी ने अब दूसरा हाथ भी उसके दूसरे चूतर पर रख दिया. उसका लंड तो आसमान को छू रहा था अब. दिल तो उसका कर रहा था के अभी मोना की सलवार उतार के उसकी कुँवारी गांद को टिका कर चोदे लेकिन उससे पता था के अगर ये जाग गयी तो कहीं लेने के देने ना पड़ जाए क्यूँ के साला डॉक्टर भी घर पे था अब. वो धीरे धीरे मोना की गांद पे हाथ फेरने लगा. "उम्म्म" मोना के मूह से नींद मे निकला पर वो अभी भी नींद मे थी. सच तो ये है के उसने जो आज देखा वो ही उसको सपने मे आ रहा था मगर ममता की जगा वो लेटी हुई थी और बंसी उसकी टाँगों मे घुसा हुआ था. इस सपने को देखते हुए बंसी जो धीरे धीरे उसकी गांद पे हाथ फेर रहा था उससे उसको नींद मे और भी माज़ा आ रहा था. मोना ने शलवार के नीचे जो लाल रंग की पॅंटी पहनी थी वो बंसी को हल्की हल्की नज़र आ रही थी. मोना की टाँगें थोड़ी खुली हुई थी जिसका फ़ायदा उठा के बंसी धीरे धीरे हाथ फेरते हुए उसकी टाँगो के बीच मे ले गया. जैसे ही उसने वहाँ धीरे से अपनी उंगली से छुआ तो मोना के मूह से "उम्म्म" की आवाज़ निकली. "लगता है साली को माज़ा आ रहा है." ये सौच कर बंसी ने अपनी उंगली आहिस्ता आहिस्ता वहाँ फेरनी शुरू कर दी. वहाँ सपने मे मोना देख रही थी के उसकी टाँगे बंसी के कंधौं पर हैं जैसे कुछ देर पहले ममता की थी और बंसी का लंड मोना के अंदर बाहर हो रहा है. बंसी उंगली फेरते हुए जो मोना की गांद की गर्मी महसूस कर रहा था उसने उसको मोना का दीवाना बना दिया था. थोड़ी देर मे उसने महसूस किया के मोना की शलवार वहाँ से थोड़ी सी गीली होने लगी थी और वहाँ से एक अजब सी भीनी भीनी खुसबु आ रही थी. वो अपना चेहरा उसकी गांद के पास ले गया पर साथ साथ वैसे ही उंगली फेरता रहा धीरे धीरे. "वाह क्या मस्त खुसबु है इसकी तो. दिल करता है शलवार उतार के इसकी चूत को अच्छी तरहा चातु. जिस की खुसबु ऐसी है उसका मॅज़ा कैसा होगा?" ये सौच कर वो अपनी उंगली जिसे वो मोना की चूत पे फेर रहा था अपने मुँह मे ले गया. "वाह क्या मस्त माल है ये! एक यह है और एक वो किसी सेकेंड हॅंड ट्रॅक्टर की गांद वाली ममता. उंगली फेरने का इतना मज़ा है तो लंड से छूने का कितना होगा? अब तक वो हवस मे पागल हो चुका था और उसने अपना लंड पाजामे मे से बाहर निकाल लिया.

इससे पहले के वो मोना का पास जाता नीचे से ममता ने ज़ोर से आवाज़ मारी "आरे बंसी कहाँ मर गया है टू? मोना जल्दी आओ" बंसी जल्दी से कमरे से बाहर लंड पाजामे मे कर के निकल गया. मोना शोर से आहिस्ता से उठ गयी. धीरे धीरे जब वो होश मे आई तो उसे कुछ अजीब सा लगा फिर जब टाँगों मे कुछ गीला गीला महसूस हुआ तो अपना हाथ वो वहाँ ले गयी. "आए भगवान ये क्या हो रहा है?" वो परेशान हो कर सौचने लागी. "मेडम अब आ भी जाओ नीचे" ममता की गुस्से से भरी आवाज़ उसे आई. "जी आंटी अभी आई" ये कह कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और जल्दी से अपने कपड़ा और पॅंटी बदलने लगी.

ममता:"ये कोई हरकते हैं क्या घर मे रहने वाली? कॉलेज से आ कर म साहब कुत्ते बेच के सो रही है. हम इसके नौकर लगे हुए हैं ना जो खाना बना कर इंतेज़ार कर रहे हैं."

डॉक्टर साहब."आरे अब बस भी कर दो. बेचारी का पहले दिन था कॉलेज मे थक गयी होगी."

ममता:"आप को बड़ी फिकर हो रही है "बेचारी" की. खेर तो है ना? इससे पहले के वो कुछ जवाब दे पाते मोना वहाँ भागी भागी आ गयी.

क्रमशः................

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:38

ज़िंदगी के रंग--5

गतान्क से आगे..................

अली:"आरे आप तो कुछ खा ही नही रही. क्या बात है खाना आप को पसंद नही आया?"

मोना:"नही ऐसी तो बात नही. मैने सही तरहा से खाया है."

अली:"वैसे खाकसार को अली कहते हैं." ये कहते हुए अली ने अपना हाथ मोना की तरफ बढ़ा दिया. मोना ने थोड़ा हिचकिचाते हुए उससे हाथ मिला लिया.

मोना:"मोना"

अली:"बहुत खुशी हुई आप से मिल कर मोना जी. 3 महीने मे पहली बार आप से बात कर पाया हूँ." वैसे तो उसकी बात मे ऐसा कुछ नही था लेकिन जाने क्यूँ मोना को ये सुन कर थोड़ी शरमा गयी.

मोना:"जा..जी."

अली:"तो फिर कैसा लगा आप को हमारा देल्ही?"

मोना:"ठीक है." इतने मे किरण भी वहाँ आ गयी.

किरण:"अली खेर तो है? क्या लाइन मार रहे हो मेरे पीछे पीछे?" मोना का ये सुन कर मुँह टमाटर की तरहा लाल हो गया. "ये किरण भी ना कुछ सौचती है और ना समझती है और जो मन मे आता है बक देती है." वो मन ही मन सौचने लगी.

अली:"आरे नही मैं तो इन से पूछ रहा था के इनको देल्ही कैसा लगा?"

किरण:"घर से बाहर निकले गी तो कुछ देखे गी ना ये?"

मोना:"किरण!"

किरण:"तो क्या ग़लत कह रही हूँ मैं? मेरी जान तुम्हारी आंटी के घर के बाहर भी एक दुनिया बस्ती है जो बहुत खूबसूरत है. उस दुनिया मे कब कदम रखो गी?"

मोना:"अब तू बस भी करेगी?"

अली:"बुरा ना मानीएगा मोना जी पर कह तो ये ठीक ही कह रही हैं ना? अगर आप बुरा ना माने तो क्या मे आप दोनो को कल देल्ही दर्शन पे ले जा सकता हूँ?"

किरण:"क्यूँ नही? ये मेम साहब तो वरना घर से खुद निकलैंगी ही नही."

मोना:"शुक्रिया पर मे किसी को कोई ज़हमत नही देना चाहती. आप दोनो हो आओ ना."

अली:"आरे दोस्तों मे ज़हमत कैसी? वो अलग बात है के अगर अब आप हमे दोस्ती के काबिल ना समझो तो." अब तक कितने ही लड़के मोना से दोस्ती करने की कोशिश कर चुके थे लेकिन उन सब की नज़रे मोना उसकी जिस्म की तरफ देखती महसूस कर लेती थी या फिर कुछ की तो बातो से कि घमंड सॉफ महसूस होता था. पहली बार मोना ने एक ऐसा लड़का देखा जिस की आँखौं और बातो मे उसने सच्चाई देखी. ऐसे मे उसके मूह से जो निकला उससे किरण तो क्या खुद वो भी हैरान हो गयी.

मोना:"ठीक है फिर कल चलते हैं." ऐसे मे उनकी आँखे पहली बार मिली और एक नया आहेसास पहली बार मोना को महसूस हुआ........

असलम साहब ने ज़िंदगी मे उन्च नीच, खुशियाँ और गम सब कुछ तो देखे थे. ज़िंदगी के इस दौर मे आ कर आज जब वो पलट के देखते थे तो सब कुछ एक सपना सा तो लगता था. भला देल्ही जैसे शहर मे बिना जान पहचान के अपना कारोबार खड़ा कर लेना कहाँ कोई मामूली बात थी? ये सफ़र इतना आसान हरगिज़ नही था जितना के बाहर से देखने वालो को लगता होगा. उन्हो ने वो वक़्त भी देखे थे जब घर मे फाकॉ की हालत आ गयी थी. उस दौर से भी गुज़रे थे जहाँ खुद अपने पे ही भरोसा कमजोर पड़ गया था. ऐसे मे एक उनकी बेवी ही थी जिनका भरोसा उन पे कभी नही टूटा. अंधेरे मे तो साया भी साथ छोड़ जाता है लेकिन एक सच्चा हमसफ़र साथ नही छोड़ता. आज भी जब उन्हे अपनी मरहूम बीबी याद आती थी तो दम घुटने लगता था और आँखे भीग जाती थी. "क्या मैं उसको वो सब सुख दे पाया जिन की वो हक़दार थी?" ऐसे सवाल अक्सर उनके दिल मे आते थे. सच तो ये था के 2 जवान बेटो के बाप और अपना कारोब्बर होने के बावजूद उनको ज़िंदगी मे एक कमी महसूस होती थी. सब कुछ होते हुए भी यौं महसूस होता था जैसे कुछ भी तो नही है. इन ही सोचों और तन्हाई ने उन्हे अपनी उमर से भी ज़्यादा बुढ्ढा कर दिया था. इंसान की उमर हक़ीकत मे उतनी ही होती है जैसा वो महसूस करता है. "एक बार अली का घर बस जाए फिर तो मैं भी अपनी सब ज़िमेदारियो से आज़ाद हो कर वहाँ जा सकूँगा जहाँ वो मेरा इंतेज़ार कर रही होगी. " सिगरेट का कश लगाते हुए वो सौचने लगे.

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:39

अगले दिन कॉलेज के बाद किरण और मोना अली के साथ उसकी गाड़ी पे बैठ गयी. उसकी सालगिरह पे उसके वालिद ने ये गाड़ी उससे तोफे मे दी थी. जहाँ किरण उस मे बैठ के सौच रही थी के पटेल की गाढ़ी के मुक़ाबले मे ये एक दम ख़टरा है तो वहाँ मोना गाड़ी मे बैठ अपने आप को एक महारानी की तरहा महसूस कर रही थी.

अली:"मेरे ख़याल से पहले खाना खा लेते हैं. मुझे पता है के मेरी तरहा आप दोनो को भी भूक लगी होगी. यहाँ पास ही एक बहुत मशहूर रेस्टोरेंट भी है."

मोना:"नही नही इस तकलूफ की क्या ज़रूरत है? वैसे भी मुझे

भूक नही लगी."

किरण:"आरे भूक केसे नही लगी मेडम को? और जब वो इतने प्यार से कह ही रहे हैं तो हम उनका दिल तो नही तोड़ सकते ना?" ये बात उसने इस अदा से कही के अली का मूह लाल हो गया और मोना किरण को दिल ही दिल मे कोसने लगी. उसकी फ्लर्ट करने की आदत मोना को बहुत बुरी लगती थी लेकिन अब तक वो ये तो जान ही चुकी थी के किरण दिल की बुरी नही.अली:"मोना जी दोस्तों मे कैसा तकलीफ़? वैसे भी रेस्टोरेंट आ ही गया है. देल्ही अपने खाने के लिए भी बहुत मशहूर है और इस रेस्टोरेंट को तो 100 बरस से भी ज़्यादा हो गये हैं." सच तो ये है के मुस्किल से 30 बरस भी नही हुए होंगे लेकिन 100 साल का होने का बोर्ड फिर भी लगाया हुआ था. कम से कम खाना सच मे बहुत अच्छा था. किरण ने हमेशा की तरहा जम के खाया. उसकी भूक मर्दो से कम ना थी. पर उसको ऐसे ख़ाता देख कर कॉलेज के लड़के और भी उस से मुतसिर होते थे. एक दौर था जब जो लड़कियाँ शर्मा कर थोड़ा सा खाती थी उनको पसंद किया जाता था. उस दौर मे मर्द उनको खानदानी औरत समझते थे. आज कल के दौर मे जो लड़कियाँ बेबाक हो कर फास्ट फुड और जो भी खाने को मिले उस पे टूट पड़ती थी उनको पसंद किया जाता था. शायद आज कल के लड़को की सौच ये थी के जब ऐसी लड़कियो को भूक इतनी लगती है तो शरीर की भूक भी बहुत लगती होगी.

खाना खाते हुए अली ने उससे उसके घर बार और माता पिता के बारे मे पूछना शुरू कर दिया. इस तरहा के सवाल जवाब मोना को नर्वस कर दिया करते थे लेकिन अली की हर बात मे उससे एक सच्चाई और मुख्लिस्पन देखता था जो उसे ऐसा महसूस करता था जैसे वो एक दूजे को जन्मो से जानते हों. अब तक किरण भी ये तो समझ गयी थी के अली उस मे नही बल्कि मोना मे दिलचस्पी रखता है. उसे ऐसा देख कर बहुत अच्छा लगा क्यूँ के उसकी मोना बहुत ही अच्छी लड़की थी जिसे बनाव सिंगार ना करने की वजा से कुछ लड़के ज़्यादा लाइन नही मारते थे तो जो कोशिश भी करते थे उनको वो घास नही डालती थी. पर यहाँ पहली बार वो उसे किसी लड़के से बगैर घबराए बात करते देख बहुत खुश थी. वैसे भी अली भले घर का लड़का था और मोना की तरहा वो भी दूसरी लड़कियो को घास नही डालता था. अगर इन दोनो का घर बस जाए तो जोड़ी बुहुत ही अच्छी लगे गी. जहाँ किरण ने अपने ज़हन मे उनकी शादी भी करवा दी थी वहाँ वो दोनो अभी तक एक दूसरे से बस छोटे मोटे सवाल ही पूछ पाए थे.

खाने के बाद वो उन दोनो को कुछ देल्ही के तारीखी मक़ामात देखने ले गया. देल्ही ने भी मुगलों के दौर से ले कर अंग्रेज़ो की हुक्मरानी तक, और फिर आज़ादी के बाद हर चंद साल बाद वोई पुराने वादो के साथ नये नेताओ को अपने पे राज करते देखा था. इन सब बातो के बावजूद देल्ही का हुसन फीका नही पड़ा था बल्कि शराब की बोतल की तरहा वक़्त गुज़रने के साथ साथ और भी ज़्यादा निखरा था. बाद मे वो सब लाइनाये शॉपिंग पे चले गये. उन दोनो को मुतसिर करने के लिए वो उन्हे अपनी दुकान पे ले गया. जब वो उनकी चीज़ो के पेसे देने लगा तो मोना ने सॉफ मना कर दिया जिसे देख किरण का मुँह बन गया. दुकान पे उसके वालिद साहब नही थे उस वक़्त पर बड़े भाई थे. उसने उन्हे कह दिया के उसकी दोस्त हैं इस लिए खास डिसकाउंट दें. भाई जी ने कह दिया के फिकर ना करो आप के दोस्त हैं तो वो तो मिलेगा ही ना? बाज़ारी केमटाउन के मुक़ाबले पर दोनो लड़कियाँ 2-300 ज़्यादा दे कर खुशी खुशी दुकान से बाहर आ गया के अच्छा डिसकाउंट मिला है. किरण का घर रास्ते मे आता था इस लिए उसे पहले उतार दिया. उसे उतार कर गाड़ी अभी थोड़ी ही दूर गयी थी के उस ने मोना से पूछा

अली:"मोना जी अगर आप बुरा ना माने तो पास ही आइस क्रीम की दुकान है. क्या हम आइस क्रीम खाने चले?" सॉफ ज़ाहिर है वो भला केसे हां कह सकती थी लेकिन उसके मुँह से सिर्फ़ एक शब्द ही निकल पाया

मोना:"जी ज़रूर." अपने मुँह से निकले शब्द पे उससे खुद ही यकीन नही आ रहा था और ना जाने उसके दिल की धड़कन क्यूँ तेज होने लगी थी?.

जाने ये कैसा आहेसास था? कितने घंटे से तो वो अली के साथ बाहर फिर रही थी फिर ऐसा क्यूँ था के किरण के साथ ना होने की वजा से अब अलग सा महसूस हो रहा था? ये पहली बार था के वो ऐसे किसी भी लड़के के साथ अकेली कहीं गयी हो और जैसा वो अली के बारे मे महसूस कर रही थी ये भी एक नया अहेसास ही था. बार बार घबरा के वो मुस्कुराने लगती थी और उसका खोबसूरत चेहरा भी खिल सा गया था. जहाँ अली उसकी घबराहट को दूर करने के लिए उससे छोटे मोटे सवाल कर रहा था वहाँ उसके जवाब जी और नही तक ही थे.

अली:"क्या बात है आप कुछ घबराई हुई सी लग रही हैं. खेर तो है?"

मोना:"न...नही ऐसी बात नही." एक बार फिर उन दोनो की आँखे मिली और इस बार बिना कुछ बोले दोनो एक दूजे की आँखौं मे देखते रहे. इंसान की आँखे भी कभी कभार वो बात जो वो कह नही पा रहा होता चुपके से कह देती हैं. आँखे वैसे भी रूह की तस्वीर होती हैं और पतलून के अंदर की सच्चाई इन से झलक ही जाती है.

रात जब मोना अपने बिस्तर पे लेटी हुई थी तो आँखौं से नींद जाने कहाँ चली गयी थी? "क्या मैं जैसा महसूस कर रही हूँ वैसे वो भी कर रहा होगा? आज जो मी उसकी आँखौं मे देखा क्या ये ही प्यार है?" ऐसा सौचते हुए जाने कहाँ से उसे उसके माता पिता याद आ गये और वो अपने सपनो की दुनिया से निकल आई. "कहाँ का प्यार? एक अमीर घर के लड़के को मैं ही मिलूँगी प्यार करने के लिए? शायद दूसरे लड़को की तरहा ये भी किरण मे ही दिलचस्पी रखता होगा और उसके बारे मे ज़्यादा जानने के लिए उसकी दोस्त से दोस्ती कर रहा होगा. वैसे भी मैं यहाँ इन कामो के लिए थोड़े ही आई हूँ? मुझे तो अपने पेरौं पे खड़े होना है ताकि अपने माता पिता का सहारा बन सकू. ऐसे रईसजादो से दूर ही रहू तो इस मे ही भलाई है." कहने को उसने ये अपने आप को कह तो दिया पर दिल था के मानने को तैयार नही था. सच तो ये था के वो माने या ना माने पर उसके दिल मे एक जगा तो अली ने बना ही ली थी. दोसरि और अली के नींदें तो वैसे भी जब से मोना को देखा था उड़ ही गयी थी. आज जो सारा दिन उसके साथ गुज़ारा और उससे पास से देखा तो दिल और भी उसकी और खेंचा चला गया था. बार बार उसके बारे मे सौच के मुस्कुराने लगता और अब बुरी तरहा से उसकी अपनी ज़िंदगी मे कमी को महसूस करना अगर प्यार नही तो और क्या था?

ए दिल जिनकी याद मे तो बेचैन है

क्या वो भी तेरे प्यार मे बेचैन है?

क्या तेरी तरहा उनकी नींद भी कहीं खो गयी है?

क्या उनको पाके ही मिलना तुझे अब चैन है?

क्रमशः....................

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