रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
हम अक्सर ऐसे ही शाम को एकत्ते हो कर एक दूसरे का अकेलापन दूर करते. एक दिन उन्होने मुझे पूछा की मैने कोई ब्लू फिल्म देखी है या नही. मेरे इनकार करने पर वो मुझ पर हँसने लगी. मानो मैं उनके सामने बहुत सब स्टॅंडर्ड वाली हूँ. मई उन्हे इस तरह हंसते देख झेंप गयी.
अगले दिन शाम को वो मुझे अपने घर बुलाई. मैं जब पहुँची तो उसने मुझे अपना एक गाउन पहनने को दिया. वो भी उस वक़्क्त एक झीना सा गाउन पहन रखी थी. मेरे पूछ्ने पर बताया कि इसे पहनने से काफ़ी खुला खुला महसूस होगा. मैं उनकी बातों को उस वक़्त तो समझ नही पे मगर जल्दी ही उनकी बातों का अभिप्राय समझ मे आ गया.
ड्रॉयिंग मे हम एक लंबे सोफे पर बैठ गये. उसने टी.वी. पर द्वड से एक फिल्म चलाया. जब टीवी पर फिल्म चलने लगी तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. सामने ब्लू फिल्म चल रही थी. एक औरत के साथ दो व्यक्ति चुदाई कर रहे थे. एक आगे से उसके मुँह मे ठोक रहा था तो दूसरा उसके पीछे से चूत मे पेल रहा था. इतनी जबरदस्त चुदाई चल रही थी कि उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ बुरी तरह उच्छल रही थी. ये देख कर मुझे मज़ा आने लगा. वो भी मुस्कुरा कर मेरे बदन से सॅट गयी.
मेरा पूरा ध्यान टीवी पर ही लगा हुया था. इस तरह की फिल्म मैं पहली बार देख रही थी. मैं आस पास से एक दम बेफ़िक्र हो गयी थी. रत्ना जी काफ़ी खेलीखाई महिला थी. वो मुझे जान बूझ कर गर्म कर रही थी. मुझे उनके मन मे चल रही दाँव पेंच के बारे मे कोई भी अंदेशा नही था. अचानक मेरी चूचियो को रत्ना जी द्वारा मसले जाने से मुझे होश आया. मैने मूड कर देखा तो पाया रत्ना जी बिल्कुल नंगी हो चुकी थी. उसके हाथ मेरे गाउन के गिरेबान से अंदर घुस कर मेरी चूचियो को मसल रहे थे.
तभी वो फिल्म ख़त्म हो गयी. आख़िर मे दोनो आदमियों ने अपने अपने लंड से वीर्य की फुहार से उस औरत का चेहरा भिगो दिया.
रत्ना जी ने मेरे गाउन को नीचे से पकड़ कर उपर करना शुरू कर दिया. मैने सोफे से हल्का सा उपर उठ कर उसे उसके काम मे मदद किया. उसने मेरे गाउन को बदन से निकाल कर अलग कर दिया. अब हम दोनो बिल्कुल नंगी एक दूसरे से चिपक कर बैठी हुई थी.
अगला फिल्म जानवरों के साथ था. दिखाया जा रहा था की राह चलती एक औरत को चार लोग पकड़ कर ले आते हैं. उसे नंगी करके वो कमरे से बाहर जाने लगते हैं तो एक आदमी उसके हाथ बाँध देता है और उसे लिटा कर उसकी चूत मे वहाँ पड़ी एक कुर्सी के पाए को घुसा देता है. उसकी रखवाली के लिए एक लंबे चौड़े कुत्ते को वही छ्चोड़ कर सब बाहर चले जाते है.
उनके जाने के बाद वो औरत अपने बंधन खोल लेती है और जब वहाँ से भागने को होती है तो कुत्ता गुर्राने लगता है. कुत्ते को चुप करने के लिए वो औरत उस कुत्ते के लिंग को सहलाने लगती है. उसके बाद उसके लिंग को चूसने लगती है.
इधर रत्ना मेरी टाँगों को फैला कर मेरी योनि को चूस रही थी. और मैं उत्तेजना मे सोफे पर कस्मसा रही थी. मैने उसके सिर को अपनी दोनो जांघों के बीच दबोच रखा था.
उसकी जीभ मेरी योनि के फांकों के बीच घूम रही थी. सामने चलते ब्लू फिल्म ने मेरी दबी आग को इतना भड़का दिया था की उस वक़्त मैं अपनी गर्मी शांत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी.
सामने उस वक़्त उस औरत के द्वारा कुत्ते को चुदाई के लिए उत्तेजित करने का सीन चल रहा था. कुत्ते का लंड उस औरत की हरकतों से तन गया था अब वो औरत किसी कुतिया की तरह चौपाया हो गयी थी और वो कुत्ता उसकी चूत को सूंघ रहा था, उसके बाद उस कुत्ते ने उस औरत की कमर पर अपने दोनो पंजे रख दिए और अपने लंड को अंदर डालने की कोशिश करने लगा. मगर उसे सफलता नही मिल रही थी.
रत्ना की हरकतों से मेरे बदन मे सिहरन सी दौड़ रही थी. पूरे बदन के रोएँ उत्तेजना मे काँटों की तरह खड़े हो गये थे. अब मैं अपनी उत्तेजना को चिपचिपे धारा के रूप मे बह निकलने से नही रोक पाई. और मैने रत्ना के सिर को पकड़ कर अपनी योनि पर दबा लिया और अपनी योनि को सोफे से उपर उठा लिया.
“आआआआआअहह,,,,,माआआ” की आवाज़ के साथ मेरी योनि से रस की धारा बह निकली. रत्ना अपनी जीभ से उसे चाट चाट कर सॉफ कर रही थी. मैं निढाल सी सोफे पर पसार गयी.
रत्ना ने वापस मेरी टाँगों को फैला कर मेरी योनि को चाट चाट कर लाल कर दिया. मेरी योनि की फाँकें फूल कर मोटी मोटी हो गयी थी.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -42
गतान्क से आगे...
सामने फिल्म मे भी वो कुत्ता उस औरत की चूत को चाट रहा था. कुच्छ ही देर मे वो औरत उस कुत्ते के चाटने से उत्तेजित हो गयी थी और कुत्ते के लिंग को एक हाथ से खींच कर अपनी चूत मे डाल ली थी. अब वो कुत्ता ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था. वो औरत अपने हाथों से अपने झूलते बड़े बड़े स्तनो को मसल्ते हुए उस कुत्ते से चुदवा रही थी.
रत्ना अब मेरी योनि के क्लिट को अपनी उंगलियों से मसल्ने लगी जिससे मेरा बदन उत्तेजना मे वापस झटके खाने लगा.
“ आआआहह क्य्ाआअ काअरररर रहियीई हूऊऊ…..म्म्म्माआआ……उफफफफफफफ्फ़….. हाऐईयईईई…. मेरााा बदाअन जाअल रहााअ हाईईइ….ईईईईईईईइइम्म्म्मम…….न्
न्न्नाअ नहियीईईई…… आआब मुझीईए चहूऊओद डूऊऊ…..” मैं च्चटपटा रही थी.
“ क्यों मज़ा नही आ रहा है?” रत्ना मेरी हालत के मज़े ले रही थी.
“ क्यूऊऊँ मुझीई साताआ रहियीई हूऊओ….. हाईईइ आअब ईीई आाअग कौउूँ बुझाआएगाआ रतनाआअ प्लीईसी कीसीईईईई कूऊ बुलाआअ…..कीसीईईई कूऊव भीईीई लीई एयाया…..उफफफफफ्फ़….माऐइ माररर जौउऊनगिइइई. कीसीईईई भीईिइ माअर्द काअ लुन्न्ञदड़ लाआ डीई. कीसीईइ कूओ भीईीई बूओल मुझीई चूओद डलीई”
“ किसी को भी क्यों मैं हूँ ना.” कह कर वो अपनी चारों उंगलिया मेरी योनि मे डाल कर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी. मैने अपनी दोनो जांघों को सख्ती से एक दूसरे से भींच लिया. वो मेरे होंठों को चूसने लगी और दूसरे हाथ से मेरे एक निपल को कुरेद रही थी.
मेरे बदन मे वापस चिंगारियाँ फूटने लगी और वीर्य की धारा बह निकली. जब वीर्य का बहाव रुका तो उसने अपने हाथ को खींच कर बाहर निकाला. मैने देखा उसकी सारी उंगलिया मेरे रस से सनी हुई थी और उनसे बूँद बूँद कर मेरा रस नीचे टपक रहा था.
मैं किसी भूखी शेरनी की तरह रत्ना पर झपट पड़ी और उसे सोफे पर गिरा कर उस पर सवार हो गयी. मैने उसके स्तनो को बुरी तरह मसल दिया और उसकी योनि की फांकों को अपने दन्तो से काटने लगी.
मैने अपनी उंगलियों को उसकी योनि के अंदर डाल कर उसे चौड़ा किया. फिर अपनी जीभ निकाल कर उसकी योनि मे बाहर से अंदर की ओर फिराने लगी. वो उत्तेजना मे उचकने लगी थी.
“ आआहह….डीईइ….दीस्स्शहाअ…..क्य्ाआअ कार रहियिइ हूऊ…. नहियीईई…नहियीईई…. डाांट नहियीई…..ऊऊहह…दाअर्द हूओ रहाा हाईईईईई….हाआँ हाआँ अओर ज़ोर से और अंदर अया….आ…. ” कह कर उसने भी अपना रस छ्चोड़ दिया. जिसे मैने चाट चाट कर सॉफ किया. जब मैने अपना चेहरा उठाया तो मेरी नाक से उसका वीर्य एक रेशमी धागे की तरह झूल रहा था. मैने अपने हाथों से उसे पोंच्छा.
सामने टीवी पर भी उस औरत की कुत्ते से चुदाई ख़तम हो चुकी थी. मगर कुत्ते का लंड उसकी चूत मे फँसा हुया था. वो चारों आदमी वापस आ चुके थे और कुत्ते के लंड से फँसी उस औरत को देख देख कर हंस रहे थे. वो औरत छॅट्पाटा रही थी मगर जब तक कुत्ते का लिंग ढीला नही पड़ गया तब तक उसका लंड बाहर नही निकला.
रत्ना मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दी. ”अब मरद की जगह किसी और का लेगी तो ये तो झेलना ही पड़ेगा.”
हम दोनो की गर्मी कुच्छ हद तक शांत हो चुकी थी. मगर जो राहत किसी मर्द से चुदवा कर मिलती है वो नही मिली. मैने पहली बार ही किसी औरत के साथ इस तरह की हरकत की थी इसलिए मन मे एक झिझक भी थी.
अब हम अक्सर एक साथ होकर ब्लू फिल्म और राज शर्मा की हिन्दी सेक्सी स्टोरीस पढ़ने और सुनने लगे. मैं उसके साथ रह कर काफ़ी कामुक हो गयी थी. रत्ना अपने मकसद के लिए मेरे मन मे दबी चिंगारी को और हवा दे रही थी.
एक दिन रत्ना दोपहर को घूमने आई. देवेंदर कई दिनो के लिए बिज़्नेस के सिलसिले मे बारेल्ली गये हुए थे इसलिए मैं अकेली ही थी. उसे देख कर मेरा मन खिल उठा. दोनो तरह तरह की बातें कर रहे थे. बातों बातों मे आश्रम की बात चल गयी.
“ दिशा तूने आश्रम को देखा है अंदर से?” रत्ना जी ने पूछा.
“ नहीं दूर से ही देखा है बनते हुए. काफ़ी बड़ा बन रहा है. काफ़ी भव्य होगा अंदर से.” मैने कहा
“ हाँ…अब तो पूरा बन कर तैयार हो गया है. मैं तो अक्सर वहाँ जातो रहती हूँ. अंदर से तो इतना शानदार है कि लगता है किसी राजा-महाराजा के महल मे आ गये हों.” रत्ना जी ने कहा, “ मैने तो उस आश्रम की सदस्य बन गयी हूँ. बहुत शान्ती मिलती है वहाँ.”
उनकी बातें सुनकर मुझमे भी कुच्छ जिग्यासा जागी.
“ अच्च्छा? एक दिन मुझे भी ले चलो ना. बाहर से देख कर बहुत मन करता है अंदर जाने का लेकिन जा नही पाती.”
“ तो इसमे डर कैसा. कोई रोकटोक थोड़ी है वहाँ. कोई भी जिसके मन मे श्रद्धा हो वहाँ जा सकता है. सेवक राम जी तो तेरे बगल मे ही रहते हैं. उन्हों ने कभी आश्रम दिखाने का न्योता नही दिया तुझे? ”
“ हां मुझे सेवकराम जी ने एक बार कहा तो था आश्रम दिखाने के लिए. मैने ही मना कर दिया था. अब मैं अकेली औरत कहाँ जाती किसी गैर मर्द के साथ घूमने. वैसे ये सेवकराम कैसे आदमी है?”
“ सेवकराम नही सेवकराम जी कहो. वो बहुत ही पहुँचे हुए महात्मा हैं. लगता है तुम्हारा उनसे संपर्क कम ही हुआ है. उनके साथ रहोगी तो एक बार भी नही लगेगा की किसी अंजान आदमी के साथ हो. उन मे हर किसी को अपना बना लेने की बड़ी छमता है. उनकी बोली से तो अमृत टपकता है. उनके भी गुरु हैं स्वामी त्रिलोकनंद कभी उनसे मिलना. देवता स्वरूप आदमी हैं. उनकी वाणी इतनी मीठी है की आदमी अपना सब कुच्छ लुटाने को तैयार हो जाता है. ” रत्ना जी ने कहा.
“ वो भी यहीं रहते हैं?” मैने उत्सुकता से पूछा.
“ कौन? त्रिलोकनंद स्वामी जी के बारे मे पूछ रही हो? वो यहाँ नही रहते. लनोव के पास एक बहुत लंबा चौड़ा आश्रम है. वो एक तरह से इनके पंथ का हेड ऑफीस है.. बड़े गुरुजी वहीं रहते हैं. अभी अगले महीने इस आश्रम का इनॉवौग्रेशन है जिसमे वो शामिल होने के लिए यहाँ आएँगे. मैने तो उनसे दीक्षा ली है तुम भी उनसे चाहो तो दीक्षा ले सकती हो. उनकी शिष्या बन सकती हो.”
“ मुझे इन सब साधु संतों मे विस्वास कम ही है.” मैने कहा.
“ अरे पगली ये वैसे नही हैं. इनके संपर्क मे पहुँचोगी तो पता चलेगा की इस संसार मे आज भी देवता स्वरूप मनुष्य पैदा होते हैं.” वो तो तारीफों के पुल बँधे जा रही थी. मुझे इन सबमे उतनी दिलचस्पी नही थी इसलिए इनमे पड़ना नही चाहती थी. लेकिन वो तो लग रहा था आश्रम और उनके तौर तरीकों की कायल हो चुकी थी.
“ बोलो कब चलॉगी आश्रम देखने. मैं तुम्हे पूरा आश्रम घुमा कर दिखाउंगी. भोचक्की रह जाओगी वहाँ का रहन सहन देख कर. एक बार उनसे भी मिल तो लो फिर तुम भी गुलाम हो जाओगी उनकी” रत्ना जी ने मुस्कुराते हुए कहा.
“ किनसे?” मैने अंजान बनते हुए पूछा.
“किनसे और? सेवक राम जी से. जीवन सफल हो जाएगा. मुझे दुआएँ देगी की मैने ऐसे आदमी से तेरा संपर्क करवा दिया.”
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -43
गतान्क से आगे...
“उनसे तो मैं पहले भी कई बार मिल चुकी हूँ. मेरे पड़ोस मे ही तो रहते हैं. आजकल तो अक्सर ही मिल जाते हैं. लगता है तुम्हारे ये सेवक राम बड़े रसिक स्वाभाव के आदमी हैं.” मैने उनसे कहा.
“ क्यों ऐसा क्या देखा उनमे?”
“ मैं जब भी बाहर कुच्छ काम करती हूँ तो तुम्हारे ये रसिक लाल जी मुझे घूरते रहते हैं मानो मुझे जिंदा खा जाएँगे.”
“ दिशा तुम हो ही इतनी खूबसूरत की हर मर्द का लंड सलाम करने लगे तुझे देख कर.”
“ दीदी आप भी ना हमेशा मेरी खिंचाई करती रहती हो. खुद को देखो. ऐसा सेक्सी बदन है कि इस बदन की एक झलक पाकर ही कोई भी अपने उपर से कंट्रोल खो दे.”
“ चल छ्चोड़ पहले ये बता कब चलेगी घूमने?”
“ देखती हूँ. देव आ जाए फिर किसी दिन देख आएँगे उनका आश्रम.”
“ अरे देवेंदर जी तो जाने कब आएँगे. कल ही हम दोनो चलते हैं आश्रम. मैं ले चालूंगी तुझे वहाँ. तुम तैयार रहना मैं ठीक दस बजे आ जाउन्गी तुम्हे लेने.” रत्ना ने उठते हुए कहा, “सुबह नौ दस बजे तक काम निबटा लेना और नहा धो कर तैयार रहना….”
“ अरे सुनो तो….” मैं उसे मना करना चाहती थी मगर उसने मेरी एक ना चलने दी.. वो कुच्छ भी सुनने को तैयार ही नही हुई.
“ कुच्छ नही सुनना तुम बस नहा धो कर और खूब बन संवर कर तैयार रहना. हम दोनो साथ चल चल्लेंगे.” रत्ना कहते हुए चली गयी. मैं उन्हे रोक कर इनकार करना चाहती थी लेकिन उनकी बातों ने कुच्छ ऐसा असर किया था मेरे उपर कि उस आश्रम और वहाँ के मठाधीश से मिलने का मौका भी हाथ से निकलने नही देना चाहती थी. मुझे एक बार लगा कि पता नही कैसी औरत है. अभी जान पहचान ही कितने दिनो की थी. मगर मैने अपने मन मे उठती एक शन्सय को दबा दिया.
वैसे भी दिन मे किसी औरत के साथ कहीं जाने मे क्या बुराई हो सकती थी. आच्छा नही लगा तो वापस लौट आउन्गी.
अगले दिन मैं पौने दस बजे तक नहा धो कर तैयार हो गयी थी. अपने चेहरे पर हल्का सा मेकप भी किया था. होंठों पर लिपस्टिक, माथे पर बिंदी माँग मे सिंदूर लगाकर बदन पर एक प्यारी सी गुलाबी सारी पहनी थी. वैसे तो मैं अक्सर सलवार कमीज़ पहनती थी लेकिन किसी धार्मिक स्थल पर जाने के लिए मुझे सारी पहनना ही उचित लगा. गले पर भारी मंगलसूत्रा और हाथों मे कोहनी तक सुंदर रंग बिरंगी चूड़ियाँ मेरे रूप को और निखार रही थी. मुझे बनने सँवरने का शुरू से ही बहुत शौक़ था. जिसे शादी के बाद देव ने और हवा दी थी. वो चाहते थे कि मैं हर वक़्त बनी सन्वरि रहूं.
मॅचिंग ब्लाउस के अंदर मैने एक लेसी ब्रा और जांघों पर मॅचिंग पॅंटी पहनी थी. उन्हे पहनते वक़्त मैं मुस्कुरा दी. किसे पता चल सकेगा कि मैने अंडर गारमेंट्स का भी चयन सारी के मॅचिंग ही किया था. कोई कपड़े उतार कर देखने तो जा नही रहा था कि मैने अंदर क्या पहन रखा है.
“कौन देखेगा इन अंदरूनी वस्त्रों को. भगवान के घर जा रही हूँ वहाँ पर साधु महात्मा रहते हैं को छिछोरे आशिक़ तो मिलेंगे नही जो मौका मिलते ही कपड़ों के अंदर तक झाँक लें” मैने आईने मे अपने आप को निहारते हुए सोचा.
रत्ना ठीक दस बजे घर पर आ गयी. आश्रम पास ही था इसलिए हम दोनो पैदल ही वहाँ के लिए रवाना हुए. कोई पाँच मिनिट का रास्ता था. वहाँ मैने देखा की वाकई काफ़ी भव्य आश्रम बन रहा था. काफ़ी बड़ा एरिया घिरा हुआ था. ऑलमोस्ट पूरा ही बनकर तैयार हो गया था अब फिनिशिंग चल रही थी. एक नक्काशी वाले प्रवेश द्वार से अंदर घुस कर सामने रिसेप्षन जैसी जगह पर पहुँचे.
रिसेप्षन पर दीवारों से लगे काफ़ी मुलायम सोफे बिछे हुए थे. रत्ना जी ने मुझे वहाँ बैठने का इशारा किया. रिसेप्षन मे उस वक़्त केवल एक आदमी गेरुआ वस्त्र पहने मौजूद था. उसने रत्ना जी को झुक कर अभिवादन किया. जिससे लगा की रत्ना जी काफ़ी परिचित व्यक्तियों मे हैं. मैं सोफे पर जाकर बैठ गयी.
“ मैं अभी आती हूँ दो मिनिट वेट करो.” कहकर रत्ना जी एक विशाल दरवाजे से अंदर चली गयी. मैं वहाँ बैठे हुए दीवारों पर बने हुए पत्थर से तराशे हुए देवी देवताओं की मूर्तियाँ देख रही थी. मुझे लग रहा था कि पता नही मैं किस लोक मे आ गयी हूँ. सारे अश्रमवसी गेरुए रंग के लबादे पहने हुए थे. जो आगे से खुलते थे. ये वस्त्र कमर पर किसी नाइट गाउन की तरह एक डोरी से कसे हुए थे.
वहाँ कुच्छ औरतें भी दिखी वो भी इसी तरह के वस्त्र मे थी. चलने फिरने से उनके वस्त्र सामने से खुल जाते थे और उनकी जांघों का काफ़ी हिस्सा सामने से दिखने लगता था.
मैं अपनी नज़रें इधर उधर दौड़ने लगी. मैने देखा की वहाँ जितनी भी मूर्तियाँ नक्कासी की हुई थी वो अजंता या खजुराहो की मूर्तियों की तरह काम रस मे डूबी हुई थी. मर्द और औरत सेक्स के अलग अलग पोज़ मे दिख रहे थे. तस्वीरें जो दीवार पर लगी थी वो भी काफ़ी उत्तेजक और कामुक थी. हर ओर काम रस बिखरा पड़ा था. मैं उन सब को देख कर वहाँ के रहने वालो के रहण सहन के बारे मे सोचने लगी.
तभी एक आदमी एक ट्रे मे शरबत जैसा कोई पेय प्रदार्थ ले आया. रंग से रूह आफ्ज़ा की तरह दिख रहा था. उसने मुझे झुक कर नमस्कार किया और ट्रे सामने की. मैने उसे शरबत समझ कर एक ग्लास ले लिया. उसमे से बहुत भीनी भीनी सुगंध आ राझी थी.. मैने उस ग्लास को लेकर उसमे से एक घूँट सीप किया. शीतल पेय का स्वाद बड़ा ही अजीब था. वैसा नशीला स्वाद मैने कभी नही चखा था. एक घूँट पीते ही मन झूम उठा.
“ ये कौन सा शरबत है?” मैने पूछा.
“ ये एक ख़ास आयुर्वेदिक पेय है. खास खास जड़ी बूटियों से बना है ये. इस आश्रम मे जो भी मेहमान आता है उनका स्वागत इसी पेय से किया जाता है. यहाँ चाइ या कोल्ड ड्रिंक्स तो मिलेगी नही. आपको इससे ही काम चलना पड़ेगा. आपको पसंद नही आया?” उसने पूछा. उसके इस तरह पूच्छने से मैं हड़बड़ा गयी और एक झटके मे पूरा ग्लास खाली कर दिया.
मुझे इस तरह हड़बड़ा कर पीता देख वो मुस्कुराता हुया पलटा और अंदर चला गया. उसकी महक काफ़ी देर तक मेरे नथुनो मे भरी रही. उसे पीने के बाद मैं अपने बदन को बहुत हल्का महसूस करने लगी.
कोई दस मिनिट बाद रत्ना जी वापस आई. वो भी अपने वस्त्र खोल कर उसी तरह के गेरूए वस्त्र पहन कर आई थी. उनके हाथ मे भी एक वैसा ही लबादा था जैसा उन्हों ने पहन रखा था. उन्हे आते देख मैं उठ खड़ी हुई.
“क्या हुआ आप अपने कपड़े चेंज कर आई?’ मैने उनसे पूछा मगर उन्हों ने मेरे सवाल का कोई जवाब देने की ज़रूरत नही महसूस की.
“आओ..” कहकर रत्ना जी मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ उस दरवाजे से अंदर ले गयी.. सामने एक कॉरिडर था जिसके दूसरी ओर काले काँच का एक और दरवाजा था उसमे प्रवेश करते ही दरवाजा अपने आप पीछे बंद हो गया. हम एक कमरे मे थे कमरे के अंदर घुप अंधेरा था. कुच्छ भी दिखाई नही दे रहा था. मैने घबरा कर रत्ना जी की कलाई को सख्ती से थाम लिया.
क्रमशः............