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अब आगे....
दूध पिने के बाद मैंने वो गिलास चारपाई के नीचे रख दिया और जैसे ही मैं गिलास रख के उठा, भाभी ने अपने दोनों हाथों से मेरा मुँह पकड़ा और एक जबरदस्त चुम्बन मेरे होठों पे जड़ दिया... ये मेरे लिए ऐसा प्रहार था जिसके लिए मैं बिलकुल भी तैयार नहीं था| उन्होंने अपने मुँह में मेरे होंठों को जकड़ लिया था... उनके मुँह से मुझे दूध की सुगंध आ रही थी ... और भाभी ने मेरे होंठों से खेलना शुरू कर दिया था|मेरा भी अपने ऊपर से काबू छूटने लगा था... मैंने भी भाभी के पुष्प जैसे होठों को अपने होठों के भीतर भर लिया और उनका रसपान करने लगा| सर्वप्रथम मैंने उनके ऊपर के होंठ को चूसना शुरू किया....दूध की सुगंध ने उनके होठों मैं मिठास घोल दी थी जिसे मैं हर हाल में पीना चाहता था... जब मैं भाभी का ऊपर का होंठ चूसने में व्यस्त था तब भाभी ने अपने नीचे वाले होंठ से मेरे नीचले होंठ का रसपान शुरू कर दिया| करीब पांच मिनट तक हम दोनों एकदूसरे के होंठों को बारी-बारी चूसते रहे.... और पूरे कमरे में "पुच .....पुच" की धवनि गूंजने लगी थी... बीच-बीच में भाभी और मेरे मुख से "म्म्म्म्म्म...हम्म्म्म " की आवाज भी निकलती थी| मैं अब वो चीज करना चाहता था जिसके लिए मैं बहुत तड़प रहा था... मैंने अपनी जीभ का प्रवेश भाभी के मुख में करा दिया.... मेरी जीभ का स्वागत भाभी ने अपने मोतियों से सफ़ेद दाँतों से किया| उन्होंने मेरी जीभ को अपने दाँतों में भर लिया... और अपनी जीभ से उसे स्पर्श किया| इस अनुभव ने मेरे शरीर का रोम-रोम खड़ा हो गया... वासना मेरे अंदर हिलोरे मारने लगी थी| भाभी ने मेरी जीभ को धीरे-धीरे चूसना शुरू कर दिया था.. मेरा मुख सिर्फ उनके बंद मुख के ऊपर किसी निर्जीव शरीर की तरह पड़ा था परन्तु गर्दन से नीचे मेरा शरीर हरकत में आ चूका था.... मेरे लंड में तनाव आ चूका था और ऐसा लगता था जैसे वो चॆख०चॆख के किसी को पुकार रहा हो!
भाभी कभी-कभी मेरी जीभ को अपने दाँतों से काटती तो मेरे मुख से "मम्म" की हलकी से सिसकारी छूट जाती| अगर ऊपर भाभी आक्रमण कर रही थीं तो नीचे से मेरे हाथ उनके स्तनों को बारी-बारी से गूंदने और रोंदने लगे थे.... जैसे ही भाभी ने सिसकारी के लिए अपने मुख को खोलो मैंने अपनी जीभ उनके चुंगल से छुड़ाई और कमान अपने हाथों में ले ली और ऊपर तथा नीचे दोनों तरफ से हमला करने लगा| सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से भाभी के दाँतों को स्पर्श किया ... इसका उत्तर देने के लिए जैसे ही भाभी की जीभ मेरे मुख में दाखिल हुई मैंने उनकी जीभ को अपने दाँतों में भर के एक जोर दार सुड़का मारा....और उसे चूसने लगा ... भाभी के हाथ मेरे हाथों को अपने वक्ष पे दबाने लगे थे.... पर मुझे उनके मुख से आरही दूध की सुगंध इतना मोहित कर रही थी की मैं उन्हें चूमना-चूसना छोड़ ही नहीं रहा था| लग रहा था की मैं आज सारा रसपान कर ही लूँ... मेरा मस्तिष्क मुझे सूचित कर रहा था की बीटा अगर इसी में समय बर्बाद किया तो सुहागरात पूरी नहीं होगी!
मैंने अपने लबों को उनके लबों से जुदा किया... और उनकी गोरी-गोरी गर्दन पे अपने दांत गड़ा दिए| एक पल के लिए भाभी सिंहर उठी...
"स्स्स्स्स्स्स्स्स..... मानु ..... म्म्म्म्म "
उनके मुख से अपना नाम सुन मैं और जोर से उनके गर्दन पे काटा... प्यार की भाषा में इसे "लव बाईट" कहेंगे.... मैंने उनकी गर्दन को काट और चूस रहा था .... क्या सुखद एहसास था वो मेरे लिए...!!! मैं उनकी गर्दन को चूमते हुए नीचे आया.... और उनके वक्ष के पास आके रुक आया | मेरे हाथ अब भी भाभी के स्तनों को मसल रहे थे और भाभी के मुख पे पीड़ा और सुख के मिले-जुले भाव थे| जब उन्होंने देखा की मैं रुक गया हूँ तो उन्होंने आँखें खोली और स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगीं... ये समय मेरे लिए बड़ा ही उबाऊ था ... मैं सोच रहा था की कब भाभी के स्तन इस ब्लाउज की जेल से आजाद होंगे? जब भाभी ने सभी बटन खोले तो मैं देख के हैरान हो गया की भाभी ने आज ब्रा पहनी थी! अब मेरे मन में एक तीव्र इच्छा ने जन्म लिया... वो ये थी की मैं उनकी ब्रा खुद उतारना चाहता था| जैसे ही भाभी ने अपने हाथ ब्रा की ओर ले गेन मैंने भाभी को तुरंत चुम लिया.... अपने लबों में उनके लैब कैद कर के मैं अपने हाथ उनकी पीठ पे ले गया ओर भाभी को ब्रा के हुक खोलने से रोक दिया| भाभी अपने हाथ अब मेरी पीठ पर फेरने लगीं .. और उधर मैं अपनी उँगलियों से भाभी की ब्रा के हकों को महसूस करने लगा| वो गिनती में तीन थे... मुझे डर था की कहीं मैं उन्हें तोड़ ना दूँ इसलिए मैं एक-एक कर उनके हुक खोलने लगा| और इधर भाभी ने अपने होंठ मेरी पकड़ से छुड़ा लिए थे और अब वो मेरे होंठों को चूस और अपनी जीभ से चाट रहीं थी| मैंने एक-एक कर तीनों हुक बड़ी सावधानी से खोल दिए और अपने को भाभी के होंठों से जैसे ही दूर किया तो भाभी की ब्रा उचक इ सामने आ गई| मैंने ऊपर से भाभी की ब्रा को स्पर्श किया तो उस का मख्मली एहसास ने मेरी कामवासना को और भड़का दिया!
भाभी ने अभी तक अपनी ब्रा को अपने स्तनों पे दबा रखा था... जैसे की वो मुझसे कुछ छुपाना चाहती हों... तब मुझे एहसास हुआ की दरअसल वो मेरे सुहागरात वाले तोहफे को अच्छी तरह से महसूस करना और कराना चाहती थीं| इसीलिए वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जिसे मैं प्यार करता हूँ और ब्याह के लाया हूँ ऐसा बर्ताव कर रहीं थी| मैंने अपने हाथ उनके वक्ष की और बढ़ाये और बड़े प्यार से उनकी ब्रा को पकड़ा और धीरे-धीरे अपनी और खींच के उनके बदन से दूर करने लगा| जैसे ही ब्रा उनके बदन से दूर हुई उन्होंने अपनी नजरें झुका दीं और अपने हाथ से अपने स्तनों को छुपाने की कोशिश करने लगीं| मैंने अभी तक कपड़े पहने हुए थे.... इसलिए सर्वप्रथम मैंने अपना सफ़ेद कुरता उतार दिया और उसे नीचे फैंक दिया| अब मैं और भाभी दोनों ऊपर से नग्न अवस्था में थे|
मैंने भाभी के मुख को ऊपर उठाया ... भाभी की आँखें अब भी बंद थीं| मैंने आगे बढ़ कर उनकी आँखों पे अपने होंठ रखे और उन्हें खोलने की याचना व्यक्त की| भाभी ने अपनी आँखें खोली और मुझे अपने समक्ष पहली बार बिना कपड़ों के देख उन्होंने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया और मुझे कास के अपने आलिंगन में जकड लिया| उनके स्तन आज पहली बार मेरी छाती से स्पर्श हुए तो मेरे बदन में आ लग गई| भाभी के निप्पल कड़े हो चुके थे और वो मेरे छाती में तीर की भाँती गड रहे थे| भाभी मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेर रहीं थी और मैं उनकी पथ पर हाथ फेर रहा था| मैं उनकी हृदय की धड़कन सुन पा रहा था और वो मेरे हृदय की धड़कन को सुन पा रहीं थी... वो एक गति में तो नहीं परन्तु बड़े जोर से धड़क रहे थे| अब और समय गवाना व्यर्थ था .. इसलिए मैंने भाभी को आलिंगन किये हुए ही अपना वजन उनपे डालने लगा ताकि वो लेट जाएँ| जब वो लेट गईं तब उन्होंने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद किया... आज मैं पहली बार भाभी को अर्ध नग्न हालत में देख रहा था| उनके 36 D साइज के स्तन (मेरा अंदाजा गलत भी हो सकता है|) मुझे मूक आमंत्रण दे रहे थे... मैं भाभी के ऊपर आ गया ... भाभी का शरीर ठीक मेरी दोनों टांगों के बीच में था| मैंने सर्वप्रथम शिखर से शुरूरत की.. मैंने अपना मुख को ठीक उनके बाएं निप्पल के आकर से थोड़ा बड़ा खोला और उन्हें मुख में भर लिया| न मैंने उनके निप्पल को अपने जीभ से छेड़ा और न हीं उसे चूसा... केवल ऐसे ही स्थिर रहा| भाभी मचलने लगीं और अपने हाथ से मेरे सर को अपने स्तन पे दबाव डालने लगीं.. मैं उन्हें और नहीं तड़पना चाहता था इसलिए मैंने उनके निप्पल को अपने होंठन से थोड़ा भींचा ... उसके बा उसे मुख में भर के ऐसे चूसने लगा जैसे की अभी उसमें से दूध निकल जायेगा| भाभी अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकडे अपने बाएं स्तन पे दबाने लगीं... और मैं भी बड़े चाव से उनके निप्पल को चूसने लगा... और बीच-बीच में काट भी लेता| जब मैं काटता तो भभु चिहुक उठती :
"अह्ह्हह्ह ....स्स्स्सस्स्स्स "
करीब 5 मिनट तक उनके निप्पल को चूसने के बाद मैंने उनके स्तनों पे अपने लव बाईट की छप छोड़ दी थी और उनका बयां स्तन बिलकुल लाल हो चूका था| अब मैं और नीच बढ़ने लगा....
भाभी: मानु.... इसे भूल गए ? (अपने दायें स्तन की ओर इशारा करते हुए|)
मैं: नहीं तो.... इसकी बारी अभी नहीं आई|
मैं नीचे उनकी नाभि पर पहुँचा और उसमें से मुझे गुलाब जल की महक आने लगी... मैं अपने मुख को जितना खोल सकता था उतना खोला और उनके नाभि के ठीक ऊपर काट लिया... मेरे पूरे दातों ने अपने लव बाईट का काम कर दिया था| मेरी इस हरकत से भाभी बुरी तरह मचल रही थी.. जैसे की जल बिन मछली तड़पती है|
मैं और नीचे आय तो देखा की मैं भाभी की साडी तो उतारना ही भूल गया! मैं समय बर्बाद नहीं करना चाहता था क्योंकि मुझे पता था की अगर अजय भैया रसिका भाभी के पास सम्भोग करने के लिए पहुँच गए या कहीं चन्दर भैया ने दरवाजा खटखटा दिया तो बहुत बुरा होगा| इसलिए मैंने जल्दी जैसी भाभी की साडी खींचने लगा... भाभी मेरी मदद करना चाहती थी परन्तु मैं बहुत बेसब्र था| मुझे एक तरकीब सूझी... मैंने भाभी की साडी बिलकुल उठा दी और उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया.... और एक झटके में उसे नीचे खींच दिया| साडी काफी हद तक ढीली हो गई और फिर मैंने उसे भी खींच-खींच के पूरी तरह से खोल दिया| मैं ऐसे साडी खोल रहा था जैसे किसी बच्चे को उसके जन्मदिन पे किसी ने गिफ्ट दिया हो और उस गिफ्ट पे 2 मीटर कागज़ चढ़ा रखा हो| तब वो बच्चा बड़ी बेसब्री के साथ उस कागज़ को फाड़ना शुरू कर देता है... कुछ ऐसी ही हरकत मैंने की थी|
भाभी ने आज पैंटी भी पहनी है? खेर सबसे पहले मैंने भाभी की योनि को पैंटी के ऊपर से सूँघा और उसी अवस्था में एक चुम्बन लिया| मुझे उम्मीद नहीं थी की पैंटी के ऊपर से मुझे भाभी की योनि की सुगंध आएगी परन्तु मैं गलत था... भाभी की योनि से आ रही मादक महक मुझे मोहित करने लगी थी| मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ उनकी पैंटी की इलास्टिक में डाली और उसे पकड़ के नीचे खींच दिया और भाभी के शरीर से दूर कर दिया| अब मेरे समक्ष भाभी का पूरी तरह से नग्न शरीर था.... मैं टकटकी लगाये उन्हें निहारने लगा ... क्योंकि आज मैंने पहली बार भाभी को इस अवस्था में देखा था | भाभी ने शर्म के मारे अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया... मुझे मालुम था की भाभी का हाथ कैसे हटाना है ....मैं नीचे झुका और उनकी योनि पे अपने होंट रख दिए और आणि जीभ की नोक से उनके भगनासा को एक बार कुरेद दिया| भाभी मेरी इस प्रतिक्रिया से उचक गईं.....
"अह्ह्ह्हह्ह .... मानु प्लीज !!!!"
अब भाभी ने अपने मुख से हाथ हटा लिया और मुख पे यातना के भाव थे... मुझे उन पर दया आ गई और मैं पुनः उनकी योनि पे झुक गया और रसपान करना शुरू किया| सर्वप्रथम मैंने अपनी जीभ से भाभी की योनि नापी और जितना हो सकता था अपनी जीभ को भाभी की योनि में प्रवेश कराता गया| एक बार जीभ अंदर पहुँच गई तब मैंने भाभी की योनि के अंदर अपनी जीभ से उत्पात मचाना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को उनकी योनि के भीतर गोल-गोल घूमने लगा.... जैसे की मैं उनकी योनि में खुदाई कर रहा हूँ| भाभी के भाव बदल चुके थे... वो छटपटाने लगीं थी.... और रह रह के अपनीकमर उठा के पटकने लगीं थी| मैं भी ज्यादा देर तक ये खेल नहीं खेल सका क्योंकि मुंह दर्द होने लगा था... मैंने अपनी जीभ से भाभी के भगनासा को पुनः कुरेदना शुर कर दिया और बीच-बीच में मैं अपनी जीभ पूरी की पूरी उनकी योनि में दाल 4-5 बार गोल घुमा देता और भाभी फिर छटपटाने लगती| भाभी की योनि ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया था... और वो तरल रह-रह के बहार निकलने लगा था... जैसे ही वो बहार आता तो मैं किसी भालू की भाँती अपना मुख भाभी की योनि से लाग उनके रस को चाटने लगता| मैंने भाभी की योनि के दोनों कपालों को अपने मुख में भर चूसने लगा.... और इधर भाभी का छटपटाने से बुरा हाल था..... वो कभी अपना सर बार-बार तकिये पे पटकती ... तो कभी अपने हाथ से मेरे सर को अपनी योनि पे दबाती, मनो कह रही हो की "मानु रुको मत !!!" मुझे भी उनकी योनि चूसने-चाटने में अजब आनंद आने लगा था| मैं कभी उनके बहगनासा को अपने मुख में भर लेता और उसे चुस्त... चाटता... और कभी-कभी तो उसे हलके से काट लेता| जब मेरे दांत भाभी के भगनासा को स्पर्श होते तो वो सिंहर उठती और कमान की तरह अपने शरीर को अकड़ा लेती|
धीरे-धीरे भाभी के शरीर में मच रहे तूफ़ान को भाभी के लिए सम्भालना मुश्किल होता जा रहा था... उन्होंने बड़ी जोरदार सिसकारी ली....
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.... माआआआआआआआआआआआआआ"
मैं समझ चूका था की भाभी चरम पर पहुँच चुकीं हैं... भाभी का बदन कमान की तरह हवा में उठ गया... उनकी कमर हवा में थी और सर तकिये पे.... इसलिए मैंने भाभी की पूरी योनि अपने मुख में भर ली!!!
जैसे ही भाभी के अंदर का तूफ़ान बहार आया उन्होंने बिना रोके उसे मेरे मुख के भीतर झोंक दिया| उनके रस की एक-एक बूँद मेरे मुख में समाती चली गई.... मैं भी बिना सोचे-समझे उनके मनमोहक रस को पीता चला गया|
भाभी निढाल होक वापस बिस्तर पे गिर चुकी थी... मुझे खुद पे यकीन नहीं हुआ की केवल दस मिनट में मेरी जीभ ने भाभी का ये हाल कर दिया था| भाभी की सांसें तेज चलने लगी थी ... या ये कहूँ की वो हांफने लगीं थी ..... मैं पीछे होक अपने पंजों पे बैठा था और उनका योनि रस जो थोड़ा बहुत मेरे होंठों पे लगा था उसे मैंने अपनी जीभ से साफ़ कर रहा था, की तभ भाभी ने मुझे इशारे से अपने ऊपर बुलाया| मैं उनके मुख के पास आया तो उन्होंने अपनी बाहें मेरे गले की इर्द-गिर्द डाली और मुझे चूम लिया!
भाभी: मानु... अब और देर मत करो!!! मेरे इस अधूरे शरीर को पूरा कर दो !!!
मैंने अभी भी पजामा पहन रखा था और इस अवस्था में मैं अपने नाड़े को नहीं खोल सकता था.... मेरी मजबूरी भाभी ने पढ़ ली और उन्होंने अपने हाथ नीचे ले जाके मेरे पजामे के नाड़े को खोल दिया.... मैं पीछे हुआ और चारपाई पे खड़ा हो गया.... मेरा पजामा एक दम से फिसल के नीचे गिरा और अब केवल मैं अपने फ्रेंची कच्छे में था| मेरे लंड का उभार भाभी साफ़ देख सकती थी और उसपे सोने पे सुहाग ये की मेरा कच्छा मेरे लंड के रस से भीग चूका था| मैंने अपने आप को कच्छे की गिरफ्त से आजाद किया तो मेरा लंड बिलकुल सीधा खड़ा था ... उसका तनाव इतना था की उसपे नसें उभर आईं थी| मैं वापस भाभी के ऊपर आया ... उनके योनि की दनों पाटलों को अपने दोनों हाथों के अंगूठे से खोला और अपने लंड को भाभी की योनि में धीरे-धीरे प्रवेश कराने लगा| जब मेरे लंड के सुपाड़े ने भाभी की योनि को छुआ तो एक करंट सा मेरे शरीर में दौड़ा ....और उधर भाभी मुझे अपने ऊपर बुला रहीं थी|
मित्रों अब भी सोच रहे होंगे की इस हालत में तो मुझे सब से ज्यादा जल्दी मचानी चाहिए थी.... परन्तु भाभी के प्रति प्यार ने मुझे अब तक थामे रखा था| मुझे डर था की भाभी को अधिक दर्द न हो ... इसलिए मैं सब कुछ बहुत धीरे-धीरे कर रहा था|
मैं धीरे-धीरे भाभी के ऊपर आ गया और मेरा लंड भाभी की योनि में लग भाग पूरा घुस चूका था.... भाभी के मुख पे आनंद और तड़प के मिले-जुले भाव दिख रहे थे| अभी तक मैंने धक्के लगाना शुरू नहीं किया था.... मैं पोजीशन ले चूका था और चाहता था की एक बार भाभी एडजस्ट हो जाएँ तब मैं हमला शुरू करूँ| भाभी ने अपने हाथ मेरी गर्दन के इर्द गिर्द लपेटे.... नीचे से उन्होंने अपने पाँव को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटा... मैंने जब भाभी के मुख पे देहा तो उनके मुख पे दर्द उमड़ आया था.... मुझे यकीन नहीं हुआ की भाभी को दर्द हो रहा है.... परन्तु ये समय प्रश्नों का नहीं था और वो भी ऐसे प्रश्न जो भाभी को फिर रुला देते| मैंने उनकी इन प्रतिक्रियाओं को उनका आश्वासन समझा और लय-बध तरीके से धक्के लगाना शुरू किया| भाभी की आँखें बाद थीं और मुख खुला....
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ........ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ........म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ..... अह्ह्ह्ह्ह्न्न ......अम्म्म्म्म .... माआअ "
ये सिस्कारियां कमरे में गूंजने लगीं थी.... मेरी गति अभी बिलकुल धीरे थी! मुझे डर सताने लगा था की कहीं भाभी की सिसकारियाँ नेहा को ना जगा दें| इसलिए मैंने उनके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में ले उनकी सिसकारियाँ मौन करा दी| मेरी धीमी गति में भाभी की मुख से सिसकारियाँ फुट पड़ीं थी... यदि मैं गति बढ़ता तो भाभी शायद चीख पड़ती| फिर मुझे ये भी अंदेशा था की यदि मैंने गति बढ़ा दी तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाऊँगा... और जल्दी चार्म पे पहुँच जाऊंगा| जबकि मेरी इच्छा थी की काम से काम भाभी को दो बार चार्म तक पहुँचाऊँ!!! इसलिए जब मेरे अंदर का सैलाब उमड़ने को होता तो मैं एक अल्प विराम लेता और भाभी के जिस्म को बेतहाशा चूमता| जब सैलाब का उफान काम होता तब मैं वापस अपनी धीमी गति से झटके देता रहता| अब भाभी की कमर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी... और उनका डायन स्तन जिसे मैंने प्यार नहीं किया था उसे भी तो प्यार करना बाकी था| इसलिए मैंने एक पल के लिए अल्प विराम लिया और भाभी के दायें स्तन को अपने मुँह में भर चूसने लगा| मैंने उनके निप्पल को अपने दाँतों में ले के हल्का सा काटा तो भाभी छटपटाने लगीं| उन्हें और पीड़ा नहीं देना चाहता था इसलिए मैं उनके स्तन को चूस्ता रहा और बीच-बेच में उनके निप्पल को अपने होंठों से दबा देता... या उनके निप्पल को अपनी जीभ की नौक से छेड़ देता|
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे....
मुझे सच में नहीं पता था की भाभी के अंदर मेरे प्रति इतनी वासना भरी है!!! अब जब मैं उनके दायें स्तन को निचोड़ने में लगा था भाभी ने अचानक ही अपनी कमर से मेरे लंड पे झटके मारना शुरू कर दिया| मज़ा तो बहुत आ रहा था पर मेरे अंदर का सैलाब फिर से उफान पे था... और छलकने के लिए तैयार था!!! छलकने का मतलब था भाभी का गर्भवती होना!!! ये सोचके मैं अपने आपको रोकना चाहता था परन्तु भाभी के तीव्र आक्रमण ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया| मैंने उन्हें रोकने में असमर्थ था परन्तु मैं ये गलती नहीं करना चाहता था, पिछली बार तो मैं बच गया था क्योंकि हमने सम्भोग खड़े-खड़े ही किया था जिसके कारन मेरी खुशकिस्मती से मेरा वीर्य भाभी की योनि से सीधा बहार आ गया और गर्भाशय तक नहीं पहुँचा| परन्तु इस स्थिति में वीर्य सीधा गर्भाशय तक जाता और परिणाम स्वरुप भाभी गर्भवती अवश्य होती| "भौजी.... प्लीज रुक जाओ!!! मैं झड़ने वाला हूँ!!!"
भाभी अभी भी नहीं रुकीं क्योंकि वो चरम पर लग-भग पहुँच ही गईं थी... इस कारन उनकी योनि मेरे लंड को निचोड़ ने में लगी थी| आइए लग रहा था की कोई दानव भाभी की योनि के भीतर मेरे लंड को चूस रहा हो!!!
"मानु.... प्लीज मत रोको खुद को !!! .... "
मैं: भाभी अगर मेरा आपके अंदर छूटा तो अब गर्भवती हो जाओगे|
भाभी: स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ..... अह्ह्हह्ह्ह्ह .... मैं यही चाहती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनू!!!
भाभी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गए .... इससे पहले की मैं झड़ता भाभी की योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया जिसने मेरे लंड को पूरी तरह गर्म-गर्म लावे में नहला दिया ... इसके बाद भी उनकी योनि ने मेरे लंड की इर्द-गिर्द अपनी पकड़ और कस ली थी| अब मेरा किसी भी समय छूटने वाला था ... मुझे अपने पूरे शरीर की शक्ति लगानी पड़ी .... अपने लंड को उनकी योनि से बहार निकलने में!!! जैसे ही मैंने अपना लंड बहार खींचा वो एक झटके से बहार आया और मैंने भाभी की योनि पे एक जोर दार धार के साथ अपना सारा वीर्य उनकी योनि के ऊपर गिरा दिया| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! वीर्य की धार बहती हुई भाभी की गांड तक जा रही थी.... भाभी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त था और उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पांच मिनट बाद भाभी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया| वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी कच्छी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|
भाभी:मानु... तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी?
मैं: भौजी... आपने ही कहा था की आपने कई सालों से भैया के साथ सम्भोग नहीं किया है.. ऐसे में अगर आप गर्भवती हो जाती तो क्या होता? भैया आपको पता नहीं कितने गंदे शब्दों से अपमानित करते ओर मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता| यदि मैं कमाने लायक होता तो मैं आपको कल ही भगा के ले जाता और आपसे शादी कर लेता|
भाभी: और नेहा?
मैं: उसे भी आपके साथ ले जाता... वो आपके बिना कैसे रहती और भले ही वो भैया की बेटी है पर वो भी मुझे आपके जितना ही प्यारी है|
भाभी: सच मानु तुम इतना प्यार करते हो मुझसे? फिर तुम मुझे छोड़ के क्यों जा रहे हो?
(ये कहते हुए फिर से उनके आँखों में आंसूं छलक आये थे|)
मैं: भौजी काश मैं इस सब को बदल पाता.... पर .....
(एक पल के लिए तो लगा की मैं भाभी को सब बता दूँ ... पर जैसे-तैसे कर के खुद को रोक|)
मैं: आपके और मेरे पास याद करने के लिए बहुत से सखद पल हैं|
भाभी: तुम दुबारा कब आओगे?
मैं: अगले साल
भाभी: अगले साल? नहीं मानु... मैं तुम्हारे बिना इतने साल नहीं रह पाऊँगी| मैं मर जाऊंगी... वादा करो तुम जल्दी आओगे.... अगले महीने ही आओगे !!!
मैं: भाभी मैं अगले महीने कैसे आ सकता हूँ... तब तो मेरे स्कूल खुल जायेंगे|
भाभी: प्लीज मानु ...
इतना कहके भाभी सुबकने लगीं मुझसे उनका ये सुबकना नहीं देखा गया और मैंने उनके गले लगा लिया ... और उनकी नंगी पीठ को सहलाने लगा| जब मुझे लगा की भाभी थोड़ा शांत हो गईं तब मैंने उन्हें अपने से अलग किया और उठ के अपने कपडे पहनने चाहे|
भाभी: तुम जा रहे हो ....
मैं: हाँ भाभी रात बहुत हो चुकी है| मुझे वापस अपने बिस्तर पे जाना होगा नहीं तो अगर किसी ने मुझे बिस्तर पे नहीं देखा तो कहीं हंगामा खड़ा ना हो जाए|
भाभी: कल सुबह तो तुम चले ही जाओगे कम से कम कुछ समय मेरे पास भी तो बैठो...
मैं भाभी को मना नहीं कर सका और बिना कपडे पहने वापस भाभी के पास आके बैठ गया| मैं दिवार से सर लगा के बैठा था और भाभी मेरी कमर के पास सर कर के लेती हुई थीं... उन्होंने एक हाथ से मेरी कमर पे झप्पी डाल रखी थी| रात के करीब ढाई बज चुके थे... भाभी को नींद आने लगी थी ... और मैं उनके सर पे हाथ फेर रहा था| मुझे भी नींद का झौंका आने लगा था... जब मुझे लगा की भाभी गहरी नींद में हैं तब मैंने धीरे से उनका हाथ उठाया और चारपाई से उठ खड़ा हुआ| सब से पहले मैंने अपना कुरता पजामा पहना ... फिर भाभी की ओर देखा तो वो बिलकुल नग्न अवस्था में थी इसलिए मैंने पास ही पड़ी हुई चादर उठाई ओर उन्हें ओढ़ा दी| उनके माथे को चूमा और चुप चाप बहार चला आया| अपने बिस्तर में घुसते ही मुझे नींद आ गई .... जब होश आया तो सुबह के आठ बज रहे थे| मैं हड़बड़ा के उठा और बड़े घर की ओर भागा... देखा तो माँ ओर पिताजी दोनों तैयार हो चुके थे|
पिताजी: उठ गए लाड-साहब? थोड़ा और सो लो?
मैं: जी वो....
माँ: अब जल्दी कर थोड़ी देर में रिक्क्षे वाला आता ही होगा|
मैंने जल्दी-जल्दी ब्रश किया और नह धो के तैयार होगया.. मैं हैरान था की आखिर भाभी कहाँ है? अब तक तो वो मुझे मिलने आ जाती थीं? मैं सर में तेल लगाने का बहन करते हुए उनके कमरे की ओर चल दिया| वहां पहुँच के देखा की भाभी चारपाई पे मुँह लटकाये बैठी है...
मैं: भौजी? आप ऐसे मुँह लटकाये क्यों बैठे हो?
भाभी: तो क्या करूँ?
मैंने उनका हाथ पकड़ के उन्हें उठाया ... और उनका चेहरा ऊपर किया| मैं: आप मुझे रट हुए विदा करोगे?
भाभी टूट पड़ीं और मैंने उन्हें गले लगा लिया....
मैं: बस-बस भौजी... चुप हो जाओ| मैं.....
मैं कुछ कहना चाहता था परन्तु अपने आपको रोकते हुए अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया|
भाभी: मानु आई लव यू !!!
मैं: आई लव यू टू भौजी!!! बस अब चुप हो जाओ ... आपको मेरी कसम!
ये सुनके भाभी ने रोना बंद किया ... मैंने उनके आँसू पोछे .... भाभी के चेहरे पे थोड़े आस्चर्य के भाव थे| मैं उनके इस आस्चर्य का कारन जानता था.. क्योंकि वो ये सोच रहीं थी की आखिर मेरे मुख पे उनसे अलग होने के भाव क्यों नहीं है? मैं इस समय उन्हें कोई सफाई नहीं दे सकता था... इसका केवल एक ही उत्तर था| मैंने उनके होंठों को चुम लिया| ये चुम्बन उतना गहरा नहीं था और ना ही इसमें जूनून था! मेरा उद्देश्य केवल और केवल भाभी को सांत्वना देने का था .... इस चुम्बन के पश्चात मैंने उनसे तेल की शीशी माँगी... भाभी अंदर से तेल की शीशी ले आईं:
भाभी: लाओ मैं लगा दूँ...
मैंने उनकी बात का कोई विरोध नहीं किया क्योंकि मैंने सोचा की चलो यार एक आखरी बार उनसे तेल लगवा ही लेता हूँ उनके दिल को भी तसल्ली होगी| मैं नीचे बैठ गया और भाभी चारपाई पर बैठ के मेरे सर पे तेल लगाने लगी|
मैं: भौजी.... एक वादा करो की आप मुझे याद करके कभी राओगे नहीं?
भाभी: तुम मुझसे मेरी जान माँग लो पर ऐसा नहीं हो सकता की मैं तुम्हें याद ना करूँ.. और याद करुँगी तो मैं अपने आपको रोने से नहीं रोक सकती|
मैं: प्लीज भौजी... ऐसे मत बोलो| आप खुद सोचो की अगर आप मेरी जगह होते तो आपको कितनी ठेस पहुँचती यूए जनके की मैं आपको याद करके रो रहा हूँ|
भाभी: मानु ... मैं वादा तो नहीं करती पर कोशिश अवश्य करुँगी|
मैं: ठीक है... अब मैं चलता हूँ जाने का समय हो रहा है|
इतना कह के मैं बड़े घर की ओर चल दिया.. अपने बाल बनाये और समान उठा के बहार रख दिया| तभी रिक्क्षे वाला भी आ गया... हमें विदा करने के लिए घर के सब लोग आ गए थे.... यहाँ तक की माधुरी भी आई थी परन्तु मैंने उसपे ज्यादा ध्यान नहीं दिया| नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और वो बहुत उदास लग रही थी... मैंने उसके गालों को चूमा और विदाई ली| मैंने ध्यान दिया की भाभी ने अपने आपको किसी तरह से संभाला हुआ था.... यदि मैं उनकी जगह होता तो अब तक टूट चूका होता| सारे रास्ता मैं बस भाभी के बारे में सोचता रहा ... दिमाग में बस रात हुई घटना के सुखद सपने आ रहे थे| मैं ये सोच के रोमांच से भर उठा की जब भाभी को असल बात का पता चलेगा तो भाभी का क्या हाल होगा? खेर हमारी यात्रा का प्रोग्राम केवाल 2 दिन का था|
अब चलिए मैं अब उस राज पर से पर्दा उठाता हूँ.... मेरे और पिताजी के बीच में जो बात हुई थी उसे मैं आप सब के समक्ष पेश करता हूँ|
मैं: पिताजी मेरी आपसे एक दरख्वास्त है...
पिताजी: बोलो लाड-साहब!
मैं: पिताजी जब आपने और मैंने घूमने का प्रोग्राम बनाया था तब आपका कहना था की पहले हम यात्रा करेंगे और उसके बाद गाँवों जायेंगे| परन्तु मेरे जोर देने पे आपने प्रोग्राम बदल के पहले गाँव आने को रखा| ये मेरी सबसे बड़ी बेवकूफी थी!!! मैंने ये सोचा ही नहीं की बड़के दादा (बड़े चाचा) और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) कभी ऐसी यात्रा पे नहीं गए और ना ही जा पाएंगे| अब अगर हमें ये मौका मिला है तो क्यों न हम उनके लिए कुछ नहीं तो कम से कम प्रसाद ही ला के दे सकते हैं| उनके लिए यही यात्रा होगी!!!
पिताजी: बात तो तुमने पते की कि है... चलो देर से ही सही तुम्हें अकल तो आई| मैं जा के सबको बता देते हूँ कि हम यात्रा करने के बाद सीधा गाँव आएंगे और कुछ दिन रूक कर ही दिल्ली वापस जायेंगे|
मैं: नहीं पिताजी ... आप किसी को ये बात मत बताना| ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच ही रहेगी|| मैं माँ को समझा दूँगा| जब हम अचानक लौट के आएंगे तो घर भर के सब लोग खुश हो जायेंगे|
पिताजी: अरे वाह!!! ठीक है मैं कल के लिए रिक्क्षे वाले को बोल आता हूँ|
इतना कह के पिता जी चले गए... मैं बस भाभी के मुख पे वो ख़ुशी देखने को बेकरार था जो उन्हें मुझे दुबारा देख के मिलती| यही कारन है कि मैंने ये बात उनसे छुपाय रखी|
तीसरे दिन हम वाराणसी से निकल चुके थे ..... कोई सवारी न मिलने के कारन पिताजी ने टेम्पो किया| दोपहर के एक बजे होंगे और हमारा टेम्पो गाँवों पहुँच गया| टेम्पो की आवाज से सभी परिवारवाले आकर्शित हो देखने आये की कौन आया है? जब टेम्पो के पीछे से पिताजी निकले तो सभी के चेहरे खिल गए| सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी हमारा स्वागत किया... परन्तु मेर नज़रें भाभी को ढूंढ रहीं थी| मन व्याकुल हो रहा था... मैंने नेहा को इशारे से अपने पास बुलाया और उससे धीमी आवाज में पूछ्ने लगा:
मैं: नेहा... बेटा इधर आओ|
नेहा: जी चाचू...
मैं: बेटा आपकी मम्मी कहाँ हैं?
नेहा: मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्हें बुखार है.... उन्होंने दो दिन से कुछ खाया भी नहीं....
ये सुनते ही मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई!!! मैं तुरंत भाभी के घर की और भागा... वहां पहुँच के देखा तो भाभी चारपाई पर सो रहीं थी| मैंने उनके पास पहुँचा और उनके माथे पे हाथ रखा, उनका माथा तप रहा था| मेरी घबराहट के मारे हालत ख़राब हो रही थी| मैंने भाभी को पुकारा:
"भौजी.... भौजी.... प्लीज आँखें खोलो?"
मेरी आवाज सुनते ही भाभी ने अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलीं|
"मानु....तुम वापस आगये ??? मेरे लिए..."
मैं: भाभी ये अपना क्या हालत बना रखी है?
भाभी: कुछ नहीं... ये तो बस थोड़ा सा बुखार है.... और अब तुम आगये हो तो मैं ठीक हो जाऊंगी|
मैं: थोड़ा सा बुखार? आपने दो दिन से कुछ नहीं खाया ? सिर्फ मुझे याद कर-कर के आपने ये हाल बना लिया है| ये सब मेरी वजह से हो रहा है....
मेरी आँखों में आँसूं छलक आये थे ...
मैं: भौजी मैंने आपसे एक बात छुपाई थी... दरअसल उस दिन जब पिताजी ने यात्रा पे जाने की बात की थी तो मैंने पिताजी को गाँवों दुबारा आने को मना लिया था| मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था ... पर मुझे नहीं पता था की मेरी गैरहाज़री में आप अपना ये हाल बना लगी|
भाभी का शरीर इतना कमजोर लग रहा था की उन्हें उठ के बैठने में भी बहुत ताकत लगनी पड़ रही थी| उन्होंने मुझे अपनी ओर बुलाया... ओर कस के गले लगा लिया| उनका शरीर की गर्माहट मुझे कपड़ों के ऊपर से महसूस हो रही थी और मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था की मेरे पागलपन की सजा भाभी को मिली| अब मुझे सच में भाभी की चिंता होने लगी थी... मैं दो दिन के लिए क्या गया भाभी ने खाना-पीना छोड़ दिया अगर मैं साल भर के लिए गया होता तो भाभी का क्या हाल होता.....????
मैंने पलट के देखा तो नेहा गुम-सुम खड़ी हमें देख रही थी... मैंने उसे अपनी ओर बुलाया|
नेहा: चाचू...मम्मी को क्या हो गया है?
मैं: कुछ नहीं बेटा... अब मैं आ गया हूँ ना, आपकी मम्मी अब बिलकुल ठीक हो जाएँगी| आप मेरा एक काम करोगे?
नेहा: हाँ....
मैं: पहले आप अपनी मम्मी के लिए एक थाली में भोजन ले आओ मैं उन्हें अपने हाथ से खिलाऊँगा| फिर आप जा के दूकान से अपने लिए दस रुपये के चिप्स ले आना|
अब आगे....
मुझे सच में नहीं पता था की भाभी के अंदर मेरे प्रति इतनी वासना भरी है!!! अब जब मैं उनके दायें स्तन को निचोड़ने में लगा था भाभी ने अचानक ही अपनी कमर से मेरे लंड पे झटके मारना शुरू कर दिया| मज़ा तो बहुत आ रहा था पर मेरे अंदर का सैलाब फिर से उफान पे था... और छलकने के लिए तैयार था!!! छलकने का मतलब था भाभी का गर्भवती होना!!! ये सोचके मैं अपने आपको रोकना चाहता था परन्तु भाभी के तीव्र आक्रमण ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया| मैंने उन्हें रोकने में असमर्थ था परन्तु मैं ये गलती नहीं करना चाहता था, पिछली बार तो मैं बच गया था क्योंकि हमने सम्भोग खड़े-खड़े ही किया था जिसके कारन मेरी खुशकिस्मती से मेरा वीर्य भाभी की योनि से सीधा बहार आ गया और गर्भाशय तक नहीं पहुँचा| परन्तु इस स्थिति में वीर्य सीधा गर्भाशय तक जाता और परिणाम स्वरुप भाभी गर्भवती अवश्य होती| "भौजी.... प्लीज रुक जाओ!!! मैं झड़ने वाला हूँ!!!"
भाभी अभी भी नहीं रुकीं क्योंकि वो चरम पर लग-भग पहुँच ही गईं थी... इस कारन उनकी योनि मेरे लंड को निचोड़ ने में लगी थी| आइए लग रहा था की कोई दानव भाभी की योनि के भीतर मेरे लंड को चूस रहा हो!!!
"मानु.... प्लीज मत रोको खुद को !!! .... "
मैं: भाभी अगर मेरा आपके अंदर छूटा तो अब गर्भवती हो जाओगे|
भाभी: स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ..... अह्ह्हह्ह्ह्ह .... मैं यही चाहती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनू!!!
भाभी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गए .... इससे पहले की मैं झड़ता भाभी की योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया जिसने मेरे लंड को पूरी तरह गर्म-गर्म लावे में नहला दिया ... इसके बाद भी उनकी योनि ने मेरे लंड की इर्द-गिर्द अपनी पकड़ और कस ली थी| अब मेरा किसी भी समय छूटने वाला था ... मुझे अपने पूरे शरीर की शक्ति लगानी पड़ी .... अपने लंड को उनकी योनि से बहार निकलने में!!! जैसे ही मैंने अपना लंड बहार खींचा वो एक झटके से बहार आया और मैंने भाभी की योनि पे एक जोर दार धार के साथ अपना सारा वीर्य उनकी योनि के ऊपर गिरा दिया| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! वीर्य की धार बहती हुई भाभी की गांड तक जा रही थी.... भाभी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त था और उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पांच मिनट बाद भाभी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया| वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी कच्छी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|
भाभी:मानु... तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी?
मैं: भौजी... आपने ही कहा था की आपने कई सालों से भैया के साथ सम्भोग नहीं किया है.. ऐसे में अगर आप गर्भवती हो जाती तो क्या होता? भैया आपको पता नहीं कितने गंदे शब्दों से अपमानित करते ओर मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता| यदि मैं कमाने लायक होता तो मैं आपको कल ही भगा के ले जाता और आपसे शादी कर लेता|
भाभी: और नेहा?
मैं: उसे भी आपके साथ ले जाता... वो आपके बिना कैसे रहती और भले ही वो भैया की बेटी है पर वो भी मुझे आपके जितना ही प्यारी है|
भाभी: सच मानु तुम इतना प्यार करते हो मुझसे? फिर तुम मुझे छोड़ के क्यों जा रहे हो?
(ये कहते हुए फिर से उनके आँखों में आंसूं छलक आये थे|)
मैं: भौजी काश मैं इस सब को बदल पाता.... पर .....
(एक पल के लिए तो लगा की मैं भाभी को सब बता दूँ ... पर जैसे-तैसे कर के खुद को रोक|)
मैं: आपके और मेरे पास याद करने के लिए बहुत से सखद पल हैं|
भाभी: तुम दुबारा कब आओगे?
मैं: अगले साल
भाभी: अगले साल? नहीं मानु... मैं तुम्हारे बिना इतने साल नहीं रह पाऊँगी| मैं मर जाऊंगी... वादा करो तुम जल्दी आओगे.... अगले महीने ही आओगे !!!
मैं: भाभी मैं अगले महीने कैसे आ सकता हूँ... तब तो मेरे स्कूल खुल जायेंगे|
भाभी: प्लीज मानु ...
इतना कहके भाभी सुबकने लगीं मुझसे उनका ये सुबकना नहीं देखा गया और मैंने उनके गले लगा लिया ... और उनकी नंगी पीठ को सहलाने लगा| जब मुझे लगा की भाभी थोड़ा शांत हो गईं तब मैंने उन्हें अपने से अलग किया और उठ के अपने कपडे पहनने चाहे|
भाभी: तुम जा रहे हो ....
मैं: हाँ भाभी रात बहुत हो चुकी है| मुझे वापस अपने बिस्तर पे जाना होगा नहीं तो अगर किसी ने मुझे बिस्तर पे नहीं देखा तो कहीं हंगामा खड़ा ना हो जाए|
भाभी: कल सुबह तो तुम चले ही जाओगे कम से कम कुछ समय मेरे पास भी तो बैठो...
मैं भाभी को मना नहीं कर सका और बिना कपडे पहने वापस भाभी के पास आके बैठ गया| मैं दिवार से सर लगा के बैठा था और भाभी मेरी कमर के पास सर कर के लेती हुई थीं... उन्होंने एक हाथ से मेरी कमर पे झप्पी डाल रखी थी| रात के करीब ढाई बज चुके थे... भाभी को नींद आने लगी थी ... और मैं उनके सर पे हाथ फेर रहा था| मुझे भी नींद का झौंका आने लगा था... जब मुझे लगा की भाभी गहरी नींद में हैं तब मैंने धीरे से उनका हाथ उठाया और चारपाई से उठ खड़ा हुआ| सब से पहले मैंने अपना कुरता पजामा पहना ... फिर भाभी की ओर देखा तो वो बिलकुल नग्न अवस्था में थी इसलिए मैंने पास ही पड़ी हुई चादर उठाई ओर उन्हें ओढ़ा दी| उनके माथे को चूमा और चुप चाप बहार चला आया| अपने बिस्तर में घुसते ही मुझे नींद आ गई .... जब होश आया तो सुबह के आठ बज रहे थे| मैं हड़बड़ा के उठा और बड़े घर की ओर भागा... देखा तो माँ ओर पिताजी दोनों तैयार हो चुके थे|
पिताजी: उठ गए लाड-साहब? थोड़ा और सो लो?
मैं: जी वो....
माँ: अब जल्दी कर थोड़ी देर में रिक्क्षे वाला आता ही होगा|
मैंने जल्दी-जल्दी ब्रश किया और नह धो के तैयार होगया.. मैं हैरान था की आखिर भाभी कहाँ है? अब तक तो वो मुझे मिलने आ जाती थीं? मैं सर में तेल लगाने का बहन करते हुए उनके कमरे की ओर चल दिया| वहां पहुँच के देखा की भाभी चारपाई पे मुँह लटकाये बैठी है...
मैं: भौजी? आप ऐसे मुँह लटकाये क्यों बैठे हो?
भाभी: तो क्या करूँ?
मैंने उनका हाथ पकड़ के उन्हें उठाया ... और उनका चेहरा ऊपर किया| मैं: आप मुझे रट हुए विदा करोगे?
भाभी टूट पड़ीं और मैंने उन्हें गले लगा लिया....
मैं: बस-बस भौजी... चुप हो जाओ| मैं.....
मैं कुछ कहना चाहता था परन्तु अपने आपको रोकते हुए अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया|
भाभी: मानु आई लव यू !!!
मैं: आई लव यू टू भौजी!!! बस अब चुप हो जाओ ... आपको मेरी कसम!
ये सुनके भाभी ने रोना बंद किया ... मैंने उनके आँसू पोछे .... भाभी के चेहरे पे थोड़े आस्चर्य के भाव थे| मैं उनके इस आस्चर्य का कारन जानता था.. क्योंकि वो ये सोच रहीं थी की आखिर मेरे मुख पे उनसे अलग होने के भाव क्यों नहीं है? मैं इस समय उन्हें कोई सफाई नहीं दे सकता था... इसका केवल एक ही उत्तर था| मैंने उनके होंठों को चुम लिया| ये चुम्बन उतना गहरा नहीं था और ना ही इसमें जूनून था! मेरा उद्देश्य केवल और केवल भाभी को सांत्वना देने का था .... इस चुम्बन के पश्चात मैंने उनसे तेल की शीशी माँगी... भाभी अंदर से तेल की शीशी ले आईं:
भाभी: लाओ मैं लगा दूँ...
मैंने उनकी बात का कोई विरोध नहीं किया क्योंकि मैंने सोचा की चलो यार एक आखरी बार उनसे तेल लगवा ही लेता हूँ उनके दिल को भी तसल्ली होगी| मैं नीचे बैठ गया और भाभी चारपाई पर बैठ के मेरे सर पे तेल लगाने लगी|
मैं: भौजी.... एक वादा करो की आप मुझे याद करके कभी राओगे नहीं?
भाभी: तुम मुझसे मेरी जान माँग लो पर ऐसा नहीं हो सकता की मैं तुम्हें याद ना करूँ.. और याद करुँगी तो मैं अपने आपको रोने से नहीं रोक सकती|
मैं: प्लीज भौजी... ऐसे मत बोलो| आप खुद सोचो की अगर आप मेरी जगह होते तो आपको कितनी ठेस पहुँचती यूए जनके की मैं आपको याद करके रो रहा हूँ|
भाभी: मानु ... मैं वादा तो नहीं करती पर कोशिश अवश्य करुँगी|
मैं: ठीक है... अब मैं चलता हूँ जाने का समय हो रहा है|
इतना कह के मैं बड़े घर की ओर चल दिया.. अपने बाल बनाये और समान उठा के बहार रख दिया| तभी रिक्क्षे वाला भी आ गया... हमें विदा करने के लिए घर के सब लोग आ गए थे.... यहाँ तक की माधुरी भी आई थी परन्तु मैंने उसपे ज्यादा ध्यान नहीं दिया| नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और वो बहुत उदास लग रही थी... मैंने उसके गालों को चूमा और विदाई ली| मैंने ध्यान दिया की भाभी ने अपने आपको किसी तरह से संभाला हुआ था.... यदि मैं उनकी जगह होता तो अब तक टूट चूका होता| सारे रास्ता मैं बस भाभी के बारे में सोचता रहा ... दिमाग में बस रात हुई घटना के सुखद सपने आ रहे थे| मैं ये सोच के रोमांच से भर उठा की जब भाभी को असल बात का पता चलेगा तो भाभी का क्या हाल होगा? खेर हमारी यात्रा का प्रोग्राम केवाल 2 दिन का था|
अब चलिए मैं अब उस राज पर से पर्दा उठाता हूँ.... मेरे और पिताजी के बीच में जो बात हुई थी उसे मैं आप सब के समक्ष पेश करता हूँ|
मैं: पिताजी मेरी आपसे एक दरख्वास्त है...
पिताजी: बोलो लाड-साहब!
मैं: पिताजी जब आपने और मैंने घूमने का प्रोग्राम बनाया था तब आपका कहना था की पहले हम यात्रा करेंगे और उसके बाद गाँवों जायेंगे| परन्तु मेरे जोर देने पे आपने प्रोग्राम बदल के पहले गाँव आने को रखा| ये मेरी सबसे बड़ी बेवकूफी थी!!! मैंने ये सोचा ही नहीं की बड़के दादा (बड़े चाचा) और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) कभी ऐसी यात्रा पे नहीं गए और ना ही जा पाएंगे| अब अगर हमें ये मौका मिला है तो क्यों न हम उनके लिए कुछ नहीं तो कम से कम प्रसाद ही ला के दे सकते हैं| उनके लिए यही यात्रा होगी!!!
पिताजी: बात तो तुमने पते की कि है... चलो देर से ही सही तुम्हें अकल तो आई| मैं जा के सबको बता देते हूँ कि हम यात्रा करने के बाद सीधा गाँव आएंगे और कुछ दिन रूक कर ही दिल्ली वापस जायेंगे|
मैं: नहीं पिताजी ... आप किसी को ये बात मत बताना| ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच ही रहेगी|| मैं माँ को समझा दूँगा| जब हम अचानक लौट के आएंगे तो घर भर के सब लोग खुश हो जायेंगे|
पिताजी: अरे वाह!!! ठीक है मैं कल के लिए रिक्क्षे वाले को बोल आता हूँ|
इतना कह के पिता जी चले गए... मैं बस भाभी के मुख पे वो ख़ुशी देखने को बेकरार था जो उन्हें मुझे दुबारा देख के मिलती| यही कारन है कि मैंने ये बात उनसे छुपाय रखी|
तीसरे दिन हम वाराणसी से निकल चुके थे ..... कोई सवारी न मिलने के कारन पिताजी ने टेम्पो किया| दोपहर के एक बजे होंगे और हमारा टेम्पो गाँवों पहुँच गया| टेम्पो की आवाज से सभी परिवारवाले आकर्शित हो देखने आये की कौन आया है? जब टेम्पो के पीछे से पिताजी निकले तो सभी के चेहरे खिल गए| सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी हमारा स्वागत किया... परन्तु मेर नज़रें भाभी को ढूंढ रहीं थी| मन व्याकुल हो रहा था... मैंने नेहा को इशारे से अपने पास बुलाया और उससे धीमी आवाज में पूछ्ने लगा:
मैं: नेहा... बेटा इधर आओ|
नेहा: जी चाचू...
मैं: बेटा आपकी मम्मी कहाँ हैं?
नेहा: मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्हें बुखार है.... उन्होंने दो दिन से कुछ खाया भी नहीं....
ये सुनते ही मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई!!! मैं तुरंत भाभी के घर की और भागा... वहां पहुँच के देखा तो भाभी चारपाई पर सो रहीं थी| मैंने उनके पास पहुँचा और उनके माथे पे हाथ रखा, उनका माथा तप रहा था| मेरी घबराहट के मारे हालत ख़राब हो रही थी| मैंने भाभी को पुकारा:
"भौजी.... भौजी.... प्लीज आँखें खोलो?"
मेरी आवाज सुनते ही भाभी ने अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलीं|
"मानु....तुम वापस आगये ??? मेरे लिए..."
मैं: भाभी ये अपना क्या हालत बना रखी है?
भाभी: कुछ नहीं... ये तो बस थोड़ा सा बुखार है.... और अब तुम आगये हो तो मैं ठीक हो जाऊंगी|
मैं: थोड़ा सा बुखार? आपने दो दिन से कुछ नहीं खाया ? सिर्फ मुझे याद कर-कर के आपने ये हाल बना लिया है| ये सब मेरी वजह से हो रहा है....
मेरी आँखों में आँसूं छलक आये थे ...
मैं: भौजी मैंने आपसे एक बात छुपाई थी... दरअसल उस दिन जब पिताजी ने यात्रा पे जाने की बात की थी तो मैंने पिताजी को गाँवों दुबारा आने को मना लिया था| मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था ... पर मुझे नहीं पता था की मेरी गैरहाज़री में आप अपना ये हाल बना लगी|
भाभी का शरीर इतना कमजोर लग रहा था की उन्हें उठ के बैठने में भी बहुत ताकत लगनी पड़ रही थी| उन्होंने मुझे अपनी ओर बुलाया... ओर कस के गले लगा लिया| उनका शरीर की गर्माहट मुझे कपड़ों के ऊपर से महसूस हो रही थी और मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था की मेरे पागलपन की सजा भाभी को मिली| अब मुझे सच में भाभी की चिंता होने लगी थी... मैं दो दिन के लिए क्या गया भाभी ने खाना-पीना छोड़ दिया अगर मैं साल भर के लिए गया होता तो भाभी का क्या हाल होता.....????
मैंने पलट के देखा तो नेहा गुम-सुम खड़ी हमें देख रही थी... मैंने उसे अपनी ओर बुलाया|
नेहा: चाचू...मम्मी को क्या हो गया है?
मैं: कुछ नहीं बेटा... अब मैं आ गया हूँ ना, आपकी मम्मी अब बिलकुल ठीक हो जाएँगी| आप मेरा एक काम करोगे?
नेहा: हाँ....
मैं: पहले आप अपनी मम्मी के लिए एक थाली में भोजन ले आओ मैं उन्हें अपने हाथ से खिलाऊँगा| फिर आप जा के दूकान से अपने लिए दस रुपये के चिप्स ले आना|
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे....
मेरा आदेश सुन के नेहा भागती हुई गई और खाना ले आई ... जब मैंने उसे दस रुपये दिए तो वो लेने से जिझक रही थी| मैंने भाभी की ओर देखा तो वो उसे घूर रही थी|
मैं: नेहा आप मम्मी की ओर मत देखो... ये लो दस रुपये ओर जाओ चिप्स ले के आओ|
भाभी: मानु... देखो ये बिगड़ जाएगी और फिर मुझसे ये अपने पापा से पैसे माँगेगी| जब नहीं मिलेंगे तब रोयेगी...
मैं: नेहा ... वादा करो की आप कभी भी मम्मी को या पापा को तंग नहीं करोगे और कभी भी मेरे आलावा किसी से पैसे नहीं लोगे?
नेहा ने हाँ में मुंडी हिला दी और मैंने उसे पैसे थमते हुए भेज दिया|
मैं: अब तो आप खुश हो ना... चलो अब मैं आपको अपने हाथ से भोजन खिलाता हूँ|
भाभी: मैं खा लूंगीं... तुम जाओ कपडे बदल लो... नह धो लो... काफी थक गए होगे|
मैं: नहीं... जब तक आप मेरे हाथ से भोजन नहीं करोगे मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं|
भोजन में अरहर की दाल, चावल साथ ही भिन्डी की सब्जी और दो रोटियाँ थीं| मैं अपने हाथ से भाभी को दाल चावल खिलाने लगा| जब भाभी ने अपने हाथ से मुझे रोटी सब्जी खिलाने लगीं तो मैंने मन कर दिया इस्पे भाभी ने अपना मुंह फुला लिया| उनकी ख़ुशी के लिए मैंने एक कौर खा लिया परन्तु उससे ज्यादा नहीं खाया!!! अभी मैं भाभी को अपने हाथ से भोजन करा ही रहा था की नेहा भी आ गई चिप्स का पैकेट ले के| वो भी वहीँ चारपाई पर बैठ खाने लगी... उसके चेहरा खिल गया था| जब मेरी उँगलियाँ भाभी के लबों को छूती तो मुझे एक अजीब सा आनंद आता और दाल चावल खिलते समय कई बार मेरी उँगलियाँ उनकी जीभ से भी स्पर्श होती तो आनंद ख़ुशी में बदल जाता| भाभी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी और एक पल के लिए मैं चिंता मुक्त हो गया था|
भोजन करीब आधा हो चूका था की माँ मुझे भोजन के लिए बुलाने आ गईं| उन्होंने मुझे भाभी को अपने हाथ से भोजन खिलाते देख लिया था!!!
माँ: क्या हुआ बहु? सब ठीक तो है ना?
भाभी: कुछ नहीं चाची.. सब ठीक है|
मैं: माँ भाभी का शरीर छू के देखो भट्टी की तरह टप रहा है और इनका कहना है की कुछ नहीं हुआ| दो दिन से कुछ काया भी नहीं तभी तो देखो कितनी कमजोरी आ गई है|
माँ: क्यों बहु, तुमने खाना-पीना क्यों छोड़ दिया?
नेहा: चाचू के लिए!!!
नेहा की बात सुन मेरे कान लाल हो गए, शरीर सुन्न हो गया| पर इसमें उस बच्ची की क्या गलती उसने जो महसूस किया और देखा उसने अबोध बन के सब कह दिया| ये तो शुक्र है की भाभी ने उसे आँखें दिखा के डरा दिया वार्ना वो और पता नहीं क्या-क्या बक देती| माँ ने बड़े प्रेम के साथ भाभी से कहा:
माँ: बहु.. मैं जानती हूँ की तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो... बचपन से ये तुम्हारे साथ खेल है बल्कि इसने तो तुम्हारी गोद में ही बैठ के दूध भी पिया है पर तुम्हारा इससे इतना "मोह" बढ़ाना ठीक नहीं| कल को हम चले जायेंगे तो तुम इसे याद कर-कर के अपना जीना दुर्भर कर लगी.. अभी तुम्हारी छोटी सी बच्ची भी है ... इसका ख्याल रखो| और तुम लाड-साहब अपनी बहूजी को खाना खिला के आ के भोजन कर लो... सुबह से अन्न का एक दाना भी नहीं गया इसके मुँह में|
माँ की बात थी तो कड़वी पर एक दम सच थी!!! पर माँ नहीं जानती थी की भाभी और मेरे बीच में एक अटूट प्रेम है .. ऐसा प्रेम जो सिर्फ सच्चे जीवन साथियों के बीच होता है|माँ की बातों ने भाभी के ऊपर कुछ गहरा प्रभाव डाला था| थोड़ी देर पहले भाभी का चेहरा सूर्य के सामान दमक रहा था और माँ की बात सुनने के बाद उनके मुख पे फिर से चिंता और दुःख के बदल छा गए थे|
भाभी: मानु... तुमने सुबह से कुछ क्यों नहीं खाया?
मैं: भौजी... दरअसल मैं आपके चेहरे पे वो ख़ुशी के भाव देखने के लिए बैचैन था जो आपको मुझे यहाँ अचानक देख के आते| पर ...
भाभी: पर वार कुछ नहीं ...मैं भोजन खा लूँगी... पहले तुम जा के भोजन करो!
मैं: नहीं भौजी... मेरी वजह से आपने दो दिन खाना नहीं खाया और अब ये मेरी जिम्मेदार है की मैं आपको भोजन अपने हाथ से कराऊँ.. और वैसे भी अब बस थोड़ा ही बचा है .. आप भोजन खत्म करो... फिर मैं आपको दवाई दूँगा और फिर मैं भोजन करूँगा| ये मेरी जिद्द है !!!
भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन खत्म किया और फिर मैंने भाभी को क्रोसिन की एक गोली ला के दी ... जब मुझे संतुष्टि हो गई की भाभी अब आराम से यहाँ लेटी रहेंगी तब मैं भोजन करने गया और साथ ही नेहा को भी अपने साथ ले गया| भोजन के पश्चात मैंने अपने कपडे बदले और वापस भाभी के पास आ गया... आ कर देखा तो नेहा सुबक रही थी और भाभी भी उदास थी|
मैं: क्या हुआ नेहा? आप रो क्यों रहे हो? किसी ने कुछ कहा आपसे?
नेहा कुछ नहीं बोली बस मेरे गले लग गई और भाभी की ओर इशारा करके उन्हें दोषी करार दे दिया| मैं समझ चूका था की आखिर उसे क्यों डाँट पड़ी है|
मैं: भौजी... आपसे मैं बाद में बात करता हूँ पहले मैं अपनी गुड़िया को सुला दूँ|
इतना कह के मैं नेहा को गोद में उठा के बहार चला गया और उसे चुप करा के थोड़ा घुमाया और फिर सुला दिया| मैं पुनः भाभी के पास लौटा ...
मैं: हाँ तो आपने क्यों डाँटा मेरी गुड़िया को? इसीलिए न की उसने बिना सोचे समझे माँ के सामने सब कह दिया... तो इसमें इस अबोध बच्ची का क्या दोष उसने वाही कहा जो उसने देखा..
भाभी: उसे अकाल होनी चाहिए की किस के सामने क्या कहना है|
मैं: भौजी वो सिर्फ *** साल की है! उसे अभी इतनी समझ नहीं है... और मैं जानता हूँ आप को गुस्से किसी और बात का है| आप माँ की बात सोच-सोच के चिंतित हो रहे हो और उसका गुस्सा "मेरी बेटी" पर क्यों निकाल रहे हो? गुस्सा निकलना है तो मुझ पे निकालो ना किसने रोक है आपको|
भाभी: चाची सही कहती हैं.. मुझे अपने आप पर काबू रखना सीखना होगा| पर मैं क्या करूँ .... मुझे तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करना अच्छा लगता है... तुम्हारा स्पर्श करना .... तुम्हारा बातें करने का ढंग और आज जब तुमने नेहा को “अपनी बेटी” कहा तो मैं तुम्हें बता नहीं सकती की मुझे कितनी ख़ुशी मिली| तुम्हारे बिना ये दो दिन मैंने कैसे काटे हैं ये मैं ही जानती हूँ!!! अगर तुम आज नहीं आये होते तो शायद मैं मर ही जाती|
मैं: भौजी आप ये क्या कह रहे हो? आप अपनी जान क्यों देना चाहते हो? आपको नेहा का जरा भी ख्याल नहीं आया? अगर आपको आज कुछ भी हो जाता तो नेहा का क्या होता? भैया को तो उसकी फ़िक्र जरा भी नहीं है| मैं नेहा की जिम्मेदारी जरूरर उठा लेता.. कैसे न कैसे कर के माँ और पिताजी को समझा भी लेता और नेहा को अपने पास रखता... उसे अच्छी परवरिश देता पर उसकी इस हालत का जिम्मेदार तो मैं ही होता ...........और मैं... मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाता|
मेरी बातों ने भाभी को भावुक कर दिया था.... और किसी हद्द तक मैं भी अपने अंदर आये इस बदलाव से चकित था| कैसे मुझ में इतना बदलाव आ गया की मैं नेहा की जिम्मेदारी तक उठाने के लिए तैयार हो गया| खेर भाभी से बातें करते-करते समय कैसे बीता पता ही नहीं चला| शाम के करीब साढ़े तीन हुए थे ... भाभी ने मुझे बताया की उनके सर दर्द हो रहा है|
मैं: मैं आपका सर दबा देता हूँ|
मैं भाभी के सिराहने बैठ गया और उनका सर अपनी गोद में ले कर धीरे-धीरे दबाने लगा| भाभी को थोड़ा आराम मिला तो उन्हें नींद आने लगी... और भाभी मेरी गोद में ही सर रखे सो गई| यात्रा की थकान अब मुझ पे भी जोर दिखने लगी और मुझे कब नन्द आ गई पता ही नहीं चला| अभी आँख लगे करीबन घंटा भर ही हुआ हो ग की एक कड़क आवाज मेरे कानों में पड़ी:
चन्दर भैया: अरे वाह !!! मानु भैया को जरा सा भी चैन नहीं लेने देगी तू? अभी-अभी थके हारे आएं हैं और तूने अपनी तीमारदारी करनी शुरू कर दी| अरे मैं पूछता हूँ ऐसी कौन सी बिमारी हो गई है तुझे?
भैया की कड़कती हुई आवाज सुन के भाभी उठ के बैठ गईं.. हालां की उनके शरीर में उतनी ताकत तो नहीं थी फिर भी जैसे-तैसे वो उठ के बैठी|
मैं: भैया आप भाभी को क्यों डाँट रहे हो....उनकी तबियत ठीक नहीं है... भुखार से सारा बदन तप रहा है और आप हो कि आप उन्हें ही डाँट रहे हो| भाभी का कोई कसूर नहीं है, उनके सर दर्द हो रहा था तो मैंने जबरदस्त की कि मैं आपका सर दबा देता हूँ| सर दबाते हुए कब दोनों कि आँख लग गई पता ही नहीं चला|
मेरी बात का भैया के पास कोई जवाब नहीं था इसलिए वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| चन्दर भैया के शब्दों ने भाभी के दिल को घायल कर दिया था .... भाभी किसी तरह लडखडाती हुई उठ खड़ी हुई, और बाहर जाने लगीं|
मैं: भौजी? आप कहाँ जा रहे हो?
भाभी: बाहर ... कुछ काम निपटा लूँ| दो दिन से कोई काम नहीं किया मैंने.....
मैंने भाग कर भाभी का हाथ थामते हुए उन्हें रोका...
मैं: भाभी आपको मेरी कसम प्लीज.... भैया कि बातों पे ध्यान मत दो| मैं जानता हूँ आपको उनकी बातों से आघात लगा है... उनको आपकी कोई फ़िक्र नहीं है ... आपको ख़ुशी मिलती है तो उन्हें जलन होती है| आपका शरीर बहुत कमजोर है.... और अगर आप काम करने कि जिद्द करोगे तो मैं आपको छोड़के चला जाऊँगा|
भाभी: नहीं मानु... ऐसा मत कहो| मैं वही करुँगी जो तुम कहोगे पर मुझे छोड़के कहीं मत जाना|
मैंने भाभी को सहारा दे के चारपाई तक लाया और उन्हें पुनः लेटा दिया| घडी में समय देखा तो शाम के पाँच बजे थे| मैं रसोई कि ओर गया और भाभी और अपने लिए चाय और बिस्कुट ले आया| भाभी को चाय पिलाई और उन्हें अपनी यात्रा के बारे में बताया ... मेरी कोशिश थी कि भाभी दुखद बातों के बारे में कम से कम सोचें| रात होने लगी थी और भाभी के घर के आँगन में लगे रात रानी के फूलों कि खुशबु उनके कमरे को महका रही थी... माहोल ररोमांटिक हो रहा था.... तभी मुझे एक बात याद आई जो मैं भाभी से पूछना चाहता था:
मैं: भौजी एक बात बताओ... मेरे जाने से एक दिन पहले जब मैं रसिका भाभी के साथ रात्रि में भोजन कर रहा था तब आपने नेहा को मेरे पीछे क्यों भेज दिया था?
भाभी: हा.. हा... हा... वो दरअसल मुझे डर था कि कहीं तुम्हारी भाभी तुम्हें बहला-फुसला न ले और....
मैं: क्या? आपको सच में ऐसा लगता है कि मैं और वो.... दरअसल अगर मैं उनके पास जा के इधर उधर कि बातें नहीं करता और उनका मन ना लगाता तो वो रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे सोती और फिर रात को अजय भैया और उनका युद्ध शुरू होता.. और आपका सरप्राइज ख़राब हो जाता|
भाभी: ओह्ह !!! मानु सच में तुम्हारे पास हर समस्या का हल है.. वैसे तुमने कभी गोर नहीं किया पर माधुरी और तुम्हारी रसिका भाभी तुम्हें भूखे भेड़िये कि तरह घूरते हैं!!! अगर उन्हें मौका मिल गया तो तुम्हें नोच के खा जायेंगे... हा..हा....हा...
मैं: मुझ में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं?
भाभी: यही तो तुम नहीं जानते.... तुम्हारा भोलापन ही सबको लुभाता है|
मैं: अच्छा जी!!!! पर भाभी यकीन मानो मेरी उन दोनों में बिलकुल ही दिलचस्पी नहीं है...
भाभी: मैं जानती हूँ... तुम सिर्फ मुझसे प्यार करते हो|
मैं: और करता रहूँगा....
भोजन का समय हो रहा था .. इसलिए मैं भाभी और अपने लिए भोजन ले आया| इस बार भाभी अपने हाथ से भोजन कर रही थी| उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा और सबसे ज्यादा मैं खुश था... नेहा भी मेरे बगल में बैठी भोजन कर रही थी| वो थोड़ा डरी- डरी सी लग रही थी.... जब हमारा भोजन हो गया तब मैंने सोचा कि उसका डर थोड़ा कम किया जाए|
अब आगे....
मेरा आदेश सुन के नेहा भागती हुई गई और खाना ले आई ... जब मैंने उसे दस रुपये दिए तो वो लेने से जिझक रही थी| मैंने भाभी की ओर देखा तो वो उसे घूर रही थी|
मैं: नेहा आप मम्मी की ओर मत देखो... ये लो दस रुपये ओर जाओ चिप्स ले के आओ|
भाभी: मानु... देखो ये बिगड़ जाएगी और फिर मुझसे ये अपने पापा से पैसे माँगेगी| जब नहीं मिलेंगे तब रोयेगी...
मैं: नेहा ... वादा करो की आप कभी भी मम्मी को या पापा को तंग नहीं करोगे और कभी भी मेरे आलावा किसी से पैसे नहीं लोगे?
नेहा ने हाँ में मुंडी हिला दी और मैंने उसे पैसे थमते हुए भेज दिया|
मैं: अब तो आप खुश हो ना... चलो अब मैं आपको अपने हाथ से भोजन खिलाता हूँ|
भाभी: मैं खा लूंगीं... तुम जाओ कपडे बदल लो... नह धो लो... काफी थक गए होगे|
मैं: नहीं... जब तक आप मेरे हाथ से भोजन नहीं करोगे मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं|
भोजन में अरहर की दाल, चावल साथ ही भिन्डी की सब्जी और दो रोटियाँ थीं| मैं अपने हाथ से भाभी को दाल चावल खिलाने लगा| जब भाभी ने अपने हाथ से मुझे रोटी सब्जी खिलाने लगीं तो मैंने मन कर दिया इस्पे भाभी ने अपना मुंह फुला लिया| उनकी ख़ुशी के लिए मैंने एक कौर खा लिया परन्तु उससे ज्यादा नहीं खाया!!! अभी मैं भाभी को अपने हाथ से भोजन करा ही रहा था की नेहा भी आ गई चिप्स का पैकेट ले के| वो भी वहीँ चारपाई पर बैठ खाने लगी... उसके चेहरा खिल गया था| जब मेरी उँगलियाँ भाभी के लबों को छूती तो मुझे एक अजीब सा आनंद आता और दाल चावल खिलते समय कई बार मेरी उँगलियाँ उनकी जीभ से भी स्पर्श होती तो आनंद ख़ुशी में बदल जाता| भाभी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी और एक पल के लिए मैं चिंता मुक्त हो गया था|
भोजन करीब आधा हो चूका था की माँ मुझे भोजन के लिए बुलाने आ गईं| उन्होंने मुझे भाभी को अपने हाथ से भोजन खिलाते देख लिया था!!!
माँ: क्या हुआ बहु? सब ठीक तो है ना?
भाभी: कुछ नहीं चाची.. सब ठीक है|
मैं: माँ भाभी का शरीर छू के देखो भट्टी की तरह टप रहा है और इनका कहना है की कुछ नहीं हुआ| दो दिन से कुछ काया भी नहीं तभी तो देखो कितनी कमजोरी आ गई है|
माँ: क्यों बहु, तुमने खाना-पीना क्यों छोड़ दिया?
नेहा: चाचू के लिए!!!
नेहा की बात सुन मेरे कान लाल हो गए, शरीर सुन्न हो गया| पर इसमें उस बच्ची की क्या गलती उसने जो महसूस किया और देखा उसने अबोध बन के सब कह दिया| ये तो शुक्र है की भाभी ने उसे आँखें दिखा के डरा दिया वार्ना वो और पता नहीं क्या-क्या बक देती| माँ ने बड़े प्रेम के साथ भाभी से कहा:
माँ: बहु.. मैं जानती हूँ की तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो... बचपन से ये तुम्हारे साथ खेल है बल्कि इसने तो तुम्हारी गोद में ही बैठ के दूध भी पिया है पर तुम्हारा इससे इतना "मोह" बढ़ाना ठीक नहीं| कल को हम चले जायेंगे तो तुम इसे याद कर-कर के अपना जीना दुर्भर कर लगी.. अभी तुम्हारी छोटी सी बच्ची भी है ... इसका ख्याल रखो| और तुम लाड-साहब अपनी बहूजी को खाना खिला के आ के भोजन कर लो... सुबह से अन्न का एक दाना भी नहीं गया इसके मुँह में|
माँ की बात थी तो कड़वी पर एक दम सच थी!!! पर माँ नहीं जानती थी की भाभी और मेरे बीच में एक अटूट प्रेम है .. ऐसा प्रेम जो सिर्फ सच्चे जीवन साथियों के बीच होता है|माँ की बातों ने भाभी के ऊपर कुछ गहरा प्रभाव डाला था| थोड़ी देर पहले भाभी का चेहरा सूर्य के सामान दमक रहा था और माँ की बात सुनने के बाद उनके मुख पे फिर से चिंता और दुःख के बदल छा गए थे|
भाभी: मानु... तुमने सुबह से कुछ क्यों नहीं खाया?
मैं: भौजी... दरअसल मैं आपके चेहरे पे वो ख़ुशी के भाव देखने के लिए बैचैन था जो आपको मुझे यहाँ अचानक देख के आते| पर ...
भाभी: पर वार कुछ नहीं ...मैं भोजन खा लूँगी... पहले तुम जा के भोजन करो!
मैं: नहीं भौजी... मेरी वजह से आपने दो दिन खाना नहीं खाया और अब ये मेरी जिम्मेदार है की मैं आपको भोजन अपने हाथ से कराऊँ.. और वैसे भी अब बस थोड़ा ही बचा है .. आप भोजन खत्म करो... फिर मैं आपको दवाई दूँगा और फिर मैं भोजन करूँगा| ये मेरी जिद्द है !!!
भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन खत्म किया और फिर मैंने भाभी को क्रोसिन की एक गोली ला के दी ... जब मुझे संतुष्टि हो गई की भाभी अब आराम से यहाँ लेटी रहेंगी तब मैं भोजन करने गया और साथ ही नेहा को भी अपने साथ ले गया| भोजन के पश्चात मैंने अपने कपडे बदले और वापस भाभी के पास आ गया... आ कर देखा तो नेहा सुबक रही थी और भाभी भी उदास थी|
मैं: क्या हुआ नेहा? आप रो क्यों रहे हो? किसी ने कुछ कहा आपसे?
नेहा कुछ नहीं बोली बस मेरे गले लग गई और भाभी की ओर इशारा करके उन्हें दोषी करार दे दिया| मैं समझ चूका था की आखिर उसे क्यों डाँट पड़ी है|
मैं: भौजी... आपसे मैं बाद में बात करता हूँ पहले मैं अपनी गुड़िया को सुला दूँ|
इतना कह के मैं नेहा को गोद में उठा के बहार चला गया और उसे चुप करा के थोड़ा घुमाया और फिर सुला दिया| मैं पुनः भाभी के पास लौटा ...
मैं: हाँ तो आपने क्यों डाँटा मेरी गुड़िया को? इसीलिए न की उसने बिना सोचे समझे माँ के सामने सब कह दिया... तो इसमें इस अबोध बच्ची का क्या दोष उसने वाही कहा जो उसने देखा..
भाभी: उसे अकाल होनी चाहिए की किस के सामने क्या कहना है|
मैं: भौजी वो सिर्फ *** साल की है! उसे अभी इतनी समझ नहीं है... और मैं जानता हूँ आप को गुस्से किसी और बात का है| आप माँ की बात सोच-सोच के चिंतित हो रहे हो और उसका गुस्सा "मेरी बेटी" पर क्यों निकाल रहे हो? गुस्सा निकलना है तो मुझ पे निकालो ना किसने रोक है आपको|
भाभी: चाची सही कहती हैं.. मुझे अपने आप पर काबू रखना सीखना होगा| पर मैं क्या करूँ .... मुझे तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करना अच्छा लगता है... तुम्हारा स्पर्श करना .... तुम्हारा बातें करने का ढंग और आज जब तुमने नेहा को “अपनी बेटी” कहा तो मैं तुम्हें बता नहीं सकती की मुझे कितनी ख़ुशी मिली| तुम्हारे बिना ये दो दिन मैंने कैसे काटे हैं ये मैं ही जानती हूँ!!! अगर तुम आज नहीं आये होते तो शायद मैं मर ही जाती|
मैं: भौजी आप ये क्या कह रहे हो? आप अपनी जान क्यों देना चाहते हो? आपको नेहा का जरा भी ख्याल नहीं आया? अगर आपको आज कुछ भी हो जाता तो नेहा का क्या होता? भैया को तो उसकी फ़िक्र जरा भी नहीं है| मैं नेहा की जिम्मेदारी जरूरर उठा लेता.. कैसे न कैसे कर के माँ और पिताजी को समझा भी लेता और नेहा को अपने पास रखता... उसे अच्छी परवरिश देता पर उसकी इस हालत का जिम्मेदार तो मैं ही होता ...........और मैं... मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाता|
मेरी बातों ने भाभी को भावुक कर दिया था.... और किसी हद्द तक मैं भी अपने अंदर आये इस बदलाव से चकित था| कैसे मुझ में इतना बदलाव आ गया की मैं नेहा की जिम्मेदारी तक उठाने के लिए तैयार हो गया| खेर भाभी से बातें करते-करते समय कैसे बीता पता ही नहीं चला| शाम के करीब साढ़े तीन हुए थे ... भाभी ने मुझे बताया की उनके सर दर्द हो रहा है|
मैं: मैं आपका सर दबा देता हूँ|
मैं भाभी के सिराहने बैठ गया और उनका सर अपनी गोद में ले कर धीरे-धीरे दबाने लगा| भाभी को थोड़ा आराम मिला तो उन्हें नींद आने लगी... और भाभी मेरी गोद में ही सर रखे सो गई| यात्रा की थकान अब मुझ पे भी जोर दिखने लगी और मुझे कब नन्द आ गई पता ही नहीं चला| अभी आँख लगे करीबन घंटा भर ही हुआ हो ग की एक कड़क आवाज मेरे कानों में पड़ी:
चन्दर भैया: अरे वाह !!! मानु भैया को जरा सा भी चैन नहीं लेने देगी तू? अभी-अभी थके हारे आएं हैं और तूने अपनी तीमारदारी करनी शुरू कर दी| अरे मैं पूछता हूँ ऐसी कौन सी बिमारी हो गई है तुझे?
भैया की कड़कती हुई आवाज सुन के भाभी उठ के बैठ गईं.. हालां की उनके शरीर में उतनी ताकत तो नहीं थी फिर भी जैसे-तैसे वो उठ के बैठी|
मैं: भैया आप भाभी को क्यों डाँट रहे हो....उनकी तबियत ठीक नहीं है... भुखार से सारा बदन तप रहा है और आप हो कि आप उन्हें ही डाँट रहे हो| भाभी का कोई कसूर नहीं है, उनके सर दर्द हो रहा था तो मैंने जबरदस्त की कि मैं आपका सर दबा देता हूँ| सर दबाते हुए कब दोनों कि आँख लग गई पता ही नहीं चला|
मेरी बात का भैया के पास कोई जवाब नहीं था इसलिए वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| चन्दर भैया के शब्दों ने भाभी के दिल को घायल कर दिया था .... भाभी किसी तरह लडखडाती हुई उठ खड़ी हुई, और बाहर जाने लगीं|
मैं: भौजी? आप कहाँ जा रहे हो?
भाभी: बाहर ... कुछ काम निपटा लूँ| दो दिन से कोई काम नहीं किया मैंने.....
मैंने भाग कर भाभी का हाथ थामते हुए उन्हें रोका...
मैं: भाभी आपको मेरी कसम प्लीज.... भैया कि बातों पे ध्यान मत दो| मैं जानता हूँ आपको उनकी बातों से आघात लगा है... उनको आपकी कोई फ़िक्र नहीं है ... आपको ख़ुशी मिलती है तो उन्हें जलन होती है| आपका शरीर बहुत कमजोर है.... और अगर आप काम करने कि जिद्द करोगे तो मैं आपको छोड़के चला जाऊँगा|
भाभी: नहीं मानु... ऐसा मत कहो| मैं वही करुँगी जो तुम कहोगे पर मुझे छोड़के कहीं मत जाना|
मैंने भाभी को सहारा दे के चारपाई तक लाया और उन्हें पुनः लेटा दिया| घडी में समय देखा तो शाम के पाँच बजे थे| मैं रसोई कि ओर गया और भाभी और अपने लिए चाय और बिस्कुट ले आया| भाभी को चाय पिलाई और उन्हें अपनी यात्रा के बारे में बताया ... मेरी कोशिश थी कि भाभी दुखद बातों के बारे में कम से कम सोचें| रात होने लगी थी और भाभी के घर के आँगन में लगे रात रानी के फूलों कि खुशबु उनके कमरे को महका रही थी... माहोल ररोमांटिक हो रहा था.... तभी मुझे एक बात याद आई जो मैं भाभी से पूछना चाहता था:
मैं: भौजी एक बात बताओ... मेरे जाने से एक दिन पहले जब मैं रसिका भाभी के साथ रात्रि में भोजन कर रहा था तब आपने नेहा को मेरे पीछे क्यों भेज दिया था?
भाभी: हा.. हा... हा... वो दरअसल मुझे डर था कि कहीं तुम्हारी भाभी तुम्हें बहला-फुसला न ले और....
मैं: क्या? आपको सच में ऐसा लगता है कि मैं और वो.... दरअसल अगर मैं उनके पास जा के इधर उधर कि बातें नहीं करता और उनका मन ना लगाता तो वो रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे सोती और फिर रात को अजय भैया और उनका युद्ध शुरू होता.. और आपका सरप्राइज ख़राब हो जाता|
भाभी: ओह्ह !!! मानु सच में तुम्हारे पास हर समस्या का हल है.. वैसे तुमने कभी गोर नहीं किया पर माधुरी और तुम्हारी रसिका भाभी तुम्हें भूखे भेड़िये कि तरह घूरते हैं!!! अगर उन्हें मौका मिल गया तो तुम्हें नोच के खा जायेंगे... हा..हा....हा...
मैं: मुझ में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं?
भाभी: यही तो तुम नहीं जानते.... तुम्हारा भोलापन ही सबको लुभाता है|
मैं: अच्छा जी!!!! पर भाभी यकीन मानो मेरी उन दोनों में बिलकुल ही दिलचस्पी नहीं है...
भाभी: मैं जानती हूँ... तुम सिर्फ मुझसे प्यार करते हो|
मैं: और करता रहूँगा....
भोजन का समय हो रहा था .. इसलिए मैं भाभी और अपने लिए भोजन ले आया| इस बार भाभी अपने हाथ से भोजन कर रही थी| उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा और सबसे ज्यादा मैं खुश था... नेहा भी मेरे बगल में बैठी भोजन कर रही थी| वो थोड़ा डरी- डरी सी लग रही थी.... जब हमारा भोजन हो गया तब मैंने सोचा कि उसका डर थोड़ा कम किया जाए|