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भौजी बिलकुल घबरा गईं और बोलीं; "हाय राम!!! आपका बदन तो जल रहा है|" इतना कहके वो चलीं गईं... मैंने वापस कम्बल ओढ़ा और सो गया| उसके बाद मुझे अपने पास लोगों की आवाज सुनाई दी और उसमें से एक आवाज जानी पहचानी थी| ये कोई और नहीं डॉक्टर साहब थे| वो मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे पर मैं जानबूझ के सोने का बहन कर रहा था, क्योंकि मैं जानता था की अगर मैं उठ गया तो ये जर्रूर पूछेंगे की तुमने खाना क्यों नहीं खाया| इसलिए मैं सोने का ड्रामा करता रहा .... मैं उनकी आवाजें साफ़ सुन सकता था... डॉक्टर साहब भौजी से कह रहे थे की; " देखिये आप मानु की सबसे अच्छी दोस्त हैं.. जब आप बीमार पड़ीं थी तब इन्होने आपका ध्यान रखा था और अब चूँकि ये बीमार हैं तो एक अच्छा दोस्त होने के नाते आपको इनका ख्याल रखें है| दवाई समय पर देना और खाने-पीने का भी ध्यान रखें| मौसम में आये बदलाव से इन्हें इतनी परेशानी हुई है|
पिताजी: डॉक्टर साहब लड़का बारिश में भीग गया था इसीलिए इतना बीमार पड़ा है|
डॉक्टर साहब: देखिये अंकल, मेरे अनुसार थोड़ा-बहुत भीगने से कोई इतना बीमार नहीं पड़ता, केवल जुखाम ही तंग करता है| और ऐसा भी नहीं है की मानु शारीरिक रूप से कमजोर हो, मेरा अनुमान है की इन्होने उस दिन कुछ ज्यादा ही मस्ती की है बारिश में और ऊपर से आपने बताया की कल पूरा दिन कुछ खाया भी नहीं... मैं सलाह दूंगा की आप इन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम दें तथा थोड़ा ख्याल रखें और ये काम आपका है भाभी जी| खेर मैं एक इंजेक्शन लगा देता हूँ, बुखार कम हो जायेगा|
इंजेक्शन का नाम सुन के मेरी फटी ... पर क्या करता चुप-चाप लेटा रहा| आखिर डॉक्टर ने सुई लगाई और अपने को रोकने के बावजूद मुंह से "आह" निकल ही गई| डॉक्टर चला गया और फिर कुछ देर बाद भौजी ने मुझे जगाया और सामने बैठ के खाना खिलाया| कमरे में पिताजी की मजद्गी थी इसलिए डर के मारे मैंने भोजन कर लिया| रात्रि तक भौजी ने मेरा बहुत ख्याल रखा... मेरे आस पास रहीं पर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई| वो तो मैं माँ का सहारा ले के उन्हें भोजन के लिए बोल देता था तब वो भोजन करने जाती थीं| रात्रि में भोजन के पश्चात माँ, बड़की अम्मा और भौजी सभी बड़े घर के आँगन में सोई| मैं अकेला कमरे में सो रहा था... नींद तो कोसों दूर थी| रात को करीब दो बजे मुझे बाथरूम जाना था इसलिए मैं उठ के बहार आया... बुखार काम लग रहा था और जब ठंडी-ठंडी हवा ने मेरे गर्म शरीर को छुआ तो आनंद आ गया| इससे पहले की मैं कमरे के बहार कदम रखता, भौजी उठ के आ गईं;
भौजी: क्या हुआ? कुछ चाहिए था आपको?
मैं: नहीं... बाथरूम जा रहा हूँ|
भौजी: (मेरा हाथ पकड़ते हुए|) मैं साथ चलूँ?
मैं: नहीं... अभी इतनी ताकत तो आ ही गई है| आप सो जाओ ...
मैं इतना कह के बहार चला गया और बाथरूम हो के आया और हाथ धो के फिर लेट गया पर नींद अब भी नहीं आई| ये समझो की सुबह होने तक हर सेकंड को गुजरते हुए मैं महसूस कर पा रहा था|
सुबह नहाना चाहता था परन्तु भौजी ने मना कर दिया और मैं मुंह हाथ धो के, ब्रश कर के वापस पलंग पे, दिवार से पीठ टिका के बैठ गया| ग्यारह बजे होंगे की तभी माँ ने भौजी से कहा की "बहु बेटा तुम खाना बनाने की तैयारी करो, मैं यहाँ बैठती हूँ"|कुछ ही देर में बड़की अम्मा ने माँ को किसी काम से बुला लिया और माँ चली गईं| मैं अकेला कमरे में बैठा था, रसिका भाभी भौजी की मदद कर रहीं थी, घर के बाकी के सभी पुरुष सदस्य खेत में थे| तभी वहां माधुरी आ गई, उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए क्योंकि अब भी दोनों घरों के बीच शीट युद्ध जैसा माहोल था!
मैं: तुम? यहाँ क्या कर रही हो?
माधुरी: कल मुझे रसिका भाभी ने आपकी तबियत के बारे में बताया था, मैं कल भी आई थी पर तब आप सो रहे थे| आज मुझसे रहा नहीं गया तो मैं आ गई!
मैं: अगर किसी ने तुम्हें यहाँ देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी! (मैंने चिंता जताते हुए कहा)
माधुरी: मैं पिताजी से पूछ के आई हूँ|
मैं: (मैं उसकी दो मुही बात भांपते हुए) किसके पिताजी से?
माधुरी: आपके ... मैंने उन से गुज़ारिश की और वो मान गए|
(मुझे उसकी बातों पे बिलकुल विश्वास नहीं था ... और वो मेरे भाव को बड़ी जल्दी समझ गई|)
माधुरी: मैं खेतों में आपके पिताजी की अनुमति से यहाँ आई हूँ| यकीन ना आये तो आप अजय भैया से पूछ लीजियेगा|
(अब मुझे कुछ संतुष्टि हुई और मैंने रहत की सांस ली|)
माधुरी: उस दिन के बाद तो आपको आन चाहिए था मेरा हाल पूछने के लिए? पर कुदरत का कानून तो देखो, मुझे आपका हाल चाल पूछने आना पड़ा| आखिर क्यों भीगे आप इतना?
मैं उसकी बात समझ चूका था... उसका तात्पर्य उसके कौमार्य भांग होने से था| इसलिए मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया|
माधुरी: लगता है की आपका गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ? मुझे तो लगा की उस दिन अपना सारा गुस्सा आपने मेरे मर्दन (चुदाई) पर निकाल दिया होगा!!!
मैं: तुम्हें कैसे पता मैं अपना गुस्सा निकाल रहा था?
माधुरी: भले ही आप मुझसे प्यार ना करते हों पर मैं तो करती हूँ| मैं जानती हूँ आपने वो सब कितना मजबूर होक किया... आपकी शक्ल से पता लग रहा था की आप का सम्भोग करने का बिलकुल भी मन नहीं था|काश आपने वो सब मन से किया होता? पता है अब भी मैं ठीक से चल नहीं पाती... और उस दिन कितना खून निकला था?
मैं: अगर मन से ही करना होता तो मैं उस दिन कुछ नहीं करता| ये सब शादी के बाद ही होता ... पर तुम्हारी जिद्द ने मेरी जिंदगी में तूफ़ान खड़ा कर दिया है| मैं तुमसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट करता हूँ, प्लीज इन बातों को मेरे सामने मत दोहराओ| मैं बहुत परेशान हूँ....
माधुरी: मुझे माफ़ कर दीजिये| खेर अब हमारा मिलना तो नहीं हो पायेगा... जैसा की आपने अपनी शर्त में कहा था की मुझे इसकी आदत नहीं डालनी है! तो अगलीबार हम मिलेंगे तो मेरे हाथ में मेरी शादी का कार्ड होगा| मुझे अपनी शादी में बुलाना तो नहीं भूलोगे ना ?
मैं: अम्म ... देखो मैं जूठ नहीं कहूँगा पर मैं तुम्हारी शादी में नहीं आ पाउँगा| तबतक मेरे स्कूल शुरू हो जायेंगे इसलिए मेरी तरफ से अभी से शुभकामनाएं| रही मेरी शादी की बात तो मैं अभी कुछ नहीं कह सकता की मेरी शादी कहाँ होगी? पर तुम्हें बुलाऊंगा जर्रूर!
माधुरी और कुछ नहीं बोली बस एक प्यारी सी मुस्कान दी| मैं जानता था की वो अपनी मुस्कान के पीछे अपने दर्द को छुपाने की कोशिश कर रही है पर मैं उसके जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता था|
वो चली गई और उसके जाते ही भौजी अंदर आ गईं| वो में ओर देख रहीं थी ओर उनकी आँखें भर आईं थी| शायद उन्होंने हमारी बातें सुन ली थीं| वो रूवांसी होक बोलीं;
भौजी: मुझे माफ़ कर दो! मैंने आपको गलत समझा !!! मैंने आप दोनों की सारी बातें सुन ली| कितनी गलत थी मैं... (और भौजी रोने लगीं)
मैं: बस..बस..बस.. चुप हो जाओ! मैंने आपको कहा था ना की आप रोते हुए अच्छे नहीं लगते| और आपको माफ़ी मांगने की कोई जर्रूरत नहीं|पर आप तो भोजन बंनाने गए थे तो वापस क्यों आये?
भौजी: अम्मा ने कहा था की आपसे पूछ लूँ की आप भोजन में क्या खाएंगे? वो चाहती थीं की आपके पसंद का भोजन बने| अब चलिए बहार बैठिये, दो दिनों से आपने खुद को इस कमरे में बंद कर रखा है|... अब सब ठीक होगा... कोई नाराजगी नहीं !!!
खेर मैं कमरे के बहार आँगन में एक किनारे पे खाट डाल के बैठ गया.. शरीर कल ना सोने की वजह से थका हुआ सा था पर नींद आने से डर लग रहा था| ये डर क्या था ये आप सब को मैं आगे चल के बताऊंगा| अभी के लिए अच्छा ये हुआ की कम से काम भौजी ने मुझसे पुनः बात करना शुरू कर दिया|
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे...
मेरे चहेरे पे अब भी एक "सदमे" के भाव थे और रह-रह के वो “डर” मुझे परेशान कर रहा था| ऐसा लग रहा था एक "विष" मेरे बदन में फैलता जा रहा है! मैं उस कमरे से बहार से तो बहार आ गया था पर "उससे" नहीं...
भौजी को थोड़ा बहुत अजब तो लग रहा होगा क्योंकि अचानक से एक हँसता खेलता हुआ इंसान गुम-सुम हो गया था| बाकी सबके सामने मैं सामान्य दिखने की पूरी कोशिश करता था, इसीलिए किसी भी घर के सदस्य ने मुझे मेरे उदास चेहरे को ना ही देखा और ना ही टोका| दोपहर के भोजन के बाद भौजी ने जिद्द की कि मैं बड़े घर से बहार निकलूं और पहले कि तरह खेलूं, हँसूँ, चहकूं पर कहीं तो कुछ था जो बदल चूका था| कुछ तो था जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव पैदा कर दिया था|
भौजी: आखिर बात क्या है? क्यों आप इस तरह से अंदर ही अंदर घुट रहे हो? पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूँ आप बिलकुल बदल गए हो| आप ठीक से सो भी नहीं रहे हो .. दिन भर उंघते रहते हो|
मैं: कैसे कहूँ....... जब भी मैं आँख बंद करता हूँ सोने के लिए तो बार-बार वो सब याद आता है| अब भी मुझे अपने शरीर पे उसके हाथों के चलने का एहसास होता है| एक ज़हर है जो मेरे अंदर घुलता जा रहा है| भौजी: आपने ये सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया? क्यों आप इतने दिन तक .... खेर अब चूँकि आपका बुखार उतर चूका है मैं आपकी इस परेशानी का भी इलाज मैं ही करुँगी|
मैं: तो डॉक्टर साहिबा इस बार क्या इलाज सोचा है आपने? (मैंने माहोल को हल्का करने के लिए थोड़ा मजाक किया|)
भौजी: वो तो आज रात आपको पता चल ही जायेगा|
मैं: देखो आपने पहले ही बहुत कुछ किया है मेरे लिए ....अब और
भौजी: (मेरी बात काटते हुए) श श श श .... मैं आपकी पत्नी हूँ| ये मेरा फ़र्ज़ है!
हमेशा कि तरह इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था| और मैं मुस्कुरा दिया..... अब बस रात होनी थी... ऐसी रात जो शायद मेरे जीवन को किसी सुखद मोड़ पे ले आये|आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पे ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! मैं भोजन कर के अपनी चारपाई पे लेट गया| कुछ देर बाद माँ आई और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछ रही थीं| दोस्तों आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भांप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं| पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहां आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु बेटा, एक तुम ही हो जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हंसने बोलने वाला बना दो|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं|
भौजी: देखा आपने? चाची को कितनी चिंता है आपकी| खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे| मैं साढ़े बारह बजे आउंगी ....
मैं: ठीक है|
बस भौजी घर के भीतर चलीं गई और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई| मैंने सोच की क्यों न मैं फिर से सोने की कोशिश करूँ, शायद कामयाबी मिल जाए| पर कहाँ जी!!! जैसे ही आँख बंद करता बार-बार ऐसा लगता जैसे माधुरी मेरी पथ सहला रही हो... कभी लगता की वो मेरे ऊपर सवार है| कभी ऐसा लगता मानो उसके हाथ मेरी छाती पे धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरी नाभि तक जा रहे हैं| ये ऐसा भयानक पल था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था .. तभी अचानक भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मैं सकपका के उठ बैठा| मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं... चेहरे पे डर के भाव थे| माथे पे हल्का सा पसीना था... जबकि मौसम कुछ ठंडा था| धीमी-धीमी सर्द हवाएं चल रहीं थी....| मेरी हालत देख के एक पल के लिए तो भौजी के चेहरे पर भी चिंता के भाव आ गए|उन्होंने अपनी गर्दन और आँखों के इशारे से मुझे अंदर आने का कहा| मैं उठा और चुप-चाप अंदर चला गया और आँगन में खड़ा हो के गर्दन नीचे झुकाये देखने लगा| भौजी ने दरवाजा बंद किया और ठीक मेरे पीछे आके कड़ी हो गईं| धीरे से उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझसे लिपट गईं| उनकी सांसें मुझे अपनी पीठ पे महसूस होने लगीं थी|
उन्होंने मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उतार दिया| अब मैं ऊपर से बिलकुल नग्न अवस्था में था| मैंने आँखें बंद कर ली थीं... भौजी ने अपने होठों को जैसे ही मेरी पीठ पे रखा एक अजीब एहसास ने मुझे झिंझोड़ दिया| ऐसा लगा जैसे गर्म लोहे की सलाख को किसी ने ठन्डे पानी में डाल दिया .... श..श ..श..श..श..!!! ये चुम्बन कोई आम चुम्बन नहीं था! उन्होंने मेरी पीठ पे जहाँ-जहाँ भी अपने होठों से चूमा वहां-वहां ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर भरा माधुरी का "विष" मेरी छाती की ओर भाग रहा हो| अब मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे .... सांसें तेज हो गई.... ह्रदय की गाती बढ़ गई| धक ... धक ... की जगह दिल ढोल की तरह बजने लगा| मुझे अपनी स्वयं के हृदय की धड़कनें कानों में सुनाई देने लगी| आस-पास की कोई भी आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुँच रही थी| माथे पे पसीना बहने लगा.... गाला सूखने लगा... कान लाल हो गए .... हाथ कांपने लगे और मन विचलित हो चूका था|
भौजी होले से मेरे कान में खुसफुसाई; "आप लेट जाओ!" .. मैं बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझे, मन्त्र मुग्ध सा होके चारपाई पे पीठ के बल लेट गया| आँखें बंद थी, इसलिए लुच नहीं पता था की क्या होरह है| बस मुझे चूड़ियों के खनकने की आवाज आ रही थी| धीरे-धीरे मुझे भौजी के पायल की आवाज सुनाई दी| वो मेरे पैरों के पास थी, उन्होंने धीरे से मेरे पजामे को नीचे खींचा परन्तु पूरी तरह उतार नहीं| फिर मेरे कच्छे को भी उन्होंने खूनच के घुटनों तक कर दिया| वो किसी जंगली शिकारी की तरह मेरे ऊपर नीचे की तरफ से बढ़ने लगी| ये सब मैं महसूस कर पा रहा था| थोड़ी ही देर में मुझे अपनी छाती पे उनके नंगे स्तन रगड़ते हुए महसूस हुए|भौजी का मुख ठीक मेरे मुंह के सामने था क्योंकि मुझे अपने चेहरे पे उनकी गर्म सांसें महसूस हो रहीं थी|सबसे पहले उन्होंने अपने हाथो से मेरे मुंह का पसीना पोंछा फिर उन्होंने झुक के मेरे मस्तक को चूमा| उनका चुमबन गहरा होता जा रहा था ... वो करीब पांच सेकंड तक अपने होठों को मेरे मस्तक पर रखे हुई थीं| अब जो विश मेरे मस्तिष्क पे भारी पड़ रहा था वो अब नीचे उतारने लगा था| धीरे-धीरे भौजी मेरे मस्तक से नीचे आने लगी| उन्होंने मेरी नाक को चूमा... मेरे बाएं गाल को चूमा...फिर दायें गाल को| ऐसा लगा मानो वो विष मेरी गर्दन तक नीचे उतर चूका हो| फिर उन्होंने मेरे कंठ को चूमा... एक पल के लिए लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई हो| अब उन्होंने मेरे दायें हाथ को उठा के अपने होठों के पास लाईं... फिर मेरी हथेली को चूमा... विष कुछ ऊपर को चढ़ा| भौजी भी थोड़ा ऊपर की ओर बढ़ीं... थोड़ा और... फिर मेरी कोहनी को चूमा .. थोड़ा और ऊपर .... फिर मेरे कंधे को चूमा|
अब भौजी ने मेरे बाएं हाथ को उठाया और उसे अपने होठों के पास लाईं... मेरी हथेली को चूमा और विष वहाँ से भी ऊपर की ओर भागने लगा| भौजी ने मेरी कलाई को चूमा... थोड़ा और ऊपर ... मेरी कोहनी को चूमा... थोड़ा और ऊपर और फिर मेरे कंधे को चूमा| अब जैसे सारा विष मेरी छाती में इकठ्ठा हो चूका था| ऐसा लगा जैसे वो वापस पूरे शरीर में फ़ैल जाना चाहता हो पर चूँकि भौजी ने मेरी पीठ, मस्तक, गले और हाथों को अपने चुमबन से चिन्हित (मार्केड) कर दिया था इसलिए विष को कहीं भी भागने की जगह नहीं मिल रही थी| परन्तु अब भी भौजी का उपचार अभी भी खत्म नहीं हुआ था...
अब भौजी ने मेरी छाती पे हर जगह अपने चुम्बनों की बौछार कर दी| परन्तु अब भी वो हर अपने होठों को मेरी छाती से पांच सेकंड तक छुए रहती| उन्होंने मेरे निप्पलों को चूमा... मेरी नाभि कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ी थी| विष जैसे अब नीचे की ओर भागने लगा था| अंत में उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और उसकी चमड़ी को धीरे-धीरे नीचे किया| अब सुपाड़ा बहार आ चूका था ... उन्होंने मेरे छिद्र पे अपने होंठ रख दिए| मेरा कमर से ऊपर का बदन कमान की तरह खींच गया... भौजी ने धीरे-धीरे सुपाड़े को अपने मुंह में भरना शुरू किया|
अब मुझे लग रहा था की भौजी उसे अंदर-बहार करेंगी पर नहीं.... वो बस सुपाड़े को अपने मुंह में भरे स्थिर थीं! अब मेरी कमर से नीचे के हिस्से में कुछ होने लगा था... जैसे कोई चीज बहार निकलने को बेताब हो! मैं उसे बाहर निकलते हुए महसूस करा पा रहा था| पर असल में कुछ भी नहीं हो रहा था .... धीरे-धीरे मेरा शरीर ऐठने लगा| लगा की अब मैं मुक्त हो जाऊंगा....!!!
धीरे ... धीरे ... धीरे... धीरे... मेरा बदन सामान्य होने लगा| मैं अब शिथिल पड़ने लगा.... शरीर ने कोई भी प्रतिक्रिया देनी बंद कर दी| सांसें नार्मल होने लगी .... ह्रदय की गति सामान्य हो गई| अब भौजी मेरे ऊपर आके लेट गईं| उनके नंगे स्तन मेरी छाती से दबे हुए थे और उनके हाथों ने मुझे अपने आलिंगन से जकड़ा हुआ था| मैंने भी उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया ... मेरे हाथ उनकी नंगी पीठ पर थे और हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे| ना जाने भौजी को क्या सूझी उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी योनि में प्रवेश करा दिया| मुझे लगा शायद भौजी का मन सम्भोग करने का है पर ये करने के बाद भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही मेरे ऊपर बिना हिले-डुले लेटी रहीं|उनकी योनि अंदर से पनिया चुकी थी और मुझे अपने लंड पे गर्मी का एहसास होने लगा था| पर नींद मेरे ऊपर हावी होने लगी| पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नाजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता नहीं...
जब आँख खुली तो सर पे सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया| मेरी फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे| अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी| आज तो शामत थी मेरी !!!
जैसे ही मैं घर के प्रमुख आँगन में आय तो सामने पिताजी दिखाई दिए, उन्होंने बड़ी कड़क आवाज में मुझसे पूछा; "क्यों लाड-साहब उठ गए? नींद पूरी हो गई? या बही और सोना है? कहाँ गुजारी सारी रात? तुम तो आँगन में सोये थे अंदर कैसे पहुँच गए?"
मेरे पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप-चाप गर्दन झुकाये खड़ा रहा| मैंने कनखी नजरों से देखा तो भौजी छप्पर के नीचे छुपी मुझे देख रही थीं| उन्होंने मुझे इशारे से कुछ समझाना चाहा परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था .... भौजी बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहीं थीं मैंने थोड़ा सा अंदाजा लगाया और जल्दी से पिताजी के सवालों का जवाब देने लगा;
मैं: जी वो रात को सर दर्द कर रहा था तो मैं भौजी से दवाई लेने गया था| तो भौजी मेरा सर दबाने लगीं और मुझे वहीँ नींद आ गई|
पिताजी: सर में दर्द था तो माँ को बताता क्यों अपनी भाभी को तंग करता रहता है?
मैं: जी, माँ को उठाने जाता तो बड़की अम्मा भी जाग जाती| और मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा या माँ परेशान हों|
पिताजी: तो इसलिए तू बहु को परेशान करने पहुँच गया| सारा दिन वो काम करती है और तू उसे तंग करने से बाज नहीं आता| पता भी है की तेरी वजह से तेरी प्यारी भाभी कहाँ सोई रात भर? सारी रात बेचारी तख़्त पे सोई वो भी बिना बिस्तर के? कुछ तो शर्म कर !!!
मैं गर्दन झुकाये नीचे देखने ला और मुझे खुद पर क्रोध आने लगा क्योंकि मेरी वजह से भौजी को तख़्त पे सोना पड़ा| मैं अब भी कनखी नजरों से भौजी को देख रहा था जैसे उनसे माफ़ी मांगने की कोशिश कर रहा हूँ| तभी माँ रसोई से निकली और बीच में बोल पड़ीं;
माँ: अजी छोड़िये से, इसकी तो आदत है| यहाँ आके अपनी भौजी का बहुत दुलार करता है| आप लोग तो खेत चले जाते हो और ये बस भौजी-भौजी करता रहता है... ये नहीं सुधरेगा| आप जाइये भाई साहब (बड़के दादा) खेत में आपका इन्तेजार करते होंगे|और तू (मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए) चल जा जल्दी से नहा-धो ले ओर जल्दी से चाय पी| तेरी भौजी को और भी काम हैं सिर्फ तेरी तीमारदारी ही नहीं करनी... जा जल्दी|
मैं फ्रेश हो के आया और भौजी से माफ़ी मांगने के लिए व्याकुल था| परन्तु आस-पास माँ, बड़की अमा और रसिका भाभी मौजूद थे इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाया| कुछ देर सर जुखाये बैठने के बाद मैंने मन में ठान लिया की भले ही सबके सामने सही पर माफ़ी माँगना तो बनता है| माँ और बड़की अम्मा दाल-चावल साफ़करने में लगे थे और रसिका भाभी बटन तांख रहीं थी|
मैं: अम्म्म.... भौजी... मुझे माफ़ कर दो! मेरी वजह से आपको कल रात तख़्त पे बिना बिस्तर के सोना पड़ा| I'M Sorry !!!
भौजी: देख रहे हो अम्मा, एक दिन मुझे तख़्त पे क्या सोना पड़ा ये माफ़ी माँग रहे हैं| अरे अगर मैं तख़्त पे सो गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा| आप वैसे भी बहुत दिनों से ठीक से नहीं सोये थे अब मेरे सर दबाने से आपको वहीँ नींद आ गई तो इसमें आपका क्या कसूर| मैंने आपको इसीलिए नहीं उठाया की मैं आपकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी|
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं... तुम भी तो अपनी भौजी की बिमारी में सारी रात जागे थे| तुम दोनों के रिश्ते में इतना प्यार है की तुम दोनों एक दूसरे के लिए ये छोटी-छोटी कुर्बानी देते रहते हो| भूल जाओ इस बात को, और आने दो तुम्हारे पिताजी को जरा मैं भी तो डाँट लगाऊँ उन्हें|
अम्मा की बात सुनके सब हंस दिए और पुनः अपने-अपने काम में लग गए| मेरा मन अब कुछ हल्का हो गया था ... परन्तु अब मन में कल रात को जो हुआ उसे ले कर विचार उमड़ने लगे| वो सब क्या था, और मुझे ये सब अजीब एहसास क्यों हो रहा था? हालाँकि मैं भूत-प्रेत, आत्मा पर विशवाास नहीं करता था परन्तु कल रात हुए उस एहसास ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया था| अगर कोई मेरी चिंता दूर कर सकता था तो वो थीं "भौजी" पर सब के सामने मैं उनसे इस बारे में कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं सब्र करने लगा... दोपहर भोजन बाद समय मिल ही गया बात करने का| भोजन के बाद सभी पुरुष सदस्य आँगन में ही चारपाई डाल के बैठे थे| मौसम कुछ शांत था.. ठंडी-ठंडी हवाएं चल रहीं थी, आसमान में बदल थे और धुप का नामो निशान नहीं था| नेहा स्कूल से आ चुकी थी और भोजन करने के बाद मेरी ही गोद में सर रख के सो चुकी थी| मैं आँगन में चारपाई पे बैठा था... कुछ ही देर में भौजी भी वहां आ गईं और मेरे सामने नीचे बैठ गईं|
मैं: अरे, आप नीचे क्यों बैठे हो? ऊपर बैठो
भौजी: नहीं सभी घर पे हैं और उनके सामने मैं कैसे...
मैं: (बीच में बात काटते हुए) मैं नहीं जानता कोई क्या सोचेगा आप बस ऊपर बैठो! मुझे आप से कुछ पूछना है?
भौजी मेरी बात मानते हुए मेरी चारपाई पे कुछ दूरी पे बैठ गईं| दरअसल हमारे गाँव में कुछ रीति रिवाज ऐसे हैं जिन्होंने औरत को बहुत सीमित कर रखा है| यूँ तो अकेले में भौजी मेरे साथ बैठ जाया करती थी परन्तु जब घर के बड़े घर में मौजूद हों तब वो मुझसे दूर ही रहती थीं| उनके सामने हमेशा घूँघट और मुझसे गज भर की दूरी|
भौजी: अच्छा जी ! पूछिये क्या पूछना है आपको?
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
अब आगे...
मेरे चहेरे पे अब भी एक "सदमे" के भाव थे और रह-रह के वो “डर” मुझे परेशान कर रहा था| ऐसा लग रहा था एक "विष" मेरे बदन में फैलता जा रहा है! मैं उस कमरे से बहार से तो बहार आ गया था पर "उससे" नहीं...
भौजी को थोड़ा बहुत अजब तो लग रहा होगा क्योंकि अचानक से एक हँसता खेलता हुआ इंसान गुम-सुम हो गया था| बाकी सबके सामने मैं सामान्य दिखने की पूरी कोशिश करता था, इसीलिए किसी भी घर के सदस्य ने मुझे मेरे उदास चेहरे को ना ही देखा और ना ही टोका| दोपहर के भोजन के बाद भौजी ने जिद्द की कि मैं बड़े घर से बहार निकलूं और पहले कि तरह खेलूं, हँसूँ, चहकूं पर कहीं तो कुछ था जो बदल चूका था| कुछ तो था जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव पैदा कर दिया था|
भौजी: आखिर बात क्या है? क्यों आप इस तरह से अंदर ही अंदर घुट रहे हो? पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूँ आप बिलकुल बदल गए हो| आप ठीक से सो भी नहीं रहे हो .. दिन भर उंघते रहते हो|
मैं: कैसे कहूँ....... जब भी मैं आँख बंद करता हूँ सोने के लिए तो बार-बार वो सब याद आता है| अब भी मुझे अपने शरीर पे उसके हाथों के चलने का एहसास होता है| एक ज़हर है जो मेरे अंदर घुलता जा रहा है| भौजी: आपने ये सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया? क्यों आप इतने दिन तक .... खेर अब चूँकि आपका बुखार उतर चूका है मैं आपकी इस परेशानी का भी इलाज मैं ही करुँगी|
मैं: तो डॉक्टर साहिबा इस बार क्या इलाज सोचा है आपने? (मैंने माहोल को हल्का करने के लिए थोड़ा मजाक किया|)
भौजी: वो तो आज रात आपको पता चल ही जायेगा|
मैं: देखो आपने पहले ही बहुत कुछ किया है मेरे लिए ....अब और
भौजी: (मेरी बात काटते हुए) श श श श .... मैं आपकी पत्नी हूँ| ये मेरा फ़र्ज़ है!
हमेशा कि तरह इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था| और मैं मुस्कुरा दिया..... अब बस रात होनी थी... ऐसी रात जो शायद मेरे जीवन को किसी सुखद मोड़ पे ले आये|आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पे ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! मैं भोजन कर के अपनी चारपाई पे लेट गया| कुछ देर बाद माँ आई और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछ रही थीं| दोस्तों आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भांप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं| पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहां आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु बेटा, एक तुम ही हो जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हंसने बोलने वाला बना दो|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं|
भौजी: देखा आपने? चाची को कितनी चिंता है आपकी| खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे| मैं साढ़े बारह बजे आउंगी ....
मैं: ठीक है|
बस भौजी घर के भीतर चलीं गई और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई| मैंने सोच की क्यों न मैं फिर से सोने की कोशिश करूँ, शायद कामयाबी मिल जाए| पर कहाँ जी!!! जैसे ही आँख बंद करता बार-बार ऐसा लगता जैसे माधुरी मेरी पथ सहला रही हो... कभी लगता की वो मेरे ऊपर सवार है| कभी ऐसा लगता मानो उसके हाथ मेरी छाती पे धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरी नाभि तक जा रहे हैं| ये ऐसा भयानक पल था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था .. तभी अचानक भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मैं सकपका के उठ बैठा| मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं... चेहरे पे डर के भाव थे| माथे पे हल्का सा पसीना था... जबकि मौसम कुछ ठंडा था| धीमी-धीमी सर्द हवाएं चल रहीं थी....| मेरी हालत देख के एक पल के लिए तो भौजी के चेहरे पर भी चिंता के भाव आ गए|उन्होंने अपनी गर्दन और आँखों के इशारे से मुझे अंदर आने का कहा| मैं उठा और चुप-चाप अंदर चला गया और आँगन में खड़ा हो के गर्दन नीचे झुकाये देखने लगा| भौजी ने दरवाजा बंद किया और ठीक मेरे पीछे आके कड़ी हो गईं| धीरे से उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझसे लिपट गईं| उनकी सांसें मुझे अपनी पीठ पे महसूस होने लगीं थी|
उन्होंने मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उतार दिया| अब मैं ऊपर से बिलकुल नग्न अवस्था में था| मैंने आँखें बंद कर ली थीं... भौजी ने अपने होठों को जैसे ही मेरी पीठ पे रखा एक अजीब एहसास ने मुझे झिंझोड़ दिया| ऐसा लगा जैसे गर्म लोहे की सलाख को किसी ने ठन्डे पानी में डाल दिया .... श..श ..श..श..श..!!! ये चुम्बन कोई आम चुम्बन नहीं था! उन्होंने मेरी पीठ पे जहाँ-जहाँ भी अपने होठों से चूमा वहां-वहां ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर भरा माधुरी का "विष" मेरी छाती की ओर भाग रहा हो| अब मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे .... सांसें तेज हो गई.... ह्रदय की गाती बढ़ गई| धक ... धक ... की जगह दिल ढोल की तरह बजने लगा| मुझे अपनी स्वयं के हृदय की धड़कनें कानों में सुनाई देने लगी| आस-पास की कोई भी आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुँच रही थी| माथे पे पसीना बहने लगा.... गाला सूखने लगा... कान लाल हो गए .... हाथ कांपने लगे और मन विचलित हो चूका था|
भौजी होले से मेरे कान में खुसफुसाई; "आप लेट जाओ!" .. मैं बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझे, मन्त्र मुग्ध सा होके चारपाई पे पीठ के बल लेट गया| आँखें बंद थी, इसलिए लुच नहीं पता था की क्या होरह है| बस मुझे चूड़ियों के खनकने की आवाज आ रही थी| धीरे-धीरे मुझे भौजी के पायल की आवाज सुनाई दी| वो मेरे पैरों के पास थी, उन्होंने धीरे से मेरे पजामे को नीचे खींचा परन्तु पूरी तरह उतार नहीं| फिर मेरे कच्छे को भी उन्होंने खूनच के घुटनों तक कर दिया| वो किसी जंगली शिकारी की तरह मेरे ऊपर नीचे की तरफ से बढ़ने लगी| ये सब मैं महसूस कर पा रहा था| थोड़ी ही देर में मुझे अपनी छाती पे उनके नंगे स्तन रगड़ते हुए महसूस हुए|भौजी का मुख ठीक मेरे मुंह के सामने था क्योंकि मुझे अपने चेहरे पे उनकी गर्म सांसें महसूस हो रहीं थी|सबसे पहले उन्होंने अपने हाथो से मेरे मुंह का पसीना पोंछा फिर उन्होंने झुक के मेरे मस्तक को चूमा| उनका चुमबन गहरा होता जा रहा था ... वो करीब पांच सेकंड तक अपने होठों को मेरे मस्तक पर रखे हुई थीं| अब जो विश मेरे मस्तिष्क पे भारी पड़ रहा था वो अब नीचे उतारने लगा था| धीरे-धीरे भौजी मेरे मस्तक से नीचे आने लगी| उन्होंने मेरी नाक को चूमा... मेरे बाएं गाल को चूमा...फिर दायें गाल को| ऐसा लगा मानो वो विष मेरी गर्दन तक नीचे उतर चूका हो| फिर उन्होंने मेरे कंठ को चूमा... एक पल के लिए लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई हो| अब उन्होंने मेरे दायें हाथ को उठा के अपने होठों के पास लाईं... फिर मेरी हथेली को चूमा... विष कुछ ऊपर को चढ़ा| भौजी भी थोड़ा ऊपर की ओर बढ़ीं... थोड़ा और... फिर मेरी कोहनी को चूमा .. थोड़ा और ऊपर .... फिर मेरे कंधे को चूमा|
अब भौजी ने मेरे बाएं हाथ को उठाया और उसे अपने होठों के पास लाईं... मेरी हथेली को चूमा और विष वहाँ से भी ऊपर की ओर भागने लगा| भौजी ने मेरी कलाई को चूमा... थोड़ा और ऊपर ... मेरी कोहनी को चूमा... थोड़ा और ऊपर और फिर मेरे कंधे को चूमा| अब जैसे सारा विष मेरी छाती में इकठ्ठा हो चूका था| ऐसा लगा जैसे वो वापस पूरे शरीर में फ़ैल जाना चाहता हो पर चूँकि भौजी ने मेरी पीठ, मस्तक, गले और हाथों को अपने चुमबन से चिन्हित (मार्केड) कर दिया था इसलिए विष को कहीं भी भागने की जगह नहीं मिल रही थी| परन्तु अब भी भौजी का उपचार अभी भी खत्म नहीं हुआ था...
अब भौजी ने मेरी छाती पे हर जगह अपने चुम्बनों की बौछार कर दी| परन्तु अब भी वो हर अपने होठों को मेरी छाती से पांच सेकंड तक छुए रहती| उन्होंने मेरे निप्पलों को चूमा... मेरी नाभि कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ी थी| विष जैसे अब नीचे की ओर भागने लगा था| अंत में उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और उसकी चमड़ी को धीरे-धीरे नीचे किया| अब सुपाड़ा बहार आ चूका था ... उन्होंने मेरे छिद्र पे अपने होंठ रख दिए| मेरा कमर से ऊपर का बदन कमान की तरह खींच गया... भौजी ने धीरे-धीरे सुपाड़े को अपने मुंह में भरना शुरू किया|
अब मुझे लग रहा था की भौजी उसे अंदर-बहार करेंगी पर नहीं.... वो बस सुपाड़े को अपने मुंह में भरे स्थिर थीं! अब मेरी कमर से नीचे के हिस्से में कुछ होने लगा था... जैसे कोई चीज बहार निकलने को बेताब हो! मैं उसे बाहर निकलते हुए महसूस करा पा रहा था| पर असल में कुछ भी नहीं हो रहा था .... धीरे-धीरे मेरा शरीर ऐठने लगा| लगा की अब मैं मुक्त हो जाऊंगा....!!!
धीरे ... धीरे ... धीरे... धीरे... मेरा बदन सामान्य होने लगा| मैं अब शिथिल पड़ने लगा.... शरीर ने कोई भी प्रतिक्रिया देनी बंद कर दी| सांसें नार्मल होने लगी .... ह्रदय की गति सामान्य हो गई| अब भौजी मेरे ऊपर आके लेट गईं| उनके नंगे स्तन मेरी छाती से दबे हुए थे और उनके हाथों ने मुझे अपने आलिंगन से जकड़ा हुआ था| मैंने भी उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया ... मेरे हाथ उनकी नंगी पीठ पर थे और हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे| ना जाने भौजी को क्या सूझी उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी योनि में प्रवेश करा दिया| मुझे लगा शायद भौजी का मन सम्भोग करने का है पर ये करने के बाद भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही मेरे ऊपर बिना हिले-डुले लेटी रहीं|उनकी योनि अंदर से पनिया चुकी थी और मुझे अपने लंड पे गर्मी का एहसास होने लगा था| पर नींद मेरे ऊपर हावी होने लगी| पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नाजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता नहीं...
जब आँख खुली तो सर पे सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया| मेरी फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे| अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी| आज तो शामत थी मेरी !!!
जैसे ही मैं घर के प्रमुख आँगन में आय तो सामने पिताजी दिखाई दिए, उन्होंने बड़ी कड़क आवाज में मुझसे पूछा; "क्यों लाड-साहब उठ गए? नींद पूरी हो गई? या बही और सोना है? कहाँ गुजारी सारी रात? तुम तो आँगन में सोये थे अंदर कैसे पहुँच गए?"
मेरे पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप-चाप गर्दन झुकाये खड़ा रहा| मैंने कनखी नजरों से देखा तो भौजी छप्पर के नीचे छुपी मुझे देख रही थीं| उन्होंने मुझे इशारे से कुछ समझाना चाहा परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था .... भौजी बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहीं थीं मैंने थोड़ा सा अंदाजा लगाया और जल्दी से पिताजी के सवालों का जवाब देने लगा;
मैं: जी वो रात को सर दर्द कर रहा था तो मैं भौजी से दवाई लेने गया था| तो भौजी मेरा सर दबाने लगीं और मुझे वहीँ नींद आ गई|
पिताजी: सर में दर्द था तो माँ को बताता क्यों अपनी भाभी को तंग करता रहता है?
मैं: जी, माँ को उठाने जाता तो बड़की अम्मा भी जाग जाती| और मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा या माँ परेशान हों|
पिताजी: तो इसलिए तू बहु को परेशान करने पहुँच गया| सारा दिन वो काम करती है और तू उसे तंग करने से बाज नहीं आता| पता भी है की तेरी वजह से तेरी प्यारी भाभी कहाँ सोई रात भर? सारी रात बेचारी तख़्त पे सोई वो भी बिना बिस्तर के? कुछ तो शर्म कर !!!
मैं गर्दन झुकाये नीचे देखने ला और मुझे खुद पर क्रोध आने लगा क्योंकि मेरी वजह से भौजी को तख़्त पे सोना पड़ा| मैं अब भी कनखी नजरों से भौजी को देख रहा था जैसे उनसे माफ़ी मांगने की कोशिश कर रहा हूँ| तभी माँ रसोई से निकली और बीच में बोल पड़ीं;
माँ: अजी छोड़िये से, इसकी तो आदत है| यहाँ आके अपनी भौजी का बहुत दुलार करता है| आप लोग तो खेत चले जाते हो और ये बस भौजी-भौजी करता रहता है... ये नहीं सुधरेगा| आप जाइये भाई साहब (बड़के दादा) खेत में आपका इन्तेजार करते होंगे|और तू (मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए) चल जा जल्दी से नहा-धो ले ओर जल्दी से चाय पी| तेरी भौजी को और भी काम हैं सिर्फ तेरी तीमारदारी ही नहीं करनी... जा जल्दी|
मैं फ्रेश हो के आया और भौजी से माफ़ी मांगने के लिए व्याकुल था| परन्तु आस-पास माँ, बड़की अमा और रसिका भाभी मौजूद थे इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाया| कुछ देर सर जुखाये बैठने के बाद मैंने मन में ठान लिया की भले ही सबके सामने सही पर माफ़ी माँगना तो बनता है| माँ और बड़की अम्मा दाल-चावल साफ़करने में लगे थे और रसिका भाभी बटन तांख रहीं थी|
मैं: अम्म्म.... भौजी... मुझे माफ़ कर दो! मेरी वजह से आपको कल रात तख़्त पे बिना बिस्तर के सोना पड़ा| I'M Sorry !!!
भौजी: देख रहे हो अम्मा, एक दिन मुझे तख़्त पे क्या सोना पड़ा ये माफ़ी माँग रहे हैं| अरे अगर मैं तख़्त पे सो गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा| आप वैसे भी बहुत दिनों से ठीक से नहीं सोये थे अब मेरे सर दबाने से आपको वहीँ नींद आ गई तो इसमें आपका क्या कसूर| मैंने आपको इसीलिए नहीं उठाया की मैं आपकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी|
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं... तुम भी तो अपनी भौजी की बिमारी में सारी रात जागे थे| तुम दोनों के रिश्ते में इतना प्यार है की तुम दोनों एक दूसरे के लिए ये छोटी-छोटी कुर्बानी देते रहते हो| भूल जाओ इस बात को, और आने दो तुम्हारे पिताजी को जरा मैं भी तो डाँट लगाऊँ उन्हें|
अम्मा की बात सुनके सब हंस दिए और पुनः अपने-अपने काम में लग गए| मेरा मन अब कुछ हल्का हो गया था ... परन्तु अब मन में कल रात को जो हुआ उसे ले कर विचार उमड़ने लगे| वो सब क्या था, और मुझे ये सब अजीब एहसास क्यों हो रहा था? हालाँकि मैं भूत-प्रेत, आत्मा पर विशवाास नहीं करता था परन्तु कल रात हुए उस एहसास ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया था| अगर कोई मेरी चिंता दूर कर सकता था तो वो थीं "भौजी" पर सब के सामने मैं उनसे इस बारे में कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं सब्र करने लगा... दोपहर भोजन बाद समय मिल ही गया बात करने का| भोजन के बाद सभी पुरुष सदस्य आँगन में ही चारपाई डाल के बैठे थे| मौसम कुछ शांत था.. ठंडी-ठंडी हवाएं चल रहीं थी, आसमान में बदल थे और धुप का नामो निशान नहीं था| नेहा स्कूल से आ चुकी थी और भोजन करने के बाद मेरी ही गोद में सर रख के सो चुकी थी| मैं आँगन में चारपाई पे बैठा था... कुछ ही देर में भौजी भी वहां आ गईं और मेरे सामने नीचे बैठ गईं|
मैं: अरे, आप नीचे क्यों बैठे हो? ऊपर बैठो
भौजी: नहीं सभी घर पे हैं और उनके सामने मैं कैसे...
मैं: (बीच में बात काटते हुए) मैं नहीं जानता कोई क्या सोचेगा आप बस ऊपर बैठो! मुझे आप से कुछ पूछना है?
भौजी मेरी बात मानते हुए मेरी चारपाई पे कुछ दूरी पे बैठ गईं| दरअसल हमारे गाँव में कुछ रीति रिवाज ऐसे हैं जिन्होंने औरत को बहुत सीमित कर रखा है| यूँ तो अकेले में भौजी मेरे साथ बैठ जाया करती थी परन्तु जब घर के बड़े घर में मौजूद हों तब वो मुझसे दूर ही रहती थीं| उनके सामने हमेशा घूँघट और मुझसे गज भर की दूरी|
भौजी: अच्छा जी ! पूछिये क्या पूछना है आपको?
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे...
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
मैं: (मुस्कुराते हुए) तो ये मेरे दिम्माग की उपज थी... खेर आपने सच में मेरी जान बचा ली| वरना मैं पागल अवश्य हो जाता|
भौजी: मैं ऐसा कभी होने ही नहीं देती|
मैं: अच्छा ये बताओ, आपने ये उपचार कहाँ सीखा? कौन सी पिक्चर में देखा आपने ये उपचार का तरीका? (मैं हंसने लगा|)
भौजी: पिक्चर.... आखरी बार पिक्चर मैंने आपके ही घर में देखी थी| मैंने तो बस वाही किया जो मेरे दिल ने कहा| खेर मुझे भी आप से माफ़ी मांगनी है, मेरी वजह से आपको पिताजी से इतना सुन्ना पड़ा वो भी सुबह-सुबह|
मैं: ये तो चलता रहता है... उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था| गलती मेरी ही थी... पर मुझे नींद कब आगे पता ही नहीं चला| मेरे सोने के बाद आखिर हुआ क्या था, आप बहार कब आके सो गए?
भौजी: दरअसल मैं आपके पास रात दो बजे तक लेटी थी... फिर मुझे लगा की अगर सुयभ किसी को पता चला की आप और मैं एक ही घर में अकेले सोये थे तो लोग बातें बनाने लग जाते| इसलिए मैं कपडे पहन केचुप-चाप बहार आ गई| सच कहूँ तो मेरा मन बिल्क्कुल नहीं था की मैं आपको अकेला सोता छोड़ के जाऊँ| मुझे बहुत आनंद आ रहा था आपके साथ इस तरह सोने में पर क्या करूँ? और हमारे बेच रात में कुछ नहीं हुआ... हालाँकि मेरा मन तो था पर आप सो चुके थे इसलिए मैं आपके पास चुप-चाप लेटी रही|
मैं: ओह सॉरी! पर आप मुझे उठा देते|
भौजी: मैं इतनी स्वार्थी नहीं की अपनी जर्रूरत के लिए आपकी नींद खराब कर दूँ| कल रात ना सही तो आज सही!!
मैं: आज रात तो कोई मौका ही नहीं... कल रात जो हुआ उसके बाद अब तो मेरे नाम का वारंट निकल चूका है| अगर मैं रात को आपके घर के आस-पास भी भटका ना तो मेरी फाँसी तय है|
भौजी का मुंह लटक गया... उनके मुख पे परेशानी के भाव थे, बुरा तो मुझे भी लग रहा था पर मैं अब इसका समस्या का हल ढूँढना चाहता था| चुप्पी तोड़ते हुए मैंने कहा; "मुझ पे भरोसा रखो... भले ही कितना सख्त पहरा हो पर मैं आज रात जर्रूर आऊंगा| पहले ही मैं आपको बहुत दुःख दे चूका हूँ पर अब और नहीं|" भौजी को मेरी चिंता हुई तो वो बोलीं; "नहीं ... प्लीज आप कुछ ऐसा मत करना| धीरे-धीरे सब शांत हो जाएगा और सभी भूल जायेंगे| तब तक आप कुछ भी गलत मत करना"| सच कहूँ तो मैं कोई भी खतरा उठाने को तैयार था, पर मुझे आज किसी भी हालत में भौजी की ये " ख्वाइश" पूरी करनी थी| अब दिमाग फिर से प्लानिंग में लग गया... पर कई बार चीजें इतनी आसानी से हो जाती हैं की आपकी साड़ी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती हैं| भौजी उठ के अपने घर के भीतर चलीं गई... मैं जानता था की उनका मूड ख़राब है| अब कुछ तो करना था मुझे, इसलिए दस मिनट रुकने के बाद मैं उठा और नेहा को गोद में उठाया और भौजी के घर के अंदर घुस गया| अंदर भौजी कमरे के एक कोने पे सर झुकाये खड़ी थी| शायद उन्हें बुरा लगा की अब हम दोनों रात को एक साथ नहीं रह पाएंगे| मैंने नेहा को चारपाई पर लेटाया और भौजी के एक डैम करीब खड़ा हो गया| मैंने उनका मुँह उठाया और उनकी आँखों में देखने लगा|
मैंने उनके होठों को चूमा और फिर उन्हें गले लगा लिया.... आह! क्या ठंडक पड़ी कलेजे में| भौजी भी मुझसे एक डैम लिपट गई और मुझे इतना कस के गले लगाया की एक पल के लिए तो लगा जैसे वो मुझे दुबारा मिलेंगी ही नहीं| या जैसे एक सदी के बाद हम मिले हों... मैं जानता था की कुछ भी करने के लिए ये समय ठीक नहीं है... इसलिए मैं "आगे" नहीं बढ़ा| हम जब अलग हुए तभी मुझे किसी के आने की आहट आई और मैंने फ़ौरन भौजी से ऊँची आवाज में बात करनी शुरू कर दी....
मैं: मैं बैटिंग करता हूँ और आप बॉल डालो|
भौजी: (मेरा इशारा समझते हुए) आपको क्रिकेट खेलना है तो नेहा के साथ खेलो, आप हर बार मेरी बॉल बहुत जोर से पीटते हो!
मैं: (भौजी की डबल मीनिंग बात का अर्थ समझ गया पर मुझे ये बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा और मुंह बनाते हुए कहा) आप रहने दो, जब नेहा उठेगी तब उसी के साथ खेलूंगा|
इससे पहले की भौजी कुछ कहतीं ... रसिका भाभी आ गईं| अर्थात वो रसिका भाभी की ही आने की आहट थी|
रसिका भाभी: मानु जी, आप से कुछ बात करनी थी?
मैं: हाँ बोलो
रसिका भाभी बोलने में थोड़ा झिझक रहीं थी और मुझे समझने में देर नहीं लगी की उन्हें अकेले में माधुरी के बारे में बात करनी है| अब चूँकि माधुरी के नाम से ही घर के सभी सदस्य चिढ़ते थे इसलिए रसिका भाभी भूल से भी उसका जिक्र किसी के सामने नहीं करती थीं| इससे पहले की बात आगे बढे, भौजी बीच में ही बोल पड़ीं;
भौजी: अरे ऐसी कौन सी बात है जो तुम दोनों को मुझसे छुपानी पद रही है| वैसे भी ये (मेरी और इशारा करते हुए) मुझसे कोई बात नहीं छुपाते| तो बेहतर होगा की मेरे सामने ही बात कर लो...
रसिका भाभी: जीजी ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल माधुरी के बारे में बात करनी थी तो...
भौजी: (बात काटते हुए) तो मुझसे कैसा पर्दा? आज से पहले तो तुम मुझे सब बात बताया करती थी? और अगर तुम्हें लग रहा है की मैं अम्मा को बता दूंगी तो निश्चिंत हो जाओ मैं किसी को नहीं बताऊँगी| अब बताओ क्या बात है? अब क्या चाहिए उसे?
रसिका भाभी: वो .. माधुरी ने मानु जी के लिए संदेसा भिजवाया है| वो कह रही थी की आप उसे छः बजे स्कूल पे मिलो|
मैं: ना ... मैं नहीं जा रहा| वो फर से वही बातें करेगी ...... SORRY !!!
मैं इतना कह के बहार आ गया .... बहार आते ही मुझे अजय भैया ने पकड़ लिया और जबरदस्ती पिताजी के पास ले गए| कोई ख़ास बात नहीं थी दरअसल पिताजी चाह रहे थे की आज मौसम बहुत अच्छा है तो मैं अजय भैया के साथ बाजार से सब के लिए कुछ खाने को लाऊँ| मैं जल्दी से तैयार हुआ और अजय भैया के साथ बाजार चला गया| बाजार पहुँच के मैं दुकानों का मुआयना करने लगा और मैंने सब के लिए खाने के लिए जलेबी, आलू की टिक्की, भल्ले पापड़ी और कोल्ड ड्रिंक्स लीं| अजय भैया भी हैरान थे की मैं इतनी रिसर्च कर कर के खरीदारी कर रहा था|करीब दो घंटे की रिसर्च के बाद सामान ले के हम घर पहुँचे... रास्ते में हमें माधुरी दिखी और उसने मेरे हाथ में जब सामान दिखा तो वो समझ गई| वो चुप-चाप चली गई, अजय भैया के मुंह पे भी गुस्से के भाव थे| मैंने भैया को कोहनी मारते हुए घर की ओर चलने का इशारा किया और हम रस्ते में बाते करते-करते घर पहुँच गए| सभी ने बड़े चाव से खाया और गप्पें लगाने लगे| रसिका भाभी ने तो दबा के टिक्की खाई... जैसे कभी खाई ही ना हो! सबसे ज्यादा मेरी तारीफ भी उन्होंने ही की ... बातों-बातों में पता चला की मेरी गैर मौजूदगी में भौजी का भाई (अनिल) आया था| अब ये सुनते ही मैं समझ गया की फिर से भौजी के घर में कोई हवन होगा या कोई समारोह होगा और वो भौजी को कल सुबह ले जाएगा| मन खराब हुआ और मैं चुप-चाप उठ के कुऐं की मुंडेर पे बैठ गया| हालांकि मेरे मुख पे अब भी नकली मुस्कान चिपकी थी पर भौजी मेरे भावों को भलीं-भांति जानती थी ... इसलिए भौजी भी सबसे नजर बचा के मेरे पास आईं|
भौजी: क्या हुआ?
मैं: कुछ भी तो नहीं|
भौजी: तो आप यहाँ अकेले में क्यों बैठे हो? आप जानते हो ना आप मुझसे कोई बात नहीं छुपा सकते|
मैं: (ठंडी सांस एते हुए) आज आपका भाई आया था ना आपको लेने .... तो कब जा रहे हो आप?
भौजी: सबसे पहली बात, मेरा भाई यानी आपका "साला" और दूसरी बात वो आज इसलिए आया था की मेरे पिताजी यानी आपके "ससुरजी" के दोस्त (चरण काका) की लड़की की शादी है|
मैं: ठीक है बाबा साले साहब आपको लेने ही तो आये थे ना? कितने दिन के लिए जा रहे हो?
भौजी: अब शादी ब्याह का घर है तो कम से कम एक हफ्ता तो लगेगा ही|
एक हफ्ता सुन के मैं मन ही मन उदास हो गया, और मुझे फैसला करने में एक सेकंड भी नहीं लगा की कल जब भौजी निकलेंगी तभी मैं उन्हें अलविदा कह दूँगा और अगले दिन ही वापस चला जाऊँगा|
मैं: (अपने मुंह पे वही नकली हंसी चिपकाए बोला) ठीक है... आप जर्रूर जाओ| आखिर आपके काका की लड़की की शादी है|
भौजी: दिल से कह रहे हो?
मैं: हाँ … (मैंने जूठ बोला, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की भौजी शादी में मेरी वजह से ना जाएँ|)
भौजी: वैसे आपसे किसने कहा की मैं जा रही हूँ| मैंने भाई को मना कर दिया… मैंने उसे कह दिया की मेरा मन नहीं है|
मैं: और वो मान भी गया?
भौजी: नहीं ... मैंने थोड़ा झूठ और थोड़ा सच बोला| मैंने कहा की शहर से चाचा-चाची यानी मेरे "ससुर और सास" आये हैं और ख़ास तौर पे आप को छोड़ के गयी तो आप नाराज हो जाओगे|
मैं: क्या? आपने उसे सब बता दिया? वैसे मैं नाराज नहीं होता|
भौजी: अच्छा जी ??? पिछली बार जब मैं हवन के लिए मायके गई थी तो जनाब ने सालों तक कोई बात नहीं की| इस बार अगर जाती तो आप तो मेरी शकल भी नहीं देखते दुबारा|
मैं: ऐसा नहीं है... आप को जर्रूर जाना चाहिए| हमने इतने दिन तो एक साथ गुजारे हैं|
भौजी: मैं इतने भी बुद्धू नहीं की अपनी बकरी (मैं) को शेरनियों (रसिका भाभी और माधुरी) के साथ अकेला छोड़ जाऊँ!!! वैसे भी सच में मेरा मन बिलकुल नहीं की मैं आपको छोड़ के कहीं जाऊँ|
मैं: ठीक है, जैसी आपकी मर्जी! पर मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूँ की आपने साले साहब से आखिर बोला क्या? मुझे साफ़ शब्दों में बताओ|
भौजी (हँसते हुए) मैंने कहा की; सालों बाद शहर से चाचा-चाची आये हैं| मुझे उनकी देख-भाल करने के लिए यहीं रुकना होगा| और ख़ास कर तुम्हारे (अनिल के) जीजा जी (चन्दर भैया) का भाई जो दिल्ली से आया है! वो सिर्फ और सिर्फ मुझसे मिलने आये हैं| याद है पिछली बार जब मैं हवन के लिए घर आई थी तो वापस जाते हुए उन्होंने (मैंने) मुझसे बात भी नहीं की थी| और वैसे भी मेरा मन नहीं इस शादी में जाने का, अभी-अभी नेहा का स्कूल भी शुरू हुआ है और मैं नहीं चाहती की उसका स्कूल छूटे! ये सब कहने के बाद मेरा भाई माना|
मुझे भौजी का नाजाने पर थोड़ा बुरा तो लगा पर उनके नाजाने की ख़ुशी सबसे ज्यादा थी|
मैं: मतलब की साले साहब को पता चल गया की आपके और मेरे बीच में कुछ तो पक रहा है| और अब वो यही बात जाके "सास-सासुर" को भी बता देंगे| क्या इज्जत रह जाएगी मेरी?
भौजी: तो बताने दो ना ...कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि सब जानते हैं की हमारे बीच में केवल देवर-भाभी का रिश्ता है| ये तो सिर्फ हम दोनों जानते हैं की हमारा रिश्ता उस रिश्ते से कहीं अधिक पवित्र है! अब छोडो इन बातों को और चलो सब के पास वरना फिर सब कहेंगे की दोनों क्या खिचड़ी पका रहे हैं|
मैंने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस सब के साथ घुल-मिल कर बैठ गया और बातें करना लगा| आज रात भोजन बनने में बहुत देर हो गई... जब सभी पुरुष सदस्य भोजन के लिए बैठे तब भौजी के मायके से आये अनिल की बातें शुरू हो गईं|
पिताजी: बहु तुम गई क्यों नहीं अपने भाई के साथ? आखिर तुम्हारे चरण काका की लड़की की शादी थी| तुम्हें जाना चाहिए था?
भौजी: (घूँघट किये रसोई से बोलीं) चाचा... मेरा मन नहीं था जाने का और फिर नेहा का स्कूल भी तो है|
पिताजी: बहु बेटा, नेहा को तो कोई भी संभाल लेता और यहाँ तुम्हारा लाडला देवर भी तो है| नेहा उसी के पास तो सबसे ज्यादा खुश रहती है| ये उसका अच्छे से ध्यान रखता|
माँ: (बीच में बात काटते हुए बोली) जाती कैसे? आपके लाड़-साहब जो नाराज हो जाते| याद है पिछली बार जब बहु मायके गई थी तो लाड़ साहब ने बात करना बंद कर दिया था|
पिताजी: क्यों रे?
मैं: जी मैंने कब मना किया... मैं तो खुद इन्हें ससुराल छोड़ आता हूँ| (मेरे मुंह से अनायास ही "ससुराल" शब्द निकल पड़ा|)
पिताजी: रहने दे तू, पहले बहु को मायके छोड़के आएगा और अगले दिन ही यहाँ से चलने के लिए बोलेगा|
पिताजी ने बिलकुल सही समझा था... आखिर वो भी मेरे बाप हैं! अब मेरे पास बोलने के लिए कुछ नहीं था तो मैं चुप-चाप भोजन करता रहा| मेरे बचाव में कोई बोलने वाला नहीं था... कोई बोलता भी क्या| सभी चाहते थे की भौजी शादी में जाए|
अब आगे...
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
मैं: (मुस्कुराते हुए) तो ये मेरे दिम्माग की उपज थी... खेर आपने सच में मेरी जान बचा ली| वरना मैं पागल अवश्य हो जाता|
भौजी: मैं ऐसा कभी होने ही नहीं देती|
मैं: अच्छा ये बताओ, आपने ये उपचार कहाँ सीखा? कौन सी पिक्चर में देखा आपने ये उपचार का तरीका? (मैं हंसने लगा|)
भौजी: पिक्चर.... आखरी बार पिक्चर मैंने आपके ही घर में देखी थी| मैंने तो बस वाही किया जो मेरे दिल ने कहा| खेर मुझे भी आप से माफ़ी मांगनी है, मेरी वजह से आपको पिताजी से इतना सुन्ना पड़ा वो भी सुबह-सुबह|
मैं: ये तो चलता रहता है... उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था| गलती मेरी ही थी... पर मुझे नींद कब आगे पता ही नहीं चला| मेरे सोने के बाद आखिर हुआ क्या था, आप बहार कब आके सो गए?
भौजी: दरअसल मैं आपके पास रात दो बजे तक लेटी थी... फिर मुझे लगा की अगर सुयभ किसी को पता चला की आप और मैं एक ही घर में अकेले सोये थे तो लोग बातें बनाने लग जाते| इसलिए मैं कपडे पहन केचुप-चाप बहार आ गई| सच कहूँ तो मेरा मन बिल्क्कुल नहीं था की मैं आपको अकेला सोता छोड़ के जाऊँ| मुझे बहुत आनंद आ रहा था आपके साथ इस तरह सोने में पर क्या करूँ? और हमारे बेच रात में कुछ नहीं हुआ... हालाँकि मेरा मन तो था पर आप सो चुके थे इसलिए मैं आपके पास चुप-चाप लेटी रही|
मैं: ओह सॉरी! पर आप मुझे उठा देते|
भौजी: मैं इतनी स्वार्थी नहीं की अपनी जर्रूरत के लिए आपकी नींद खराब कर दूँ| कल रात ना सही तो आज सही!!
मैं: आज रात तो कोई मौका ही नहीं... कल रात जो हुआ उसके बाद अब तो मेरे नाम का वारंट निकल चूका है| अगर मैं रात को आपके घर के आस-पास भी भटका ना तो मेरी फाँसी तय है|
भौजी का मुंह लटक गया... उनके मुख पे परेशानी के भाव थे, बुरा तो मुझे भी लग रहा था पर मैं अब इसका समस्या का हल ढूँढना चाहता था| चुप्पी तोड़ते हुए मैंने कहा; "मुझ पे भरोसा रखो... भले ही कितना सख्त पहरा हो पर मैं आज रात जर्रूर आऊंगा| पहले ही मैं आपको बहुत दुःख दे चूका हूँ पर अब और नहीं|" भौजी को मेरी चिंता हुई तो वो बोलीं; "नहीं ... प्लीज आप कुछ ऐसा मत करना| धीरे-धीरे सब शांत हो जाएगा और सभी भूल जायेंगे| तब तक आप कुछ भी गलत मत करना"| सच कहूँ तो मैं कोई भी खतरा उठाने को तैयार था, पर मुझे आज किसी भी हालत में भौजी की ये " ख्वाइश" पूरी करनी थी| अब दिमाग फिर से प्लानिंग में लग गया... पर कई बार चीजें इतनी आसानी से हो जाती हैं की आपकी साड़ी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती हैं| भौजी उठ के अपने घर के भीतर चलीं गई... मैं जानता था की उनका मूड ख़राब है| अब कुछ तो करना था मुझे, इसलिए दस मिनट रुकने के बाद मैं उठा और नेहा को गोद में उठाया और भौजी के घर के अंदर घुस गया| अंदर भौजी कमरे के एक कोने पे सर झुकाये खड़ी थी| शायद उन्हें बुरा लगा की अब हम दोनों रात को एक साथ नहीं रह पाएंगे| मैंने नेहा को चारपाई पर लेटाया और भौजी के एक डैम करीब खड़ा हो गया| मैंने उनका मुँह उठाया और उनकी आँखों में देखने लगा|
मैंने उनके होठों को चूमा और फिर उन्हें गले लगा लिया.... आह! क्या ठंडक पड़ी कलेजे में| भौजी भी मुझसे एक डैम लिपट गई और मुझे इतना कस के गले लगाया की एक पल के लिए तो लगा जैसे वो मुझे दुबारा मिलेंगी ही नहीं| या जैसे एक सदी के बाद हम मिले हों... मैं जानता था की कुछ भी करने के लिए ये समय ठीक नहीं है... इसलिए मैं "आगे" नहीं बढ़ा| हम जब अलग हुए तभी मुझे किसी के आने की आहट आई और मैंने फ़ौरन भौजी से ऊँची आवाज में बात करनी शुरू कर दी....
मैं: मैं बैटिंग करता हूँ और आप बॉल डालो|
भौजी: (मेरा इशारा समझते हुए) आपको क्रिकेट खेलना है तो नेहा के साथ खेलो, आप हर बार मेरी बॉल बहुत जोर से पीटते हो!
मैं: (भौजी की डबल मीनिंग बात का अर्थ समझ गया पर मुझे ये बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा और मुंह बनाते हुए कहा) आप रहने दो, जब नेहा उठेगी तब उसी के साथ खेलूंगा|
इससे पहले की भौजी कुछ कहतीं ... रसिका भाभी आ गईं| अर्थात वो रसिका भाभी की ही आने की आहट थी|
रसिका भाभी: मानु जी, आप से कुछ बात करनी थी?
मैं: हाँ बोलो
रसिका भाभी बोलने में थोड़ा झिझक रहीं थी और मुझे समझने में देर नहीं लगी की उन्हें अकेले में माधुरी के बारे में बात करनी है| अब चूँकि माधुरी के नाम से ही घर के सभी सदस्य चिढ़ते थे इसलिए रसिका भाभी भूल से भी उसका जिक्र किसी के सामने नहीं करती थीं| इससे पहले की बात आगे बढे, भौजी बीच में ही बोल पड़ीं;
भौजी: अरे ऐसी कौन सी बात है जो तुम दोनों को मुझसे छुपानी पद रही है| वैसे भी ये (मेरी और इशारा करते हुए) मुझसे कोई बात नहीं छुपाते| तो बेहतर होगा की मेरे सामने ही बात कर लो...
रसिका भाभी: जीजी ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल माधुरी के बारे में बात करनी थी तो...
भौजी: (बात काटते हुए) तो मुझसे कैसा पर्दा? आज से पहले तो तुम मुझे सब बात बताया करती थी? और अगर तुम्हें लग रहा है की मैं अम्मा को बता दूंगी तो निश्चिंत हो जाओ मैं किसी को नहीं बताऊँगी| अब बताओ क्या बात है? अब क्या चाहिए उसे?
रसिका भाभी: वो .. माधुरी ने मानु जी के लिए संदेसा भिजवाया है| वो कह रही थी की आप उसे छः बजे स्कूल पे मिलो|
मैं: ना ... मैं नहीं जा रहा| वो फर से वही बातें करेगी ...... SORRY !!!
मैं इतना कह के बहार आ गया .... बहार आते ही मुझे अजय भैया ने पकड़ लिया और जबरदस्ती पिताजी के पास ले गए| कोई ख़ास बात नहीं थी दरअसल पिताजी चाह रहे थे की आज मौसम बहुत अच्छा है तो मैं अजय भैया के साथ बाजार से सब के लिए कुछ खाने को लाऊँ| मैं जल्दी से तैयार हुआ और अजय भैया के साथ बाजार चला गया| बाजार पहुँच के मैं दुकानों का मुआयना करने लगा और मैंने सब के लिए खाने के लिए जलेबी, आलू की टिक्की, भल्ले पापड़ी और कोल्ड ड्रिंक्स लीं| अजय भैया भी हैरान थे की मैं इतनी रिसर्च कर कर के खरीदारी कर रहा था|करीब दो घंटे की रिसर्च के बाद सामान ले के हम घर पहुँचे... रास्ते में हमें माधुरी दिखी और उसने मेरे हाथ में जब सामान दिखा तो वो समझ गई| वो चुप-चाप चली गई, अजय भैया के मुंह पे भी गुस्से के भाव थे| मैंने भैया को कोहनी मारते हुए घर की ओर चलने का इशारा किया और हम रस्ते में बाते करते-करते घर पहुँच गए| सभी ने बड़े चाव से खाया और गप्पें लगाने लगे| रसिका भाभी ने तो दबा के टिक्की खाई... जैसे कभी खाई ही ना हो! सबसे ज्यादा मेरी तारीफ भी उन्होंने ही की ... बातों-बातों में पता चला की मेरी गैर मौजूदगी में भौजी का भाई (अनिल) आया था| अब ये सुनते ही मैं समझ गया की फिर से भौजी के घर में कोई हवन होगा या कोई समारोह होगा और वो भौजी को कल सुबह ले जाएगा| मन खराब हुआ और मैं चुप-चाप उठ के कुऐं की मुंडेर पे बैठ गया| हालांकि मेरे मुख पे अब भी नकली मुस्कान चिपकी थी पर भौजी मेरे भावों को भलीं-भांति जानती थी ... इसलिए भौजी भी सबसे नजर बचा के मेरे पास आईं|
भौजी: क्या हुआ?
मैं: कुछ भी तो नहीं|
भौजी: तो आप यहाँ अकेले में क्यों बैठे हो? आप जानते हो ना आप मुझसे कोई बात नहीं छुपा सकते|
मैं: (ठंडी सांस एते हुए) आज आपका भाई आया था ना आपको लेने .... तो कब जा रहे हो आप?
भौजी: सबसे पहली बात, मेरा भाई यानी आपका "साला" और दूसरी बात वो आज इसलिए आया था की मेरे पिताजी यानी आपके "ससुरजी" के दोस्त (चरण काका) की लड़की की शादी है|
मैं: ठीक है बाबा साले साहब आपको लेने ही तो आये थे ना? कितने दिन के लिए जा रहे हो?
भौजी: अब शादी ब्याह का घर है तो कम से कम एक हफ्ता तो लगेगा ही|
एक हफ्ता सुन के मैं मन ही मन उदास हो गया, और मुझे फैसला करने में एक सेकंड भी नहीं लगा की कल जब भौजी निकलेंगी तभी मैं उन्हें अलविदा कह दूँगा और अगले दिन ही वापस चला जाऊँगा|
मैं: (अपने मुंह पे वही नकली हंसी चिपकाए बोला) ठीक है... आप जर्रूर जाओ| आखिर आपके काका की लड़की की शादी है|
भौजी: दिल से कह रहे हो?
मैं: हाँ … (मैंने जूठ बोला, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की भौजी शादी में मेरी वजह से ना जाएँ|)
भौजी: वैसे आपसे किसने कहा की मैं जा रही हूँ| मैंने भाई को मना कर दिया… मैंने उसे कह दिया की मेरा मन नहीं है|
मैं: और वो मान भी गया?
भौजी: नहीं ... मैंने थोड़ा झूठ और थोड़ा सच बोला| मैंने कहा की शहर से चाचा-चाची यानी मेरे "ससुर और सास" आये हैं और ख़ास तौर पे आप को छोड़ के गयी तो आप नाराज हो जाओगे|
मैं: क्या? आपने उसे सब बता दिया? वैसे मैं नाराज नहीं होता|
भौजी: अच्छा जी ??? पिछली बार जब मैं हवन के लिए मायके गई थी तो जनाब ने सालों तक कोई बात नहीं की| इस बार अगर जाती तो आप तो मेरी शकल भी नहीं देखते दुबारा|
मैं: ऐसा नहीं है... आप को जर्रूर जाना चाहिए| हमने इतने दिन तो एक साथ गुजारे हैं|
भौजी: मैं इतने भी बुद्धू नहीं की अपनी बकरी (मैं) को शेरनियों (रसिका भाभी और माधुरी) के साथ अकेला छोड़ जाऊँ!!! वैसे भी सच में मेरा मन बिलकुल नहीं की मैं आपको छोड़ के कहीं जाऊँ|
मैं: ठीक है, जैसी आपकी मर्जी! पर मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूँ की आपने साले साहब से आखिर बोला क्या? मुझे साफ़ शब्दों में बताओ|
भौजी (हँसते हुए) मैंने कहा की; सालों बाद शहर से चाचा-चाची आये हैं| मुझे उनकी देख-भाल करने के लिए यहीं रुकना होगा| और ख़ास कर तुम्हारे (अनिल के) जीजा जी (चन्दर भैया) का भाई जो दिल्ली से आया है! वो सिर्फ और सिर्फ मुझसे मिलने आये हैं| याद है पिछली बार जब मैं हवन के लिए घर आई थी तो वापस जाते हुए उन्होंने (मैंने) मुझसे बात भी नहीं की थी| और वैसे भी मेरा मन नहीं इस शादी में जाने का, अभी-अभी नेहा का स्कूल भी शुरू हुआ है और मैं नहीं चाहती की उसका स्कूल छूटे! ये सब कहने के बाद मेरा भाई माना|
मुझे भौजी का नाजाने पर थोड़ा बुरा तो लगा पर उनके नाजाने की ख़ुशी सबसे ज्यादा थी|
मैं: मतलब की साले साहब को पता चल गया की आपके और मेरे बीच में कुछ तो पक रहा है| और अब वो यही बात जाके "सास-सासुर" को भी बता देंगे| क्या इज्जत रह जाएगी मेरी?
भौजी: तो बताने दो ना ...कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि सब जानते हैं की हमारे बीच में केवल देवर-भाभी का रिश्ता है| ये तो सिर्फ हम दोनों जानते हैं की हमारा रिश्ता उस रिश्ते से कहीं अधिक पवित्र है! अब छोडो इन बातों को और चलो सब के पास वरना फिर सब कहेंगे की दोनों क्या खिचड़ी पका रहे हैं|
मैंने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस सब के साथ घुल-मिल कर बैठ गया और बातें करना लगा| आज रात भोजन बनने में बहुत देर हो गई... जब सभी पुरुष सदस्य भोजन के लिए बैठे तब भौजी के मायके से आये अनिल की बातें शुरू हो गईं|
पिताजी: बहु तुम गई क्यों नहीं अपने भाई के साथ? आखिर तुम्हारे चरण काका की लड़की की शादी थी| तुम्हें जाना चाहिए था?
भौजी: (घूँघट किये रसोई से बोलीं) चाचा... मेरा मन नहीं था जाने का और फिर नेहा का स्कूल भी तो है|
पिताजी: बहु बेटा, नेहा को तो कोई भी संभाल लेता और यहाँ तुम्हारा लाडला देवर भी तो है| नेहा उसी के पास तो सबसे ज्यादा खुश रहती है| ये उसका अच्छे से ध्यान रखता|
माँ: (बीच में बात काटते हुए बोली) जाती कैसे? आपके लाड़-साहब जो नाराज हो जाते| याद है पिछली बार जब बहु मायके गई थी तो लाड़ साहब ने बात करना बंद कर दिया था|
पिताजी: क्यों रे?
मैं: जी मैंने कब मना किया... मैं तो खुद इन्हें ससुराल छोड़ आता हूँ| (मेरे मुंह से अनायास ही "ससुराल" शब्द निकल पड़ा|)
पिताजी: रहने दे तू, पहले बहु को मायके छोड़के आएगा और अगले दिन ही यहाँ से चलने के लिए बोलेगा|
पिताजी ने बिलकुल सही समझा था... आखिर वो भी मेरे बाप हैं! अब मेरे पास बोलने के लिए कुछ नहीं था तो मैं चुप-चाप भोजन करता रहा| मेरे बचाव में कोई बोलने वाला नहीं था... कोई बोलता भी क्या| सभी चाहते थे की भौजी शादी में जाए|