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अब आगे ....
मैं कपडे बदल के आया तो भौजी के मुख पे मुस्कान फ़ैल गई, क्योंकि मैंने उनकी दी हुई टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे जीन्स|
भौजी: जानू कहीं आपको नजर न लग जाए| मैं आपको कला टिका लगा दूँ!
मैं: Oh Comeon ! नजर लगी भी तो आप हो ना! (ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और भौजी मुझसे गले लग गईं)
मैं: अच्छा बाबा ...आज खाना नहीं बनाना है?
भौजी: हाय राम! मैं तो भूल ही गई थी....पर जाऊँ कैसे? कैसे सब से नजर मिला पाऊँगी?
मैं: जान मैं हूँ ना! मैं आपके पास ही रहूँगा|
भौजी: ठीक है...पर प्लीज मुझे अकेला छोड़ के कहीं मत जाना? प्रोमिस करो?
मैं: प्रोमिस!
तब जाके भौजी का डर कम हुआ और हुम तीनों बाहर आये| भौजी जाके रसोई में खाना बनाने लगीं और मैं नेहा को लेके छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठ गया| अब बहा से बात करने के लिए कुछ था नहीं तो मैंने उससे उसके स्कूल और क्लास के बारे में पूछना शुरू कर दिया| उसकी क्लास में कितने बच्चे हैं? उसके दोस्त कितने हैं? उसे कौन सा सब्जेक्ट पसंद है? आदि सवाल पूछने लगा| हालाँकि ये बहुत बचपना था मेरा पर अब क्या करें चुप-चाप तो रह नहीं सकते थे|
भौजी: अरे बाबा उसके दोस्त छोटे-छोटे बच्चे हैं| कोई बॉयफ्रेंड नहीं बनाया उसने जो आप इतना परेशान हो रहे हो? ही..ही..ही...
मैं: यार ...बात करने को कुछ नहीं था तो इसलिए पूछ रहा था| जब उसकी बॉयफ्रेंड बनाने की उम्र आएगी तब तो मैं इसे अकेला ही नहीं छोड़ूंगा| और आपने अगर इसे छूट दी ना तो देख लेना!
नेहा: पापा...ये बॉयफ्रेंड क्या होता है?
भौजी: हाँ..हाँ...अब जवाब दो ही...ही...ही...
मैं: बेटा आपको पाता है ना की जो बच्चे शरारती होते हैं उन्हें दाढ़ी वाला आदमी उठा के ले जाता है, वैसा ही एक आदमी होता है जिसे हम बॉयफ्रेंड कहते हैं...दूर रहना उससे...ही..ही..ही...
भौजी: ही..ही...ही... बहुत सही definition दी है अपने ही..ही..ही...
मैं: हाँ..हाँ..उड़ाओ मजाक!
इसी तरह बातों में भौजी को लगाय रखा और उनसे अपने जाने की बात छुपाता रहा|
दोपहर के खाने के बाद हम भौजी के घर में अलग चारपाई पे लेटे हुए थे और बातें कर रहे थे;
मैं: यार मैंने कभी आप को Red Lipstick और Red साडी में नहीं देखा? (मैंने यहाँ जानबूझ के लाल को Red लिखा है क्योंकि लाल कहने की बजाय Red कहना ज्यादा seductive लगता है|)
भौजी: (कुछ सोचते हुए) हम्म्म... पर मेरे पास लाल साडी नहीं है|
मैं: कोई नहीं जब आप शहर आओगे तब मैं दिल दूँगा|
भौजी: शहर क्यों...sunday को यहाँ बाजार में खूब रौनक होती है| वहीँ चल के खरीद लेंगे?
अब मैं उन्हें कैसे बताता की Sunday को ही तो मैं जा रहा हूँ| चूँकि मुझे ये बात छुपानी थी तो मैंने हाँ में सर हिलाया और सीधा हो के उनसे नजरें चुराते हुए लेट गया|
फिर भौजी उठीं और अपने कमरे में एक सूटकेस खोल के कुछ देखने लगीं और फिर वो बाहर आईं और अपनी चारपाई मेरे नजदीक खींच के बैठ गईं|
भौजी: आप मेरा एक काम करोगे?
मैं: दो बोलो?
भौजी: नहीं बस एक... नेहा कल कह रही थी की उसे लोलीपोप चाहिए| अब चूँकि कल मेरा मूड ठीक नहीं था तो मैंने उसे टाल दिया| तो आप प्लीज उसे लोलीपोप दिलवा दो|
मैं: OK चलो नेहा आज मैं आपको लोलीपोप दिलवाता हूँ और साथ में एक हम-दोनों के लिए भी लाता हूँ|
भौजी: जानू....
मैं: हाँ बोलो जान?
भौजी: मुझे strawberry वाली पसंद है|
अब हमारे गाँव में दो दुकानें थीं...पर उनके बीच करीब बीस मिनट का फासला था| जब मैं पहली दूकान पर पहुंचा तो वहां मुझे स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप नहीं मिली...तो मैंने नेहा को दो ऑरेंज और एक मैंगो वाली दिल दी| फिर वहां से हम दूसरी दूकान की ओर चल पड़े| रस्ते में नेहा ने एक ऑरेंज वाली लोलीपोप खोल ली और उसे चूसने लगी फिर उसने अपनी जूठी लोलीपोप मेरी ओर बढ़ा दी मैंने उसे मना कर दिया क्योंकि आज तो मुझे Strawberry वाली खानी थी और वासी भी मुझे मैंगो वाली ज्यादा पसंद थी| हम दूसरी दूकान पे पहुंचे और वहां मुझे स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप मिल ही गई| मैंने दो लोलीपोप खरीदी और नेहा को ले के घर लौट आया| मतलब सिर्फ लोलीपोप खरीदने में मेरा आधा घंटा लग गया... गर शहर में कोई गर्लफ्रेंड मुझसे ये कहती ना तो साला पलट के ऐसे जवाब देता की जिंदगी में दुबारा कभी लोलीपोप नहीं माँगती| खेर घर पहुँचते-पहुँचते नेहा की लोलीपोप खत्म हो गई और जैसे ही मैंने भौजी के घर में घुसना चाहा तो दरवाजा अंदर से बंद था| मैंने दरवाजा खटखटाया और तभी नेहा को उसकी दोस्त दिखाई दी जो उसे खेलने के लिए बुला रही थी| नेहा मेरी गोद से उतरने को चटपटी और मैंने उसे नीचे उतार दिया| नेहा फुर्र से अपनी दोस्त के पास भाग गई| इधर मैं सोचने लगा की भला भौजी ने दरवाजा क्यों बंद किया, शायद उन्हें कपडे बदलने थे..पर फिर मैंने इस बात पर इतना ध्यान नहीं दिया और अबतक दरवाजा अंदर से खुल चूका था, परन्तु अब भी दोनों पल्ले आपस में भिड़े हुए थे| मैंने एक पल्ले को धक्का दिया और अंदर घुस गया, आँगन में कोई नहीं था...और जैसे ही मैं भौजी के कमरे में दाखिल होने लगा किसी ने मेरा हाथ पीछे से अचानक पकड़ा और मुझे दरवाजे के साथ वाली दिवार की ओर खींचा| जब मैंने उस शक्स को देखा तो देखता ही रह गया!
ये भौजी ही थीं...Red साडी में लिपटी हुईं... होठों पे Red Lipstick...बाल खुले हुए जो उनकी कमर तक लटक रहे थे... मांग में Red सिन्दूर... और तो ओर आज उनकी कमर में चांदी की कमर बंद भी लटक रही थी, साडी उनकी belly button की नीचे बंधी गई थी...साडी का पल्लू इस तरह से एडजस्ट किया गया था की बस पूछो मत! WOW !!! आँखें फटी की फटी रह गईं उन्हें इस लिबास में देख के!
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो जानू?
मैं: स्स्स्स.... देख रहा हूँ की आप जूठ बहुत प्यारा बोलते हो!!! इतना प्यारा की ....आप पर और भी प्यार आ रहा है| मन बईमान हो रहा है....हाय ... कोई तो रोक लो!
भौजी: हाय (भौजी ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दी|) क्यों रोक ले आपको कोई?
मैं: सच में आपके हुस्न की तारीफ में एक शेर कहने का मन कर रहा है|
भौजी: तो कहिये ना?
मैं: यही तो दिक्कत है...की शेर नहीं आता मुझे! ही..ही..ही..ही...ही
भौजी: आप भी ना...
मैं: मन कर रहा है आपको Kiss कर लूँ?
भौजी: पर पहले मेरी लोलीपोप?
मैं: ना....पहले Kiss फिर लोलीपोप!
भौजी: Awwww…. आप मुझे बहुत सताते हो! ठीक है पर Kiss मेरे स्टाइल से होगी!
मैं: आपका स्टाइल? हमें भी तो पता चले की आपका स्टाइल क्या है?
भौजी: वो आपको शीशे में देख के पता चलेगा! ही...ही...ही...ही!!!
भौजी दिवार के सहारे खड़ीं थीं तो वो वहां से हटीं और मुझे दिवार के सहारे खड़ा कर दिया और कहा;
भौजी: जैसे मैं कहूँ बस वैसे करना?
मैं: ठीक है!
भौजी: अब अपनी आँखें बंद करो!
मैंने अपनी आँखें बंद करीं, और भौजी मेरे चेहरे के बिलकुल सामने आ गईं| उनकी गर्म सांसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रहीं थीं| उनके सांसें की मादक खुशबु मेरे नथुनों में भरने लगी क्योंकि वो मुंह से सांस ले रहीं थीं| मेरे होंठ सूखने लगे इसलिए मैंने जीभ उन पर फेरी ताकि वो गीले हो जाएँ और जैसे ही जीभ अंदर गई भौजी ने अपने Red लिपस्टिक वाले होठ मेरे होंठों पे रख दिए! इससे पहले की मैं उनके होंठों को चूस पता उन्होंने होंठ हटा लिए|
मैं: (कुनमुनाते हुए).. म्म्म्म्म्म...
भौजी जानू बस इतना ही मिलेगा!
मुझे तो अपने होठों पे बस उस Red लिपस्टिक का मधुर स्वाद ही चखने को मिला! फिर उन्होंने मेरे दोनों गालों पे अपने होठों से Kiss किया|
भौजी: अब आँखें बंद किये हुए अपनी टी-शर्ट उतारो!
मैं: ठीक है जान...मेरा भी वक़्त आएगा.... तब देखना कैसे तड़पाता हूँ|
भौजी ने मेरी टी-शर्ट उतार के अपने पास रख ली, फिर उन्होंने मेरी गर्दन पे अपने होंठ रखे ...फिर वो नीचे आईं और मेरे दोनों निप्पलों पे Kiss किया! फिर मेरे Belly Button के ऊपर Kiss किया! मैं सोचने लगा की यार ये हो क्या रहा है? आखिर क्यों भौजी मेरे साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहीं हैं? मेरा पूरा शरीर प्यार की आग में जलने लगा है और ये हैं की उस आग को और हवा दे रहीं हैं? तभी भौजी ने बिना कुछ कहे जीन्स पे हाथ मारा;
मैं: (आँख बंद किये हुए) क्या कर रहे हो? दरवाजा खुला है! उसे तो बंद कर लो!
भौजी: जानू...वो पहले ही बंद कर दिया था मैंने! अब आप चुप-चाप आँखें बंद किये खड़े रहो!
उन्होंने पहले बेल्ट खोली.... जिसे खोलने में उन्हें खासी मशकत करनी पड़ी...फिर जीन्स का बटन खोला...फिर ज़िप खोली....और कच्छे को नीचे खिसका कर पहले से अकड़ चुके लंड को बहार निकला और उसकी चमड़ी को आगे-पीछे करने लॉगिन| फिर उन्होंने पूरा सुपाड़ा बहार निकला और उसके मुख पे अपने Red लिपस्टिक वाले होंठ रख दिए| मैंने जान बुझ के आँख खोल ली और ये दृश्य देख के मेरी हालत ऐसी थी मानो किसी लौहार ने तप के हुए लाल लोहे को पानी की ठंडी बाल्टी में डूबा दिया हो और उस लोहे से आवाज निकली हो "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स"!!! बिलकुल ऐसी ही आवाज मेरे मुख से निकली..."स्स्स्स्स्स्स" मेरी आवाज सुन के भौजी ने मेरी तरफ देखा;
भौजी: मैंने आपसे आँखें बंद करने को कहा था? तो फिर आपने खोली क्यों?
मैं: आपने मेरे बदन में आग लगा दी है...फिल बे काबू चूका है ....चाहे तो खुद देख लो! (ये कहते हुए मैंने भौजी का हाथ अपने दिल के ऊपर रख दिया जो फुल स्पीड में धड़क रहा था|)
भौजी: जानू .... आग तो इधर भी बारे-बार लगी है पर आपने जितना मुझे तड़पाया है उतना मैं भी तड़पाऊँगी!!!
भौजी ने मेरा लंड अपने मुख में गपक लिया और उसे चूसने लगीं| मैं तो जैसे हवा में उड़ने लगा था...वो तो भौजी ने मेरे लंड को थाम हुआ था वरना शायद में उड़ के कहीं और पहुँच जाता!
मैं: हाय!!! आज तो आप मेरी जान ले के रहोगे!!!
भौजी हँसे लगीं और अगले ही पल उन्होंने गप्प से लंड फिर से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगीं| वो लंड ऐसे चूस रहीं थीं जैसे किसी स्ट्रॉ में से कोई पेप्सी खींचता हो| अचानक से भौजी ने सुपाड़े पर अपने दाँत गड़ा दिए और में सिसिया उठा; "स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्हह्ह" फिर भौजी दुबारा उसे चूसने लगीं और करीब दस मिनट में ही मैं भौजी के मुँह में झड़ गया! भौजी उठीं और मैंने देखा की उन्होंने सारा रस गटक लिया था|
उन्होंने अपनी Red साड़ी से अपना मुँह पोछा और बोलीं;
भौजी: अब चलो मेरे साथ और नीचे मत देखना|
मैंने अभी तक अपने लंड को नहीं देखा था बस भौजी के हुस्न को ही निहार रहा था| हम भौजी के कमरे के अंदर पहुंचे और वहां दिवार पे एक लम्बा शीशा लगा हुआ था| जब मैंने उसमें खुद को देखा तो हैरान रह गया| मेरे शरीर पे भौजी के Red लिपस्टिक के निशान बने हुए थे| होठों पे...गालों पे...गले पे...छाती पे..निप्पलों पे ... Belly Button पे...और लंड...वो तो आधा लाल हो गया था| जब मैं स्खलित हुआ था तो उन्होंने सुपाड़े के चाट के साफ़ किया और उसपे भी अपनी Kiss का निशान छोड़ा था| जब ये सब मैंने देखा तो मुझे उनपे और प्यार आने लगा|
भौजी: देख ली मेरी हरकत?
मैं: हाँ देखि....पर अब इन निशानों का क्या करें?
भौजी: मैं पोंछ देती हूँ!
मैं: पोछना था तो लगाय क्यों?
भौजी: तो ऐसे ही रहने दूँ? किसी ने पूछा की होंठ लाल कैसे हैं तो?
मैं: कह दूँगा की पान खाया है|
भौजी: और गाल लाल क्यों हैं?
मैं: कह दूँगा की शर्म आ रही है!
भौजी: और गर्दन पे लाल निशान कैसे?
मैं: वो....
भौजी: बस-बस रहने दो आप .... मैं पोंछ देती हूँ!
मैं: सिर्फ गाल और गर्दन के पोछो|
भौजी: और होठों के?
मैं: वो आपके होंठ पोंछ देंगे|
ये कहे के मैंने उन्हें अपने से चिपका लिया और उनके होठों को चूसने लगा| अब तो भौजी ने भी पूरा साथ दिया और उन्होंने भी मेरे होठों को चूसना शुरू कर दिया| पांच मिनट तक हम एक दूसरे के होठों को चूमते रहे...चूसते रहे...और Red लिपस्टिक के मधुर स्वाद का भरपूर मजा उठाया| अब तो मेरे होंठ बिलकुल साफ़ हो गए थे बस भौजी के चेहरे पे Red लिपस्टिक ज्यादा फ़ैल गई थी|
भौजी: गाल तो मैंने आपके पोंछ दिए अब ये वाले (मेरी छाती और लंड पे) भी पोंछ देती हूँ|
मैं: ना....ये नहीं....कुछ देर तो इनका एहसास बना रहें दो यार| रात को पोंछ देना!
भौजी: जानू....आप बड़े नटखट हो!
मैं: आप भी तो हो...कुछ मिनटों में इतना बड़ा सुरप्रिज़े प्लान कर लिया मेरे लिए और बहाना क्या किया...की नेहा को लोलीपोप चाहिए! बहुत बड़ी नौटंकी हो आप... (मैंने अपनी टी-शर्ट पहन ली|)
भौजी: ही...ही...ही...ही... अच्छा अब आप बहार जाओ वरना सब कहेंगे की दोनों दरवाजा बंद कर्क इ क्या कर रहे हैं|
मैं: अब तक तो सब आ गए होंगे....तो दिवार कूद के चला जाता हूँ|
भौजी: ना बाबा ना.... चोट लग गई तो...आप सामने से ही जाओ| कोई देखता है तो देखने दो!
मैं: यार दिवार फांदने में जो मजा है वो सामने से निकल के जाने मैं नहीं.... लगता है की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने आया हो, वो भी सारी दुनिया की तमाम हदें तोड़ के ...
भौजी: अच्छा बाबा...जाओ पर प्लीज चोटिल मत हो जाना!
मैं: नहीं हूँगा...(दिवार की दोनों तरफ टांगें लटकते हुए) और हाँ अगर कोई पूछे न की आप और मैं अरवाजा बंद कर के क्या कर रहे थे तो कह देना... प्यार कर रहे थे| (ये कहके मैंने दूसरी ओर कूद पड़ा)
मैं थोड़ा चक्कर लगा के आया ओर ऐसे दिखाया जैसे मैं यहाँ था ही नहीं!
मन तो जानता था की मैं कितनी बड़ी बात उनसे छुपा रहा हूँ...और चाहे कुछ भी वो बात जुबान पे या चेहरे से नहीं झलकनी चाहिए! दस मिनट बाद भौजी कपडे बदल के और Red लिपस्टिक पोंछ के निकलीं और चाय बनाने घुस गईं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठा था और भौजी को देख के मुस्कुरा रहा था| वो भी मुझे देख के शरारती मुस्कराहट से मुझे मुझे घायल कर रहीं थीं| जब चाय बा गई तो वो चाय लेके मेरे पास आईं और चाय का कप मेरे हाथ में देते हुए मुझे आँख मारी!
मैं: स्स्स्सस्स्स्स अह्ह्ह्ह!
भौजी: क्या हुआ?
मैं: Too Hot !!!
भौजी: क्या?
मैं: हाँ...चाय बहुत गर्म है!
भौजी: हाँ..हाँ.. सब जानती हूँ! क्या गर्म है?
इतने में वहां बड़की अम्मा चाय लेने आ गईं;
बड़की अम्मा: क्या हुआ बहु?
भौजी: कह रहे हैं की चाय गर्म है!
बड़की अम्मा: तो ठंडा कर के दे दे| बस दो दिन.....
इससे पहले बड़की अम्मा कुछ कहतीं मैंने बात काट दी और बात बदल दी|
मैं: हाँ...देखो ना अम्मा...मैंने कहा की चाय फूक मार्के ठंडी कर दो कहतीं हैं की मेरे पास बहुत काम है!
बड़की अम्मा: जा बहु...चाय ठंडी कर दे और मेरी चाय भी यहीं ले आ|
जब भौजी रसोई में घुसीं तो बड़की अम्मा ने मुझसे बड़ी धीमी आवाज में कहा;
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? (उनका इशारा था की आखिर मैंने उन्हें बात पूरी क्यों नहीं करने दिया?)
मैं: अम्मा... ये बात आप उन्हें मत कहना...उनका दिल टूट जायेगा...मैं ही उनको कल बताऊँगा! अगर उनका दिल टूटना ही है तो मेरे ही करना टूटे तो बेहतर होगा|
बड़की अम्मा: ठीक है मुन्ना!
इतने में भौजी बड़की अम्मा की चाय ले आईं| उन्होंने अम्मा को एक प्याली दी और अपनी चाय नीचे रख दी और मेरी चाय को मुझे दिखा-दिखा के फूक मारने लगीं| बड़की अम्मा हमारे पास ही बैठीं थीं|
भौजी: ये लो...ठंडी हो गई!
मैं: हम्म्म थैंक यू!
जैसे ही मैंने पहला घूंट पिया मैंने जान बुझ के मुंह बनाया और कहा;
मैं: उम्म्म...अम्मा चाय बिलकुल ठंडी हो गई है...(मैंने भौजी से कहा) अब इसे गर्म कर के दो!
भौजी: देखो न अम्मा....कितना सताते हैं! पहले बोला ठंडी कर के दो फिर कहते हैं की गर्म कर के दो!
बड़की अम्मा: अरे बहु...तू जानती नहीं मुन्ना को! ये तुझसे दिल्लगी कर रहा है|
मैंने भौजी को अम्मा से नजर बचा के आँख मार दी और भौजी मुस्कुराने लगी|
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब खाना बनना शुरू हुआ और अब भी वही हंसी-मजाक और भौजी को छेड़ना जारी था| भौजी को मसाले पीसने के लिए अपने घर जाना था क्योंकि उन्ही के घर में सिल और बट्टा रखा हुआ था| तो मैं भी उनके पीछे-पीछे चला गया| उनके हाथ मसाले से सने हुए थे और जब वो मसाला पीस के उठीं तो मैंने फिर उन्हें छेड़ना चाहा|
भौजी: क्या बात है जानू? आज बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पे!
मैं: पता नहीं पर आज आपको एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने का मन नहीं कर रहा|
भौजी: इतने भी बेसब्र ना बनो....
मैंने भौजी को पीछे से जकड लिया और उनकी कमर को आगे से लॉक कर लिया|
भौजी: जानू.....छोड़ दो ना.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!
मैंने बिना कुछ कहे उन्हें एकदम से छोड़ दिया और भौजी अब भी मुझसे जानबूझ के चिपक के खड़ीं थीं|
भौजी: ओफ्फो !! जानू आपने तो सच में छोड़ दिया!
मैं: यार आपने ही तो कहा!
भौजी: अब ना ....थोड़े भी रोमांटिक नहीं हो!
भौजी जाने लगीं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली! एक झटका और भौजी मेरे सीने से आ लगीं| उनके एक हाथ में कटोरी थी जिसमें पीसा हुआ मसाला था और दूसरा हाथ मसाले से सना हुआ था|
भौजी: छोडो न...
मैं: सच में?
भौजी: नहीं....
हम ऐसे ही गले लगे हुए थे की तभी नेहा आ गई और हम छिटक के अलग हो गए|
नेहा: पापा आप क्या कर रहे हो?
मैं: कुछ नहीं बेटा...आपकी मम्मी को ठण्ड लग रही थी और मैं उन्हें गर्मी दे रहा था|
नेहा: ओ....
भौजी बाहर निकल के आ गईं और खाना बनाने लगीं और इधर मैं और नेहा बाहर निकल के तख़्त पे बैठ गए और खेलने लगे| रात के भोजन के बाद सोने की बारी आई|
अब मैं दुविधा में था की पहले किसे सुलाऊँ? भौजी को या नेहा को?
भौजी: अपना वादा याद है ना?
मैं: (अनजान बनते हुए) कौन सा?
भौजी: आज पहले मुझे सुलाओगे|
मैं: ओ ... हाँ! ऐसा करो एक चारपाई और बिछाओ|
भौजी: किस लिए?
मैं: यार अब जब तक नेहा नहीं सोती तब तक आप को कैसे सुलाऊँ? और उसके सोने के बाद मैं आपके पास आ नहीं सकता वरना वो रात में डर जाती है|
भौजी: चाहे कुछ भी करो...पर अगर आपने मुझे नहीं सुलाया तो....तो मैं सारी रात जागूँगी|
मैं: Don’t Worry यार ...मैं आप दोनों को सुला दूँगा|
सब से पहले मैं नेहा को गोद में लेके इधर-उधर घूम रहा था| ये सब मैं जान-बुझ के कर रहा था और सब को ऐसे दिखा रहा था की नेहा सो नहीं रही है, जबकि मैं उसे बातों में लगाए हुए था|
पिताजी: अब सो भी जाओ लाड साहब...!
मैं: ये लड़की सोने दे तब ना.... तीन कहानियाँ सुना चूका हूँ पर सोने का नाम ही नहीं लेती| (और इससे पहले की नेहा कुछ बोलती मैंने अपने होंठ पे ऊँगली रखते हुए उसे चुप रहने को कहा|)
पिताजी: ठीक है ...पर बेटा जल्दी सो जाना!
मैं: जी...इसे सुला के भौजी के पास छोड़ दूँगा|
पिताजी लेट गए और सब भी अपने-अपने बिस्तर में घुस गए थे| मैंने करीब और आधे घंटे नेहा को टहलया और फिर उस कहानी सुनाई और पंद्रह मिनट सो गई| फिर मैं उसे लिटाने भौजी के पास चल दिया|
भौजी: (शिकायत करते हुए) आ गए आप? लोग कहते हैं की एक बच्चा होने के बाद पत्नी का प्यार बँट जाता है पर यहाँ तो बात ही उलटी है! आप मुझ से ज्यादा तो इसे प्यार करते हो!
मैं ने नेहा को दूसरी चारपाई पे लिटाया और फिर भौजी की बगल में पाँव ऊपर कर के बैठ गया| मेरे सर पीछे दिवार से लगा हुआ था और उन्होंने मेरे कंधे पे सर रख दिया|
मैं: सच कहूँ तो मैं आपसे ज्यादा प्यार करता हूँ और आपसे थोड़ा सा कम प्यार... मैं नेहा से करता हूँ|
भौजी: जानती हूँ...मैं तो आपको छेड़ रही थी|
मैं: अच्छा तो बताओ की आपको कैसे सुलाऊँ?
भौजी: क्या मतलब कैसे सुलाऊँ? मैं कोई छोटी बच्ची हूँ जो आप मुझे सुलाओगे!
मैं: तो मुझे यहाँ क्या दही मथने को बुलाया है?
भौजी: नहीं जानू ...ये बताओ की मेरी लोलीपोप कहाँ है?
मैं: ओह! वो तो मैंने बड़े घर में रखी हुई है|
भौजी: awwww मैं आपसे बात नहीं करती!
मैंने अपनी जीन्स में हाथ डाला और दोनों लोलीपोप निकाली और उन्हें दिखाई!
भौजी: जानू....आप ना.... मुझे तंग करने से बाज नहीं आते! पर दो क्यों लाये? नेहा ने भी मुझे दो लोलीपोप दी थीं और आप भी दो लाये?
मैं: एक आप के लिए और एक मेरे लिए!
भौजी: (शिकायती लहजे में) क्यों मेरा जूठा खाने में शर्म आती है?
मैं: नहीं यार .....सारी रात एक ही लोलीपोप कैसे खाएंगे ... इसलिए तो वैरायटी लाया हूँ! पहले स्ट्रॉबेरी फिर ऑरेंज फिर मैंगो और आखरी में स्ट्रॉबेरी!
भौजी: सब आज ही खाओगे...कुछ आगे आने वाले दिन के लिए भी बचाओ! चार स्ट्रॉबेरी मतलब चार दिन!
मैं फिर से मौन हो गया... अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की sunday को मैं उन्हें अकेला छोड़ के चला जाऊँगा|
भौजी: क्या हुआ? क्या सोच रहे हो?
मैं: सोच रहा हूँ की आप बात ही करोगे या लोलीपोप खोलोगे भी!
भौजी ने बाकी तीन लोलीपोप अपने तकिये के नीचे रखीं और स्ट्रॉबेरी वाली एक लोलीपोप खोली| खोलते ही उन्होंने उसे अपने मुंह में भर लिया और मेरी ओर देख के हंसने लगीं| दस सेकंड उन्होंने उसे चूसा और फिर मेरी ओर बढ़ा दिया| मैंने भी उस लोलीपोप को चूसा और मुझे उसमें से भौजी के मुख की सुगंध और स्ट्रॉबेरी दोनों का स्वाद आ रहा था| फिर भौजी ने मेरे मुंह से लोलीपोप खींच ली| भौजी: मुझे भी तो Taste करने दो?
फिर भौजी लोलीपोप चूसने लगीं और फिर उठीं और दरवाजा बंद कर के मेरे लंड पे आके बैठ गईं|
मैं: सोना नहीं है?
भौजी: पहले अपनी Red लिपस्टिक के निशान तो मिटा दूँ वरना कल नहाते हुए अगर किसी ने देख लिया तो?
मैं: कह दूँगा की आपने बनाये हैं!
भौजी: ठीक है!
मैं: आप न ...बहुत शरारती हो!
भौजी ने मेरी टी-शर्ट उतारी और उसे नेहा वाली चारपाई पे फेंक दिया| अपनी लोलीपोप मेरे मुंह में दाल दी और मैं मजे से उसे चूसने लगा| फिर उन्होंने मेरे निप्पलों को चूसना शुरू कर दिया| करीब पांच मिनट तक वो एक-एक कर दोनों को चूसने लगीं| बीच-बीच में वो उन्हें काट भी लेतीं| अब चूँकि मेरे मुंह में लोलीपोप थी तो मैंने जान बुझ के मुँह नहीं खोला न ही कोई सिसकारी ली| फिर भौजी नीचे हो गईं और मेरे Belly Button में अपनी जीभ घुसेड़ दी| उनके ऐसा करते ही मैं उठ बैठा क्योंकि मुझे बड़ी तेज गुद-गुदी हुई थी| भौजी पीछे गिरने ही वालीं थी की मैंने उन्हें थाम लिया|
मैं: क्या कर रही हो ....गुद-गुदी हो रही है!
भौजी: अच्छा जी .... तो मेरे जानू को यहाँ गुद-गुदी होती है!
उन्होंने मेरे सीने पे जोर लगा के पीछे धकेला और मैं वापस तकिये सर रख के लेट गया| अब उन्होंने मेरी बेल्ट खोली...फिर जीन्स का बटन और आखिर में ज़िप खोल दी| फिर वो उठीं और मेरे पाँव के पास कड़ी हो गईं और मेरी जीन्स खींच के उतार दी| मैं अब भी लोलीपोप चूस रहा था| फिर उन्होंने कच्छा उतार दिया और सारे कपडे नेहा की चारपाई पे रख दिए और वापस मेरे घुटनों पे बैठ गईं| उन्होंने झुक के मेरे लंड को अपने मुँह में भरा और लोलीपोप की तरह चजसने लगीं परन्तु ज्यादा नहीं चूसा और फिर चारपाई पे खड़ी हो गईं और अपनी योनि को धीरे-धीरे लंड के ऊपर लाई और धीरे-धीरे लंड पे बैठने लगीं| मैंने उनहीं हाथ से सपोर्ट दे रखा था की कहीं वो गिर ना जाएं| धीरे-धीरे पूरा लंड उनके अंदर समा गया| उन्होंने अपनी गर्दन पीछे की ओर तान दी| दो मिनट बाद जब उनकी योनि ने अंदर से कुछ रस छोड़ा तब जाके उनका दर्द कुछ कम हुआ| फिर वो मेरे ऊपर झुकीं और मेरे मुँह से लोलीपोप निकाल ली और अपने मुँह में भर के चूसा और टॉफी को काट के चबाने लगीं और स्ट्रॉ के टुकड़े को फेंक दिया| मेरी छाती पे हाथ रख के अपनी कमर को उप्र उठाया और फिर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होने लगीं| उनकी योनि ने जैसे मेरे लंड को अपनी गिरफ्त में जकड लिया था और वो अब किसी भी हालत में छोड़ने वाली नहीं थी|
मैं: स्स्स्स्स्स्स....लगता है... मम्म... आज मेरे "उसपे" (लंड) पे बने निशान आप अपनी "इससे" (योनि) से पोंछ के रहोगे|
भौजी: स्स्स्स्स.....म्म्म्म्म्म्म हाँ!
हम दोनों तो शाम से ही उत्तेजित थे इसलिए ये सम्भोग ज्यादा लम्बा नहीं चला और हम दोनों एक साथ ही स्खलित हो गए| भौजी निढाल हो मेरे सीने पे सर रख के लेट गईं|
सुबह से ये तीसरी बार था जब मैं झड़ा था और वो दूसरी बार! दस मिनट बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं;
मैं: यार...दूध पीने का मन कर रहा है!
भौजी: मैं अभी बना के लाती हूँ|
मैं: मुझे वो दूध नहीं पीना! ये वाला (उनके स्तन की ओर इशारा करता हुए) पीना है|
भौजी: पर मुझे अब दूध नहीं आता| बच्चा होगा... तब आएगा.... तब पी लेना|
मैं: Let Me Try Once !
भौजी: तो करो ना...किसने मन किया है?
अब भौजी पीठ के बल लेटीं और मैं उनके ऊपर चढ़ गया| उन्होंने अपने ब्लाउज के हुक खोल दिए और उनके स्तन आजाद हो गए| मैं टकटकी बांधे उनके स्तनों को निहारता रहा|
भौजी: क्या देख रहे हो?
मैं: कुछ नहीं (दरअसल उस वक़्त मैं ये सोच रहा था की कल जब मैंने उन्हें अपने जाने की बात बताऊँगा तो उनका क्या हाल होगा?)
भौजी: क्या सोच रहे हो?
मैंने इस बार कुछ नहीं कहा और उनके होठों को चूम लिया| फिर मैं नीचे की ओर बढ़ा ओर उनके स्तनों को एक एक कर चूसने लगा...उनमें दूध तो था नहीं ....पर एक भीनी सी सुगंध अवश्य आ रही थी| उस मनमोहक सुगंध के कारन मैं उनके स्तनों को बेतहाशा चूस रहा था| मैं एक हाथ से उनके एक स्तन को मसलता और दूसरे स्तन को मुंह में भर के चूसता रहता| भौजी अपने हाथ से मेरे सर को दबा रहे थे और सिसिया रहीं थीं| हाँ एक बात थी की मैंने उनके स्तनों पे काटा नहीं...क्यों नहीं काटा ये मैं नहीं जानता| पर मुझे ऐसा लगा की शायद वो भाँप चुकीं हैं की मैं कुछ तो उनसे छुपा रहा हूँ| करीब बीस मिनट बाद मैंने उनके स्तनों को छोड़ा ओर वो बुरी तरह लाल हो चुके थे|
भौजी: अहह स्स्स्स्स निकल आय दूध?
मैं: नहीं ...पर टेस्ट बहुत अच्छा था| चलो आप सो जाओ...
भौजी: Good Night !
मैं: Good Night !
मैंने आखरी बार भौजी के होठों को चूमा और चुप-चाप बाहर आके अपने बिस्तर पे लेट गया|
लेटे-लेटे सोच रहा था की कल कैसे उन्हें बताऊँगा की .... आँखें खोले आसमान में बस देख रहा था और अपने सवाल का जवाब ढूंढ रहा था| रात के ग्यारह बज गए थे और मैं अब भी उसी तरह आसमान की ओर देख रहा था| इतने में वहाँ भौजी आ गईं ओर उनकी गोद में नेहा थी;
भौजी: (खुसफुसाते हुए) जानू ... सोये नहीं अभी तक?
मैं: (बात बनाते हुए) वो नेहा नहीं है ना इसलिए नींद नहीं आ रही थी...अरे क्या हुआ गुड़िया को?
भौजी: फिर से डर गई थी....!!!
मैं: Awwww मेरी बेटी! क्या हुआ? फिर से बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: आओ पापा के पास ...
मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे थपथपाने लगा| फिर मैंने उसे साथ लिटा लिया!
भौजी: Good Night ...और पापा को तंग मत करना|
मैं: आप जाओ और सो जाओ!
भौजी चली गईं और मुझे उनका दरवाजा बंद करने की आवाज आई| मैंने नेहा को कहानी सुनाई और वो मुझसे लिपट के सो गई|
अब खाना बनना शुरू हुआ और अब भी वही हंसी-मजाक और भौजी को छेड़ना जारी था| भौजी को मसाले पीसने के लिए अपने घर जाना था क्योंकि उन्ही के घर में सिल और बट्टा रखा हुआ था| तो मैं भी उनके पीछे-पीछे चला गया| उनके हाथ मसाले से सने हुए थे और जब वो मसाला पीस के उठीं तो मैंने फिर उन्हें छेड़ना चाहा|
भौजी: क्या बात है जानू? आज बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पे!
मैं: पता नहीं पर आज आपको एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने का मन नहीं कर रहा|
भौजी: इतने भी बेसब्र ना बनो....
मैंने भौजी को पीछे से जकड लिया और उनकी कमर को आगे से लॉक कर लिया|
भौजी: जानू.....छोड़ दो ना.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!
मैंने बिना कुछ कहे उन्हें एकदम से छोड़ दिया और भौजी अब भी मुझसे जानबूझ के चिपक के खड़ीं थीं|
भौजी: ओफ्फो !! जानू आपने तो सच में छोड़ दिया!
मैं: यार आपने ही तो कहा!
भौजी: अब ना ....थोड़े भी रोमांटिक नहीं हो!
भौजी जाने लगीं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली! एक झटका और भौजी मेरे सीने से आ लगीं| उनके एक हाथ में कटोरी थी जिसमें पीसा हुआ मसाला था और दूसरा हाथ मसाले से सना हुआ था|
भौजी: छोडो न...
मैं: सच में?
भौजी: नहीं....
हम ऐसे ही गले लगे हुए थे की तभी नेहा आ गई और हम छिटक के अलग हो गए|
नेहा: पापा आप क्या कर रहे हो?
मैं: कुछ नहीं बेटा...आपकी मम्मी को ठण्ड लग रही थी और मैं उन्हें गर्मी दे रहा था|
नेहा: ओ....
भौजी बाहर निकल के आ गईं और खाना बनाने लगीं और इधर मैं और नेहा बाहर निकल के तख़्त पे बैठ गए और खेलने लगे| रात के भोजन के बाद सोने की बारी आई|
अब मैं दुविधा में था की पहले किसे सुलाऊँ? भौजी को या नेहा को?
भौजी: अपना वादा याद है ना?
मैं: (अनजान बनते हुए) कौन सा?
भौजी: आज पहले मुझे सुलाओगे|
मैं: ओ ... हाँ! ऐसा करो एक चारपाई और बिछाओ|
भौजी: किस लिए?
मैं: यार अब जब तक नेहा नहीं सोती तब तक आप को कैसे सुलाऊँ? और उसके सोने के बाद मैं आपके पास आ नहीं सकता वरना वो रात में डर जाती है|
भौजी: चाहे कुछ भी करो...पर अगर आपने मुझे नहीं सुलाया तो....तो मैं सारी रात जागूँगी|
मैं: Don’t Worry यार ...मैं आप दोनों को सुला दूँगा|
सब से पहले मैं नेहा को गोद में लेके इधर-उधर घूम रहा था| ये सब मैं जान-बुझ के कर रहा था और सब को ऐसे दिखा रहा था की नेहा सो नहीं रही है, जबकि मैं उसे बातों में लगाए हुए था|
पिताजी: अब सो भी जाओ लाड साहब...!
मैं: ये लड़की सोने दे तब ना.... तीन कहानियाँ सुना चूका हूँ पर सोने का नाम ही नहीं लेती| (और इससे पहले की नेहा कुछ बोलती मैंने अपने होंठ पे ऊँगली रखते हुए उसे चुप रहने को कहा|)
पिताजी: ठीक है ...पर बेटा जल्दी सो जाना!
मैं: जी...इसे सुला के भौजी के पास छोड़ दूँगा|
पिताजी लेट गए और सब भी अपने-अपने बिस्तर में घुस गए थे| मैंने करीब और आधे घंटे नेहा को टहलया और फिर उस कहानी सुनाई और पंद्रह मिनट सो गई| फिर मैं उसे लिटाने भौजी के पास चल दिया|
भौजी: (शिकायत करते हुए) आ गए आप? लोग कहते हैं की एक बच्चा होने के बाद पत्नी का प्यार बँट जाता है पर यहाँ तो बात ही उलटी है! आप मुझ से ज्यादा तो इसे प्यार करते हो!
मैं ने नेहा को दूसरी चारपाई पे लिटाया और फिर भौजी की बगल में पाँव ऊपर कर के बैठ गया| मेरे सर पीछे दिवार से लगा हुआ था और उन्होंने मेरे कंधे पे सर रख दिया|
मैं: सच कहूँ तो मैं आपसे ज्यादा प्यार करता हूँ और आपसे थोड़ा सा कम प्यार... मैं नेहा से करता हूँ|
भौजी: जानती हूँ...मैं तो आपको छेड़ रही थी|
मैं: अच्छा तो बताओ की आपको कैसे सुलाऊँ?
भौजी: क्या मतलब कैसे सुलाऊँ? मैं कोई छोटी बच्ची हूँ जो आप मुझे सुलाओगे!
मैं: तो मुझे यहाँ क्या दही मथने को बुलाया है?
भौजी: नहीं जानू ...ये बताओ की मेरी लोलीपोप कहाँ है?
मैं: ओह! वो तो मैंने बड़े घर में रखी हुई है|
भौजी: awwww मैं आपसे बात नहीं करती!
मैंने अपनी जीन्स में हाथ डाला और दोनों लोलीपोप निकाली और उन्हें दिखाई!
भौजी: जानू....आप ना.... मुझे तंग करने से बाज नहीं आते! पर दो क्यों लाये? नेहा ने भी मुझे दो लोलीपोप दी थीं और आप भी दो लाये?
मैं: एक आप के लिए और एक मेरे लिए!
भौजी: (शिकायती लहजे में) क्यों मेरा जूठा खाने में शर्म आती है?
मैं: नहीं यार .....सारी रात एक ही लोलीपोप कैसे खाएंगे ... इसलिए तो वैरायटी लाया हूँ! पहले स्ट्रॉबेरी फिर ऑरेंज फिर मैंगो और आखरी में स्ट्रॉबेरी!
भौजी: सब आज ही खाओगे...कुछ आगे आने वाले दिन के लिए भी बचाओ! चार स्ट्रॉबेरी मतलब चार दिन!
मैं फिर से मौन हो गया... अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की sunday को मैं उन्हें अकेला छोड़ के चला जाऊँगा|
भौजी: क्या हुआ? क्या सोच रहे हो?
मैं: सोच रहा हूँ की आप बात ही करोगे या लोलीपोप खोलोगे भी!
भौजी ने बाकी तीन लोलीपोप अपने तकिये के नीचे रखीं और स्ट्रॉबेरी वाली एक लोलीपोप खोली| खोलते ही उन्होंने उसे अपने मुंह में भर लिया और मेरी ओर देख के हंसने लगीं| दस सेकंड उन्होंने उसे चूसा और फिर मेरी ओर बढ़ा दिया| मैंने भी उस लोलीपोप को चूसा और मुझे उसमें से भौजी के मुख की सुगंध और स्ट्रॉबेरी दोनों का स्वाद आ रहा था| फिर भौजी ने मेरे मुंह से लोलीपोप खींच ली| भौजी: मुझे भी तो Taste करने दो?
फिर भौजी लोलीपोप चूसने लगीं और फिर उठीं और दरवाजा बंद कर के मेरे लंड पे आके बैठ गईं|
मैं: सोना नहीं है?
भौजी: पहले अपनी Red लिपस्टिक के निशान तो मिटा दूँ वरना कल नहाते हुए अगर किसी ने देख लिया तो?
मैं: कह दूँगा की आपने बनाये हैं!
भौजी: ठीक है!
मैं: आप न ...बहुत शरारती हो!
भौजी ने मेरी टी-शर्ट उतारी और उसे नेहा वाली चारपाई पे फेंक दिया| अपनी लोलीपोप मेरे मुंह में दाल दी और मैं मजे से उसे चूसने लगा| फिर उन्होंने मेरे निप्पलों को चूसना शुरू कर दिया| करीब पांच मिनट तक वो एक-एक कर दोनों को चूसने लगीं| बीच-बीच में वो उन्हें काट भी लेतीं| अब चूँकि मेरे मुंह में लोलीपोप थी तो मैंने जान बुझ के मुँह नहीं खोला न ही कोई सिसकारी ली| फिर भौजी नीचे हो गईं और मेरे Belly Button में अपनी जीभ घुसेड़ दी| उनके ऐसा करते ही मैं उठ बैठा क्योंकि मुझे बड़ी तेज गुद-गुदी हुई थी| भौजी पीछे गिरने ही वालीं थी की मैंने उन्हें थाम लिया|
मैं: क्या कर रही हो ....गुद-गुदी हो रही है!
भौजी: अच्छा जी .... तो मेरे जानू को यहाँ गुद-गुदी होती है!
उन्होंने मेरे सीने पे जोर लगा के पीछे धकेला और मैं वापस तकिये सर रख के लेट गया| अब उन्होंने मेरी बेल्ट खोली...फिर जीन्स का बटन और आखिर में ज़िप खोल दी| फिर वो उठीं और मेरे पाँव के पास कड़ी हो गईं और मेरी जीन्स खींच के उतार दी| मैं अब भी लोलीपोप चूस रहा था| फिर उन्होंने कच्छा उतार दिया और सारे कपडे नेहा की चारपाई पे रख दिए और वापस मेरे घुटनों पे बैठ गईं| उन्होंने झुक के मेरे लंड को अपने मुँह में भरा और लोलीपोप की तरह चजसने लगीं परन्तु ज्यादा नहीं चूसा और फिर चारपाई पे खड़ी हो गईं और अपनी योनि को धीरे-धीरे लंड के ऊपर लाई और धीरे-धीरे लंड पे बैठने लगीं| मैंने उनहीं हाथ से सपोर्ट दे रखा था की कहीं वो गिर ना जाएं| धीरे-धीरे पूरा लंड उनके अंदर समा गया| उन्होंने अपनी गर्दन पीछे की ओर तान दी| दो मिनट बाद जब उनकी योनि ने अंदर से कुछ रस छोड़ा तब जाके उनका दर्द कुछ कम हुआ| फिर वो मेरे ऊपर झुकीं और मेरे मुँह से लोलीपोप निकाल ली और अपने मुँह में भर के चूसा और टॉफी को काट के चबाने लगीं और स्ट्रॉ के टुकड़े को फेंक दिया| मेरी छाती पे हाथ रख के अपनी कमर को उप्र उठाया और फिर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होने लगीं| उनकी योनि ने जैसे मेरे लंड को अपनी गिरफ्त में जकड लिया था और वो अब किसी भी हालत में छोड़ने वाली नहीं थी|
मैं: स्स्स्स्स्स्स....लगता है... मम्म... आज मेरे "उसपे" (लंड) पे बने निशान आप अपनी "इससे" (योनि) से पोंछ के रहोगे|
भौजी: स्स्स्स्स.....म्म्म्म्म्म्म हाँ!
हम दोनों तो शाम से ही उत्तेजित थे इसलिए ये सम्भोग ज्यादा लम्बा नहीं चला और हम दोनों एक साथ ही स्खलित हो गए| भौजी निढाल हो मेरे सीने पे सर रख के लेट गईं|
सुबह से ये तीसरी बार था जब मैं झड़ा था और वो दूसरी बार! दस मिनट बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं;
मैं: यार...दूध पीने का मन कर रहा है!
भौजी: मैं अभी बना के लाती हूँ|
मैं: मुझे वो दूध नहीं पीना! ये वाला (उनके स्तन की ओर इशारा करता हुए) पीना है|
भौजी: पर मुझे अब दूध नहीं आता| बच्चा होगा... तब आएगा.... तब पी लेना|
मैं: Let Me Try Once !
भौजी: तो करो ना...किसने मन किया है?
अब भौजी पीठ के बल लेटीं और मैं उनके ऊपर चढ़ गया| उन्होंने अपने ब्लाउज के हुक खोल दिए और उनके स्तन आजाद हो गए| मैं टकटकी बांधे उनके स्तनों को निहारता रहा|
भौजी: क्या देख रहे हो?
मैं: कुछ नहीं (दरअसल उस वक़्त मैं ये सोच रहा था की कल जब मैंने उन्हें अपने जाने की बात बताऊँगा तो उनका क्या हाल होगा?)
भौजी: क्या सोच रहे हो?
मैंने इस बार कुछ नहीं कहा और उनके होठों को चूम लिया| फिर मैं नीचे की ओर बढ़ा ओर उनके स्तनों को एक एक कर चूसने लगा...उनमें दूध तो था नहीं ....पर एक भीनी सी सुगंध अवश्य आ रही थी| उस मनमोहक सुगंध के कारन मैं उनके स्तनों को बेतहाशा चूस रहा था| मैं एक हाथ से उनके एक स्तन को मसलता और दूसरे स्तन को मुंह में भर के चूसता रहता| भौजी अपने हाथ से मेरे सर को दबा रहे थे और सिसिया रहीं थीं| हाँ एक बात थी की मैंने उनके स्तनों पे काटा नहीं...क्यों नहीं काटा ये मैं नहीं जानता| पर मुझे ऐसा लगा की शायद वो भाँप चुकीं हैं की मैं कुछ तो उनसे छुपा रहा हूँ| करीब बीस मिनट बाद मैंने उनके स्तनों को छोड़ा ओर वो बुरी तरह लाल हो चुके थे|
भौजी: अहह स्स्स्स्स निकल आय दूध?
मैं: नहीं ...पर टेस्ट बहुत अच्छा था| चलो आप सो जाओ...
भौजी: Good Night !
मैं: Good Night !
मैंने आखरी बार भौजी के होठों को चूमा और चुप-चाप बाहर आके अपने बिस्तर पे लेट गया|
लेटे-लेटे सोच रहा था की कल कैसे उन्हें बताऊँगा की .... आँखें खोले आसमान में बस देख रहा था और अपने सवाल का जवाब ढूंढ रहा था| रात के ग्यारह बज गए थे और मैं अब भी उसी तरह आसमान की ओर देख रहा था| इतने में वहाँ भौजी आ गईं ओर उनकी गोद में नेहा थी;
भौजी: (खुसफुसाते हुए) जानू ... सोये नहीं अभी तक?
मैं: (बात बनाते हुए) वो नेहा नहीं है ना इसलिए नींद नहीं आ रही थी...अरे क्या हुआ गुड़िया को?
भौजी: फिर से डर गई थी....!!!
मैं: Awwww मेरी बेटी! क्या हुआ? फिर से बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: आओ पापा के पास ...
मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे थपथपाने लगा| फिर मैंने उसे साथ लिटा लिया!
भौजी: Good Night ...और पापा को तंग मत करना|
मैं: आप जाओ और सो जाओ!
भौजी चली गईं और मुझे उनका दरवाजा बंद करने की आवाज आई| मैंने नेहा को कहानी सुनाई और वो मुझसे लिपट के सो गई|
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Re: एक अनोखा बंधन
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सारी रात उल्लू की तरह जागता रहा...सोचता रहा की कैसे...आखिर कैसे उनसे ये कहूँगा! घडी देखि तो तीन बज रहे थे...और नींद थी की आने का नाम नहीं ले रही थी| धीरे-धीरे घडी की सुइयाँ चलती हुई ...टिक.टिक ..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक.. आखिर चार बजे और मैं उठ गया| बड़के दादा अब तक उठ जाते हैं और मुझे इतनी जल्दी उठा देख के मेरे पास आये, मैंने उनके पाँव हाथ लगाये;
बड़के दादा: जीते रहो मुन्ना...अभी तो चार बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों उठ गए? एक घंटा और सो लो!
मैं: नहीं दादा...नहा धो के फ्रेश हो जाता हूँ|
बड़के दादा: शाबाश बेटे... जाओ नहा धो लो!
बड़की अम्मा ने हमें बातें करते देखा तो वो भी मेरे पास आईं और मैंने उनके भी पाँव हाथ लागए;
बड़की अम्मा: खुश रहो .... पर मुन्ना इतनी जल्दी काहे उठ गए?
मैं: जी आज आँख जल्दी खुल गई|
हालाँकि मेरी शक्ल कुछ और कह रही थी| अब जो इंसान रात भर सो न सका हो उसके चेहरे पे कुछ तो निशान बन ही जाते हैं और ये बात बड़की अम्मा भलीं-भाँती समझ चुकीं थी पर चूँकि वहाँ बड़के दादा भी थे, इसलिए कुछ नहीं बोलीं| मैं उठा...नहा-धो के तैयार हो गया और तब तक पांच बज चुके थे| घर में सब उठ चुके थे, सिवाय नेहा के! भौजी ने जब मुझे तैयार देखा तो खुद को पूछने से रोक नहीं पाईं;
भौजी: आप इतनी जल्दी उठ गए.... ? रात भर सोये नहीं थे क्या?
मैं: नहीं यार...आँख थोड़ा जल्दी खुल गई|
भौजी: सुबह-सुबह जूठ मत बोलो...नेहा ने सोने नहीं दिया होगा| नींद में उसे होश नहीं रहता ....लात मारी होगी इस लिए आप जल्दी उठ गए|
मैं: ना यार...ऐसा कुछ नहीं हुआ| सच में नींद जल्दी खुल गई थी!
तभी वहाँ पिताजी और माँ भी आ गए और उन्हें आता देख भौजी ने फ़ट से घूँघट काढ लिया और दोनों के पाँव छुए|
पिताजी: अरे मानु की माँ...लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!
माँ: हाँ... वरना ये लाड-साहब तो छः बजे के पहले बिस्तर नहीं छोड़ते थे पर जब से गाँव आएं हैं जल्दी उठने लगे हैं और आज तो हद्द ही हो गई? कितने बजे उठे हो जनाब?
मेरे जवाब देने से पहले ही वहाँ बड़की अम्मा आ गईं;
बड़की अम्मा: सुबह चार बजे!
पिताजी: हैं? क्या बात है लाड-साहब? रात में नींद नहीं आई क्या?
मैं: जी वो आँख जल्दी खुल गई| (मुझे दर था की कहीं बड़की आम कुछ कह नादें, इसलिए मैंने बात घुमाना ठीक समझा) अम्मा...चाय बन गई?
बड़की अम्मा भी उम्र में बड़ी थीं और सब समझती भी थीं इसलिए उन्होंने जान के कुछ नहीं कहा और मुझे अपने साथ रसोई घर ले गईं और मुझे सामने बैठा के चाय बंनाने लगीं|
बड़की अम्मा: मुन्ना...सच-सच कहो....तुम रात भर सोये नहीं ना?
मैं: जी नहीं...
बड़की अम्मा: क्यों? (चाय में चीनी डालते हुए)
मैं: जी...रात भर सोच रहा था की उन्हें कैसे बताऊँगा की हम रविवार को जा रहे हैं? (मुझे छप्पर के नीचे कोई खड़ा हुआ दिखाई दिया, पर जब मैंने पास जाके देखा तो वहाँ कोई नहीं था|)
बड़की अम्मा: तो बेटा मैं बता देती हूँ|
मैं: जी मैं नहीं चाहता की उनका दिल टूटे! और खासकर ऐसे मौके पर जब वो माँ बनने वालीं हैं|
आगे बात हो पाती इसे पहले ही भौजी वहाँ आ गईं और मैंने अम्मा को इशारे से बात ख़त्म करने को कहा| मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने अम्मा के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया!
भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?
मैं: नेहा को उठाने|
भौजी: वो उठ गई है और तैयार हो रही है| आप बैठो...वैसे भी उसने रात भर सोने नहीं दिया आपको|
एक बार को तो मन हुआ की उन्हें अभी सब बता दूँ पर सुयभ-सुबह ऐसी खबर देना जिससे वो टूट जाएं ...मुझे ठीक नहीं लगा| हम दोनों तख़्त पे बैठ गए और जब चाय बनी तो भौजी ने सब को चाय दी और फिर अपनी और मेरी चाय लेके मेरे पास बैठ गईं| अम्मा भी अपनी चाय की प्याली ले के बड़के दादा के साथ बैठ के बातें करने लगीं और जाते-जाते मुझे इशारा कर गईं की मैं भौजी को सब अभी बता दूँ| पर मैंने ऐसा नहीं किया ...अब तो भौजी को भी लगने लगा था की मैं उनसे कुछ छुपा रहा हूँ|
भौजी: जानू...क्या बात है? आप मुझसे क्या छुपा रहे हो?
मैं: कुछ भी तो नहीं...मैं आपसे नाराज हूँ! (मैंने बात पूरी तरह से बदल दी)
भौजी: क्यों?
मैं: आजकी Good Morning Kiss नहीं दी आपने इसलिए!
भौजी: अभी दे देती हूँ!
मैं: सब के सामने?
भौजी: हाँ तो... ?
मैं: यहाँ नहीं... बाद में दे देना|
इतने में नेहा तैयार हो के आगई और मेरे गाल पे kiss किया और फिर उसके दूध पीने के बाद मैं उसे लेके स्कूल चल दिया| स्कूल छोड़ के आया तो देखा की भौजी नहा धो के तैयार हो गईं थीं और सब्जी काटने बैठी थीं, मुझे बड़की अम्मा भी खेत से आती हुई दिखाई दीं और उन्होंने दूर से ही इशारा करते हुए पूछा की क्या हुआ? मैंने गर्दन हिला के कुछ नहीं का जवाब दिया| मतलब मैंने अब तक भौजी को कुछ नहीं बताया था| मैं भौजी के सामने से गुजरा पर उनसे नजरें चुराता हुआ बड़े घर के आँगन में बैठ गया| मैं चारपाई पे सर झुका के बैठा था और मेरे ठीक सामने घर का द्वार था|
करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी पाँव पटकती हुईं आई और जब मैंने उनके मुख को देखा तो उनकी आँखों से आँसूं छलछला रहे थे और बात साफ़ हो गई की किसी ने उनसे सब कह दिया है|
भौजी: (मेरी आँखों में देखते हुए) क्यों.....आखिर क्यों इतनी बड़ी बात छुपाई मुझे से? क्यों? सब जानते हुए ....आपने मुझे कुछ नहीं बताया... क्यों? आपको सब पहले से ही पता था ना....? क्यों मुझे उस शोक से बहार निकला...पड़े रहने देते मुझे उसी दुक में की आपकी शादी हो रही है.... उस दुःख में थोड़ा और दुःख जुड़ जाता ना...बस...सह लेती पर ...पहले खुद आपने मुझे उस दुःख से निकला ये कह के की भविष्य के बारे में मत सोचो और ....फिर इस नए दुःख का पहाड़ मुझे पे गिरा दिया!!!
मेरा सर झुक गया.... पर भौजी के अंदर जो गुबार था वो कम नहीं हुआ और उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी और मुझे बोलने का कोई अवसर ही नहीं दिया|
भौजी: मुझे ...बिना बताये चले जाना चाहते थे? क्यों....क्यों नहीं बताया की आप मुझे छोड़ के जाना चाहते हो? मन भार गया क्या मुझसे? Answer ME!!! O समझी.....इसीलिए कल आपको इतना प्यार आ रहा था मुझ पे! है ना? क्योंकि मुझे छोड़ के जा रहे हो? मैं ही पागल थी......जो आपको अपना समझ बैठी!!! आप....आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते..... बस खेल रहे थे मेरे साथ...मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रहे थे! और मैं पागल ...आपको अपना जीवन साथ समझ बैठी! हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मुझे बस दग़ा ही मिला हर बार...पहले आपके भाई से....फिर आप से.... जाओ...नहीं रोकूंगी मैं आपको! और वैसे भी मेरे रोकने से आप कौन सा रूक जाओगे!
मैंने भौजी के आँसूं पोछने चाहे पर उन्होंने मुझे खुद को छूने तक नहीं दिया और पीछे हटते हुए कह दिया की;
भौजी: कोई जर्रूरत नहीं मुझे छूने की!
मैं: पर ...
भौजी बिना बात सुने पाँव पटक के जाने लगीं तो मैंने उन्हें रुकने के लिए पुकारा;
मैं: प्लीज मेरी बात तो सुन लो!
पर भौजी नहीं रुकीं! वो पाँव पटकते हुए तीन कदम आगे चलीं होंगी की उन्हें चक्कर आ गया और वो गिरने को हुईं..मैंने भाग के उन्हें अपनी बाँहों का सहारा देते हुए संभाला| भौजी बेहोश हो गईं थीं और उनकी ये हालत देख मेरी फ़ट गई! मैंने उन्हें अपनी गोद में उठाया और बरामदे में चारपाई पर लिटाया| मैं भौजी के गाल थप-थपाने लगा ...पर कोई असर नहीं...मैंने उनके सीने पे सर रखा की उनकी दिल की धड़कन सुनने लगा| दिल अब भी धड़क रहा था...मैंने फिर से उनके गाल को थप-तपाया पर वो कुछ नहीं बोलीं...मैं उन्हें पुकारता रहा पर कुछ असर नहीं हुआ| मैं उनके हथेली को छू के देखने लगा की कहीं वो ठंडी तो नहीं पड़ रही...फिर वो अब भी गर्म थी| फिर भी मैं तेजी से उनकी हथेलियाँ रगड़ने लगा| अब आखरी उपचार था C.P.R. पर फिर दिम्माग में बिजली से कौंधी और मैं स्नान घर भाग और वहाँ से एक लोटे में पानी ले कर आया और फिर कुछ छींटें भौजी के मुख पर मारी| पर भौजी के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी| मैंने दुबारा छीटें मारी ...अब भी कुछ नहीं...तीसरी बार छीटें मारे तब जाके भौजी की पलकें हिलीं और मेरी जान में जान आई!
भौजी ने आहिस्ते से आँखें खोलीं …
मैं: (मेरी सांसें तेज-तेज थीं और धड़कनें बेकाबू थी) आप ठीक तो हो ना?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख में आँसू छलछला उठे|
मैं: प्लीज मेरी बात सुन लो ...बस एक बार...उसके बाद आपका जो भी फैसला हो ग मुझे मंजूर है!
भौजी बोलीं कुछ नहीं बस दुरी ओर मुंह फेर लिया....
और मैंने उनके सामने सारा सच खोल के रख दिया;
मैं: मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ...आपके लिए जान दे सकता हूँ| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे जाने के प्लान के बारे मैं कुछ नहीं पता था| कल जब सब ने हमें Dance करते हुए देह लिया और आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए तब बातों-बातों में पिताजी से पता चला की हमें Sunday को जान है| उन्होंने चन्दर भैया को लखनऊ जाते समय टिकट लाने के लिए पैसे दिए थे| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे इस बारे में पहले से कुछ नहीं पता था| कल मैंने आपको इसीलिए नहीं बताय क्योंकि मैं नहीं चाहता था की जिस दुःख से मैंने आपको एक दीं पहले बहार निकला था वापस आपको उसी दुःख में झोंक दूँ| कल आप कितना खुश थे...मेरा मन आपको कल के दीं दुःख के सागर में नहीं धकेलना चाहता था | इसीलिए माने कल के दीं आपसे ये बात छुपाई... मैं आज खुद आपको ये सब बताने वाल था| पर नाज़ां आपने किस्से ये सब सुन लिया? मैंने तो बड़की अम्मा तक को ये बात कहने से रोक दिया था जब आप चाय बना रहे थे| मैं सच कह रहा हूँ ...प्लीज मेरी बात का यकीन करो|
पर मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा ... उन्होंने अब तक मेरी और नहीं देखा था| मैंने हार मान ली...ज्योंकी अब मेरे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं भौजी को अपनी बात का यकीन दिल सकूँ| इधर मेरा मन मुझे अंदर से कचोट रहा था! तभी वहाँ बड़की अम्मा की आवाज आई;
बड़की अम्मा: मुन्ना सही कह रहा है बहु?
मैंने और भौजी ने पलट के देखा तो द्वार पे अम्मा खडीन थी और उन्होंने मेरी सारी बातें सुन ली थीं|
बड़की अम्मा: आज सुबह जब मैं चाय बना रही थी तो मैंने मुन्ना से कहा था की तुम्हें सब बता दे ...पर ये कहने लगा की चूँकि तुम पेट से हो और ऐसे में ये खबर तुम्हें और दुःख देगी| एक नहीं सुबह से दो बार मैंने इसे कहा पर नहीं, इसने तुम से कुछ नहीं कहा ... यहाँ तक की मैंने कहा की मैं ही बता देती हूँ पर इसने माना कर दिया कहने लगा की अगर भौजी का दिल टूटना ही है तो मेरे हाथ से ही टूटे तो अच्छा है!
भौजी ने जब ये सुना तो वो उठ के बैठ गईं और अम्मा के सामने मुझसे लिपट के रोने लगीं| मैंने उनके बालों में हाथ फिराया और उनहीं चुप कराने की कोशिश करने लगा पर भौजी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था|
भौजी: I'm sorry ! मैंने आपको गलत समझा!
मैं: Its alright ! मैं समझ सकता हूँ की आप पर क्या बीती होगी! अब आप चुप हो जाओ...
बड़की अम्मा: हाँ बहु...चुप हो जाओ!
भौजी चुप हो गईं पर मैं जानता था की ये उन्होंने सिर्फ अम्मा को दिखाने के लिए रोना बंद किया है|
भौजी: (सुबकते हुए) मैं ...खाना बनती हूँ|
मैं: नहीं.... आप खाना नहीं बनाओगे! अम्मा अभिओ-अभी ये बेहोश हो गईं थीं और मेरी जान निकल गई थी|
बड़की अम्मा: हाय राम! मुन्ना...तुम डॉक्टर को बुला दो|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ|
बड़की अम्मा: पर बहु...
भौजी: प्लीज अम्मा...अगर मुझे तबियत ठीक नहीं लगी तो मैं आपको खुद बता दूँगी| (मेरी ओर देखते हुए उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखा ओर बोलीं) मेरे लिए भी ये बच्चा उतना ही जर्रुरी है जितना आप सब के लिए!
बड़की अम्मा: (आश्वस्त होते हुए) ठीक है बहु .... मैं रसिका को कह देती हूँ| वो खाना बना लाएगी|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ....
मैं: मैंने कह दिया ना...आप खाना नहीं बनाओगे| (मैंने हक़ जताते हुए कहा)
बड़की अम्मा: हाँ बहु....आराम करो
भौजी: पर ये उसकी हाथ की रसोई छुएंगे भी नहीं!
मैं: नहीं मैं खा लूँगा
बड़की अम्मा: क्यों भला? क्या उसके हाथ का खाना तुम्हें पसंद नहीं?
मैं: वो अम्मा मैं आपको बाद में बता दूँगा.. . आप रसिका भाभी से कह दो वो खाना पका लें|
बड़की अम्मा: बेटा अगर उसके हाथ का खाना पसंद नहीं तो मैं बना देती हूँ?
मैं: नहीं अम्मा...ऐसी कोई बात नहीं...मैं बाद में आपको सब डिटेल ...मतलब विस्तार से में बता दूँगा|
बड़की अम्मा: ठीक है!
अब बरामदे में केवल मैं ओर भौजी ही थे| भौजी लेटी हुईं थीं और मैं उनकी बहल में बैठा हुआ था|
भौजी सिसकते हुए बोलीं;
भौजी: मैं आप पर इल्जाम पे इल्जाम लगाती रही पर आपने कुछ नहीं कहा?
मैं: आपने मौका ही नहीं दिया कुछ कहने का?
भौजी: I’m Terribly Sorry !
मैं: It’s okay! आज Friday है ..ता आज और कल दोनों दिन मैं आपके साथ रहूँगा...24 घंटे!
भौजी: सच?
मैं: बिलकुल सच? पर मेरी आपसे एक इल्तिजा है?
भौजी: हाँ बोलिए?
मैं: Sunday को आप एक बूँद आँसू नहीं गिराओगे?
भौजी ने हाँ में गर्दन हिला दी|
मैं: चलो अब मुस्कुराओ?
भौजी ने हलकी सी मुस्कान दी...जो मैं जानता था की नकली है पर कम से कम वो मेरी बात तो मान रहीं थीं| बाहर से वो पूरी कोशिश कर रहें थीं की सहज दिखें पर अंदर ही अंदर घुट रहीं थीं! जो की अच्छी बात नहीं थी! मुझे उन्हें उनकी घुटन से आजाद करना था...चाहे जो भी बन पड़े! दोपहर का खान बनने तक मैं भौजी के पास बैठ रहा और भौजी बहुत कम बोल यहीं थीं...जो बात मैंने नोट की वो थी की अब वो मुझे टक-टकी बांधे देख रहीं थीं...
मैं: क्या हुआ जान? ...कुछ बोलते क्यों नहीं...कुछ बात छेड़ो? बस मुझे देखे जा रहे हो?
भौजी: क्या बोलूं...अब तो अलफ़ाज़ ही कम पड़ने लगे हैं मेरी बदनसीबी सुनाने के लिए! बस सोचती हूँ की आपको इसी तरह देखती रहूँ और अपनी आँखों में बसा लूँ| नजाने फिर कब मौका मिले आपसे मिलने का?
मैं: ऐसा क्यों कहते हो? अभी पूरी जिंदगी पड़ी है... और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में? जब मन करेगा आजाया करूँगा?
भौजी: (अपनी वही नकली मुस्कराहट झलकते हुए) नहीं आ पाओगे....
मैं: आपको ऐसा क्यों लगता है?
इतने में वहाँ अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं|
सारी रात उल्लू की तरह जागता रहा...सोचता रहा की कैसे...आखिर कैसे उनसे ये कहूँगा! घडी देखि तो तीन बज रहे थे...और नींद थी की आने का नाम नहीं ले रही थी| धीरे-धीरे घडी की सुइयाँ चलती हुई ...टिक.टिक ..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक.. आखिर चार बजे और मैं उठ गया| बड़के दादा अब तक उठ जाते हैं और मुझे इतनी जल्दी उठा देख के मेरे पास आये, मैंने उनके पाँव हाथ लगाये;
बड़के दादा: जीते रहो मुन्ना...अभी तो चार बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों उठ गए? एक घंटा और सो लो!
मैं: नहीं दादा...नहा धो के फ्रेश हो जाता हूँ|
बड़के दादा: शाबाश बेटे... जाओ नहा धो लो!
बड़की अम्मा ने हमें बातें करते देखा तो वो भी मेरे पास आईं और मैंने उनके भी पाँव हाथ लागए;
बड़की अम्मा: खुश रहो .... पर मुन्ना इतनी जल्दी काहे उठ गए?
मैं: जी आज आँख जल्दी खुल गई|
हालाँकि मेरी शक्ल कुछ और कह रही थी| अब जो इंसान रात भर सो न सका हो उसके चेहरे पे कुछ तो निशान बन ही जाते हैं और ये बात बड़की अम्मा भलीं-भाँती समझ चुकीं थी पर चूँकि वहाँ बड़के दादा भी थे, इसलिए कुछ नहीं बोलीं| मैं उठा...नहा-धो के तैयार हो गया और तब तक पांच बज चुके थे| घर में सब उठ चुके थे, सिवाय नेहा के! भौजी ने जब मुझे तैयार देखा तो खुद को पूछने से रोक नहीं पाईं;
भौजी: आप इतनी जल्दी उठ गए.... ? रात भर सोये नहीं थे क्या?
मैं: नहीं यार...आँख थोड़ा जल्दी खुल गई|
भौजी: सुबह-सुबह जूठ मत बोलो...नेहा ने सोने नहीं दिया होगा| नींद में उसे होश नहीं रहता ....लात मारी होगी इस लिए आप जल्दी उठ गए|
मैं: ना यार...ऐसा कुछ नहीं हुआ| सच में नींद जल्दी खुल गई थी!
तभी वहाँ पिताजी और माँ भी आ गए और उन्हें आता देख भौजी ने फ़ट से घूँघट काढ लिया और दोनों के पाँव छुए|
पिताजी: अरे मानु की माँ...लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!
माँ: हाँ... वरना ये लाड-साहब तो छः बजे के पहले बिस्तर नहीं छोड़ते थे पर जब से गाँव आएं हैं जल्दी उठने लगे हैं और आज तो हद्द ही हो गई? कितने बजे उठे हो जनाब?
मेरे जवाब देने से पहले ही वहाँ बड़की अम्मा आ गईं;
बड़की अम्मा: सुबह चार बजे!
पिताजी: हैं? क्या बात है लाड-साहब? रात में नींद नहीं आई क्या?
मैं: जी वो आँख जल्दी खुल गई| (मुझे दर था की कहीं बड़की आम कुछ कह नादें, इसलिए मैंने बात घुमाना ठीक समझा) अम्मा...चाय बन गई?
बड़की अम्मा भी उम्र में बड़ी थीं और सब समझती भी थीं इसलिए उन्होंने जान के कुछ नहीं कहा और मुझे अपने साथ रसोई घर ले गईं और मुझे सामने बैठा के चाय बंनाने लगीं|
बड़की अम्मा: मुन्ना...सच-सच कहो....तुम रात भर सोये नहीं ना?
मैं: जी नहीं...
बड़की अम्मा: क्यों? (चाय में चीनी डालते हुए)
मैं: जी...रात भर सोच रहा था की उन्हें कैसे बताऊँगा की हम रविवार को जा रहे हैं? (मुझे छप्पर के नीचे कोई खड़ा हुआ दिखाई दिया, पर जब मैंने पास जाके देखा तो वहाँ कोई नहीं था|)
बड़की अम्मा: तो बेटा मैं बता देती हूँ|
मैं: जी मैं नहीं चाहता की उनका दिल टूटे! और खासकर ऐसे मौके पर जब वो माँ बनने वालीं हैं|
आगे बात हो पाती इसे पहले ही भौजी वहाँ आ गईं और मैंने अम्मा को इशारे से बात ख़त्म करने को कहा| मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने अम्मा के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया!
भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?
मैं: नेहा को उठाने|
भौजी: वो उठ गई है और तैयार हो रही है| आप बैठो...वैसे भी उसने रात भर सोने नहीं दिया आपको|
एक बार को तो मन हुआ की उन्हें अभी सब बता दूँ पर सुयभ-सुबह ऐसी खबर देना जिससे वो टूट जाएं ...मुझे ठीक नहीं लगा| हम दोनों तख़्त पे बैठ गए और जब चाय बनी तो भौजी ने सब को चाय दी और फिर अपनी और मेरी चाय लेके मेरे पास बैठ गईं| अम्मा भी अपनी चाय की प्याली ले के बड़के दादा के साथ बैठ के बातें करने लगीं और जाते-जाते मुझे इशारा कर गईं की मैं भौजी को सब अभी बता दूँ| पर मैंने ऐसा नहीं किया ...अब तो भौजी को भी लगने लगा था की मैं उनसे कुछ छुपा रहा हूँ|
भौजी: जानू...क्या बात है? आप मुझसे क्या छुपा रहे हो?
मैं: कुछ भी तो नहीं...मैं आपसे नाराज हूँ! (मैंने बात पूरी तरह से बदल दी)
भौजी: क्यों?
मैं: आजकी Good Morning Kiss नहीं दी आपने इसलिए!
भौजी: अभी दे देती हूँ!
मैं: सब के सामने?
भौजी: हाँ तो... ?
मैं: यहाँ नहीं... बाद में दे देना|
इतने में नेहा तैयार हो के आगई और मेरे गाल पे kiss किया और फिर उसके दूध पीने के बाद मैं उसे लेके स्कूल चल दिया| स्कूल छोड़ के आया तो देखा की भौजी नहा धो के तैयार हो गईं थीं और सब्जी काटने बैठी थीं, मुझे बड़की अम्मा भी खेत से आती हुई दिखाई दीं और उन्होंने दूर से ही इशारा करते हुए पूछा की क्या हुआ? मैंने गर्दन हिला के कुछ नहीं का जवाब दिया| मतलब मैंने अब तक भौजी को कुछ नहीं बताया था| मैं भौजी के सामने से गुजरा पर उनसे नजरें चुराता हुआ बड़े घर के आँगन में बैठ गया| मैं चारपाई पे सर झुका के बैठा था और मेरे ठीक सामने घर का द्वार था|
करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी पाँव पटकती हुईं आई और जब मैंने उनके मुख को देखा तो उनकी आँखों से आँसूं छलछला रहे थे और बात साफ़ हो गई की किसी ने उनसे सब कह दिया है|
भौजी: (मेरी आँखों में देखते हुए) क्यों.....आखिर क्यों इतनी बड़ी बात छुपाई मुझे से? क्यों? सब जानते हुए ....आपने मुझे कुछ नहीं बताया... क्यों? आपको सब पहले से ही पता था ना....? क्यों मुझे उस शोक से बहार निकला...पड़े रहने देते मुझे उसी दुक में की आपकी शादी हो रही है.... उस दुःख में थोड़ा और दुःख जुड़ जाता ना...बस...सह लेती पर ...पहले खुद आपने मुझे उस दुःख से निकला ये कह के की भविष्य के बारे में मत सोचो और ....फिर इस नए दुःख का पहाड़ मुझे पे गिरा दिया!!!
मेरा सर झुक गया.... पर भौजी के अंदर जो गुबार था वो कम नहीं हुआ और उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी और मुझे बोलने का कोई अवसर ही नहीं दिया|
भौजी: मुझे ...बिना बताये चले जाना चाहते थे? क्यों....क्यों नहीं बताया की आप मुझे छोड़ के जाना चाहते हो? मन भार गया क्या मुझसे? Answer ME!!! O समझी.....इसीलिए कल आपको इतना प्यार आ रहा था मुझ पे! है ना? क्योंकि मुझे छोड़ के जा रहे हो? मैं ही पागल थी......जो आपको अपना समझ बैठी!!! आप....आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते..... बस खेल रहे थे मेरे साथ...मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रहे थे! और मैं पागल ...आपको अपना जीवन साथ समझ बैठी! हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मुझे बस दग़ा ही मिला हर बार...पहले आपके भाई से....फिर आप से.... जाओ...नहीं रोकूंगी मैं आपको! और वैसे भी मेरे रोकने से आप कौन सा रूक जाओगे!
मैंने भौजी के आँसूं पोछने चाहे पर उन्होंने मुझे खुद को छूने तक नहीं दिया और पीछे हटते हुए कह दिया की;
भौजी: कोई जर्रूरत नहीं मुझे छूने की!
मैं: पर ...
भौजी बिना बात सुने पाँव पटक के जाने लगीं तो मैंने उन्हें रुकने के लिए पुकारा;
मैं: प्लीज मेरी बात तो सुन लो!
पर भौजी नहीं रुकीं! वो पाँव पटकते हुए तीन कदम आगे चलीं होंगी की उन्हें चक्कर आ गया और वो गिरने को हुईं..मैंने भाग के उन्हें अपनी बाँहों का सहारा देते हुए संभाला| भौजी बेहोश हो गईं थीं और उनकी ये हालत देख मेरी फ़ट गई! मैंने उन्हें अपनी गोद में उठाया और बरामदे में चारपाई पर लिटाया| मैं भौजी के गाल थप-थपाने लगा ...पर कोई असर नहीं...मैंने उनके सीने पे सर रखा की उनकी दिल की धड़कन सुनने लगा| दिल अब भी धड़क रहा था...मैंने फिर से उनके गाल को थप-तपाया पर वो कुछ नहीं बोलीं...मैं उन्हें पुकारता रहा पर कुछ असर नहीं हुआ| मैं उनके हथेली को छू के देखने लगा की कहीं वो ठंडी तो नहीं पड़ रही...फिर वो अब भी गर्म थी| फिर भी मैं तेजी से उनकी हथेलियाँ रगड़ने लगा| अब आखरी उपचार था C.P.R. पर फिर दिम्माग में बिजली से कौंधी और मैं स्नान घर भाग और वहाँ से एक लोटे में पानी ले कर आया और फिर कुछ छींटें भौजी के मुख पर मारी| पर भौजी के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी| मैंने दुबारा छीटें मारी ...अब भी कुछ नहीं...तीसरी बार छीटें मारे तब जाके भौजी की पलकें हिलीं और मेरी जान में जान आई!
भौजी ने आहिस्ते से आँखें खोलीं …
मैं: (मेरी सांसें तेज-तेज थीं और धड़कनें बेकाबू थी) आप ठीक तो हो ना?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख में आँसू छलछला उठे|
मैं: प्लीज मेरी बात सुन लो ...बस एक बार...उसके बाद आपका जो भी फैसला हो ग मुझे मंजूर है!
भौजी बोलीं कुछ नहीं बस दुरी ओर मुंह फेर लिया....
और मैंने उनके सामने सारा सच खोल के रख दिया;
मैं: मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ...आपके लिए जान दे सकता हूँ| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे जाने के प्लान के बारे मैं कुछ नहीं पता था| कल जब सब ने हमें Dance करते हुए देह लिया और आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए तब बातों-बातों में पिताजी से पता चला की हमें Sunday को जान है| उन्होंने चन्दर भैया को लखनऊ जाते समय टिकट लाने के लिए पैसे दिए थे| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे इस बारे में पहले से कुछ नहीं पता था| कल मैंने आपको इसीलिए नहीं बताय क्योंकि मैं नहीं चाहता था की जिस दुःख से मैंने आपको एक दीं पहले बहार निकला था वापस आपको उसी दुःख में झोंक दूँ| कल आप कितना खुश थे...मेरा मन आपको कल के दीं दुःख के सागर में नहीं धकेलना चाहता था | इसीलिए माने कल के दीं आपसे ये बात छुपाई... मैं आज खुद आपको ये सब बताने वाल था| पर नाज़ां आपने किस्से ये सब सुन लिया? मैंने तो बड़की अम्मा तक को ये बात कहने से रोक दिया था जब आप चाय बना रहे थे| मैं सच कह रहा हूँ ...प्लीज मेरी बात का यकीन करो|
पर मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा ... उन्होंने अब तक मेरी और नहीं देखा था| मैंने हार मान ली...ज्योंकी अब मेरे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं भौजी को अपनी बात का यकीन दिल सकूँ| इधर मेरा मन मुझे अंदर से कचोट रहा था! तभी वहाँ बड़की अम्मा की आवाज आई;
बड़की अम्मा: मुन्ना सही कह रहा है बहु?
मैंने और भौजी ने पलट के देखा तो द्वार पे अम्मा खडीन थी और उन्होंने मेरी सारी बातें सुन ली थीं|
बड़की अम्मा: आज सुबह जब मैं चाय बना रही थी तो मैंने मुन्ना से कहा था की तुम्हें सब बता दे ...पर ये कहने लगा की चूँकि तुम पेट से हो और ऐसे में ये खबर तुम्हें और दुःख देगी| एक नहीं सुबह से दो बार मैंने इसे कहा पर नहीं, इसने तुम से कुछ नहीं कहा ... यहाँ तक की मैंने कहा की मैं ही बता देती हूँ पर इसने माना कर दिया कहने लगा की अगर भौजी का दिल टूटना ही है तो मेरे हाथ से ही टूटे तो अच्छा है!
भौजी ने जब ये सुना तो वो उठ के बैठ गईं और अम्मा के सामने मुझसे लिपट के रोने लगीं| मैंने उनके बालों में हाथ फिराया और उनहीं चुप कराने की कोशिश करने लगा पर भौजी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था|
भौजी: I'm sorry ! मैंने आपको गलत समझा!
मैं: Its alright ! मैं समझ सकता हूँ की आप पर क्या बीती होगी! अब आप चुप हो जाओ...
बड़की अम्मा: हाँ बहु...चुप हो जाओ!
भौजी चुप हो गईं पर मैं जानता था की ये उन्होंने सिर्फ अम्मा को दिखाने के लिए रोना बंद किया है|
भौजी: (सुबकते हुए) मैं ...खाना बनती हूँ|
मैं: नहीं.... आप खाना नहीं बनाओगे! अम्मा अभिओ-अभी ये बेहोश हो गईं थीं और मेरी जान निकल गई थी|
बड़की अम्मा: हाय राम! मुन्ना...तुम डॉक्टर को बुला दो|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ|
बड़की अम्मा: पर बहु...
भौजी: प्लीज अम्मा...अगर मुझे तबियत ठीक नहीं लगी तो मैं आपको खुद बता दूँगी| (मेरी ओर देखते हुए उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखा ओर बोलीं) मेरे लिए भी ये बच्चा उतना ही जर्रुरी है जितना आप सब के लिए!
बड़की अम्मा: (आश्वस्त होते हुए) ठीक है बहु .... मैं रसिका को कह देती हूँ| वो खाना बना लाएगी|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ....
मैं: मैंने कह दिया ना...आप खाना नहीं बनाओगे| (मैंने हक़ जताते हुए कहा)
बड़की अम्मा: हाँ बहु....आराम करो
भौजी: पर ये उसकी हाथ की रसोई छुएंगे भी नहीं!
मैं: नहीं मैं खा लूँगा
बड़की अम्मा: क्यों भला? क्या उसके हाथ का खाना तुम्हें पसंद नहीं?
मैं: वो अम्मा मैं आपको बाद में बता दूँगा.. . आप रसिका भाभी से कह दो वो खाना पका लें|
बड़की अम्मा: बेटा अगर उसके हाथ का खाना पसंद नहीं तो मैं बना देती हूँ?
मैं: नहीं अम्मा...ऐसी कोई बात नहीं...मैं बाद में आपको सब डिटेल ...मतलब विस्तार से में बता दूँगा|
बड़की अम्मा: ठीक है!
अब बरामदे में केवल मैं ओर भौजी ही थे| भौजी लेटी हुईं थीं और मैं उनकी बहल में बैठा हुआ था|
भौजी सिसकते हुए बोलीं;
भौजी: मैं आप पर इल्जाम पे इल्जाम लगाती रही पर आपने कुछ नहीं कहा?
मैं: आपने मौका ही नहीं दिया कुछ कहने का?
भौजी: I’m Terribly Sorry !
मैं: It’s okay! आज Friday है ..ता आज और कल दोनों दिन मैं आपके साथ रहूँगा...24 घंटे!
भौजी: सच?
मैं: बिलकुल सच? पर मेरी आपसे एक इल्तिजा है?
भौजी: हाँ बोलिए?
मैं: Sunday को आप एक बूँद आँसू नहीं गिराओगे?
भौजी ने हाँ में गर्दन हिला दी|
मैं: चलो अब मुस्कुराओ?
भौजी ने हलकी सी मुस्कान दी...जो मैं जानता था की नकली है पर कम से कम वो मेरी बात तो मान रहीं थीं| बाहर से वो पूरी कोशिश कर रहें थीं की सहज दिखें पर अंदर ही अंदर घुट रहीं थीं! जो की अच्छी बात नहीं थी! मुझे उन्हें उनकी घुटन से आजाद करना था...चाहे जो भी बन पड़े! दोपहर का खान बनने तक मैं भौजी के पास बैठ रहा और भौजी बहुत कम बोल यहीं थीं...जो बात मैंने नोट की वो थी की अब वो मुझे टक-टकी बांधे देख रहीं थीं...
मैं: क्या हुआ जान? ...कुछ बोलते क्यों नहीं...कुछ बात छेड़ो? बस मुझे देखे जा रहे हो?
भौजी: क्या बोलूं...अब तो अलफ़ाज़ ही कम पड़ने लगे हैं मेरी बदनसीबी सुनाने के लिए! बस सोचती हूँ की आपको इसी तरह देखती रहूँ और अपनी आँखों में बसा लूँ| नजाने फिर कब मौका मिले आपसे मिलने का?
मैं: ऐसा क्यों कहते हो? अभी पूरी जिंदगी पड़ी है... और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में? जब मन करेगा आजाया करूँगा?
भौजी: (अपनी वही नकली मुस्कराहट झलकते हुए) नहीं आ पाओगे....
मैं: आपको ऐसा क्यों लगता है?
इतने में वहाँ अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं|