एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:08

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मैं: अरे अम्मा..मुझे बुला लिया होता मैं खाना ले आता...आपने क्यों तकलीफ की?

बड़की अम्मा: मुन्ना तकलीफ कैसी...वासी भी अभी जर्रुरी ये है की तुम बहु का ध्यान रखो| एक तुम ही तो हो जिसकी बात वो मानती है| अच्छा ये बताओ की आखिर ऐसी कौन सी बात है की तुम रसिका के हाथ का कुछ भी खाना पसंद नहीं करते?

मैं: जी वो....

मेरी झिझक जायज थी...भला मैं अमा से सेक्स सम्बन्धी बात कैसे कह सकता था!

बड़की अम्मा: बेटा...मुझ से कुछ भी छुपाने की जर्रूरत नहीं है| मैं सब जानती हूँ...ये भी की तुम्हारा अपनी भौजी के प्रति लगाव बहुत ज्यादा है... पर मुझे नहीं लगता की तुम इस लगाव का कोई गलत फायदा उठाते हो! जो की एक बहित बड़ी बात है... तुम्हारी भौजी भी तुम्हें बहुत प्यार करती है...इतना जितना मैंने उसकी आँखों में अपने पति के लिए भी नहीं देखा| और शादी के बाद वो क्या बात है जिसके कारन इसका मन अपने ही पति से उखड गया...शायद मैं उसका वो कारन भी जानती हूँ| आखिर है वो नालायक मेरा ही बेटा...शादी से पहले उसकी हरकतें क्या थीं ये मैं अच्छे से जानती हूँ... मैंने सोचा की शादी के बाअद वो सुधर जायेगा...पर नहीं! तुमने गौर किया होगा की वो बार-बार अपने मां के यहाँ जाता है.... उसके पीछे जो कारन है वो ये की उसका वहाँ किसी लड़की के साथ.... (अम्मा कह्ते-कह्ते रूक गईं) जानती हूँ ये सब कहना किसी भी माँ के लिए कितना शर्मनाक है पर तुम अब छोटे नहीं हो! तुम्हारे दिल में जितना तुम्हारी भौजी के लिए प्यार है...उसे ये समाज सही नहीं मानता| पर चूँकि ये बात दबी हुई है...और ये सब मेरे ही बेटी की करनी के कारन हुआ है....तो मैं किसी को भी हमारे खानदान पे कीचड़ नहीं उछलने दूँगी| तो अब ये सब जानने के बाद भी...क्या तुम मुझसे वो बात छुपाना चाहते हो?

मैं: अम्मा वो....जब भौजी अपने मायके शादी में शामिल होने गईं थीं तबसे रसिका भाभी मेरे पीछे पड़ीं थीं....वो चाहती थीं की मैं उनके साथ हमबिस्तर हो जाऊं....पर मैंने माना कर दिया...उसके बाद आये दिन वो मुझे अकेला पा के कभी मेरे वहाँ (लंड) पे हाथ लगातीं तो कभी मुझे चूमने की गन्दी कोशिश करती रहतीं| गुस्से में दो-तीन बात मैंने उन्हें थप्पड़ भी मारे पर वो नहीं मानी...इसलिए मैं अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के सोता था और मुझे उनसे इतनी नफरत हो गई की मैं उनके हाथ की बनी रसोई टक नहीं खाई...इसीलिए तो मैं बीमार पड़ गया था और भौजी ने डॉक्टर को बुलाया था|

बड़की अम्मा: (अपना माथा पीटते हुए) हाय दैय्या! ये छिनाल !!! पूरा घर बर्बाद कर के रहेगी| खेर चिंता मत करो बेटा...ये रसोई उसने नहीं मैंने पकाई है| आराम से खाओ और अपनी भौजी का ध्यान रखना|

अम्मा उठ के चलीं गईं और मैंने पहल करते हुए पहला कौर भौजी को खिलाया| भौजी ने फिर दूसरा कौर मुझे खिलाया...पर अभी बी कुछ था जो नहीं था! भौजी मुस्कुरा जर्रूर रहीं थीं पर वो ख़ुशी..कहीं न कहीं गायब थी| खेर हमने खाना खाया और कुछ देर आँगन में टहलने के बाद भौजी चारपाई पर लेट गईं| मैं उनके बालों में हाथ फेरने लगा;

मैं: क्या बात है जान? अब भी नाराज हो मुझसे?

भौजी: नहीं तो...आपसे नाराज हो के मैं कहाँ जाऊँगी?

मैं: तो फिर आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे? क्यों ये जूठी हंसी-हंस रहे हो? क्यों अंदर ही अंदर घुट रहे हो? निकाल दो बाहर जो भी चीज आप को खाय जा रही है? आप हल्का महसूस करोगे!

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस चुप-चाप मुझे देखती रहीं| मैं भी उनकी आँखों में आँखें डाले अपने सवाल का जवाब ढूंढने लगा| फिर उन्होंने मेरा हाथ थामा और बोलीं;

भौजी: आप रात भर इसीलिए नहीं सोये न की आप आज ये बात मुझे कैसे कहोगे?

मैं: हाँ

भौजी: तो वो चारपाई यहीं बिछा लो और मेरे पास लेट जाओ|

मैं उठ के चारपाई लेने जा ही रहा था कीमुझे याद आया की नेहा का स्कूल खत्म हुए आधा घंटा होने को आया था और हम दोनों में से किसी को भी याद नहीं आया की उसे स्कूल से लाना भी है|

मैं: आप लेटो मैं अभी आया...बस दो मिनट!

भौजी: पर आप जा कहा रहे हो?

मैं: बस अभी आया ...

और मैं इतना कहते हुए तेजी से बहार की ओर भागा| स्कूल करीब पांच मिनट की दूर पे था और मुझे नेहा अकेली कड़ी दिखाई दी| मैं तेजी से उसकी ओर भगा| मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला;

मैं: I'm Sorry !!! बेटा मैं भूल गया था की आपके स्कूल की छुट्टी हो गई है| प्लीज मुझे माफ़ कर दो!

नेहा: कोई बात नहीं पापा!

मैं: Awwww मेरा बच्चा....चलो अब मेरे साथ भागो...मैं पहले आपको चिप्स दिलाता हूँ ...

हम दोनों तेजी से भागे और पहले मैंने उसे चिप्स का पकेट दिलाया और दस मिनट में हम भौजी के पास पहुँच गए| भौजी परेशान हो के बैठी हुईं थीं| जैसे ही उन्होंने नेहा को देखा तो उन्हें याद आय की आज उसे स्कूल से लाने के बारे में हम दोनों भूल गए| भौजी ने अपनी दोनों बाहें खोल दी और उसे गले लगने का आमंत्रण दिया| नेहा मेरी गोद से उतरी और जाके उनके गले लग गई| भौजी के बेचैन मन को जैसे ठंडक पहुंची|

भौजी: Sorry बेटा आज मुझे याद ही नहीं रहा की तुझे स्कूल से लाना भी है| Sorry !!!

नेहा: (चिप्स खाते हुए) कोई बात नहीं मम्मी ....देखो पापा ने मुझे चिप्स का बड़ा पैकेट दिलाया| लो (ऐसा कहते हुए उसने एक टुकड़ा भौजी के मुंह में डाला)

भौजी: तो इसलिए आप इतनी तेज भागे थे?

मैं: हाँ...Sorry मैं नेहा को स्कूल से लाना भूल गया|

भौजी: गलती मेरी है...आपकी नहीं...मेरी वजह से आप....

आगे भौजी कुछ बोल पाती इससे पहले नेहा ने अपना सवाल दाग दिया;

नेहा: मम्मी...आप की तबियत खराब है? आप बीमार हो?

भौजी: हाँ बेटा...इसीलिए आपके पापा आपको लाना भूल गए|

नेहा: क्या हुआ मम्मी आपको?

भौजी: बेटा आपके पापा...

मैंने भौजी की बात काट दी क्योंकि मैं नहीं चाहता था की वो बच्ची भी रोने लगे वो भी अभी...जब उसने कुछ खाया-पीया नहीं|

मैं: बेटा पहले आप कुछ खा लो फिर बैठ के बात करते हैं|

भौजी ने भी मेरी बात में हामी भरी|

भौजी: आप आराम करो...मैं इसे खाना खिला देती हूँ|

मैं: नहीं...आप आराम करो| मैं हूँ ना?

भौजी: पर Monday से तो मुझे ही करना है ...तो अभी क्यों नहीं|

मैं: क्योंकि अभी मैं यहाँ मौजूद हूँ|

मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके कपडे बदल के उसे खाना खिलाया और वापस भौजी के पास ले आया| भौजी सो चुकीं थीं पर उनके चेहरे पर आँसूं की लकीर बन चुकी थी| माँ-पिताजी कुछ रिश्तेदारों से मिलने सुबह ही चले गए थे और अब उनके भी आने का समय हो गया था|

मैंने नेहा को साथ वाली चारपाई पे लिटा दिया और उसे पुचकारके सुला दिया| जब माँ और पिताजी आये तो उन्होंने मुझे भौजी और नेहा के पास बैठे देखा और इससे पहले की वो अपना सवालों से मेरे ऊपर बौछार करते बड़की अम्मा भागी-भागी वहाँ आईं और उन्हीने बिना कुछ कहे इशारे से अपने साथ ले गईं| कुछ देर बाद तीनों अंदर आये और माँ ने मुझे इशारे से अपने और पिताजी के पास बुलाया|

माँ: बेटा मैंने कहा था ना की तुझे अपनी भौजी और नेहा से दूरी बनानी होगी वरना जाते समय वो बहुत उदास होंगे...उनका दिल टूट जायेगा?

मैं: जी

माँ: फिर भी .... अब कैसे संभालेगा तू उन्हें? आज जो हुआ उसके बाद तो ...पता नहीं कैसे हम जायेंगे? या फिर यहीं बस्ने का इरादा है?

मैं: जी ... (मेरे पास शब्द नहीं थे उन्हें कहने के लिए)

बड़की अम्मा: देखो ...लड़का समझदार है...और बहु भी! रही बात नेहा की तो वो एक आध दिन में भूल जाएगी!

माँ: दीदी...आपने इसे बड़ी शय दी है|

पिताजी: देखो भाभी अगर उस दिन भी बहु का ये हाल हुआ तो? वो भी ऐसे समय पे जब बहु माँ बनने वाली है!

बड़की अम्मा: कुछ नहीं होगा..लड़का समझदार है...ये समझा लेगा| जा बेटा तू अंदर जा और सो ले थोड़ा...कल रात से जाग रहा है|

मैं बिना कुछ कहे अंदर आ गया पर सोया नहीं... नींद ही नहीं थी आँखों में| सर झुका के हाथ रखे हुए मैं Sunday के बारे में सोचने लगा| कल रात को मैं आसमान में देखते हुए अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था..और आज जमीन को देखते हुए फिर से अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था| वाह क्या बात है? जब आसमान ने तेरी परेशानी का हल नहीं दिया तो जमीन क्या हल देगी तेरी परेशानियों का? अभी मैं इस उधेड़-बुन में लगा था की भौजी उठ गईं;

भौजी: आप सोये नहीं? कब तक इस तरह खुद को कष्ट देते रहोगे?

मैं: जब तक आप एक Smile नहीं देते! (मैंने सोचा की शायद माहोल को थोड़ा हल्का करूँ)

भौजी: Smile ??? आप Sunday को "जा" रहे हो..... "वापस" आ नहीं रहे जो हँसूँ...मुस्कुराऊँ?

मेरा सर फिर से झुक गया...

भौजी: आपने मुझे नेहा को कुछ बताने क्यों नहीं दिया?

मैं: वो बेचारी स्कूल से थकी-हारी आई थी...खाली पेट...ऐसे में आप उसे ये खबर देते तो वो रोने लगती| जब वो उठेगी तो मैं उसे सब बता दूँगा|

भौजी: हम्म्म्म... आप सो जाओ ...थकान आपके चेहरे से झलक रही है|

मैं: नहीं... मैं Sunday को "जा" रहा हूँ..... "वापस" आ नहीं रहा जो चैन से सो जाऊँ|

मैंने फिर से उन्हें हँसाने के लिए उन्हीं की बात उन पे डाल दी...पर हाय रे मेरी किस्मत! भौजी वैसी की वैसी!

मैं: वैसे एक बात तो बताना ...आपको ये खबर दी किसने की मैं Sunday को जा रहा हूँ?

भौजी: रसिका ने....

मैं: और Exactly क्या कहा उसने? (आज मैं इतने गुस्से में था की आज रसिका भाभी के लिए मैंने "उसने" शब्द का प्रयोग किया|)

भौजी ने आगे जो मुझे बताया वो मैं आपके समक्ष डायलाग के रूप में रख रहा हूँ|

भौजी सब्जी काट रहीं थीं तभी वहाँ रसिका भाभी आ गईं और उनसे बोलीं;

रसिका भाभी: दीदी... आप बड़े खुश लग रहे हो? आपको मानु जी के जाने का जरा भी गम नहीं?

भौजी: क्या बकवास कर रही है तू! वो कहीं नहीं जा रहे!

रसिका भाभी: हाय...उन्होंने आपको कुछ नहीं बताया? सारा घर जानता है की काका-काकी रविवार को जा रहे हैं| आपको नहीं बताया उन्होंने?

भौजी: देख...मेरा दिमाग तेरी वजह से बहुत खराब है...मुझे मजबूर मत कर वरना इसी हंसिए से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी!

रसिका भाभी: कर देना...पर एक बार उनसे पूछ तो लो?

भौजी: हाँ...और मैं जानती हूँ की तू जूठ बोल रही है...और वापस आके तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी|

रसिका भाभी: अरे अब वो तुम से प्यार नहीं करते! वरना अपने जाने की बात तुम से क्यों छुपाते? यहाँ तक की अम्मा को भी माना कर दिया की आप भौजी से कुछ ना कहना! वो आपके बिना बातये जाना च्चहते थे..ये तो मैं मुर्ख निकली जिसने आपको अपना समझा और सब बता दिया और आप मुझे ही धमकी दे रहे हो! पछताओगे...बहुत पछताओगे!!!

भौजी की सारी बातें सुनने के बाद ...मेरे तन बदन में आग लग गई और अब ये आग रसिका भाभी को भस्म करने के बाद ही बुझती|

मैं: मैं अभी आया (मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा)

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: बस अभी आया..और आपको मेरी कसम है जो आप यहाँ से हिले भी तो!

भौजी: नहीं रुको...

मैं बिना कुछ कहे वहाँ से चला आया| पाँव पटकते हुए मैं छप्पर के नीचे जा पहुँचा और रसिका भाभी को देख के जो अंदर गुस्से की आग थी वो और भड़क उठी| माँ-पिताजी उस वक़्त हमारे खेत में जो आम का पेड़ था वहाँ बैठ हुए थे| मैं गरजते हुए बोला;

मैं: रसिका!!! पड़ गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा दी ना तूने आग? .... तूने...तूने ही आग लगाई है मेरी जिंदगी में! क्या खुजली मची थी तुझे जो तूने भौजी को मेरे जाने की बात बताई?

मेरी ऊँची आवाज सुन के सब से पहले बड़की अम्मा भागी आईं;

बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? क्यों आग बबूला हो रहे हो?

मैं: अम्मा...इसी औरत ने भौजी को मेरे जाने की बात बताई ...और आज उनकी जो हालत है वो इसी के कारन है? आज सुबह जब आप चाय बना रहे थे और मैं आपसे बात कर रहा था तब ये छप्पर के नीचे छुपी हमारी बातें सुन रही थी...और सब जानते हुए भी इसिने आग लगाईं?

रसिका भाभी: अम्मा...आप बताओ की भला मैं क्यों आग क्यों लगाऊँगी?

बड़की अम्मा: XXXX (अम्मा ने उन्हें गाली देते हुए कहा) मैं सब जानती हूँ की तूने हमारी गैर-हाजरी में क्या-क्या किया?

रसिका भाभी: और ये...ये भी कोई दूध के धुले नहीं हैं...ये भी तो अपनी भौजी के साथ....

आगे वो कुछ बोल पाती इससे पहले ही अम्मा ने उसके गाल पे एक तमाचा जड़ दिया और रसिका भाभी का रोना छूट गया|

बड़की अम्मा: चुप कर XXX (अम्मा ने फिर से उन्हें गाली दी) खुद को बचाने के लिए मुन्ना पे इल्जाम लगाती है! तू तो है ही XXXX शादी से पहले मुंह कला किया और अब भी.....छी..छी... निकल जा यहाँ से!

अब ये शोर-गुल सुन पिताजी और माँ भी आ गए और उन्होंने मेरे हाथ में डंडा देखा जो मैंने आते वक़्त उठा लिया था...ये सोच के की आज तो मैं रसिका की छिताई करूँगा| उन्हें लगा की मैंने भाभी पे हाथ उठाया है| पिताजी तेजी से मेरी तरफ आये और बिना कुछ सुने मेरे गाल पे एक तमाचा जड़ दिया| तमाचा इतनी तेज था की उनकी उँगलियाँ मेरे गाल पे छाप गेन और होंठ काटने से दो बूँद खून बह निकला|

आज पहली बार था की पिताजी ने मुझे थप्पड़ से नवाजा और मैं रोया नहीं...बल्कि मेरी आँखों में अब भी वही गुस्सा था|

पिताजी: यही संस्कार दिए हैं मैंने? अब तू अपने से बड़ों पे हाथ उठायगा?

मैं: ये इसी लायक है!

पिताजी ने एक और तमाचा रसीद किया;

पिताजी: इस बदतम्मीजे से बात करेगा अपने बड़ों से?

बड़की अम्मा: मुन्ना (पिताजी) ये क्या कर रहे हो? जवान लड़के पे हाथ उठा रहे हो? मानु बेटा तो जा ...मैं बात करती हूँ|

अब भी मेरे अंदर का गुस्सा शांत नहीं हुआ और अब भी वो डंडा मेरे हाथ में ही था| मन तो किया की रसिका को ये डंडा रसीद कर ही दूँ पर पिताजी के संस्कार हमारे बीच में आ गए| मैंने पिताजी को अपना गुस्सा जाहिर करते हुए डंडे को अपने पैर के घुटने से मोड़ के तोड़ दिया और ये देख के पिताजी और भी क्रोधित हो गए और मुझे मारने को लपके, तभी अम्मा और माँ ने मिल के उन्हें रोक लिया| मैं वापस बड़े घर आ गया, जब भौजी ने मेरे दोनों गाल लाल एखे और होठों पे खून तो वो व्याकुल हो गईं;

भौजी: क्यों?....

उन्होंने अपनी बाहें खोल के अपने पास बुलया, मैं जाके उनके गले से लग गया| चलो इसी बहाने कुछ तो बोलीं वो पर ये क्या मेरे होठों पे लगा खून देख उनकी आँखें छलक आईं|

मैं: Hey ! मुझे कुछ नहीं हुआ? I'm Fine ! देखो?

भौजी ने मेरे लाल गालों पे हाथ रखा और बोलीं;

भौजी: क्या हुआ? आपकी ये हालत कैसे हुई?

मैं: उसे सबक सिखाने गया था ...पिताजी आ गए और...

आगे मुझे बोलने की कोई जर्रूरत ही नहीं थी| भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से खून पोछा और बोलीं;

भौजी: अब तो मुझे अपनी कसम से मुक्त कर दो?

मैं: क्यों? कहाँ जाना है आपको?

भौजी: First Aid बॉक्स लेने|

मैं: कोई जर्रूरत नहीं.... आप मेरे पास बैठो..ये तो छोटा सा जख्म है...ठीक हो जायगा|

पर नजाने अब भी भौजी का मन उदास था...बाहर से उनके चेहरे पे मुझे दिखाने के लिए मुस्कराहट थी पर अंदर से....अंदर से वो दुखी थीं| हम दोनों चारपाई पे बैठे थे पर खामोश थे...तभी वहाँ अजय भैया आ गए| मुझे नहीं पता की उनहीं कुछ मालूम पड़ा या नहीं ...पर वो आये और भौजी का हाल-चाल पूछा और दस मिनट बाद जाने लगे| मैंने उनहीं रोक और बहार ले जा कर उनसे बोला;

मैं: भैया...आप तो जानते ही हो की उनका मन खराब है| मैं सोच रहा था अगर आप बाजार से कुछ खाने को ले आओ तो....शायद उनका मन कुछ बल जाए|

अजय भैया: हाँ-हाँ बोला...क्या लाऊँ?

मैं: मेरे और उनके लिए दही-भल्ले, नेहा के लिए टिक्की और बाकी सब से पूछ लो वो क्या खाएंगे| और पैसे पिताजी से ले लेना...

अजय भैया: ठीक है मानु भैया ...मैं अभी ले आता हूँ|

मैं वापस आके भौजी के पास बैठ गया; पर भौजी ने कुछ नहीं पूछा| आधे घंटे तक बरामदे में खामोशी छाई रही| पंद्रह मिनट और बीते और नेहा उठ गई, अभी वो आँखें मल रही थी की भौजी ने उसे पुकारा, और मैं उठ के उसकी चारपाई पे बैठ गया;

भौजी: नेहा ..बेटा इधर आओ|

नेहा उठ के उनके पास अपनी आँख मलते-मलते चली गई|

भौजी; बैठो बेटा.... मुझे आप को एक बात बतानी है|

मैं: नहीं...अभी नहीं....

भौजी: क्यों?

मैं: कहा ना अभी नहीं...अभी-अभी उठी है... कुछ खा लेने दो उसे|

भौजी: आप क्यों व्यर्थ में समय गँवा रहे हो.... !!!

मैं: नेहा...बेटा मेरे पास आओ!

भौजी उसे जाने नहीं दे रही थी...पर नेहा छटपटाने लगी और मेरे पास आ गई| इतने में अजय भैया चाट ले के आ गए| चाट देख के नेहा खुच हो गई, भैया ने एक प्लेट भौजी को दी;

अजय भैया: लो भाभी...चाट खाओ...देखो मूड एक दम फ्रेश हो जायेगा|

भौजी: नहीं भैया...मन नहीं है|

मैं: क्यों मन नहीं है? ठीक है...मैं भी नहीं खाऊँगा...

तभी अचानक से नेहा बोल पड़ी;

नेहा: मैं भी नहीं खाऊँगी!

जिस भोलेपन से उसने कहा था, उसको ऐसा कहते देख अजय भैया की हँसी छत गई पर हम दोनों अब भी एक दूसरे की आँखों इन देखते हुए सवाल-जवाब कर रहे थे| ऐसा लग रहा था मानो भौजी पूछना चाहती हों की आखिर मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ? जब मुझे जाना ही है...तो मैं उन्हें क्यों हँसाना चाहता हूँ, क्यों नहीं मैं उनहीं रोता हुआ छोड़ जाता? और मेरी आँखें जव्वाब ये दे रहीं थी की ...मैं वापस आऊँगा... उन्हें अकेला नहीं छोड़ अहा..ना उनकी जिंदगी से कहीं जा रहा हूँ| ये तो बस भूगोलिक फासला है...मन तो मेरा उनके पास ही रहेगा ना!


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:08

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इस सवाल-जवाब से बेखबर अजय भैया ने हमारी नजरों की बातें काटते हुए कहा;

अजय भैया: खा लो ना भाभी...वरना नेहा भी नहीं खायेगी और मानु भैया भी नहीं खाएंगे| कम से कम उनके लिए ही खा लो!

तब जाके भौजी ने उनके हाथ से प्लेट ली और पहला चम्मच खाया| फिर भैया ने दूसरी प्लेट मुझे दी और मैं उन्हें देखते हुए खाने लगा| अजय भैया चले गए... अब बस मैं, नेहा और भौजी ही बचे थे| जब खाना-पीना हो गया तब मैंने नेहा को गोद में लिया और निश्चय किया की अब मैं नेहा को सब बता दूँगा|

मैं: बेटा...अब ..मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ| आपक दुःख तो होगा...पर ....

मेरे पास शब्द नहीं थे...की आखिर कैसे मैं उस फूल जैसी नाजुक सी लड़की को समझाऊँ की मैं उसे छोड़ के जा रहा हूँ| इधर भौजी की नजरें अब मुझ पे टिकीं थीं और वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं ये कड़वी बात नेहा के सामने हर हालत में रखूँ|

मैं: बेटा... इस Sunday को ...मैं शहर वापस जा रहा हूँ!

नेहा: तो आप वापस कब आओगे? (उसने बड़े भोलेपन से सवाल पूछा)

मैं: बेटा... (मेरी बात भौजी ने बीच में काट दी)

भौजी: कभी नहीं|

इतना सुनते ही नेहा ने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया और रो पड़ी|

मैं: ये आप क्या कह रहे हो? किसने कहा मैं कभी नहीं आऊँगा? मैं जर्रूर आऊँगा? बेटा चुप हो जाओ...मैं आऊँगा...जर्रूर आऊँगा!

पर नेहा चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी| उसने अपनी बाँहों से मेरे गले के इर्द-गिर्द फंडा बन लिया ...जैसे मैं अभी उसे छोड़ के जा रहा हूँ|

मैं: बेटा बस...बस...चुप हो जाओ...मम्मी जूठ कह रहीं है...मैं आऊँगा...अपनी लाड़ली बेटी को ऐसे ही थोड़े छोड़ दूँगा| और मैं जब आऊँगा ना तो आपके लिए ढेर सारी फ्रॉक्स लाऊंगा... और चिप्स....और खिलोने...और ...और.... Barbie डॉल लाऊंगा| फिर हम मिलके खूब खेलेंगे..खूब घूमेंगे...

इतने लालच देने के बाद भी उसका रोना बंद नहीं हुआ...जैसे वो ये सब चाहती ही नहीं! उसे सिर्फ एक चीज चाहिए...सिर्फ मैं!

मैं: आप भी ना...क्या जर्रूरत थी ये बोलने की?

भौजी: और आपको क्या जर्रूरत है उसे जूठा दिलासा देने की? (भौजी ने शिकायत की)

मैं: मैंने कब कहा की मैं अब कभी नहीं आऊँगा.... चार महीने बाद दसहरे की छुटियाँ हैं...उन छुटियों में मैं आऊँगा...उसके बाद सर्दियों की छुटियाँ हैं... फिर अगले साल फरवरी पूरा छुट्टी है!

भौजी: और Exams का क्या? फरवरी की छुटियाँ आप हमारे साथ बिठाओगे या Exams की तैयारी करोगे? और यहाँ रह के तो हो गई आपकी तैयारी! रही बात दसहरे और सर्दी की छितियों की तो, दसहरे की छुटियाँ दस दिन की होती हैं...दो दिन आने-जाने में लग गए और बाकी के आठ दिन में क्या? सर्दी की छुटियों के ठीक बाद आपके Pre Boards हैं..उनके लिए नहीं पढोगे?

अब मेरे पास उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं था| मैं नेहा को थप-थपाते हुए उसे चुप कराने लगा|करीब आधे घंटे बाद नेहा चुप हुई...और सो गई| मैं उसे गोद में लिए हुए आँगन के चक्कर लगाता रहा|

तभी वहाँ माँ आ गईं और भौजी से उनका हाल-चाल पूछा|

माँ: बहु, क्या हाल है? और तू..तू वहाँ क्या चक्क्र लगा रहा है? अभी तो नेहा ने कुछ खाया भी नहीं..और तू उसे सुला रहा है?

भौजी: माँ...वो नेहा बहुत रो रही थी...और अभी रोते-रोते सो गई?

माँ: रो रही थी...मतलब?

मैं: मैंने सुई अपने जाने की बात बताई तो वो रो पड़ी!

माँ: तू ना.... दे इधर बेटी को| (माँ ने नही को अपनी गोद में ले लिया) क्या जर्रूरत थी तुझे इसे कुछ बताने की| अपने आप एक दो दिन बाद सब भूल जाती|

अब मैं माँ को कैसे बताता की ये वो रिश्ता नहीं जो एक-दो दिन में भुलाया जा सके! खेर रात हुई और अब भी भौजी बहुत उखड़ी हुईं थी और मुझे अब इसका इलाज करना था वरना.... कुछ गलत हो सकता था| जब अम्मा खाने के लिए बोलने आईं तो मैंने उन्हें अलग ले जा के बात की;

मैं: अम्मा ...मुझे एक बात करनी थी आपसे| आज दिनभर इन्होने मुझसे ठीक से बात नहीं की है...मेरा मन बहुत घबरा रहा है... जब से ये अचानक बेहोश हुईं हैं तब से मेरी जान निकल रही है.... इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ ...की आज रात मैं इनके घर में सो जाऊँ?

अम्मा: (कुछ सोचते हुए) ठीक है बेटा| मुझे तुम पे पूरा विश्वास है|

फिर मैं अम्मा के साथ भोजन लेने रसोई पहुँच गया...भोजन माँ और आम्मा ने मिल के बनाया था| मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो देखा की रसिका भाभी छप्पर के नीचे चारपाई पे पड़ी थी|
मैंने एक थाली में तीनों का भोजन लिया और वापस आ गया|

मैं: चलो खाना खा लो?

भौजी: पर मुझे भूख नहीं है ....

मैं: जानता हूँ...मुझे भी नहीं है... पर अगर दोनों नहीं खाएंगे तो नेहा भी नहीं खायेगी|

इतने में माँ नेहा को लेके आ गई;

माँ: ले संभाल अपनी लाड़ली को....जब से उठी है तब से तेरे पास आने को मचल रही है|

मैंने नेहा को गोद में लिया और उसके माथे को चूमा| माँ ने देखा की खाना चारपाई पे रखा है और हम दोनों में से कोई भी उसे हाथ नहीं लगा रहा|

माँ: बहु...ऐसी हालत में कभी भूखे नहीं रहना चाहिए...इसलिए खाना जर्रूर खा लेना वरना ये नालायक भी नहीं खायेगा|

भौजी: जी माँ !

इतना कह के माँ चलीं गईं| मैंने पहला कौर भौजी को खिलाया और दूसरा नेहा को...और इधर भौजी ने पहला कौर मुझे खिलाया और मेरी आँखों में देखते हुए उनकी आँखें फिर छलछला गई| मैंने बाएं हाथ सेउनके आँसूं पोछे और फिर हम तीनों ने खाना खत्म किया|

भौजी: अब तो अपनी कसम से आजाद कर दो|

मैं: ठीक है...कर दिया!

भौजी उठीं और हाथ मुँह धोया...फिर मैंने थाली रसोई के पास धोने को रखी और भौजी के घर में पहुँच गया| आँगन में मैंने दो चारपाई दूर-दूर बिछाई और एक पे भौजी लेट गई और दूसरी पे मैं और नेहा|

इतने में वहाँ चन्दर भैया आ गए;

चन्दर भैया: तो आज मानु भैया यहीं सोयेंगे?

मैं: क्यों ....पहली बार तो नहीं है| जब भौजी की तबियत खराब थी तब भी मैं यहीं सोया था और वैसे भी मैंने अम्मा से पूछ लिया है|

जवाब सीधा था और वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| भौजी हैरान हो के मेरी ओर देखने लगीं;

भौजी: आप बहार ही सो जाओ...सब बातें करेंगे?

मैं: करने दो... अम्मा को सब पता है|

अब नेहा ओर भौजी तो अपनी-अपनी नन्द दिन में ले चुके थे ...एक मैं था जो कल रात से उल्लू की तरह जाग रहा था| तो मुझे सबसे पहले नींद आना सेभविक था| नेहा को कहानी सुनाते -सुनाते मेरी आँख लग गई| रात के दो बजे मेरी आँख अचानक खुली ...मन बेचैन होने लगा| मैंने सबसे पहले नेहा को देखा...वो मुझसे चिपकी हुई सो रही थी| फिर मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो अपने बिस्तर पे नहीं थी| अब मेरी हवा गुल हो गई..की इतनी रात गए वो गईं कहाँ| Main दरवाजा तो मैंने खुला ही छोड़ा हुआ था ताकि कोई शक न करे!

मैंने पलट के अपने पीछे देखा तो भौजी खड़ीं थीं..ओर उनकी पीठ मेरी तरफ थी| मैं एकदम से उठ बैठा और मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रख के उन्हें अपनी तरफ घुमाया| आगे जो देखा उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए| उनके हाथ में चाक़ू था ओर वो अपनी कलाई की नस काटने जा रहीं थीं| मैंने तुरंत उनके हाथ से चाक़ू छें लिया और उसे घर के बहार हवा में फेंक दिया| भौजी का सर झुक गया और वो आके मेरे गले लग गईं ओर फूट-फूट के रोने लगीं;

मैं: ये आप क्या करने जा रहे थे? मेरे बारे में जरा भी ख़याल नहीं आया आपको? और मुझे तो छोडो...मुझसे तो आप वैसे भी सुबह से बात नहीं कर रहे....पर नेहा...उस बेचारी का क्या कसूर है? और ये नन्ही सी जान जो अभी इस दुनिया में आई भी नहीं है और आप उसे भी..... क्या हो गया है आपको? समझ सकता हूँ की आपके मन में कितना गुबार है ...कितना दर्द है...पर उसका ये हल तो नहीं!!

भौजी को रोता देख अब मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ और मेरे आँसूं बहते हुए उनकी पीठ पे जा गिरे|

भौजी: प्लीज...आप मत रोओ!

मैं: कैसा न रोओं... सुबह से खुद को रोक रहा था की मैं आपके सामने इस तरह ...पर आप....अपने तो अभी हद्द पार कर दी! अगर आपको कुछ हो जाता तो? क्या जवाब देता मैं सब को? और नेहा पूछती तो, क्या कहता उसे की कहाँ है उसकी मम्मी?

भौजी: (रोते हुए) मुझे माफ़ कर दो..... मैं होश में नहीं थी| कुछ सूझ नहीं रहा था....मैं आपके बिना नहीं जी सकती.... (और भौजी फिर से फूट-फूट के रोने लगीं|)

मैं: नहीं..नहीं...ऐसा मत बोलो! देखो...आपने कहा था न की आपको मेरी निशानी चाहिए? (मैंने उनकी कोख पे हाथ रखा) तो फिर? उसके लिए तो जीना होगा ना आपको?

हमारी आवाज सुन के नेहा भी उठ बैठी और हमें रोता हुआ देख मेरी टांगों से लिपट गई|

मैं दोनों को भौजी की चारपाई के पास ले आया और भौजी को लेटने को बोला| फिर मैं उनकी बगल में पाँव ऊपर कर के और पीठ दिवार से लगा के बैठ गया| इधर नेहा मेरी बायीं तरफ लेट गई और उसका सर मेरी छाती पे था| भौजी ने भी अपना सर मेरी छाती पे रख लिया पर उनका सुबकना और रोना बंद नहीं हुआ था| उनके आँसूं अब मेरी टी-शर्ट भीगा रहे थे|

नेहा: पापा...मम्मी को क्या हुआ? आप दोनों क्यों रो रहे हो?

भौजी: बेटा वो आपके पापा ....

मैं: (मैंने भौजी की बात काट दी) बेटा...हमने बुरा सपना देखा था...तो इसलिए... (बात को घुमाते हुए) अच्छा बेटा आप बताओ...पिछले कुछ दिनों से आपको बुरे सपने आते हैं? आप क्या देखते हो सपने में?

नेहा: मैं है न...सपना देखती हूँ ..की आप मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो? (अब मई नहीं जानता की ये बात सच थी भी की नहीं ...पर मन ने इस बात को बिना किसी विरोध के मान लिया था|)

मैं: बेटा...वो सिर्फ सपना था...और बुरे सपने कभी सच नहीं होते!

नेहा आगे कुछ नहीं बोली बस आपने बाएं हाथ को मेरी कमर के इर्द-गिर्द रख के सो गई|

मैं: अब आप बताओ.... क्यों मेरी जान लेने पे आमादा हो? जो भी है आपके मन में बोल दो...उसके बाद मैं बोलता हूँ!

भौजी: इन कुछ दिनों में मैंने...बहुत से सपने सजो लिए थे| कल्पनायें करने लगी थी....की आप और मैं ...हम हमेशा साथ रहेंगे| इसी तरह ... प्यार से.... और फिर वो नन्ही सी जान आएगी... जिसकी डिलिवरी के समय आप मेरे पास होगे...बल्कि मेरे साथ होगे... सबसे पहले आप उसे अपनी गोद में लोगे...उसका नाम भी आप ही रखोगे! उसे लाड-प्यार करोगे.... बस कल रात से मैंने इन्हीं ख़्वाबों में जी रही थी| परन्तु आज...आज मेरे सारे ख्वाब चकना-चूर हो गए! हम कभी भी एक साथ नहीं रह पाएंगे... आप मुझसे दूर चले जाओगे...बहुत दूर...इतना दूर की मुझे भूल ही जाओगे| फिर न मैं आपको याद रहूंगी और ना ही ये बच्चा! सब ख़त्म हो जायेगा! सब.....

मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा... जब आपकी डिलिवरी होगी...मैं आपके पास हूँगा|

भौजी: ऐसा कभी नहीं हो सकता?

मैं: क्यों?

भौजी: डॉक्टर ने फरवरी की date दी है? और तब आप Board के exams की तैयारी में लगे होगे!

मैं: (एक ठंडी आह भरते हुए) आपने सही कहा...पर आप जानते हो ना, की मैं कभी हार नहीं मानता| डिलीवरी के समय मैं आपके साथ हूँगा...चाहे कुछ भी हो!

भौजी: तो अब क्या आप भाग के यहाँ आओगे?

मैं: नहीं... आप मेरे साथ आओगे!

भौजी: नहीं...मैंने आपको पहले ही कहा था की मैं आपके साथ नहीं भाग सकती और अब तो बिलकुल भी नहीं!

मैं: किसने कहा हम भाग रहे हैं?

भौजी: मतलब?..मैं समझी नहीं|

मैं: मैं पिताजी और माँ से मिन्नत कर के आपको आपने साथ ले जाऊँगा| मैं उन्हें ये कहूँगा की इस बीहड़ में आपकी देख-रेख कोई नहीं कर सकता.... और दिल्ली से अच्छा शहर कौन सा है जहाँ हर तरह की Medical सेवा बस एक फ़ोन कॉल जितना दूर है| ऊपर से हमारे घर के पास ही हॉस्पिटल है...वो भी ज्यादा नहीं बीस मिनट की दूरी पर| तो मुझे पूरा भरोसा है की कोई मना नहीं करेगा| सब मान जायेंगे|

भौजी: नहीं.... आप ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे?

मैं: पर क्यों?

भौजी: अम्मा तो पहले से ही सब जानती हैं.... और उनकी नजर में ये बस लगाव है...पर असल में तो ये अलग ही बंधन है| आप क्यों चाहते हो की आपके आस-पास के लोग इस रिश्ते को गन्दी नज़रों से देखें!?

मैं: पर ऐसा कुछ नहीं होगा?

भौजी: होगा...आप आगे की नहीं सोच रहे! मैं नहीं चाहती की मेरे कारन आप पर या माँ-पिताजी पर कोई भी ऊँगली उठाये| और वैसे भी .... आपके board exams भी तो हैं...आपको अब उनपर focus करना चाहिए|

मैं" मैं सब संभाल लूँगा...पर

भौजी: (मेरी बात काटते हुए) पर-वर कुछ नहीं... आपको मेरी कसम है..आप किसी से भी मेरे आपके साथ जाने की बात नहीं करोगे! Promise me?

मैं: Promise पर फिर आप मेरे बिना कैसे रहोगे? और कौन है जो आपका ध्यान रखेगा?

भौजी: (अपनी कोख पर हाथ रखते हुए) ये है ना ... और फिर नेहा भी तो है|

मैं: ठीक है...मैं अब इस मुद्दे पर आपसे कोई बहस नहीं करूँगा पर आपको भी एक वादा करना होगा?

भौजी: बोलो?

मैं: जब तक डिलिवरी नहीं हो जाती आप यहाँ नहीं रहोगे? आप आपने मायके में ही रहोगे? एक तो आपका मायका Main रोड के पास है ऊपर से यहाँ दो-दो शैतान हैं जो इस बच्चे को शारीरिक नहीं तो मानसिक रूप से कष्ट अवश्य देंगे!

भौजी: कौन-कौन?

मैं: एक तो चन्दर भैया...जो आपको ताने मार-मार के मानसिक पीड़ा देंगे| और दूसरी वो चुडेल रसिका ...मुझे उस पे तो कोई भरोसा नहीं...वो आपके साथ कभी भी कुछ भी गलत कर सकती है!

भौजी: ठीक है...मैं भी इस मुद्दे पे आपसे बहंस नहीं करुँगी और वादा करती हूँ की डिलिवरी होने तक मैं आपने मायके ही रहूँगी| और हाँ एक और वादा करती हूँ... की कल का आखरी दिन मैं ऐसे जीऊँगी की आपकी सारी यादें उसी एक दिन में पिरो के आपने दिल में बसा लूँ|

मैं: I LOVE YOU !!

भौजी: I LOVE YOU TOO जानू!!!!

इन वादों के बाद, भौजी ने मुझे कस के गले लगाया और मुस्कुराईं| ये वही मुस्कराहट थी जिसे देखने को मैं मारा जा रहा था| मैंने उनके होंठों पे Kiss किया और फिर मैं दिवार का सहारा लिए हुए ही सो गए और भौजी और नेहा मेरे अगल-बगल सो गए| दोनों के हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द थे| जब सुबह आँख खुली तो अम्मा चुप-चाप आईं थीं और नेहा को उठा के ले जाने लगीं| मैंने जानबूझ के कुछ नहीं कहा और आँख बंद कर के सोता रहा|

सुबह छः बजे मुझे उठाया गया..वो भी भौजी द्वारा| उन्होंने मेरे मस्तक को चूमा और तब मेरी आँख खुली|

भौजी: Good Morning जानू!

मैं: हाय...कान तरस गए थे आपसे "जानू" सुनने को!

भौजी: अच्छा जी? चलो उठो...आज का दिन सिर्फ मेरे नाम है!

मैं: हमने तो जिंदगी आपके नाम कर दी!

मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेने को बाहें फैलाईं और भौजी का हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया|

मैं: Aren't you forgetting something?

भौजी: याद है...

फिर उन्होंने मेरे होठों को Kiss किया और उठ के जाने लगीं| जाते-जाते मुझसे पूछने लगीं;

भौजी: आपको खाना बनाना अच्छा लगता है ना?

मैं: हाँ...पर क्यों पूछा?

भौजी: ऐसे ही...जल्दी से उठो और बाहर आना मत|

मैं: पर क्यों?

भौजी: मैं अभी आई|

मैं उनके चेहरे पे मुस्कान देख के खुश था...और आज चाहे मुझसे वो कुछ भी करवा लें...भले ही गोबर के ओपले बनवा लें (जिससे मुझे घिन्न आती है) पर उनकी इस मुस्कान के लिए कुछ भी करूँगा! पर वैसे उन्होंने खाना बनाने के बारे में क्यों पूछा? मैं उठ के बैठा ही था की मुझे स्नानघर के पास मेरा टॉवल और टूथब्रश दिखा? मई सोचा उन्होंने ही रखा होगा तो मैं ब्रश करने लगा| ब्रश समाप्त ही हुआ था की भौजी आ गईं और उनके हाथ में पानी की बाल्टी थी| मैंने दौड़ के उनके हाथ से बाल्टी ले ली|


The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:09

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मैं: जान...ये क्या कर रहे हो आप? आपको भारी सामान नहीं उठाना चाहिए!

भौजी खिल-खिला के हँसने लगी... और मैं उनकी इस मुस्कान को एक टक देखता रहा? ऐसा लगा जैसे एक अरसे बाद उन्हें खिल-खिला के हँसते हुए देख रहा हूँ|

भौजी: क्या देख रहे हो?

मैं: आपकी मुस्कान.... जाने किस की नजर लग गई थी|

भौजी: जिसकी भी थी...अब वो रो अवश्य " रो रही" होगी की उसके भरसक प्रयास के बात भी हमारे बीच कोई दरार नहीं आई| खेर...अभी वो समय नहीं आया जब गर्भवती महिलाओं को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है|

मैं: पर अगर आप अभी से Precaution लो तो क्या हर्ज़ है?

भौजी: ठीक है बाबा! नहीं उठाऊंगी अब से! चलो अब आप नहा लो?

मैं: यहाँ...आपके सामने?

भौजी: क्यों जानू? डर लगता है? की अगर मेरा ईमान डोल गया तो.... (भौजी ने जानबूझ के मुझे छेड़ते हुए कहा)

मैं: नहीं.... मैं सोच रहा था की आप मेरे साथ ही नहाओगे!

भौजी: मैं नहा चुकी हूँ... आपके पास मौका था मुझे नहाते हुए देखने का ...पर आप सो रहे थे!

मैं: तो उठाया क्यों नहीं मुझे?

भौजी: ही..ही..ही.. आपका मौका तो गया ...पर मेरा मौका तो सामने खड़ा है!

मैं: ठीक है...

मैंने अपनी टी-शर्ट उतार उनकी ओर फेंकी! फिर अपना पजामा उतार फेंका! अब मैं सिर्फ कच्छे में था|

भौजी: ये भी तो उतारो! (उन्होंने मेरे कच्छे की ओर इशारा करते हुआ कहा|)

मैं: पर अगर कोई आ गया तो?

भौजी: इसीलिए तो मैं दरवाजे के सामने चारपाई डाल के बैठी हूँ?

मैं: ठीक है बाबा|

मैंने कच्छा भी उतार के दिवार पे रख दिया| अब मैं पूरा नंगा था और भौजी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी|

मैं: आप बड़े प्यार से देख रहे हो? ऐसा कुछ है जो आपने नहीं देखा?

भौजी: आपको बस अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ!

इसके आगे मैं कुछ नहीं बोला...बस नहाने लगा| नहाते समय मैं आगे-पीछे घूम के उन्हें अपने पूरे जिस्म के दर्शन करा रहा था| बिलकुल किसी Exhibitioneer की तरह! मेरा स्नान पूरा हुआ;

मैं: मेरा टॉवल देना?

भौजी: नहीं...ये लो (उन्होंने मेरी ओर कच्छा फेंक दिया) पहले इसे पहन लो!

मैं: पर ये गीला हो जायेगा ... पानी तो पोछने दो|

भौजी ने अपना टॉवल उठाया ओर मेरा टॉवल मुझे देते हुए बोलीं;

भौजी: ये लो अपना टॉवल नीचे लपेट लो! आपके जिस्म से पानी मैं पोछूँगी|

मैं: As you wish !

मैंने अपना टॉवल कमर पे लपेट लिया| भौजी अपना तौलिया लेके मेरे पास आईं और तौलिये से मेरे बदन पे पड़ी पानी की बूँदें पोछने लगीं| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पे पड़ी पानी की बूंदें पोंछीं .... पोछते समय उनकी नजरें मेरी नजरों में झाँक रहीं थीं| मैंने कुछ नहीं कहा...ना ही उन्होंने कुछ कहा बस एक प्यारी सी मुस्कान दी| उसके बाद मैं ने उनकी ओर अपनी पीठ कर दी और वो उसे भी पोछने लगीं| फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और दोनों हाथों को भी पोछ के सुखा दिया| भौजी पाँव पोंछने को झुकीं तो मैं दो कदम पीछे चला गया;

भौजी: अरे पाँव तो पोंछने दो?

मैं: आपको पता है ना मैं आपको कभी अपने पाँव छूने नहीं देता| लाओ ...मैं खुद पोंछ देता हूँ!

भौजी मुस्कुराईं और मुझे तौलिया दे दिया और मैंने अपने पाँव पोंछने के बाद उन्हें तौलिया वापस दे दिया| फिर मुझे एक शररत सूझी;

मैं: अरे...आप एक जगह पोंछनी तो भूल गए?

भौजी: कौन सी?

मैं: (अपना तौलिया उनके सामने खोलते हुए) ये !!!

भौजी: नहीं...वो नहीं... (भौजी शर्मा गईं)

मुझे उनकी ये हरकत थोड़ी अजीब लगी...क्योंकि ऐसा शर्माने जैसा तो हमारे बीच कुछ था नहीं| पर मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी, और वैसे भी मैं खुश था की कम से कम वो खुश हैं|

मैं: अच्छा ...एक बात बताओ? आप इस तौलिये का करोगे क्या?

भौजी: संभाल के रखूंगी!

मैं: क्यों?

भौजी: क्योंकि इसमें आपकी खुशबु बसी है! जब भी मन करेगा आपसे मिलने का...तो इस तौलिये को खुद से लपेट लुंगी ...और सोचूंगी की आप मुझे गले लगाय हो!

मैं: यार... (मैं उनको कहना चाहता था की मैं हमेशा के लिए नहीं जा रहा, मैं वापस आऊँगा...एक वादे के लिए...एक वादा तोड़ के....!!!)

खेर मैं नहीं चाहता था की वो फिर से भावुक हो जाएं, तो मैंने पुनः बात बदल गई;

मैं: अच्छा ये बताओ की आपने मुझसे कैसे पूछा की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?

भौजी: मैं ये तो जानती हूँ की शहर में आप माँ की मद्द्द् करते रहते हो..खाना बनाने में बस ये जानना था की आप को वाकई में पसंद है या सिर्फ फ़र्ज़ निभाते हो! और मैंने सब से कह दिया की आजका खाना आप और मैं मिलके बनाएंगे!

मैं: Wow! That’s Wonderful! I love expermintal cooking! तो आपने सोच रखा है की क्या बनाना है? या मैं बताऊँ?

भौजी: आप बताओ?

मैं: म्म्म्म... घर पे फूल गोभी है?

भौजी: हाँ है

मैं: दही है?

भौजी: हाँ है

मैं: ठीक है.... दाल आप बनाना बस तरीका मैं बताऊंगा और ये गोभी वाली सब्जी मैं बनाऊँगा|

भौजी: मतलब आज मुझे आपसे कुछ सीखने को मिलेगा!

मैं: अगर अच्छे शागिर्द की तरह सीखोगे तो ...वरना अगर बदमाशी की...तो.... (मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|)

मैं कपडे पहन के भर आ गया और नेहा को ढूंढने लगा;

भौजी: वो तो गई.... पिताजी (मेरे) उसे छोड़ ने गए हैं|

इतने में वहां बड़की अम्मा और माँ आ गए;

बड़की अम्मा: तो प्रधान रसोइया जी....क्या बनाने वाले हैं आप?

मैं: अम्मा...वो तो मैं आपको नहीं बताऊंगा..और हाँ...जब तक खाना बन नहीं जाता..तब तक आप लोग वहां नहीं आएंगे..कोई भी नहीं! जो चाहिए वो मांग लेना...

माँ: ठीक है...अब जल्दी जा...

मित्रों आगे जो मैं recipe लिखने जा रहा हूँ..ये मेरी खुद की है| मैंने इस सब्जी को बनाया भी है और चखा भी है...और मैं कह सकता हूँ की ये टेस्टी भी है| अब यदि आप लोगों को मैं पर्सनली जानता तो घर पे बुला के खिलता भी|

मैंने भौजी से उर्द दाल ,चना दाल ,लाल मसूर, मूँग दाल और अरहर दाल धो के लाने को कहा क्योंकि आज मैं उनसे पंचरंगी दाल बनवाने वाला था| और इधर मैं गोभी के फूल अलग कर के उन्हें धो लाया और उन्हें मखमली कपडे पे सूखने को छोड़ दिया| तब तक मैं और भौजी प्याज, टमाटर, अदरक, लस्सन और हरी मिर्च काटने लगे| अब शहर में तो मैं चौप्पिंग बोर्ड का इस्तेमाल करता था और वहां चौप्पिंग बोर्ड था नहीं...तो मुझे नौसिखिये की तरह काटना पड़ा| अब इधर भौजी टमाटर काट रहीं थीं और मेरी और देख के मुझे जीभ चिढ़ा रहीं थीं| मेरी नजर उनके चेहरे से झलक रही मासूमियत और प्यार से हट ही नहीं रही थी और इसी वजह से मेरी ऊँगली कट गई| जब भौजी ने देखा की मेरी ऊँगली कट गई है तो उन्होंने फ़ौरन मेरी ऊँगली अपने मुंह में ले के चूसने लॉगिन और मैं बस उन्हें देखे जा रहा था|

भौजी: ऐसे भी क्या खो गए थे की ये भी ध्यान नही रहा की ऊँगली कट गई है?

मैं: आपके चेहरे ...से नजर ही नहीं हट रही| तो नजरें हम क्या देखें?

भौजी: क्या बात है....बड़ा शायराना मूड है?

मैं: भई खाना बनाना एक art है...कला है... जैसा मूड होगा वैसा खाना बनेगा ....

भौजी अपनी साडी का पल्लू फाड़ के मेरी ऊँगली को पट्टी करने वाली थीं, की तभी मैंने उन्हें रोक दिया|

मैं: क्या..कर रहे हो? एक cut ही तो है...उसके लिए अपनी साडी फाड़ रहे हो| घर से एक Band-Aid ले आओ!

भौजी Band-Aid लेने गईं और तब तक मैं अकेला बैठा कुछ सोचने लगा| भौजी Band-Aid लेके आईं और मेरी ऊँगली पे लगा दी| अब मैंने उनसे दही माँगा...और उसमें कुछ मसाले डाले जैसे धनिया पाउडर, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, थड़ा सा गर्म मसाला और दाल चीनी पाउडर| अब मैं इन मसालों को दही में mix तो कर नहीं सकता था तो मैंने भौजी से कहा; "जान...प्लीज इन सब को Mix कर दो, उसके बाद इसमें गोबी के फूल डाल के Merinate होने को छोड़ देना|" भौजी ने ठीक वैसा ही किया पर वो थोड़ा हैरान थीं..क्योंकि इस तरह से खाना पकाने के स्टाइल में वो नहीं जानती थी| अब बात आई दाल की..तो मैंने उन्हें बस इतना कहा; "आप जैसे दाल बनाते हो उसी तरह पहले इन पाँचों दालों को उबाल लो...फिर प्याज-टमाटर का छौंका लगाने से पहले मुझे बताना|" भौजी ने सर हाँ मिलाया और मुस्कुरा के अपना काम करने लगीं|

मैं: अच्छा ...अब आप मुहे एक लकड़ी का साफ़ टुकड़ा दो|

भौजी: किस लिया?

मैं: आप एक अच्छे शागिर्द की तरह गुरु की बात मानो...और सवाल मत पूछो|

भौजी ने एक लकड़ी का टुकड़ा, अच्छे से धो के ला के दिया| मैंने उस टुकड़े को अपना चोपपिणः बोर्ड बनाया और गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा|

भौजी: जानू मुझे कह देते...मैं काट देती!

मैं: हाँ...पर उसमें फिर मेरा फ्लेवर नहीं आता|

भौजी: O

गोभी की सब्जी की तैयारी पूरी हो चुकी थी...अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो भौजी ने उसके लिए जर्रूरत का सारा सामान काट-पीट के तैयार कर लिया था| अब मैंने भौजी से कहा की आप बाहर आओ और मुझे चूल्हे के पास बैठने दो| भौजी बाहर आ गईं और मैं प्रधान रसोइये की जगह लेके बैठ गया| बारी थी गोभी की सब्जी तैयार करने की, तो सबसे पहले मैंने एक कढ़ाई चढ़ाई...उसमें तेल डाला... फिर साबुत जीरा दाल के उसे चटपट होने तक भुना...फिर प्याज के लच्छे डाले... हरी मिर्च फाड़ के डाली... और अदरक के पतले-पतले लम्बे टुकड़े डाले| जब इस मिश्रण का रंग बदला तब मैंने उसमें कटे हुए टमाटर डाले| नमक दाल के मिश्रण को पकने के लिए छोड़ दिया| एक मिनट बाद जब मिश्रण पाक गया तब मैंने उसमें गोभी जो Marinate होने को राखी थी उसे डाला| थोड़ा चलाने के बाद..उसमें गर्म मसाला... और जीरा पाउडर डाला| अब चूँकि वहाँ सिरका तो था नहीं तो मैंने उसमें थोड़ा सा चाट मसाला डाला और सब्जी पकने के बाद, ऊपर से धनिये से गार्निश किया और सब्जी को आग पर से उतार लिया| सब्जी की महक सूंघते हुए भौजी बोलीं;

भौजी: WOW जानू! इसकी खुशबु इतनी अच्छी है तो...Taste कितना अच्छा होगा?

मैं: यार..आप अभी कुछ मत कहो...जब तक सब इसकी बढ़ाई नहीं करते तब तक मैं कुछ नहीं मानूँगा!

भौजी: वैसे ...मेरे पास आपकी एक और निशानी है|

मैं: वो क्या?

भौजी: अभी दिखाती हूँ! (भौजी उठीं और अपने कमरे में कुछ लेने के लिए गईं|)

मैं: क्या है..दिखाओ भी?

भौजी ने वो चीज अपनी कमर के पीछे छुपा रखी थी| मेरे पूछने पे उन्होंने दिखाया, वो मेरी तस्वीर थी!

मैं: ये कब आई आपके पास?

भौजी: आपके घर से चुराई है!

मैं: हम्म्म.... बताओ ना किसने दी?

भौजी: माँ ने...अभी कुछ दिन पहले...वो कपडे समेत रहीं थीं..मेरे जिद्द करने पे उन्होंने दे दी!

मैं कुछ बोला नहीं बस होल से मुस्कुरा दिया!

अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो सबसे पहले कढ़ाई गर्म की, घी डाला... फिर जीरा...फिर हरी मिर्च काट के...फिर अदरक-लस्सन का पेस्ट ...फिर प्याज...इन सब के भुनने के बाद इसमें टमाटर मिलाये...फिर नमक...फिर मसाले मिलाये... धनिया पाउडर..लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर ...मिश्रण को एक दो मिनट चलाने के बाद, उबली हुई दाल मिला दी| कुछ देर पकने के बाद ...ऊपर से गर्म मसाला और थोड़ा सा जीरा पाउडर मिलाया| २-३ मिनट बाद दाल तैयार हो गई| अब बारी थी आँटा गुंडने की...अब ये काम ऐसा था जो मैं ना तो कभी करना चाहता था ...न मुझे अच्छा लगता था!

भौजी: लीजिये..गुंदिये आँटा?

मैं: क्या?

इतने माँ वहाँ आ गईं..व रसोई में नहीं आईं बस बहार से ही हमारी बात सुनते हुए बोलीं;

माँ: अरे बहु..इसे नहीं आता गूंदना| एक बार गुंडा था तो अपने सारे हाथ आते में सान लिए थे!

भौजी: कोई बात नहीं माँ...मैं सीखा दूँगी|

मैं: पर कैसे...ऊँगली कट गई है ना? (मैंने अपनी ऊँगली दिखाते हुए बहाना मार)

भौजी: हम्म्म..तो आप मुझे देखो और सीखो|

भौजी आँटा गूंदने लगीं ...पर एरा ध्यान तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रहा था| मन कर रहा था की बीएस घंटों इसी तरह बैठा उन्हें निहारता रहूँ! फिर मैंने ही बात शुरू की;

मैं: यार ये सही है... मेरी सब निशानियाँ आपके पास हैं| मेरी फोटो... मेरे बदन की महक...और तो और ये भी (मैंने उनकी कोख की ओर इशारा करते हुए कहा और भौजी मेरी बात समझ गईं और मुस्कुराने लगीं|) पर मेरे पास आपकी एक भी निशानी नहीं...ऐसा क्यों?

भौजी: अब मैं क्या करूँ...ना तो मेरे पास अपनी कोई तस्वीर है जो मैं आपको दे दूँ...और महक की बात तो आप भूल जाओ...आप सो रहे थे तो आपने अपना मौका गँवा दिया|

गर्मी के कारन भौजी आँटा गूंदते-गूंदते पसीने से तरबतर हो गईं| उनके मुख पे पसीना आने लगा और इससे पीला वो पोंछ पातीं मैंने अपनी जेब से रुमाल निकला और उनका पसीना पोंछा;

भौजी: Thank You

मैं: NO .....THANK YOU !

भौजी: पर आपने मुझे thank you क्यों कहा? पसीना तो आपने पोछा मेरा!

मैं: क्योंकि अब मैं इस रुमाल को संभाल के रखूँगा...कभी नहीं धोऊंगा....इसमें आपकी खुशबु है! (ऐसा कहते हुए मैंने रुमाल को सुंघा|)

भौजी मुस्कुराने लगीं और अब उनका आँटा गूंदने का काम भी हो चूका था| मैंने घडी में देखा तो अभी ग्यारह बजे थे...और नेहा की स्कूल की छुट्टी बराह बजे होती थी|

मैंने जानबूझ के जूठ बोला;

मैं: अरे .... नेहा के स्कूल की छुट्टी होने वाली है|

भौजी: तो आप ले आओ!

मैं: चलो दोनों साथ चलते हैं उसे लेने?

भौजी: ठीक है...मैं हाथ धो के आई|

फिर हम दोनों चल दिए नेहा को लेने| स्कूल पहुँच के मैंने उनसे कहा;

मैं: अभी एक घंटा बाकी है!

भौजी: क्या?.... मतलब आपने ....आप बहुत शरारती हो! अब एक घंटा हम क्या करें?

मैं: देखो...वहाँ एक बाग़ है...वहीँ चलके बैठते हैं| (वो बाग़ करीब पाँच मिनट की दूरी पे था)

हम बाग़ में पहुंचे...वहाँ बहुत से झुरमुट थे... घांस थी ...और बीचों बीच एक बरगद का पेड़ था| हम उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़े थे| बिना कुछ कहे ..हम बस एक दूसरे को देख रहे थे... मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ थामा और उन्हें धीरे से अपनी ओर खींचा| भौजी आ के मेरी छाती से लग गईं| मैंने आस-पास देखा..की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा... और सुनिश्चित करने पे उनके होठों के पास अपने होंठ लाया ओर उन्हें Kiss करने लगा| पर भौजी ने मेरे होठों पे अपनी ऊँगली रख दी ओर बोलीं;

भौजी: प्लीज बुरा मत मानना.... This is not how I want to remember this day!

मैं: okay ... no problem !!!

भौजी: आपको बुरा लगा हो तो Sorry !

मैंने ना में सर हिलाया ओर मुस्कुरा दिया| हालाँकि मैं बस उन्हें Kiss करना चाहता था| पर मैंने ना तो आजतक उनके साथ कभी जबरदस्ती की और ना ही करना चाहता था| और ना ही मैंने इस बात को दिल से लगाया! करीभ आधा घंटे तक हम वहीँ खड़े रहे| फिर मैंने भौजी से कहा;

मैं: चलो चलते हैं|

भौजी: पर अभी तो आधा घंटा बाकी है|

मैं: तो क्या हुआ...मैं हेडमास्टर साहब से रिक्वेस्ट कर लूँगा|

पर भौजी मैंने को तैयार नहीं थीं, उनका कहना था की मैं किसी से रिक्वेस्ट क्यों करूँ? पर उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता था| मैं उन्हें जबरदस्ती स्कूल तक ले आया और उनको साथ ले के हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गया| उनके कमरे में एक लड़का बैठा था...जो उम्र में भौजी के बराबर का था| भौजी ने हालाँकि घूँघट काढ़ा हुआ था पर उस लड़के को देखते ही उन्होंने मेरा हाथ जोर से दबा दिया| मैं समझ गया की कुछ तो बात है!

खेर हमें आता देख वो लड़का खुद ही बहार निकल गया;

हेडमास्टर साहब: अरे मानु ...आओ-आओ बैठो!

मैं: जी शुक्रिया हेडमास्टर शब..दरअसल में आपसे एक दरख्वास्त करने आया था| आशा करता हूँ आप बुरा नहीं मानेंगे|

हेडमास्टर साहब: हाँ..हाँ बोलिए!

मैं: सर दरअसल कल मैं दिल्ली वापस जा रहा हूँ| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती है...और मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ| मेरे पास समय बहुत कम है..तो मैं चाहता हूँ की जितना भी समय है मैं उसके साथ गुजारूं| मेरी आपसे गुजारिश है की क्या मैं उसे अभी ले जा सकता हूँ? जानता हूँ की बस आधा घंटा ही है पर...प्लीज!

हेडमास्टर साहब: देखिये..अगर आपकी जगह कोई और होता तो मं मन कर देता पर चूँकि मैं आपको पर्सनल लेवल पे जानता हूँ तो आप लेजाइये... वैसे अब कब आना होगा आपका?

मैं: जी ...जल्द ही!

हेडमास्टर साहब: oh that's good !

मैं: सर जी... ये लड़का जो अभी यहाँ .... (मेरी बात पूरी होने से पहले ही उन्होंने जवाब दे दिया)

हेडमास्टर साहब: जी ये मेरा बेटा है, शहर से आया था...समय नहीं मिला की आपके घर आके इसे मिलवा सकूँ....अभी तो ये दुबई जा रहा है|

मैं: oh ... चलिए कोई बात नहीं...मैं चलता हूँ और एक बार और आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|

चूँकि नेहा अभी छोटी क्लास में थी तो हेडमास्टर साहब ने जाने दिया...अगर बड़ी क्लास में होती तो मैं स्वयं ही कुछ नहीं कहता| पर जब हम बहार आये तो वो लड़का हमें चबूतरे के पास खड़ा सिगरट पीता हुआ नजर आया| मैंने भौजी से मेरे हाथ दबाने के बारे में पूछा;

मैं: क्या हुआ था? आप जानते हो उस लड़के को? (मैंने उसलड़के की ओर इशारा करते हुए उनसे पूछा)

भौजी: वो..मेरे साथ स्कूल में पढता था|

मैं: तो बात कर लो उससे....?

भौजी: पर ये पुरानी बात है... वैसे भी स्कूल में कभी उससे बात नहीं हुई| छोडो उसे...चलो नेहा को ले कर घर चलते हैं|

मैं: सच में उससे बात नहीं करनी?

भौजी: करनी तो है...पर ....आप साथ हो इसलिए!!!

अब ये सुन के मेरी बुरी तरह किलस गई!

मैं: तो आप बात करो उससे ...मैं नेहा को ले आता हूँ|

भौजी: वैसे ... He had a crush on me!!!

मैं: oh और आप...मतलब did you had a crush on him too?

भौजी: हम्म्म... That’s something I don’t wanna talk about!

साफ़ था की भौजी मेरी जलन समझ चुकीं थीं ....और मैं सोच रहा था की कल तो उन्होंने बताया था की वो मेरे अलावा किसी और से प्यार नहीं करतीं? अब तो वो आग में घी डाल-डाल के मुझे जला रहीं थीं|

मैंने उस समय तो कुछ नहीं कहा बस वो जलन बर्दाश्त कर के रह गया और नेहा की क्लास के द्वार पे खड़ा हो के अध्यापक महोदय से बात की और उन्होंने नेहा को भेज दिया| भौजी हाथ पसारे खड़ीं थीं की नेहा उनके गले लगेगी...पर वो तो आके मुझसे लिपट गई| अब दोनों माँ-बेटी एक दूसरे को जीभ चिढ़ाते रहे और मैं उस लड़के से जलन करने लगा|हम घर आ गए और रास्ते में मैंने भौजी से कोई बात नहीं की..और वो भी समझ चुकीं थी की मैं अंदर ही अंदर जल रहा हूँ| घर आके भौजी रोटी बनाने लगीं, अब चूँकि मुझे ये काम आता नहीं था तो मैं रसोई के पास ही बैठा था| जब भी मैंने रोटी बनाने की कोसिह की तो वो कभी रूस तो कभी अमरीका का नक्शा ही बानी है इसलिए मैं इस काम से दूर ही रहता हूँ!

भौजी: तो...आपने पूछा नहीं उस लड़के का नाम क्या है?

मैं: तो आप ही बता दो!

भौजी: रमेश

मैं: तो आपको उसका नाम भी याद है?

भौजी: अजी नाम क्या...हमें तो उसका जन्मदिन भी याद है!

मैं: वैसे आपको मेरा जन्मदिन याद है?

भौजी: अम्म्म ...Sorry भूल गई!

मैं: हाँ भई हमें कौन याद रखता है!

भौजी: जलन हो रही है?

मैं: मैं क्यों जलूँगा?

भौजी: अच्छा बाबा...चलो अब सबको बुला लो..खाना खाने के लिए|

मैं: जाता हूँ|

मैं जा के सब को बुला लाया और सब के सब आके छप्पर के नीचे बैठ गए| पिताजी, बड़के दादा, चन्दर भैया और अजय भैया| माँ और बड़की अम्मा बैठीं पँखा कर रही थीं और मैं सब को खाना परोस के दे रहा था|


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