मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-2
आज मनीष ने जल्दी घर आने का वादा किया था। कल मेरा जन्म दिन है ना। आज हम दोनों मेरे जन्मदिवस की पूर्व संध्या को कुछ विशेष रूप से मनाना चाहते थे इसीलिए किसी को हमने इस बारे में नहीं बताया था। मैंने आज अपने सारे शरीर से अनचाहे बाल साफ़ किये थे। (तुम तो जानती हो मैं अपने गुप्तांगों के बाल शेव नहीं करती ना कोई बालसफा क्रीम या लोशन आदि लगाती हूँ। मैं तो बस वैक्सिंग करती हूँ तभी तो मेरी मुनिया अभी भी किसी 14-15 साल की कमसिन किशोरी की तरह ही लगती है एकदम गोरी चिट्टी। फिर मैं उबटन लगा कर नहाई थी। अपने आपको किसी नवविवाहिता की तरह सजाया था। लाल रंग की साड़ी पहनी थी। जूड़े और हाथों में मोगरे के गज़रे, हाथों में मेहंदी और कलाइयों में लाल चूड़ियाँ, माथे पर एक बिंदी जैसे पूर्णिमा का चन्द्र आकाश में अपनी मीठी चांदनी बिखेर रहा हो। शयन कक्ष पूरी तरह सजाया था जैसे कि आज हमारी सुहागरात एक बार फिर से मनने वाली है। इत्र की भीनी भीनी सुगंध, गुलाब और चमेली के फूलों की पत्तियों से सजा हुआ पलंग।
सावन का महीना चल रहा है मैं उन पलों को आज एक बार फिर से जी लेना चाहती थी जो आज से 4-5 साल पहले चाहे अनजाने में या किन्ही कमजोर क्षणों में जिए थे। एक बार इस सावन की बारिश में फिर से नहाने की इच्छा बलवती हो उठी थी जैसी। सच पूछो तो मैं उन पलों को स्मरण करके आज भी कई बार रोमांचित हो जाती हूँ पर बाद में उन सुनहरी यादों में खो कर मेरी अविरल अश्रुधारा बह उठती है। काश वो पल एक बार फिर से आज की रात मेरे जीवन में दोबारा आ जाएँ और मैं एक बार फिर से मीनल के स्थान पर मैना बन जाऊं। मैं आज चाहती थी कि मनीष मुझे बाहों में भर कर आज सारी रात नहीं तो कम से कम 12:00 बजे तक प्रेम करता रहे और जब घड़ी की सुईयां जैसे ही 12:00 से आगे सरके वो मेरी मुनिया को चूम कर मुझे जन्मदिन की बधाई दे और फिर मैं भी अपनी सारी लाज शर्म छोड़ कर उनके “उसको” चूम कर बधाई दूं। और फिर सारी रात हम आपस में गुंथे किलोल करते रहें। रात्रि के अंतिम पहर में उनींदी आँखें लिए मैं उनके सीने से लगी रहूँ और वो मेरे सारे अंगों को धीमे धीमे सहलाता और चूमता रहे जब तक हम दोनों ही नींद के बाहुपाश में ना चले जाएँ।
सातों श्रृंगार के साथ सजधज कर मैं मनीष की प्रतीक्षा कर रही थी। लगता था आज बारिश जरुर होगी और इस सावन की यह रिमझिम फुहार मेरे पूरे तन मन को आज एक बार जैसे फिर से शीतल कर जायेगी। दूरदर्शन पर धीमे स्वरों में किसी पुरानी फिल्म का गाना आ रहा था :
झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा।
मनीष कोई 8 बजे आया। उनके साथ श्याम भी थे। श्याम को साथ देख कर मुझे बड़ा अटपटा सा लगा। अन्दर आते ही श्याम ने मुझे बधाई दी “भाभी आपको जन्मदिन की पूर्व संध्या पर बहुत बहुत बधाई हो ?”
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ ? श्याम को मेरे जन्मदिन का कैसे पता चला। ओह… यह सब मनीष की कारगुजारी है। मैंने उनका औपचारिकतावश धन्यवाद किया और बधाई स्वीकार कर ली। उन्होंने मेरे हाथों को चूम लिया जैसा कि उस दिन किया था पर आज पता नहीं क्यों उनका मेरे हाथों को चूमना तनिक भी बुरा नहीं लगा ?
आपको एक बधाई और देनी है !”
“क… क्या मतलब मेरा मतलब है कैसी बधाई ?”
“मनीष आज रात ही एक हफ्ते के लिए ट्रेनिंग पर जा रहा है मुंबई?”
“ट्रेनिंग … ? कैसी ट्रेनिंग ?”
“अरे मनीष ने नहीं बताया ?”
“न… नहीं तो ?”
“ओह मनीष भी अजीब नालायक है यार। ओह सॉरी। वास्तव में उसके प्रमोशन के लिए ये ट्रेनिंग बहुत जरुरी है।”
“ओह… नो ?”
“अरे तुम्हें तो खुश होना चाहिए ? तुम्हें तो मुझे धन्यवाद देना चाहिए कि मैंने ही उसका नाम प्रपोज़ किया है? क्या हमें मिठाई नहीं खिलाओगी मैनाजी ?”
उनके मुंह पर मैना संबोधन सुनकर मुझे बड़ा अटपटा सा लगा। मेरा यह नाम तो केवल प्रेम भैया या कभी कभी मनीष ही लेता है फिर इनको मेरा यह नाम …
मैंने आश्चर्य से श्याम की ओर देखा तो वो बोला,”भई मनीष मुझ से कुछ नहीं छिपाता। हम दोनों का बॉस और सहायक का रिश्ता नहीं है वो मेरा मित्र है यार” श्याम एक ही सांस में कह कर मुस्कुराने लगा। और मेरी ओर उसने हाथ बढ़ाया ही था कि अन्दर से मनीष की आवाज ने हम दोनों को चोंका दिया,”मीनू एक बार अन्दर आना प्लीज मेरी शर्ट नहीं मिल रही है।”
मैं दौड़ कर अन्दर गई। अन्दर जाते ही मैंने कहा “तुमने मुझे बताया ही नहीं कि तुम्हें आज ही ट्रेनिंग पर जाना है ?”
“ओह मेरी मैना तुम्हें तो खुश होना चाहिए। देखो यहाँ आना हमारे लिए कितना लकी है कि आते ही ट्रेनिंग पर जाना पड़ गया और फिर वापस आते ही प्रमोशन पक्का !” उसने मुझे बाहों में भर कर चूम लिया।
“पर क्या आज ही जाना जरुरी है ? तुम कल भी तो जा सकते हो ? देखो कल मेरा जन्मदिन है और …?” मैंने अपने आप को छुड़ाते हुए कहा।
“ओह मीनू डीयर… ऐसा अवसर बार बार नहीं आता तुम्हारा जन्मदिन फिर कभी मना लेंगे !” उसने मेरे गालों पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा।
“ओह … मनीष प्यार-व्यार बाद में कर लेना यार 10:00 बजे की फ्लाइट है अब जल्दी करो।”
पता नहीं यह श्याम कब से दरवाजे के पास खड़ा था। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं रोऊँ या हंसूं ?
अपना सूटकेस पैक करके बिना कुछ खाए पीये मनीष और श्याम दोनों जाने लगे। मैं दौड़ती हुई उनकी कार तक आई। कार के अन्दर सोनिया (श्याम की सेक्रेटरी) बैठी हुई अपने नाखूनों पर नेल पोलिश लगा कर सुखा रही थी। मुझे एक झटका सा लगा। इसका क्या काम है यहाँ ? इस से पहले कि मैं कुछ बोलूँ श्याम बोला,”भाभी आप भी एअरपोर्ट तक चलो ना ? क्या मनीष को सी ऑफ करने नहीं चलोगी ?”
यह बात तो मनीष को कहनी चाहिए थी पर वो तो इस यात्रा और ट्रेनिंग के चक्कर में इतना खोया था कि उसे किसी बात का ध्यान ही नहीं था। लेकिन श्याम की बात सुनकर वो भी बोला, “हाँ.. हाँ मीनू तुम भी चलो आते समय श्याम भाई तुम्हें घर छोड़ देंगे।”
मैं मनीष के साथ अगली सीट पर बैठ गई। रास्ते में मैंने बैक मिरर में देखा था किस तरह वो चुड़ैल सोनिया श्याम की पैंट पर हाथ फिरा रही थी। निर्लज्ज कहीं की।
वापस लौटते समय श्याम ने मुझे बताया,”देखो मनीष को तुम्हारी ज्यादा याद ना आये इसलिए मैंने सोनिया को भी उसके साथ ट्रेनिंग पर भेज दिया है। चलो मज़े करने दो दोनों को !” और वो जोर जोर से हंसने लगा। मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई। यह तो सरे आम नंगाई है। रास्ते में मैं कुछ नहीं बोली। मैं तो चाहती थी कि जल्दी से घर आ जाए और इनसे पीछा छूटे।
कोई पौने 11:00 बजे हम घर पहुंचे। श्याम ने कहा,”क्या हमें एक कप चाय या कॉफ़ी नहीं पिलाओगी मीनूजी ?”
“ओह … हाँ ! आइये !” ना चाहते हुए भी मुझे उसे अन्दर बुलाना पड़ा। मुझे क्रोध भी आ रहा था ! मान ना मान मैं तेरा महमान। अन्दर आकर वो सोफे पर पसर गया। मैंने रसोई में जाने का उपक्रम किया तो वो बोला “अरे भाभी इतनी जल्दी भी क्या है प्लीज बैठो ना ? आराम से बना लेना चाय ? आओ पहले कुछ बातें करते हैं?”
“ओह ?” मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा “कैसी बातें ?”
“अरे यार बैठो तो सही ?”
उसने मेरी बांह पकड़ कर बैठाने की कोशिश की तो मैं उनसे थोड़ा सा हटकर सोफे पर बैठ गई।
“मीनू उसने मुझे पहले नहीं बताया कि कल तुम्हारा जन्मदिन है नहीं तो उसकी ट्रेनिंग आगे पीछे कर देता यार !”
“कोई बात नहीं … पर यह कैसी ट्रेनिंग है ?”
श्याम हंसने लगा “अरे मनीष ने नहीं बताया ?”
मेरे लिए बड़ी उलझन का समय था। अब मैं ना तो हाँ कह सकती थी और ना ही ना। वो मेरी दुविधा अच्छी तरह जानता था। इसीलिए तो मुस्कुरा रहा था।
“अच्छा एक बात बताओ मीनू तुम दोनों में सब ठीक तो चल रहा है ना ?”
“क… क्या मतलब ?”
“मीनू तुम इतनी उदास क्यों रहती हो ? रात को सब ठीकठाक रहता है ना ?”
मुझे आश्चर्य भी हो रहा था और क्रोध भी आ रहा था किसी पराई स्त्री के साथ इस तरह की अन्तरंग बातें किसी को शोभा देती हैं भला ? पर पति का बॉस था उसे कैसे नाराज़ किया जा सकता था। मैं असमंजस में उसकी ओर देखती ही रह गई। मेरी तो जैसे रुलाई ही फूटने वाली थी। मेरी आँखों में उमड़ते आंसू उसकी नज़रों से भला कैसे छिपते। एक नंबर का लुच्चा है ये तो। देखो कैसे मेरा नाम ले रहा है और ललचाई आँखों से निहार रहा है।
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है … म… मेरा मतलब है सब ठीक है ?” किसी तरह मेरे मुँह से निकला।
“ओह मैं समझा … कल तो तुम्हारा जन्मदिन है ना ? और आज ही मनीष को मुंबई जाना पड़ गया। ओह … आइ ऍम सॉरी। पर भई उसके प्रमोशन के लिए जाना जरुरी था। पर तुम चिंता मत करो तुम्हारा जन्म दिन हम दोनों मिलकर मना लेंगे।”
मैं क्या बोलती। चुपचाप बैठी उसकी घूरती आँखें देखती रही।
कुछ पलों के बाद वो बोला,”देखो मीनू ! मनीष तुम्हारी क़द्र नहीं करता मैं जानता हूँ। तुम बहुत मासूम हो। यह ट्रेनिंग वगेरह तो एक बहाना है यार उसे दरअसल घूमने फिरने और मौज मस्ती करने भेजा है ? समझा करो यार ! घर की दाल खा खा कर आदमी बोर हो जाता है कभी कभी स्वाद बदलने के लिए बाहर का खाना खा लिया जाए तो क्या बुराई है ? तुम क्या कहती हो ?”
मैं उसके कहने का मतलब और नीयत अच्छी तरह जानती थी।
“नहीं यह सब अनैतिक और अमर्यादित है। मैं एक विवाहिता हूँ और उसी दकियानूसी समाज में रहती हूँ जिसकी परंपरा का निर्वाह तो करना ही पड़ता है। मनीष जो चाहे करे मेरे लिए यह कदापि संभव नहीं है। प्लीज आप चले जाएँ।” मैंने दृढ़ता पूर्वक कहा पर कहते कहते मेरी आँखें डबडबा उठी।
मैं जानती थी समाज की परंपरा भूल कर जब एक विवाहिता किसी पर पुरुष के साथ प्रेम की फुहार में जब भीगने लगती है तब कई समस्याएं और विरोध प्रश्न आ खड़े होते हैं।
मैं अपने आप पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयत्न कर रही थी पर मनीष की उपेक्षा और बेवफाई सुनकर आखिर मेरी आँखों से आंसू टपक ही पड़े। मुझे लगा अब मैं अपनी अतृप्त कामेक्षा को और सहन नहीं कर पाउंगी। मेरे मन की उथल पुथल वो अच्छी तरह जानता था। बाहर कहीं आल इंडिया रेडियो पर तामिले इरशाद में किसी पुरानी फिल्म का गाना बज रहा था :
मोऽ से छल कीये जाए… हाय रे हाय…
देखो …… सैंयाँ….. बे-ईमान ……
उसने मेरे एक हाथ पकड़ लिया और मेरी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोला,”देखो मीनू दरअसल तुम बहुत मासूम और परम्परागत लड़की हो। तुम जिस कौमार्य, एक पतिव्रता, नैतिकता, सतीत्व, अस्मिता और मर्यादा की दुहाई दे रही हो वो सब पुरानी और दकियानूसी सोच है। मैं तो कहता हूँ कि निरी बकवास है। सोचो यदि किसी पुरुष को कोई युवा और सुन्दर स्त्री भोगने के लिए मिल जाए तो क्या वो उसे छोड़ देगा ? पुरुषों के कौमार्य और उनकी नैतिकता की तो कोई बात नहीं करता फिर भला स्त्री जाति के लिए ही यह सब वर्जनाएं, छद्म नैतिकता और मर्यादाएं क्यों हैं ? वास्तव में यह सब दोगलापन, ढकोसला और पाखण्ड ही है। पता नहीं किस काल खंड में और किस प्रयोजन से यह सब बनाया गया था। आज इन सब बातों का क्या अर्थ और प्रसांगिकता रह गई है सोचने वाली बात है ? जब सब कुछ बदल रहा है तो फिर हम इन सब लकीरों को कब तक पीटते रहेंगे।”
उसने कहना चालू रखा “शायद तुम मुझे लम्पट, कामांध और यौन विकृत व्यक्ति समझ रही होगी जो किसी भी तरह तुम्हारे जैसी अकेली और बेबस स्त्री की विवशता का अनुचित लाभ उठा कर उसका यौन शोषण कर लेने पर आमादा है ? पर ऐसा नहीं है। देखो मीनू मेरे जैसे उच्च पदासीन और साधन संपन्न व्यक्ति के लिए सुन्दर लड़कियों की क्या कमी है ? तुम इस कोर्पोरेट कल्चर (संस्कृति) को नहीं जानती। आजकल तो 5-6 मित्रों का एक समूह बन जाता है और रात को सभी एक जगह इकट्ठा होकर अपने अपने साथी बदल लेते हैं। मेरे भी ऑफिस की लगभग सारी लड़कियां और साथ काम करने वालों की पत्नियां मेरे एक इशारे पर अपना सब कुछ लुटाने को तैयार बैठी हैं। मेरे लिए किसी भी सुन्दर लड़की को भोग लेना कौन सी बड़ी बात है?”
“दरअसल मुझे मनोरमा के साथ मजबूरन शादी करनी पड़ी थी और मैंने अपनी प्रेमिका को खो दिया था। जिन्दगी में हरेक को सब कुछ नसीब नहीं होता। मैं आज भी उसी प्रेम को पाने के लिए तड़फ रहा हूँ। जब से तुम्हें देखा है मुझे अपना वो 16 वर्ष पुराना प्रेम याद आ जाता है क्योंकि तुम्हारी शक्ल हूँ बहू उस से मिलती है।”
मैं तो जैसे मुंह बाए उन्हें देखती ही रह गई। उन्होंने अपनी बात चालू रखी
“देखो मीनू मैं तुम्हें अपने शब्द जाल में फंसा कर भ्रमित नहीं कर रहा हूँ। दर असल प्रेम और वासना में बहुत झीना पर्दा होता है। एक बात तो तुम भी समझती हो कि हर प्रेम या प्यार का अंत तो बस शारीरिक मिलन ही होता है। तुम जिसे वासना कह रही हो यह तो प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति है जहां शब्द मौन हो जाते हैं और प्रेम की परिभाषा समाप्त हो जाती है। दो प्रेम करने वाले एक दूसरे में समां जाते हैं तब दो शरीर एक हो जाते हैं और उनका अपना कोई पृथक अस्तित्व नहीं रह जाता। एक दूसरे को अपना सब कुछ सौंप कर एकाकार हो जाते हैं। इस नैसर्गिक क्रिया में भला गन्दा और पाप क्या है ? कुछ भ्रमित लोग इसे अनैतिक और अश्लील कहते हैं पर यह तो उन लोगों की गन्दी सोच है।”
“ओह श्याम बाबू मुझे कमजोर मत बनाओ प्लीज … मैं यह सब कदापि नहीं सोच सकती आप मुझे अकेला छोड़ दें और चले जाएँ यहाँ से।”
“मीनू मैं तुम्हें विवश नहीं करता पर एक बार मेरे प्रेम को समझो। ये मेरी और तुम्हारी दोनों की शारीरिक आवश्कता है। मैं जानता हूँ तुम भी मेरी तरह यौन कुंठित और अतृप्त हो। क्यों अपने इस रूप और यौवन को बर्बाद कर रही हो। क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई तुम्हें प्रेम करे और तुम्हारी चाहना को समझे ? मुझे एक बात समझ नहीं आती जब हम अच्छे से अच्छा भोजन कर सकते हैं, मन पसंद कपड़े, वाहन, शिक्षा, मनोरंजन का चुनाव कर सकते हैं तो फिर सेक्स के लिए ही ऐसा प्रतिबन्ध क्यों ? हम इसके लिए भी अपनी पसंद का साथी क्यों नहीं चुन सकते ? दरअसल इस परमानंद की प्राकृतिक चीज को कुछ तथाकथित धर्म और समाज के ठेकेदारों ने विकृत बना दिया है वरना इस नैसर्गिक सुख देने वाली क्रिया में कहाँ कुछ गन्दा या अश्लील है जिसके लिए नैतिकता की दुहाई दी जाती है ?”
“वो… वो … ?”
बाहर जोर से बिजली कड़की। मुझे लगा कि जैसे मेरे अन्दर भी एक बिजली कड़क रही है। श्याम की कुछ बातें तो सच ही हैं यह सब वर्जनाएं स्त्री जाति के लिए ही क्यों हैं ? जब मनीष विवाहित होकर खुलेआम यह सब किसी पराई स्त्री के साथ कर सकता है तो … तो मैं क्यों नहीं ??
“क्या सोच रही हो मीनू ? देखो अपने भाग्य को कोसने या दोष देने का कोई अर्थ नहीं है। मैं जानता हूँ मनीष को समझ ही नहीं है स्त्री जाति के मन की। ऐसे लोगों को प्रेम का ककहरा भी नहीं आता इन्हें तो प्रेम की पाठशाला में भेजना जरुरी होता है ? रही तुम्हारी बात तुम्हें कहाँ पता है कि वास्तव में प्रेम क्या होता है ?”
मैंने अपनी आँखें पहली बार उनकी और उठाई। यह तन और मन की लड़ाई थी। मुझे लगने लगा था कि इस तन की ज्वाला के आगे मेरी सोच हार जायेगी। मेरी अवस्था वो भली भाँति जानता था। उसने मेरे कपोलों पर आये आंसू पोंछते हुए कहना चालू रखा,”मीनू जब से मैंने तुम्हें देखा है और मनीष ने अपने और तुम्हारे बारे में बताया है पता नहीं मेरे मन में एक विचित्र सी हलचल होती रहती है। मैं आज स्वीकार करता हूँ कि मेरे सम्बन्ध भी अपनी पत्नी के साथ इतने मधुर नहीं हैं। मैं शारीरिक संबंधों की बात कदापि नहीं कर रहा। मैं जो प्रेम चाहता हूँ वो मुझे नहीं मिलता। मीनू हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं। हम दोनों मिलकर प्रेम के इस दरिया को पार कर सकते हैं। अब यह सब तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि तुम यूँ ही कुढ़ना चाहती हो या इस अनमोल जीवन का आनंद उठाना चाहती हो ? मीनू इसमें कुछ भी अनैतिक या बुरा नहीं है। यह तो शरीर की एक बुनियादी जरुरत है अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें प्रेम आनंद की उन ऊंचाइयों पर ले जा सकता हूँ जिस से तुम अब तक अनजान हो। मैं तुम्हें उस चरमोत्कर्ष और परमानंद का अनुभव करा सकता हूँ जिससे आज तक तुम वंचित रही हो !”
मैं तो विचित्र दुविधा में उलझ कर रह गई थी। एक ओर मेरे संस्कार और दूसरी ओर मेरे शरीर और मन की आवश्यकताएं ? हे भगवान्… अब मैं किधर जाऊं? क्या करूँ ? सावन की जिस रात में मैंने किन्हीं कमजोर क्षणों में अपना कौमार्य खो दिया था उन पलों को याद कर के आज भी मैं कितना रोमांच से भर जाती हूँ। शायद वैसे पल तो इन दो सालों में मेरे जीवन में कभी लौट कर आये ही नहीं। श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?
प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।
और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……
लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-3
श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?
प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।
और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……
मैंने अपने आंसू पोंछ लिए और श्याम से पूछा, “ठीक है ! आप क्या चाहते हैं ?”
“वही जो एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से चाहता है, वही जो एक भंवरा किसी फूल से चाहता है, वही नैसर्गिक आनंद जो एक नर किसी मादा से चाहता है ! सदियों से चले आ रही इस नैसर्गिक क्रिया के अलावा एक पुरुष किसी कमनीय स्त्री से और क्या चाह सकता है ?”
“ठीक है मैं तैयार हूँ ? पर मेरी दो शर्तें होंगी ?”
“मुझे तुम्हारी सभी शर्तें मंजूर हैं … बोलो … ?”
“हमारे बीच जो भी होगा मेरी इच्छा से होगा किसी क्रिया के लिए मुझे बाध्य नहीं करोगे और ना ही इन कामांगों का गन्दा नाम लेकर बोलोगे ? दूसरी बात हमारे बीच जो भी होगा वो बस आज रात के लिए होगा और आज की रात के बाद आप मुझे भूल जायेंगे और किसी दूसरे को इसकी भनक भी नहीं होने देंगे !”
“ओह मेरी मैना रानी तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूं !”
इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद उसके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। उसे भला मेरी इन शर्तों में क्या आपत्ति हो सकती थी। और फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लेना चाहा।
मैंने उसे वहीं रोक दिया।
“नहीं इतनी जल्दी नहीं ! मैंने बताया था ना कि जो भी होगा मेरी इच्छानुसार होगा !”
“ओह … मीनू अब तुम क्या चाहती हो ?”
“तुम ठहरो मैं अभी आती हूँ !” और मैं अपने शयनकक्ष की ओर चली आई।
मैंने अपनी आलमारी से वही हलके पिस्ता रंग का टॉप और कॉटन का पतला सा पजामा निकला जिसे मैंने पिछले 4 सालों से बड़े जतन से संभाल कर रखा था। मैंने वह सफ़ेद शर्ट और लुंगी भी संभाल कर रखी थी जिसे मैंने उस बारिश में नहाने के बाद पहनी थी। यह वही कपड़े थे जो मेरे पहले प्रेम की निशानी थे। जिसे पहन कर मैं उस सावन की बरसात में अपने उस प्रेमी के साथ नहाई थी। बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी। मैं एक बार उन पलों को उसी अंदाज़ में फिर से जी लेना चाहती थी।
बाहर श्याम बड़ी आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,”आओ मेरे साथ !”
“क… कहाँ जा रही हो ?”
“ओह मैंने कहा था ना कि तुम वही करोगे जो मैं कहूँगी या चाहूंगी ?”
“ओह… पर बताओ तो सही कि तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो ?”
“पहले हम छत के ऊपर चल कर इस रिमझिम बारिश में नहायेंगें !” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा। उसकी आँखों में भी अब लाल डोरे तैरने लगे थे। अब उसके समझ में आया कि मैं पहले क्या चाहती हूँ।
हम दोनों छत पर आ गए। बारिश की नर्म फुहार ने हम दोनों का जी खोल कर स्वागत किया। मैंने श्याम को अपनी बाहों में भर लिया। मेरे अधर कांपने लगे थे। श्याम का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। उसने अपने लरजते हाथों से मुझे अपने बाहुपाश में बाँध लिया जैसे। उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रस चूसने लगे। मैं तो उस से इस तरह लिपटी थी जैसे की बरसों की प्यासी हूँ। वो कभी मेरी पीठ सहलाता कभी भारी भारी पुष्ट नितम्बों को सहलाता कभी भींच देता। मेरे मुँह से मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। मेरे उरोज उसके चौड़े सीने से लगे पिस रहे थे। मैंने उसकी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना सिर उसके सीने से लगा कर आँखें बंद कर ली। एक अनोखे आनंद और रोमांच से मेरा अंग अंग कांप रहा था। उसके धड़कते दिल की आवाज मैं अच्छी तरह सुन रही थी। मुझे तो लग रहा था कि समय चार साल पीछे चला है और जैसे मैंने अपने पहले प्रेम को एक बार फिर से पा लिया है।
अब उसने धीरे से मेरा चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया। मेरे होंठ काँप रहे थे। उसकी भी यही हालत थी। रोमांच से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थी। बालों की कुछ आवारा पानी में भीगी लटें मेरे गालों पर चिपकी थी। उसने अचानक अपने जलते होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। इतने में बिजली कड़की। मुझे लगा कि मेरे अन्दर जो बिजली कड़क रही है उसके सामने आसमान वाली बिजली की कोई बिसात ही नहीं है। आह … उस प्रेम के चुम्बन और होंठों की छुवन से तो अन्दर तक झनझना उठी। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया और अपनी एक टांग ऊपर उठा ली। फिर उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ को मेरी जांघ के नीचे लगा दिया। मेरी तो जैसी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैंने अपने जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो तो उसे किसी रसभरी की तरह चूसने लगा। कोई दस मिनट तक हम दोनों इसी तरह आपस में गुंथे एक दुसरे से लिपटे खड़े बारिस में भीगते रहे।
अब मुझे छींकें आनी शुरू हो गई तो श्याम बोला “ओह मीनू लगता है तुम्हें ठण्ड लग गई है ? चलो अब नीचे चलते हैं ?”
“श्याम थोड़ी देर और… रररर… रु…..को … ना… आ छी….. ईई ………………………”
“ओह तुम ऐसे नहीं मानोगी ?” और फिर उसने मुझे एक ही झटके में अपनी गोद में उठा लिया। मैंने अपनी नर्म नाज़ुक बाहें उसके गले में डाल कर अपना सिर उसके सीने से लगा दिया। मेरी आँखें किसी अनोखे रोमांच और पुरानी स्मृतियों में अपने आप बंद हो गई। वो मुझे अपनी गोद में उठाये ही नीचे आ गया।
बेडरूम में आकर उसने मुझे अपनी गोद से नीचे उतार दिया। मैं गीले कपड़े बदलने के लिए बेडरूम से लगे बाथरूम में चली गई। मैंने अपने गीले कपड़े उतार दिए और शरीर को पोंछ कर अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखाये। फिर मैंने अपने आप को वाश बेसिन पर लगे शीशे में एक बार देखा। अरे यह तो वही मीनल थी जो आज से चार वर्ष पूर्व उस सावन की बारिश में नहा कर मैना बन गई थी। मैं अपनी निर्वस्त्र कमनीय काया को शीशे में देख कर लजा गई। फिर मैंने वही शर्ट और लुंगी पहन ली जो मैंने 4 सालों से सहेज कर रखी थी। जब मैं बाथरूम से निकली तो मैंने देखा की श्याम ने अपने गीले कपड़े निकाल दिए थे और शरीर पोंछ कर तौलिया लपेट लिया था। वैसे देखा जाए तो अब तौलिये की भी क्या आवश्यकता रह गई थी।
मैं बड़ी अदा से अपने नितम्ब मटकाती पलंग की ओर आई। मेरे बाल खुले थे जो मेरे आधे चहरे को ढके हुए थे। जैसे कोई बादल चाँद को ढक ले। कोई दिन के समय मेरी इन खुली जुल्फों और गेसुओं को देख ले तो सांझ के धुंधलके का धोखा खा जाए। श्याम तो बस फटी आँखों से मुझे देखता ही रह गया।
मैं ठीक उसके सामने आकर खड़ी हो गई। लगता था उसकी साँसें उखड़ी हुई सी हैं। मैंने अचानक आगे बढ़ कर उसके सिर के पीछे अपनी एक बांह डाल कर अपनी और खींचा। उसे तो जैसे कुछ समझ ही नहीं आया कि इस दौरान मैंने अपने दूसरे हाथ से कब उसकी कमर से लिपटा तौलिया भी खींच दिया था। इतनी चुलबुली तो शमा हुआ करती थी। पता नहीं आज मुझे क्या हो रहा था। मेरी सारी लाज और शर्म पता नहीं कहाँ ग़ुम हो गई थी। लगता था मैं फिर से वही मीनल बन गई हूँ। इसी आपाधापी में वो पीछे हटने और अपने नंगे बदन को छिपाने के प्रयास में पलंग पर गिर पड़ा और मैं उसके ठीक ऊपर गिर पड़ी। मेरे मोटे मोटे गोल उरोज ठीक उसके सीने से लगे थे और मेरा चेहरा उसके चहरे से कोई 2 या 3 इंच दूर ही तो रह गया था। उसका तना हुआ “वो” मेरी नाभि से चुभ रहा था।
अब मुझे जैसे होश आया कि यह मैं क्या कर बैठी हूँ। मैंने मारे शर्म के अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया। श्याम ने कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं दिखाई। उसने धीरे से मेरे सिर को पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। उसके सीने के घुंघराले बाल मेरे कपोलों को छू रहे थे और मेरे खुले बालों से उसका चेहरा ढक सा गया था। उसने मेरी पीठ और नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया तो मैं थोड़ी सी चिहुंक कर आगे सरकी तो मेरे होंठ अनायास ही उसके होंठों को छू गए। उसने एक बार फिर मेरे अधरों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। मेरे उरोज अब उसके सीने से दब और पिस रहे थे। मेरा तो मन कर रहा था कि आज कोई इनको इतनी जोर से दबाये कि इनका सारा रस ही निकल कर बाहर आ जाए। मेरी बगलों (कांख) से निकलती मादक महक ने उसे जैसे मतवाला ही बना दिया था। मैं भी तो उसके चौड़े सीने से लग कर अभिभूत (निहाल) ही हो गई थी। पता नहीं कितनी देर हम लोग इसी अवस्था में पड़े रहे। समय का किसे ध्यान रहता है ऐसी अवस्था में ?
अब मैंने उसको कन्धों से पकड़ कर एक पलटी मारी। अब उसका लगभग आधा शरीर मेरे ऊपर था और उसकी उसकी एक टांग मेरी जाँघों के बीच फंस गई। मेरी लुंगी अपने आप खुल गई थी। ओह… मारे शर्म के मैंने अपनी मुनिया के ऊपर अपना एक हाथ रखने की कोशिश की तो मेरा हाथ उसके 7″ लम्बे और 1.5 इंच मोटे “उस” से छू गया। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उससे टकराई उसने एक ठुमका लगाया और मैंने झट से अपना हाथ वापस खींच लिया। उसने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए। मेरे दोनों उरोज तन कर ऐसे खड़े थे जैसे कोई दो परिंदे हों और अभी उड़ जाने को बेचैन हों। वो तो उखड़ी और अटकी साँसों से टकटकी लगाए देखता ही रह गया। मेरी एक मीठी सीत्कार निकल गई। अब उसने धीमे से अपने हाथ मेरे उरोजों पर फिराया। आह … मेरी तो रोमांच से झुरझुरी सी निकल गई। अब उसने मेरे कड़क हो चले चुचूकों पर अपनी जीभ लगा दी। उस एक छुवन से मैं तो जैसे किसी अनोखे आनंद में ही गोते लगाने लगी। मुझे पता नहीं कब मेरे हाथ उसके सिर को पकड़ कर अपने उरोजों की और दबाने लगे थे। मेरी मीठी सीत्कार निकल पड़ी। उसने मेरे स्तनाग्र चूसने चालू कर दिए। मेरी मुनिया तो अभी से चुलबुला कर कामरस छोड़ने लगी थी।
अब उसने एक हाथ से मेरा एक उरोज पकड़ कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज को मुँह में भर कर इस तरह चूसने लगा जैसे कि कोई रसीला आम चूसता है। बारी बारी उसने मेरे दोनों उरोजों को चूसना चालू रखा। मेरे निप्पल तो ऐसे हो रहे थे जैसे कोई चमन के अंगूर का दाना हो और रंग सुर्ख लाल। अब उसने मेरे होंठ, कपोल, गला, पलकें, माथा और कानों की लोब चूमनी चालू कर दी। मैं तो बस आह… उन्ह… करती ही रह गई। अब उसने मेरी बगल में अपना मुँह लगा कर सूंघना चालू कर दिया। आह … एक गुनगुने अहसास से मैं तो उछल ही पड़ी। मेरी बगलों से उठती मादक महक ने उसे कामातुर कर दिया था।
ऐसा करते हुए वो अपने घुटनों के बल सा हो गया और फिर उसने मेरी गहरी नाभि पर अपनी जीभ लगा कर चाटना शुरू कर दिया।
रोमांच के कारण मेरी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी। मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ लिया। मेरी जांघें इस तरह आपस में कस गई कि अब तो उसमें से हवा भी नहीं निकल सकती थी।
जैसे ही उसने मेरे पेडू पर जीभ फिराई मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसकी गर्म साँसों से मेरा तो रोम रोम उत्तेजना से भर उठा था। मेरी मुनिया तो बस 2-3 इंच दूर ही रह गई थी अब तो। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वो मेरी मुनिया तक जल्दी से क्यों नहीं पहुँच रहा है। मेरे लिए तो इस रोमांच को अब सहन करना कठिन लग रहा था। मुझे तो लगा मेरी मुनिया ने अपना कामरज बिना कुछ किये हो छोड़ दिया है। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी। मेरा विश्वास था जब उसकी नज़र मेरी चिकनी रोम विहीन मुनिया पर पड़ेगी तो उसकी आँखें तो फटी की फटी ही रह जायेगी। मेरी मुनिया का रंग तो वैसे भी गोरा है जैसे किसी 14 साल की कमसिन कन्या की हो। गुलाबी रंग की बर्फी के दो तिकोने टुकड़े जैसे किसी ने एक साथ जोड़ दिए हों और बस 3-4 इंच का रक्तिम चीरा। उस कमसिन नाजनीन को देख कर वो अपने आप को भला कैसे रोक पायेगा। गच्च से पूरी की पूरी अपने मुँह में भर लेगा। पर अगले कुछ क्षणों तक न तो उसने कोई गतिविधि की ना ही कुछ कहा।
अचानक मेरे कानों में उसकी रस घोलती आवाज़ पड़ी,”मरहबा … सुभान अल्लाह … मेरी मीनू तुम बहुत खूबसूरत हो !”
और उसके साथ ही उसने एक चुम्बन मेरी मुनिया पर ले लिया और फिर जैसे कहीं कोयल सी कूकी :”कुहू … कुहू …”
हम दोनों ही इन निशांत क्षणों में इस आवाज को सुन कर चौंक पड़े और हड़बड़ा कर उठ बैठे। ओह… दीवाल घड़ी ने 12:00 बजा दिए थे। जब कमरे में अंधरे हो तो यह घड़ी नहीं बोलती पर कमरे में तो ट्यूब लाइट का दूधिया प्रकाश फैला था ना। ओह … हम दोनों की हंसी एक साथ निकल गई।
उसने मेरे अधरों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा,”मेरी मीनू को जन्मदिन की लाख लाख बधाई हो- तुम जीओ हज़ारों साल और साल के दिन हों पचास हज़ार !”
मेरा तो तन मन और बरसों की प्रेम की प्यासी आत्मा ही जैसे तृप्त हो गई इन शब्दों को सुनकर। एक ठंडी मिठास ने मुझे जैसे अन्दर तक किसी शीतलता से लबालब भर सा दिया। सावन की उमस भरी रात में जैसे कोई मंद पवन का झोंका मेरे पूरे अस्तित्व को ही शीतल कर गया हो। अब मुझे समझ लगा कि उस परम आनंद को कामुक सम्भोग के बिना भी कैसे पाया जा सकता है। श्याम सच कह रहा था कि ‘मैं तुम्हें प्रेम (सेक्स) की उन बुलंदियों पर ले जाऊँगा जिस से तुम अभी तक अपरिचित हो।‘
श्याम पलंग पर बैठा मेरी और ही देख रहा था। मैंने एक झटके में उसे बाहों में भर लिया और उसे ऐसे चूमने लगी जैसेकि वो 38 वर्षीय एक प्रोढ़ पुरुष न होकर मेरे सामने कामदेव बैठा है। मेरी आँखें प्रेम रस से सराबोर होकर छलक पड़ी। ओह मैं इस से पहले इतनी प्रेम विव्हल तो कभी नहीं हुई थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है। यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था। उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे।
“ओह… मेरे श्याम … मेरे प्रियतम तुम कहाँ थे इतने दिन … आह… तुमने मुझे पहले क्यों नहीं अपनी बाहों में भर लिया ?”
“तुम्हारी इस हालत को मैं समझता हूँ मेरी प्रियतमा … इसी लिए तो मैंने तुम्हें समझाया था कि सम्भोग मात्र दो शरीरों के मिलन को ही नहीं कहते। उसमें प्रेम रस की भावनाएं होनी जरुरी होती हैं नहीं तो यह मात्र एक नीरस शारीरिक क्रिया ही रह जाती है !”
“ओह मेरे श्याम अब कुछ मत कहो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम देव !” मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़े चूमती चली गई। मुझे तो ऐसे लग रहा था जैसे मैं कोई जन्म जन्मान्तर की प्यासी अभिशप्ता हूँ और केवल यही कुछ पल मुझे उस प्यास को बुझाने के लिए मिले हैं। मैं चाहती थी कि वो मेरा अंग अंग कुचल और मसल डाले । अब उसके होंठ मेरे पतले पतले अधरों से चिपक गये थे।
श्याम ने मेरे कपोलों पर लुढ़क आये आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया। मैं प्रेम के इस अनोखे अंदाज़ से रोमांच से भर उठी। अब उसने मेरे अधरों को एक बार फिर से चूमा और फिर मेरे कोपल, नाक, पलकें चूमता चला गया। अब उसने मुझे पलंग पर लेटा दिया। वो टकटकी लगाए मेरे अद्वितीय सौन्दर्य को जैसे देखता ही रह गया। ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में मेरा निर्वस्त्र शरीर ऐसे बिछा पड़ा था जैसे कोई इठलाती बलखाती नदी अटखेलियाँ करती अपने प्रेमी (सागर) से मिलाने को लिए आतुर हो।
श्याम मेरी बगल में लेट गया और उसने अपनी एक टांग मेरी कोमल और पुष्ट जाँघों के बीच डाल दी। उसका “वो” मेरी जांघ को छू रहा था। मैंने अपने आप को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया पर मेरे हाथ अपने आप उस ओर चले गए और मैंने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। उसने एक जोर का ठुमका लगाया जैसे किसी मुर्गे की गरदन पकड़ने पर वो लगता है। श्याम ने मेरे अधरों को चूमना चालू रखा और एक हाथ से मेरे उरोज मसलने लगा। आह उन हाथों के हलके दबाव से मेरे उरोजों की घुन्डियाँ तो लाल ही हो गई। अब श्याम ने अपना एक हाथ मेरी मुनिया की ओर बढ़ाया।
आह … मेरा तो रोमांच से सारा शरीर ही झनझना उठा। सच कहूं तो मैं तो चाह रहा थी कि श्याम जल्दी से अपना “वो” मेरी मुनिया में डाल दे या फिर कम से कम अपनी एक अंगुली ही डाल दे।
उसने मेरी मुनिया की पतली सी लकीर पर अंगुली फिराई। मेरी तो किलकारी ही निकल गई,”आऐईईइ …… उईई … माआआआ …….” और मैंने उसके होंठों को इतने जोए से अपने मुँह में लेकर काटा कि उनसे तो खून ही झलकने लगा।
श्याम ने अपना काम चालू रखा। उसने मेरी मुनिया की फांकों को धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया और मेरे अधरों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। ऊपर और नीचे के दोनों होंठों में राई जितना भी अंतर नहीं था। अब उसने अपनी अंगुली चीरे के ठीक ऊपर लगा कर मदनमणि को टटोला और उसे अपनी अँगुलियों की चिमटी में लेकर दबा दिया। मेरे शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और मेरी मुनिया ने अपना काम रस छोड़ दिया। आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा की वो सच कह रही थी।
श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?
प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।
और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……
मैंने अपने आंसू पोंछ लिए और श्याम से पूछा, “ठीक है ! आप क्या चाहते हैं ?”
“वही जो एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से चाहता है, वही जो एक भंवरा किसी फूल से चाहता है, वही नैसर्गिक आनंद जो एक नर किसी मादा से चाहता है ! सदियों से चले आ रही इस नैसर्गिक क्रिया के अलावा एक पुरुष किसी कमनीय स्त्री से और क्या चाह सकता है ?”
“ठीक है मैं तैयार हूँ ? पर मेरी दो शर्तें होंगी ?”
“मुझे तुम्हारी सभी शर्तें मंजूर हैं … बोलो … ?”
“हमारे बीच जो भी होगा मेरी इच्छा से होगा किसी क्रिया के लिए मुझे बाध्य नहीं करोगे और ना ही इन कामांगों का गन्दा नाम लेकर बोलोगे ? दूसरी बात हमारे बीच जो भी होगा वो बस आज रात के लिए होगा और आज की रात के बाद आप मुझे भूल जायेंगे और किसी दूसरे को इसकी भनक भी नहीं होने देंगे !”
“ओह मेरी मैना रानी तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूं !”
इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद उसके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। उसे भला मेरी इन शर्तों में क्या आपत्ति हो सकती थी। और फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लेना चाहा।
मैंने उसे वहीं रोक दिया।
“नहीं इतनी जल्दी नहीं ! मैंने बताया था ना कि जो भी होगा मेरी इच्छानुसार होगा !”
“ओह … मीनू अब तुम क्या चाहती हो ?”
“तुम ठहरो मैं अभी आती हूँ !” और मैं अपने शयनकक्ष की ओर चली आई।
मैंने अपनी आलमारी से वही हलके पिस्ता रंग का टॉप और कॉटन का पतला सा पजामा निकला जिसे मैंने पिछले 4 सालों से बड़े जतन से संभाल कर रखा था। मैंने वह सफ़ेद शर्ट और लुंगी भी संभाल कर रखी थी जिसे मैंने उस बारिश में नहाने के बाद पहनी थी। यह वही कपड़े थे जो मेरे पहले प्रेम की निशानी थे। जिसे पहन कर मैं उस सावन की बरसात में अपने उस प्रेमी के साथ नहाई थी। बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी। मैं एक बार उन पलों को उसी अंदाज़ में फिर से जी लेना चाहती थी।
बाहर श्याम बड़ी आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,”आओ मेरे साथ !”
“क… कहाँ जा रही हो ?”
“ओह मैंने कहा था ना कि तुम वही करोगे जो मैं कहूँगी या चाहूंगी ?”
“ओह… पर बताओ तो सही कि तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो ?”
“पहले हम छत के ऊपर चल कर इस रिमझिम बारिश में नहायेंगें !” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा। उसकी आँखों में भी अब लाल डोरे तैरने लगे थे। अब उसके समझ में आया कि मैं पहले क्या चाहती हूँ।
हम दोनों छत पर आ गए। बारिश की नर्म फुहार ने हम दोनों का जी खोल कर स्वागत किया। मैंने श्याम को अपनी बाहों में भर लिया। मेरे अधर कांपने लगे थे। श्याम का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। उसने अपने लरजते हाथों से मुझे अपने बाहुपाश में बाँध लिया जैसे। उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रस चूसने लगे। मैं तो उस से इस तरह लिपटी थी जैसे की बरसों की प्यासी हूँ। वो कभी मेरी पीठ सहलाता कभी भारी भारी पुष्ट नितम्बों को सहलाता कभी भींच देता। मेरे मुँह से मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। मेरे उरोज उसके चौड़े सीने से लगे पिस रहे थे। मैंने उसकी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना सिर उसके सीने से लगा कर आँखें बंद कर ली। एक अनोखे आनंद और रोमांच से मेरा अंग अंग कांप रहा था। उसके धड़कते दिल की आवाज मैं अच्छी तरह सुन रही थी। मुझे तो लग रहा था कि समय चार साल पीछे चला है और जैसे मैंने अपने पहले प्रेम को एक बार फिर से पा लिया है।
अब उसने धीरे से मेरा चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया। मेरे होंठ काँप रहे थे। उसकी भी यही हालत थी। रोमांच से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थी। बालों की कुछ आवारा पानी में भीगी लटें मेरे गालों पर चिपकी थी। उसने अचानक अपने जलते होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। इतने में बिजली कड़की। मुझे लगा कि मेरे अन्दर जो बिजली कड़क रही है उसके सामने आसमान वाली बिजली की कोई बिसात ही नहीं है। आह … उस प्रेम के चुम्बन और होंठों की छुवन से तो अन्दर तक झनझना उठी। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया और अपनी एक टांग ऊपर उठा ली। फिर उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ को मेरी जांघ के नीचे लगा दिया। मेरी तो जैसी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैंने अपने जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो तो उसे किसी रसभरी की तरह चूसने लगा। कोई दस मिनट तक हम दोनों इसी तरह आपस में गुंथे एक दुसरे से लिपटे खड़े बारिस में भीगते रहे।
अब मुझे छींकें आनी शुरू हो गई तो श्याम बोला “ओह मीनू लगता है तुम्हें ठण्ड लग गई है ? चलो अब नीचे चलते हैं ?”
“श्याम थोड़ी देर और… रररर… रु…..को … ना… आ छी….. ईई ………………………”
“ओह तुम ऐसे नहीं मानोगी ?” और फिर उसने मुझे एक ही झटके में अपनी गोद में उठा लिया। मैंने अपनी नर्म नाज़ुक बाहें उसके गले में डाल कर अपना सिर उसके सीने से लगा दिया। मेरी आँखें किसी अनोखे रोमांच और पुरानी स्मृतियों में अपने आप बंद हो गई। वो मुझे अपनी गोद में उठाये ही नीचे आ गया।
बेडरूम में आकर उसने मुझे अपनी गोद से नीचे उतार दिया। मैं गीले कपड़े बदलने के लिए बेडरूम से लगे बाथरूम में चली गई। मैंने अपने गीले कपड़े उतार दिए और शरीर को पोंछ कर अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखाये। फिर मैंने अपने आप को वाश बेसिन पर लगे शीशे में एक बार देखा। अरे यह तो वही मीनल थी जो आज से चार वर्ष पूर्व उस सावन की बारिश में नहा कर मैना बन गई थी। मैं अपनी निर्वस्त्र कमनीय काया को शीशे में देख कर लजा गई। फिर मैंने वही शर्ट और लुंगी पहन ली जो मैंने 4 सालों से सहेज कर रखी थी। जब मैं बाथरूम से निकली तो मैंने देखा की श्याम ने अपने गीले कपड़े निकाल दिए थे और शरीर पोंछ कर तौलिया लपेट लिया था। वैसे देखा जाए तो अब तौलिये की भी क्या आवश्यकता रह गई थी।
मैं बड़ी अदा से अपने नितम्ब मटकाती पलंग की ओर आई। मेरे बाल खुले थे जो मेरे आधे चहरे को ढके हुए थे। जैसे कोई बादल चाँद को ढक ले। कोई दिन के समय मेरी इन खुली जुल्फों और गेसुओं को देख ले तो सांझ के धुंधलके का धोखा खा जाए। श्याम तो बस फटी आँखों से मुझे देखता ही रह गया।
मैं ठीक उसके सामने आकर खड़ी हो गई। लगता था उसकी साँसें उखड़ी हुई सी हैं। मैंने अचानक आगे बढ़ कर उसके सिर के पीछे अपनी एक बांह डाल कर अपनी और खींचा। उसे तो जैसे कुछ समझ ही नहीं आया कि इस दौरान मैंने अपने दूसरे हाथ से कब उसकी कमर से लिपटा तौलिया भी खींच दिया था। इतनी चुलबुली तो शमा हुआ करती थी। पता नहीं आज मुझे क्या हो रहा था। मेरी सारी लाज और शर्म पता नहीं कहाँ ग़ुम हो गई थी। लगता था मैं फिर से वही मीनल बन गई हूँ। इसी आपाधापी में वो पीछे हटने और अपने नंगे बदन को छिपाने के प्रयास में पलंग पर गिर पड़ा और मैं उसके ठीक ऊपर गिर पड़ी। मेरे मोटे मोटे गोल उरोज ठीक उसके सीने से लगे थे और मेरा चेहरा उसके चहरे से कोई 2 या 3 इंच दूर ही तो रह गया था। उसका तना हुआ “वो” मेरी नाभि से चुभ रहा था।
अब मुझे जैसे होश आया कि यह मैं क्या कर बैठी हूँ। मैंने मारे शर्म के अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया। श्याम ने कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं दिखाई। उसने धीरे से मेरे सिर को पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। उसके सीने के घुंघराले बाल मेरे कपोलों को छू रहे थे और मेरे खुले बालों से उसका चेहरा ढक सा गया था। उसने मेरी पीठ और नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया तो मैं थोड़ी सी चिहुंक कर आगे सरकी तो मेरे होंठ अनायास ही उसके होंठों को छू गए। उसने एक बार फिर मेरे अधरों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। मेरे उरोज अब उसके सीने से दब और पिस रहे थे। मेरा तो मन कर रहा था कि आज कोई इनको इतनी जोर से दबाये कि इनका सारा रस ही निकल कर बाहर आ जाए। मेरी बगलों (कांख) से निकलती मादक महक ने उसे जैसे मतवाला ही बना दिया था। मैं भी तो उसके चौड़े सीने से लग कर अभिभूत (निहाल) ही हो गई थी। पता नहीं कितनी देर हम लोग इसी अवस्था में पड़े रहे। समय का किसे ध्यान रहता है ऐसी अवस्था में ?
अब मैंने उसको कन्धों से पकड़ कर एक पलटी मारी। अब उसका लगभग आधा शरीर मेरे ऊपर था और उसकी उसकी एक टांग मेरी जाँघों के बीच फंस गई। मेरी लुंगी अपने आप खुल गई थी। ओह… मारे शर्म के मैंने अपनी मुनिया के ऊपर अपना एक हाथ रखने की कोशिश की तो मेरा हाथ उसके 7″ लम्बे और 1.5 इंच मोटे “उस” से छू गया। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उससे टकराई उसने एक ठुमका लगाया और मैंने झट से अपना हाथ वापस खींच लिया। उसने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए। मेरे दोनों उरोज तन कर ऐसे खड़े थे जैसे कोई दो परिंदे हों और अभी उड़ जाने को बेचैन हों। वो तो उखड़ी और अटकी साँसों से टकटकी लगाए देखता ही रह गया। मेरी एक मीठी सीत्कार निकल गई। अब उसने धीमे से अपने हाथ मेरे उरोजों पर फिराया। आह … मेरी तो रोमांच से झुरझुरी सी निकल गई। अब उसने मेरे कड़क हो चले चुचूकों पर अपनी जीभ लगा दी। उस एक छुवन से मैं तो जैसे किसी अनोखे आनंद में ही गोते लगाने लगी। मुझे पता नहीं कब मेरे हाथ उसके सिर को पकड़ कर अपने उरोजों की और दबाने लगे थे। मेरी मीठी सीत्कार निकल पड़ी। उसने मेरे स्तनाग्र चूसने चालू कर दिए। मेरी मुनिया तो अभी से चुलबुला कर कामरस छोड़ने लगी थी।
अब उसने एक हाथ से मेरा एक उरोज पकड़ कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज को मुँह में भर कर इस तरह चूसने लगा जैसे कि कोई रसीला आम चूसता है। बारी बारी उसने मेरे दोनों उरोजों को चूसना चालू रखा। मेरे निप्पल तो ऐसे हो रहे थे जैसे कोई चमन के अंगूर का दाना हो और रंग सुर्ख लाल। अब उसने मेरे होंठ, कपोल, गला, पलकें, माथा और कानों की लोब चूमनी चालू कर दी। मैं तो बस आह… उन्ह… करती ही रह गई। अब उसने मेरी बगल में अपना मुँह लगा कर सूंघना चालू कर दिया। आह … एक गुनगुने अहसास से मैं तो उछल ही पड़ी। मेरी बगलों से उठती मादक महक ने उसे कामातुर कर दिया था।
ऐसा करते हुए वो अपने घुटनों के बल सा हो गया और फिर उसने मेरी गहरी नाभि पर अपनी जीभ लगा कर चाटना शुरू कर दिया।
रोमांच के कारण मेरी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी। मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ लिया। मेरी जांघें इस तरह आपस में कस गई कि अब तो उसमें से हवा भी नहीं निकल सकती थी।
जैसे ही उसने मेरे पेडू पर जीभ फिराई मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसकी गर्म साँसों से मेरा तो रोम रोम उत्तेजना से भर उठा था। मेरी मुनिया तो बस 2-3 इंच दूर ही रह गई थी अब तो। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वो मेरी मुनिया तक जल्दी से क्यों नहीं पहुँच रहा है। मेरे लिए तो इस रोमांच को अब सहन करना कठिन लग रहा था। मुझे तो लगा मेरी मुनिया ने अपना कामरज बिना कुछ किये हो छोड़ दिया है। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी। मेरा विश्वास था जब उसकी नज़र मेरी चिकनी रोम विहीन मुनिया पर पड़ेगी तो उसकी आँखें तो फटी की फटी ही रह जायेगी। मेरी मुनिया का रंग तो वैसे भी गोरा है जैसे किसी 14 साल की कमसिन कन्या की हो। गुलाबी रंग की बर्फी के दो तिकोने टुकड़े जैसे किसी ने एक साथ जोड़ दिए हों और बस 3-4 इंच का रक्तिम चीरा। उस कमसिन नाजनीन को देख कर वो अपने आप को भला कैसे रोक पायेगा। गच्च से पूरी की पूरी अपने मुँह में भर लेगा। पर अगले कुछ क्षणों तक न तो उसने कोई गतिविधि की ना ही कुछ कहा।
अचानक मेरे कानों में उसकी रस घोलती आवाज़ पड़ी,”मरहबा … सुभान अल्लाह … मेरी मीनू तुम बहुत खूबसूरत हो !”
और उसके साथ ही उसने एक चुम्बन मेरी मुनिया पर ले लिया और फिर जैसे कहीं कोयल सी कूकी :”कुहू … कुहू …”
हम दोनों ही इन निशांत क्षणों में इस आवाज को सुन कर चौंक पड़े और हड़बड़ा कर उठ बैठे। ओह… दीवाल घड़ी ने 12:00 बजा दिए थे। जब कमरे में अंधरे हो तो यह घड़ी नहीं बोलती पर कमरे में तो ट्यूब लाइट का दूधिया प्रकाश फैला था ना। ओह … हम दोनों की हंसी एक साथ निकल गई।
उसने मेरे अधरों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा,”मेरी मीनू को जन्मदिन की लाख लाख बधाई हो- तुम जीओ हज़ारों साल और साल के दिन हों पचास हज़ार !”
मेरा तो तन मन और बरसों की प्रेम की प्यासी आत्मा ही जैसे तृप्त हो गई इन शब्दों को सुनकर। एक ठंडी मिठास ने मुझे जैसे अन्दर तक किसी शीतलता से लबालब भर सा दिया। सावन की उमस भरी रात में जैसे कोई मंद पवन का झोंका मेरे पूरे अस्तित्व को ही शीतल कर गया हो। अब मुझे समझ लगा कि उस परम आनंद को कामुक सम्भोग के बिना भी कैसे पाया जा सकता है। श्याम सच कह रहा था कि ‘मैं तुम्हें प्रेम (सेक्स) की उन बुलंदियों पर ले जाऊँगा जिस से तुम अभी तक अपरिचित हो।‘
श्याम पलंग पर बैठा मेरी और ही देख रहा था। मैंने एक झटके में उसे बाहों में भर लिया और उसे ऐसे चूमने लगी जैसेकि वो 38 वर्षीय एक प्रोढ़ पुरुष न होकर मेरे सामने कामदेव बैठा है। मेरी आँखें प्रेम रस से सराबोर होकर छलक पड़ी। ओह मैं इस से पहले इतनी प्रेम विव्हल तो कभी नहीं हुई थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है। यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था। उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे।
“ओह… मेरे श्याम … मेरे प्रियतम तुम कहाँ थे इतने दिन … आह… तुमने मुझे पहले क्यों नहीं अपनी बाहों में भर लिया ?”
“तुम्हारी इस हालत को मैं समझता हूँ मेरी प्रियतमा … इसी लिए तो मैंने तुम्हें समझाया था कि सम्भोग मात्र दो शरीरों के मिलन को ही नहीं कहते। उसमें प्रेम रस की भावनाएं होनी जरुरी होती हैं नहीं तो यह मात्र एक नीरस शारीरिक क्रिया ही रह जाती है !”
“ओह मेरे श्याम अब कुछ मत कहो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम देव !” मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़े चूमती चली गई। मुझे तो ऐसे लग रहा था जैसे मैं कोई जन्म जन्मान्तर की प्यासी अभिशप्ता हूँ और केवल यही कुछ पल मुझे उस प्यास को बुझाने के लिए मिले हैं। मैं चाहती थी कि वो मेरा अंग अंग कुचल और मसल डाले । अब उसके होंठ मेरे पतले पतले अधरों से चिपक गये थे।
श्याम ने मेरे कपोलों पर लुढ़क आये आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया। मैं प्रेम के इस अनोखे अंदाज़ से रोमांच से भर उठी। अब उसने मेरे अधरों को एक बार फिर से चूमा और फिर मेरे कोपल, नाक, पलकें चूमता चला गया। अब उसने मुझे पलंग पर लेटा दिया। वो टकटकी लगाए मेरे अद्वितीय सौन्दर्य को जैसे देखता ही रह गया। ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में मेरा निर्वस्त्र शरीर ऐसे बिछा पड़ा था जैसे कोई इठलाती बलखाती नदी अटखेलियाँ करती अपने प्रेमी (सागर) से मिलाने को लिए आतुर हो।
श्याम मेरी बगल में लेट गया और उसने अपनी एक टांग मेरी कोमल और पुष्ट जाँघों के बीच डाल दी। उसका “वो” मेरी जांघ को छू रहा था। मैंने अपने आप को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया पर मेरे हाथ अपने आप उस ओर चले गए और मैंने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। उसने एक जोर का ठुमका लगाया जैसे किसी मुर्गे की गरदन पकड़ने पर वो लगता है। श्याम ने मेरे अधरों को चूमना चालू रखा और एक हाथ से मेरे उरोज मसलने लगा। आह उन हाथों के हलके दबाव से मेरे उरोजों की घुन्डियाँ तो लाल ही हो गई। अब श्याम ने अपना एक हाथ मेरी मुनिया की ओर बढ़ाया।
आह … मेरा तो रोमांच से सारा शरीर ही झनझना उठा। सच कहूं तो मैं तो चाह रहा थी कि श्याम जल्दी से अपना “वो” मेरी मुनिया में डाल दे या फिर कम से कम अपनी एक अंगुली ही डाल दे।
उसने मेरी मुनिया की पतली सी लकीर पर अंगुली फिराई। मेरी तो किलकारी ही निकल गई,”आऐईईइ …… उईई … माआआआ …….” और मैंने उसके होंठों को इतने जोए से अपने मुँह में लेकर काटा कि उनसे तो खून ही झलकने लगा।
श्याम ने अपना काम चालू रखा। उसने मेरी मुनिया की फांकों को धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया और मेरे अधरों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। ऊपर और नीचे के दोनों होंठों में राई जितना भी अंतर नहीं था। अब उसने अपनी अंगुली चीरे के ठीक ऊपर लगा कर मदनमणि को टटोला और उसे अपनी अँगुलियों की चिमटी में लेकर दबा दिया। मेरे शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और मेरी मुनिया ने अपना काम रस छोड़ दिया। आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा की वो सच कह रही थी।
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-4
आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा कि वो सच कह रही थी। अचानक श्याम उठ बैठा। मुझे आश्चर्य हो रहा था वह इतनी देरी क्यों कर रहा है ? उसने मेरी जांघों को थोड़ा सा फैलाया। इससे मेरी मुनिया के दोनों योनी पट (फांकें) थोड़े से खुल गए और अन्दर से गुलाबी रंग झलकने लगा। पाँव रोटी की तरह फूली रोम विहीन कमसिन मुनिया का रक्तिम चीरा तो 3 इंच से कतई बड़ा नहीं था। पतली पतली दो गहरे लाल रंग की खड़ी रेखाएं। ऊपर गुलाबी रंग की मदनमणि चने के दाने जितनी। पूरी मुनिया काम रस में डूबी हुई ऐसे लग रही थी जैसे कोई शहद की कुप्पी हो और उसमें से शहद टपक रहो हो। अब तो वो रस बह कर मेरी दूसरे छिद्र को भी भिगो रहा था। ओह तुम समझ रही हो ना… मुझे क्षमा कर देना मुझे इनका नाम लेते हुए लाज भी आ रही है और…. और झिझक सी भी हो रही है।
अब श्याम ने अपने दोनों हाथों से मेरी मुनिया की मोटी मोटी संतरे जैसे गुलाबी फांकों को चौड़ा किया और फिर नीचे झुकते हुए अपने होंठ उन पर लगा दिए। मैं समझ गई वो अब मेरी मुनिया को चाटना चाहता है। मेरा दिल उत्तेजना से धक-धक करने लगा। मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी हो सकती थी, कर दी ताकि उसे मेरी मुनिया को चूसने में कोई दिक्कत ना हो। जैसे ही उसकी जीभ की नोक का स्पर्श मेरी मुनिया से हुआ मेरी तो किलकारी निकलते निकलते बची और उसके साथ ही मेरी मुनिया ने एक बार फिर अमृत की कुछ बूँदें छोड़ दी। काम के आवेग में मेरा रोम रोम पुलकित और काँप रहा था। मैंने उसका सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपनी मुनिया की ओर दबा दिया और उसके सिर के बाल इतनी जोर से खींचे की बालों का गुच्छा मेरे हाथों में ही आ गया। अब मुझे पता कि कुछ आदमी गंजे क्यों हो जाते हैं।
अब उसने अपनी जीभ मेरी मुनिया की दरार पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटनी शुरू कर दी। कभी वो होले से उन फांकों को अपने दांतों से दबाता और कभी अपनी जीभ को नुकीला कर मदनमणि को चुभलाता। मेरी मुनिया तो कामरस छोड़ छोड़ का बावली हुई जा रही थी। अब उसने मेरी मुनिया को पूरा अपने मुँह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाई। मेरी मीठी सीत्कार निकल गई। जिस अंग से वो खिलवाड़ कर रहा था और मुँह लगा कर यौवन का रस चूस रहा था किसी भी स्त्री के लिए सबसे अधिक संवेदनशील अंग होता है जिसके प्रति हर स्त्री सदैव सजग रहती है। पर इस छुवन और चूसने के आनंद के आगे किसी स्वर्ग का सुख भी कोई अर्थ नहीं रखता।
मेरी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। वो मेरी मुनिया को रस भरी कुल्फी की तरह चूसे जा रहा था। अब उसने मेरी मदनमणि के दाने को अपने दांतों के बीच दबा लिया। यह तो किसी भी युवा स्त्री का जादुई बटन होता है। मेरी तो किलकारी ही गूँज उठी पूरे कमरे में। अब उसने अपनी एक अंगुली मेरे रति द्वार के अन्दर डाल दी। पहले एक पोर डाला उसे थोड़ा सा अन्दर किया फिर घुमाया और फिर होले से थोड़ा अन्दर किया। मैं तो चाह रही थी कि वह एक ही झटके में पूरी अंगुली अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करे पर मैं भला उसे अपने मुँह से कैसे कह सकती थी। मैं तो मारे उत्तेजना और रोमांच के जैसे मदहोश ही हो रही थी। मुझे तो लग रहा था कि मैं अपना नियंत्रण खो रही हूँ। मैं कभी अपने पैर थोड़े उठाती कभी नीचे करती और कभी उसकी गरदन के दोनों और लपेट लेती। मेरे मुँह से विचित्र सी ध्वनि और आवाजें निकल रही थी आह… ओईईइ …… इस्स्स्सस्स्स …… ओह …… मेरे श्याम… अब बस करो नहीं तो मैं बेहोश हो जाउंगी… आह्ह्हह्ह।”
एक तेज और मीठी सी आग जैसे मेरे अन्दर भड़कने लगी थी। मेरी मुनिया तो लहरा लहरा कर अपना रस बहा रही थी। मेरी मुनिया से निकले रस को पीने के बाद श्याम के लिए अब अपने ऊपर नियंत्रण रखना कठिन ही नहीं असंभव हो गया था। स्त्री अपनी कामेच्छा को रोक पाने में कुछ सीमा तक अवश्य सफल हो जाती है पर पुरुष के लिए ऐसा कर पाना कतई संभव नहीं होता। उसे भी अब लगने लगा होगा कि अगर अब इन दोनों (अरे बाबा चूत और लंड) का मिलन नहीं करवाया गया तो उसका ये कामदंड अति कामवेग से फट जाएगा।
श्याम अभी मेरी मुनिया को और चूसना चाहता था उसका मन अभी भरा नहीं था पर वो भी अपने कामदंड की अकड़न और विद्रोह के आगे विवश था। उसने मेरी मुनिया से अपना मुँह हटा लिया और फिर मेरे ऊपर आते हुए मेरे अधरों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। आह … एक नमकीन और नारियल पानी जैसे स्वाद और सुगंध से मेरा मुँह भर गया। अब श्याम ठीक मेरे ऊपर था। उसका कामदंड मेरी मुनिया के ऊपर ऐसे लगा था जैसे कोई लोहे की छड़ मुझे चुभ रही हो। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी थी। अब मैंने अपने एक हाथ से उसका कामदंड पड़कर अपने रतिद्वार के छिद्र के ठीक ऊपर लगा लिया और दूसरे हाथ से उसकी कमर पकड़ ली ताकि वो कहीं इधर उधर ना हो जाए। श्याम अब इतना भी अनाड़ी नहीं था कि आगे क्या करना है, ना जानता हो।
यह वो सुनहरा पल था जिसकी कल्पना मात्र से ही युवा पुरुष और स्त्री रोमांच से लबालब भर जाते हैं, मैं प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी साँसें रोक कर उस पल की प्रतीक्षा करने लगी जब उसका कामदंड मेरी मुनिया के अन्दर समां कर मेरी बरसों की प्यास को अपने अमृत से सींच देगा। उसने धीरे से एक धक्का लगा दिया। आह … जैसे किसी शहद की कटोरी में कोई अपनी अंगुली अन्दर तक डाल दे उसका कामदंड कोई 4-5 इंच तक चला गया। एक मीठी सी गुदगुदी, जलन और कसक भरी चुन्मुनाती मिठास से जैसे मेरी मुनिया तो धन्य ही हो गई। श्याम ने दो धक्के और लगाए तो उनका पूरा का पूरा 7″ लम्बा कामदंड जड़ तक मेरी मुनिया के अन्दर समां गया। मैं तो जैसे स्वर्ग में ही पहुँच गई। मेरी मुनिया ने अन्दर ही संकोचन किया तो उनके कामदंड ने भी ठुमका लगा दिया। मेरी जांघें अपने आप थोड़ी सी भींच गई और एक मीठी सी सीत्कार मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी निकल गई।
श्याम ने मेरे अधरों को चूसना शुरू कर दिया। उसका एक हाथ मेरी गरदन के नीचे था और दूसरे हाथ से मेरे उरोज को दबा और सहला रहा था। उसने अब 3-4 धक्के लगातार लगा दिए। मेरा शरीर थोड़ा सा अकड़ा और मुनिया ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया। अब तो उसका कामदंड बड़ी सरलता से अन्दर बाहर होने लगा था। मुनिया से फच फच की आवाजें आनी चालू हो गई थी। इस मधुर संगीत को सुनकर तो हम दोनों ही रोमांच के सागर में डूब गए थे। जैसे ही वह मेरे उरोज दबाता और अधरों को चूसता तो मैं भी नीचे से धक्का लगा देती।
अब उसने अपने घुटने थोड़े से मोड़ लिए थे और उकडू सा हो गया था। उसके दोनों पैर मेरे दोनों नितम्बों के साथ लगे थे और उसका भार उसकी कोहनियों और घुटनों पर था। ओह … शायद वह यह सोच रहा था कि इतनी देर तक मैं उसका भार सहन नहीं कर पाउंगी। प्रेम मिलन में अपने साथी का इतना ख्याल तो बस प्रेम कला में निपुण व्यक्ति ही रख सकता है। श्याम तो पूरा प्रेम गुरु था। इसी अवस्था में उसने कोई 7-8 मिनट तक हमारा प्रेम मिलन कहूं या प्रेमयुद्ध चालू रहा। फिर वो धक्के बंद करके मेरे ऊपर लेट सा गया। अब मैंने अपनी जांघें चौड़ी करने का उपक्रम किया तो वो उठा बैठा। उसने मेरे नितम्बों के नीचे दो तकिये लगा दिए और मेरे पैर अपने कन्धों पर रख लिए। सच पूछो तो मेरे लिए तो यह नितान्त नया अनुभव ही था। अब उसने मेरी जाँघों को अपने हाथों में पकड़ लिया और फिर से अपना कामदंड मेरी मुनिया में डाल दिया। धक्के फिर चालू हो गए। उसने अपने एक हाथ से मेरा उरोज पकड़ लिया और उसे दबाने और मसलने लगा। मेरे मुँह से मीठी सीत्कारें निकल रही थी और वो भी गुन… गुर्र्रर … की आवाजें निकाल रहा था।
8-10 मिनट टांगें ऊपर किये किये धक्के खाने से मेरी कमर दुखने सी लगी थी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलती उसने धीरे से मेरी जांघें छोड़ कर मेरे पैर नीचे कर दिए। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मेरे मन की बात वो इतनी जल्दी कैसे समझ लेता है। वो अब मेरे ऊपर लेट सा गया। मैंने झट से उसे अपनी बाहों में भर कर जकड़ लिया और उसके होंठों को चूमने लगी। कामदंड अब भी मुनिया के अन्दर समाया था। भला उन दोनों को हमारे ऊपर नीचे होने से क्या लेना देना था।
मेरा मन अन्दर से चाह रहा था कि अब एक बार मैं ऊपर आ जाऊं और श्याम मेरे नीचे हों। ओह … मैं भी कितनी लज्जाहीन और उतावली हो चली थी। मैं इससे पहले कभी इतनी मुखर (लज्जा का त्याग) कभी नहीं हुई थी। मैंने अपनी आँखें खोली तो श्याम मेरी ओर ही देख रहा था जैसे। मैं कुछ बोलना चाह रही थी पर इससे पहले कि मैं कुछ बोलूँ या करूँ, श्याम ने कहा,”मीनू क्या एक बार तुम ऊपर नहीं आओगी ?”
अन्दर से तो मैं भी कब का यही चाह रही थी। मुझे तो मन मांगी मुराद ही मिल गई थी जैसे। मैंने हाँ में अपनी आँखें झपकाई और श्याम को एक बार फिर चूम लिया। अब हमने आपस में गुंथे हुए ही एक पलटी मारी और अब श्याम नीचे था और मैं उसके ऊपर। मैंने अपने घुटने मोड़ कर उसकी कमर के दोनों ओर कर दिए थे। मेरे दोनों हाथ उसके छाती पर लगे थे। अब मैंने अपनी मुनिया की ओर देखा। हाय राम…… उसका “वो” पूरा का पूरा मेरी मुनिया में धंसा हुआ था। मेरी मुनिया का मुँह तो ऐसे खुल गया था जैसे किसी बिल्ली ने एक मोटा सा चूहा अपने छोटे से मुँह में दबा रखा हो। उसकी फांकें तो फ़ैल कर बिल्कुल लाल और पतली सी हो गई थी। मैंने अपने शरीर को धनुष की तरह पीछे की ओर मोड़ा तो मुझे अपनी मुनिया के कसाव का अनुमान हुआ। उनका “वो” तो बस किसी खूंटे की तरह अन्दर मेरी योनि की गीली और नर्म दीवारों के बीच फंसा था। अब मैं फिर सीधी हो गई और थोड़ी सी ऊपर होकर फिर नीचे बैठ गई। उसके कामदंड ने फिर ठुमका लगाया। मेरी मुनिया भला क्यों पीछे रहती उसने मुझे 4-5 धक्के लगाने को विवश कर ही दिया।
मैंने अपने सिर के बालों को एक झटका दिया। ऐसा करने से मेरे खुले बाल मेरे चहरे पर आ गए। श्याम ने अपने एक हाथ से मेरे नितम्ब सहलाने चालू कर दिए। जब उसकी अंगुलियाँ मेरे नितम्बों की खाई में सरकने लगी तो मुझे गुदगुदी सी होने लगी। किसी पराये पुरुष का यह पहला स्पर्श था मेरे नितम्बों की खाई पर। मनीष ने तो कभी ठीक से इन पर हाथ भी नहीं फिराया था भला उस अनाड़ी को इस रहस्यमयी खाई और स्वर्ग के दूसरे द्वार के बारे में क्या पता। यह तो कोई कोई प्रेम गुरु ही जान और समझ सकता है। मैंने एक हाथ से अपने सिर के बालों को झटका दिया और थोड़ी सी नीचे होकर श्याम के ऊपर लेट सी गई। मेरे बालों ने उसका मुँह ढक लिया। अब उसने मेरे नितम्बों को छोड़ दिया और मेरी कमर पकड़ ली। मैंने अपनी मुनिया को ऊपर नीचे रगड़ना चालू कर दिया। उसके होंठ तो उसके कामदंड के चारों और उगे छोए छोटे बालों पर जैसे पिस ही रहे थे।
आह… यह तो जैसे किसी अनुभूत नुस्खे की तरह था। मेरी मदनमणि उसके कामदंड से रगड़ खाने लगी। ओह … मैं तो जैसे प्रेम सुख के उस शिखर पर पहुँच गई जिसे चरमोत्कर्ष कहा जाता है। मैंने कोई 3-4 बार ही अपनी योनि का घर्षण किया होगा कि मैं एक बार फिर झड़ गई और फिर शांत होकर श्याम के ऊपर ही पसर गई। श्याम कभी मेरी पीठ सहलाता कभी मेरे नितम्ब और कभी मेरे सिर के बालों पर हाथ फिराता। इस आनंद के स्थान पर अगर मुझे कोई स्वर्ग का लालच भी दे तो मैं कभी ना जाऊं।
अचानक दीवाल घड़ी ने “कुहू … कुहू …” की आवाज निकली। हम दोनों ने चौंक कर घड़ी की ओर देखा। रात का 1:00 बज गया था। ओह हमारी इस रास लीला में एक घंटा कब बीत गया था हमें तो पता ही नहीं चला। मधुर मिलन के इन क्षणों में समय का किसे ध्यान और परवाह होती है।
मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि श्याम तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है। यह तो सच में कामदेव ही है। उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था। इस से पहले की मैं कुछ समझूँ उसने एक पलटी सी खाई और अब वो मेरे ऊपर आ गया। उसने धक्के लगाने चालू कर दिए। मैं तो बस यही चाह रही थी कि यह पल कभी समाप्त ही ना हों। हम दोनों एक दूसरे में समाये सारी रात इसी तरह किलोल करते रहें। मेरी मुनिया तो रस बहा बहा कर बावली ही हो गई थी। मुझे तो गिनती ही नहीं रही कि मैं आज कितनी बार झड़ी हूँ। मैंने अपनी मुनिया की फांकों को टटोल कर देखा था वो तो फूल कर या सूज कर मोटे पकोड़े जैसी हो चली थी।
“मीनू कैसा लग रहा है ?” श्याम ने पूछा।
“ओह मेरे कामदेव अब कुछ मत पूछो बस मुझे इसी तरह प्रेम किये जाओ … उम्ह …” और मैंने उसके होंठों को फिर चूम लिया।
“तुम थक तो नहीं गई ?”
“नहीं श्याम तुम मेरी चिंता मत करो। आह … इस प्रेम विरहन को आज तुमने जो सुख दिया है उसके आगे यह मीठी थकान और जलन भला क्या मायने रखती है !”
“ओह … मेरी प्रियतमा मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरी भी आज बरसों की चाहत और प्यास बुझी है … आह मेरी मीनू। मैं किस तरह तुम्हारा धन्यवाद करूँ मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं !”
उसके धक्के तेज होने लगे थे। जब उसका “वो” अन्दर जाता तो मेरी मुनिया संकोचन करती और वो जोर से ठुमका लगता। उन्हें तो अब जैसे हम दोनों की किसी स्वीकृति की कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। मैं जब उसे चूमती या मेरी मुनिया संकोचन करती तो उसका उत्साह दुगना हो जाता और वो फिर और जोर से धक्के लगाने लगता। मुझे लगने लगा था कि श्याम अपने आप को अब नहीं रोक पायेगा। मेरी मुनिया भी तो यही चाह रही थी। अब भला श्याम का “वो” अपनी मुनिया के मन की बात कैसे नहीं पहचानता। श्याम ने एक बार मुझे अपनी बाहों में फिर से जकड़ा और 4-5 धक्के एक सांस में ही लगा दिए। उसकी साँसें तेज हो रही थी और आँखें अनोखे रोमांच में डूबी थी। मेरी मुनिया तो पीहू पीहू बोल ही रही थी। मेरा शरीर एक बार फिर थोड़ा सा अकड़ा और उसने कामरस छोड़ दिया उसके साथ ही पिछले 40 मिनट से उबलता हुवा लावा फूट पड़ा और मोम की तरह पिंघल गया। अन्दर प्रेमरस की पिचकारियाँ निकल रही थी और मैं एक अनूठे आनंद में डूबती चली गई। सच कहूँ तो 4 साल बाद आज मुझे उस चरमोत्कर्ष का अनुभव हुआ था।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे। श्याम मेरे ऊपर से हटकर मेरी बगल में ही एक करवट लेकर लेट गया। मैं चित्त लेटी थी। मेरी जांघें खुली थी और मुनिया के मुँह से मेरा कामरस और श्याम के वीर्य का मिश्रण अब बाहर आने लगा था। उसका मुँह तो खुल कर ऐसे हो गया था जैसे किसी मरी हुई चिड़िया ने अपनी चोंच खोल दी हो। उसके पपोटे सूज कर मोटे मोटे हो गए थे और आस पास की जगह बिलकुल लाल हो गई थी। श्याम एकटक उसकी ओर देखे ही जा रहा था। अचानक मेरी निगाह उसे मिली तो मैं अपनी अवस्था देख कर शरमा गई और फिर मैंने लाज के मरे अपने हाथ से मुनिया को ढक लिया। श्याम मंद मंद मुस्कुराने लगा। कामराज और वीर्य निकल कर पलंग पर बिछी चादर को भिगो रहा था और साथ ही मेरी जाँघों और गुदा द्वार तक फ़ैल रहा था। मुझे गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे पैरों में तो इस घमासान के बाद जैसे इतनी शक्ति ही नहीं बची थी कि उठकर अपने कपड़े पहन सकूं। विवशता में मैंने श्याम की ओर देखा।
श्याम झट से उठ खड़ा हुआ और उसने मुझे गोद में उठा लिया। ओह… पता नहीं इन छोटी छोटी बातों को श्याम कैसे समझ जाता है। मैंने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी और अपनी आँखें फिर बंद कर ली। वो मुझे गोद में उठाये बाथरूम में ले आया और होले से नीचे होते फर्श पर खड़ा कर दिया। मेरी जांघें उस तरल द्रव्य से पिचपिचा सी गई थी। मुझे जोर से सु-सु भी आ रहा था और मुझे अपने गुप्तांगों की सफाई भी करनी थी। मैंने श्याम से बाहर जाने को कहना चाहती थी। पर इस बार पता नहीं श्याम मेरे मन की बात क्यों नहीं समझ रहा था। वह इतना भोला तो नहीं लगता कि उसे बाहर जाने को कहना पड़े। वो तो एकटक मेरी मुनिया को ही देखे जा रहा था।
अंतत: मुझे कहना ही पड़ा,”श्याम प्लीज तुम बाहर जाओ मुझे … मुझे … ?”
“ओह मेरी मैना अब इतना भी क्या शर्माना भला ?”
“हटो गंदे कहीं के … … ओह … तुम अब बाहर जाओ … देखो तुमने मेरी क्या हालत कर दी है ?” मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर बाहर की ओर धकेलना चाहा।
“मीनू एक और अनूठे आनंद का अनुभव करना चाहोगी ?”
“अनूठा आनंद ?” मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा कि वो सच कह रही थी। अचानक श्याम उठ बैठा। मुझे आश्चर्य हो रहा था वह इतनी देरी क्यों कर रहा है ? उसने मेरी जांघों को थोड़ा सा फैलाया। इससे मेरी मुनिया के दोनों योनी पट (फांकें) थोड़े से खुल गए और अन्दर से गुलाबी रंग झलकने लगा। पाँव रोटी की तरह फूली रोम विहीन कमसिन मुनिया का रक्तिम चीरा तो 3 इंच से कतई बड़ा नहीं था। पतली पतली दो गहरे लाल रंग की खड़ी रेखाएं। ऊपर गुलाबी रंग की मदनमणि चने के दाने जितनी। पूरी मुनिया काम रस में डूबी हुई ऐसे लग रही थी जैसे कोई शहद की कुप्पी हो और उसमें से शहद टपक रहो हो। अब तो वो रस बह कर मेरी दूसरे छिद्र को भी भिगो रहा था। ओह तुम समझ रही हो ना… मुझे क्षमा कर देना मुझे इनका नाम लेते हुए लाज भी आ रही है और…. और झिझक सी भी हो रही है।
अब श्याम ने अपने दोनों हाथों से मेरी मुनिया की मोटी मोटी संतरे जैसे गुलाबी फांकों को चौड़ा किया और फिर नीचे झुकते हुए अपने होंठ उन पर लगा दिए। मैं समझ गई वो अब मेरी मुनिया को चाटना चाहता है। मेरा दिल उत्तेजना से धक-धक करने लगा। मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी हो सकती थी, कर दी ताकि उसे मेरी मुनिया को चूसने में कोई दिक्कत ना हो। जैसे ही उसकी जीभ की नोक का स्पर्श मेरी मुनिया से हुआ मेरी तो किलकारी निकलते निकलते बची और उसके साथ ही मेरी मुनिया ने एक बार फिर अमृत की कुछ बूँदें छोड़ दी। काम के आवेग में मेरा रोम रोम पुलकित और काँप रहा था। मैंने उसका सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपनी मुनिया की ओर दबा दिया और उसके सिर के बाल इतनी जोर से खींचे की बालों का गुच्छा मेरे हाथों में ही आ गया। अब मुझे पता कि कुछ आदमी गंजे क्यों हो जाते हैं।
अब उसने अपनी जीभ मेरी मुनिया की दरार पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटनी शुरू कर दी। कभी वो होले से उन फांकों को अपने दांतों से दबाता और कभी अपनी जीभ को नुकीला कर मदनमणि को चुभलाता। मेरी मुनिया तो कामरस छोड़ छोड़ का बावली हुई जा रही थी। अब उसने मेरी मुनिया को पूरा अपने मुँह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाई। मेरी मीठी सीत्कार निकल गई। जिस अंग से वो खिलवाड़ कर रहा था और मुँह लगा कर यौवन का रस चूस रहा था किसी भी स्त्री के लिए सबसे अधिक संवेदनशील अंग होता है जिसके प्रति हर स्त्री सदैव सजग रहती है। पर इस छुवन और चूसने के आनंद के आगे किसी स्वर्ग का सुख भी कोई अर्थ नहीं रखता।
मेरी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। वो मेरी मुनिया को रस भरी कुल्फी की तरह चूसे जा रहा था। अब उसने मेरी मदनमणि के दाने को अपने दांतों के बीच दबा लिया। यह तो किसी भी युवा स्त्री का जादुई बटन होता है। मेरी तो किलकारी ही गूँज उठी पूरे कमरे में। अब उसने अपनी एक अंगुली मेरे रति द्वार के अन्दर डाल दी। पहले एक पोर डाला उसे थोड़ा सा अन्दर किया फिर घुमाया और फिर होले से थोड़ा अन्दर किया। मैं तो चाह रही थी कि वह एक ही झटके में पूरी अंगुली अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करे पर मैं भला उसे अपने मुँह से कैसे कह सकती थी। मैं तो मारे उत्तेजना और रोमांच के जैसे मदहोश ही हो रही थी। मुझे तो लग रहा था कि मैं अपना नियंत्रण खो रही हूँ। मैं कभी अपने पैर थोड़े उठाती कभी नीचे करती और कभी उसकी गरदन के दोनों और लपेट लेती। मेरे मुँह से विचित्र सी ध्वनि और आवाजें निकल रही थी आह… ओईईइ …… इस्स्स्सस्स्स …… ओह …… मेरे श्याम… अब बस करो नहीं तो मैं बेहोश हो जाउंगी… आह्ह्हह्ह।”
एक तेज और मीठी सी आग जैसे मेरे अन्दर भड़कने लगी थी। मेरी मुनिया तो लहरा लहरा कर अपना रस बहा रही थी। मेरी मुनिया से निकले रस को पीने के बाद श्याम के लिए अब अपने ऊपर नियंत्रण रखना कठिन ही नहीं असंभव हो गया था। स्त्री अपनी कामेच्छा को रोक पाने में कुछ सीमा तक अवश्य सफल हो जाती है पर पुरुष के लिए ऐसा कर पाना कतई संभव नहीं होता। उसे भी अब लगने लगा होगा कि अगर अब इन दोनों (अरे बाबा चूत और लंड) का मिलन नहीं करवाया गया तो उसका ये कामदंड अति कामवेग से फट जाएगा।
श्याम अभी मेरी मुनिया को और चूसना चाहता था उसका मन अभी भरा नहीं था पर वो भी अपने कामदंड की अकड़न और विद्रोह के आगे विवश था। उसने मेरी मुनिया से अपना मुँह हटा लिया और फिर मेरे ऊपर आते हुए मेरे अधरों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। आह … एक नमकीन और नारियल पानी जैसे स्वाद और सुगंध से मेरा मुँह भर गया। अब श्याम ठीक मेरे ऊपर था। उसका कामदंड मेरी मुनिया के ऊपर ऐसे लगा था जैसे कोई लोहे की छड़ मुझे चुभ रही हो। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी थी। अब मैंने अपने एक हाथ से उसका कामदंड पड़कर अपने रतिद्वार के छिद्र के ठीक ऊपर लगा लिया और दूसरे हाथ से उसकी कमर पकड़ ली ताकि वो कहीं इधर उधर ना हो जाए। श्याम अब इतना भी अनाड़ी नहीं था कि आगे क्या करना है, ना जानता हो।
यह वो सुनहरा पल था जिसकी कल्पना मात्र से ही युवा पुरुष और स्त्री रोमांच से लबालब भर जाते हैं, मैं प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी साँसें रोक कर उस पल की प्रतीक्षा करने लगी जब उसका कामदंड मेरी मुनिया के अन्दर समां कर मेरी बरसों की प्यास को अपने अमृत से सींच देगा। उसने धीरे से एक धक्का लगा दिया। आह … जैसे किसी शहद की कटोरी में कोई अपनी अंगुली अन्दर तक डाल दे उसका कामदंड कोई 4-5 इंच तक चला गया। एक मीठी सी गुदगुदी, जलन और कसक भरी चुन्मुनाती मिठास से जैसे मेरी मुनिया तो धन्य ही हो गई। श्याम ने दो धक्के और लगाए तो उनका पूरा का पूरा 7″ लम्बा कामदंड जड़ तक मेरी मुनिया के अन्दर समां गया। मैं तो जैसे स्वर्ग में ही पहुँच गई। मेरी मुनिया ने अन्दर ही संकोचन किया तो उनके कामदंड ने भी ठुमका लगा दिया। मेरी जांघें अपने आप थोड़ी सी भींच गई और एक मीठी सी सीत्कार मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी निकल गई।
श्याम ने मेरे अधरों को चूसना शुरू कर दिया। उसका एक हाथ मेरी गरदन के नीचे था और दूसरे हाथ से मेरे उरोज को दबा और सहला रहा था। उसने अब 3-4 धक्के लगातार लगा दिए। मेरा शरीर थोड़ा सा अकड़ा और मुनिया ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया। अब तो उसका कामदंड बड़ी सरलता से अन्दर बाहर होने लगा था। मुनिया से फच फच की आवाजें आनी चालू हो गई थी। इस मधुर संगीत को सुनकर तो हम दोनों ही रोमांच के सागर में डूब गए थे। जैसे ही वह मेरे उरोज दबाता और अधरों को चूसता तो मैं भी नीचे से धक्का लगा देती।
अब उसने अपने घुटने थोड़े से मोड़ लिए थे और उकडू सा हो गया था। उसके दोनों पैर मेरे दोनों नितम्बों के साथ लगे थे और उसका भार उसकी कोहनियों और घुटनों पर था। ओह … शायद वह यह सोच रहा था कि इतनी देर तक मैं उसका भार सहन नहीं कर पाउंगी। प्रेम मिलन में अपने साथी का इतना ख्याल तो बस प्रेम कला में निपुण व्यक्ति ही रख सकता है। श्याम तो पूरा प्रेम गुरु था। इसी अवस्था में उसने कोई 7-8 मिनट तक हमारा प्रेम मिलन कहूं या प्रेमयुद्ध चालू रहा। फिर वो धक्के बंद करके मेरे ऊपर लेट सा गया। अब मैंने अपनी जांघें चौड़ी करने का उपक्रम किया तो वो उठा बैठा। उसने मेरे नितम्बों के नीचे दो तकिये लगा दिए और मेरे पैर अपने कन्धों पर रख लिए। सच पूछो तो मेरे लिए तो यह नितान्त नया अनुभव ही था। अब उसने मेरी जाँघों को अपने हाथों में पकड़ लिया और फिर से अपना कामदंड मेरी मुनिया में डाल दिया। धक्के फिर चालू हो गए। उसने अपने एक हाथ से मेरा उरोज पकड़ लिया और उसे दबाने और मसलने लगा। मेरे मुँह से मीठी सीत्कारें निकल रही थी और वो भी गुन… गुर्र्रर … की आवाजें निकाल रहा था।
8-10 मिनट टांगें ऊपर किये किये धक्के खाने से मेरी कमर दुखने सी लगी थी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलती उसने धीरे से मेरी जांघें छोड़ कर मेरे पैर नीचे कर दिए। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मेरे मन की बात वो इतनी जल्दी कैसे समझ लेता है। वो अब मेरे ऊपर लेट सा गया। मैंने झट से उसे अपनी बाहों में भर कर जकड़ लिया और उसके होंठों को चूमने लगी। कामदंड अब भी मुनिया के अन्दर समाया था। भला उन दोनों को हमारे ऊपर नीचे होने से क्या लेना देना था।
मेरा मन अन्दर से चाह रहा था कि अब एक बार मैं ऊपर आ जाऊं और श्याम मेरे नीचे हों। ओह … मैं भी कितनी लज्जाहीन और उतावली हो चली थी। मैं इससे पहले कभी इतनी मुखर (लज्जा का त्याग) कभी नहीं हुई थी। मैंने अपनी आँखें खोली तो श्याम मेरी ओर ही देख रहा था जैसे। मैं कुछ बोलना चाह रही थी पर इससे पहले कि मैं कुछ बोलूँ या करूँ, श्याम ने कहा,”मीनू क्या एक बार तुम ऊपर नहीं आओगी ?”
अन्दर से तो मैं भी कब का यही चाह रही थी। मुझे तो मन मांगी मुराद ही मिल गई थी जैसे। मैंने हाँ में अपनी आँखें झपकाई और श्याम को एक बार फिर चूम लिया। अब हमने आपस में गुंथे हुए ही एक पलटी मारी और अब श्याम नीचे था और मैं उसके ऊपर। मैंने अपने घुटने मोड़ कर उसकी कमर के दोनों ओर कर दिए थे। मेरे दोनों हाथ उसके छाती पर लगे थे। अब मैंने अपनी मुनिया की ओर देखा। हाय राम…… उसका “वो” पूरा का पूरा मेरी मुनिया में धंसा हुआ था। मेरी मुनिया का मुँह तो ऐसे खुल गया था जैसे किसी बिल्ली ने एक मोटा सा चूहा अपने छोटे से मुँह में दबा रखा हो। उसकी फांकें तो फ़ैल कर बिल्कुल लाल और पतली सी हो गई थी। मैंने अपने शरीर को धनुष की तरह पीछे की ओर मोड़ा तो मुझे अपनी मुनिया के कसाव का अनुमान हुआ। उनका “वो” तो बस किसी खूंटे की तरह अन्दर मेरी योनि की गीली और नर्म दीवारों के बीच फंसा था। अब मैं फिर सीधी हो गई और थोड़ी सी ऊपर होकर फिर नीचे बैठ गई। उसके कामदंड ने फिर ठुमका लगाया। मेरी मुनिया भला क्यों पीछे रहती उसने मुझे 4-5 धक्के लगाने को विवश कर ही दिया।
मैंने अपने सिर के बालों को एक झटका दिया। ऐसा करने से मेरे खुले बाल मेरे चहरे पर आ गए। श्याम ने अपने एक हाथ से मेरे नितम्ब सहलाने चालू कर दिए। जब उसकी अंगुलियाँ मेरे नितम्बों की खाई में सरकने लगी तो मुझे गुदगुदी सी होने लगी। किसी पराये पुरुष का यह पहला स्पर्श था मेरे नितम्बों की खाई पर। मनीष ने तो कभी ठीक से इन पर हाथ भी नहीं फिराया था भला उस अनाड़ी को इस रहस्यमयी खाई और स्वर्ग के दूसरे द्वार के बारे में क्या पता। यह तो कोई कोई प्रेम गुरु ही जान और समझ सकता है। मैंने एक हाथ से अपने सिर के बालों को झटका दिया और थोड़ी सी नीचे होकर श्याम के ऊपर लेट सी गई। मेरे बालों ने उसका मुँह ढक लिया। अब उसने मेरे नितम्बों को छोड़ दिया और मेरी कमर पकड़ ली। मैंने अपनी मुनिया को ऊपर नीचे रगड़ना चालू कर दिया। उसके होंठ तो उसके कामदंड के चारों और उगे छोए छोटे बालों पर जैसे पिस ही रहे थे।
आह… यह तो जैसे किसी अनुभूत नुस्खे की तरह था। मेरी मदनमणि उसके कामदंड से रगड़ खाने लगी। ओह … मैं तो जैसे प्रेम सुख के उस शिखर पर पहुँच गई जिसे चरमोत्कर्ष कहा जाता है। मैंने कोई 3-4 बार ही अपनी योनि का घर्षण किया होगा कि मैं एक बार फिर झड़ गई और फिर शांत होकर श्याम के ऊपर ही पसर गई। श्याम कभी मेरी पीठ सहलाता कभी मेरे नितम्ब और कभी मेरे सिर के बालों पर हाथ फिराता। इस आनंद के स्थान पर अगर मुझे कोई स्वर्ग का लालच भी दे तो मैं कभी ना जाऊं।
अचानक दीवाल घड़ी ने “कुहू … कुहू …” की आवाज निकली। हम दोनों ने चौंक कर घड़ी की ओर देखा। रात का 1:00 बज गया था। ओह हमारी इस रास लीला में एक घंटा कब बीत गया था हमें तो पता ही नहीं चला। मधुर मिलन के इन क्षणों में समय का किसे ध्यान और परवाह होती है।
मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि श्याम तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है। यह तो सच में कामदेव ही है। उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था। इस से पहले की मैं कुछ समझूँ उसने एक पलटी सी खाई और अब वो मेरे ऊपर आ गया। उसने धक्के लगाने चालू कर दिए। मैं तो बस यही चाह रही थी कि यह पल कभी समाप्त ही ना हों। हम दोनों एक दूसरे में समाये सारी रात इसी तरह किलोल करते रहें। मेरी मुनिया तो रस बहा बहा कर बावली ही हो गई थी। मुझे तो गिनती ही नहीं रही कि मैं आज कितनी बार झड़ी हूँ। मैंने अपनी मुनिया की फांकों को टटोल कर देखा था वो तो फूल कर या सूज कर मोटे पकोड़े जैसी हो चली थी।
“मीनू कैसा लग रहा है ?” श्याम ने पूछा।
“ओह मेरे कामदेव अब कुछ मत पूछो बस मुझे इसी तरह प्रेम किये जाओ … उम्ह …” और मैंने उसके होंठों को फिर चूम लिया।
“तुम थक तो नहीं गई ?”
“नहीं श्याम तुम मेरी चिंता मत करो। आह … इस प्रेम विरहन को आज तुमने जो सुख दिया है उसके आगे यह मीठी थकान और जलन भला क्या मायने रखती है !”
“ओह … मेरी प्रियतमा मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरी भी आज बरसों की चाहत और प्यास बुझी है … आह मेरी मीनू। मैं किस तरह तुम्हारा धन्यवाद करूँ मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं !”
उसके धक्के तेज होने लगे थे। जब उसका “वो” अन्दर जाता तो मेरी मुनिया संकोचन करती और वो जोर से ठुमका लगता। उन्हें तो अब जैसे हम दोनों की किसी स्वीकृति की कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। मैं जब उसे चूमती या मेरी मुनिया संकोचन करती तो उसका उत्साह दुगना हो जाता और वो फिर और जोर से धक्के लगाने लगता। मुझे लगने लगा था कि श्याम अपने आप को अब नहीं रोक पायेगा। मेरी मुनिया भी तो यही चाह रही थी। अब भला श्याम का “वो” अपनी मुनिया के मन की बात कैसे नहीं पहचानता। श्याम ने एक बार मुझे अपनी बाहों में फिर से जकड़ा और 4-5 धक्के एक सांस में ही लगा दिए। उसकी साँसें तेज हो रही थी और आँखें अनोखे रोमांच में डूबी थी। मेरी मुनिया तो पीहू पीहू बोल ही रही थी। मेरा शरीर एक बार फिर थोड़ा सा अकड़ा और उसने कामरस छोड़ दिया उसके साथ ही पिछले 40 मिनट से उबलता हुवा लावा फूट पड़ा और मोम की तरह पिंघल गया। अन्दर प्रेमरस की पिचकारियाँ निकल रही थी और मैं एक अनूठे आनंद में डूबती चली गई। सच कहूँ तो 4 साल बाद आज मुझे उस चरमोत्कर्ष का अनुभव हुआ था।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे। श्याम मेरे ऊपर से हटकर मेरी बगल में ही एक करवट लेकर लेट गया। मैं चित्त लेटी थी। मेरी जांघें खुली थी और मुनिया के मुँह से मेरा कामरस और श्याम के वीर्य का मिश्रण अब बाहर आने लगा था। उसका मुँह तो खुल कर ऐसे हो गया था जैसे किसी मरी हुई चिड़िया ने अपनी चोंच खोल दी हो। उसके पपोटे सूज कर मोटे मोटे हो गए थे और आस पास की जगह बिलकुल लाल हो गई थी। श्याम एकटक उसकी ओर देखे ही जा रहा था। अचानक मेरी निगाह उसे मिली तो मैं अपनी अवस्था देख कर शरमा गई और फिर मैंने लाज के मरे अपने हाथ से मुनिया को ढक लिया। श्याम मंद मंद मुस्कुराने लगा। कामराज और वीर्य निकल कर पलंग पर बिछी चादर को भिगो रहा था और साथ ही मेरी जाँघों और गुदा द्वार तक फ़ैल रहा था। मुझे गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे पैरों में तो इस घमासान के बाद जैसे इतनी शक्ति ही नहीं बची थी कि उठकर अपने कपड़े पहन सकूं। विवशता में मैंने श्याम की ओर देखा।
श्याम झट से उठ खड़ा हुआ और उसने मुझे गोद में उठा लिया। ओह… पता नहीं इन छोटी छोटी बातों को श्याम कैसे समझ जाता है। मैंने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी और अपनी आँखें फिर बंद कर ली। वो मुझे गोद में उठाये बाथरूम में ले आया और होले से नीचे होते फर्श पर खड़ा कर दिया। मेरी जांघें उस तरल द्रव्य से पिचपिचा सी गई थी। मुझे जोर से सु-सु भी आ रहा था और मुझे अपने गुप्तांगों की सफाई भी करनी थी। मैंने श्याम से बाहर जाने को कहना चाहती थी। पर इस बार पता नहीं श्याम मेरे मन की बात क्यों नहीं समझ रहा था। वह इतना भोला तो नहीं लगता कि उसे बाहर जाने को कहना पड़े। वो तो एकटक मेरी मुनिया को ही देखे जा रहा था।
अंतत: मुझे कहना ही पड़ा,”श्याम प्लीज तुम बाहर जाओ मुझे … मुझे … ?”
“ओह मेरी मैना अब इतना भी क्या शर्माना भला ?”
“हटो गंदे कहीं के … … ओह … तुम अब बाहर जाओ … देखो तुमने मेरी क्या हालत कर दी है ?” मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर बाहर की ओर धकेलना चाहा।
“मीनू एक और अनूठे आनंद का अनुभव करना चाहोगी ?”
“अनूठा आनंद ?” मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।