छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:28

गतांक से आगे .........................

20 एप्रिल 2008, से लेकर 26 सेप्टेंबर 2008 तक, कोई 5 महीनो में, मेरे साथ इतना कुछ हो गया और मेरी हँसती खेलती जींदगी बर्बाद हो गयी. वो 26 सेप्टेंबर का ही दिन था जिस दिन दीप्ति मुझे अपनी इतनी लंबी कहानी शुना रही थी.

उस दिन दीप्ति के जाने के बाद मैं अंदर ही अंदर गहरे विचारो में खो गयी. मुझे भी अब ये बात परेशान कर रही थी कि आख़िर बात क्या है.

अचानक मुझे याद आया कि बिल्लू ने कयि बार मुझ से कहा था कि तुम्हे वक्त आने पर सब कुछ पता चल जाएगा. आख़िर क्या पता छल्लेगा मुझे, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ??

मुझे बस इतना ही पता चला था कि संजय और विवेक बिल्लू को जानते थे, क्यो जानते थे, उनकी क्या जान पहचान थी, इशके बारे में मैं किसी भी नतीज़े पर नही पहुँच पा रही थी.

वही वो पल था जीशमें की मैने अपनी छोटी सी भूल को एक डाइयरी में लिखने का फैंसला किया, ताकि उसे पढ़ कर बाद में किसी नतीज़े पर पहुँचा जा सके.

पर अगले ही दिन यानी के 27 सेप्टेंबर को घर पर डाइवोर्स के पेपर आ गये और मैं टूट कर बिखर गयी और कुछ भी नही लिख पाई. दिन रात अपने कमरे में पड़े पड़े मैं आँसू बहाती रही. इशके अलावा कर भी क्या सकती थी. जो पाप मैने किया था उशी की सज़ा तो मुझे मिल रही थी.

मुझे अंदेशा तो था कि संजय शायद ऐसा ही करेंगे और मैं खुद को मेंटली प्रिपेर भी कर रही थी, पर फिर भी जब वाकाई में ऐसा हो गया तो आंशुओं को रोकना मुश्किल हो गया. खुद से ज़्यादा में चिंटू के लिए परेशान थी, मेरे कारण वो अपने पापा के प्यार से जुदा होने जा रहा था.

आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं पीछले चार दीनो से ये डाइयरी लिख रही हूँ. जब पीछले हफ्ते 29 डिसेंबर 2008 को संजय से डाइवोर्स हो गया तो कुछ समझ नही आया कि क्या करूँ. बार बार अपनी किशमत को रो रही हूँ.

2 जन्वरी को मैं यू ही परेशान बैठी थी कि अचानक मुझे अपनी टेबल पर एक डाइयरी दीखाई दी और मैने एक पेन उठाया और अपनी दर्द भारी दास्तान लीखनी शुरू कर दी.

आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं मुंबई में हूँ. चिंटू अपने नाना नानी के साथ देल्ही में है. अभी 15 दिन ही हुवे है मुझे यहा आए, इसलिए यहा बिल्कुल मन नही लग रहा. यहा सेट्ल हो कर चिंटू को थोड़े दीनो बाद ले आउन्गि

दीप्ति ने मुझे बताया था कि उनकी कंपनी की सिस्टर क्न्सर्न ज़ेडको प्राइवेट लिमिटेड में असिश्टेंट मॅनेजर की पोस्ट खाली है, तुम चाहो तो जाय्न कर लो. पर तुम्हे मुंबई जाना पड़ेगा.

मैने बहुत सोचने के बाद जाय्न करने का फ़ैसला कर लिया और इस तरह मैं मुंबई आ गई. अब मुझे चिंटू के लिए तो जीना ही था इसलिए मैने जाय्न करना ठीक समझा. कंपनी ने मेरे रहने के लिए कोलाबा में एक फ्लॅट दे दिया है पर इतने बड़े घर में मुझे बहुत अकेला महसूष हो रहा है.

अभी अभी ऑफीस से आई हूँ और पहली बार इतना काम करके थक गयी हूँ. थोड़ा फ्रेश होने के बाद आगे की कहानी लीखूँगी.

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उस दिन यानी के 26 सेप्टेंबर 2008 को जाते जाते दीप्ति ने पूछा, यार एक बात पूछनी थी, बुरा तो नही मानोगी ?

मैने कहा, “पूछो ना, मैं बुरा क्यो मानूँगी”

“एक बात बताओ, बिल्लू में ऐसा क्या था जो की तुम उशके चक्कर में पड़ गयी, क्या तुम भी उन लॅडीस की तरह हो जीनके लिए लिंग का साइज़ इंपॉर्टेंट है, ना कि पति का प्यार ??

“कैसी बात कर रही हो दीप्ति, छी, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो” ---------- मैने थोड़ा गुस्से में कहा.

“तभी पूछ रही थी कि तुम बुरा तो नही मानोगी, सॉरी इफ़ आइ हर्ट यू” ---- दीप्ति ने सॉरी फील करते हुवे कहा.

“दीप्ति….., बिल्लू देखने में बहुत भोला भला और शरीफ सा लगता था और काफ़ी स्मार्ट भी था, हां उसकी बातें ज़रूर बहुत गंदी होती थी, और सच बताउ तो मुझे खुद अभी तक नही पता कि मुझे क्या हो गया था कि मैं उशके साथ पाप के दलदल में डूबती चली गयी, और शायद मैं ये कभी जान भी ना पाउ”

“ह्म्म… अछा ठीक है, सॉरी टू हर्ट यू, मैं अब चलती हूँ, ऑफीस का कुछ काम भी करना है. तुम अब किसी बात की चिंता मत करो. बुरे से बुरा वक्त भी बीत जाता है. देखना ख़ुसीया फिर से आएँगी. भगवान ने दिन और रात यू ही नही बनाए है. ना हमेशा दिन होता है और ना हमेशा रात रहती है” ---- दीप्ति मेरे सर पर हाथ रख कर बोली.

मैने कहा, “पर दुनिया में ऐसी भी काई जगह है, जहाँ कि कयि महीनो तक सूरज नही दिखता”

“होगी ऐसी जगह, पर तुम वाहा नही हो समझी, कम ऑन, अंड हॅंग ऑन, यू विल सी दट, सूनर ओर लेटर थिंग्स आर गेटिंग बेटर” ----- दीप्ति ने मेरी पीठ तप-थपाते हुवे कहा.

“… ठीक है, देखते है, थॅंक्स फॉर बीयिंग सच ए नाइस फ्रेंड” --------- मैने दीप्ति का हाथ पकड़ कर कहा.

“मैं कल मनीष से मिल कर उसको इस काम पर लगा दूँगी, और जैसे ही कुछ पता चलेगा तुम्हे फोन करूँगी” ------- दीप्ति ने कहा.

मैने पूछा, “क्या तुम मनीष को सब कुछ बता दोगि”

“तुम चिंता मत करो, मनीष ईज़ ए नाइस मॅन, पर मैं उशे जितना ज़रूरी है उतना ही बताउन्गि, बाकी वो डीटेक्टिव है, तुम तो जानती ही हो” --- दीप्ति ने कहा

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:29

मैने कहा, “ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो, पर मेरी बात ध्यान रखना, मेरा नाम नही आना चाहिए”

“ओक ऋतु, मैं ध्यान रखूँगी, तुम्हे फोन करके सब कुछ बताती रहूंगी, डॉन’ट वरी अबौट एनितिंग” – दीप्ति ने जाते हुवे कहा.

मैने कहा, “ओक बाइ-बाइ, मुझे बहुत अछा लगा कि तुम आई, पर तुम्हारी ट्रॅजिडी सुन कर थोड़ा दुख भी हुवा, फोन करती रहना”

दीप्ति चली गयी और जैसा की मैने पहले कहा, उसके जाने के बाद मैं गहरे विचारो में खो गयी

फरीदाबाद में तो संजय ने लॅंडलाइन लगवाया हुवा था, इसलिए कभी मोबाइल लेने की ज़रूरत ही नही पड़ी. पर वाहा देल्ही में पापा ने मुझे अपना मोबाइल दे दिया था और खुद दूसरा खरीद लिया था. वही नंबर मैने दीप्ति को दे दिया था.

अगले दिन जब संजय ने डाइवोर्स पेपर भेजे तो मैने उन्हे अपने मोबाइल से ही फोन किया था, पर उन्होने एक बार भी मेरा फोन नही उठाया.

कुछ दिन यू ही बीत गये. मैं अक्सर अपने कमरे में ही पड़ी रहती थी. एक बार चिंटू खेलता खेलता मेरे पास आया और बोला, “हम अपने घर कब जाएँगे”

ये ऐसा सवाल था जीशका की मेरे पास कोई जवाब नही था.

मैने उशे कहा, “तुम खेलो बेटा, अभी हम कुछ दिन यही रहेंगे”

और वो वाहा से खेलता हुवा भाग गया. वो तो वैसे भी वाहा खुस ही था, उसे वाहा स्कूल जो नही जाना पड़ रहा था.

पर क्योंकि संजय ने डेवोर्स केस कर दिया था इसीलिए मैने उशे वही, देल्ही में ही एक स्कूल में अड्मिट करवा दिया. मैं नही चाहती थी कि उसकी स्कूलिंग में ब्रेक आए.

10 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया, उसने जो बताया वो मुझे और ज़्यादा सोचने पर मजबूर कर गया.

“ऋतु तुमने कहा था ना कि बिल्लू रिक्शा भी चलाता है” ---- दीप्ति ने पूछा

“हां कहा था, क्यो क्या हुवा” ---- मैने हैरानी में पूछा

“ मनीष ने फरीदाबाद में तुम्हारे घर के आश् पास रिक्से वालो से बात की थी, उनके अनुशार वाहा कोई बिल्लू नाम का रिक्सा चलाने वाला नही है”

मैने हैरानी में पूछा, “ क्या !! ऐसा कैसे हो सकता है ? एलेक्ट्रिक शॉप और उशके घर पर पता किया”

“वो घर उसका नही था, वो वाहा मार्च 2008 से रेंट पर रह रहा था. पदोषियों को उशके बारें में कुछ नही पता. लोगो के अनुशार वो गुम शुम, चुपचाप रहने वाला लड़का था, ज़्यादा लोगो से बात नही करता था, इसीलिए किसी को उशके बारे में नही पता. हां लोगो ने ये ज़रूर बताया कि बिल्लू एक बार रिक्से में किसी खुब्शुरत लड़की को लाया था. शायद वो उशी दिन की बात होगी जब वो तुम्हे अपने घर ले गया था. उशके मकान मालिक ने बताया कि बिल्लू ने मकान ये कह कर लिया था कि कोई 5 या 6 महीनो के लिए चाहिए, उशके बाद वो वापस देल्ही चला जाएगा.अब देल्ही में वो कहा रहता था, क्या करता था अभी कुछ नही पता.” --- दीप्ति ने कहा.

मैं ये सब सुन कर चोंक गयी थी

मैने दीप्ति से पूछा, “और कुछ पता चला या फिर बस इतना ही पता चला है”

“हाँ, हां पूरी बात तो सुनो” --- दीप्ति ज़ोर से बोली.

“उशके कमरे में मनीष को एक डाइयरी मिली है. डाइयरी में एक पेपर पर संजय का नाम पता सब कुछ लिखा है. और तो और उस में विवेक का भी नाम पता लिखा है. हैरानी की बात ये है कि पूरी डाइयरी में बस उन दोनो का ही नाम, पता है” ----- दीप्ति ने कहा

“अछा और कोई बात भी है क्या डाइयरी में” ? --- मैने उत्शुकता में पूछा

“उस में संजय के क्लिनिक और घर का पूरा अड्रेस लिखा हुवा है, पता नही इश्का क्या मतलब है. खैर ये तो हम जानते ही थे कि संजय बिल्लू को जानता है, ये बात अब कन्फर्म भी हो गयी. पर सबसे बड़ी बात सुनो” --- दीप्ति ने कहा.

मैने कहा, “हां शुनाओ”

दीप्ति ने डीटेल में कहा “डाइयरी में तुम्हारे बारे में, संजय के बारे में और चिंटू के बारे में कुछ डीटेल लिखी थी. लिखा है कि संजय सुबह किस वक्त क्लिनिक जाता है, किस वक्त लंच करने आता है, और किस वक्त तक शाम को घर वापस आता है. चिंटू के बारे में लीखा है कि किस वक्त स्कूल जाता है, और किस वक्त दोपहर को वापस आता है. चिंटू के स्कूल का अड्रेस भी लिखा है.तुम्हारे बारे में काफ़ी डीटेल लीखी थी. जैसे कि तुम किस वक्त दोपहर को किचन की खिड़की से झाँकति हो, कौन से ब्यूटी पार्लर जाती हो, कब अक्सर संजय के साथ शाम को घूमने जाती हो….. इत्यादि, मतलब की उसने तुम्हारे घर का डेली रुटीन चार्ट बना रखा है”

मैने हैरानी में पूछा, “ यार ये सब उसने कहा से पता किया होगा”

दीप्ति बोली, “आगे तो शुनो”

मैने कहा, “हां, हां शुनाओ”

“डाइयरी में लाल अक्षरो में एक बात लिखी थी, जीशका की मतलब अभी क्लियर नही हो रहा. मनीष के अनुशार वो इंशानी खून से लीखी थी” दीप्ति ने कहा

“क्या लिखा था बताओ तो सही” ---- मैने ज़ोर से पूछा

दीप्ति ने कहा, लिखा था कि “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मारना होगा”

“इसका क्या मतलब है दीप्ति, कुछ समझ नही आया” ---- मैने हैरानी में दीप्ति से पूछा.

“वही तो मैं कह रही थी, अभी कुछ नही पता, लेकिन मनीष पूरी कोशिस कर रहा है, वो इस राज की गहराई तक जा कर रहेगा. पर तुम ये देखो मैं कह रही थी ना की कही ना कही कुछ भारी गड़बड़ ज़रूर है” ---- दीप्ति बोली.

“हां यार पर मुझे अब बहुत डर लग रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे की मैं किशी क्रिमिनल के साथ इन्वॉल्व थी” ---- मैने दीप्ति से कहा.

“अगर वो क्रिमिनल था तो, वो मर चुका है, फिर अब डरने की क्या बात है” ---- दीप्ति ने मुझे दिलासा देते हुवे कहा.

मैने पूछा “और वो एलेक्ट्रिक शॉप वाहा कुछ पता चला”


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:29

वही बता रही हूँ, “वाहा भी वो नया नया ही लगा था. शॉप ओनर को उशके बारे में कुछ नही पता. ओनर ने बताया कि उन्होने न्यूसपेपर में एक एलेक्ट्रीशियन के लिए अड्वर्टाइज़्मेंट निकाली थी, बिल्लू सबसे पहले आ गया और उन्होने उशे रख लिया. उन्हे तो उशके घर तक का नही पता. ओनर ने भी यही बताया कि वो बहुत कम बोलता था और अक्सर चुपचाप रहता था. पर वो उशके काम से खुस नही थे, क्योंकि उनके अनुशार वो अक्सर शॉप से गायब रहता था.”

ये सब सुन कर मैं हैरान रह गयी. ये ज़रूर था कि इन बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँचा जा सकता था. हां पर ये बात ज़रूर अजीब लग रही थी कि वो नया नया ही फरीदाबाद में आया था. क्या वो देल्ही से ही था. क्या वो देल्ही से ही मुझे जानता था, ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मुझे बार बार परेशान कर रहे थे.

मैं हैरान थी कि लोगो के अनुशार वो गुम शुम चुपचाप रहता था, पर मेरे साथ तो बहुत ही बे-हुदा बकवास करता था, आख़िर क्यो ? मेरे लिए बिल्लू एक रहश्य बनता जा रहा था.

मुझे अब बिल्लू कोई बहुत ही ख़तरनाक मुजरिम मालूम हो रहा था. मैने मन ही मन में सोचा की अछा हुवा कि वो मारा गया, ऐसे कामीनो की इस दुनिया में कोई जगह नही है.

दीप्ति ने कहा, “ऋतु, बस इतना ही पता चला है अभी तक. मनीष बहुत मेहनत कर रहा है, कह रहा था कि जल्दी ही वो इस राज की गहराई तक पहुँच जाएगा”

“अब तो मुझे भी लग रहा है कि अछा किया तुमने मनीष को ये काम दे कर. सच में अब तो सॉफ हो गया है कि दाल में कुछ काला ज़रूर है” --- मैने गंभीरता से कहा

“कुछ काला नही, मुझे तो पूरी दाल ही काली लग रही है. खैर तुम चिंता मत करो, मेरा जेम्ज़ बॉन्ड सब कुछ पता करके जल्दी ही बता देगा” --- दीप्ति ने कहा

मैने हंसते हुवे पूछा, “ मेरा मतलब, लगता है तुम्हे उस से प्यार हो गया है, है ना”

“ह्म्म… पता नही यार बट आइ लाइक हिम वेरी मच” --- डिप्टी सोचते हुवे बोली.

मैने कहा, “ ओके, अछा ये बताओ तुम्हे क्या लगता है कि क्या बात हो सकती है.”

“पहले तुम ये बताओ कि क्या वो विवेक वकील है” ? --- दीप्ति ने पूछा.

“ हां है तो सही, पर क्यो” ----- मैने हैरानी में पूछा.

अरे पागल याद कर वो खून में लीखी बात, “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- दीप्ति ज़ोर से बोली.

“ओह नो, क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रही हूँ” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“तुम्हारा तो पता नही पर मुझे लगता है कि डॉक्टर का मतलब है संजय और वकील का मतलब है विवेक. मुझे जल्द से जल्द ये बात मनीष को बतानी होगी कि विवेक, वकील है, उसका काम आसान हो जाएगा” --- दीप्ति ने कहा

“मैने कहा, हां में भी यही सोच रही हूँ पर यार तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो कि उस लीख़ावट का मतलब संजय और विवेक से ही है” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“पूरी डाइयरी में बस संजय और विवेक की ही डीटेल है और क्या चाहिए यकीन करने के लिए. अछा मैं फोन रखती हूँ, मनीष को ये बात बतानी ज़रूरी है कि विवेक वकील है, बाद में बात करेंगे” ---- दीप्ति ने बाइ करते हुवे कहा.

दीप्ति जाते जाते मुझे बहुत सारे सवाल दे गयी. मैं सारा दिन यही सब सोचती रही

16 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया

वो बोली, “ ऋतु, मनीष इस राज की गहराई तक पहुँचने वाला है. उसने मुझे कहा है कि कल तक सारी बात पता चल जाएगी. बस एक दिन की बात है और सचाई हमारे सामने होगी.

मैने कहा, “ ठीक है, मैं कल का बेशबरी से इंतेज़ार करूँगी, मैं बार बार सब कुछ सोच कर परेशान हो रही हूँ. जब तक मुझे पूरी बात पता नही चलती तब तक मुझे चैन नही आएगा.

दीप्ति बोली, “ठीक है फिर, कल का इंतेज़ार करो”

दीप्ति ने फोन रख दिया और मैं बे-सबरी से कल का इंतेज़ार करने लगी.

अगले दिन यानी 17 अक्टोबर 2008 को, शाम को दीप्ति का फोन आया

मैने झट से फोन उठा लिया.

“यार एक बहुत बुरी खबर है” --- दीप्ति मायूसी से बोली

मैने पूछा, “ क्या है बताओ तो सही”

“मनीष हॉस्पिटल में है, उस पर जानलेवा हमला हुवा है, बड़ी मुश्किल से जान बची है, मैं उस से मिलने फरीदाबाद जा रही हूँ, मुझे डर लग रहा है” ---

दीप्ति रोते हुवे बोली.

“क्या…. ये कैसे हो गया. किसने करवाया ये हमला. तुम चिंता मत करो में भी तुम्हारे साथ चलती हूँ” --- मैने दीप्ति से कहा.

“पता नही यार, अभी मनीष को होश नही आया है, उसके असिश्टेंट का फोन आया था कि वो हॉस्पिटल में है. मनीष ही होश में आकर बता सकता है कि ये किसका काम है.” – दीप्ति ने कहा

मैने कहा, “ह्म्म…. चलो तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा, ऐसा करो यही मेरे पास आ जाओ, यही से साथ साथ चलेंगे”

“ठीक है मैं अभी तुम्हारे घर आ जाती हूँ, वही से फरीदाबाद के लिए निकल लेंगे” ---- दीप्ति ने कहा

वो ऐसा पल था, जब मैं भी बहुत घबरा गयी थी. मैं सोच रही थी कि दीप्ति को कह दूं कि वो मनीष को बोल दे कि बंद करदे ये काम. मैं नही चाहती थी कि मनीष को कुछ हो. मुझे अब दीप्ति और मनीष की चिंता हो रही थी.

दीप्ति अपनी कार ले कर 8 बजे मेरे घर आ गयी.

मैने पूछा, क्या तुम्हे फरीदाबाद का रास्ता पता है, नही तो कोई प्राइवेट टॅक्सी कर लेते है.

दीप्ति ने कहा, “हां, हां पता है, मैं काई बार ऑफीस के काम से वाहा खुद ड्राइव करके जा चुकी हूँ, तुम्हे तो पता ही है, रास्ता लंबा नही है, कोई 2 घंटे में वाहा पहुँच जाएँगे”.

मैने कहा, “ठीक है चलो फिर”

पापा घर पर नही थे, मैने जाते जाते मॅमी को बता दिया कि मैं दीप्ति के साथ ज़रूरी काम से जा रही हूँ.

मन में फरीदाबाद जाते हुवे अपने घर की याद आ रही थी, सोच रही थी कि काश किसी तरह से संजय कहीं मिल जाए. पर ऐसा नही हुवा.


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