जैसे ही मैने दीप्ति से बात करके फोन रखा तो सिधार्थ मेरे कॅबिन में आ गया.
उसने पूछा, “आज शाम को क्या तुम फ्री हो”
मैने पूछा, “क्यो, क्या बात है”
“कुछ नही सोच रहा था आज तुम्हे मुंबई दर्शन करवा दूं, तुम पहली बार आई हो ना यहा” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे कहा.
मैने कहा, “आज मेरा घूमने का मन नही है सिधार्थ, फिर कभी देखेंगे”
“क्या तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकती, बस तुम्हारे मन की ही तो बात है, मुझे ख़ुसी होगी अगर तुम मेरे साथ चलो” ---- सिधार्थ ने कहा
मैने उसे बहुत समझाया पर वो नही माना और शाम को ऑफीस के बाद वो मुझे गेट वे ऑफ इंडिया ले गया.
वैसे गेट वे ऑफ इंडिया मेरे फ्लॅट के करीब ही था पर जब से में मुंबई आई थी तब से वाहा जाने का मोका ही नही लगा था.
सिधार्थ मेरे लिए आइस-क्रीम ले आया और हम होटेल ताज के सामने घूमते हुवे आइस-क्रीम खाने लगे. लग ही नही रहा था कि ताज होटेल पर कभी टेररिस्ट अटॅक हुवा था. सभी लोग वाहा शांति से घूम रहे थे.
वो आइस-क्रीम खाते खाते मुझे ही देखे जा रहा था.
अचानक उसने कुछ ऐसा पूछा की मैं आइस-क्रीम खाना भूल गयी.
“ऋतु, मुझ से शादी करोगी” ----- उसने मुझे रोक कर पूछा
मेरे हाथ से आइस-क्रीम छूट कर सड़क पर गिर गयी.
मैने उसकी और देखा, उसकी आँखे नम हो रही थी
“मैं तुम्हे आज भी उतना ही चाहता हूँ, मुझे नही पता कि तुम्हारे पति ने तुम्हे डाइवोर्स क्यो दिया और ना ही मैं जान-ना चाहता हूँ, मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ, अगर तुम उस वक्त मान जाती तो तुम आज मेरी ही पत्नी होती” ----- सिधार्थ ने अपने रुमाल से मेरे होंटो पर से आइस-क्रीम पूछते हुवे कहा.
“सिधार्थ मैं ऐसा नही कर सकती, तुम्हे कैसे बताउ….” ---- मैने उशे समझाते हुवे कहा
“क्यों नही कर सकती ऋतु, तुम आज अकेली हो, मैं भी अकेला हूँ, मेरे पापा भी आज इस दुनिया में नही है, फिर क्या दिक्कत है. हमारे बीच अब कोई नही है. प्लीज़ कम इन माइ लाइफ” --- सिधार्थ ने भावुक हो कर कहा
“सिधार्थ मैं तुम्हे कैसे बताउ, आज मैं वो ऋतु नही हूँ, जिश ऋतु को तुम जानते थे, वो ऋतु कब की मर चुकी है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
ये कहते कहते मेरी आँखो में आंशु आ गये थे
“ऋतु ये क्या कह रही हो, प्लीज़ रोना बंद करो, क्या मैं जान सकता हूँ कि बात क्या है” --- सिधार्थ ने पूछा.
“मैने अपने पति को धोका दिया था, सिधार्थ, इसलिए उन्होने मुझे डाइवोर्स दे दिया है” --- मैने नज़रे झुका कर कहा.
“ये क्या कह रही हो ऋतु, मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नही है, तुम फिर से कोई बहाना बना रही हो है ना, पर तुम चाहे कुछ भी कहो, मैं तुमसे शांदी करने के लिए तैयार हूँ” ---- सिधार्थ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा
मैने कहा, “चाहे तुम जो कहो पर सच यही है, सिधार्थ, चाहो तो तुम मेरे पति संजय से फोन करके पूछ सकते हो”
सिधार्थ ने कहा, “मुझे किसी से फोन करके नही पूछना समझी, आइ लव यू आंड माइ लव ईज़ बियॉंड एनितिंग”
मुझे बहुत रोना आ रहा था, मैं सिधार्थ को कुछ भी समझाने की हालत में नही थी. वो मेरी बात सुन-ने को तैयार भी नही था
मैने उसे कहा, “सिधार्थ मुझे घर जाना है, बाद में बात करेंगे ठीक है, मैं अभी बहुत परेशान हूँ”
मैं टॅक्सी ले कर घर आ गयी और जब से आई हूँ, तब से बार बार मुझे सिधार्थ का मॅरेज प्रपोज़ल याद आ रहा है.
एक शादी तो मैं ठीक से नीभा नही पाई फिर दूसरी शादी के बारे में कैसे सोच लूँ.
ऐसा लग रहा है कि वाकाई में मेरी कुंडली में कोई दोष है, तभी मैने संजय की जींदगी बर्बाद कर दी. अब मैं ऐसा सिधार्थ के साथ नही कर सकती. उशे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए. इशी में उसकी भलाई है.
………………………….
डेट : 22-01-09
21 जन्वरी मेरी जींदगी में अब तक का सबसे भयानक दिन बन गया है. और सब से चोंकाने वाला दिन भी…कल जो मेरे साथ हुवा वो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी...
कल की घटना को लीखते हुवे मेरे हाथ काँप रहे है.
कल शाम को कोई 6 बजे मैं ऑफीस से निकल रही थी कि अचानक मेरे सामने एक कार आकर रुकी.
“अरे ये तो विवेक है, ये यहा क्या कर रहा है” – मैने मन ही मन में सोचा.
उसने कार का दरवाजा खोला और बोला, “भाभी, आपसे संजय के बारे में कुछ बात करनी थी, क्या आप मेरे साथ चलेंगी, कही किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर बात करते है”
मुझे उसका वाहा होना मन ही मन में खटक रहा था, पर ना जाने क्यो संजय का नाम सुन कर मैं उत्शुक हो गयी थी.
मैने पूछा, “क्या बात है, बताओ”
पहले आप बैठ तो जाओ भाभी, कहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.
मेरा मन पता नही क्यों बार बार मुझे कह रहा था कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है, इशके साथ मत जाओ, ये यहा मुंबई में क्या कर रहा है, पर संजय के बारे में जान-ने के लिए मैं झेजकते हुवे उशके साथ बैठ गयी.
जैसे ही मैं अंदर बैठी वो कार तेज़ी से यहा वाहा से निकालते हुवे एक शुनशान सड़क पर ले आया.
मैने पूछा, कितने रेस्टोरेंट निकल गये विवेक तुम कहा जा रहे हो.
मैने उसकी और देखा तो उशके चेहरे पर बहुत ही भयानक हँसी थी.
क्रमशः .......................................
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
गतांक से आगे .........................
विवेक को इस रूप में मैने कभी नही देखा था. मुझे बहुत डर लग रहा था उसे यू हंसते देख कर. वैसे मैं उसे इतना जानती भी कहा थी. जब से संजय से शादी हुई थी तब से मुश्किल से कोई 5 या 6 बार ही उस से मेरी मुलाकात हुई थी. मेरा स्वाभाव वैसे भी ज़्यादा लोगो से मिलने जुलने का नही है. इसलिए जब कभी विवेक संजय के साथ घर आता भी था तो मैं अक्सर अपने बेडरूम में ही रहती थी.
मैने विवेक से पूछा, “विवेक क्या मैं जान सकती हूँ कि हम कहा जा रहे है” ?
विवेक ने मेरी और देखा और बोला, “आप बताओ भाभी कि आपको कहा जाना है, वही चल पड़ेंगे, आप की बात हम कैसे टाल सकते है”
“क्या मतलब ? तुम तो कह रहे थे कि संजय के बारे में बात करनी है, रेस्टोरेंट चलते है, कौन से रेस्टोरेंट ले जा रहे हो तुम मुझे” --- मैने हैरानी भरे शब्दो में पूछा.
“रेस्टोरेंट भी चलेंगे भाभी आप चिंता मत करो, पहले आपसे ज़रूरी बात करनी है” ---- विवेक ने मेरी और देखते हुवे कहा.
ये कह कर विवेक ने कार सड़क के एक तरफ रोक ली. रास्ता शुनशान था, और दूर दूर तक कोई भी नही दीख रहा था.
“विवेक ये क्या कर रहे हो, यहा रुकने का क्या मतलब है, और साफ साफ कहो की बात क्या है, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है” ----- मैने विवेक से थोड़ा गुस्से में कहा
“भाभी मुझे आपसे एक शिकायत है, बुरा ना माने तो कहूँ” ----- विवेक ने कहा
“क्या शिकायत है, मैं कुछ समझी नही” --- मैने हैरानी में पूछा.
उसकी बाते मुझे बहुत अजीब लग रही थी, वो मुझे मजाकिया मूड से घूर रहा था. उशके चेहरे पर अभी भी अजीब सी हँसी थी.
“भाभी आपने मेरे साथ बहुत नाइंसाफी की है, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो मेरी तरफ देख कर बोला
“क्या मतलब विवेक, आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो ? और संजय के बारे में तुम्हे जो बात करनी थी, वो बात करो मेरे पास फालतू वक्त नही है” ---- मैने उसकी और देख कर कहा
“फालतू वक्त मेरे पास भी नही है भाभी, पता है मैं फरीदाबाद से यहा स्पेशल आपके लिए ही आया हूँ, और आप है कि ऐसी बाते कर रही है” ---- विवेक ने कहा
अब मुझे डर लगने लगा था, उशके इरादे मुझे ठीक नही लग रहे थे. उसकी कार मैं बैठने से पहले जो मुझे अंदेशा हो रहा था वो सच होता नज़र आ रहा था.
“ये क्या घुमा फिरा कर बात कर रहे हो विवेक साफ साफ क्यो नही कहते कि बात क्या है, और यहा से चलो इस शुनशान सड़क पर रुकने का क्या मतलब है” ----- मैने ज़ोर से पूछा
“चलो अब साफ साफ बात करता हूँ भाभी, आप ये बताओ कि संजय में क्या कमी थी कि आपने उसे इतना बड़ा धोका दिया, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो गंभीर हो कर बोला.
“तुम्हारा इस सब से कोई लेना देना नही है विवेक, ये मेरे और संजय के बीच की बात है, तुम कौन होते हो मुझ से ये सब पूछने वाले, क्या संजय ने तुम्हे यहा भेजा है” --- मैने उससे गुस्से में कहा
“लेना देना क्यो नही है भाभी, मैं संजय का ख़ास दोस्त हूँ, उशके भले बुरे की मुझे चिंता रहती है. आप ये बताओ कि क्यों आपने संजय को धोका दिया, मुझ से उसकी हालत देखी नही जाती, पता है वो दिन रात परेशान रहता है, आजकल क्लिनिक भी ठीक से नही चला पा रहा.” ---- विवेक ने कहा
ये सुन कर मेरी आँखो में आंशु भर आए और मैने पूछा, “क्या संजय बहुत ज़्यादा परेशान है”
“परेशान क्यों नही होगा भाभी, उसने आपको तीन-तीन लोगो के साथ आयाशी करते हुवे अपनी आँखो से देखा था, आप से ऐसी उम्मीद नही थी. आप बताओ तो सही कि क्या कमी थी संजय में जो कि आप इस हद तक गिर गयी” ---- विवेक ने पूछा.
ऐसा लग रहा था कि वो ऐसी बाते करके मुझे ह्युमिलियेट कर रहा है, क्योंकि ऐसी बाते करते वक्त उशके चेहरे पर गंभीरता के बजाए एक घिनोनी सी मुश्कान थी.
विवेक को इस रूप में मैने कभी नही देखा था. मुझे बहुत डर लग रहा था उसे यू हंसते देख कर. वैसे मैं उसे इतना जानती भी कहा थी. जब से संजय से शादी हुई थी तब से मुश्किल से कोई 5 या 6 बार ही उस से मेरी मुलाकात हुई थी. मेरा स्वाभाव वैसे भी ज़्यादा लोगो से मिलने जुलने का नही है. इसलिए जब कभी विवेक संजय के साथ घर आता भी था तो मैं अक्सर अपने बेडरूम में ही रहती थी.
मैने विवेक से पूछा, “विवेक क्या मैं जान सकती हूँ कि हम कहा जा रहे है” ?
विवेक ने मेरी और देखा और बोला, “आप बताओ भाभी कि आपको कहा जाना है, वही चल पड़ेंगे, आप की बात हम कैसे टाल सकते है”
“क्या मतलब ? तुम तो कह रहे थे कि संजय के बारे में बात करनी है, रेस्टोरेंट चलते है, कौन से रेस्टोरेंट ले जा रहे हो तुम मुझे” --- मैने हैरानी भरे शब्दो में पूछा.
“रेस्टोरेंट भी चलेंगे भाभी आप चिंता मत करो, पहले आपसे ज़रूरी बात करनी है” ---- विवेक ने मेरी और देखते हुवे कहा.
ये कह कर विवेक ने कार सड़क के एक तरफ रोक ली. रास्ता शुनशान था, और दूर दूर तक कोई भी नही दीख रहा था.
“विवेक ये क्या कर रहे हो, यहा रुकने का क्या मतलब है, और साफ साफ कहो की बात क्या है, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है” ----- मैने विवेक से थोड़ा गुस्से में कहा
“भाभी मुझे आपसे एक शिकायत है, बुरा ना माने तो कहूँ” ----- विवेक ने कहा
“क्या शिकायत है, मैं कुछ समझी नही” --- मैने हैरानी में पूछा.
उसकी बाते मुझे बहुत अजीब लग रही थी, वो मुझे मजाकिया मूड से घूर रहा था. उशके चेहरे पर अभी भी अजीब सी हँसी थी.
“भाभी आपने मेरे साथ बहुत नाइंसाफी की है, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो मेरी तरफ देख कर बोला
“क्या मतलब विवेक, आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो ? और संजय के बारे में तुम्हे जो बात करनी थी, वो बात करो मेरे पास फालतू वक्त नही है” ---- मैने उसकी और देख कर कहा
“फालतू वक्त मेरे पास भी नही है भाभी, पता है मैं फरीदाबाद से यहा स्पेशल आपके लिए ही आया हूँ, और आप है कि ऐसी बाते कर रही है” ---- विवेक ने कहा
अब मुझे डर लगने लगा था, उशके इरादे मुझे ठीक नही लग रहे थे. उसकी कार मैं बैठने से पहले जो मुझे अंदेशा हो रहा था वो सच होता नज़र आ रहा था.
“ये क्या घुमा फिरा कर बात कर रहे हो विवेक साफ साफ क्यो नही कहते कि बात क्या है, और यहा से चलो इस शुनशान सड़क पर रुकने का क्या मतलब है” ----- मैने ज़ोर से पूछा
“चलो अब साफ साफ बात करता हूँ भाभी, आप ये बताओ कि संजय में क्या कमी थी कि आपने उसे इतना बड़ा धोका दिया, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो गंभीर हो कर बोला.
“तुम्हारा इस सब से कोई लेना देना नही है विवेक, ये मेरे और संजय के बीच की बात है, तुम कौन होते हो मुझ से ये सब पूछने वाले, क्या संजय ने तुम्हे यहा भेजा है” --- मैने उससे गुस्से में कहा
“लेना देना क्यो नही है भाभी, मैं संजय का ख़ास दोस्त हूँ, उशके भले बुरे की मुझे चिंता रहती है. आप ये बताओ कि क्यों आपने संजय को धोका दिया, मुझ से उसकी हालत देखी नही जाती, पता है वो दिन रात परेशान रहता है, आजकल क्लिनिक भी ठीक से नही चला पा रहा.” ---- विवेक ने कहा
ये सुन कर मेरी आँखो में आंशु भर आए और मैने पूछा, “क्या संजय बहुत ज़्यादा परेशान है”
“परेशान क्यों नही होगा भाभी, उसने आपको तीन-तीन लोगो के साथ आयाशी करते हुवे अपनी आँखो से देखा था, आप से ऐसी उम्मीद नही थी. आप बताओ तो सही कि क्या कमी थी संजय में जो कि आप इस हद तक गिर गयी” ---- विवेक ने पूछा.
ऐसा लग रहा था कि वो ऐसी बाते करके मुझे ह्युमिलियेट कर रहा है, क्योंकि ऐसी बाते करते वक्त उशके चेहरे पर गंभीरता के बजाए एक घिनोनी सी मुश्कान थी.
Re: छोटी सी भूल
मैने कहा, “विवेक चलो यहा से, मुझे घर जाना है, मुझे किशी रेस्टोरेंट में नही जाना और ना ही तुम्हारे साथ कोई बात करनी है, यहा से जल्दी चलो”
“भाभी क्या ऐसा है कि आपका एक आदमी से मन नही भरता और आपको अपने चारो ओर भीड़ चाहिए, ताकि आप हवश का नंगा नाच खेल सकें” ---- वो अपने चेहरे पर वही बेकार सी हँसी ले कर बोला.
मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और ज़ोर से उशे कहा, “ विवेक बंद करो ये बकवास और चुप हो जाओ, तुम्हे शरम आनी चाहिए मुझ से ऐसी बाते करते हुवे”
वो मुश्कूराते हुवे बोला, “भाभी मैं तो संजय के लिए पूछ रहा था, जाकर उसे बताउन्गा की उसकी बर्बादी का कारण क्या है, आप डीटेल में बताओ ना कि कैसे आप उन लोगो के साथ गयी, कैसे उनके साथ सब कुछ किया, बताओ ना भाभी”
अब मुझे यकीन हो गया था कि वो जान बुझ कर ये बाते कर रहा था. बहुत कमीना नज़र आ रहा था उस वक्त वो
“देखो संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है, इसलिए ना मैं अब उनकी पत्नी हूँ और ना तुम्हारी भाभी, मैं ये सोच कर तुम्हारे साथ आई थी कि तुम मुझे संजय के बारे में कुछ बताओगे. मैं बस जान-ना चाहती थी कि वो कैसे है. तुम बेकार की बाते कर रहे हो. मैं अब चलती हूँ” ----- मैने विवेक से कहा
“अरे नही रूको भाभी आप तो बुरा मान गयी मैं तो बस यू ही बात कर रहा था, वैसे आप को मेरी बात सुन-नि ही पड़ेगी, मैं यू ही फरीदाबाद से मुंबई नही आया हूँ” ---- वो गंभीर हो कर बोला.
“क्यो सुन-नि पड़ेगी विवेक, मेरी ऐसी कोई मजबूरी नही है समझे, और ये भाभी भाभी कहना बंद करो” ---- मैने गुस्से में कहा
तभी उसने ना जाने कहा से एक पिस्टल निकाल ली और पिस्टल को मेरी और करके बोला, “मेरा दीमाग खराब हो रखा है भाभी, आप या तो मेरी बात शुनोगी या फिर इस पिस्टल की सारी की सारी गोलिया आपके भेजे में डाल दूँगा, आप ही बताओ कि आपको क्या चाहिए”
“ये क्या पागलपन है विवेक इसे दूर हटाओ, मुझे डर लग रहा है” --- मैने विवेक से गुस्से में कहा
आज तक मैने पिस्टल को इतने नज़दीक से नही देखा था. वो पिस्टल को मेरी ओर करके मुश्कुरा रहा था.
“भाभी अगर आप चुपचाप कॉपरेट करेंगी तो मैं कुछ नही करूँगा, ये लीज़िए पिस्टल एक तरफ रख दी” --- विवेक पिस्टल को अपने पाँव के पास नीचे रखते हुवे बोला
मैने कहा “विवेक लगता है तुम अभी होश में नही हो, तुम अभी जाओ, बाद में आराम से बात करेंगे”
“भाभी बात तो आपको अभी करनी पड़ेगी, आप ये बताओ कि अगर संजय आपको सन्तुस्त नही कर पा रहा था तो हूमें बोल दिया होता हम आ जाते आपकी प्यास भुजाने” ---- वो बेशर्मी से बोला.
“ये क्या बकवास है विवेक तमीज़ से बात करो” --- मैने गुस्से में चील्ला कर कहा
“आप शायद भूल रही है कि, मेरे पास पिस्टल है, मैने वो एक तरफ रख दी है तो इश्का मतलब ये नही है कि आप मुझ से चील्ला कर बात करेंगी, मेरा दीमाग घूम गया ना तो अभी के अभी भेजा उड़ा दूँगा” ---- वो भयानक आवाज़ में बोला.
मेरी आँखो में आंशु आ गये, मैने विवेक से पूछा, “तुम ये सब क्यो कर रहे हो विवेक प्लीज़ मुझे जाने दो”
“जाने दूँगा, ज़रूर जाने दूँगा, पहले आप इस बात का जवाब दो कि मैं क्या मर गया था जो आप अजनबी लोगो के आगे अपना नाडा खोल कर झुक गयी, आपको पहले मुझे मोका देना चाहिए था, कसम से मैं आपकी सारी हवश मीटा देता” ---- वो मेरी और देखते हुवे बोला.
मैने अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली, मेरी आँखो से लगातार आंशु बह रहे थे. उसकी बाते और ज़्यादा गंदी होती जा रही थी.
उस वक्त मैं यही सोच रही थी कि हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा मिल रही है मुझे की मुझे इतना कुछ सुन-ना पड़ रहा है. मैं तो मुंबई एक नयी शुरूवात करने आई थी पर फिर से मुझे मेरे पास्ट ने घेर लिया था.
“भाभी बोलिए ना आपने मुझे मोका क्यो नही दिया. संजय कह रहा था कि, आप किसी लड़के से अपने घर के पीछे की झाड़ियों में पता नही क्या क्या करवा रही थी. और तो और बाकी के कोई दौ लोग अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे थे, इतनी भूक थी सेक्स की तो मुझे बोल दिया होता मैं आपकी उन लोगो से ज़्यादा आछे से लेता पर आपने तो मुझे कोई मोका ही नही दिया. अब आप ही बताओ, है ना ये ग़लत बात. जो आपके अपने है वो प्यासे रहें और अजनबी लोग मज़ा करें ये कहा का इंसाफ़ है” ---- विवेक ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा.
“विवेक प्लीज़ चुप हो जाओ, मैं मार जाउन्गि, मैं खुद परेशान हूँ, मुझे और परेशान मत करो, मुझे मेरे किए की सज़ा मिल चुकी है, ये सब कहने की बजाए तुम मुझे गोली मार दो तो अछा है” --- मैने रोते हुवे कहा.
“भाभी क्या ऐसा है कि आपका एक आदमी से मन नही भरता और आपको अपने चारो ओर भीड़ चाहिए, ताकि आप हवश का नंगा नाच खेल सकें” ---- वो अपने चेहरे पर वही बेकार सी हँसी ले कर बोला.
मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और ज़ोर से उशे कहा, “ विवेक बंद करो ये बकवास और चुप हो जाओ, तुम्हे शरम आनी चाहिए मुझ से ऐसी बाते करते हुवे”
वो मुश्कूराते हुवे बोला, “भाभी मैं तो संजय के लिए पूछ रहा था, जाकर उसे बताउन्गा की उसकी बर्बादी का कारण क्या है, आप डीटेल में बताओ ना कि कैसे आप उन लोगो के साथ गयी, कैसे उनके साथ सब कुछ किया, बताओ ना भाभी”
अब मुझे यकीन हो गया था कि वो जान बुझ कर ये बाते कर रहा था. बहुत कमीना नज़र आ रहा था उस वक्त वो
“देखो संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है, इसलिए ना मैं अब उनकी पत्नी हूँ और ना तुम्हारी भाभी, मैं ये सोच कर तुम्हारे साथ आई थी कि तुम मुझे संजय के बारे में कुछ बताओगे. मैं बस जान-ना चाहती थी कि वो कैसे है. तुम बेकार की बाते कर रहे हो. मैं अब चलती हूँ” ----- मैने विवेक से कहा
“अरे नही रूको भाभी आप तो बुरा मान गयी मैं तो बस यू ही बात कर रहा था, वैसे आप को मेरी बात सुन-नि ही पड़ेगी, मैं यू ही फरीदाबाद से मुंबई नही आया हूँ” ---- वो गंभीर हो कर बोला.
“क्यो सुन-नि पड़ेगी विवेक, मेरी ऐसी कोई मजबूरी नही है समझे, और ये भाभी भाभी कहना बंद करो” ---- मैने गुस्से में कहा
तभी उसने ना जाने कहा से एक पिस्टल निकाल ली और पिस्टल को मेरी और करके बोला, “मेरा दीमाग खराब हो रखा है भाभी, आप या तो मेरी बात शुनोगी या फिर इस पिस्टल की सारी की सारी गोलिया आपके भेजे में डाल दूँगा, आप ही बताओ कि आपको क्या चाहिए”
“ये क्या पागलपन है विवेक इसे दूर हटाओ, मुझे डर लग रहा है” --- मैने विवेक से गुस्से में कहा
आज तक मैने पिस्टल को इतने नज़दीक से नही देखा था. वो पिस्टल को मेरी ओर करके मुश्कुरा रहा था.
“भाभी अगर आप चुपचाप कॉपरेट करेंगी तो मैं कुछ नही करूँगा, ये लीज़िए पिस्टल एक तरफ रख दी” --- विवेक पिस्टल को अपने पाँव के पास नीचे रखते हुवे बोला
मैने कहा “विवेक लगता है तुम अभी होश में नही हो, तुम अभी जाओ, बाद में आराम से बात करेंगे”
“भाभी बात तो आपको अभी करनी पड़ेगी, आप ये बताओ कि अगर संजय आपको सन्तुस्त नही कर पा रहा था तो हूमें बोल दिया होता हम आ जाते आपकी प्यास भुजाने” ---- वो बेशर्मी से बोला.
“ये क्या बकवास है विवेक तमीज़ से बात करो” --- मैने गुस्से में चील्ला कर कहा
“आप शायद भूल रही है कि, मेरे पास पिस्टल है, मैने वो एक तरफ रख दी है तो इश्का मतलब ये नही है कि आप मुझ से चील्ला कर बात करेंगी, मेरा दीमाग घूम गया ना तो अभी के अभी भेजा उड़ा दूँगा” ---- वो भयानक आवाज़ में बोला.
मेरी आँखो में आंशु आ गये, मैने विवेक से पूछा, “तुम ये सब क्यो कर रहे हो विवेक प्लीज़ मुझे जाने दो”
“जाने दूँगा, ज़रूर जाने दूँगा, पहले आप इस बात का जवाब दो कि मैं क्या मर गया था जो आप अजनबी लोगो के आगे अपना नाडा खोल कर झुक गयी, आपको पहले मुझे मोका देना चाहिए था, कसम से मैं आपकी सारी हवश मीटा देता” ---- वो मेरी और देखते हुवे बोला.
मैने अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली, मेरी आँखो से लगातार आंशु बह रहे थे. उसकी बाते और ज़्यादा गंदी होती जा रही थी.
उस वक्त मैं यही सोच रही थी कि हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा मिल रही है मुझे की मुझे इतना कुछ सुन-ना पड़ रहा है. मैं तो मुंबई एक नयी शुरूवात करने आई थी पर फिर से मुझे मेरे पास्ट ने घेर लिया था.
“भाभी बोलिए ना आपने मुझे मोका क्यो नही दिया. संजय कह रहा था कि, आप किसी लड़के से अपने घर के पीछे की झाड़ियों में पता नही क्या क्या करवा रही थी. और तो और बाकी के कोई दौ लोग अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे थे, इतनी भूक थी सेक्स की तो मुझे बोल दिया होता मैं आपकी उन लोगो से ज़्यादा आछे से लेता पर आपने तो मुझे कोई मोका ही नही दिया. अब आप ही बताओ, है ना ये ग़लत बात. जो आपके अपने है वो प्यासे रहें और अजनबी लोग मज़ा करें ये कहा का इंसाफ़ है” ---- विवेक ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा.
“विवेक प्लीज़ चुप हो जाओ, मैं मार जाउन्गि, मैं खुद परेशान हूँ, मुझे और परेशान मत करो, मुझे मेरे किए की सज़ा मिल चुकी है, ये सब कहने की बजाए तुम मुझे गोली मार दो तो अछा है” --- मैने रोते हुवे कहा.