अब उसने सुषमा को आगे की ओर धक्का देते हुए बिस्तर पर सपाट लिटा दिया। वह भी उसके ऊपर सपाट लेट गया। सुषमा पूरी बिस्तर पर फैली हुई थी। उसकी टांगें और बाजू खुले हुए थे और उसके चूतड़ नीचे रखे तकिये के कारण ऊपर को उठे हुए थे। ललित का पूरा शरीर उसके पूरे शरीर को छू रहा था। सिर्फ चोदने के लिए वह अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करता था और उस वक़्त उनके इन हिस्सों का संपर्क टूटता था। ललित ने अपने हाथ सरका कर सुषमा के बदन के नीचे करते हुए दोनों तरफ से उसके मम्मे पकड़ लिए। ललित का पूरा बदन कामाग्नि में लिप्त था और उसने इतना ज्यादा सुख कभी नहीं भोगा था। उधर सुषमा ने भी इतना आनंद कभी नहीं उठाया था। उसके नितम्ब रह-रह कर ललित के निचले प्रहार को मिलने के लिए ऊपर उठ जाते थे जिससे लंड का समावेश पूरी तरह उसकी गांड में हो रहा था। दोनों सातवें आसमान पर पहुँच गए थे।
अब ललित चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाला था। उसके मुंह से मादक आवाजें निकलने लगी थी। सुषमा भी अजीब आवाजें निकल रही थी। ललित ने गति तेज़ करते हुए एक बार लंड लगभग पूरा बाहर निकाल कर एक ही वार में पूरा अन्दर घुसेड़ दिया, सुषमा की ख़ुशी की चीख के साथ ललित की दहाड़ निकली और ललित का वीर्य फूट फूट कर उसकी गांड में निकल पड़ा। सुषमा ने अपनी गांड ऊपर की तरफ दबा कर उसके लंड को जितनी देर अन्दर रख सकती थी रखा। थोड़ी देर में ललित का लंड स्वतः बाहर निकल गया और सुषमा की पीठ पर निढाल पड़ गया।
दोनों की साँसें तेज़ चल रही थी और दोनों पूर्ण तृप्त थे। ललित ने सुषमा को उठा कर अपने सीने से लगा लिया। उसके पूरे चेहरे पर चुम्बन की वर्षा कर दी और कृतज्ञ आँखों से उसे निहारने लगा।
सुषमा ने भी घुटनों के बल बैठ कर ललित के लंड को पुचकारा और और धन्यवाद के रूप में उसको अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। उसकी आँखों में भी कृतज्ञता के आँसू थे। दोनों एक बार फिर आलंडनबद्ध होते हुए बाथरूम की तरफ चले गए।
उस दिन सुषमा जब अपने घर पहुची तो वो बहुत थक चुकी थी, घर जाकर पहले उसने गर्म पानी से स्नान किया ओर फिर अपने कमरे मे जाकर बिस्तर पेर लेट गयी. लेटते ही उसकी आखो मे वो सारे लम्हे आ गये जो उसने ललित के साथ बिताए थे. फिर उसे अपना अतीत याद आ गया जब उसने पहली बार इस अनमोल सुख को भोगा था….