हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है

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Re: हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है

Unread post by sexy » 07 Jul 2016 09:43

ट्रॅफिकमें अटक गया था… इसलिए देर हो गई …”

” मै तो साडेचार बजेसेही तुम्हारी राह देख रही हूं ..” अंजलीने कहा.

” लेकिन तूमने तो पांच का वक्त दिया था. ” विवेकने कहा.

सिर्फ शुरु करनेकी ही देरी थी, अब वे आपस में अच्छे खासे घुल मिलकर बाते करने लगे, मानो इंटरनेट पर चॅटींग कर रहे हो. बाते करते करते वे धीरे धीरे बीचके रेतपर समुंदरके किनारे किनारे चलने लगे. चलते चलते कब उनके हाथ एकदुसरे में गुथ गए, उन्हे पताही नही चला. न जाने कितनी देर तक वे एक दुसरेके हाथ पकडकर बीचपर घुम रहे थे.

सुर्यास्त हो चुका था और अब अंधेराभी छाने लगा था. बिचमेंही अचानक रुककर, गंभीर होकर विवेकने कहा,

” अंजली… एक बात पुछू ?”

उसने आखोंसेही मानो हा कह दिया.

” मुझसे शादी करोगी ?” उसने सिधे सिधे पुछा.

उसके इस अनपेक्षित सवालसे वह एक पल के लिए गडबडासी गई. अपने गडबडाए हालातसे संभलकर उसने कुछ ना बोलते हूए अपनी गर्दन निचे झूकाई.

विवेकका दिल अब जोरजोरसे धडकने लगा था.

मैने बडा ढांढस कर यह सवाल तो पुछा….

लेकिन वह ‘हां’ कहेगी या ‘नही’ ?…

वह उसके जवाबकी प्रतिक्षा करने लगा.

मैने यह सवाल पुछनेमें कुछ जल्दी तो नही कर दी ?…

उसने अगर ‘नही’ कहा तो ?…

उसके जहनमें अलग अलग आशंकाएं आने लगी.

थोडी देरसे वह बोली,

” चलो हमें निकलना चाहिए ..”

उसने बोलने के लिए मुंह खोला तब उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा था.

लेकिन यह क्या … वह उसके सवालके जवाबसे बच रही थी….

लेकिन वह एक पीएचडी का छात्र था. किसी भी सवाल के जवाब का पिछा करना उसके खुनमें ही भिना हूवा था.

” .. तूमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया ..” उसने उसे टोका.

” चलो मै तुम्हे छोड आती हूं ” वह फिर से उसके सवाल के जवाब से बचते हूए बोली.

लेकिन वहभी कुछ कम नही था.

” अभी तक तूमने मेरे सवालका जवाब नही दिया ”

वह शर्मके मारे चूर चूर हो रही थी. उसकी गर्दन झूकी हूई थी और उसका गोरा चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था. वह अपनी भावनाए छुपानेके लिए पैर के अंगुठेसे जमीन कुरेदने लगी.

” मैने थोडी ना कहा है ” वह किसी तरह, अभीभी अपनी गर्दन निची रखते हूए बोली.

अपने मुंहसे वह शब्द बाहर पडे इसका उसे खुदको ही आश्चर्य लग रहा था. विवेक का अब तक मायूस हुवा चेहरा एकदम से खुशीके मारे खिल उठा. उसे इतनी खुशी हुई थी की वह उसे कैसे व्यक्त करे कुछ समझ नही पा रहा था. उसने अपने आपको ना रोक पाकर उसे अपने बाहोंमें कसकर भरकर उपर उठा लिया.

अंजली गाडी ड्राईव्ह कर रही थी और गाडीमें आगे उसके बगलकीही सिटपर विवेक बैठा हुवा था. गाडीमें काफी समयतक दोनो अपने आपमें खोए हूए गुमसुमसे बैठे हूए थे.

सच कहा जाए तो विवेक उसने सोचे उससेभी जादा चुस्त , तेज तर्रार और देखनेमें उमदा है … और उसका स्वभाव कितना सिधा और सरल है …

पहलेही मुलाकातमें शादीके बारेमें सवाल कर उसने अपनी भावनाएं जाहिर की यह एक तरहसे अच्छा ही हुवा.. सच कहा जाए तो उसने वह सवाल पुछकर मुझेभी उसके बारेमें अपनी भावनाएं व्यक्त करनेका मौका दिया है…

उसे अब उसके बारेंमे एक अपनापन महसूस हो रहा था. उसने अब उसमें अपना भावी सहचारी … एक दोस्त… जो हमेशा दुख और सुखमें उसका साथ देगा … देखना शुरु किया था.

उसने सोचते हूए उसकी तरफ एक कटाक्ष डाला. उसनेभी उसकी तरफ देखकर एक मधूर मुस्कुराहट बिखेरी.

लेकिन अब वहभी अपनेही बारेमें सोच रहा होगा क्या?…

” तूम पढाई वैगेरा कब करते हो… नही .. मतलब .. हमेशा तो चॅटींग और इंटरनेटपरही बिझी रहते हो ” अंजली कुछ तो बोलना है और विवेकको थोडा छेडनेके उद्देश्यसे बोली.

विवेक उसके छेडनेका मुड पहचानकर सिर्फ मुस्कुरा दिया.

” हालहीमें तुम्हारे कंपनीका प्रोग्रेस क्या कहता है ? ” विवेकने पुछा.

” अच्छा है … क्यों?… हमारी कंपनी तो दिनबदीन प्रोग्रेस करती जा रही है ” अंजलीने कहा.

” नही मैने सोचा … हमेशा चॅटींग और इंटरनेटपर बिझी होनेसे उसका असर कंपनीके कामपर हुवा होगा. … नही?” विवेकभी उसे वैसाही नटखट जवाब देते हूए बोला.

वहभी उसके तरफ देखकर सिर्फ हंस दी. वह उसके इस बातोंमें उलझानेके खुबीसे वाकीफ थी और उसे उसका इस बारेमें हमेशा अभिमान रहा करता था.

अंजलीकी गाडी एक आलीशान हॉटेलके सामने – हॉटेल ओबेरायके सामने आकर रुकी. गाडी पार्कींगमें ले जाकर अंजलीने कहा, ” एक मिनीट मै मेरा मोबाईल हॉटेलमें भूल गई हूं … वह झटसे लेकर आती हूं और फिर हम निकलेंगे… नही तो एक काम कर सकते है … कुछ ठंडा या गरम हो जाए तो मजा आ जाएगा … नही?… और फिर निकलेंगे ” अंजली गाडीके निचे उतरते हूए बोली.


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Re: हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है

Unread post by sexy » 08 Jul 2016 09:18

Story ko aage badhate hai...............

अंजली उतरकर हॉटेलमें जाने लगी और विवेकभी उतरकर उसके साथ हो लिया.

हॉटेलका सुईट जैसे जैसे नजदिक आने लगा, वैसे एक अन्जानी भावनासे अंजलीके दिलकी धडकन तेज होने लगी थी. एक अनामिक डरने मानो उसे घेर लिया था. विवेक भलेही उसके पिछे पिछे चल रहा था लेकिन उसके सासोंकी गति विचलीत हो चुकी थी. अंजलीने सुईटका दरवाजा खोला और अंदर चली गई.

विवेक दरवाजेमेही इधर उधर करता हुवा खडा हो गया.

” अरे आवोना अंदर आवो ” अंजली उनके बिच बनी, असहजता, एक तणाव दूर करनेका प्रयास करती हुई बोली.

” बैठो ” अंजली उसे बैठनेका इशारा करती हुई बोली और वही कोनेमें रखा फोन उठानेके लिए उसके पासही बैठ गई.

अंजलीने विवेकके पास रखा हुवा फोन उठानेके लिए हाथ बढाया और बोली, ” क्या लोगे ठंडा या गरम”

फोन उठाते हूए अंजलीके हाथका हल्कासा स्पर्ष विवेकको हुवा था. उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा. अंजलीको भी वह स्पर्श आल्हाददायक और अच्छा लगा था. लेकिन चेहरेपर वैसा कुछ ना बताते हूए उसने ऑर्डर देनेके लिए फोनका क्रेडल उठाया.

फोनका नंबर डायल करनेके लिए अब उसने अपना दुसरा हाथ बढाया. इसबार इस हाथकाभी हल्कासा स्पर्ष विवेकको हुवा. इस बार वह अपने आपको रोक नही सका. उसने अंजलीने आगे बढाया हुवा हाथ हल्केही अपने हाथमें लिया. अंजली उसकी तरफ देखकर शर्माकर मुस्कुराई. उसे वह हाथ उसके हाथसे छुडाकर लेना नही हो रहा था. मानो वह हाथ सुन्न हो गया हो. विवेकने अब वह हाथ कसकर पकडकर उसे खिंचकर अपनी बाहोंमे भर लिया. सबकुछ कैसे तेजीसे घट रहा था और वह सब अंजलीकोभी अच्छा लग रहा था. उसका पुरा बदन गर्म हो गया था और होंठ कांपने लगे थे. विवेकनेभी अपने गर्म और बेकाबू हूए होंठ उसके कांपते होंठोपर रख दिए. अंजलीका एक मन प्रतिकार करनेके लिए कह रहा था. लेकिन दुसरा मन तो विद्रोही होकर सारी मर्यादाए तोडने निकला था. वह उसपर हावी होता जा रहा था और अंजलीकी मानो होशोहवास खोए जैसी स्थिती हो गई थी. विवेकने उसे झटसे अपने मजबुत बाहोंमे उठाकर बगलमें रखे बेडपर लिटाया. उसके उस उठानेमें उसे एक आधार देनेवाली मर्दानी और हक जतानेवाली भावना दिखी इसलिए वह इन्कारभी नही कर सकी. या यू कहिए उसके पास प्रतिकार करनेके लिए कुछ शक्तीही नही बची थी.

उसे उसका वह सवाल याद आगया, ” अंजली मुझसे शादी करोगी ?”

और उसे अपना जवाबभी याद आगया, ” मैने ना थोडीही कहा है ”

उसे अब उसके बाहोमें एक सुरक्षा का अहसास हो रहा था. वहभी अब उसके हर भावनाको उतनीही उत्कटतासे प्रतिसाद दे रही थी.

” विवेक आय लव्ह यू सो मच” उसके मुंहसे शब्द बाहर आ गये.

” आय टू” विवेक मानो उसके गलेका चुंबन लेते हूए उसके कानमें कह रहा था.

धीरे धीरे उसका मजबुत मर्दानी हाथ उसके नाजूक बदनसे खेलने लगा. और वहभी किसी लतीका की तरह उसको चिपककर अपने भविष्यके आयुष्यका सहारा ढुंढ रही थी.

‘ हां मैही तुम्हारे आगेके आयूष्य का सहारा … साथीदार हुं ‘ इस हकसे अब वह उसके बदनसे एक एक कपडे हटाने लगा था.

‘ हां मैने भी अब तुम्हे सब कुछ अर्पन कर दिया है .. ‘ इस विश्वास के साथ समर्पन करके वहभी उसके शरीर से एक एक कपडे हटाने लगी.

अंजली अचानक हडबडाकर निंदसे जाग गई. उसने बेडपर बगलमें देखा तो वहा विवेक निर्वस्त्र अवस्थामें चादर बदनपर ओढे गहरी निंद सो रहा था. लेकिन निंदमेंभी उसका एक हाथ अंजलीके निर्वस्त्र बदनपर था. इतने दिनोंमे रातको अचानक बुरे सपनेसे जगनेके बाद उसे पहली बार उसके हाथका एक बडा सहारा महसूस हुवा था.

अंजली चिंताग्रस्त अवस्थामें अपनी कुर्सीपर बैठी थी. उसके टेबलके सामनेही शरवरी बैठी हूई थी. विवेकके साथ बिताया एक एक पल याद करते हूए पिछले तिन कैसे बित गए अंजलीको कुछ पता ही नही चला था. लेकिन आज उसे चिंता होने लगी थी.

“” आज तिन दिन हो गए … ना वह चाटींगपर मिल रहा है ना उसकी कोई मेल आई है.” अंजलीने शरवरीसे चिंताभरे स्वरमें कहा.

एक दिनमें न जाने कितनी बार चॅटींगपर चॅट करनेवाला और एक दिनमें न जाने कितनी मेल्स भेजनेवाला विवेक अब अचानक तिन दिनसे चूप क्यों होगया? सचमुछ वह एक चिंताकी ही बात थी.

“” उसका कोई कॉन्टॅक्ट नंबर तो होगाना ?” शरवरीने पुछा.

“” हां है… लेकिन वह कॉलेजका नंबर है… लेकिन वहां फोन कर उसके बारेमें पुछना उचीत होगा क्या ?” अंजलीने कहा.

“” हा वह भी है ” शरवरीने कहा.

“” मुझे चिंता है … कही वह मेरे बारेमें कुछ गलत सलत सोचकर ना बैठे … और अगर वैसा है तो पता नही वह मेरे बारेंमे क्या सोच रहा होगा … ” अंजलीने मानो खुदसेही सवाल किया.

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