कायाकल्प - Hindi sex novel

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sexy
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:16

मैंने संध्या को भोगने की गति तेज़ कर दी । संध्या अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, लेकिन अभी उसको इसकी अभिव्यक्ति करनी नहीं आती थी – बस उसने मेरे कन्धों को जोर से जकड रखा था। संभवतः उसको अपनी कामाभिव्यक्ति करने में लज्जा आ रही हो। मुझको भी महसूस हुआ की उसका खुद का चरम-आनंद भी पास में है। हमारे सम्भोग की गति और तेज़ हो गई – संध्या की रस से भीगी योनि में मेरे लिंग के अन्दर बाहर जाने से ‘पच-पच’ की आवाज़ आने लग गई थी। पलंग के पाए ज़मीन पर थोड़ा थोड़ा घिसटने से किकियाने की लयबद्ध आवाज़ निकाल रहे थे, उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आहें भी निकल रही थीं। कमरे में एक कामुक माहौल बन चला था।

इस पूरे काम में इतना समय लग चुका था की मेरा कुछ क्षणों से अधिक टिकना संभव नहीं था। और हुआ भी वही। मेरे लिंग से एक विस्फोटक स्खलन हुआ, और उसके बाद तीन चार और बार वीर्य निकला। हर स्खलन में मैंने अपना लिंग संध्या की योनि के और अन्दर ठेलने का प्रयत्न कर रहा था। मेरे चरमोत्कर्ष पाने के साथ ही संध्या पुनः चरम आनंद प्राप्त कर चुकी थी। इस उन्माद में उसकी पीठ एक चाप में मुड़ गयी, जिससे उसके स्तन और ऊपर उठ गए। मैंने उसका एक स्तनाग्र सहर्ष अपने मुह में ले लिया और उसके ऊपर ही निढाल होकर गिर गया।

मेरा संध्या की मखमली गहराई से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था। इसलिए मैंने अपने लिंग को उसकी योनि के बाहर तब तक नहीं निकाला, जब तक मेरा पुरुषांग पूरी तरह से शिथिल नहीं पड़ गया। इस बीच मैंने संध्या को चूमना, दुलारना जारी रखा। अंततः हम दोनों एक दुसरे से अलग हुए। मैंने संध्या को मन भर के देखा; वह बेचारी शर्मा कर दोहरी हुई जा रही थी और मुझसे आँखे नहीं मिला पा रही थी। उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फैली हुई थी।

मैंने पूछा, “संध्या! आप ठीक हैं?” उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में सर हिलाया।

“मज़ा आया?” मैंने थोड़ा और कुरेदा – ऐसे ही सस्ते में कैसे जाने देता? संध्या का चेहरा मेरे इस प्रश्न पर और लाल पड़ गया – वह सिर्फ हलके से मुस्कुरा सकी। मैंने उसको अपनी बांहों में कस के भर कर उसके माथे को चूम लिया, और अपने से लिपटा कर बिस्तर पर लिटा लिया।

हम लोग कुछ समय तक बिस्तर पर ऐसे ही पड़े पड़े अपनी सांसे संयत करते रहे। लेकिन कुछ ही देर में वह बिस्तर पर उठ बैठी। वह इस समय आराम में बिलकुल भी नहीं लग रही थी। मुझे लगा की कहीं सेक्स की ग्लानि के कारण तो वह ऐसे नहीं कर रही है? मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।

“क्या हुआ आपको?”

“जी … मुझे टॉयलेट जाना है ….” उसने कसमसाते हुए बोला।

दरअसल, संध्या को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। निःसंदेह उसको और मुझको यह बात अभी तक नहीं मालूम थी। हम लोग अभी तो एक दूसरे को जानने की पहली दहलीज पर पाँव रख रहे थे। उसकी इस आदत का उपयोग हम लोगों ने अपने बाद के सेक्स जीवन में खूब किया है। खैर, उसको टॉयलेट जाना था और तो और, मुझे भी जाना था। मैंने देखा की कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था।

“इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं है क्या?” संध्या ने न में सर हिलाया …

“तो फिर कहाँ जायेंगे ..?”

“घर में है …”

“लेकिन … मुझे तो अन्दर से लोगों के बात करने की आवाज़ सुनाई दे रही है। लगता है लोग अभी तक नहीं सोये।” मैंने कहा, “… और घर में ऐसे, नंगे तो नहीं घूम सकते न? सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए पूरे कपडे पहनने का मन नहीं है मेरा।”

संध्या कुछ बोल नहीं रही थी।

“वैसे भी सबने अन्दर से हमारी आवाजें सुनी होंगी … मुझे नहीं जाना है सबके सामने …” मैंने अपनी सारी बात कह दी।

“इस कमरे का यह दूसरा दरवाज़ा बाहर बगीचे में खुलता है …”

“ओ के .. तो?”

“…. हम लोग बगीचे में टॉयलेट कर सकते हैं … वहां एकांत होगा ..” एडवेंचर! लड़की तो साहसी है! इंटरेस्टिंग!

“ह्म्म्म .. ठीक है। चलिए फिर।” मैंने पलंग से उठते हुए बोला। संध्या अभी भी बैठी हुई थी – शायद शरमा रही थी, क्योंकि उठते ही वह (मनोवैज्ञानिक तौर पर) पूरी तरह से नग्न हो जाती (बिस्तर पर चादर इत्यादि तो थे ही, जिनके कारण आच्छादित (कपड़े पहने रहने) होने का एहसास तो होता ही है)।
मैंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया, “चलो न ..” संध्या ने सकुचाते हुए मेरा हाथ थाम लिया और मैंने उसको सहारा देकर पलंग से उठा लिया।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:16

अपनी परी को मैंने पहली बार पूर्णतया नग्न, खड़ा हुआ देखा। मैंने उसके नग्न शरीर की अपर्याप्त परिपूर्णता की मन ही मन प्रशंशा की। उसके शरीर पर वसा की अनावश्यक मात्रा बिलकुल भी नहीं थी। उसके जांघे और टाँगे दृढ़ मांस-पेशियों की बनी हुई थीं। एक बात तो तय थी की आने वाले समय में यह लड़की, अपनी सुन्दरता से कहर ढा देगी। मेरे लिंग में पुनः उत्थान आने लगा। संध्या की दृष्टि पुनः लज्जा के कारण नीची हो गयी। लेकिन उसने दूसरे दरवाज़े का रुख कर लिया।

मैंने उसको दरवाज़ा खोलने से रोका और स्वयं उसको खोल कर बाहर निकल आया, सब तरफ देख कर सुनिश्चित किया की कोई वहां न हो और फिर उसको इशारा देकर बाहर आने को कहा। वह दबे पाँव बाहर निकल आई, किन्तु इतनी सावधानी रखने के बाद भी उसकी पायल और चूड़ियों की आवाजें आती रही। बगीचा कमरे से बाहर कोई आठ-दस कदम पर था। रात में यह तो नहीं समझ आ रहा था की वहां पर किस तरह के पेड़ पौधे थे, लेकिन यह अवश्य समझ आ रहा था की किस जगह पर मूत्र किया जा सकता है। संध्या किसी झाड़ी से कोई दो फुट दूरी पर जा कर बैठ गयी। अँधेरे में कुछ दिखाई तो नहीं दिया, लेकिन मूत्र विसर्जन करने की सुसकारती हुई आवाज़ आने लगी। मेरा यह दृश्य देखने का मन हो रहा था, लेकिन कुछ दिख नहीं पाया।

मैंने संध्या के उठने का कुछ देर इंतज़ार किया। उसने कम से कम एक मिनट तक मूत्र किया होगा, और फिर कुछ देर तक ऐसे ही बैठी रही। मैंने फिर उसको उठ कर मेरी तरफ आते देखा। यह सब होते होते मेरा लिंग कड़क स्तम्भन प्राप्त कर चुका था। इस दशा में मेरे लिए मूत्र करना संभव ही नहीं था।

“आप भी कर लीजिये ..”

“चाहता तो मैं भी हूँ, लेकिन मुझसे हो नहीं पा रहा है …”

“क्यों .. क्या हुआ?” संध्या की आवाज़ में अचानक ही चिंता के सुर मिल गए। अब तक वह मेरे एकदम पास आ गयी थी।

“आप खुद ही देख लीजिये …” कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उसके हाथ ने मेरे लिंग के पूरे दंड का माप लिया – अँधेरे में लज्जा कम हो जाती है। उसको समझ आ रहा था की लिंगोत्थान के कारण ही मैं मूत्र नहीं कर पा रहा था।

“आप कोशिश कीजिये … मैं इसको पकड़ लेती हूँ?” उसने एक मासूम सी पेशकश की।
“ठीक है …” कह कर मैंने अपने जघन क्षेत्र की मांस-पेशियों को ढीला करने की कोशिश की। संध्या के कोमल और गर्म स्पर्श से यह काम होने में समय लगा। खैर, बहुत कोशिश करने के बाद मैंने महसूस किया की मूत्र ने मेरे लिंग के गलियारे को भर दिया है … तत्क्षण ही मैंने मूत्र को बाहर निकलता महसूस किया।

“इसकी स्किन को पीछे की तरफ सरका लो …” मैंने संध्या को निर्देश दिया।

संध्या ने वैसे ही किया, लेकिन बहुत कोमलता से। मैंने भी लगभग एक मिनट तक मूत्र विसर्जन किया। मुझे लगता है की, संभवतः संध्या ने छोटे लड़कों को मूत्र करवाया होगा, इसीलिए जब मैंने मूत्र कर लिया, तब उसने बहुत ही स्वाभाविक रूप से मेरे लिंग को तीन-चार बार झटका दिया, जिससे मूत्र की बची हुई बूँदें भी निकल जाएँ। मैंने उसकी इस हरकत पर बहुत मुश्किल से अपनी मुस्कराहट दबाई। इसके बाद हम दोनों वापस अपने कमरे में आ गए।

अच्छा, हमारी तरफ शादी की पहली रात को एक रस्म होती है, जिसको ‘मुँह-दिखाई’ कहा जाता है। इसमें दुल्हन का घूंघट उठाने पर उसको एक विशेष स्मरणार्थक वस्तु (निशानी) दी जाती है। मुझे इसके बारे में याद आया, तो मैंने अपने बैग में से संध्या के लिए खास मेड-टू-आर्डर करधनी निकाली। यह एक 18 कैरट सोने की करधनी थी, जिसमें संध्या के रंग को ध्यान में रखते हुए इसमें लाल-भूरे, नीले और हरे रंग के मध्यम मूल्यवान जड़ाऊ पत्थर लगे हुए थे। वह उत्सुकतावश मुझे देख रही थी की मैं क्या कर रहा हूँ, और यूँ ही नग्नावस्था में बिस्तर के बगल खड़ी हुई थी। मैं वापस आकर बिस्तर पर बैठ गया और संध्या को अपने एकदम पास बुलाकर उसकी कमर में यह करधनी बाँध दी, और थोड़ा पीछे हटकर उसके सौंदर्य का अवलोकन करने लगा।

संध्या के नग्न शरीर पर यह करधनी ही सबसे बड़ी वस्तु बची हुई थी – उसकी बेंदी और नथ तो कब की उतर चुकी थीं, और बिंदी हमारे सम्भोग क्रिया के समय न जाने कब खो गयी। उसका सिन्दूर और काजल अपने अपने स्थान पर फ़ैल गया, और लिपस्टिक का रंग मिट गया था। किन्तु न जाने कैसे यह होने के बावजूद, वह इस समय बिलकुल रति का अवतार लग रही थी। थोड़ी ऊर्जा होती तो एक बार पुनः सम्भोग करता। लेकिन अभी नहीं।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:16

“आपको यह उपहार अच्छा लगा?”

संध्या ने लज्जा भरी मुस्कान के साथ सर हिला कर मेरा उपहार स्वीकार किया। मैंने उसकी कमर को आलिंगन में लेकर उसकी नाभि, और फिर उसकी कमर को करधनी के ऊपर से चूमा।

“आई लव यू!” कह कर मैंने उसको अपने पास बिठा लिया और फिर हम दोनों बिस्तर पर लेट कर एक दूसरे की बाहों में समां कर गहरी नींद में सो गए।
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मेरी नींद खिड़की से आती चिड़ियों की चहचहाने के आवाज़ से खुली। मैं बहुत गहरी नींद सोया हूँगा, क्योंकि मुझे नींद में किसी भी सपने की याद नहीं थी। मैंने एक आलस्य भरी अंगड़ाई ली, तो मेरा हाथ संध्या के शरीर पर लगा, और उसके साथ साथ रात की सारी घटनाएं ही याद आ गयीं। मैंने अपनी अंगड़ाई बीच में ही रोक दी, जिससे संध्या की नींद न टूटे। मैं वापस बिस्तर में संध्या से सट कर लेट गया – आपको मालूम है “स्पून पोजीशन”? बस ठीक वैसे ही। संध्या के शरीर की नर्मी और गर्माहट ने मेरे अन्दर की वासना पुनः जगा दी। कम्बल के अन्दर मेरा हाथ अपने आप ही संध्या के एक स्तन पर आकर लिपट गया। अगले कुछ ही क्षणों में मैं उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों का जायज़ा लेने लगा। साथ ही साथ यह भी सोचता रहा की क्या संध्या को भी रात की बातें याद होंगी?

मुझे अपनी सुहागरात की एक एक बात याद आ रही थी, और उसी आवेश में मेरा हाथ संध्या की आकर्षक योनि पर पर चला गया, और मेरी उंगलियाँ उसके स्पंजी होंठों को दबाने सहलाने लगी। प्रतिक्रिया स्वरुप संध्या के कोमल और मांसल नितम्ब मेरे लिंग पर जोर लगाने लगे। सोचो! ऐसी सुन्दर लड़की को सेक्स के बारे में सिखाना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। कुछ ही देर की मालिश ने संध्या के मुंह से कूजन की आवाज़ आने लग गयी – लड़की को नींद में भी मज़ा आ रहा था। मेरे लिंग में कड़ापन पैदा होने लगा। विरोधाभास यह की आज के दिन हमको कुछ पूजायें करनी थी – ये भारतीय शादियों में सबसे बड़ा जंजाल है – खैर, वह सब करने में अभी देर थी। फिलहाल मुझे इस सौंदर्य और प्रेम की देवी की पूजा करनी थी।

मैंने उसकी योनि से हाथ हटा कर उसके कोमल स्तन पर रख दिया और कुछ क्षण उसके निप्पल से खेलता रहा। फिर, मैंने अधीर होकर संध्या को अपनी तरफ भींच लिया। मेरे ऐसा करने से संध्या के शरीर में हलचल हुई, लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं। संध्या अब तक जाग चुकी थी – लेकिन सूरज की रोशनी, जो कमरे के सामने के पेड़ की पत्तियों से छन छन कर अन्दर आ रही थी, उसकी आँखों को चुंधिया रही थीं, और उसकी आँखें बंद हो रही थीं। मैं उसके इस भोलेपन और प्रेम से अभिभूत हो गया था – मेरे लिए वह निश्छल लालित्य की प्रतिमूर्ति थी। एकदम परफेक्ट!

मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी और हाथ हटा लिया, जिससे वह अपने हाथ पाँव हिला सके और नींद से जाग सके। संध्या ने सबसे पहले अपना सर मेरी तरफ घुमाया – मैंने देखा की उसकी आँखों में पल भर में कई सारे भाव आते गए – आश्चर्य, भय, परिज्ञान, लज्जा और प्रेम! संभवतः उसको कल रात के कामोन्माद सम्बन्धी अनुभव याद आ गए होंगे। उसके होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गयी।

“गुड मोर्निंग, हनी!” मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा, “सुबह हो गयी है …”

संध्या ने थोड़ा उठते हुए अंगडाई ली, इससे ओढ़ा हुआ कम्बल उसके ऊपर से सरक गया, और एक बार फिर से संध्या के स्तन नग्न हो गए। मेरी दृष्टि तुरंत ही उन कोमल टीलों की तरफ चली गयी। उसने झटपट अपने शरीर को ढकना चाहा, लेकिन मैंने उसके हाथ को रोक दिया और अपने हाथ से उसके स्तन को ढक लिया और उसको धीरे धीरे दबाने लगा।

“हमारे पास कुछ समय है …” मैंने कहा – मेरी आवाज़ और आँखों में कामुकता थी। मेरा लिंग उसके शरीर से अभी भी लगा हुआ था, लिहाज़ा वह उसके कड़ेपन को अवश्य ही महसूस कर पा रही थी।

संध्या समझते हुए मुस्कुराई, “जी …. आपने कल मुझे थका दिया … अभी …. थोड़ा नरमी से करियेगा? वहां पर थोड़ा दर्द है …”

तब मुझे ध्यान आया … थोड़ा नहीं, काफी दर्द होगा। कल उसने पहली बार सेक्स किया है, और वह भी ऐसे लिंग से। निश्चित तौर पर उसकी हालत खराब होगी। ये बेचारी लड़की मुझे मना नहीं कर सकेगी, इसलिए ऐसे बोल रही है। ऐसे में मुझे हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। लेकिन, मेरा अभी सेक्स करने का बहुत मन है … और हर बार लिंग से ही सेक्स किया जाए, यह कोई ज़रूरी नहीं। मैंने सोचा की मैं उसके साथ मुख-मैथुन करूंगा, और अगर लकी रहा, तो वह भी करेगी। देखते हैं।

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