मां बेटे का संवाद
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"आ गया बेटे? आज जल्दी आ गया."
"हां मां, महने भर से रोज देर हो जाती है, आज बॉस से बहाना बनाकर भाग आया"
"तो ऐसा क्या हो गया आज, आता रोज की तरह रात के दस बजे"
"तू नाराज है अम्मा, जानता हूं, इसीलिये तो आ गया आज"
"चल, आ गया तो आ गया, पर करेगा क्या जल्दी आके? वैसे भी सुबह रात मां से मिनिट दो मिनिट तो मिल ही लेता है ना"
"अब मां ज्यादती ना कर, रात को लेट आता हूं फिर भी कम से कम एक घंटी तेरी सेवा करता हूं."
"बड़ा एहसान करता है रे, मां की सेवा करके"
"अब नाराजी छोड़ मां, सच्ची तेरे साथ को तरस गया हूं, सोचा आज मन भर के अपनी प्यारी पूजनीय मां की पूजा करूंगा."
"बड़ा नटखट है रे, बड़ा आया मां की पूजा करने वाला. तेरी पूता और सेवा मैं खूब जानती हूं. एक नंबर का बदमाश छोरा है तू, बचपन में तेरे को जरा डांटकर रखती तो ऐसे न बिगड़ता"
"हाय अम्मा ... झूट मूट भी नाराज होती हो तो क्या लगती हो! पर ये तो बता के अगर तू मुझे सीदा सादा बेटा बना कर रखती तो आज तेरी ऐसी सेवा कौन करता? बता ना मां. तुझे अपने बेटे की सेवा अच्छा नहीं लगती क्या, कुछ कमी रह जाती है क्या अम्मा? अरे मुंह क्यों छुपाती है ... बता ना!"
"अब ज्यादा नाटक न कर, बातों में कोई तुझे हरा सकता है क्या! चल खाना तैयार है, तू मुंह धो कर आ, मैं भी आती हूं. जरा कपड़े बदल लूं"
"अब कपड़े बदलने की क्या जरूरत है अम्मा? अच्छे तो हैं. वैसे भी कोई भी कपड़े हों क्या फरक पड़ता है? कुछ देर में तो निकालने ही हैं ना."
"कैसी बातें करता है रे, कोई सुन लेगा तो? ऐसे सबके सामने छिछोरपना न दिखाया कर"
"अब यहां और कौन है अम्मा सुनने को? और मैंने गलत क्या कहा? तू ही कुछ का कुछ मतलब निकालती है तो मैं क्या करूं? अब सोते वक्त कपड़े तो बदलते ही हैं ना? और बदलना हो कपड़े तो निकालने पड़ते ही हैं, उसमें ऐसा क्या कह दिया मैंने?"
"हां हां समझ गयी, बड़ा सीधा बन रहा है अब. तू नहा के आ, मैं कपड़े बदल के खाना परोसती हूं"
"मस्त पुलाव बना है अम्मा. आज खास मेहरबान है मुझपे लगता है"
"चल, ऐसा क्या कहता है. अब अपने बेटे के लिये कौन मां मन लगाकर खाना नहीं बनायेगी. और ले ना. और ऐसा क्या घूर रहा है मेरी ओर?"
"ये साड़ी बड़ी अच्छी है मां. और ये ब्लाउज़ भी नया लगता है, बहुत फब रहा है तेरे पे. तभी कह रही थी लड़िया के कि कपड़े बदल के आती हूं"
"अच्छा है ना?"
"हां मां. आज स्लीवलेस ब्लाउज़ पहन ही लिया तूने. मैं कब से कह रहा था कि एक बार तो ट्राइ कर"
"वो तू कब से जिद कर रहा था इसलिये बनवा लिया और तुझे पहन के दिखाया. तुझे मालूम है बेटे कि मैं स्लीवलेस पहनती नहीं हूं, ये मेरी मोटी मोटी बाहें हैं, मुझे शरम लगती है."
"पर कैसी गोरी गोरी मुलायम हैं. हैं ना मां? फ़िर? मेरी बात माना कर"
"जो भी हो, मैं बाहर ये नहीं पहनूंगी. घर में तेरे सामने ठीक है, तुझे अच्छा लगता है ना"
"वैसे मां, सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं"
"चल बेशरम .... "
"अरे शरमाती क्यों हो मां? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो"
"चल तुझे नहीं समझेगी मां के दिल की बात. वैसे तुझे कैसे पता चला?"
"क्या मां?"
"यही याने ... कैसा है रे ... खुद कहता है और भूल जाता है"
"अरे बोल ना मां, क्या कह रही है?"
"वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं ... और भी चीजें नयी हैं"
"अरे मां, ये साड़ी शिफ़ॉन की है ... और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता है"
"हाय राम ... मुझे लगा ही ... ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने ..."
"सच में बहुत अच्छी लग रही हो मां ... देखो गाल कैसे लाल हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन जैसे ... तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है तेरी"
"तू चल नालायक .... मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके .... फ़िर तुझे दिखाती हूं ... आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का"
"मां ... सिर्फ़ मार खिलाओगी ... और कुछ नहीं चखाओगी ..."
"तू तो ...अब इस चिमटे से मारूंगी. और ये पुलाव और ले, तू कुछ खा नहीं रहा है, इतने प्यार से मैंने बनाया है"
"मैं नहीं खाता ... तुमसे कट्टी"
"अरे खा ले मेरे राजा ... इतनी मेहनत करता है ... घर में और बाहर ... चल ले ले और ... फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी"
"एक शर्त पे खाऊंगा मां"
"कैसी शर्त बेटा?"
"तू ये साड़ी और ब्लाउज़ निकाल और मुझे सिर्फ़ वो नयी चीजें पहने हुए परोस"
"ये क्या कह रहा है? मुझे शरम आती है बेटे"
"मां ... आज ये शरम का नाटक जरा ज्यादा ही हो गया है. अब बंद कर और मैं कहता हूं वैसे कर. कर ना मां, तुझे मेरी कसम ... तूने तो कैसे कैसे रूप में मुझे खाना खिलाया है ... है ना?"
"चल तू कहता है तो ... और नाटक ही सही पर तुझे भी अच्छा लगता है ना जब मैं ऐसे शरमाती हूं?"
"जरा पास आओ मां तो दिखाऊं कि कितना अच्छा लगता है"
"बाद में मेरे लाल. तू ये खीर ले, मैं अंदर साड़ी ब्लाउज़ रख के आती हूं"
बदनाम रिश्ते
Re: बदनाम रिश्ते
..... कुछ देर के बाद ....
"वाह अम्मा, क्या मस्त ब्रा और पैंटी हैं. नये हैं ना? मुझे पहले ही पता चल गया था, तेरे ब्लाउज़ के कपड़े में से इस ब्रा का हर हिस्सा दिख रहा था."
"हां बेटे आज ही लायी हूं. उस दिन तू वो मेगेज़ीन देखकर बोल रहा था ना कि अम्मा ये तुझ पर खूब फ़बेंगी तो आज ले ही आयी. तू कहता था ना कि वो हाफ़ कप ब्रा और यू शेप के स्ट्रैप की ब्रा ला. और ये पैंटी, वो तंग वाली, ऐसी ही चाहिये थी ना तुझे?"
"तू गयी थी मॉल पे अम्मा?"
"और क्या? वो मेगेज़ीन से मेक लिख के ले गयी थी, दो मिनिट में ली और वापस आ गयी"
"क्या दिखते हैं तेरे मम्मे अम्मा इन में, लगता है बाहर आ जायेंगे. पैंटी भी मस्त है, तेरी झांटों का ऊपर का भाग भी दिखता है. सच अम्मा, तू ऐसी ब्रा और पैंटी में अधनंगी खाना परोसती है तो लगता है जैसे मेनका या उर्वशी प्रसाद दे रही हों. लगता है कि यहीं तुझे पटक कर ... "
"बस बस ... नाटक ना कर ... वैसे बेटा ऐसे सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में मैं ज्यादा मोटी लगती हूं ना? देख ना कैसा थुलथुला बदन हो गया है मेरा ... तेरी कसी जवानी के आगे मेरा ये मोठा बदन ... मुझे अच्छा नहीं लगता बेटे"
"मां ... मेरी ओर देख ... मेरी आंखों में देख ... तेरा रूप देख कर मेरा क्या हाल होता है देख रही ऐ ना? तू ऐसी ही मुझे बहुत अच्छी लगती है मां ... नरम नरम मुलायम बदन ... हाथ में लेकर दबाने की इतनी जगहें हैं .... मुंह मारने की इतनी जगहें हैं .... तेरे इस खाये पिये बदन में जो सुंदरता है वो किसी मॉडल के बदन में कभी नहीं मिलेगी मां ... जरा आना मेरे पास ... ये देख ... कैसा हो गया है. आ ना अम्मा, मेरे पास आ."
"अभी नहीं बेटा नहीं तो तू ठीक से खाना भी नहीं खायेगा और शुरू हो जायेगा. चल खा जल्दी से."
"मां तू भी खा ले ना, नहीं तो फ़िर बाद में खाने बैठेगी और मुझे उतना इंतजार करवायेगी"
"मैं तो खा चुकी पहले ही शाम को बेटे. मेरा उपवास था ना."
"उपवास सिर्फ़ खाने का है ना मां? और कुछ तो नहीं? मेरे साथ तो उपवास नहीं करेगी ना मां? या मुझसे तो नहीं करायेगी उपवास?"
"नहीं मेरे लाल, तेरा तो मैं भोग लगाऊंगी. तुझे पकवान चखाऊंगी"
"ले मां, हो गया मेरा खाना"
"अरे और ले ना खीर, पूरा बर्तन भर के बनाई है तेरे लिये"
"अब नहीं मां, अब तो बस तू देगी वो प्रसाद लूंगा. खाना बहुत हो गया, अब तो मुझे पुलाव नहीं, वो फ़ूली फ़ूली डबल रोटी चाहिये जो तेरी टांगों के बीच है. चल जल्दी आ, मैं इन्तजार कर रहा हूं बेडरूम में"
"आज इतना उतावला हो गया, रोज रात मैं इन्तजार करती हूं तब ...?"
"आज वसूल लेना अम्मा, रोज लेट आने का और तुझे तड़पाने का आज पूरा हिसाब चुकता कर देता हूं अम्मा, तू आ तो सही"
"ठीक है चल, मैं पांच मिनिट में आयी"
.... कुछ देर के बाद ....
"आज खाना कैसा था बेटे? तूने बताया ही नहीं, बस मेरी ओर टुकुर टुकुर देख रहा था पूरे खाने के वक्त"
"बहुत अच्छा था अम्मा, ये भी पूछने की बात है? तेरी हर चीज अच्छी है, चल अब जल्दी से ये ब्रा और पैंटी भी उतार दे, इनमें तू बहुत मस्त लगती है, मजा आता है इन्हें मसलने में पर अभी मेरे को टाइम नहीं है, बहुत जोर से खड़ा है अम्मा."
"सच उतार दूं?"
"नहीं अम्मा, मैं भूल गया कि आज अपने पास टाइम ही टाइम है, आज मैं जल्दी घर आ गया हूं, नौ ही तो बजे हैं, रोज तो ग्यारा बारा बज जाते हैं. मत उतार अम्मा, पर मेरे पास आ"
"अरे ये क्या ... चल छोड़"
"गोद में ही तो लिया है अम्मा, कुछ बुरा तो नहीं किया है, ऐसे क्या बिचकती है. अब ये दिखा जरा ब्रा. क्या दिखती है अम्मा, साटिन की है लगता है, इतनी चिकनी मुलायम"
"अरे कैसे दबा रहा है रे ब्रा के ऊपर से ही, रोज तो ब्रा निकाल के दबाता है"
"आज बात और है मां, इस ब्रा ने सच में तेरी चूंचियों को निखार दिया है, लगता है कि इन गोलों में मीठा मुलायम खोवा भरा है खोवा जिसे मैं गपागप खा जाऊं. और खाने के पहले देखूं कि कितना मुलायम खोवा है ... और ये डबल रोटी देख ... इतनी फूली फूली डबल रोठी और इस पर ये रेशमी जाल ..."
"बेटा, ये क्या कर रहा है, पैंटी के अंदर हाथ डाल रहा है बेशरम"
"तो ले, पैंटी निकाल दी, अब तो बेशरम नहीं कहेगी!"
"कैसा हे रे तू ... और मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं साइकिल के डंडे पर बैठी हूं"
"डंडा तो है मां पर तेरे बेटे की जवानी का डंडा है जो अपनी मां के जोबन को देखकर खुशी से उछल रहा है ... ये देख ... ये देख"
"अरे ... ये तो मेरे वजन को भी उठा लेता है मेरे लाल ... कितना जोर है रे इसमें ... जादू सा लगता है"
"ये जादू है मां तेरे बदन का, तेरे हसीन नरम नरम शरीर का, चल मां .... अब सहन नहीं होता, निकाल ना ये ब्रा, इसका बकल कैसा है अजीब सा, मेरे से नहीं निकलता"
"तू पोंगा पंडित है, इतने दिन हो गये अपनी मां की पूजा करते करते और ब्रा का बकल भी नहीं खुलता तुझसे! ये ले ... और ये उंगली क्यों रगड़ रहा है रे ...कैसा तो भी होता है मेरे लाल"
"मां ... कितनी गीली है ये तेरी ... बुर अम्मा ... तेरी चूत मां ... डंडे को खाने का इरादा है इसका? डंडा तैयार है अम्मा, चल जल्दी"
"ले, मुझे क्या पता था कि तू इतना उतावला होगा! रोज तो ऐसे ही ब्रा और पैंटी में मुझे लेकर लिपटता है. ले निकाल दी दोनों, अब क्या करूं? सीधे चोदेगा क्या? देख कैसा झंडे जैसा खड़ा है, लगता है अपनी अम्मा को सलाम कर रहा है"
"हां अम्मा, ये तेरे रूप को सलाम कर रहा है. आज तो हचक हचक के चोदूंगा पर बाद में, पहले जरा अपने खजाने का रस पिलवा. कब से इस अमरित के स्वाद को याद कर करके मरा जा रहा हूं"
"अरे इतना उतावला क्यों हो रहा है, रोज तो स्वाद लेता है"
"पर अम्मा, पिछले कुछ दिन से इतनी देर हो जाती है रात को, बस जरा सा चख पाता हूं. आज मुझे ये अमरित घंटे भर स्वाद के लेकर पीना है"
"हां बेटे, पी ले, जितना मन है उतना पी, तेरे लिये ही तो संजो कर रखा है ये खजाना, जो चाहता है कर. आ जा, दे दे इसमें मुंह. बिस्तर पर लेटूं क्या? कि तेरे पास खड़ी हो जाऊं?"
"नहीं अम्मा, आज इस कुरसी में बैठ जा और टांगें खोल दे. मन लगाकर पलथी मारकर बैठूंगा अपनी अम्मा के सामने और उसकी बुर का रस चखूंगा."
"ले बैठ गयी. और फ़ैलाऊं क्या? चूत खुल गयी कि नहीं तेरे लायक?"
"अम्मा, खुली तो है पर मुंह नहीं दिख रहा है ठीक से, झांटों में ढकी है. तेरी खुली चूत क्या दिखती है अम्मा, लाल लाल गुलाबी गुलाबी मिठाई जैसी. अभी बस झलक दिख रही है काले काले बालों में से, जरा उंगली से झांटें बाजू में करके चूत खोल कर रख ना, तेरी झांटें मुंह में आती हैं."
"काट लूं क्या? मैं तो कब से काटने को कह रही हूं, तू ही तो कहता था कि अच्छी लगती हैं तुझे!!"
"हां अम्मा पर अब बहुत लंबी हो गयी हैं, जीभ पे बाल आते हैं, चाटने में तकलीफ़ होती है"
"तो पूरी साफ़ कर दूं क्या रेज़र से? दो महने पहले की थीं ना, तूने ही शेव कर दिया था."
"वाह अम्मा, क्या मस्त ब्रा और पैंटी हैं. नये हैं ना? मुझे पहले ही पता चल गया था, तेरे ब्लाउज़ के कपड़े में से इस ब्रा का हर हिस्सा दिख रहा था."
"हां बेटे आज ही लायी हूं. उस दिन तू वो मेगेज़ीन देखकर बोल रहा था ना कि अम्मा ये तुझ पर खूब फ़बेंगी तो आज ले ही आयी. तू कहता था ना कि वो हाफ़ कप ब्रा और यू शेप के स्ट्रैप की ब्रा ला. और ये पैंटी, वो तंग वाली, ऐसी ही चाहिये थी ना तुझे?"
"तू गयी थी मॉल पे अम्मा?"
"और क्या? वो मेगेज़ीन से मेक लिख के ले गयी थी, दो मिनिट में ली और वापस आ गयी"
"क्या दिखते हैं तेरे मम्मे अम्मा इन में, लगता है बाहर आ जायेंगे. पैंटी भी मस्त है, तेरी झांटों का ऊपर का भाग भी दिखता है. सच अम्मा, तू ऐसी ब्रा और पैंटी में अधनंगी खाना परोसती है तो लगता है जैसे मेनका या उर्वशी प्रसाद दे रही हों. लगता है कि यहीं तुझे पटक कर ... "
"बस बस ... नाटक ना कर ... वैसे बेटा ऐसे सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में मैं ज्यादा मोटी लगती हूं ना? देख ना कैसा थुलथुला बदन हो गया है मेरा ... तेरी कसी जवानी के आगे मेरा ये मोठा बदन ... मुझे अच्छा नहीं लगता बेटे"
"मां ... मेरी ओर देख ... मेरी आंखों में देख ... तेरा रूप देख कर मेरा क्या हाल होता है देख रही ऐ ना? तू ऐसी ही मुझे बहुत अच्छी लगती है मां ... नरम नरम मुलायम बदन ... हाथ में लेकर दबाने की इतनी जगहें हैं .... मुंह मारने की इतनी जगहें हैं .... तेरे इस खाये पिये बदन में जो सुंदरता है वो किसी मॉडल के बदन में कभी नहीं मिलेगी मां ... जरा आना मेरे पास ... ये देख ... कैसा हो गया है. आ ना अम्मा, मेरे पास आ."
"अभी नहीं बेटा नहीं तो तू ठीक से खाना भी नहीं खायेगा और शुरू हो जायेगा. चल खा जल्दी से."
"मां तू भी खा ले ना, नहीं तो फ़िर बाद में खाने बैठेगी और मुझे उतना इंतजार करवायेगी"
"मैं तो खा चुकी पहले ही शाम को बेटे. मेरा उपवास था ना."
"उपवास सिर्फ़ खाने का है ना मां? और कुछ तो नहीं? मेरे साथ तो उपवास नहीं करेगी ना मां? या मुझसे तो नहीं करायेगी उपवास?"
"नहीं मेरे लाल, तेरा तो मैं भोग लगाऊंगी. तुझे पकवान चखाऊंगी"
"ले मां, हो गया मेरा खाना"
"अरे और ले ना खीर, पूरा बर्तन भर के बनाई है तेरे लिये"
"अब नहीं मां, अब तो बस तू देगी वो प्रसाद लूंगा. खाना बहुत हो गया, अब तो मुझे पुलाव नहीं, वो फ़ूली फ़ूली डबल रोटी चाहिये जो तेरी टांगों के बीच है. चल जल्दी आ, मैं इन्तजार कर रहा हूं बेडरूम में"
"आज इतना उतावला हो गया, रोज रात मैं इन्तजार करती हूं तब ...?"
"आज वसूल लेना अम्मा, रोज लेट आने का और तुझे तड़पाने का आज पूरा हिसाब चुकता कर देता हूं अम्मा, तू आ तो सही"
"ठीक है चल, मैं पांच मिनिट में आयी"
.... कुछ देर के बाद ....
"आज खाना कैसा था बेटे? तूने बताया ही नहीं, बस मेरी ओर टुकुर टुकुर देख रहा था पूरे खाने के वक्त"
"बहुत अच्छा था अम्मा, ये भी पूछने की बात है? तेरी हर चीज अच्छी है, चल अब जल्दी से ये ब्रा और पैंटी भी उतार दे, इनमें तू बहुत मस्त लगती है, मजा आता है इन्हें मसलने में पर अभी मेरे को टाइम नहीं है, बहुत जोर से खड़ा है अम्मा."
"सच उतार दूं?"
"नहीं अम्मा, मैं भूल गया कि आज अपने पास टाइम ही टाइम है, आज मैं जल्दी घर आ गया हूं, नौ ही तो बजे हैं, रोज तो ग्यारा बारा बज जाते हैं. मत उतार अम्मा, पर मेरे पास आ"
"अरे ये क्या ... चल छोड़"
"गोद में ही तो लिया है अम्मा, कुछ बुरा तो नहीं किया है, ऐसे क्या बिचकती है. अब ये दिखा जरा ब्रा. क्या दिखती है अम्मा, साटिन की है लगता है, इतनी चिकनी मुलायम"
"अरे कैसे दबा रहा है रे ब्रा के ऊपर से ही, रोज तो ब्रा निकाल के दबाता है"
"आज बात और है मां, इस ब्रा ने सच में तेरी चूंचियों को निखार दिया है, लगता है कि इन गोलों में मीठा मुलायम खोवा भरा है खोवा जिसे मैं गपागप खा जाऊं. और खाने के पहले देखूं कि कितना मुलायम खोवा है ... और ये डबल रोटी देख ... इतनी फूली फूली डबल रोठी और इस पर ये रेशमी जाल ..."
"बेटा, ये क्या कर रहा है, पैंटी के अंदर हाथ डाल रहा है बेशरम"
"तो ले, पैंटी निकाल दी, अब तो बेशरम नहीं कहेगी!"
"कैसा हे रे तू ... और मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं साइकिल के डंडे पर बैठी हूं"
"डंडा तो है मां पर तेरे बेटे की जवानी का डंडा है जो अपनी मां के जोबन को देखकर खुशी से उछल रहा है ... ये देख ... ये देख"
"अरे ... ये तो मेरे वजन को भी उठा लेता है मेरे लाल ... कितना जोर है रे इसमें ... जादू सा लगता है"
"ये जादू है मां तेरे बदन का, तेरे हसीन नरम नरम शरीर का, चल मां .... अब सहन नहीं होता, निकाल ना ये ब्रा, इसका बकल कैसा है अजीब सा, मेरे से नहीं निकलता"
"तू पोंगा पंडित है, इतने दिन हो गये अपनी मां की पूजा करते करते और ब्रा का बकल भी नहीं खुलता तुझसे! ये ले ... और ये उंगली क्यों रगड़ रहा है रे ...कैसा तो भी होता है मेरे लाल"
"मां ... कितनी गीली है ये तेरी ... बुर अम्मा ... तेरी चूत मां ... डंडे को खाने का इरादा है इसका? डंडा तैयार है अम्मा, चल जल्दी"
"ले, मुझे क्या पता था कि तू इतना उतावला होगा! रोज तो ऐसे ही ब्रा और पैंटी में मुझे लेकर लिपटता है. ले निकाल दी दोनों, अब क्या करूं? सीधे चोदेगा क्या? देख कैसा झंडे जैसा खड़ा है, लगता है अपनी अम्मा को सलाम कर रहा है"
"हां अम्मा, ये तेरे रूप को सलाम कर रहा है. आज तो हचक हचक के चोदूंगा पर बाद में, पहले जरा अपने खजाने का रस पिलवा. कब से इस अमरित के स्वाद को याद कर करके मरा जा रहा हूं"
"अरे इतना उतावला क्यों हो रहा है, रोज तो स्वाद लेता है"
"पर अम्मा, पिछले कुछ दिन से इतनी देर हो जाती है रात को, बस जरा सा चख पाता हूं. आज मुझे ये अमरित घंटे भर स्वाद के लेकर पीना है"
"हां बेटे, पी ले, जितना मन है उतना पी, तेरे लिये ही तो संजो कर रखा है ये खजाना, जो चाहता है कर. आ जा, दे दे इसमें मुंह. बिस्तर पर लेटूं क्या? कि तेरे पास खड़ी हो जाऊं?"
"नहीं अम्मा, आज इस कुरसी में बैठ जा और टांगें खोल दे. मन लगाकर पलथी मारकर बैठूंगा अपनी अम्मा के सामने और उसकी बुर का रस चखूंगा."
"ले बैठ गयी. और फ़ैलाऊं क्या? चूत खुल गयी कि नहीं तेरे लायक?"
"अम्मा, खुली तो है पर मुंह नहीं दिख रहा है ठीक से, झांटों में ढकी है. तेरी खुली चूत क्या दिखती है अम्मा, लाल लाल गुलाबी गुलाबी मिठाई जैसी. अभी बस झलक दिख रही है काले काले बालों में से, जरा उंगली से झांटें बाजू में करके चूत खोल कर रख ना, तेरी झांटें मुंह में आती हैं."
"काट लूं क्या? मैं तो कब से काटने को कह रही हूं, तू ही तो कहता था कि अच्छी लगती हैं तुझे!!"
"हां अम्मा पर अब बहुत लंबी हो गयी हैं, जीभ पे बाल आते हैं, चाटने में तकलीफ़ होती है"
"तो पूरी साफ़ कर दूं क्या रेज़र से? दो महने पहले की थीं ना, तूने ही शेव कर दिया था."
Re: बदनाम रिश्ते
"नहीं अम्मा, एक दो दिन अलग लगता है, फ़िर रोज शेव करनी पड़ेगी नहीं तो वे जरा जरा से कांटे और चुभते हैं. मैं काट दूंगा कल कैंची से, वैसे तेरी झांटें हैं बहुत शानदार, रेशमी और मुलायम, मजा आता है उनमें मुंह डाल के, बस थोड़ी छोटी हों. अब जरा खोल ना चूत, वो झांटें भी बाजू में कर, देख कितना रस बह रहा है, इतनी मस्त महक आ रही है, जरा चाटने तो दे ठीक से"
"ले मेरे लाल, चाट. अब ठीक है ना? आह ऽ बेटे, बहुत अच्छा लगता है रे, कैसा चाटता है रे ऽ जादू कर देता है अपनी मां पर. ओह ऽ ओह ऽ हां मेरे लाल अं ऽ अं ऽ और चाट मेरे बच्चे ... मेरे राजा ... कैसा लग रहा है रे ... बोल ना!!"
"अम्मा जरा सुकून से चाटने दे ना ..... बात करूंगा तो चाटूंगा कैसे ... हां अब ठीक है, कितनी चू रही है अम्मा, बस टपकने को है. वैसे क्या बात है अम्मा आज तो बिलकुल घी निकल रहा है तेरे छेद से .... स्वाद आ रहा है मस्त, सौंधा सौंधा!"
"अरे सुबह से नहीं झड़ी हूं ... तू रोज की तरह सुबह जल्दी भाग गया ऑफ़िस को, बिना अपनी अम्मा को चोदे या चूसे. आज कल लेट आता है और थक कर देर तक सोता है. आज मुठ्ठ भी नहीं मार पायी, वो पड़ोस वाली दादी आ बैठी दिन भर मेरा दिमाग चाटा, तेरी याद आती थी तो मन मार कर रह जाती थी, बीच में लगा कि बाथरूम जाकर मुठ्ठ मार लूं पर मुझे ऐसे जल्दबाजी में मुठ्ठ मारने में मजा नहीं आता बेटे. जरा आराम से लेट कर तेरे को याद करके ... दिन भर ये बुर रानी बस मन मारे बैठी है"
"तभी मैं कहूं आज इतनी गाढ़ी क्यों है तेरी रज .... अम्मा तेरी रज याने पकवान है पकवान अम्मा ...... अब जरा और खोल ना चूत ... जीभ अंदर डालनी है."
ले बेटे पूरी खोल देती हूं... अब ठीक है? .... हाय ऽ रे ऽ जीभ अंदर डालता है तो मजा आता है बेटे ... और अंदर डाल ना ... ओह ऽ ओह ऽ उई ऽ मां ऽ ... गुदगुदी होती है ना!"
"अम्मा, तू बार बार अपनी चूत छोड़ कर मेरा सिर पकड़ लेती है, चूत पर दबा लेती है, ऐसे में मैं कैसे चाटूंगा ऽ मेरी मां की बुर का अमरित?"
"अरे तो चूस ले ना ... चाटना बाद में ... हाय तुझे नहीं पता कि बेटा तेरे को बुर से दबा कर कैसा लगता है ... लगता है तेरे को पूरा फ़िर से अपने अंदर घुसेड़ लूं"
"जादू सीख ले अम्मा, मेरे को बित्ते भर का गुड्डा बनाकर अपनी चूत में घुसेड़ कर रख, दिन भर वहीं रहा करूंगा. पर अब चल चाटने दे जरा, देख कैसी बह रही है"
"बेटा ... हाथ बार बार हिल जाता है ... इसलिये खोल कर नहीं रख पाती बुर तेरे लिये"
"तो अम्मा ... ऐसा कर, अपनी टांगें उठा और कुरसी के हथ्थे पर रख ले."
"दुखता है बेटे ... मैं अब जवान कहां रही पहले सी ... टांगें इतनी फ़ैलायेगा तो कमर टूट जायेगी मेरी ... चल अब सिर नहीं पकड़ूंगी तेरा पर मेरे लाल तू इतना अच्छा चाटता है रे ऽ सच में लगता है कि तू इत्ता सा होता तो तेरे को पूरा अंदर घुसेड़ कर तेरे बदन से ही मुठ्ठ मारती"
"अम्मा नखरे मत कर, रख टांगें ऊपर, ले मैं मदद करता हूं."
"ओह ... आह ऽ .... आह ऽ.... ओह ऽ ... ले हो गया तेरे मन जैसा? रख लीं टांगें ऊपर मैंने."
"अब देख अम्मा, कैसे मस्त खुल गयी है तेरी बुर ... अब सही भोसड़ा लग रहा है गुफ़ा जैसा .... अब आयेगा मजा चाटने का ... अब तो जीभ क्या ... मेरा पूरा मुंह ठुड्डी समेत चला जायेगा अंदर"
"आह ऽ ओह ऽ ... हां बेटे ऐसा ऽ आ ऽ ह ऽ ओह ऽ ओह ऽ हा ऽ य ऽ रे .... अं ऽ अं ऽ ... अरे ऽ उई ऽ मां ऽ ऽ ऽ ........."
"हां अम्मा ... बस ऐसे ही ... और पानी छोड़ अपना ... ये बात हुई .... मजा आ गया अम्मा ... अब लगाई है तूने रस की फुहार ... नहीं तो बूंद बूंद चाट कर मन नहीं भरता अम्मा ऽ अब जरा मुंह लगाना पड़ेगा नहीं तो .... बह जायेगा ये अमरित ... अम्मा ... ओ ऽ अम्मा .... लगता है कि मुंह में भर लूं तेरी ... बुर और चबा चबा कर खा ... जाऊं ... देख ऐसे ..."
"ओह ... ओह ... अरे .... ओह ... कैसा करता है रे ... उई मां ऽ ... आह ... ओह ... ओह .... हा ऽ य ... मैं मरी ...ओह ... ओह ....उईईई ऽ उईई ऽ आह .... आह .... आह .... बस .... आह"
"अब झड़ी ना मस्त? ... अब जरा दो चार घूंट रस मिला है मेरे को .... और कितना गाढ़ा है अम्मा .... शहद जैसा .... चिपचिपा ..."
"कैसा आम जैसा चूसता है रे .... निहाल कर दिया मेरे बच्चे ... अब जरा शांति मिली दिन भर की प्यास के बाद .... कितना अच्छा झड़ाता है तू बेटे ..... बहुत अच्छा लग रहा है मेरे लाल... अरे अब नहीं कर ... थोड़ा आराम तो करने दे ... अभी अभी झड़ी हूं ... मेरे दाने को अब न छेड़ बेटे .... सहन नहीं होता रे मेरे ला ऽ ल ..."
"अम्मा नखरा मत कर, पूरा पानी निकाल तो लूं पहले तेरी चूत से. कल बोल रही थी ना कि बेटे, निचोड़ ले मेरी चूत, सब पानी निकाल ले और पी जा. तो आज निचोड़ता हूं तुझे. अभी तो एक बार झड़ाया है, आज तो घंटा भर चूसूंगा."
"चूस ना ... मैं कहां मना करती हूं ... बस दम तो लेने दे मेरे राजा ... तुझे बुर का पानी पिला कर मेरा मन खिल जाता है बेटे, तेरे लिये ही तो बहती है मेरी चूत ... हा ऽ य बेटे मत कर इतनी जोर से... ओह ... अच्छा भी लगता है मेरे लाल और सहन भी नहीं होता रे .... मैं तो मर ही जाऊंगी एक घंटे में ... उ ऽ ई ऽ उ ऽ ई ऽ कैसे करता है रे? मेरे दाने को ऐसा बेहरमी से रगड़ता है जैसे मार डालना चाहता है मुझे .... उई ऽ मां ... ओह ऽ ... ओह ऽऽऽ.
"बस बेटे छोड़ दे अब ... बहुत हो गया रे ... जान ही नहीं है अब मेरे बदन में .... तुझे मेरी कसम मेरे राजा .... लगता है तीन चार घंटे हो गये तुझे मेरी बुर से मुंह लगाकर .... सब रस खतम हो गया ... अब तो छोड़ ना मेरे लाल! दस बार तो झड़ा चुका रे .... अब दुखता है रे ... दाना सनसनाता है.... कैसा तो भी होता है"
"कहां अम्मा, एक घंटा भी नहीं हुआ होगा .... इतने में थक गयी? खैर चल, छोड़ता हूं तुझे पर अम्मा, बता तो ... मजा आया?"
"हां ऽ आं ऽ बेटे .... कितनी मीठी गुदगुदी होती है रे मेरी बुर में जब तू उसे प्यार करता है ऐसे ...कितना सुख देता है रे अपनी अम्मा को .... मार डालेगा किसी दिन मुझे ....."
"नहीं अम्मा तुझे तो बहुत दिन जिंदा रखूंगा, बुढ़िया हो जायेगी तो कुछ कर भी नहीं पायेगी मेरे को ... और जोर से बिना रोक टोक चोदा करूंगा. अब चल बिस्तर पर, चोद डालता हूं तुझे .... ये देख मेरा लौड़ा? मरा जा रहा है तेरी चूत के लिये"
"अरे ये मुस्टंडा मुझे खतम कर देगा ... मुझसे नहीं सहा जायेगा बेटे ... चूत ऐसी कर दी है तूने चूस चूस कर कि लगता है कि रेती से रगड़ी हो .... अब उसपे ये जुलम न कर ... उई ऽ मां ऽ देखा राजा मुझसे तो चला भी नहीं जा रहा है"
"तो उठा कर ले चलता हूं अम्मा"
"अरे क्यों उठाता है रे, मेरा वजन कोई कम नहीं है ... अच्छी खासी मोटी हूं"
"कहां अम्मा, मुझे तो फ़ूल सी लगती है तू, तेरा यह गुदाज गोरा गोरा बदन किसी दुल्हन से कम थोड़े है! .... और रोज तो उठाता हूं तुझे, आज क्या नयी बात है? चल आ जा ... ऐसे ... मेरी गरदन में बांहें डाल दे दुल्हन जैसे ..... बस हो गया .... आ गया बिस्तर .... ले अब लेट जा और टांगें फ़ैला दे"
"मत चोद राजा ... सुन अपनी अम्मा की बात ... आ चूस देती हूं इसे ... तेरे इस सिर उठाकर खड़े सोंटे की मलाई खाने दे मुझे"
"आज नहीं अम्मा, कल तूने बस चूसा ही चूसा था मुझे, एक बार भी अपने बुर में नहीं लिया इसे, आज तो चोदूंगा तुझे और ऐसा चोदूंगा कि देख लेना तू ही"
"मत चोद रे ... छोड़ दे मेरे बच्चे ... आज मेरी चूत बहुत थक गयी है रे, छूने से भी दुखती है, चुदवाऊंगी तो मर ही जाऊंगी!"
"अब किरकिर करेगी तो गांड मार लूंगा अम्मा, फ़िर न कहना"