गतान्क से आगे.
कामिनी ने किताबो का बंड्ल हाथो मे उठाया & चंद्रा साहब के ड्रॉयिंग रूम
मे दाखिल हुई.दोपहर का वक़्त था,लग रहा था सब सो रहे हैं.अभी 2 दिन पहले
ही वो उनसे मिली थी & आज यहा आने का उसका इरादा नही था मगर ये कुच्छ
क़ानूनी किताबे थी जो चंद्रा साहब ढूंड रहे थे.इत्तेफ़ाक़ से ये आज
कामिनी को कही मिल गयी तो उसने सोचा की खुद ही उन्हे दे आए तो पंचमहल
क्लब जाने से पहले वो यहा आ गयी.
कोई नौकर भी नज़र नही आ रहा था,उसने दरवाज़े पे दस्तक
दी,"अरे,कामिनी..अचानक!",दस्तक सुन कर आए चंद्रा साहब की बान्छे उसे
देखते ही खिल गयी.
"आप ही की कितबे देने आई हू.",चंद्रा साहब ने उसके हाथ से बंड्ल लिया &
उसे खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया.
"आंटी कहा हैं?...ऊफ्फ..छ्चोड़िए ना....!",वो कामिनी को बाहो मे भर के
दीवानो की तरह चूमे जा रहे थे.
"अंदर मालिश वाली से मालिश करवा रही है.",कामिनी ने आज घुटनो तक की
काले-सफेद प्रिंट वाली ड्रेस पहनी थी.ड्रेस उसकी छातियो के नीचे तक कसी
हुई थी फिर बिल्कुल ढीली.इसी का फाय्दा उठा ते हुए चंद्रा साहब ने उसकी
ड्रेस मे नीचे से हाथ घुसा के उसकी भारी गंद की फांको को दबोच लिया था.
"उन्होने ड्रेस को कमर तक उठा दिया,"हूँ..आज काली पॅंटी पहनी है
तुमने.ब्रा भी काला ही है क्या?",उनकी ऐसी बेशर्म बात सुनके कामिनी के
चेहरे का रंग हया से सुर्ख हो गया.
"अभी आंटी से आपकी शिकायत करती हू..",उसने उन्हे परे धकेला & अंदर जाने लगी.
"क्या कहोगी?"
"कहूँगी की जवान लड़कियो से उनके ब्रा का रंग पुछ्ते हैं..आपको ज़रा काबू
मे रखें..हाआ...!",चंद्रा साहब ने उसे पीछे से पकड़ लिया था & उसकी गर्दन
चूमने लगे थे.
"चलो कमरे मे चलते हैं..आधा घंटा लगेगा अभी उसे मालिश मे.",चंद्रा साहब
ने ड्रेस के उपर से ही उसकी चूचिया दबाई.
"..ऊवन्न्नह...नही..",कामिनी उनकी पकड़ से निकल भागी & घर के अंदर चली
गयी.1 कमरे से होके उस कमरे का रास्ता था जिसमे मिसेज़.चंद्रा मालिश करवा
रही थी,नमस्ते आंटी.",कामिनी ने कमरे के दरवाज़े पे जाके कहा.
"अरे कामिनी.कैसे आना हुआ?"
"सर को कुच्छ किताबे देने आई थी."
"अच्छा तो उनसे बाते करो लेकिन मेरे आने के पहले जाना मत..क्या करू?इधर
जोड़ो मे बहुत दर्द था इसलिए ये मालिश भी ज़रूरी है."
"हां-2 आंटी,आप मालिश करवाईए मैं बैठती हू."
तब तक चंद्रा साहब वाहा आ गये & उसे बाहो मे भर के वाहा से ले जाने लगे
मगर कामिनी मानी नही,"चलो दूसरे कमरे मे चलते हैं.",उन्होने उसे चूमा.
"नही..यही रहिए..",वो फुसफुसाई.दूसरे कमरे मे उनकी बीवी थी & यहा ये खेल
खेलने मे उसे फिर से वही मज़ा आने वाला था जो डर & रोमांच के एहसास से
पैदा होता था.उसने अपने गुरु के गले मे बाहे डाल दी & उनके होठ चूमने
लगी.चंद्रा साहब के हाथ 1 बार फिर उसकी गंद पे चले गये थे.जिस कमरे मे
मिसेज़.चंद्रा थी & जिस कमरे मे ये दोनो 1 दूसरे को चूम रहे थे उनके बीचे
की दीवार से लगा 1 शेल्फ था.
Badla बदला compleet
Re: Badla बदला
चंद्रा साहब कामिनी को चूमते हुए उस शेल्फ पे ले गये & उसे उसपे बिठा
दिया..आख़िर क्या कशिश थी इस लड़की मे जो वो भी किसी कॉलेज के लड़के की
तरह बर्ताव करने लगे थे..जैसी हरकतें..जैसी बाते वो इसके साथ करते थे
वैसी तो उन्होने अपनी बीवी से भी आज तक नही की थी.
शेल्फ पे बैठते ही कामिनी ने अपनी टाँगे फैला दी & चंद्रा साहब उनके बीच
खड़े हो उसे चूमते हुए उसकी ड्रेस के पतले स्ट्रॅप्स को कंधो से नीचे
उतारने लगे.पीठ पे लगी ज़िप को खोल उन्होने स्ट्रॅप्स को नीचे किया तो
ड्रेस सीने के नीचे उसकी गोद मे मूडी सी पड़ गयी,"..हां,काला ही
है.",उसके ब्रा को देखते ही उनके मुँह से निकला.
उनकी बात से कामिनी के होंठो पे मुस्कान आ गयी & उसने अपना हाथ नीचे ले
जाके उनके पाजामे की डोर खींच दी,पाजामा नीचे गिरा & उनका लंड उसके हाथो
मे आ गया.चंद्रा साहब ने बिना ब्रा खोले उसे उपर कर उसकी चूचियो को नंगा
किया,"कामिनी..तुम यही हो क्या?"
"जी आंटी..यही मॅगज़ीन पढ़ रही हू..सर कुच्छ काम कर रहे हैं उन्हे
डिस्टर्ब करना ठीक नही लगा."
"अच्छा..मैं भी बस 15-20 मिनिट मे फ्री हो जाऊंगी."
"ओके,आंटी.",उनकी बातचीत के दौरान वो लगातार चंद्रा साहब का लंड हिलाती
रही & वो झुक के उसकी चूचिया चूस्ते रहे.कामिनी उनका सर अपने सीने से
उठाया & झुक के उनके लंड को मुँह मे भर लिया.वो शेल्फ पे बैठी हुई झुक के
उनका लंड चूस रही थी & वो बेचैनी से उसकी पीठ पे हाथ फेर रहे थे & बीच-2
मे झुक के उसकी पीठ पे चूम रहे थे.उनकी असिस्टेंट लंड चूसने मे माहिर थी
& कुच्छ पॅलो बाद ही चंद्रा साहब को ऐसा लगा की अगर उन्होने उसे नही रोका
तो वो अब झाड़ जाएँगे & वो ऐसा नही चाहते थे.
उन्होने उसके सर को अपने लंड से अलग किया & उपर उठाया.काले,घने बालो से
घिरा कामिनी का खूबसूरत चेहरा इस वक़्त मदहोशी के रंग से सराबोर था.उसकी
काली,बड़ी-2 आँखो मे झाँकते हुए चंद्रा साहब ने उसकी पॅंटी खींची तो उसने
अपनी टाँगे हवा मे उठा दी & जैसे ही उन्होने अपना लंड उसकी चूत पे रख के
धक्का मारा उसने उनके गले मे बाहे डाल दी & हवा मे उठी टाँगो को उनकी कमर
पे लपेट उन्हे अपनी गिरफ़्त मे ले लिया.
"आहह....!",लंड जैसे ही चूत मे घुसा कामिनी कराही.
"क्या हुआ कामिनी?"
"कुच्छ नही,आंटी..आपके घर मे 1 बड़ा सा चूहा है..",उसने अपने गुरु की
आँखो मे देखते हुए मस्ती मे पागल हो उनके बाए कान को काट लिया.चंद्रा
साहब उसका इशारा समझ गये थे & उन्होने अपने धक्के तेज़ कर दिए.
"नौकर से कहके कल ही दवाई डलवाती हू वरना बड़ा नुकसान कर देगा."
"दवाई से इसका कुच्छ नही बिगड़ेगा..",कामिनी ने आँखो से चंद्रा साहब को
उनके लंड की ओर इशारा किया & अपनी कमर हिलाने लगी,"..बहुत बड़ा है..इसके
लिए तो कोई चूहे दानी लाइए.",उसकी बात से चंद्रा सहाब जोश मे पागल हो गये
& उसकी गंद को थाम तेज़ी से धक्के लगाने लगे.
कामिनी उनके गले से लगी हुई उनके बाए कंधे पे सर रखे हुए,अपनी टाँगे
लपेटे उनके धक्के झेले जा रही थी.इस तरह से खड़े होकर चोदने से चंद्रा
साहब का लंड ना केवल उसकी चूत की दीवारो को बल्कि उसके दाने को भी रगड़
रहा था & वो बहुत मस्त हो गयी थी.दोनो को पता था की अब किसी भी वक़्त
मिसेज़.चंद्रा की मालिश ख़त्म हो सकती है सो दोनो अब शिद्दत से झड़ने की
कोशिश कर रहे थे.
चंद्रा साहब के हाथो मे उसकी चौड़ी गंद का एहसास उन्हे पागल कर रहा था &
उसकी बातो ने तो उनका जोश बढ़ा ही दिया था,कामिनी भी इस मौके से & पकड़े
जाने के डर से कुच्छ ज़्यादा ही रोमांचित थी & उसकी चूत भी अब
सिकुड़ने-फैलने लगी थी.उसकी चूत की इस हरकत से चंद्रा साहब को पता चल
जाता था की उनकी शिष्या झड़ने वाली है,साथ ही उनका लंड भी मस्ती मे
बेक़ाबू हो जाता था.कामिनी अपने होठ काट कर अपनी आहो को रोक रही थी &
चंद्रा साहब उसके बाए कंधे पे सर रखे बस धक्के पे धक्के लगाए चले जा रहे
थे.
दिया..आख़िर क्या कशिश थी इस लड़की मे जो वो भी किसी कॉलेज के लड़के की
तरह बर्ताव करने लगे थे..जैसी हरकतें..जैसी बाते वो इसके साथ करते थे
वैसी तो उन्होने अपनी बीवी से भी आज तक नही की थी.
शेल्फ पे बैठते ही कामिनी ने अपनी टाँगे फैला दी & चंद्रा साहब उनके बीच
खड़े हो उसे चूमते हुए उसकी ड्रेस के पतले स्ट्रॅप्स को कंधो से नीचे
उतारने लगे.पीठ पे लगी ज़िप को खोल उन्होने स्ट्रॅप्स को नीचे किया तो
ड्रेस सीने के नीचे उसकी गोद मे मूडी सी पड़ गयी,"..हां,काला ही
है.",उसके ब्रा को देखते ही उनके मुँह से निकला.
उनकी बात से कामिनी के होंठो पे मुस्कान आ गयी & उसने अपना हाथ नीचे ले
जाके उनके पाजामे की डोर खींच दी,पाजामा नीचे गिरा & उनका लंड उसके हाथो
मे आ गया.चंद्रा साहब ने बिना ब्रा खोले उसे उपर कर उसकी चूचियो को नंगा
किया,"कामिनी..तुम यही हो क्या?"
"जी आंटी..यही मॅगज़ीन पढ़ रही हू..सर कुच्छ काम कर रहे हैं उन्हे
डिस्टर्ब करना ठीक नही लगा."
"अच्छा..मैं भी बस 15-20 मिनिट मे फ्री हो जाऊंगी."
"ओके,आंटी.",उनकी बातचीत के दौरान वो लगातार चंद्रा साहब का लंड हिलाती
रही & वो झुक के उसकी चूचिया चूस्ते रहे.कामिनी उनका सर अपने सीने से
उठाया & झुक के उनके लंड को मुँह मे भर लिया.वो शेल्फ पे बैठी हुई झुक के
उनका लंड चूस रही थी & वो बेचैनी से उसकी पीठ पे हाथ फेर रहे थे & बीच-2
मे झुक के उसकी पीठ पे चूम रहे थे.उनकी असिस्टेंट लंड चूसने मे माहिर थी
& कुच्छ पॅलो बाद ही चंद्रा साहब को ऐसा लगा की अगर उन्होने उसे नही रोका
तो वो अब झाड़ जाएँगे & वो ऐसा नही चाहते थे.
उन्होने उसके सर को अपने लंड से अलग किया & उपर उठाया.काले,घने बालो से
घिरा कामिनी का खूबसूरत चेहरा इस वक़्त मदहोशी के रंग से सराबोर था.उसकी
काली,बड़ी-2 आँखो मे झाँकते हुए चंद्रा साहब ने उसकी पॅंटी खींची तो उसने
अपनी टाँगे हवा मे उठा दी & जैसे ही उन्होने अपना लंड उसकी चूत पे रख के
धक्का मारा उसने उनके गले मे बाहे डाल दी & हवा मे उठी टाँगो को उनकी कमर
पे लपेट उन्हे अपनी गिरफ़्त मे ले लिया.
"आहह....!",लंड जैसे ही चूत मे घुसा कामिनी कराही.
"क्या हुआ कामिनी?"
"कुच्छ नही,आंटी..आपके घर मे 1 बड़ा सा चूहा है..",उसने अपने गुरु की
आँखो मे देखते हुए मस्ती मे पागल हो उनके बाए कान को काट लिया.चंद्रा
साहब उसका इशारा समझ गये थे & उन्होने अपने धक्के तेज़ कर दिए.
"नौकर से कहके कल ही दवाई डलवाती हू वरना बड़ा नुकसान कर देगा."
"दवाई से इसका कुच्छ नही बिगड़ेगा..",कामिनी ने आँखो से चंद्रा साहब को
उनके लंड की ओर इशारा किया & अपनी कमर हिलाने लगी,"..बहुत बड़ा है..इसके
लिए तो कोई चूहे दानी लाइए.",उसकी बात से चंद्रा सहाब जोश मे पागल हो गये
& उसकी गंद को थाम तेज़ी से धक्के लगाने लगे.
कामिनी उनके गले से लगी हुई उनके बाए कंधे पे सर रखे हुए,अपनी टाँगे
लपेटे उनके धक्के झेले जा रही थी.इस तरह से खड़े होकर चोदने से चंद्रा
साहब का लंड ना केवल उसकी चूत की दीवारो को बल्कि उसके दाने को भी रगड़
रहा था & वो बहुत मस्त हो गयी थी.दोनो को पता था की अब किसी भी वक़्त
मिसेज़.चंद्रा की मालिश ख़त्म हो सकती है सो दोनो अब शिद्दत से झड़ने की
कोशिश कर रहे थे.
चंद्रा साहब के हाथो मे उसकी चौड़ी गंद का एहसास उन्हे पागल कर रहा था &
उसकी बातो ने तो उनका जोश बढ़ा ही दिया था,कामिनी भी इस मौके से & पकड़े
जाने के डर से कुच्छ ज़्यादा ही रोमांचित थी & उसकी चूत भी अब
सिकुड़ने-फैलने लगी थी.उसकी चूत की इस हरकत से चंद्रा साहब को पता चल
जाता था की उनकी शिष्या झड़ने वाली है,साथ ही उनका लंड भी मस्ती मे
बेक़ाबू हो जाता था.कामिनी अपने होठ काट कर अपनी आहो को रोक रही थी &
चंद्रा साहब उसके बाए कंधे पे सर रखे बस धक्के पे धक्के लगाए चले जा रहे
थे.
Re: Badla बदला
तभी कामिनी की चूत मे बन रहा सारा तनाव अपनी चरम सीमा पे पहुँच गया..उसके
गले से निकलती आह को उसने अपने गुरु के कंधे मे सर च्छूपा के वाहा पे
काटते हुए दफ़्न किया & झड़ने लगी,चंद्रा साहब का लंड भी पिचकारिया
छ्चोड़ अपना गाढ़ा पानी उसकी चूत मे गिराने लगा.
"लो हो गया,मालकिन.",अंदर से मालिश वाली की आवाज़ आई तो कामिनी जल्दी से
शेल्फ से उतरी & अपना ब्रा & ड्रेस ठीक करने लगी.उसने देखा की उसकी ज़मीन
पे गिरी पॅंटी चंद्रा साहब उठा के अपनी जेब के हवाल कर रहे हैं.
"आज नही..",कामिनी ने उनसे पॅंटी छीनी & तुरंत अपनी टाँगे उसमे डाल के
उसे उपर चढ़ा लिया,फिर उन्हे जल्दी से 1 किस दी & पास पड़ी कुर्सी पे बैठ
गयी.मिसेज़.चंद्रा के आने के बाद थोड़ी देर तक उसने उनसे बात की & फिर
क्लब चली गयी.
........................................
"अरे दवाइयाँ तो भूल ही गये..!",नाश्ते की मेज़ से उठ के दफ़्तर की ओर
बढ़ते सुरेन सहाय के कदम बीवी की आवाज़ सुनते ही रुक गये.
"लाओ..",उन्होने देविका के हाथो से दवा & पानी का ग्लास लेके दवा खा ली.
"चलिए.."
"कहा?"
"भूल गये?..आज से मैं भी दफ़्तर आने वाली हू."
"गुड मॉर्निंग,डॅडी!..गुड मॉर्निंग,मुम्मा!",सीढ़ियो से नीचे उतरते
प्रसून को देख दोनो के चेहरे पे मुस्कुराहट खिल गयी.
"गुड मॉर्निंग,बेटा!आज कितनी देर से उठा है?",देविका ने उसके बालो मे हाथ फेरा.
"सॉरी ममा!..पता ही नही चला ना..आज सूरज तो निकला ही नही!",सुरेन जी उसकी
बात सुनके हैरान हुए & देविका की ओर सवालिया नज़रो से देखा.
"बेटा,सूरज निकला है मगर बादल छाए हुए है ना..तो उनके पीछे छुप गया
है.",हंसते हुए उसने सुरेन जी को देखा तो उनकी भी हँसी छूट गयी.
"ओह्ह..तो क्या सूरज भी लूका-छीपी खेलता है ममा?"
"हां,देखो खेल तो रहा है..लेकिन जब हवा चलेगी ना तो बदल उड़ जाएँगे & फिर
वो दिखने लगेगा."
"हां..फिर पकड़ा जाएगा..फिर हम छुपेन्गे & वो हमे ढूंदेगा!",प्रसून खुशी
से ताली बजाने लगा.
"हां बेटा..अच्छा चलो अब नाश्ता करो.."
"आप नही करेंगी?"
"मैने कर लिया बेटा."
"मेरा वेट नही किया आपने.",प्रसून बच्चे की तरह रूठ गया..अब था तो वो 1
बच्चा ही.24 साल का हो गया था वो,6 फिट का कद,अच्छे ख़ान-पान & रहन-सहन
से शरीर भी काफ़ी भरा & मज़बूत हो गया था मगर दिलोदिमाग से वो कोई 7-8
बरस के बच्चे जैसा ही था.
"सॉरी बेटा मगर क्या करती आप ही देर से उठे & फिर आज ममा को डॅडी के साथ
ऑफीस भी जाना है ना."
"वाउ!..तो मैं भी चलु."
"नही,प्रसून..अभी नही..तुम तो लंचटाइम मे आते हो ना मेरा लंच
लेके.",सुरेन जी ने अपनी एकलौती औलाद को समझाया.
"..तो मैं घर मे अकेला क्या करूँगा?"
"अकेला कहा है..ये देख सभी तो हैं..",देविका ने नौकर-नौकरानियो की ओर
इशारा किया.वो सब भी प्रसून से 1 बच्चे की तरह ही पेश आते थे,"वो देख
रजनी भी आ गयी..रजनी चलो प्रसून को नाश्ता कराओ & इसे अकेला बिल्कुल मस्त
छ्चोड़ना वरना मैं आके तुम्हे बहुत डाँट लगाउन्गि!",डेविका ने प्रसून को
खुश करने के लिए रजनी से कहा.
"जी,मॅ'म..ये रहा भाय्या का नाश्ता..आज तो बाय्ल्ड एग्स हैं!",रजनी ने
टोस्ट पे मक्खन लगाके उसकी तश्तरी मे रखे.
"रजनी,सब संभाल लेना.",देविका सुरेन जी के पीछे तेज़ कदमो से दफ़्तर जा रही थी.
"डॉन'ट वरी,मॅ'म.आप बेफ़िक्र रहिए.",रजनी ने उसे भरोसा दिलाया.यू तो घर
मे कई नौकर थे मगर देविका को रजनी पे सबसे ज़्यादा भरोसा था.
35 साल की बहुत साधारण शक्ल-सूरत वाली साँवले रंग की रजनी थी भी बहुत
नेक्दिल & लगन से अपना काम करती थी.उसके मा-बाप ने उसकी शादी की बहुत
कोशिश थी मगर उन्हे कोई ऐसा लड़का नही मिला जोकि रजनी की मामूली शक्ल के
पीछे छुपे उसके गुण देख सकता,धीरे-2 रजनी ने भी शादी की आस छ्चोड़ दी थी
& पूरी तरह से सहाय परिवार की सेवा मे खुद को डूबा लिया था.
मगर इधर कुच्छ दीनो से उसकी सोई ख्वाहिशे फिर से जाग उठी थी,उसके दिल मे
फिर से अरमान मचलने लगे थे.इस सबका कारण था इंदर.सारे नौकरो को हफ्ते मे
1 छुट्टी मिलती थी-रविवार को.ज़्यादातर नौकर एस्टेट के आस-पास के गाँवो
या फिर हलदन से थे तो इस दिन अपने परिवार से मिलने चले जाते थे केवल 1
रजनी ही थी जोकि यहा की नही थी तो वो कभी भी छुट्टी नही लेती थी.
क्रमशः..............
गले से निकलती आह को उसने अपने गुरु के कंधे मे सर च्छूपा के वाहा पे
काटते हुए दफ़्न किया & झड़ने लगी,चंद्रा साहब का लंड भी पिचकारिया
छ्चोड़ अपना गाढ़ा पानी उसकी चूत मे गिराने लगा.
"लो हो गया,मालकिन.",अंदर से मालिश वाली की आवाज़ आई तो कामिनी जल्दी से
शेल्फ से उतरी & अपना ब्रा & ड्रेस ठीक करने लगी.उसने देखा की उसकी ज़मीन
पे गिरी पॅंटी चंद्रा साहब उठा के अपनी जेब के हवाल कर रहे हैं.
"आज नही..",कामिनी ने उनसे पॅंटी छीनी & तुरंत अपनी टाँगे उसमे डाल के
उसे उपर चढ़ा लिया,फिर उन्हे जल्दी से 1 किस दी & पास पड़ी कुर्सी पे बैठ
गयी.मिसेज़.चंद्रा के आने के बाद थोड़ी देर तक उसने उनसे बात की & फिर
क्लब चली गयी.
........................................
"अरे दवाइयाँ तो भूल ही गये..!",नाश्ते की मेज़ से उठ के दफ़्तर की ओर
बढ़ते सुरेन सहाय के कदम बीवी की आवाज़ सुनते ही रुक गये.
"लाओ..",उन्होने देविका के हाथो से दवा & पानी का ग्लास लेके दवा खा ली.
"चलिए.."
"कहा?"
"भूल गये?..आज से मैं भी दफ़्तर आने वाली हू."
"गुड मॉर्निंग,डॅडी!..गुड मॉर्निंग,मुम्मा!",सीढ़ियो से नीचे उतरते
प्रसून को देख दोनो के चेहरे पे मुस्कुराहट खिल गयी.
"गुड मॉर्निंग,बेटा!आज कितनी देर से उठा है?",देविका ने उसके बालो मे हाथ फेरा.
"सॉरी ममा!..पता ही नही चला ना..आज सूरज तो निकला ही नही!",सुरेन जी उसकी
बात सुनके हैरान हुए & देविका की ओर सवालिया नज़रो से देखा.
"बेटा,सूरज निकला है मगर बादल छाए हुए है ना..तो उनके पीछे छुप गया
है.",हंसते हुए उसने सुरेन जी को देखा तो उनकी भी हँसी छूट गयी.
"ओह्ह..तो क्या सूरज भी लूका-छीपी खेलता है ममा?"
"हां,देखो खेल तो रहा है..लेकिन जब हवा चलेगी ना तो बदल उड़ जाएँगे & फिर
वो दिखने लगेगा."
"हां..फिर पकड़ा जाएगा..फिर हम छुपेन्गे & वो हमे ढूंदेगा!",प्रसून खुशी
से ताली बजाने लगा.
"हां बेटा..अच्छा चलो अब नाश्ता करो.."
"आप नही करेंगी?"
"मैने कर लिया बेटा."
"मेरा वेट नही किया आपने.",प्रसून बच्चे की तरह रूठ गया..अब था तो वो 1
बच्चा ही.24 साल का हो गया था वो,6 फिट का कद,अच्छे ख़ान-पान & रहन-सहन
से शरीर भी काफ़ी भरा & मज़बूत हो गया था मगर दिलोदिमाग से वो कोई 7-8
बरस के बच्चे जैसा ही था.
"सॉरी बेटा मगर क्या करती आप ही देर से उठे & फिर आज ममा को डॅडी के साथ
ऑफीस भी जाना है ना."
"वाउ!..तो मैं भी चलु."
"नही,प्रसून..अभी नही..तुम तो लंचटाइम मे आते हो ना मेरा लंच
लेके.",सुरेन जी ने अपनी एकलौती औलाद को समझाया.
"..तो मैं घर मे अकेला क्या करूँगा?"
"अकेला कहा है..ये देख सभी तो हैं..",देविका ने नौकर-नौकरानियो की ओर
इशारा किया.वो सब भी प्रसून से 1 बच्चे की तरह ही पेश आते थे,"वो देख
रजनी भी आ गयी..रजनी चलो प्रसून को नाश्ता कराओ & इसे अकेला बिल्कुल मस्त
छ्चोड़ना वरना मैं आके तुम्हे बहुत डाँट लगाउन्गि!",डेविका ने प्रसून को
खुश करने के लिए रजनी से कहा.
"जी,मॅ'म..ये रहा भाय्या का नाश्ता..आज तो बाय्ल्ड एग्स हैं!",रजनी ने
टोस्ट पे मक्खन लगाके उसकी तश्तरी मे रखे.
"रजनी,सब संभाल लेना.",देविका सुरेन जी के पीछे तेज़ कदमो से दफ़्तर जा रही थी.
"डॉन'ट वरी,मॅ'म.आप बेफ़िक्र रहिए.",रजनी ने उसे भरोसा दिलाया.यू तो घर
मे कई नौकर थे मगर देविका को रजनी पे सबसे ज़्यादा भरोसा था.
35 साल की बहुत साधारण शक्ल-सूरत वाली साँवले रंग की रजनी थी भी बहुत
नेक्दिल & लगन से अपना काम करती थी.उसके मा-बाप ने उसकी शादी की बहुत
कोशिश थी मगर उन्हे कोई ऐसा लड़का नही मिला जोकि रजनी की मामूली शक्ल के
पीछे छुपे उसके गुण देख सकता,धीरे-2 रजनी ने भी शादी की आस छ्चोड़ दी थी
& पूरी तरह से सहाय परिवार की सेवा मे खुद को डूबा लिया था.
मगर इधर कुच्छ दीनो से उसकी सोई ख्वाहिशे फिर से जाग उठी थी,उसके दिल मे
फिर से अरमान मचलने लगे थे.इस सबका कारण था इंदर.सारे नौकरो को हफ्ते मे
1 छुट्टी मिलती थी-रविवार को.ज़्यादातर नौकर एस्टेट के आस-पास के गाँवो
या फिर हलदन से थे तो इस दिन अपने परिवार से मिलने चले जाते थे केवल 1
रजनी ही थी जोकि यहा की नही थी तो वो कभी भी छुट्टी नही लेती थी.
क्रमशः..............