नौकरी हो तो ऐसी

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The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:18



छाया रहती गाव मे थी परंतु दिखने मे एकदम गोरी, सादे पाच फीट कद, भरा हुवा गोलाकार शरीर, 20-21 साल की उमर, उसके तने हुए ब्लाउस से बाहर निकलने की चाह रखनेवाली उसकी चुचिया, उसके वो भरी हुई मदमस्त गांद, उसकी वो चाल, चलते समय उसकी गोल गोल गांद इस तरह हिल रही थी, कि देखनेवाले दंग रह जाए.

उसने अपने सर पे संदूक रखा हुवा था, और वो चले जा रही थी, मनोहर के पीछे पीछे. मनोहर कद मे उससे कम लग रहा था, थोड़ा सा मोटू और छोटू और बड़ा ही अच्छा इंसान मालूम पड़ रहा था, अपने चेहरे से, और उसकी बीवी, छाया मदमस्त अपने स्थानो को गांद को हिलाते हुए चले जा रही थी.

थोड़ी ही देर मे हम स्टेशन से बाहर निकल आए, बाहर सेठ जी और सेठानी के लिए एक तांगा, और दूसरा तांगा बहू और मेरे लिए खड़ा था, मनोहर सेठ जी के साथ टांगे मे बैठ गया और मेरे और बहू के साथ छाया बैठ गयी, मैं तो तांगे वाले के साथ आगे मूह करके बैठा था, और मेरे पीठ पीछे छाया बैठी थी, अब मैने थोड़ा सा वातावरण का अंदाज लेना चाहा.

मैं पीछे खिसक गया, और छाया की पीठ से पीठ लगा दी, वैसे ही वो आगे सरक गयी, और चुपचाप बैठ गयी, मैं फिरसे उसकी तरफ खिसका, इस बार वो आगे सरक नही पाई, क्यू की वो आगे सरक्ति तो तांगे से गिर जाती, पसीने से उसके सारी का पल्लू गीला था, वो मुझे महसूस होने लगा, मैं और थोड़ा पीछे खिसक गया और उसके पीठ से अपनी पीठ पूरी तरह चिपकाकर उसकी पीठ पर रेल दिया.

जैसे ही तांगा हिलता, हम दोनो एक दूसरे के और करीब आ जाते और ज़्यादा चिपक जाते, जैसे की मेरा बाया हाथ बहू के बाजू मे था, मैने अपना दाया हाथ पीछे किया, और उसे पीछे करते हुए हल्केसे छाया की चुचि के साइड पर मलने लगा, जैसे ही मैने छाया की चुचि के साइड पर हाथ रखा, मैं महसूस कर पा रहा था, कि उसकी सासे तेज़ हो रही है.

अब मैने हल्केसे बहू की तरफ देखा तो उसकी आँख लग चुकी थी, और तांगा सुरक्षित होने के कारण उससे गिरने का कोई ख़तरा भी नही था, मेरा हौसला बहू के सोने के कारण और बढ़ गया, और मैने अब अपना हाथ छाया की चुचि के साइड से निकाल के उसकी पूरी गोलाकार, भारी हुई चुचि पर रख दिया, और उसे मसलने लगा, थोड़ी ही देर मे मुझे उसका निपल हाथ मे लगा, मैने उसे दबाना शुरू किया, वैसे ही छाया की सासे और बढ़ने लगी,
छाया मेरे कान मे बोली "ये क्या कर रहे हो बाबूजी…."
मैं कुछ नही बोला.

उसने एक हाथ से मेरे हाथ को उसके स्तनो से निकालने की कोशिश की, परंतु ये मैं भी समझ गया था कि, उस कोशिश मे दम नही था, और वो महज ही कोशिश कर रही थी, मैने अब अपना हाथ और पीछे करते हुए उसके ब्लाउस मे हाथ डाल दिया, जैसे ही मैने उसके ब्लाउस मे हाथ डाला "वाह क्या बड़ी बड़ी नरम नरम चुचिया थी उसकी…..क्या बोलू …स्वर्ग समेत आनंद महसूस होने लगा."

पूरे सफ़र मे मैं उसकी कोमल चुचियो को मसल रहा था, और निपल्स को चिमकारिया ले रहा था, छाया की हालत बहुत पतली हो गयी थी, वो ज़ोर ज़ोर से सासे ले रही थी, लग रहा था कि उसे इस तरह अभी तक किसीने गरम ना किया हो, मेरा लंड तो ऐसे खड़ा हो गया था मानो जैसे पॅंट को चीर के बाहर आ जाए.

The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:19


अब गाव दिखने लगा था, मैने छाया के ब्लाउस से अपना हाथ निकाल लिया, और आगे की तरफ ध्यान से देखने लगा,
इतने मे तान्गेवाला बोला "अब हम पाच मिनिट मे घर पहुच जाएँगे बाबू…..वो जो हवेली दिख रही है पीले रंग की …. वो है सेठ जी की हवेली"

तांगा हवेली के सामने जाके रुका, और मैं नीचे कूद गया, अंदरसे दो चार लोग बाहर आ गये, और समान उठाके अंदर ले जाने लगे. हवेली पुरखो की और बहुत पुरानी मालूम होती थी, परंतु उसकी देखभाल बहुत अच्छे की गयी होगी क्यूकी आज भी वो हवेली एकदम शान से खड़ी थी, और उसपे वो अलग अलग तरह का नाकषिकम उसे और भी शोभा दे रहा था.

सेठ जी ने मुझे अंदर बुलाया और एक नौकर को मुझे मेरा कमरा दिखाने के लिए बोला, मैं अंदर गया, तो वो नौकर आके मुझे मेरे कमरे की तरफ, समान उठाके लेके निकल पड़ा, हवेली 3 माले की थी. नीचे के माले पे सेठ जी रहते होंगे ऐसे मैने सोचा, पता नही था, परंतु अभी आ गया हू तो पता चला ही जाएगा. वो नौकर मुझे दूसरे माले पे लेके गया और एक कमरा खोल के मेरा समान रखते हुए मेरे हाथ मे चाबी देते हुए निकल गया. मैं कमरे के अंदर आया कमरे के अंदर एक अच्छा सा बिस्तर, एक बड़ा सा मेज, एक छोटा परंतु आरामदायक 2 आदमियोको बैठने के लिए सोफा, और बहुत सारा समान अच्छी तरह रखा हुआ था. बाजू मे ही जोड़के छोटसा बाथरूम था, मैं तो शहर मे भी इतना खुशहाली से नही रहा था, ऐसे लग रहा था अब गाव मे ही मेरा आगे का जीवन व्यतीत होनेवाला हो.

मैने बाथरूम के अंदर जाके मूह हाथ धो लिया, और आके अपने बिस्तर पर लेट गया, लगभग शाम हो रही थी तब दरवाजे पे किसीकि हाथ की आवाज़ सुनाई दी, मैने जाके दरवाजा खोला, तो बाहर सेठानी खड़ी थी.
मैं बोला "इतने देर बाद याद आई हमारी"
सेठानी बोली "नही ऐसी बात नही है….पर अब हालत ट्रेन जैसे थोड़ी ही है…तुम जल्दिसे तैयार होके नीचे आ जाओ ….नाश्ता और चाइ तैयार है ……नाश्ता होनेके बाद 6 बजे माता रानी की पूजा है ….आज बहुरानी घर आई है ना इसलिए…..तो तुम जल्दिसे नीचे आ जाओ…सेठ जी तुम्हारा इंतेज़ार कर रहे है"
मैं बोला "ये तो ठीक है सेठानी जी…परंतु हमारी रात की पेट पूजा का क्या बंदोबस्त है"
सेठानी बोली "वो तो हमारी प्यारी बहुरानी पे निर्भर है….देखते है कैसे रास्ता निकल आता है आपकी और हमारी पेट पूजा का.."

ये कह के सेठानी चल दी, मैं तैयार होके नीचे के माले पे आ गया, उतने मे मुझे छाया ने आवाज़ दी और मुझे नाश्ते के लिए अंदर बुलाया. मैं अंदर चला गया और एक टेबल पे बैठ गया, छाया आई और मुझे नाश्ता देने लगी, मैने हल्केसे उसके पिछवाड़े की तरफ हाथ डालते हुए उसके गांद को एक छोटिसी चिमती ली, तो वो उछल पड़ी और हस्ने लगी और बोली "लगता है आप अपनी हर्कतो से बाज नही आनेवाले बाबूजी…." और मुझे आँख मार दी. थोड़ी ही देर मे मैने नाश्ता ख़तम किया तो एक नौकर आके मुझे बोला "बाबूजी बगल के कमरे मे पूजा शुरू होनेवाली है …आप जल्दिसे वाहा आईएगा …गाव के बहुत सब लोग आए है"
क्रमशः..............


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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:22

नौकरी हो तो ऐसी--8

गतान्क से आगे......
जब मैं उस बगल के कमरे मे पहुचा तो दंग रह गया, लगभग सत्तर अस्सी लोग पूजा के लिए खड़े हुए थे, अब पूजा शुरू हो रही थी, मैं सारे लोगो के पीछे जाके खड़ा हो गया, और आरती शुरू हो गयी, अब गाव से और दस बारह लोग आ गये, और मेरे पीछे खड़े हो गये.

इस सब हड़बड़ाहट मे मैं कब महिलाओ की साइड के पीछे आ गया मुझे पता ही नही चला. मैं अब बहुत सारी औरतो के पीछे खड़ा था, और कितना भी टालू, उनसे स्पर्स तो हो ही रहा था, मेरे सामने एक लाल रंग की सारी मे एक महिला खड़ी थी. एकदम स्लिम थी, परंतु जैसे के मैं पीछेसे देख पा रहा था, उसके चुचिया एकदम भरी हुई थी, और लटक रही थी, अब और ज़्यादा लोग आ गये और इस वजह से हम लोग एक दूसरे के और नज़दीक आ गये, जैसे ही मेरा स्पर्श होने लगा उसकी सासे तेज़ होने लगती थी, वो लाल कॉलर की सारी मे और ब्लाउस मे एकदम उत्तेजक दिख रही थी, उसके गांद के घेराव सारी के बीच पूरे छिपे हुए थे.

थोड़ी ही देर मे हमारे रामजी लाल सारी वाली महिला के पिछवाड़े से टकराने लगे और हमारी जान निकलने लगी, सोच रहे थे कि कही कोई देख लेगा तो जिंदगी की पूरी वाट लगा देगा, पर वासना तो दोनोकी जागृत हो चुकी थी, मैं थोड़ा पीछे हो गया, परंतु अब उसकी बारी थी वो महिला भी पीछे हो गयी और मेरे लंड महाराज फिरसे उनके गंद के घेराव से चिपक गये.

अब मुझसे थोड़े ही रहा जाने वाला था, मैं अब आगे हो गया और उस महिला के पूरी गांद से चिपक गया और लंड को उसके पिछवाड़े पे घिसने लगा, वाह क्या महॉल था, और हम लोग क्या कर रहे थे, मैं पीछेसे उसकी गांद को घिसते हुए उसकी चुचिया देख रहा था, उसने अपनी सारी चुचियो से थोड़ी बाजू कर दी, सो मैं देख सकु, अब मुझे उसकी आधी नग्न चुचिया दिखाने लगी, वाह क्या नज़ारा था. बहुत ही गोरी गोरी थी उसकी चुचिया

अब पिछवाड़े पे लंड घिसते घिसते मेरा लंड इतना तन गया कि, कोई बाजू वाला देखता तो तुरंत पकड़ लेता कि ये क्या कर रहा है! मैने उसकी सारी के बीच बनी पहाड़ो की दरार मे अपना लंड घुसा दिया, और संभोग की कल्पना करते हुए आगे पीछे हिलने लगा, वो महिला अब काफी गरम हो गयी थी, और एक हाथ को पीछे निकाल के मेरी पॅंट के अंदर हाथ डालने की कोशिश किए जा रही थी, परंतु इतने सारे लोगो के बीच वो बात मुमकिन नही हो पा रही थी.

मेरे मंन मे उस महिला के साथ संभोग करने की इच्छा ने अब बहुत उछाल ले लिया था, और मुझे सिर्फ़ उस महिला के साथ कर रहे संभोग का चित्र नज़र आ रहा था, उसकी गरम गरम और नर्मा नरम चुचिया मुझे चूसने के लिए निमंत्रण दे रही थी.

अभी पूजा लगभग ख़तम होने को थी, और लोग बाहर जाने की हड़बड़ाहट मे दिख रहे थे, बहुने दुरसे मुझे देखा और मुझे देखकर आँख मारी, मैं असल मे क्या कर रहा था उसे क्या पता होगा भला? मेरी अंडरवेर अंदर वीर्य से पहले निकलनेवाले पानी से लंड से चिपकेने लगी थी, और मुझे कैसे भी करके अभी किसी को चोदना था.

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