किरण की कहानी compleet

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007
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Re: किरण की कहानी

Unread post by 007 » 15 Oct 2014 19:50

किरण की कहानी पार्ट--4

लेखक-- दा ग्रेट वोरिअर

हिंदी फॉण्ट बाय राज शर्मा

गतांक से आगे........................

अशोक ने अपने कपड़े भी निकाल दिए और नंगा हो गया. मैं ने एक तिरछी नज़र उसके लंड पे डाली तो दिल धाक्क से रह गया. उसका लंड बॅस ऐसे ही था कोई ख़ास नही था टोटल एरेक्ट होने के बाद शाएद 4 इंच या 5 इंच का ही होगा. मैं ने सोचा के शाएद थोड़ी देर के बाद वो और अकड़ के बड़ा हो जाएगा. खैर अब वो मेरे चुचिओ को चूस रहा था और हाथ से मेरी चूत का मसाज कर रहा था. कभी कभी चूत के अंदर अपनी उंगली डाल देता तो मैं सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सिईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई कर के सिसकारी ले लेती. अब उसने मेरा हाथ अपने हाथ मे ले के अपने लंड पे रख दिया. मैं कुछ देर तक ऐसे ही अपना हाथ उसके लंड पे रखी रही तो उसने मेरे हाथ को अपने हाथ से पकड़ के दबाया तो मैं समझ गई के शाएद वो चाहता है के मैं उसका लंड अपनी मुट्ठी मे ले के दबौउ.

मैं उसके लंड को एक या दो बार ही दबाया था के उसने मेरा हाथ हटा दिया और सीधा मेरे ऊपेर चढ़ आया और मेरी टाँगों को फैला के मेरे ऊपेर लेट गया. लंड को मेरे चूत के लिप्स के अंदर सुराख पे सटाया और झुक के मुझे किस करने लगा और एक ही झटके मे उसका लंड मेरी समंदर जैसे गीली चूत के अंदर घुस चुका था और वो सडन्ली ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा और बॅस 4 या 5 ही धक्के लगाया था के उसके मूह से ऊऊऊगगगगगघह की आवाज़ निकली और उसकी मलाई मेरी चूत मे गिर गई. मुझे तो उसका लंड अपनी चूत के

अंदर सही तरीके से महसूस भी नही हुआ और उसकी चुदाई कंप्लीट हो चुकी थी. मेरी कुछ फ्रेंड्स ने बताया था के कभी कभी एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से और कभी चूत की गरमी से लंड से मलाई जल्दी ही निकल जाती है पर कुछ दीनो मे जब चुदाई डेली करते रहते है तो फिर ठीक हो जाता है और अछी तरह से चोदने लगता है और यह के ऐसा अगर कभी हो तो कोई फिकर की बात नही है यही सोच के मैं खामोश हो गई के हो सकता है के एग्ज़ाइट्मेंट या चूत की गर्मी से वो जल्दी ही झाड़ गया हो पर बाद मे अछी तरह से चोद डालेगा.

मैं ने भी सोचा के शाएद एग्ज़ाइट्मेंट मे उसकी क्रीम जल्दी निकाल गई होगी और यह कोई नई बात नही होगी. वो गहरी गहरी साँसें लेता हुआ मेरे बदन पे पड़ा रहा और मेरी चूत मे पहले से ज़ियादा तूफान उठ रहा था और मेरा मन कर रहा था के किसी तरह से सुनील आ जाए और मुझे इतना चोदे के मेरी चूत फॅट जाए पर ऐसा हो नही सकता था ना. मैं कुछ नही कर सकती थी. इंतेज़ार किया के शाएद अशोक के लंड मे फिर से जान पड़ेगी और वो कुछ सही ढंग से चुदाई करेगा पर ऐसा कुछ नही हुआ और वो मेरे बाज़ू मे लेट के गहरी नींद सो गया और एक ही मिनिट मे उसके खर्राटे निकलने लगे.

सुबह हुई तो उसकी बहेन रेणुका कमरे मे आई और मुस्कुराते हुए एक आँख बंद कर के पूछा कियों भाभी रात सोई या भयया ने सारी रात जगाया ?. मैं उस पगली से क्या बताती के उसका भाई मेरी चूत मे आग लगा के सो गया और मैं सारी रात जागती रही और इंतेज़ार करती रही के हो सकता है के उसका लंड फिर से जाग जाए पर ऐसा कुछ हुआ नही और रेणुका से कैसे बताती के उसके भाई को आग लगाना तो आता है पर उस आग को बुझाना नही आता. मैं ने बनावटी शर्म से नज़र नीचे कर ली और मुस्कुरा दी और दिल मे सोचा पता नही इसे कैसा पति मिलेगा पहली रात को चोद चोद के चूत का भोसड़ा बना देगा या मेरी तरह चूत मे आग लगा के सो जाएगा तब मैं पूछुगी उस से के रात कैसी गुज़री रात भर चुदाई होती रही या खुद मलाई निकाल के सो गया और तुम्हारी चूत मे आग लगा के तुम्है सोने नही दिया या लैकिन अभी इस सवाल को पूछने के लिए तो टाइम है.

007
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Re: किरण की कहानी

Unread post by 007 » 15 Oct 2014 19:51

इसी तरह से एक वीक हो गया और मुझे कोई ख़ास मज़ा नही आया. बस वो अपने हिसाब से चोद्ता रहा और हर बार चोद के मुझ से पूछता “मज़ा आया किरण” तो मैं मूह नीचे कर के चुप हो जाती तो वो समझता के शाएद मैं उंसकी चुदाई को एंजाय कर रही हू. पता नही क्या प्राब्लम था उसको के उसका लंड अकड़ता तो था चुदाई से पहले लैकिन चूत की गर्मी से उसकी मलाई दूध बन के निकल जाती थी. ऐसा लगता था के लंड चूत

के अंदर सिर्फ़ मलाई छोड़ने के लिए ही जाता है हार्ड्ली 2 या 3 ही धक्को मे उसका काम तमाम हो जाता था. शुरू शुरू मे तो मैं समझी के शाएद एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से होगा पर वक़्त के साथ ठीक हो जाएगा पर ऐसा कुछ नही हुआ. शादी के बाद टोटल 2 वीक उसके घर रह के हम सिटी मे चले आए जहा उसका बिज़्नेस था.

अशोक के घर वाले सिटी के आउटस्कर्ट्स मे रहते हैं और अशोक एक बिज़्नेसमॅन है उसका रेडी मेड गारमेंट्स का बिज़्नेस ठीक ठाक ही चलता है तो वो अपने बिज़्नेस के लिए डेली औत्स्किर्ट से सिटी मे नही आ सकता था इसी लिए उसने एक घर सिटी मे ले रखा था जिस्मै हम दोनो ही रहते हैं. कभी कभी उसके माता और पिता आजाते या कभी उसकी बहेन रेणुका आ जाती तो एक या दो दिन रह के चले जाते.

घर मे मैं अकेली ही रहती हू. वक़्त ऐसे ही गुज़रता रहा. मेरी चूत मे सारी रात आग लगता रहता और खुद सुबह सुबह उठ के चला जाता और मैं जलती चूत के साथ सारा दिन गुज़ारती रहती. करती भी तो क्या करती इसी तरह से 3 महीने गुज़र गये. बहुत बोर होती रहती थी घर मे बैठे बैठे सब नये नये लोग थे किसी से भी कोई जान पहचान नही थी. हमारे घर के करीब ही एक लेडी रहती थी उनका नाम था उषा. वो होगी कोई 36 या 37 साल की वो अक्सर हमारे घर आ जाया करती है और इधर उधर की बातें करती रहती है. मैं उन्हाई आंटी कहने लगी. वो जब आती तो 2 या 3 घंटे गुज़ार के ही जाती मेरे साथ सब्ज़ी भी बना देती और कभी खाना पकाने मे भी मदद कर देती और कभी कभी तो हम दोनो मिल के खाना भी खा लेते.

अशोक तो बिज़्नेस के सील सिले मे सिटी से बाहर जाते ही रहते हैं और जब कभी किसी दूर के शहेर को जाना होता तो वो 2 या 3 दिन के लिए जाते और मैं घर मे अकेली ही रहती हू. कई बार आंटी ने कहा के किरण तुम अकेली रहती हो अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आ के सो जाया करू. मैं ने हस्ते हुए उनके इस इरादे को टाल दिया और अब वो मेरे साथ सोने की बात नही करती कभी कभी अगर बातें करते करते रात को देर भी हो जाती तो वो अपने घर को ही चली जाती थी. उनके पति सिटी से दूर किसी विलेज मे टीचर थे और वो विलेज मे कोई सहूलियतें नही थी इसी लिए आंटी को वाहा नही ले जाते थे और हर वीक सिटी मे आ जाते थे आंटी के पास और थके हुए होते थे तो ज़ियादा तर वक़्त उनका सोने मे ही गुज़र जाता था और वो फिर स्कूल खुलने से पहले ही वापस चले जाते और आंटी फिर से अकेली रह जाती थी. स्कूल के जब आन्यूयल वाकेशन होते तभी वो कुछ ज़ियादा दीनो के लिए घर आते थे.

एक दिन आंटी लंच के बाद आ गई मैं उस टाइम लंच कर के लेटी थी के थोड़ी देर सो जाउन्गी कियॉंके आज मोसाम बोहोत क्लाउडी था और कभी भी बारिश हो सकती थी ठंडी हवा चल रही थी आक्च्युयली मोसाम सुहाना हो रहा था पर मुझे रात के अनसेटिसफॅक्टरी सेक्स से सारा बदन टूटा जा रहा था और सोने का मन कर रहा था ठीक उसी टाइम पे आंटी आ गई तो मैं उठ के बैठ गई. आंटी ने पूछा के क्या तबीयत खराब है तो मैने कहा नही तबीयत खराब तो नही पर बदन मे थोड़ा सा दरद हो रहा है तो आंटी ने पूछा के क्या मैं तुम्हारा बदन दबा दू तो मैं ने हंस के कहा के नही आंटी ऐसे कोई बात नही. इतने देर मे एक दम से बोहोत ज़ोरों की बारिश शुरू हो गई. मेरे इस घर मे आने के बाद यह पहली बारिश थी तो मेरा जी चाह रहा था के मैं उप्पेर जा के बाल्कनी से बारिश देखु इसी लिए मैं ने आंटी से कहा के चलिए ऊपेर चल के बैठ ते है और बारिश का मज़ा लेते हैं.

हम दोनो ऊपेर आ गये. हमारी बाल्कनी के सामने सड़क थी और दोनो तरफ शॉप्स थे जहा सब्ज़ी, चिकन मीट और मिसिलेनीयियस आइटम्स मिल जाया करती थी एक छोटा मोटा सा बाज़ार था तकरीबन डेली इस्तेमाल की सभी चीज़ें मिल जाया करती थी. इतनी बारिश की वजह से सारा मार्केट सूना पड़ा हुआ था कभी कभी कोई इक्का दुक्का साइकल वाला या कोई आदमी बरसाती ओढ़े गुज़र जाता था. हम दोनो बाल्कनी मे नीचे फ्लोर पे ही बैठ गये और जाली मे से बाहर का सीन देखने लगे. कभी कभी बारिश का थोडा सा पानी हमारे ऊपेर भी गिर जाता था. मौसम ठंडा हो गया था शाम के 5 बजे ही ऐसा लग रहा था जैसे रात के 8 या 9 बज रहे हो ऐसा अंधेरा था. मैं जा के 2 कप गरम गरम चाइ बना का ले आई और हम चाइ पीते पीते बाहर का सीन देख रहे और इधर उधर की बातें करते करते बारिश के मज़े लेने लगे.

चाइ पीने से बदन मे थोड़ी सी गर्मी आ गई. वो मेरे लेफ्ट साइड मे बैठी थी और इधर उधर के बात करते करते पता नही आंटी को क्या सूझा के मुझ से मेरी सेक्स लाइफ के बारे मे पूछने लगी. मेरी समझ मे नही आ रहा था के क्या बताउ. आंटी एक्सपीरियेन्स्ड थी शाएद मेरी खामोशी को ताड़ गैइ और धीरे से पूछा रात को मज़ा नही आता ना ?? मैं ने ना मे सर हिलाया लैकिन कुछ ज़बान से बोला नही.

उन्हो ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और धीरे से दबाया और कहा के मुझे भी नही आता मैं भी ऐसे ही तड़पति रहती हू और मेरा हाथ अपने हाथ मे ले के उसका मसाज करने लगी. मैं हक्का बक्का उनकी कहानी सुन रही थी उन्हो ने अपनी सुहाग रात के

बारे मे बताया जो मेरी सुहाग रात की ही तरह हुई थी और फिर बताया के कैसे वो अपनी सेक्स की प्यास को बुझाती है और उनका भी एक दूर का कोई रिलेटिव है जो सिटी मे ही रहता है आंटी के घर से ज़ियादा दूर नही है

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Re: किरण की कहानी

Unread post by 007 » 15 Oct 2014 19:52

उसका घर और वो कभी कभी आंटी की चुदाई कर के उनकी प्यासी चूत की प्यास को बुझा देता है. मैं आंटी की कहानी सुन के हैरत मे पड़ गई और सोचने लगी के मैं अपनी प्यासी चूत की प्यास बुझाने के लिए क्या करू.

अब ठंड थोड़ी सी बढ़ गई तो मैं एक बड़ी ब्लंकेट ले के आ गई और हम दोनो एक ही ब्लंकेट को ओढ़ के बैठे बारिश के मज़े ले रहे थे और अपनी अपनी चुदाई की कहानिया एक दूसरे को सुना रहे थे. आंटी मेरा हाथ अपने हाथ मे ले के मसल रही थी ब्लंकेट के अंदर और मेरे बदन मे गर्मी आ रही थी. हम दोनो अपें टाँगें मोड़ के बैठी थी कभी कभी लेग्स को क्रॉस कर के बैठ जाते कभी नीस को फोल्ड कर के. एक तो उनके हाथ का स्पर्श और बाहर का ठंडा मौसम और फिर आंटी ने सुहाग रात की और अपनी चुदाई की दास्तान स्टार्ट कर के मेरे बदन मे फिर से आग लगा दी थी मुझे सुनील से चुड़वाई हुई वो रातें याद आ रही थी जब मेरी चूत मे सुनील का लंबा मोटा लंड घुस के धूम मचा देता था और चूत फाड़ झटके मार मार के मेरी चूत को निचोड़ के अपने लंड का सारा रस मेरी चूत के अंदर छोड़ के कैसे मज़ा देता था. मेरा पूरा दिल और दिमाग़ सुनील की चुदाई मे था मुझे पता ही नही चला के कब आंटी का हाथ मेरे थाइस पे फिसलने लगा और मेरे सारे बदन मे एक मस्ती का एहसास छाने लगा और ऑटोमॅटिकली मेरी टाँगें खुल गई और मैं ने महसूस किया के आंटी का हाथ मेरे थाइ से फिसल के चूत पे टिक गया और वो चूत की धीरे धीरे मसाज करने लगी और मुझे मज़ा आने लगा.

मेरी प्यासी चूत पे आंटी के हाथ का स्पर्श और मसाज से मुझे अपने स्कूल का एक किस्सा याद आ गया. हम उन दीनो 9थ क्लास मे थे. हुआ यह था के मेरी क्लासमेट श्रुति नाम था उसका वो मेरे पड़ोस मे ही रहती थी और कभी वो मेरे घर आजाती और हम दोनो मिल के रात मे पढ़ाई करते और एक ही बेड पर सो जाते कभी मैं उसके घर चली जाती और कंबाइंड स्टडी करते वही उसके साथ उसके बेड पर ही सो जाती. एक रात वो मेरे घर मे आई हुई थी और हम रात को पढ़ाई कर के हम दोनो मेरे बेड पे लेट गये. . मेरे रूम घर मे ऊपेर के फ्लोर पे था और मोम आंड डॅड नीचे. मैं ऊपेर अकेली ही रहती थी तो हमै अछी ख़ासी प्राइवसी मिल जाती थी. दोनो पढ़ाई ख़तम कर के सोने के लिए लेट गये. श्रुति बोहोत ही शरारती थी उसने अपने मम्मी

पापा को चोद्ते हुए भी कई बार देखा था. कभी सोने का बहाना कर के कभी विंडो मे से झाँक के और फिर मुझे बता ती थी के कैसे उसके डॅड नंगे हो के उसकी मोम को नंगा कर के चोद्ते है कभी लाइट खुली रख के तो कभी लाइट बंद कर के वो चुदाई देखती रहती थी और मुझे बता देती कि उसके पापा ने आज उसकी मम्मी को कैसे चोदा और यह भी बता ती के उसकी मम्मी ने कैसे उसके पापा के लंड को चूसा और सारी मलाई खा गई.

हा तो वो मेरे साथ थी बेड पर. हम ऐसे ही बातें कर रहे थे वो अपने मम्मी और पापा के चुदाई के क़िस्से सुना रही थी और अचानक उसको क्या हुआ उसने पूछा किरण तेरा साइज़ क्या है मैं ने पूछा कौनसा साइज़ तो उसने मेरी चुचिओ को हाथ मे पकड़ लिया और पूछा अरे पागल इसका और हँसने लगी उसका हाथ मेरे बूब्स पे अछा लग रहा था और उसने भी अपना हाथ नही हटाया और मैं ने भी उस से हाथ निकाल ने को नही कहा और वो ऐसे ही मेरी चुचिओ को दबाने लगी.

रात तो थी ही और हम ब्लंकेट ओढ़े हुए थे और लाइट बंद थी ऐसे मे मुझे उसका मेरी चुचिओ को दबाना अछा लग रहा था मैं ने उसका हाथ नही हटाया. उन दीनो हम ब्रा नही पेहेन्ते थे तो हमै साइज़ का पता नही था मैं ने बोला के मुझे क्या मालूम तो उसने कहा ठहर मैं बता ती हू तेरा क्या साइज़ है मैं ने बोला तेरे कू कैसे मालूम तो वो हँसने लगी और बोली मुझे सब पता है और मेरे ऊपेर उछल के बैठ गई. मैं सीधे ही लेटी थी और वो मेरे ऊपेर बैठ के मेरे बूब्स को मसल रही थी अब उसने मेरी शर्ट के अंदर हाथ डाल के मसलना शुरू कर्दिआ तो मुझे और मज़ा आने लगा. मैं ने बोला हे श्रुति यह क्या कर रही है तो वो बोली के मेरे पापा भी तो ऐसे ही करते है मेरे मम्मी के साथ मैं ने देखा है जब पापा ऐसे करते हैं तो मम्मी को बोहोत मज़ा आता है बोल तुझे भी आ रहा है मज़ा या नही तो मैं ने कहा हा मज़ा तो आ रहा है तो उस ने कहा के बॅस तो ठीक है ऐसे ही लेती रह ना मज़ा ले बॅस और वो ज़ोर ज़ोर से मेरी चुचिओ को मसल्ने लगी.

मेरे ऊपेर बैठे ही बैठे उसने अपनी शर्ट भी उतार दी और मुझ से बोली के मैं भी उसके बूब्स को दबौउ तो मैं भी हाथ बढ़ा के उसके बूब्स को अपने हाथ मे ले के मसल्ने लगी. श्रुति की चुचियाँ मेरे चुचिओ से थोड़ी सी बड़ी थी. लाइट बंद होने से कुछ दिखाई नही दे रहा था बॅस दोनो एक दूसरे के चुचिओ को दबा रहे थे. ऐसे हे दबा ते दबा ते वो मेरी टांगो पे आगे पीछे होने लगी. हमारी चूते एक दूसरे से मिल रही थी और एक अजीब सा मज़ा चूत मे आने लगा. अब वो मेरे ऊपेर लेट गई और मेरी चुचि को चूसने लगी मेरे मूह

से आआआआआआआहह निकल गई और मैं उसके सर को पकड़ के अपनी चुचिओ मे घुसाने लगी थोड़ी देर ऐसे ही चूसने के बाद वो थोड़ा आगे हटी और अपनी चुचि मेरे मूह मे घुसेड डाली और मैं चूसने लगी वो भी आआहह की आवाज़ें निकाल निकाल के मज़े लेने लगी.

अब हम दोनो मस्त हो चुके थे वो थोडा सा पीछे खिसक गई और मेरी चूत पे हाथ रख दिया तो मेरी गंद अपने आप ही ऊपेर उठ गई. हम अब कोई बात नही कर रहे थे बॅस एक दूसरे से मज़े ले रहे थे. उसने मेरी सलवार का नाडा खोल दिया और साथ मे अपना भी और खुद अपने घुटनो पे खड़ी हो के अपनी सलवार निकाल दिया और नंगी हो गई और मेरी सलवार को पकड़ के नीचे खिसका दिया और मैं ने भी अपनी गंद उठा के उसको निकालने मे सहयोग किया. अब हम दोनो नंगे थे अभी हमारी चूतो पे बॉल आने भी नही शुरू हुए थे एक दम से चिकनी चूते थी हम दोनो की.

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