राधा का राज compleet

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The Romantic
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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:30

"जाओ जानेमन नहा लो….बदन से पसीने की बू आ रही है. नहा धोकर तैयार रहना और हां बदन पर कोई भी कपड़ा नही रहे. हम कुछ देर मे तुम्हारे पातिदेव से मिलकर आते हैं. जाने से पहले एक बार तुम्हारे बदन को और अपने पानी से भिगो कर जाएँगे."

मैं चुप चाप खड़ी रही.

"अगर तूने हमारी बातों को नही माना तो कल तक सारा हॉस्पिटल जान जाएगा कि डॉक्टर. राधा अपनी सहेली के पति और उसके दोस्त के साथ रात भर रंगरलियाँ मना कर आ रही है. तुम्हारी ये ब्रा और पॅंटी मेरी बातों को साबित करेंगे."

मैं ठगी सी देखती रह गयी. कुछ भी नही कह पायी. दोनो हंसते हुए कमरे से निकल गये.

मैं दरवाजा बंद कर के अपनी बेबसी पर रो पड़ी. कुछ देर तक बिस्तर पर पड़ी रही फिर उठकर मैं बाथरूम मे घुस कर शवर के नीचे अपने बदन को खूब रगड़ रगड़ कर नहाई. मानो उन दोनो के दिए हर निशान को मिटा देना चाहती हौं.

बाहर निकल कर मैने कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाए. मगर दोनो की हिदायत याद करके रुक गयी. मैं कुछ देर तक असमंजस मे रही. मैं अकेले मे भी कभी घर मे नग्न नही रही थी. फिर आज….खैर माने एक राज शर्मा का सामने से पूरा खुल जाने वाला गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गयी. अभी नींद का एक झोंका आया ही था कि डोर बेल की आवाज़ से नींद खुल गयी. मैने उठ कर घड़ी की तरफ निगाह डाली. सुबह के दस बज रहे थे. दोनो को गये हुए एक घंटा हो चुका था इसका मतलब है कि दरवाजे पर दोनो ही होंगे. मैं दरवाजे पर जा कर अपने गाउन की डोर खींच कर खोल दी. गाउन को अपने बदन से हटाना ही चाहती थी कि अचानक ये विचार कौंध गया कि अगर दोनो के अलावा कोई और हुआ तो? अगर उनकी जगह राज शर्मा ही हुआ तो…..क्या सोचेगा मुझे इस रूप मे देख कर? …..मेरे बदन पर बने अनगिनत नाखूनो और दांतो के निशान देख कर?

"कौन है?" मैने पूछा.

"हम हैं जानेमन….तुम्हारे आशिक़" बाहर से आवाज़ आई. मेरे पूरे बदन मे एक नफ़रत की आग जलने लगी. मैने एक लंबी साँस ली और अपने गाउन को अपने बदन से अलग होकर ज़मीन पर गिर जाने दिया. और दरवाजे की संकाल नीच कर दी. दोनो दरवाजे को खोल कर अंदर आ गये. मुझे इस रूप मे देख कर दोनो तो बस पागल ही हो गये. मैं ना नुकुर करती रही मगर मेरी मिन्नतों को सुनने का किसी के पास टाइम नही था. दोनो अंदर आ कर दरवाजे को अंदर से बंद किया. अरुण ने एक झटके से मेरे नंगे बदन को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम मे ले गया. मुझे बेड पर लिटा कर दोनो अपने कपड़े खोलने लगे.

"जान आज हम तुझे तेरे उसी बिस्तर पर चोदेन्गे जिस पर तू आज तक अपने राज शर्मा से ही चुद्ती आई होगी." अरुण ने कहा," ज़रा हम भी तो देखें की राज शर्मा को कितना मज़ा आता होगा तेरे इस नाज़ुक बदन को मसल्ने मे."

दोनो पूरी तरह नग्न हो कर बिस्तर पर चढ़ गये. मुझे चीत लिटा कर मुकुल मेरी टाँगों के बीच आ गया और अपना लंड मेरी योनि मे एक झटके मे डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा.

पूरी योनि रात भर की चुदाई से सूजी हुई थी उस पर से मुकुल का मोटा लंड किसी तरह का रहम देने के मूड मे नही था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी योनि को किसी सांड पेपर से घिस रहा हो. अरुण उसे खींच कर मुझ पर से हटाना चाहा. पहले मेरी योनि की चढ़ाई वो ही करना चाहता था मगर मुकुल ने कहा इस बार तो पहले वो ही चोदेगा और उसने हटने से सॉफ सॉफ इनकार कर दिया.

अरुण जब मुझ पर से मुकुल को नही हटा पाया तो मेरे स्तनो पर टूट पड़ा. मुकुल मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने मे लगा था. उसके हर धक्के के साथ पूरा बिस्तर हिल जाता था. एक तो पूरी रात चुदाई की थकान और उपर से दुख़्ता हुआ बदन इस बार तो मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी. मुँह से लगातार दर्द भरी आवाज़ें और चीखें निकल रही थी.

"आआआआहह…….हा…..हा……ऊऊऊओह………म्‍म्माआआअ………उईईईईईईईई……आआआआआः……..न्‍न्‍नणन्नाआआहियिइ ईईईईईई…………..उउउफफफफफफ्फ़…….उूुउउफफफफफफफफ्फ़…….हा…ऊऊहह" जैसी आवाज़ों से करना गूँज रहा था.

" मैं इसके पीछे घुसाता हूँ तू उसके बाद इसकी योनि मे अपना लंड ठोकना. दोनो साथ साथ ठोकेंगे इसे." अरुण ने कहा तो मुकुल ने अपना लंड मेरी योनि से निकाल लिया. अरुण ने मुझे घुमा कर पेट के बल लिटा दिया और मेरे नितंबों के नीचे अपने हाथ देकर मेरे बदन को कुछ उपर खींचा. मेरे बदन मे अब उनका किसी भी तरह का विरोध करने की ना तो कोई ताक़त बची थी ना ही कोई इच्च्छा. मैने अपना बदन ढीला छोड़ रखा था दोनो जैसे चाह रहे थे मेरे बदन को उस तरह से भोग रहे थे. अरुण अपने लंड को मेरे गुदा पर सेट करके मेरे उपर लेट गया. उसे इसमे मुकुल मदद कर रहा था. मुकुल ने अपने हाथों से मेरी टाँगे फैला कर मेरे दोनो नितंबों को अलग करके अरुण के लंड के लिए रास्ता बनाया. उसके लेटने से अरुण का लंड मेरे गुदा द्वार को खोलता हुआ अंदर चला गया. आज ही इसकी सील मुकुल ने तोड़ दी थी इसलिए इस बार ज़्यादा दर्द नही हुआ. मुझे उसी अवस्था मे अरुण कुछ देर तक चोद्ता रहा. उसके हाथ नीचे जाकर मेरे स्तनो को वापस निचोड़ने लगे.

कुछ देर बाद उसी अवस्था मे अपने लंड को अंदर डाले डाले अरुण घूम गया. अब मेरा चेहरा छत की तरफ हो गया था. नीचे से अरुण का लंड मेरे गुदा मे धंसा हुआ था.

" अरुण कुछ बचा भी है इन दूध की बोतलों मे? आज इनको भरने की तैयारी करते हैं. देखते हैं दोनो मे से कौन बनता है इसके बच्चे का बाप. जब इन बोतलों मे दूध आएगा तो ये खुशी खुशी हमारे लंड को नहलाएगी अपने दूध से." मुकुल हंस रहा था. उसने मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपने लंड को अंदर डाल दिया. वापस मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. दोनो ओर से एक एक लंड मेरे बदन को पीस रहे थे. दोनो एक साथ अपने लंड ठोकने लगे.

तभी अरुण ने हाथ बढ़ा कर टेलिफोन उठाया.

क्रमशाश...........................

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:31

राधा की कहानी--7

गतान्क से आगे....................

" अरे मैं तो तुझे कहना ही भूल गया था. राज शर्मा बात करना चाहता है तुझसे. कह रहा था कि राधा से मेरी बात करवा देना."

इससे पहले की मैं "न्‍न्न्नाआी….. नहियीईईईई… .अभिईीई. .नहियीईईईई… . प्लीईसए……..इससस्स…..हाालात मईए नहियीईईईईई… .." कहकर उसे मना करती अरुण ने नंबर डाइयल कर दिया था. और उसका रिसीवर मेरे कान पर लगा दिया. हार कर मैने हाथ बढ़ा कर रिसीवर अपने हाथों मे ले लिया.

"हेलो…" दूसरी ओर से राज शर्मा की आवाज़ आई तो मेरे आँखों से आँसू आ गये. मैं चुप रही. दोनो पूरी ताक़त से मुझे चोद रहे थे.

"हेलो.." राज शर्मा ने दोबारा कहा तो मैने भी जवाब दिया"हेलो….राज … ..हा…हा…मैं राधा. मैं घर पहुँच गयी हूँ."

"ठीक तो हो ना? रास्ते मे कोई परेशानी तो नही हुई?"

"नही कोई परेशानी..ओफफ्फ़… .कोई परेशानी नही हुई..आह… मैं ठीक हूँ…तुम हा हा परेशान मत होना."

"तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नही है. तुम इतनी हाँफ क्यों रही हो?"

" अरे कुछ नही….सुबह गाड़ी को काफ़ी धक्का लगाना पड़ा इसलिए अभी तक हाँफ रही हूँ. थकान के कारण ही पूरा बदन दर्द कर रहा है. कोई बात नही अभी कोई पेन किल्लर ले लेती हूँ शाम तक ठीक हो जवँगी. ह्म्‍म्म आहह तुम परेशान मत होना." कहकर मैने जल्दी से फोन काट दिया. ज़्यादा बात करने से मेरी हालत का पता चल जाने का डर था.

दोनो कुछ देर बाद अपने अपने लंड से ढेर सारा वीर्य मेरे दोनो छेदो मे भर कर मेरे बदन पर से उठ गये. दोनो अपने कपड़े पहने और वापस चले गये. मैं किसी तरह लड़ खड़ाती हुई उठी और उसी हालत मे दरवाजे तक आ कर उसे बंद किया और दौड़ कर वापस बाथरूम मे घुस गयी. दोनो छेदो से उनका रस रिस्ता हुआ जांघों तक पहुँच गया था. मैने वापस पानी से अपने बदन को सॉफ किया और बिस्तर मे आकर पड़ गयी. कब मेरी आँख लगी पता ही नही चला. जब आँख खुली तब शाम हो चुकी थी. मैने पेन किल्लर ले कर अपने दुख़्ते बदन को कुछ नॉर्मल किया जिससे राज शर्मा को पता नही चले. और तैयार होकर राज शर्मा का इंतेज़ार करने लगी.

रचना की डेलिवरी हो गयी. उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया था. उस घटना केबाद अरुण कई बार किसी ना किसी बहाने से आया मगर मैं हमेशा या तो हॉस्पिटल मे लोगों के बीच छिपि रहती या राज शर्मा के साथ रहती. जिससे की अरुण को कोई मौका नही मिल पाए. एक दो बार साथ मे मुकुल भी आया मगर मैने दोनो की चलने नही दी. दोनो मुझे लोगों से छिप कर अश्लील इशारे करते थे मगर मैने उन्हे अनदेखा कर दिया. मैने एक दो बार दबी आवाज़ मे उन्हे राज शर्मा से शिकायत करने की और रचना को खबर करने की धमकी भी दी तो उनका आना कुछ कम हुआ. मुझे उस आदमी से इतनी नफ़रत हो गयी थी कि बयान नही कर सकती. मैने मन ही मन उसके इस गिरे हुए हरकत का बदला लेने की ठान ली थी.

डेलिएवेरी के तीन महीने बाद रचना वापस आ गयी. अरुण गया था उसे लेने. दोनो बहुत खुश थे. हम भी उस नये अजनबी के स्वागत मे बिज़ी हो गये. उन्हों ने अपने बेटे का नाम रखा था अनिल. बहुत क्यूट है उनका अनिल. बिल्कुल अपने बाप की शक्ल पाया है. वापस आने के बाद अरुण कुछ दिन तक रचना के पास ही रहा. हम दोनो के मकान पास पास ही थे. इसलिए हम अक्सर किसी एक के घर मे ही रहते. अरुण मौके की तलाश मे रहता था. मुझे दोबारा दबोचने के लिए वो तड़प रहा था.

कई बार मौके मिले मेरे बदन को सहलाने और मसल्ने के लिए. रचना अपने बच्चे मे बिज़ी रहती थी इसलिए अरुण को किसी ना किसी बहाने मौका मिल ही जाता था. मैं घर पर सिर्फ़ एक झीनी सी नाइटी मे ही रहती थी. कई बार उसकी हरकतों से बचने के लिए मैने अंदरूनी वस्त्र पहनने की कोशिश की मगर उसने मुझे धमका कर ऐसा करने से रोक दिया. वो तो चाहता था कि मैं सुबह घर पर बिल्कुल नंगी ही रहूं जिससे उसे कपड़ो को हटाने की मेहनत नही करनी पड़े. मगर मैने इसका जम कर विरोध किया. अंत मे मैं इस बात पर राज़ी हुई कि घर मे सिर्फ़ एक पतला गाउन पहन कर ही रहूंगी.

राज शर्मा के सामने वो अपनी हरकतों को कंट्रोल मे रखता मगर हमेशा कुछ ना कुछ हरकत करने के लिए मौका ढूंढता ही रहता था. अब उसी दिन की बात लो हम दो फॅमिली एक रेस्टोरेंट मे डिन्नर के लिए गये. मैं अरुण के सामने की चेर पर बैठी थी और रचना राज शर्मा के सामने. हम दोनो ही सारी पहने हुए थे. अचानक मैने अपनी टाँगों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस किया. मैने नीचे नज़र डाली तो देखा की वो अरुण का पैर था. अरुण इस तरह बातें करने मे मशगूल था जैसे उसे कुछ भी नही पता हो कि टेबल के नीचे क्या चल रहा है. उसने अपने पैर के पंजों से मेरी सारी को पकड़ कर उसे कुछ उपर उठाया और उसका पैर मेरे नग्न पैरों के उपर फिरने लगा. वो धीरे धीरे अपने पैर को उठता हुआ मेरे घुटनो तक पहुँचा. मैं घबराहट के मारे पसीने पसीने हो रही थी. वो एक पब्लिक प्लेस था और हम पर किसी की भी नज़र पड़ सकती थी. मेरी सारी काफ़ी उपर उठ चुकी थी. अब वो अपने पैर को दोनो जांघों के बीच फिराने लगा. मेरी सारी अब घुटनो के उपर उठ चुकी थी. मैने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सब अपने अपने काम मे व्यस्त थे किसी की भी नज़र हम पर नही थी. दूसरों को तो छोड़ो राज शर्मा और रचना भी हमारी हरकतों से बेख़बर चुहल बाजी मे लगे हुए थे. अरुण भी बराबर उनका साथ दे रहा था. सिर्फ़ मैं ही घ्हबराहट के मारे कांप रही थी. उसके पैर का पंजा मेरी पॅंटी को च्छू रहा था. मेरे होंठ सूख रहे थे.

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:32

"क्या हुआ बन्नो तू आज इतनी चुप चुप क्यों है?" मैं रचना के सवाल पर एकदम से हड़बड़ा गयी. और मेरी चम्मच से खाना प्लेट मे गिर गया.

"नही नही…..कुछ नही मैं तो….असल मे आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नही लग रही है."

"क्यों…..राज शर्मा तुमने कुछ कर तो नही दिया?" रचना राज शर्मा की ओर देख कर मुस्कुरई, "चलो अच्छी खबर है. तुम लोगों की शादी को काफ़ी साल हो गये अब तो कुछ होना भी चाहिए." कह कर रचना राज की ओर एक आँख दबा कर मुस्कुरई.

"हाँ हां और क्या अब तो रचना भी मम्मी बन गयी. तुम लोगों को भी अब प्रिकॉशन हटा देना चाहिए." अरुण नेरचना की बात आगे बढ़ाता हुआ मेरी ओर देख कर कहा, "राज शर्मा अगर तुमसे कुछ नही हो रहा हो तो किसी और को भी मौका दो." और मुझे वासना भरी निगाहों से देखा.

"हाँ हां क्यों नही…" रचना ने अपने हज़्बेंड को छेड़ते हुए कहा," मेरी सहेली को देख कर तो तुम्हारी शुरू से ही लार टपकती है. तुम तो मौका हो ढूँढ रहे होगे डुबकी लगाने के लिए."

उसे क्या मालूम था उसका हज़्बेंड डुबकी कब्की ही लगा चुका. हम चारों हँसने लगे. अचानक रचना का रुमाल हाथ से फिसल कर नीचे गिर पड़ा. ये देखते ही अरुण ने झटके से अपना पैर मेरी पॅंटी के उपर से हटा कर नीचे किया मगर उसका पैर मेरी सारी मे उलझ गया. मैने भी झटके से अपने दोनो पैर सिकोड लिए. जिससे रचना को पता नही चले. मगर मेरी सारी मे लिपटा उसका पैर हमारी बीच चल रही चुहल बाजी की कहानी कह रहा था. मगर शायद रचना को हम दोनो के बीच इस तरह की किसी हरकत की उम्मीद भी नही थी. इसलिए उसने झुक कर अपना रुमाल उठाया मगर हम दोनो की उलझी हुई टाँगों पर नज़र नही पड़ी. मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया था.

इसी तरह हम कई बार पकड़े जाते जाते बच गये.

मेरी शिफ्ट्स की ड्यूटी रहती थी. इसलिए कभी कभी जब मैं सुबह के वक़्त घर पर होती और राज शर्मा नर्सरी के लिए निकाला होता तब अरुण कुछ माँगने के बहाने से या मुझे बुलाने के बहाने से मेरे घर आ जाता और मुझे दबोच लेता. मेरे इनकार का उस पर कोई असर ही नही होता था. वो सबको बताने की धमकी देकर मेरे छ्छूटने की कोशिशों की हवा निकाल देता. वो मुझे ब्लॅकमेन्ल करके मेरे बदन से खेलने लगता. मैं उसकी जाल मे इस तरह फँसी हुई थी कि ना चाहकर भी चुप रहना पड़ता.

कई बार उसने मुझे दबोच कर एक झटके मे मेरा गाउन शरीर से अलग कर देता. फिर मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरे बदन को चूमता चाट्ता और अपने लंड को भी मुझसे चटवाता. वो अपने लंड को ठीक तरह से सॉफ करता था या नही क्या पता क्योंकि उसके लंड से बदबू आती थी. मुझे उसी लंड को चूसने के लिए ज़बरदस्ती करता था. अपनी बीवी पर तो उसकी ज़बरदस्ती चल नही पाती थी. रचना उसके लंड को कभी मुँह से नही लगती. लेकिन मुझे उसके हज़्बेंड के लंड को अपने मुँह मे लेकर चाटना पड़ता था.

वो कभी सोफे पर तो कभी दीवार के साथ लगा कर तो कभी किचन की पट्टी पर मेरे हाथ टिका कर मुझे छोड़ता. मेरे मना करने पर भी वो मेरी योनि को अपने वीर्य से भर देता था. मैं प्रेग्नेन्सी से बचने के लिए डेली कॉंट्रॅसेप्टिव लेने लगी थी. क्योंकि क्या पता कब उसका बीज असर दिखा दे. फिर भी एक डर तो बना ही रहता था.

कुछ दिन वहाँ रह कर अरुण को अपने काम पर लौटना पड़ा. रचना को ड्यूटी पर बच्चा ले जाने मे दिक्कत रही थी. इन्फेक्षन हो जाने का ख़तरा तो रहता ही था. घर पर बच्चे को अकेला भी नही छोड़ सकती थी. मैने उसे अपने घर को बंद कर मेरे और राज शर्मा के साथ ही रहने की सलाह दी.

"नही राधा..अरुण क्या सोचेगा. वो बहुत शक्की आदमी है."

"किसी को बताने की तुझे ज़रूरत ही कहाँ है. जब वो आए तो तू अपने घर चली जाना. अब देख तू यहाँ रहेगी तो तेरे आब्सेन्स मे तेरे बच्चे की मैं ही मा बन कर रहूंगी." मैने कहा.

"लेकिन बच्चे को भूख लगी तो क्या पिलाएगी? तेरे मम्मो मे तो अभी दूध ही नही है." कहकर उसने मेरी चुचियों को मसल दिया. मैं भी उसकी हरकतों पर हँसने लगी.

"एक बात बता…." रचना ने पूछा," तेरा पति कुछ सोचेगा तो नही? मैं अगर तेरे साथ रहने लगी तो उसे कोई ऑब्जेक्षन तो नही होगा?"

"ऑब्जेक्षन और उसे?......" मैने उन दोनो के बीच संबंधों को गरम बनाना की ठान ली थी, "तेरी निकटता से उसे कभी ऑब्जेक्षन हो सकता है क्या? वो तो तेरी निकटता के लिए च्चटपटाता रहता है. और वैसे भी दो दो बीवी पकड़ कोई मना करेगा भला."

" राधा अब मैं मारूँगी तुझे" वो मुझे पकड़ने के लिए मेरी ओर दौड़ी.

"अच्छा? ज़रा आईने मे नज़र मार तेरा लाल शर्म से भरा चेहरा तेरे जज्बातों की चुगली कर रहा है. सॉफ दिख रहा है कि आग तो दोनो तरफ ही लगी हुई है." मैं हँसती हुई सोफे के चारों ओर भागी मगर उसने मुझे पकड़ लिया और हम गुत्थम गुत्था हो कर सोफे पर गिर पड़े.

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