कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet

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raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 09:00

शादी सुहागरात और हनीमून--9

गतान्क से आगे…………………………………..

अगले दिन स्कूल मे 4 रेस मे दौड़ी और तीन मे फर्स्ट आई और एक मे सेकेंड.

मुझे बेस्ट आत्लीट का अवॉर्ड भी मिला.

शाम को जब मे घर लौटी तो मेने वो अवॉर्ड बसंती को दे दिया और कहा कि वो उसके मालिश का नतीजा है. उसने खुश होके मुझे गले लगा लिया और चिढ़ाते हुए बोली,

"ननद रानी कुछ जगह कल बच गयी थी, आज वहाँ भी मालिश होगी." मेने भी उसे कस के भींचते हुए कहा,

"अर्रे डरता कौन है. आख़िर तुम्हारी ननद हूँ. हां, उसके बाद मुझसे उठा नही जाएगा इसलिए खाने भी उपर ही खाउन्गि.' " एकदम" वो बोली. मे हस्ते हुए उपर अपने कमरे मे चली गई.

जब तक वो आई तो आज मैं खुद ही, कपड़े उतार के चटाई बिछा के, चादर ओढ़ कर लेटी हुई थी. दरवाजा बंद कर के पलंग पे मेरे पड़े कपड़ों को देख, वो हंस के द्विअर्थि अंदाज़ मे बोली,

"तो आज खुद ही कपड़े उतार दिए. लेकिन ठीक है अगर लगवाना है तो कपड़े तो उतारने ही पड़ेंगे"

मे भी हंस के उसी अंदाज़ मे बोली, "लेकिन लगाने वाले को भी को भी कपड़े उतारने पड़ेंगे."

मेरे कहने के साथ ही उसने सारी उतार के ज़मीन पे रख दी थी और ब्लाउस साए की ओर इशारा कर के पूछा कहो तो ये भी उतार दूं. कल की तरह उसने फिर पैरों से मालिश शुरू की और थोड़ी ही देर मे मेरी सारी थकान गायब थी. और फिर उसकी जादू भरी उंगलिया पिंडलियों,जाँघो से होते हुए नितंबो तक पहुँच गयी. मेरी पूरी देह मे एक नशा सा छा रहा था. थोड़ी देर तक वो मेरे नितंबो को सहलाती, दबाती, कुचलती रही. और फिर उसने एक झटके मे मेरी पैंटी खींच के उतार दी और मेने मना किया तो बोली, अर्रे चादर से धकि तो हो कौन सा मे देख रही हूँ. और थोड़ी देर मे यही हालत मेरी ब्रा की हुई. मालिश के बाद उसने उबटन लगाना चालू शुरू किया और आज पैरों के बाद सीधे मेरे उरोजो पे और एक दूसरी कटोरी से एक अलग ढंग का उबटन ले के मेरे सीने पे हल्के हाथों से लगाया. (मुझे बाद मे पता चला कि वो अनार्दाने और अनार का एक ख़ास उबटन था जो बच्चे होने के बाद औरतों के सीने मे कसाव और शेप के लिए इस्तेमाल होता था) फिर उसे यहीं लगा हुआ छ्चोड़ के फिर उसने बाकी देह मे चंदन, हल्दी और सरसों का उबटन लगाना शुरू किया. एक घंटे के बाद फिर सीने पर लगा वो लेप छुड़ाया.

एक दो दिनों मे ही वो चादर भी हट गया और फिर खुल के अब मे समझी कि भाभी और बाकी औरते क्यों कहती थी कि उसकी उंगलिओं मे जादू है. सीने पे वो ख़ास उबटन जब वो छुड़ाती तो चिढ़ाते हुए मेरे सीने को मसल देती और कहती तेरा दूल्हा ऐसे ही कस के मसलेगा. कयि बार जब वो मेरे निपल्स को छूटी तो पता नही कैसी छुअन थी कि वो तुरंत एरेक्ट हो जाते. फिर उसे पुल कर वो कहती, ननद रानी, तेरे दूल्हे के तो भाग जाग गये जो इतने मस्त जोबन मिलेंगे उसको. नीचे भी वो कोई मौका नही छोड़ती थी, कभी मेरी कुँवारी किशोर पंखुड़ियो को सहला देती तो कभी तेल लगाने के बहाने उंगली की टिप से छेद को छु देती. मे एक दम मस्ती से गिन-गिना जाती. और जब कभी मे उसे सीने को छुने से मना करती तो वो और कस के मसल के बोलती, "अर्रे बन्नो, ये तो जवानी के फूल हैं, तेरे दूल्हे के खिलौने. अर्रे वो तो इतने कस कस के मसलेगा कि तेरे पसीने छूट जाएँगे. सिर्फ़ हाथों से नही, होंठो से भी, चूमेगा, चुसेगा, चाटेगा और कच कचा के काटेगा. अब तेरे इन कबूतरो के उड़ने के दिन आ गये. और जब तेरे "वो दिन" होंगे ना, तो इन मस्त जोबन के बीच वो लंड डाल के चोदेगा भी."

raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 09:00

मे शरमाती, गुस्सा होने का नाटक करती पर मन ही मन सोचती कि वो दिन कब आएँगे जब मे उनकी बाहों मे होंगी, और वो कस कस के मेरी उंगलिओं की तरह बसंती की ज़ुबान मे भी जादू था (नही मेरा और कुछ मतलब नही है, सिर्फ़ उसकी बातों से है). वो रोज मुझे अपने मर्द का किस्सा रस ले ले के पूरे डीटेल के साथ सुनाती. एक दिन वो कुछ चुप सी थी तो मेने पूछा, क्या बात है भाभी, आज चुप हो तो वो चालू हो गयी. अर्रे आज आने के पहले बड़ी देर तक उसके टटटे चुस्ती रही. मेरे कुछ समझ मे नही आया, मे बोली.

"टटटे?? अर्रे इसका क्या मतलब ."

"अर्रे तू इसका मतलब नही जानती ससुराल मे नाम डुबोएगी, हम लोगों का. अर्रे पेल्हड़, वो जो लटकता रहता है." मे समझ गई कि वो बॉल्स के बारे मे बात कर रही है. मेने पूछा अर्रे तू उसको भी चूस रही थी. वो हंस के बोली और क्या,असली कारखाना तो यहीं है, माल बनाने का . और फिर वो बोली कि उसके बाद मेने उसके पीछे भी उसकी गांद को भी कस के चूसा.

"छी भाभी बड़ी गंदी हो तुम. वो कौन सी प्यार करने की जगह हुई.' मे बन के बोली.

"अर्रे मेरी ननद रानी," वो मेरे नितंबो को कस के मसल्ते बोली, "यही तो तुम नही जानती, गंदा सॉफ कुछ नही होता मज़ा लेना असली चीज़ है.और ये ट्रिक सीख लो तुम भी - उसे तो बहोत मज़ा आता है और मे भी एक दम जीभ अंदर कर के जब लंड एकदम थका हो ना कितना भी मुरझाया हो पेल्हड़ और गांद के बीच मे चूमने चाटने से एकदम खड़ा हो जाता है. देखो जो चीज़ मर्द को अच्छी लगे, वो पता कर के, करना चाहिए. और आख़िर जब वो जोश मे होता है तो हम लोगों को भी तो मज़ा देता है, इसलिए बन्नो समझ लो फालतू का नखरा, या शरम करने से कोई फ़ायदा नही." ऐसे ही एक दिन तेल लगाते लगाते उसने मुझे एकदम दुहरा कर दिया. मेरे घुटने मेरे छातियों से लग गये. मे चीखी, ये "क्या कर रही हो छोड़ो ना."

"अर्रे ननद रानी जब वो ऐसे कर के चोदेगा ने तो लंड का टोपा सीधे बच्चे दानी से लगेगा, और क्या मज़ा आता है उस समय. और साथ साथ नीचे से ये चूत का दाना भी रगड़ ख़ाता है साथ साथ."

नितंबो पे तेल लगाते हुए उसने मेरे पीछे के छेद को भी पूरी ताक़त से कस के फैला के, वहाँ भी दो बूँद तेल अंदर चुवा दिया.

"हे क्या करती हो वहाँ क्यों तेल "

"अर्रे ननद रानी जैसे मशीन के हर छेद मे तेल डालते है ना इस्तेमाल के पहले, उसी तरह.और तू क्या सोचती है यहाँ छोड़ेगा वो. तेरे इतते मस्त कसे कसे चूतड़ है - मेरे दूल्हे ने तो मेरे लाख मना करने के बाद भी पीछे वाले दरवाजा का बाजा बजा दिया था." और ये कह के थोड़ा सा उबटन लेके मेरे चूतड़ के बीचोबीच कस के रगड़ दिया. उसने मुझे मालिश की सारी ट्रिक भी सीखा दी थी और ये भी कि मर्दों के "ख़ास ख़ास पॉइंट" कौन से होते है उन्हे कैसे मालिश करना चाहिए और कैसे छेड़ना चाहिए.अब हमारी अच्छी ख़ासी दोस्ती थी और एक दिन मेने पूच्छ लिया कि ये उबटन और मालिश शादी के पहले क्यों करते है. वो उस समय मेरे उरोजो से उबटन छुड़ा रही थी. उन्हे मसल के बोली,

"इसलिए बन्नो कि तुम अब तक सिर्फ़ लड़की थी लेकिन अब लड़की से दुल्हन बन चुकी हो और ये तेरे तन मन मे दुल्हन का एहसास कराता है, तुमको तैयार करता है दुल्हन की तरह बनने के लिए और इसके बाद तुम दुल्हन से औरत बन जाओगी."

"वो कैसे,.." मे अपनी जाँघो से उबटन छुड़ाने के लिए फैलाती हुई बोली.

"वो काम दूल्हे राजा का है. वो अपने सीने मे कस के भींच के, दबा के, रगड़ के रोज रात को कच कचा के प्यार करेगा ना. लेकिन पूरी औरत तुम उस दिन बन जाओगी जिस दिन वो तुम्हे गर्भिन कर देगा, तुम्हारे पेट मे अपने बच्चा डाल देगा."

"और, तुम अभी किस हालत मे हो." मेने उठते हुए उसे छेड़ा.

"थोड़ी दुल्हन थोड़ी औरत, लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा इसी हालत मे मिलता है बिना किसी डर के रोज" वो हंस के बोली.

raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 09:01

वास्तव मे मुझे अलग सा एहसास होता रहता था. आँखो मे सपने, मन मे मुरादे, बस मन करता रहता था कि वो दिन कितनी जल्दी आ जाए. जब मे उनकी बाहों मे होऊ और वो कस कर, भींच कर..मेरे होंटो पे मेरे शरीर का हर अंग नेये ढंग से महसूस कराता मेरे उभार, मेरी छातियाँ मुझे खुद भारी भारी, पहले से कसी लगती, और हर समय मुझे उनका एहसास होता रहता और अक्सर मे सोच बैठती कि राजीव कैसे मुझे बाहों मे लेंगे कैसे इन्हे कस के दबा देंगे लेकिन मे फिर खुद ही शर्मा जाती. और सारी देह मे एक अलग ढंग का रस्स खुमार, एक हल्की सी नेशीली सी चुभन और अब मेने जाने कि ये दुल्हन बनने का एहसास है.

जब मे उबटन लगवा के नीचे उतरी तो कुछ गाना हो रहा था. अब तो हर दम घर मे तरह तरह के गाने, काम वाली कोई दाल बनाती, चावल छाँटति या चक्की चलाती तो गा गा कर. बहोत प्यारी लेकिन थोड़ी उदास सी, रसोई मे महारजिन गा रही थी,
बाबा निमिया के पेड़ जिन छोटियो, निमिया चिरैया के बेसर..

बाबा बिटियाई जानी कोई दुख देई बिटिया चिरैया की ने.

सबेरे चिड़िया उड़ी उड़ी जैहई रही जैहई निमिया अकेली.

सबेरे बिटिया जैहई ससुर रही जैहई मैंया अकेल..

बहोत अच्छा गाना था लेकिन मे अचानक उदास हो गयी. सोचने लगी अब कुछ दिन मे ही, अंगने तो परबत भयो, देहरि भयो बिदेसाए अंगों,


बस अब कब आना होगा कुछ ही दिनों मे और मम्मी ने मेरे उदास चेहरे को देख के खुद ही ताड़ लिया वो महारजिन से बोली, हे बिदाई के गाने मत गाओ देखो मेरी बेटी कितनी उदास हो गयी. गाँव से मेरी चाची और भाभीया आई थी. वो ढोलक ले के बरामदे मे बैठ के बन्ने बन्नी गा रही थी. उन्होने मुझे पास बुलाया कि हे बन्नी इधर आओ तुम्हे खुश कर देने वाले गाने सुनाते है. और उन्होने मुझे छेड़ते हुए बन्नी सुनानी शुरू कर दी,


बन्ने जी तोरी चितवन जादू भरी, बनने जी तोरी चितवन,

आज दिखाओ, बन्ने जी तोरी बिहसन जादू भरी,

बन्ने जी तोरी अधैरान की अरुनेइ, बनने जी तोरी बोली जादू भरी


और मेरे मन मे 'उनके' बारे मे ढेर सारे चित्र उभरने लगे. उनकी निगाहों के और कैसे कैसे बाते करते है मे एकदम भूल जाती हूँ अपने आप को ओर जो बाते बसंती करती है. सोच के बस सिहर सी उठी मे.

लेकिन भाभीया हो और बात सिर्फ़ बन्नी तक रहे ये कैसे हो सकता है. एक ने मुझे पकड़ के नाचने के लिए खड़ा कर दिया अपने साथ और दूसरी भाभी ने ढोलक संभाला और चालू हो गयी,


लगाए जाओ राजा धक्के पे धक्का, लगाए जाओ,

दो दो बटन है कस के दबाओ


(और उन्होने मेरे उभार खुल के पकड़ लिए और मेरी एक टाँग उठा के अपनी कमर मे लपेट धक्के लगाते हुए नाचनेलगी), अर्रे लगाए जाओ राजा, धक्के पे धक्का.

बड़ी मुश्किल से मे छुड़ा के बैठी लेकिन इतने से कहाँ छुटकारा मिलता.

गालियाँ शुरू हो गई,

ननद रानी पक्की छिनार,

एक जाए आगे दूसरा पिछवाड़े बचा नही को नेुआ कहार .

और फिर ननद रानी बड़ी चुद्वासि कोई कस के लेला कोई हंस के लेला,

अर्रे कोई ढाई ढाई जोबना बकैये लेला मे जीतने मूह बनाती वो और कस के .
.जब सब लोग जाने लगे तो चाची ने मुझे समझाया.

"देख ये गाने, ये रस्मे छेड़ छाड़ बेहोट ज़रूरी है. अब तुम लड़कपन से निकल के अब तुम्हारा कुँवारा पन ख़तम होनेवाला है तो जो बाते बचपन मे कुंवारे पन मे ग़लत मानी जाती थी,.."

"यहीं बाते अब सही हो जाती है. सबसे ज़रूरी हो जाती है' हंस के मेने बोला.

"एकदम तुम तो समझदार हो गयी हो. तो अब उन्ही चीज़ों का खुल के, जम के मज़ा लेने का समय आ गया है. लड़की की धड़क खुल जाय और समझ जाय कि अब उसे क्या करना है. हर उमर मे अलग अलग मज़ा है तो अब तुम्हारा जवानी का मज़ा लेने का वक़्त आ गया है, समझी." ये कह के उन्होने मुझे गले लगा लिया.

हां एकदम और मुस्कराते हुए दौड़ के मे उपर अपने कमरे मे सोने चली गई.

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