राधा का राज compleet

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The Romantic
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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:33

"तू भी तो कम नही है. अरुण के साथ तू भी बहुत आँख मटक्का करती रहती है. दिन भर किसी ना किसी बहाने से तेरे घर की ओर भागता था और आधे घंटे से पहले वापस नही आता था. तूने क्या अपनी सहेली को अंधी समझ रखा है."

"बुदमास…..शक्की……" हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए हंस रहे थे एक दूसरे को चिकोटी काट रहे थे. गुदगुदी दे रहे थे.

खैर रचना अपना सारा समान लेकर हमारे घर पर ही रहने लगी. सामने ही उसके घर का दरवाजा था. दिन मे एक आध बार अपने घर भी चली जाती थी. जिससे अरुण आए तो उसे ऐसा नही लगे कि मकान काफ़ी दिनो से बंद है. राज शर्मा तो बहुत खुश था रचना को अपने साथ पकड़. हम तीनो मिल कर एक फॅमिली की तरह ही रह रहे थे. आग और घी साथ साथ कब तक एक दूसरे को च्छुए बिना रह सकते हैं जब साथ ही उनकी आग को हवा देने के लिए मैं मौजूद थी. अक्सर हम दोनो की ड्यूटी अलग अलग शिफ्टों मे रहती थी. हम दोनो मे से एक घर पर रहता. सुबह के अलावा जब मेरी ड्यूटी शाम की या रात की होती तो राज शर्मा रचना के साथ ही रहता. जब पहली बार मेरी नाइट शिफ्ट हुई तो रचना अपने मकान मे सोने के लिए जाने लगी तो मैने ही उसे रोक दिया.

"यही सो जा ना. राज शर्मा तो अपने बेडरूम मे सोएगा. तुझे उसके साथ सोने के लिए थोड़ी कह रही हूँ. क्यों राज ? मेरी सहेली के साथ किसी तरह की छेड़ चाड तो नही करोगे ना?" मैने राज शर्मा की ओर देखा उसे भी अपनी ओर मिलाने के लिए.

"हां हां रचना तुम अपने बेटे के साथ उस बेडरूम मे सोजाना और अगर डर लगे तो अंदर से लॉक कर लेना. यहाँ रहोगी तो कभी रात मे किसी चीज़ की ज़रूरत परे तो आवाज़ तो लगा सकोगी."

हम दोनो ने अपनी दलीलों से रचना को निरुत्तर कर दिया. काफ़ी समझाइश के बाद रचना राज शर्मा के साथ मेरे आब्सेन्स मे हमारे मकान मे रात को रुकने को राज़ी हुई.

मैने दोनो ओर हवा देना चालू रखा.

"मैं जा रही हूँ ड्यूटी. रात को चुपके से दोनो बेडरूम मे मत घुस जाना. वैसे भी उसका हज़्बेंड तो पास रहता नही है. कभी उसे किसी मर्द की ज़रूरत पड़े तो मेरा शेर तो है ही."

"राधा तू पागल हो गयी है." राज शर्मा ने कहा.

"इसमे पागल होने वाली क्या बात है. तुम उसे पसंद करते हो कि नही?" मैने उसे तब तक नही चोदा जब तक उसने हामी नही भरी.

"और मैं बताती हूँ वो भी तुम्हे उतना ही पसंद करती है. तुम्हारी निकटता को तरसती रहती है. मुझ से खोद खोद कर तुम्हारे बारे मे पूछ्ती रहती है. राज शर्मा जी को क्या पसंद है…राज शर्मा जी

मेरे बारे मे क्या कहते हैं. भाई तुम्हारी आधी घरवाली तो है ही."

वो हँसने लगा. लेकिन धीरे धीरे दोनो के मन मे एक दूसरे के प्रति आग जलती जा रही थी. और मैं इस आग को खूब हवा दे रही थी. रचना अभी बच्चे को दूध पिलाती थी इसलिए ब्लाउस के नीचे ब्रा नही पहनती थी. कभी अनदेखी मे एक दो बटन्स खुले भी रह जाते थे. राज शर्मा उसके झीने ब्लाउस मे कसी चुचियों को नज़र बचा कर निहारता रहता था. मैं उसे ऐसा करते हुए पकड़ लेती तो वो खिसियानी सी हँसी हस देता.

क्रमशः...........................

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:35

गतान्क से आगे....................

एक दिन वो सुबह अख़बार पढ़ रहा था तभी रचना हम तीनो के लिए चाइ बना लाई. चाइ के कप्स टेबल पर रखते वक़्त उसकी सारी का आँचल कंधे पर से फिसल गया. राज शर्मा अख़बार पढ़ने का बहाना करता हुआ उसके उपर से रचना की चुचियों को निहार रहा था. रचना के ब्लाउस के उपर के दो बटन्स और नीचे का एक बटन खुला हुआ था. उसका ब्लाउस सिर्फ़ एक बटन पर टिका हुआ था. उसने आँचल को निहारता देख चाइ के कप्स को टेबल पर रख कर अपने आँचल को समहाल लिया. लेकिन एक मिनिट का वो अंतराल काफ़ी था राज शर्मा की आँखों मे सेक्स की भूख जगाने के लिए.

" रचना तू ऐसे ही बैठ जा अपनी चुचियों पर से आँचल हटा कर. तेरे जीजा के मन की मुदाद पूरी हो जाएगी." मैने रचना की तरफ देखते हुए अपनी एक आँख दबाई. रचना शर्म से लाल हो गयी. उसने अपने आँचल को और अच्छी तरह बदन पर लप्पेट लिया.

" मेरा राज शर्मा तेरी उन दोनो रस भरी चुचियों को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा है. क्या करूँ मेरी चुचियाँ तो अभी सूखी ही हैं ना." मैने दोनो की और खिंचाई की.

" चुप…चुप…..तू आज कल बहुत बदमाश होती जा रही है. कभी भी कुछ भी कह देती है." रचना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.

हम तीनो हंसते बातें करते हुए चाइ पीने लगे. इसी तरह मैं दोनो को पास लाने के लिए जतन करती जा रही थी. एक दिन जब हम दोनो ही थे घर मे तब मैने जान बूझ कर सेक्स संबंधी बातें शुरू की. वो कहने लगी अरुण बहुत गरम आदमी है और जब भी आता है दिन रात उसके पास सिर्फ़ यही काम रहता है. मैने भी राज शर्मा के बारे मे बताया. वो राज शर्मा के बारे मे खोद खोद कर पूच्छने लगी.

" राज शर्मा ठेठ पहाड़ी आदमी है उसमे ताक़त तो इतनी है कि अच्छे अच्छो को पानी पीला दे. उसका लंड इतना मोटा और गधे की तरह लंबा है. जब अंदर जाता है तो लगता है मानो गले से बाहर अजाएगा."

"हा….तू झूठ बोल रही है. इतना बड़ा होता है भला किसी का." रचना राज शर्मा के बारे मे खूब इंटेरेस्ट ले रही थी.

" अरे जो झेलता है ना वो ही जानता है. आज इतने सालों बाद भी मेरे एक एक हाड़ को तोड़ कर रख देता है. इतनी देर तक लगातार चोद्ता है कि मेरी तो जान ही निकल जाती है."

" अच्छा तुझे तो खूब मज़ा आता होगा? लेकिन अब भी मैं नही मानती कि उसका लंड इस साइज़ का हो सकता है. अरुण का इससे काफ़ी छ्होटा है" रचना ने अपनी सूखे होंठों पर अपनी जीभ फेरी.

" तूने देखा नही पयज़ामे मे जब खड़ा होता है उसका तो कैसे तंबू का आकार ले लेता है."

रचना ने कुछ कहा नही सिर्फ़ अपने सिर को हिलाया.

"हां हां तुझे पता कैसे नही चलेगा. आजकल तो तुझे देखते ही उसका लंड बाहर आने को च्चटपटाने लगता है." मैं उसको छेड़ने लगी.

" तू भी तो अरुण के लंड को तडपा देती है." रचना ने मुझे भी लपेटने की कोशिश की.

"देखेगी?... बोल देखेगी राज शर्मा के लंड को?" मैने उससे पूछा. तो वो चुप रह कर अपनी सहमति जताई.

"ठीक है मैं कोई जुगाड़ लगाती हूँ."

उस दिन जैसे ही राज शर्मा पेशाब करने के लिए रात को बाथरूम मे घुसा मैने रचना को बाथरूम मे जाकर टवल लेकर आने को कहा. रचना को पता नही था कि अंदर राज शर्मा है. और जैसी मुझे उम्मीद थी. राज शर्मा ने दरवाजा अंदर से लॉक नही किया था. रचना बिना कुछ सोचे समझे बाथरूम के दरवाजे को खोल कर अंदर चली गयी. मैं पहले ही वहाँ से हट गयी थी. राज शर्मा कॉमोड के सामने खड़ा हुआ पेशाब कर रहा था. रचना को सामने देख कर हड़बड़ी मे वो अपने लंड को अंदर करना ही भूल गया. रचना की आँखें उसके लंड पर ही लगी हुई थी. उसका लंड रचना को देख कर खड़ा होने लगा. कुछ देर तक इसी तरह खड़े रहने के बाद रचना "उईईईई माआ" करती हुई बाथरूम से बाहर भाग आई. उसका पूरा बदन पसीने पसीने हो रहा था. मैने कुरेद कुरेद कर जब उससे पूछा तो उसने माना की वाक़ई उसे राज शर्मा का

लंड पसंद आ गया. अब मुझे उम्मीद हो गयी कि मैं अपने मकसद मे ज़रूर कामयाब हो कर रहूंगी.

रात को खाना ख़ान एके बाद मैं बर्तनो को सॉफ करके किचन सॉफ कर रही थी. रचना मेरे काम मे हाथ बटा रही थी. उसने मेरे ज़ोर देने पर रात को सारी की जगह सामने से खुलने वाला गाउन पहन रखा था. नीचे मैने उसे पेटिकोट या ब्रा पहनने नही दिया. इससे वो अपने कदम धीरे धीरे उठा कर चल रही थी क्योंकि पैरों को हिलाते ही नग्न पैर बाहर निकल पड़ते. मैं आज अपने काम से संतुष्ट थी. रचना चाह कर भी अपनी सुंदर टाँगे राज शर्मा से छिपा नही पा रही थी. इस पर मैने दोनो को कुछ निकटता देने के लिए कहा,

"रचना तू रहने दे. ये दूध गरम कर रखा है. इसे राज शर्मा को पिला कर जा बच्चे को सम्हाल नही तो अभी उठ कर रोने लगेगा. उसके दूध का टाइम भी हो गया है. ये मर्द हमेशा दूध के शौकीन होते हैं चाहे बच्चा हो या बूढ़ा."

रचना कुछ ना बोल कर राज शर्मा के लिए दूध का ग्लास लेकर हमारे बेडरूम मे चली गयी. मैं बिना आवाज़ के बेडरूम के पास पहुँची दोनो के बीच होने वाली बातों को सुनने के लिए. राज शर्मा धीरे से कह रहा था, "रचना आज तुम गाउन मे बहुत खूबसूरत लग रही हो. आओ बैठो यहाँ कुछ देर."

" नही मुझे जाने दो. बच्चे के दूध पीने का टाइम हो गया है." रचना ने धीरे से कहा.

" कितना किस्मेत वाला है." राज शर्मा ने धीरे से उसके साथ मस्ती करते हुए कहा.

" धात आप बहुत गंदे हो." फिर कुछ देर तक चुप्पी रही सिर्फ़ बीच बीच मे चूड़ियों की या कपड़ों के सरकने की आवाज़ आ रही थी.

" एम्म छोड़ो मुझे प्लीज़. राधा आती ही होगी. मुझे इस तरह तुम्हारी बाहों मे देख कर क्या सोचेगी. तुम मर्द तो कुछ ना कुछ बहाना बना कर बच जाओगे. मैं ही बदनाम हो जाउन्गि." रचना के गिड़गिदाने की आवाज़ आई.

"इतनी जल्दी भी क्या है. राधा काम पूरा करके आएगी कुछ देर तो लगेगा."

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:36

" प्लीज़…प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो देखो राज मैं फिर कभी आ जाउन्गि. अभी नही." कहते हुए उसके कमरे से भाग कर निकलने की आवाज़ आई. मैं झट से किचन मे चली गयी. रचना आकर मेरी बगल मे खड़ी हुई. उसकी साँसे ज़ोर ज़ोर से चल रही थी.

"क्या हुआ क्यों भाग रही थी?" मैने पूछा तो उसको मेरे अस्तित्व की याद आई.

"नही नही बस कुछ नही….बच्चा उठ गया है उसे दूध पिलाना है मैं चलती हूँ." कह कर वो बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए वहाँ से निकल गयी.

अगली शाम हम तीनो खाना खाने के बाद एक ही सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. आज मेरे कहने के बावजूद रचना ने सारी पहन रखी थी. हां अंदर ब्रा ज़रूरी नही था. कमरे की लाइट ऑफ थी सिर्फ़ टीवी की रोशनी कमरे मे कुछ उजाला कर रही थी. मैं राज शर्मा की एक ओर बैठी थी और रचना दूसरी ओर. फिल्म काफ़ी रोमॅंटिक थी उसमे लव सीन्स काफ़ी थे जिसे देखते देखते मैं गर्म होने लगी. मैं सरक कर राज शर्मा से सॅट गयी. राज शर्मा ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया. मैं अपना हाथ राज शर्मा की जाँघ पर रख कर उसे पायजामे के उपर से सहलाने लगी. बगल मे रचना बैठी थी उसकी मैने कोई परवाह नही की. धीरे धीरे मेरा हाथ उसके लंड को पायजामे के उपर से सहलाने लगा. उसका लंड खड़ा हो गया था. मैं उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. राज शर्मा ने अपना चेहरा मेरी ओर करके मेरे होंठों को चूमा. अचानक मेरी नज़र रचना पर पड़ी तो मैने पाया कि वो भी राज शर्मा से सटी हुई है और राज शर्मा का दूसरा हाथ रचना के कंधे पर है. वो अपनी उंगलियों से रचना का गाल गला सहला रहा था. रचना का सिर राज शर्मा के कंधे पर टिका हुआ था. उत्तेजना से उसकी आँखें बंद थी. कुछ देर बाद राज शर्मा की उंगलियाँ नीचे सरक्ति हुई उसके ब्लाउस के अंदर घुस गयी. उसके हाथ अब रचना की चूचियों को सहला रहे थे. रचना अपने निचले होंठ को दाँतों मे दबा कर सिसकारियाँ निकलने से रोक रही थी. मगर अचानक ना चाहते हुए भी मुँह से सिसकारी निकल ही गयी. सिसकारी के साथ ही उसकी आँखें खुली और मुझसे आँखें मिलते ही वो हड़बड़ा कर राज शर्मा से अलग हो गयी.

"मैं मैं चलती हूँ मुझे नींद आ रही है." उसने झट अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा और भागती हुई अपने कमरे मे चली गयी.

अगली शाम को हम तीनो बैठे ताश खेल रहे थे. बच्चा बेडरूम मे सो रहा था. अचानक उसकी रोने की आवाज़ आई.

" मैं अभी आती हूँ. बच्चा उठ गया है उसके दूध पीने का टाइम हो रहा है." कह कर रचना अपने हाथ के पत्ते टेबल पर रख कर उठने को हुई तो मैने उसको रोक दिया.

"तू बैठी रह राज शर्मा ले आएगा बच्चे को. इतना मज़ा आ रहा है और तू भागना चाहती है." मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया.

"लेकिन……."

"अरे बैठ ना तेरा चान्स है अपना पत्ता डाल राज प्लीज़ बच्चे को ले आओ ना बेडरूम से."

राज शर्मा उठ कर बेड रूम मे चला गया और बच्चा लाकर रचना की गोद मे दे दिया. बच्चे को देते वक़्त उसने अपनी हथेली के पिच्छले हिस्से से रचना के स्तनो को सहला दिया. उसकी इस हरकत से रचना के गाल लाल हो गये. मैने ऐसी आक्टिंग की मानो मुझे कुछ पता ही नही चला हो.

रचना बच्चे को आँचल मे छिपा कर दूध पिलाने लगी. मैने देखा राज शर्मा रचना के सामने बैठा कनखियों से रचना को निहार रहा था. हम वापस खेलने लगे. राज शर्मा ने ग़लत कार्ड फेंका. मैं तो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी.

"राज शर्मा या तो ठीक से खेलो या रचना की सारी के अंदर घुस जाओ." मैने गुस्से से कहा.

"नही नही….वो…वू" राज मेरे हमले से हड़बड़ा गया.

"रचना राज को एक बार दिखा ही दे अपने योवन. इसका दिमाग़ तो अपनी जगह पर वापस आए. एक काम कर तू अपने कंधे से सारी हटा दे और देखने दे इसे जी भर के. देख देख कैसे लार टपक रही है इसकी…." मैं हँसने लगी. दोनो भी एक दूसरे से नज़रे मिलकर मुस्कुरा दिए. रचना ने अपनी सारी के आँचल को हटाने की कोई हरकत नही की तो मैं उठी और उसके पास जाकर अपने हाथों से उसकी सारी का आँचल उसके कंधे से हटा दिया. उसक एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा ब्लाउस मे. राज शर्मा की आँखे इस दृश्य को देख कर फटी रह गयी. रचना के ब्लाउस के नीचे के दो बटन्स लगे हुए थे. ब्लाउस के बारीक कपड़े के पीछे से दूसरे स्तन का आभास सॉफ दिख रहा था. रचना ने अपना सिर शर्म से नीचे झुका लिया. उसके गाल गुलाबी होने लगे.

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