छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:56

मैं चुप-चाप बैठी रही. मई सोच रही थी की, बड़ा ही शरारेती लड़का है ये, पता नही अब क्या, करने वाला है. मैने सामने की झाड़ियो मे देखा तो, डंग रह गयी. उसने अपना लिंग बहेर निकल रखा था और मेरी तरफ, हिला रहा था. मैने फॉरन नज़रे फेर ली. कोई भी, ये नज़ारा देख सकता था. मुझे उस पर, गुस्सा आ गया.

वो थोड़ी देर बाद आया और बोला, कैसा लगा उन झाड़ियो मे, मेरे लंड का नज़ारा. मैने उसे डाँट ते हुवे कहा, तुम पागल हो गये हो क्या? कोई देख लेता तो. कम से कम, अपनी नही तो, मेरी इज़्ज़त की तो परवाह करो. वो तोड़ा सकपका गया और बोला ‘ओह सॉरी मुझे माफ़ कर दो’ मुझे इस बात का बिल्कुल ध्यान नही रहा. वो रिक्शे पर चढ़ा और रिक्शा चलाने लगा.

कुछ देर तक वो चुपचाप रिक्शा चलाता रहा.फिर अचानक, पीछे मुड़ा, और बोला, सबसे ज़्यादा, तुम्हारी ग़लती है. मैने गुस्से मे पूछा वो कैसे. वो बोला, तुम इतनी सुंदर जो हो, और उपर से, ये मौसम, मेरी तो बस जान जाने को है, प्लीज़ एक बार दे दो ना. मेरे मूह से अचानक निकल गया क्या ? और मैं मन ही मन मे बहुत पछताई कि, ये मैने क्या पूछ लिया, मैं तो जानती ही थी कि, इशे क्या चाहिए. वो झट से पीछे मुड़ा और मैने अपनी नज़रे झुका ली, मैं समझ गई थी कि, मैने इसे गंदी बाते करने का, मोका दे दिया है. वो बोला हाए-हाए क्या शरमाती है तू, सुनोगी नही कि, एक बार क्या दे दो. मैने शरम से, ना मे गर्दन हिला दी. वो बोला, हाए रे तेरी इशी अदा पे तो मैं मर मिटा हू, सच मे तेरी चूत लेने का मज़ा ही कुछ और होगा. मैं कसम ख़ाता हू, मैं किसी और की नही मारूँगा, बस एक बार तू मुझे अपनी दे, दे.

मैं शरम से लाल हो गयी, ये सोच कर कि, मैं ये सब क्या सुन रही थी. अचानक मेरा ध्यान रिक्शे के पीछे गया, और मैने देखा कि, एक साइकल वाला हमारे रिक्शे के बिल्कुल पीछे है. उसने शायद सब सुन लिया था. जैसे ही मैं पीछे मूडी मेरी उस से नज़रे टकराई, और उसने मुझे आँख मार दी. मैने फॉरन गर्दन मोड़ ली.

वो बहुत ही बदसूरत सा, काले रंग का, कोई 34-35 साल का आदमी था. मैं घबरा गयी कि अब क्या होगा. वो रिक्शे के बिल्कुल साथ-साथ चलने लगा और मुझे घूर्ने लगा.

मैने उसकी तरफ बिकुल नही देखा और नज़रे झुका कर बैठी रही. वो बोला, अरे वाह भाई, क्या माल पटाया है छोकरे तूने. मैं चुप चाप सुनती रही. वह मेरी तरफ देखते हुवे बोला, मुझे भी दे दे. मैने उसकी बात पर ध्यान नही दिया, पर वो, फिर बोला, आजा इसी सड़क पर मेरा घर है, मेरे साथ चल तुझे खुस कर दूँगा, तेरी आछे से लूँगा.मैने गुस्से मे उसकी तरफ देखा तो, मुझे अपनी नज़रे झुकानी पड़ी.

वह सारे आम, मेरी तरफ देख कर, साइकल चलाते हुवे, एक हाथ से, अपना लिंग मसल रहा था. मैं सोच रही थी कि देखो कैसी हालत हो गयी है मेरी, ऐसे बदसूरत आदमी से मुझे, ऐसी गंदी-गंदी बाते, सुन-नि पड़ रही है. पर मैं कर भी क्या सकती थी.

बिल्लू ने गुस्से मे उससे बोला, हे चल अपना रास्ता पकड़. वो बोला क्यो साले, ये तेरी बीवी है क्या. और बिल्लू फॉरन बोला ‘हा मेरी बीवी है’ चल निकल यहा से. मैं चुप चाप सब सुनती रही. मैं बिल्लू की बहादुरी पर खुस थी. पर उसने मुझे अपनी बीवी क्यो कहा ? मुझे ये सब अछा नही लग रहा था.

वो आदमी वाहा से नही हटा, और रिक्शे के साथ-साथ चलता रहा. कितना घिनोना, चेहरा था उसका. उसे देख कर ही, उल्टी आने को हो रही थी, और ऐसा आदमी मेरे बारे मे ऐसी गंदी बाते कर रहा था, सब कुछ बर्दस्त के बाहर था. उस आदमी की हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी, वो मेरी तरफ गंदे गंदे इशारे करने लगा.

बिल्लू ने रिक्शा रोक लिया, और उस आदमी को कहा, आबे क्या है, यहा से जाता है कि नही. तभी सड़क पर दो चार और वहाँ दिखे और वो आदमी सयद समझ गया कि अब यहा रुकना ठीक नही और सीधा आगे बढ़ गया.पर जाते हुवे, उसने पीछे मूड कर, मुझे देखा और मैने अपनी गर्दन घुमा ली, मैं उसके घिनोने चेहरे को नही देखना चाहती थी.

मैने मन ही मन चैन की साँस ली कि चलो ये बला टल गई. मैने बिल्लू को कहा, देखो तुमने मेरी कितनी, बेज़्जती करा दी. आज तक किसी ने, मुझे ऐसी बाते नही बोली थी, और ना ही किसी ने मुझे ऐसी नज़र से देखा था. मैने बिल्लू को कहा कि तुम प्लीज़ रिक्सा किसी दूसरे रास्ते से ले चलो, मैं उस आदमी को, दुबारा नही देखना चाहती. मुझे डर था कि, कही वो, दुबारा रास्ते मे मिल जाए.

और बिल्लू ने चुपचाप रिक्शा घुमा लिया. वो बोला, मेडम शांत हो जाओ, मैने उसे भगाया ना. मैने कहा पर तुम्हे ऐसी बाते करने की ज़रूरत क्या है.

वो मेरी तरफ मुड़ा और बोला क्या आपको मेरी बाते अछी नही लगती ? और मैं चुप हो गई, मेरे पास उसके सवाल का कोई जवाब नही था. मैं सोच मे पड़ गयी कि क्या वो, मेरी मेर्जी के बिना ये, बाते कर सकता था. जवाब मैं जानती थी. कही ना कही, मेरी ग़लती से ही, ये सब, मेरे साथ हो रहा था. मुझे क्या पता था कि ,मेरी छोटी सी भूल, बहुत बड़ी भूल, बन जाएगी.

खैर थोड़ी देर मे, मैं शांत हो गयी, और सोचा मुझे उस आदमी से क्या लेना देना, और चुप चाप मौसम का मज़ा लेने लगी. मैने उपर सर उठा कर देखा, तो घने बदल छाए थे. ऐसा लगता था कि, किसी भी वक्त बारिश हो सकती है.

उसने मुझे बदलो को घूरते हुवे देख लिया और झट से बोला, सच बता, क्या ऐसे मौसम मे, तेरा मन, किसी को अपनी… देने को नही करता?. मैं झट से बोली, किसी को क्या मतलब, मैं शादी, शुदा हू. मुझे सायड चुप रहना चाहिए था. उसे मानो, एक मोका और मिल गया, गंदी बाते करने का, और बोला, अछा तो तेरा मन सिर्फ़, अपने पति को देने का करता है. इस बार मैं चुप रही.

वो आगे बोला, अरे भाई इश् बिल्लू का, क्या होगा, जो दिन रात तेरी लेने के सपने देखता रहता है. मैने अब कुछ भी बोलना सही नही समझा. उसकी बाते और ज़्यादा गंदी होती जा रही थी पर मैं खुद पर हैरान थी, क्योंकि उसकी बाते सुन सुन कर मेरी योनि तरबतर हो गयी थी.


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:56

तभी बिल्लू ने पीछे मूड कर देखा, और बोला कि अभी कुछ मत बोलना, कोई पीछे से साइकल पर आ रहा है, मैने पूछा, हाई राम, कही वही आदमी तो नही. बिल्लू बोला, कैसी बात करती है, उसे तो मैने भगा दिया ना, अब वो नही आएगा. मैं वाकई मे बिल्लू से खुश थी कि उसने उस घिनोनी सूरत वाले आदमी को भगा दिया था. और मुझे ये भी अछा लगा कि अब वो रिक्शे के पीछे ध्यान रख रहा था.

थोड़ी दूर जा कर, एक आइस-क्रीम वाले के सामने, उसने रिक्शा रोक दिया. मैं बोली, ये क्या कर रहे हो, मैं लेट हो रही हू, और मौसम भी खराब है. उसने दो आइस-क्रीम ली और एक मुझे पकड़ा दी. वो बोला आइस-क्रीम खाओ और मन को ठंडा करो. वो रिक्शा चलते-चलते आइस-क्रीम खाने लगा. मैं मन ही मन सोच रही थी की, बेचारा कितनी कोशिश कर रहा है मुझे, पटाने की. मुझे उस पर दया आ रही थी कि, उसे मुझ से कुछ नही मिलेगा. ये मेरी मजबूरी थी.

अचानक मुझे ख्याल आया कि मई लेट हो रही हू. जब मैं घर से चली थी, तो संजय सोने जा रहे थे. पिछली रात, उन्होने पूरी रात क्लिनिक मे ऑपरेट करते हुवे बिताई थी. इसीलिए वो शायद ही उठे होंगे. पर चिंटू तो मौसी को परेशान कर रहा होगा (मैं चिंटू को पदोष मे अपनी एक मौसी के यहा छोड़ आई थी). मैने बिल्लू को कहा, रिक्शा थोड़ा तेज चलाओ, मुझे घर जा कर खाना बनाना है.

ये सुनते ही, उसने रिक्शा एक ढाबे के बाहर रोक दिया. वो बोला मैं एक मिनूट मे आया. उसने कुछ खाना पॅक कराया और मुझे थमा दिया, और बोला ये लो खाने की चिंता ख़तम,ये यहा का सबसे अछा ढाबा है. मैने पूछा, ये सब क्यो कर रहे हो, घर तो मुझे जाना ही है. उसने कहा, घर तो मैं तुझे ले जा ही रहा हू, ये खाना इसलिए है कि तू तेज-तेज चलने की बात ना करे, आख़िर पहली बार तेरे से मुलाकात हुई है, और वो भी ऐसे मौसम मे. खिड़की से देखने मे और ऐसे तेरे साथ रिक्शे मे फरक है, मैं आज बहुत खुस हू.

मैं सोचने लगी कि, बेचारा कितना तड़प रहा है मेरे लिए. बिल्लू पीछे मुड़ा और मेरी नज़रो मे झाँक कर बोला, सच बता, तुझे कैसा लगा था, जब मैने उस आदमी को कहा था कि ‘हा मेरी बीवी है’. मैने पूछा कहा क्या मतलब ? वो बोला, मतलब कि मुझे तो, बहुत अछा लगा, ये बोल कर कि, तू मेरी बीवी है, तेरे जैसी बीवी हो तो मैं दिन रात घर पर ही रहू, और दिन रात तेरी लेता रहू. उसने फिर से मुझे शरमाने पर मजबूर कर दिया और मैने बिना कुछ कहे नज़रे झुका ली.

वो बोला, बता ना, तुझे कैसा लगता, अगर मैं तेरे पति होता तो, क्या तू रोज रात को, मेरा बड़ा लंड झेल पाती. वो ऐसे, सवाल पूछ रहा था, जिनके कि, कोई भी भले घर की औरत, जवाब नही दे सकती थी. मैं एक ऐसे परिवार मे पली, बढ़ी थी जहा पर औरत को बहुत मर्यादाओ का पाठ पढ़ाया जाता है. और मैं, अपनी मर्यादाओ का, आदर भी करती हू. मैने ऐसी बाते, ना सुनी थी, और ना ही किसी से कही थी. इसलिए, मेरे पास, उसके किसी सवाल का, जवाब नही था. उस बेचारे को, क्या पता था कि, वो एक हारी हुई, बाजी खेल रहा है.

मैं किसी भी हालत मे, अपने असुलो को, नही भुला सकती थी. और मेरा सबसे बड़ा असूल था, अपने परिवार के प्रति ईमानदारी. आप लोग भी ये सब देख ही रहे होंगे की किस तरह बुराई, हम पर हावी होने की कोसिस करती है और किस तरह हमारी परम्परये, और हमारी मर्यादाए, हमे बचाते है. खैर मुझे खुद पर, विस्वास था कि, मई खुद की मर्यादाओ का पालन करती रहूंगी.

पर मैं सोच रही थी की इस शरारती लड़के का क्या करू. ये तो हर हाल मे मेरी……… पर आतुर है. अचानक आसमान मे, बिजली कोंधी और मैं डर गई. मैने बिल्लू को कहा, बिल्लू अब तो जल्दी करो, तूफान आने को है. वो पीछे मुड़ा और बोला इस से बड़ा तूफान तो आ ही चुका है, इस से क्यो डरती हो.

मैं सोचने लगी कि, वाकई मे बिल्लू सच बोल रहा था. उसका तो पता नही, पर मेरी जिंदगी ज़रूर एक तूफान मे फँस गई थी. और ये तूफान मेरे रोम-रोम मे मुझे महसूस हो रहा था. मैं जानती थी कि, मैं बिल्लू को, कुछ नही दूँगी, पर ना जाने क्यो मेरी योनि रस की नादिया बहा रही थी. ऐसा मेरे साथ, क्यो हो रहा था, पता नही. मैने अंदाज़ा लगाया कि शायद पहली बार इतनी एरॉटिक बाते सुन कर ऐसा हो गया है. बिल्लू पीछे मुड़ा और मेरी आँखो मे देखा. मुझे, उसकी आँखो मे, देख कर ऐसा लगा, मानो वो कह रहो हो कि, मैं हर हाल मे तेरी……रहूँगा. पर शायद, उसने भी मेरी आँखो मे, देख लिया होगा की, मैं किसी भी हालत मे उसे अपनी नही दूँगी."


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 08:57

गतांक से आगे.....................................

मौसम खराब, होता जा रहा था, और मैं अब घबराने लगी थी. मुझे अब, बिल्लू से डर लग रहा था.

मैं सोच रही थी कि कही ये कोई चालाकी तो नही कर रहा. मैने उसे आवाज़ लगाई और बोली कि, तुम जो मुझ से चाहते हो वो मैं तुम्हे नही दे सकती, तुम बेकार मे अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो.

वो पीछे मुड़ा, और बोला कि तेरे उपर तो मैं, वक्त क्या, अपना सब कुछ बर्बाद कर सकता हू. मैं सोच मे पड़ गई कि, आख़िर ये क्या मुशिबत है.

सामने से, एक खाली रिक्शा आता हुवा दिखाई दिया तो, मैने सोचा, अछा मोका है, इस बिल्लू के चंगुल से, निकलने का, और मैने उसे आवाज़ लगाई, भैया ज़रा रुकना. मैने बिल्लू को कहा कि तुम मुझे यही छोड़ दो, मैं अब और तुम्हारे साथ नही चल सकती.

उसने रिक्शा नही रोका और चलता रहा. मैने गुस्से मे कहा बिल्लू रोक रिक्शा मुझे उतरना है. और उसने रिक्शा रोक दिया. दूसरे रिक्शा वाला हमारे रिक्से के पास आया, और बोला कि मेडम कोई परेशानी है क्या. बिल्लू बोला हे, चल तू अपना काम कर, यहा कोई परेशानी नही है.

मैं रिक्से से उतरने लगी तो बिल्लू बोला, ऋतु जी प्लीज़ रुक जाओ, मैं अब कोई ग़लती नही करूँगा. मैं आपको अभी तेज़ी से घर पहुँचा दूँगा. ये सुन कर, मैने अपने कदम रोक लिए. मैं हैरान थी कि, उसने पहली बार, शभ्य भासा का इश्तेमाल किया था.

मैं वापस रिक्से मे बैठ गयी, और उसने रिक्सा आगे बढ़ा दिया.

हवा की तेज़ी बढ़ती जा रही थी, और अब चारो तरफ घन-घोर अंधेरा छा गया था. कुछ देर तक, सब ठीक रहा, और वो, चुपचाप, रिक्सा चलाता रहा.

पर, अचानक उसने ऐसी हरकत की, जिशे देख कर मैं फिर घबरा गयी. उसने तेज़ी से रिक्सा एक सुनसान गली मे मोड़ दिया. मैं परेशान हो गई. चारो तरफ तन्हाई थी. शायद मौसम के कारण लोग घरो मे बैठे थे. मेरे दीमाग मे चिन्ताओ के बदल छा गये. मुझे तरह तरह के बुरे खेयाल आने लगे.

ऐसे मे, ना जाने कहा से, मुझे अचानक, मेरे कॉलेज के दीनो की एक खौफनाक घटना याद आ गयी. उस दिन भी मैं ऐसे ही डर गई थी.

एग्ज़ॅम के दीनो का वक्त था. मैं कॉलेज की, लाइब्ररी मे एग्ज़ॅम के लिए, कुछ नोट्स बना रही थी. पढ़ते, पढ़ते, शाम हो गयी, और मैने देखा की, लाइब्ररी मे सिर्फ़ मैं ही पढ़ रही हू.

मुझे लगा, मुझे अब चलना चाहिए. मैने अपना बेग उठाया, और बाहर आ गयी. मुझे अचानक पानी की प्यास लगी. मैने दिन भर से, पानी नही पिया था. पर पानी का कूलर, जहा मैं खड़ी थी, उसके उपर वाले फ्लोर पर था. मैं पानी, पीने के लिए उपर आ गयी.

वाहा गिलास नही था, इसलिए मैं झुक कर हाथ से पानी पीने लगी. अचानक, मुझे अपने नितंबो पर हल्का सा दबाव महसूस हुवा, और मैने उसी पोज़िशन मे, पीछे मूड कर, देखा. मैने जो देखा, उशे देख कर, मेरे होश उड़ गये.

हमारे कोल्लेज का पेओन, अशोक, मेरे पीछे खड़ा था, और उसने अपने शरीर का वो हिस्सा, जहा आदमी का लिंग होता है, मेरे नितंबो से सटा रखा था. कोई अगर, दूर से देखता, तो उसे ऐसा लगता कि, वो मेरे साथ इस पोज़िशन मे कुछ कर रहा है.

मैं पानी, पीना भूल कर फॉरन सीधी खड़ी हो गयी. पर वो बड़ी बेशर्मी से वही खड़ा रहा.

मैने देखा की उसकी पॅंट मे उसका लिंग तना हुवा था. मैने गुस्से मे पूछा की ये क्या बाद-तमीज़ी है. वो बोला, मैडम कुछ नही, मैं तो यहा पानी पीने आया था, आप पानी पी, रही थी, इसलिए मैं आपके पीछे, लाइन मे खड़ा हो गया.

अशोक दीखने मे, बहुत ही बदसूरत था, उसकी नाक बहुत घिनोनी थी, और चेहरा एक दम काला था. पर मैने, उसके बारे मे, सुन रखा था कि, वह इस कॉलेज की, कई लड़कियो को, पटा कर, उनकी, ले चुका है. मुझे पूरा यकीन था कि, आज वह मुझ पर डोरे डाल रहा है, और उसने ये सब मेरे साथ जान-बुझ कर किया है. उसकी पॅंट मे, तना लिंग, भी यही गवाही, दे रहा था. मुझे बहुत, गंदी फीलिंग हो रही थी कि, ऐसे आदमी ने मेरे साथ ऐसी हरकत की है. मैं बर्दस्त नही कर पा रही थी. वो वाहा खड़े, खड़े मुझे घूर रहा था.

मैं घबरा गई, और सहम गई कि, यहा आस पास कोई भी नही है, और ये बदमास ऐसी, अश्लील हालत मे मेरे सामने खड़ा है.

वह मेरी परवाह किए बगार, अपने लिंग पर हाथ फेरते हुवे बोला, मेडम जी, आपको कोई ग़लत फ़हमी हो रही है. और मैने अपनी नज़रे दूसरी और घुमा ली.

मैं उसे कैसे कहती की, क्या ये तुम्हारी पॅंट मे तना हुवा लिंग, मेरी ग़लत फ़हमी है.

मैने कुछ भी कहना , मुनासिब नही समझा, और चुपचाप वाहा से चल पड़ी.

मैं शीधियो से उतर कर, फॉरन नीचे आ गयी और तेज़ी से कॉलेज के गेट की ओर चल दी. तभी मैने देखा क़ी वो जिस रास्ते पर मैं जा रही थी, उसी रास्ते मे, आगे खड़ा है. शायद वो किसी और रास्ते से वाहा पहुँच गया था.

मैने फॉरन अपना रास्ता बदला और भागना सुरू कर दिया और 2 मिनूट मे कॉलेज के बाहर आ गयी.

बाहर आ कर, मैने फॉरन एक ऑटो पकड़ा, और सीधी घर आ गयी. घर पहुँच कर मैने अपने पापा को पूरी बात बता दी. मेरे पापा जाने-माने आड्वोकेट है और उनके आचे ख़ासे कनेक्षन्स है. उन्होने अपने कनेक्षन्स का इश्तेमाल कर के उसे कॉलेज से निकलवा दिया.

वो एक दिन, मुझे कॉलेज के बाहर मिला, और रिक्वेस्ट करने लगा की, मेडम मुझे माफ़ कर दो. मेरी नौकरी, का सवाल है, मेरा एक छोटा बेटा है, एक बेटी है, उनकी मा भी नही है, मैं कैसे नौकरी के बिना उनको पलूँगा.

मैने उसे कहा, यहा से दफ़ा हो जाओ, ऐसी घिनोनी हरकत करने से पहले, तुम्हे सोचना चाहिए था.

मैने कहा मुझे सब पता है तुम लड़कियो को फँसा कर उनके साथ क्या करते हो. उसने मेरी आँखो मे झाँक कर पूछा, क्या करता हू मेडम.

और मैने नज़रे फेर ली, और उसे डाँट ते हुवे कहा, चुप कर, और यहा से दफ़ा हो जा. वो वाहा से हिला नही, और बोला मेडम आप मुझे अछी लगती हो, आप बहुत सुंदर हो, इस लिए मेरा मन फिसल गया, मैने जब आपको वाहा झुके हुवे देखा तो, ना जाने मुझे क्या हो गया, और मैं आपके पीछे सॅट कर, खड़ा हो गया, मुझे माफ़ कर दो मैं दोबारा ऐसा नही करूँगा.

उसके मूह से ये सब सुन कर मेरा मन खराब हो गया, मैं सोचने लगी कि ये बदसूरत मेरे बारे मे कैसी बाते कर रहा है. इसकी हिम्मत कैसे हुई ये सब सोचने की और कहने की.


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