वासना की अग्नि

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sexy
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Re: वासना की अग्नि

Unread post by sexy » 08 Sep 2015 10:21

मास्टरजी ने प्रगति के तलवों पर तेल लगा कर मालिश शुरू की तो प्रगति यकायक उठ गई और बोली, “यह आप क्या कर रहे हैं?”

ऐसा करने से प्रगति के नंगे स्तन मास्टरजी के सामने आ गए। हड़बड़ा कर उसने जल्दी से अपने आपको हाथों से ढक लिया। पर मास्टरजी को दर्शन तो हो ही गए थे। मास्टरजी के लिंग ने ज़ोर से अंगड़ाई ली और अपने आपको लंगोट की बंदिश से बाहर निकालने की बेकार कोशिश करने लगा। प्रगति के स्तन छोटे पर गोलाकार और गठे हुए थे। अभी इन्हें और विकसित होना था पर किसी मर्द को लालायित करने के लिए अभी भी काफी थे। इस छोटी सी झलक से ही मास्टरजी के मन में वासना का अपार तूफ़ान उठ गया पर वे दूध के जले हुए थे। इस छाछ को फूँक फूँक कर पीना चाहते थे। उन्होंने दर्शाया मानो कुछ देखा ही न हो। बोले, “प्रगति यह तुम्हारे उपचार की क्रिया है। इसमें तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए। तुम मुझे मास्टरजी के रूप में नहीं बल्कि एक चिकित्सक के रूप में देखो। एक ऐसा चिकित्सक जो कि तुम्हारा हितैषी और दोस्त है। अब लेट जाओ और मुझे मेरा काम करने दो वरना तुम्हें घर लौटने में देर हो जायेगी।”

प्रगति संकोच में थी फिर भी लेट गई। किसी के सामने नंगेपन का अहसास एक मानसिक लक्ष्मण रेखा की तरह होता है। बस एक बार ही इसकी सीमा पार करनी होती है। उसके बाद उस व्यक्ति के सामने नंगापन नंगापन नहीं लगता। प्रगति को अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि अपनी बेवकूफी के कारण उसने अपने आप को मास्टरजी के सामने नंगा कर दिया था। यह तो अच्छा है, उसने सोचा, कि मास्टरजी एक अच्छे इंसान हैं और बुरी नज़र नहीं रखते। कोई और तो उसे दबोच देता। यह सोच कर प्रगति सहम गई।
उधर मास्टरजी ने तलवों के बाद प्रगति की दोनों टांगों की पिंडलियों को दबाना शुरू किया। प्रगति को लगा मानो उसकी सालों की थकान दूर हो रही थी। उसे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। किसी ने कभी इस तरह उसकी सेवा नहीं की थी। वह मास्टरजी की कृतज्ञ हो रही थी। तो जब मास्टरजी ने उसकी टांगें थोड़ी और खोलने की कोशिश की तो प्रगति ने उनका सहयोग करते हुए अच्छी तरह अपनी टांगें खोल दीं। मास्टरजी अब पिंडलियों से प्रगति करते हुए घुटने और जांघों तक आ गए। अच्छे से तेल लगा कर हाथ चला रहे थे जिस से हाथ में खूब फिसलन हो और वे “गलती से” इधर उधर छू लें। अब प्रगति अपनी मालिश करवाने में पूरी तरह लीन थी। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति के ऊपर रखी चादर उसके नितंब तक उघड़ गई थी।

मास्टरजी ने अब देखा कि प्रगति पूरी नंगी नहीं है और उसने चड्डी पहन रखी है। मन ही मन उन्हें गुस्सा आया पर गुस्सा दबा कर प्यार से बोले,”तुम्हें यह चड्डी भी उतारनी होगी नहीं तो शरीर के ज़रूरी भाग इस उपचार से वंचित रह जायेंगे। बाद में तुम्हें पछतावा हो सकता है। लेकिन अगर तुम्हें संकोच है तो जैसा तुम ठीक समझो !!”

मास्टरजी ने अपना तीर छोड़ दिया था और वे आशा कर रहे थे कि प्रगति उनके जाल में फँस जायेगी। ऐसा ही हुआ।

प्रगति ने कहा,” मास्टरजी, जैसा आप ठीक समझें !!”

तो मास्टरजी ने उसको चादर से ढक दिया और कमरे के बाहर यह कहते हुए चले गए कि वे बाथरूम हो कर आते हैं। तब तक प्रगति चड्डी उतार कर लेट जाये।

मास्टरजी को थोड़ा समय वैसे भी चाहिए था क्योंकि उनका भाला अपनी क़ैद से मुक्त होना चाहता था। इतनी देर से वह अपने आप को संभाले हुए था। मास्टरजी को डर था कहीं ज्वालामुखी लंगोट में ही न फट जाए। बाथरूम में जाकर मास्टरजी ने अपनी लंगोट खोली और अपने लिंग को आजाद किया। इससे उन्हें बहुत राहत मिली क्योंकि उनके लिंग में हल्का सा दर्द होने लगा था। उसके अन्दर का लावा बाहर आने को तड़प रहा था। इतनी कमसिन और प्यारी लड़की के इतना नजदीक होने के कारण उनका लंड अति उत्तेजित था और कुछ न कर पाने के कारण बहुत विवश महसूस कर रहा था। उसके लावे को छुटकारा चाहिए था। मास्टरजी ने इसी में भलाई समझी कि अपने लिंग को शांत करके ही प्रगति के पास जाना चाहिए। वरना करे कराये पर पानी फिर सकता है। यह सोच उन्होंने अपने लंड को तेल युक्त हाथ में लिया और प्रगति के स्तनों का स्मरण कर मैथुन करने लगे। लिंगराज तो पहले से ही उत्तेजित थे, थोड़ी सी देर ही में चरमोत्कर्ष को पा गए। मास्टरजी ने सोचा अब लंगोट की क्या ज़रुरत सो सिर्फ निकर ही पहन कर बाहर आ गए।

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Re: वासना की अग्नि

Unread post by sexy » 08 Sep 2015 10:21

वहां प्रगति चड्डी उतार कर चादर के नीचे लेटी हुई थी। चड्डी में थोड़ा गीलापन था सो उसने चड्डी को गद्दे के नीचे छुपा दिया।

मास्टरजी ने जहाँ छोड़ा था वहीं से आगे मसाज शुरू किया। चादर को पाँव की तरफ से ऊपर लपेट कर प्रगति की जांघों तक उठा दिया और उसकी टांगें अच्छे से खोल दीं क्योंकि प्रगति अब नंगी थी, टांगें खुलने से उसे शर्म आ रही थी सो उसने अपनी टांगें थोड़ी सी बंद कर लीं। मास्टरजी ने कुछ नहीं कहा और पीछे से घुटनों और जांघों पर तेल लगाने लगे। उनके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ जाने लगे और चूतडों पर पहुँच गए। मास्टरजी प्रगति की टांगों के बीच वज्रासन में बैठ गए और प्रगति के घुटने से ऊपर की टांगों की मालिश करने लगे। चादर को उन्होंने उसकी पीठ तक उघाड़ दिया और वह उलटी, नंगी और असहाय उनके सामने लेटी हुई थी। मास्टरजी अपने जीवन में सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़कों का यौन शोषण भी कर चुके थे सो उन्हें गांड से बेहद प्यार था और उन्हें गांड मारने में मज़ा भी ज्यादा आता था। इस अवस्था में प्रगति की कुंवारी गांड को देख कर मास्टरजी की लार टपकने लगी। उनका मन कर रहा था इसी वक़्त वे प्रगति की गांड भेद दें पर अपने ही इरादे से मजबूर थे।

उनके हाथ प्रगति के चूतडों पर सरपट फिर रहे थे। रह रह कर उनकी उंगलियाँ चूतडों के पाट के बीच चली जातीं। जब ऐसा होता, प्रगति हिल हिल कर आपत्ति जताती। वज्रासन से थक कर मास्टरजी अपने घुटनों के बल बैठ गए और मालिश जारी रखी। उनकी उंगलियाँ प्रगति की योनि के द्वार तक दस्तक देने लगीं। ऐसे में भी प्रगति हिलडुल कर मनाही कर देती।

अब मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर से पूरी चादर हटा दी और मालिश का वार पिंडलियों से लेकर पीठ और कन्धों तक करने लगे। जब वे आगे को जाते तो उनकी निकर प्रगति के चूतडों से छू जाती।

हालाँकि मास्टरजी एक बार लिंगराज को राहत दिला चुके थे और आम तौर पर उनका लंड एक दो घंटे के विश्राम के बाद ही दुबारा तैयार होता था, इसी विश्वास पर तो उन्होंने लंगोट उतार दी थी। पर आज आम हालात नहीं थे। लिंगराज के लिए कठिन समय था। उनके सामने एक अत्यंत कामुक और आकर्षक लड़की उनकी गिरफ्त में थी। वह नंगी और कई तरह से असहाय भी थी। उनके संयम की मानो परीक्षा हो रही थी। मन पर तो मास्टरजी ने काबू पा लिया पर तन का क्या करें। उनका लंड ताव में आ गया और उसके तैश के सामने बेचारी निकर का कपड़ा कमज़ोर पड़ रहा था। वह उसके बढ़ाव और उफ़ान को अपने में सीमित रखने में नाकामयाब हो रहा था। अतः मास्टरजी का लंड निकर को उठाता हुआ आसमान को सलामी दे रहा था। मास्टरजी के इरादों का विद्रोह करते हुए उन्हें मानो अंगूठा दिखा रहा था। यह तो अच्छा था कि प्रगति उलटी लेटी हुई थी वरना लिंगराज की यह हरकत उससे छिपी नहीं रह सकती थी। सावधानी बरतते बरतते भी उनकी लंड-युक्त निकर प्रगति की गांड को छूने लगी।

कुछ भी कहो, सामाजिक आपत्ति और विपदा एक बात है और प्रकृति के नियम और बात हैं। प्रगति या उसकी जगह कोई और लड़की, का सम्भोग के प्रति विरोध सामाजिक बंधनों के कारण होता है ना कि उसके तन-मन की आपत्ति के कारण। तन-मन से तो सबको सम्भोग का सुख अच्छा लगता है बशर्ते सम्भोग सम्मति के साथ किसी प्रियजन के साथ हो। यहाँ भी, हालाँकि प्रगति के संस्कार उसको ग्लानि का आभास करा रहे थे, पर मास्टरजी के लंड का उसके चूतड़ों पर हल्का हल्का स्पर्श, उसके शरीर को रोमांचित और मन को प्रफुल्लित कर रहा था। प्रगति की योनि से सहसा पानी बहने लगा।

मास्टरजी क्योंकि पीठ की मालिश में मग्न थे, प्रगति की योनि गीली होने का दृश्य नहीं देख पाए। उनकी नज़र पीठ की तरफ और ध्यान चूतड़ों से स्पर्श करती अपनी निकर पर था जिसके कारण उनका लिंग कठोर से कठोरतर होता जा रहा था। उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इससे पहले उनका लंड इतनी जल्दी कब दुबारा सम्भोग के लिए तैयार हुआ हो !! उन्हें अपने आप पर गर्व होने लगा पर साथ ही चिंता भी होने लगी कि इस अवस्था से कैसे निपटें ? वे नहीं चाहते थे कि प्रगति को उनका विराट लंड दिख जाये। उन्हें डर था वह घबरा कर भाग न जाए। स्थिति पर काबू पाने के लिए वे प्रगति के ऊपर से हट गए और उसकी बगल में बैठ कर उसकी गर्दन और कन्धों को सहलाने लगे। उन्होंने प्रगति के निचले शरीर पर चादर भी उढ़ा थी। प्रगति के कामोत्तेजन को जैसे अचानक ब्रेक लग गया। उसे थोड़ा बुरा लगा पर राहत भी महसूस की। उसे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि अपने ऊपर संयम क्यों नहीं रख पा रही है। उसे लगा कि मास्टरजी क्या सोचेंगे अगर उन्हें पता लगा कि उसके शरीर में कैसी कशिश चल रही है। वे तो उसका इलाज करने में लगे हैं और वह किसी और प्रवाह में बह रही है !

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Re: वासना की अग्नि

Unread post by sexy » 08 Sep 2015 10:22

अपने ऊपर प्रगति को शर्म आने लगी और मन ही मन मास्टरजी का धन्यवाद किया कि वे उसके ऊपर से उठ गए और उसको ढक दिया। अब उन्हें प्रगति की योनि की अवस्था का पता नहीं चलेगा, जो कि सम्भोग के लिए तत्पर हो रही थी।

थोड़ी देर में मास्टरजी का लिंग मायूस हो कर सिकुड़ गया और प्रगति की योनि भी बुझ सी गई। दोनों को इससे राहत मिली। प्रगति नहीं चाहती थी कि मास्टरजी को उसकी कामोत्तेजना के बारे में पता चले। कहीं वे उसे बुरी और बदचलन लड़की न समझने लगें। उधर मास्टरजी नहीं चाहते थे कि प्रगति उनके लिंग के विराट रूप को देख ले। उन्हें डर था प्रगति डर के मारे भाग ही न जाए। वे प्रगति के साथ अपने रिश्ते को धीरे धीरे विकसित करना चाहते थे और एक लम्बा सम्बन्ध बनाना चाहते थे।

मास्टरजी को जब यकीन हो गया कि उनका लंड नियंत्रण में आ गया है और उनकी निकर के आकार को नहीं ललकार रहा तो वे उठ खड़े हुए और प्रगति को चित लेट जाने का आदेश दे कर कमरे से बाहर चले गए। प्रगति एक आज्ञाकारी शिष्या कि भांति चादर के नीचे ही करवट बदल कर सीधी हो गई। हालाँकि वह चादर के नीचे थी, फिर भी सहसा उसने अपने हाथों से अपने स्तन ढक लिए ताकि उसके वक्ष की रूपरेखा चादर पर न खिंचे।

वहां मास्टरजी ने गुसलखाने में जाकर अपने नटखट लंड को नियंत्रण में लाने के लिए एक बार फिर मामला हाथ में लिया और हस्त मैथुन करने लगे। वे दुबारा अपने आप को ऐसी स्थिति में नहीं लाना चाहते थे जहाँ उन्हें प्रगति से हाथ धोना पड़े। कुछ देर के प्रयास के बाद मास्टरजी का लंड एक बार फिर लावा उगलने लगा, पर इस बार पहले की भांति का ज्वालामुखी नहीं था। एक फुलझड़ी के मानिंद था। मास्टरजी को इस राहत से तसल्ली मिली और वे एक नए भरोसे के साथ प्रगति के पास आ गए। उनका लिंग एक भीगी बिल्ली की तरह असहाय सा निकर में लटक रहा था और गवाएँ हुए दो मौकों का अफ़सोस कर रहा था।

प्रगति के चित्त लेटने से एक समस्या यह खड़ी हुई कि अब दोनों एक दूसरे को देख सकते थे। पर दोनों ही एक दूसरे से आँख नहीं मिलाना चाहते थे क्योंकि दोनों के मन में ग्लानि भाव था।एक अजीब सी चुप्पी का वातावरण छा गया था। इतने में प्रगति ने अपने हाथ चादर से बाहर निकाल कर अपनी आँखों पर रख लिए और आँखें मूँद लीं। उसे शायद ज्यादा शर्म महसूस हो रही थी क्योंकि नंगी तो वह थी !!! उसकी इस हरकत से दो फायदे हुए। एक तो दोनों की आँखों का संपर्क टूट गया और दूसरे प्रगति के वक्ष स्थल से उसके हाथों का बचाव चला गया। प्रगति की साँसें उसकी छाती को ऊपर नीचे कर रहीं थीं जिस से उसके स्तनों के ऊपर रखी चादर ऊपर नीचे खिसक रही थी। इस चादर की रगड़ से उसकी चूचियों में गुदगुदी हो रही थी और वे उभर कर खड़ी हो गई थीं। उसके वक्ष की रूप रेखा अब चादर पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मास्टरजी को यह दृश्य बहुत अच्छा लगा।
मास्टरजी ने अपने काम पांव की तरफ से आरम्भ किया। वे प्रगति की छाती पर पड़ी चादर को नहीं छेड़ना चाहते थे। उन्होंने प्रगति के पांव से लेकर जांघों तक की चादर उघाड़ दी और तेल की मालिश करने लगे। तलवे तो पहले ही हो चुके थे फिर भी उन्होंने तलवों पर कुछ समय बिताया क्योंकि वे प्रगति को गुदगुदा कर उसकी उत्तेजना को कायम रखना चाहते थे। तलवों के विभिन्न हिस्सों का संपर्क शरीर के विभिन्न अंगों से होता है और सही जगह दबाव डालने से कामेच्छा जागृत होती है। इसी आशा में वे उसके तलवों का मसाज कर रहे थे। प्रगति को इसमें मज़ा आ रहा था। कुछ देर पहले उसकी कामुक भावनाओं पर लगा अंकुश मानो ढीला पड़ रहा था। मास्टरजी की उंगलियाँ उसके शरीर में फिर से बिजली का करंट डाल रही थीं।

धीरे धीरे मास्टरजी ने तलवों को छोड़ कर घुटनों के नीचे तक की टांगों को तेल लगाना शुरू किया। यह करने के लिए उन्होंने प्रगति के घुटने ऊपर की तरफ मोड़ दिए। चादर पहले ही जाँघों तक उघड़ी हुई थी। घुटने मोड़ने से प्रगति की योनि प्रत्यक्ष हो गई। प्रगति ने तुंरत अपनी टाँगें जोड़ लीं। पर इस से क्या होता है !? उसकी योनि तो फिर भी मास्टरजी को दिख रही थी हालाँकि उसके कपाट बिलकुल बंद थे। मास्टरजी ने खिसक कर अपने आप को प्रगति के और समीप कर लिया जिस से उनके हाथ प्रगति की जांघों तक पहुँच सकें।

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