rajsharmastories मेरी चाची की कहानी compleet

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rajaarkey
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Re: rajsharmastories मेरी चाची की कहानी

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 18:24

गतान्क से आगे..............
रेणु: "राज तुम ने तो बॉम्बे मे बहुत फिल्मी हीरो और हेरोइन देखे होंगे"

मे: "हाँ देखे तो है पर सब को नही"

मे: "हमारी एक बार स्कूल की पिक्निक फिल्मसिटी गयी थी, तब मे 2, 4 हीरो और हेरोइन को देखा था"

रेणु: "किस किस को देखा था"

मे: "गोविंदा, मिथुन, मधुरी दीक्षित, डिंपल और भी बहुत सारी"

रेणु: "वो क्या हमसे ज़्यादा खूबसूरत होती है"

मे: "अर्रे नही दीदी वो तो मेक अप करके खूबसूरत बनती है"

रेणु: "तुझे कैसे पता"

मे: "मा कहती है"

रेणु: "राज तुम कोन्से क्लास मे पढ़ते हो"

मे: "6थ स्टॅंडर्ड मे...और दीदी तुम?"

रेणु: "मे मेट्रिक मे हूँ"

मे: "मतलब?"

रेणु:"10थ स्टॅंडर्ड मे"

मे: "दीदी आपको स्कूल कहाँ है?"

रेणु: "काफ़ी दूर है बस से जाना पड़ता है"

इस तरह हम काफ़ी देर चलते चलते बाते करते रहे और फिर घर पहुँच गये जाते समय रेणु ने कहा "राज तुम कल आओगे नदी पर" मे बोला "अगर आप मुझे तैरना सिखाओगि तो ज़रूर आउन्गा" फिर रेणु मेरे गाल पर हाथ फेरते हुए अपने घर चली गई.

धीरे धीरे शाम होने लगी और सभी मेहमान और रिस्तेदार दालान मे जमा होने लगे कुछ देर बाद पता चला लड़कीवाले भी आ गये है, दादाजी, पिताजी, चाचा सब उनका स्वागत के लिए दालान के डोर पे खड़े थे, थोड़ी देर बाद सभी मेहमआनो की खातिरदारी सुरू हो गई. थोड़ी देर बाद दादाजी ने सब का परिचय हमसे करवाया और तिलक की रसम सुरू हो गई.

तिलक की रसम सुरू होने वाली थी, ये सब हमारे घर के आँगन मे होनेवाला था, सारा गाओं जैसे हमारे घर मे आ गया था घर एक दम खचा खच भरा हुया था. आँगन के बीच मे एक छोटसा मंडप बनाया गया था, मंडप के चारो तरफ हमारे रिस्तेदार और गाओं के लोग जमा थे. घर की औरते ये सब ग्राउंड फ्लोर के कमरों से देख रही और गाओं की औरते ये सब सेकेंड फ्लोर से देख रही थी. मे भी नीचे एक कोने मे खड़ा था और वही से या सब देख रहा था, कुछ देर मे लड़की वाले आने लगे और मंडप के एक तरफ बैठने लगे, मंडप के बीच मे पंडितजी बैठे ही थे, उन्होने चाचा को बुलाने को कहा. चाचा फिर अपने कमरे से निकले और मंडप मे बैठ गये और पंडितजी ने रसम सुरू की. तभी मेरी नज़र उपर रेणु पर पड़ी मैने उसे हाथ दिखाया और रेणु ने मुझे उपर आने का इशारा किया, मैने इशारे से कहा आता हूँ. जैसे ही मे उपर जाने लगा, देखा फूफा दादाजी के कमरे के पास खड़े है और चाची से बाते कर रहे है, फूफा काफ़ी हंस हंस कर बाते कर रहे थे जैसे ही मे वहाँ से गुजरा चाचीने पूछा "कहाँ जा रहे हो?" मे बोला "चाची मे उपर जा रहा हूँ" चाची बोली "अर्रे उपर मत जाओ बहुत लोग है, तुम यही से देखो". फिर मे वहीं रुक गया, लेकिन मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा था तो मे कमरे के अंदर जा कर एक टेबल पर खड़ा हो गया और खिड़की से देखने लगा अब सब साफ दिख रहा था.

rajaarkey
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Re: rajsharmastories मेरी चाची की कहानी

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 18:25



आप लोगो को बता दू, फूफा का मेरी मा, चाची और पापा की कज़िन सिस्टर से मज़ाक वाला रिस्ता था, घर के इक्लोते दामाद थे, तो उनका मान (रेस्पेक्ट) भी बहुत करते थे. मा और चाची फूफा से बहुत मज़ाक करती, लेकिन फूफा कभी बुरा नही मानते थे वो भी लगे हाथ मज़ाक कर लेते. चाची फूफा के एक दम पास खड़ी थी, उनके आगे बहुत सारी गाओं की औरते और मर्द खड़े थे, जिसकी वजह से चाची को मंडप नही दिख रहा था वो बार बार लोगो के उपर से देखने की कोसिस कर रही थी पर कुछ भी ठीक से नही दिख रहा था, फूफा ने कहा "कोमल्जी आप मेरे पास खड़े हो जाइए, शायद यहाँ आप को दिखेगा" चाची उन्हे पास खड़ी हो गयी और फूफा ने एक दो लोगो को थोड़ा हटने को कहा अब वहाँ से चाची को कुछ साफ दिख रहा था पर चाची फूफा से काफ़ी चिपकी हुई थी उनकी चूतर फूफा के हाथ को छू रही थी, क्यूँ की वनहा पर काफ़ी भीड़ थी और सब लोग मंडप मे तिलक देखने के लिए बेताब थे और सबकी नज़र मंडप पर थी.

चाची: "सुक्रिया, राजेसजी"

फूफा: "अर्रे इसमे सुक्रिया की क्या बात है, आप कहे तो आप को उठा लू"

चाची: "कमल तो उठती नही, हमे क्या उठाएँगे"

फूफा: "क्यूँ..आप क्या कमल से भी भारी है"

चाचीने कुछ जवाब नही दिया और मुस्कुराने लगी, फिर फूफा की शरारत सुरू हुई वो धीरे धीरे चाची के पीछे आगाये, पर फूफा लंबे थे इसीलये वो उनका लंड चाची के चूतर के उपर था, चाची तो बेफिकर मॅडप की तरफ देखा रही थी, फूफा अब धीरे धीरे अपने राइट हॅंड से उनकी चूतर को छू रहे, पर उनकी नज़र तो चाची की चूंचियों पर थी, फूफा लंबे थे इसीलिए वो काफ़ी अच्‍छी तरह से चाची की चुचियों का मज़ा ले रहे थे. अचानक मेरे पिताजी वहाँ गुज़रे, चाची ने देखा और तुरंत वहाँ से हट गयी और अंदर आ गयी, कुछ देर बाद बाहर आई पर चाची जहाँ खड़ी थी वहाँ पर कोई और खड़ा होगया, फूफा ने देखा और कहा "कोमल्जी आप कोई टेबल लाकर, उसपर खड़ी हो जाओ, आप को साफ दिखेगा" पर वहाँ पर कोई भी टेबल या चेर नही था फिर फूफा ने कोने से एक लकड़ी का छोटा सा बॉक्स लाकर अपने पास रख दिया और बोले "इस पर खड़ी हो जाओ" चाची ने खड़े होने की कोसिस की पर वो हिलने लगा चाची उतर गयी.

फूफा: "क्या हुआ"

चाची" "नही मे इस पर से गिर जाउन्गि"

फूफा: "अर्रे नही गिरोगि"

चाची: "नही ये हिल रहा है"

फूफा : "तुम खड़ी हो जाओ मे तुम्हे पीछे से पकड़ लेता हूँ.."

चाची: "अर्रे नही मुझे शरम आती है, और कोई देखेगा तो क्या कहेगा"

फूफा: "ठीक है फिर वही खड़े रहो"

चाची के पास कोई दूसरा चारा नही था, वो उसे पर खड़ी हो गयी और फूफा ने पीछे से पकड़ लिया, अब चाची की चूतर फूफा के लंड के शीध मे थी. फूफा ने पीछेसे चाची की कमर को पकड़ा हुआ था पर उनकी उंगलिया (फिंगर) चाची के नाभि (नेवेल) को छू रही थी. चाची का ध्यान तो मंडप पर था, मे ये सब खिड़की के पास से देख रहा था, बाकी लोगो का भी ध्यान मॅडप पर ही था, हम काफ़ी पीछे थे इसीलिए कोई हमे देख नही सकता था.

फूफा का लंड काफ़ी तन गया था, पॅंट की उभार साफ दिख रही थी और फूफा बड़े मज़े से चाची की चूतर को अपने लंड से दबा रहे थे, अचानक चाची थोड़ी सहम गयी शायद चाची फूफा के लंड को महसूस कर रही थी उन्होने एक दो बार पीछे भी मूड कर देखा पर कुछ बोली नही, पर बोलती भी क्या.

चाची: "राजेसजी..लड़कीवाले तो बड़े कंजूष निकले, समान बहुत कम दिया है"

फूफा: "अर्रे लड़की दे रहे है और क्या चाहिए..पर आपके से तो ज़्यादा दहेज दे रहे है"

चाची: "अर्रे..वो तो बड़े भैया ने दहेज के लिए हां करदी थी नही तो वो भी नही मिलती, पिताजी तो दहेज के खिलाफ थे और इतनी खूबसूरत लड़की दे रहे थे और क्या चाहिए था"

फूफा: "बात तो ठीक कह रही है आप...अगर हम प्रकाश की जगह होते तो, हम दहेज देते आपको..आख़िर आप हो ही इतनी खूबसूरत"

चाची: "अब हमारी फिरकी मत लीजिए"

फूफा: "क्यूँ..तुम खूबसूरत नही हो"

चाची: "हमे क्या पता"

फूफा: "क्यूँ प्रकाश ने कभी कहा नही"

चाची: "अर्रे उनके पास हमारे लिए वक़्त कहाँ, ऑफीस से आए और किताब मे घुसे गये"

फूफा: "बेवकूफ़ है..."

rajaarkey
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Re: rajsharmastories मेरी चाची की कहानी

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 18:25



चाची ने सिफ मुस्कुराते हुए जवाब दिया, इस दौरान बातों बातों मे फूफा ने अपने लेफ्ट हॅंड को थोड़ा उपर कर दिया, और चाची की चुचियों को उंगलियों से छू रहे थे. फूफा ने पूछा "क्यूँ कोमल्जी..अछा लग रहा है ना?" चाची ने कुछ जवाब नही दिया, इस पर फूफा की हिम्मत और भी बढ़ गयी वो अपने चेहरे को चाची के गर्दन के पास ले आए ऐसा लग रहा था जैसे वो चाची के सरीर की खुसबु ले रहे हो, चाची ये सब महसूस कर रही थी. फूफा ने फिर चाची के कान के पास अपने गाल लगाए और पूछा "कोमल्जी सब दिख रहा है ना?" चाची ने सर को हिलाते हुए हां बोला. फूफा का चेहर एक दम लाल होगया था अब उनसे भी कंट्रोल नही हो रहा था अगर अकेले होते तो आज चाची चुद गयी होती पर क्या करते इतने सारे लोग थे इसे ज़्यादा कुछ कर भी नही सकते थे. इस बार फूफा ने कुछ ज़्यादा ही हिम्मत दिखाई, अपने लेफ्ट हॅंड को उनकी ब्लाउस और राइट हॅंड को सारी के अंदर डालने की कोसिस करने लगे पर अब चाची से रहा नही गया, चाची फूफा के हाथ को हटाते हुए नीचे उतर गयी, इस दौरान चाची ने फूफा के तने हुए लंड को रगड़ दिया और उसे महसूस भी किया. चाची का चेहरा लाल हो गया और पसीना भी आ रहा था शायद वो फूफा के लंड की रगड़ से गरम हो गयी थी, वो बेड पर आ कर बैठ गयी और जग से पानी निकाल कर पीने लगी, फूफा दूर पर ही खड़े थे जब उन्होने चाची को पानी पीते देखा तो बोले "अर्रे कोमल्जी हमे भी पीला दीजिए, हम भी बहुत प्यासे है" चाची इतनी भी भोली नही थी कि फूफा की डबल मीनिंग वाली बात ना समझ सके, चाची ने मज़ाक मे कहा "इतनी भी गर्मी नही है कि आपको प्यास लग जाए"

फूफा: "अर्रे इतनी देर से आपको पकड़ के रखा था, थ्कुगा नही?"

चाची: "इतनी जल्दी थक गये, आप तो हमे उठाने वाले थे, इतने मे ही हवा निकल गयी

फूफा: "अगर ताक़त आज़माना है तो आजओ..हम पीछे नही हटेंगे"

चाची: "ठीक है फिर कभी देख लेंगे आपकी हिम्मत"

ये कहते हुए चाची ने फूफा को पानी ग्लास दिया फूफा ने पानी पिया और फिर डोर के पास खड़े हो गये. अभी तिलक की रसम ख़तम नही हुई थी, चाची बड़ी हिम्मत कर के फूफा के पास खड़ी हो गई पर उस लकड़ी के बॅक्स पे चढ़ने की हिम्मत नही हो रही थी, फूफा ने पूछा "क्यूँ तिलक नही देखना" चाची ने कहा "रहने दीजिए आप थक जाएँगे", इस बार फूफा ने बड़ी शरारती मुस्कान देते हुए चाची को देखा, चाची शरम कर नीचे देखने लगी शायद चाची को भी ये सब अछा लग रहा था पर डर भी था कि कोई अगर देख लेगा तो बदनामी हो जाएगी. तिलक की रसम तो ख़तम होगयि पर फूफा बेचारे प्यासे रह गये.

शादी के पहले हल्दी की रसम थी, घर मे तो जैसे होली का महॉल हो गया था, जो भी प्रेम चाचा को हल्दी लगाने जाता उसे हल्दिसे पीला कर्दिया जाता. मा और गाओं की कुछ औरते फूफा को हल्दी लगाने के लिए उनके पीछे भागी फूफा प्रेम चाचा के कमरे मे घुसे गये पर वहाँ भी बचने वाले नही थे क्यूँ कि वान्हा पहले से चाची और कुछ औरते हल्दी लिए खड़ी थी, सब ने मिल कर फूफा को जम कर हल्दी लगाई. जब मा और बाकी औरते कमरेसे से निकलने लगी फूफा ने थोड़ी हल्दी ली और चाची को पीछेसे पकड़ कर गाल और पीठ (बॅक) पर हल्दी लगाने लगे चाची जैसे ही पीछे घूमी फूफा ने कमर मे हाथ डाल कर पकड़ लिया और अपने गाल पर लगी हल्दी को उनके गालों पर मलने लगे इस दौरान चाची की चुचियाँ बुरी तरह से फूफा के शीने से दबी हुई थी, चाचीने जैसे तैसे अपने को उनसे अलग किया और एक कोने मे खड़ी होगयि "हाए राम...कोई इस तरह पकड़ता है, कोई देख लेता तो?"
क्रमशः.............



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