राधा का राज compleet

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The Romantic
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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:11

राधा का राज --2

गातांक से आगे....................

"अभी कुछ नही. पहले खाना खा लो. तुम्हे लगी हो ना हो मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लग रही है." वो मेरी बातें सुन कर हंस दिया. मैने उसके बदन को सहारा देकर सिरहाने पर कुछ उठाया. इस कोशिश मे मैं उसके बदन से लिपट गयी. उसके बदन की खुश्बू मेरे दिल तक उतर गयी थी. मैं एक कौर उसको खिलाती तो दूसरा कौर खुद खाती.

खाना ख़तम करके मैने अपने हाथ धोए और फिर राज शर्मा का मुँह पोंच्छ कर उसको पानी पिलाने लगी. राज शर्मा पानी पीकर मेरे हाथ से ग्लास लेकर साइड के टेबल पर रख दिया. और मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया. मैं भी तो इसी छन का इंतेज़ार कर रही थी. मैं भी उसके बदन से किसी लता की तरह लिपट गयी.

मेरे होंठों को चूमते हुए उसके हाथ मेरी चुचियों पर आगए. ऐसा लगा जैसे इन्हीं हाथों के चुअन के लिए मैं आज तक तड़प रही थी. मैने उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर अपनी चुचियों को हल्के से दबा कर उसे अपनी सहमति जताई. वो मेरी चुचियों को दबाने लगा. मेरे हाथ चादर के अंदर घुस कर उसके सीने को सहलाने लगे. मैं उसकी बलिष्ठ छाती पर अपने हाथ फिरा रही थी. मैने अपना हाथ नीचे लाकर कुछ च्छुआ तो चौंक उठी. आज वो पयज़ामा पहन रखा था. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी.

"ये इसलिए कि तुम्हारे अलावा किसी और की पहुँच मेरे बदन तक ना हो."

मेरे हाथ उसके पयज़ामे के नाडे से उलझे हुए थे. मैने नडा खोल कर हाथ को अंदर डाल दिया. उसका लंड मेरे हाथ की चुअन से फुंफ़कार उठा. मैं उसे बाहर निकाल कर सहलाने लगी. मैं अपने हाथों से उसके लंड को सहलाने लगी बीच बीच मे उसके नीचे की दोनो गेंदों को भी सहला देती. वो काफ़ी उत्तेजित था कुछ ही देर मे उसका बदन एंथने लगा और उसने मेरे हाथों को अपने वीर्य से भर दिया. मेरे हाथ फिर उसके वीर्य से सन गये. वो मेरी चुचियों से खेल रहा था. मैं हाथ बाहर निकाल कर उसके सामने ही अपनी जीभ से उसके वीर्य को चाटने लगी. हाथ मे लगे उसके सारे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया.

"कैसा लगा?" राज शर्मा ने पूचछा.

"टेस्टी है. बहुत अच्छा लगा. अब तुम सो जाओ. नर्स के लौटने का समय हो गया है. मैं चलती हूँ." मैने जल्दी से अपने कपड़े सही किए. आधा घंटा हो चुका था. नर्स किसी भी वक़्त लौट सकती थी. मैं जाने को मूडी तो उसने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे रोका.

"नही राज शर्मा मुझे जाना ही पड़ेगा. नही तो पूरे हॉस्पिटल मे सब मुझ पर हँसने लगेंगे" मैने उसकी पकड़ से अपनी बाँह छुड़ानी चाही.

"ठीक है लेकिन जाने से पहले एक ….." कह कर उसने अपने होंठ उपर की ओर कर दिए. मैने उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसे एक गहरा चुंबन दिया और उस कमरे से निकल गयी.

अगले दिन नर्स को खाने पर भेज कर मैने कुण्डी बंद कर ली. जैसे ही मैं राज शर्मा के पास आई उसने मेरे चेहरे को चूम चूम कर लाल कर दिया. मैं खाने का टिफिन एक ओर रख कर उसके सीने से लग गयी. उसके बदन से चादर को पूरी तरह हटा दिया और उसके पयज़ामे को खोल कर उसका लंड निकाल लिया. उसका लंड एक दम तना हुआ था. मैने झट से उसके लंड के टिप पर अपने होंठों से एक चुंबन जड़ दिया.

इस बार उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुका दिया. मैं ने शरारत से होंठ भींच लिए. वो लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा. होंठ उसके वीर्य से गीले होगये. कुछ देर बाद मैने अपने होंठ खोल कर उसका लंड अपने मुँह मे ले लिया. पहले धीरे धीरे और बाद मे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर भींचने लगा. काफ़ी देर तक मुख मैंतुन करने के वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर सख्ती से दबा दिया. उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ मेरे गले के अंदर प्रवेश कर गया. उसका लंड फूलने लगा था. मैं साँस लेने के लिए च्चटपटा रही थी. तभी ऐसा लगा जैसे उसके लंड से गरम गरम लावा निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे प्रवेश कर रहा है. मैने सिर को थोडा बाहर की ओर खींचा. पूरा मुह्न उसके वीर्य से भर गया था. होंठों के कोनो से वीर्य बाहर चू रहा था. पूरा वीर्य निकल जाने के बाद ही उसने मेरे सिर को छोड़ा. मैने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य अंदर गटक लिया. उसने मेरे होंठों के कोरों से टपकते वीर्य को अपनी चादर से पोंच्छ दिया.


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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:13

अचानक मेरी नज़र अपने रिस्ट . पर पड़ी. काफ़ी टाइम हो चुका था. मैने दौड़ कर बाथरूम मे जाकर अपना मुँह धोया. वहीं पर आईने के सामने अपने बाल & और कपड़े सही कर के लौटी.

" ऐसा लगता है तुम किसी दिन मुझे मार ही दोगे." कहकर मैं उस से लिपट कर उसके होंठों को चूम ली.

"बहुत दर्द कर रहा है गले मे. तुम कितने गंदे हो. इस तरह कभी मुँह मे डालते हैं?" मैं उसके सीने से सटी हुई बोली. वो हंसता हुआ मेरे गले को और गालो को सहलाने लगा. इतना सुकून मुझे आज तक कभी नही आया था.

फिर हम दोनो एक दूसरे को खाना खिलाए. थोड़ी देर मे नर्स आ गई थी. उसके दरवाजे को खटखटाते ही मैं कमरे से बाहर निकल गयी.

इसी तरह रोज जब भी मौका मिलता मैं लोगों की नज़रों से बचा कर अपने महबूब से मिलती रही. हम एक दूसरे को चूमते, सहलाते और प्यार करते थे. वो मेरे बूब्स को खूब मसलता था, मेरी निपल्स को खींचता और मसलता था. मैं रोज मुख मैंतुन से उसका निकाल देती थी. उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था. वो मुझे खींच कर अपने उपर लिटा लेता और मेरे पेटिकोट के अंदर हाथ डालकर मेरी पॅंटी को खिसका कर मेरी योनि को सहलाने लगता. बीच बीच मे मेरी योनि मे भी उंगली डाल कर उस से ज़्यादा हम वहाँ कुछ कर भी नहीं पाते थे. पकड़े जाने और बदनामी का डर जो था.

धीरे उसकी टाँग ठीक हो गयी. उसे मैं अपने कंधे का सहारा देकर कमरे मे ही चलाती. वो किसी नर्स की मदद लेने से मना कर देता था. तभी अचानक मेरी तबीयत एकदम से खराब हो गयी. विराल फीवर हुआ था. काफ़ी तेज बुखार चढ़ता था. दो तीन दिन तो मैं बिस्तर से ही नही हिल पाई थी. जब कुछ ठीक हुई तो मैं हल्के बुखार मे भी हॉस्पिटल पहुँची.

मैं सीधे राज शर्मा के कॅबिन मे पहुँचा. मुझे पता था कि वो मुझ पर नाराज़ होने वाला है. इतने दिनो से मिल जो नही पाई थी उससे. किसी के हाथ खबर भी नही भिजवा पाई क्योंकि इसके लिए उसे सब कुछ बताना पड़ता जो कि मैं नही चाहती थी.

लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची तो कमरा खाली पाया. पूच्छने पर पता लगा कि उसको डिसचार्ज कर दिया गया है. मैने कमरे मे उसके हिस्टरी शीट मे सब जगह उसका पता जानने की कॉसिश की मगर कुछ पता नहीं लगा. मेरी हालत पागलो जैसी हो गयी थी जिससे मन लगाया वोई मेरी बेवकूफी के कारण मुझसे दूर हो गया था. मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था की इतने दिनो साथ रहे मगर कभी उसका पता नही पूछा. मैने उसे हर जगह ढूँढा. मगर वो तो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह की रोशनी मे ढूँढ गायब हो जाती है.

मैं जिंदगी मे पहली बार किसी पराए लड़के से बिच्छुड़ने पर रोई थी. मेरी सहेली रचना जो मेरे साथ क्वॉर्टर शेर करती थी, उसने भी काफ़ी खोदने की कोशिश की मगर मैने किसी को भी कुछ नहीं बताया. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी से प्यार किया था. वो जैसा भी था मुझे अच्छा लगता था.

वो ग़रीब था लेकिन उसमे कुछ बात थी जो उसे सबसे अलग करती थी. कुछ हो ना हो मैं तो उस से प्यार करने लगी थी. किसी ने सच ही कहा है दिल किसी रूल को नही मानता. उसके अपने अलग ही उसूल होते हैं. घरवाले परेशान कर रहे थे शादी के लिए. मेरे पेरेंट्स आज़ाद ख़यालों के थे इसलिए उन्हों ने कह दिया था कि मैं जिसे चाहे पसंद करके शादी कर लूँ. कभी कभी मैं सोचती कि क्या वो भी मुझे चाहता होगा? या मैं ही उससे एक तरफ़ा प्यार करने लगी थी. शायद उसे तो मेरे बदन से खेलने मे अच्छा लगता था इसलिए उसने मुझे उसे किया. नही तो इतने दिनो मे एक बार तो कभी भूल से ही सही अपने प्यार का इज़हार करता. मैं तो उसके मुँह से प्यार के बोल सुनने को तरसती थी.

अगर वो मुझे पसंद करता था तो फिर वो कभी दोबारा मुझसे मिला क्यों नहीं. धीरे धीरे सिक्स मंत्स गुजर गये उस मुलाकात को. मैने अपने दिल को मना लिया था. मैं मानने लगी थी कि शायद मेरी किस्मेत मे कोई है ही नही. मैने घर वालों को भी सॉफ सॉफ कह दिया था कि मुझे बार बार परेशान नही करे. मुझे किसी से शादी नही करना है. वापस वही हॉस्पिटल और वो कमरा बस इसी मे बँध गयी थी. हां जब कभी मैं उस कॅबिन के सामने से गुजरती तो लोगों की नज़रों से बच कर एक बार अंदर ज़रूर झाँक लेती. क्यों?....नही मालूम. शायद दिल को अभी भी आशा थी कि राज शर्मा फिर मुझे उस कॅबिन मे मिल जाएगा.

फिर अचानक ही वो मिला. मैं तो उम्मीद हार् चुकी थी. लेकिन वो मिला…..वो जब मिला तो मुझे दिए तले अंधेरा वाली बात याद आई. एक दिन मैं हॉस्पिटल के लिए निकली तो अचानक मुझे एक जाना –पहचाना चेहरा हॉस्पिटल के सामने के बगीचे मे काम करता हुआ नज़र आया. मेरे सामने उसकी पीठ थी. वो पोधो पर झुका हुआ उनकी कटिंग कर रहा था. पीछे से वो मुझे काफ़ी जाना पहचाना लग रहा था.

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:14

" सुनो माली." उसके घूमते ही मैं धक से रह गयी, "त…तुऊऊँ?" सामने राज शर्मा खड़ा था. मेरा प्यार, मेरा राज. मैं एकटक उसे देख रही थी. मुँह से कोई बोल नही निकले. मेरे बदन और मेरे दिमाग़ ने कुछ छनो के लिए काम करना बंद कर दिया.

"राआआआ……..मेडम" राज शर्मा ने मुझे जैस सोते से जगाया." मैं यहाँ माली का काम करता हूँ. आप अपने आप को सम्हलिए नहीं तो कोई भी आदमी इसका ग़लत मतलब निकाल सकता है. आप यहा डॉक्टर हैं और मैं एक

मामूली सा माली…"

मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ. "तुम मुझे आज शाम च्छे बजे मेरे घर पर मिलना. बहुत ज़रूरी काम है… आओगे ना?" मैने उससे कहा मगर उसके मुँह से कोई बात निकलती ना देख कर मैने धीरे से कहा,"तुम्हे मेरी कसम." कहकर मैं अपने आप को समहाल्ती हुई तेज़ी से हॉस्पिटल मे चली गयी.

मुझे मालूम था कि अगर मैने मूड कर देख लिया तो मैं अपने जज्बातों पर काबू नही रख सकूँगी. हॉस्पिटल मे मन नहीं लगा तो तबीयत खदाब होने का बहाना बना कर मैं भाग निकली. आज किसी काम मे मन नही लग रहा था. शाम को राज शर्मा आने वाला था मुझसे मिलने. उसकी तैयारी भी करनी थी. वापसी मे मुझे राज शर्मा कहीं नहीं दिखा. मैने उस गार्डेन के दो तीन चक्कर काटे मगर कहीं भी नही था वो.

मैं बाज़ार जा कर कुछ समान खरीद लाई. समान मे कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स, एक झीना रेशमी गाउन था. रात का डिन्नर और तीन बॉटल बियर था. एक लड़की के लिए बियर खरीदना कितना मुश्किल काम है आज मुझे पता लगा था.

बड़ी मुश्किल से किसी को पैसे देकर मैने तीन बॉटल बियर माँगाया. आज मैं उसकी पूरी तरह से स्वागत करना चाहती थी. शाम चार बाजे से ही मैं अपने महब्बूब के लिए तैयार होकर बैठ गयी. हाल्का मेकप करके पर्फ्यूम लगाया. फिर ट्रॅन्स्परेंट ब्रा और पॅंटी के उपर नया रेशमी गाउन पहन लिया. गुलाबी झीने गाउन को पहनना और नही पहनना बराबर था. बाहर से मेरे गुलाबी बदन एक एक रोया दिख रहा था. मैने बिस्तर पर साफ़ेद रेशमी चदडार बिच्छा दिया. रूम स्प्रे को चारों ओर स्प्रे कार दिया था जिससे एक रहश्यमय वातावरण तैयार हो. कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स एक फ्लवर वर्स मे बेड के सिरहाने पर राख दिया.

6 बजे तक तो मैं बेताब हो उठी. बार बार घड़ी को देखती हुई चहल कदमी कर रही थी. 6.10 पर डोर बेल बजा. मैं दौड़ कर दरवाजे पर गई. पीप होल से देखकर ही दरवाजा खोलना चाहती थी. क्योंकि कोई और हुआ तो मुझे इस रूप मे देखकर पता नहीं क्या सोचे. उसे देख कर मैं दो सेकेंड्स रुक कर अपनी तेज साँसों को कंट्रोल किया और दरवाजा खोलका उसे अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके मैं उससे बुरी तरह से लिपट गयी. किस कर करके पूरा मुँह भर दिया.

" कहाँ चले गये थे? मेरी एक बार भी याद नहीं आई?" मैने उससे शिकायत की.

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