अपने अपार्टमेंट पहुच कर डॉली सीडीयो के तरफ बड़ी तो उसकी गान्ड पे एक बॉल आके लगी....
वो पीछे मूडी तो तीन चार छोटे से लड़के हँसने लगे और फिर सॉरी बोलने लगे...
वो सब वहाँ क्रिकेट खेल रहे थे तो डॉली ने भी ग़लती समझ कर कुच्छ नहीं कहा और अपने घर चली गयी...
जब वो घर पहुचि तो दरवाज़ा उसके कज़िन मनोज ने दरवाज़ा खोला... मनोज पहले से काफ़ी ज़्यादा स्मार्ट हो गया था..
डॉली खुशी से उसे मिली और फिर अपनी मासी और अपनी सबसे छोटे प्यारे से भाई सोनू से मिली...
सोनू को देख कर ऐसा लग रहा था कि पूरे घर में रौनक च्छा गयी हो... उधर दूसरी ओर मनोज जोकि ललिता के
जितना ही था ज़्यादा बात नहीं कर रहा था... डॉली को लगा कि इतने समय के बाद वो उसे मिला है तभी शायद
थोड़ा खुलने में समय लगेगा... कुच्छ देर बाद मनोज बाहर बाल्कनी में गया फोन पे बात करते हुए
तो उसने लंबी साँस लेते हुए सोचा कि उसकी कज़िन तो बहुत ज़्यादा हसीन है... डॉली को पहली नज़र
में ही देख कर उसके मन में गंदे गंदे ख़याल आने लग गये...
फिर उसने बाल्कनी में नज़र घुमाई तो धुले हुए कपड़े सूखने के लिए टाँगे हुए थे...
फिर वो थोड़ी सीधी तरफ मुड़ा तो कूलर से छुपा हुआ एक कपड़े रखने का स्टॅंड था और उधर बहुत
सारे ब्रास और कच्चिया थी... मनोज अपनी किस्मत को सलाम करता हुआ वापिस बाल्कनी के दरवाज़े की तरफ
बढ़ा और बाहर से उसकी कुण्डी लगा दी.... फिर जल्दी से वापस कूलर के पीछे गया और बिना झिझक के उसने
एक सस्ती सी सफेद रंग की ब्रा उठाई..... उसको महसूस करने लगा मगर उसको पक्का यकीन था कि ये डॉली
की नहीं हो सकती क्यूंकी उसके लिए ये बड़ी थी... उसकी नज़र पर्पल रंग की ब्रा पे पड़ी जोकि महँगी लग रही थी
उसे उठाके उसने देखा कि ये डॉली की ही होगी... उसने अपनी जीन्स की ज़िप खोली और जल्दी से अपने लंड पे उसको रगड़ दिया..
फिर उसकी नज़र उसके जोड़ीदार पर्पल रंग की पैंटी पे पड़ी और वो उसे सूँगने लगा मगर उसमें से नींबू की बू
आ रही थी... उसको आवाज़ आई कि कोई दरवाज़ा खाट खता रहा है उसने जल्दी से कपड़े टाँगें और दरवाज़ा खोलने गया...
उसकी मम्मी खड़ी थी... उन्हो ने उसको अंदर आने के लिए कहा....
कुच्छ देर बाद पूरा घर भर गया था क्यूंकी चेतन, ललिता और नारायण भी आ गये थे और सबने मिलके खाना खाया..
मनोज चेतन की किस्मत से जल रहा था क्यूंकी साले के पास दो दो इतनी पटाखेदार बहन थी और
दोनो एक दूसरे से काफ़ी अलग थी जिसका और भी मज़ा था.... मनोज को समझ आ गया था कि
वो सस्ती सफेद वाली ब्रा ललिता की होगी क्यूंकी उसके मम्मे मोटे थे... और अब उसका ध्यान सिर्फ़ मूठ
मारने में लगा हुआ था.... उसका मन तो था कि कोई भी ब्रा/पैंटी को लेजा सके मगर उसमें काफ़ी ख़तरा था
तो वो टाय्लेट चला गया कि इन दोनो बहनो के बदन को याद करके ही खुश हो जाएगा...
टाय्लेट में जाकर ही उसने अपनी जीन्स का बटन खोला और उसको कछे के समेत उतार के टाँग दिया...
उसका लंड हल्का सा लगा हुआ था और वो उसको हिलाने लगा और फिर उसकी नज़र सामने सफेद रंग की
वॉशिंग मशीन पे पड़ी... मनोज को ऐसा लगा कि वो सातवे आसान पे पहुच गया...
उसने बड़ी साव धानी से मशीन का ढक्कन खोला और उसमें सिर्फ़ 2 जोड़ी ही कपड़े थे एक तो वो खाकी शॉर्ट्स और
एक वो टी-शर्ट जो कल डॉली ने पहेन रखी थे... जब उनको अलग किया तो मनोज की आँखें बड़ी हो गई क्यूंकी
उसके सामने एक गुलाबी रंग की पैंटी थी... उसने पैंटी को उठाके देखा तो उसपे लिट्ल मर्मेड बनी हुई थी और
उसके साइज़ से पता चल गया था कि ये डॉली की ही है.... अफ़सोस की बात ये थी उसका टॅग फटा हुआ था
मगर खुशी के ये बात थी कि वो कपड़े अभी ही मशीन में डाले थे...
मनोज ने सीधे हाथ से अपने लंड को थामा और उल्टे से डॉली की पैंटी को अपनी नाक की तरफ ले गया..
डॉली की चूत की सौंधी सौंधी खुश्बू आ रही थी उस पैंटी में.... मनोज ने अपनी आँखें बंद करली और
उसे सूंगता सूंगता अपनी मूठ मारने लगा... जब वो खुश्बू उसके नाक में फेल गयी तो उसने उसको अपने लंडपर लपेटा
और उसको हिलाने लग गया... डॉली के बदन को सोचते हुए उसका वीर्य बस निकलने ही वाला था...
उसने पैंटी को मशीन पे रखा और ठीक उसकी जगह अपना वीर्य छोड़ दिया जहाँ डॉली की चूत की महक सबसे ज़्यादा थी...
तकरीबन 5 सेकेंड मनोज वहीं खड़ा रहा उसके चेहरे पे खुशी थी जैसे उसने कोई मेडल जीत लिया हो...
फिर उसने उस पैंटी को उस शॉर्ट से मिला दिया ताकि वो वीर्य फेल जाए और किसिको पता ना चले... हाथ धोने के बाद वो वहाँ से निकल गया... फिर कल सुबह डॉली की आँख खुली और वो जल्दी जल्दी तैयार होकर कॉलेज के लिए निकली...
उसने नीले रंग का टॉप और हल्के नीले रंग की जीन्स पहेन रखी थी.... वो जब कॉलेज पहुचि तो वहाँ कोई भी नहीं था...
सारी क्लासस खाली थी... उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज क्या है कोई भी कॉलेज में नहीं दिख रहा था...
फिर वो अपनी क्लास की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाज़ा बंद पड़ा हुआ था.. कुच्छ और ना सूझने पर उसने दरवाजे से झाँक कर देखा कि टेबल पर कोई लेटी है... उसके आस पास करीबन 10 और लोग खड़े थे और उसने दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी और दरवाज़ा खुल गया... कमरे के अंदर जैसे ही उसने कदम बढ़ाया और
उल्टे हाथ पे देख कर ही वो चौक गयी... कमरे के बिल्कुल बीच में टीचर की बड़ी टेबल लगी हुई थी
और वहाँ नेहा नंगी वो सारे उसी के क्लास के लड़के थे और वो भी सारे नंगे खड़े हुए थे... 2-3 लड़के नेहा के मुँह के
पास खड़े थे अपना लंड पकड़े हुए 3 लड़के उसके संतरे जैसे मम्मो को चूस रहे थे कुच्छ उसकी
टाँगो की तरफ थे और एक लड़के ने उसकी टाँगें अपने कंधे पे टिका रखी थी और अपना लंड
नेहा की चूत में डाल रखा था... वो बंदा उसको घोड़े की तरह चोद रहा था और नेहा
चिल्ला भी नही पा रही थी क्यूंकी उसके मुँह में भी लंड था.... पूरे कमरे में एक अजीब सी बू आ रही थी....
डॉली बिना पालक झप काए वहीं पर खड़ी रह गयी उसको समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा था और वो क्या करें....
जब उसके मुँह से लोड्ा निकाला 3 सेकेंड के लिए तब वो चिल्लाने लग गयी "और ज़ोर से चोद मुझे और ज़ोर से"
फिर फिरसे उसका मुँह किसी और लंड ने भर दिया... डॉली से ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वहाँ से
जाने लगी तभी उसका जिस्म राज के बदन से टकराया और वो राज को देख कर घबरा गयी...
डॉली के कंधे से उसका पर्स गिरा जिससे काफ़ी आवाज़ आई और उन्न सारे लड़को का ध्यान डॉली के उपर गया...
कुच्छ उनमें से नेहा को छोड़के भागकर आए और उसको हवा में उठाकर पागलो की तरह शोर मचाकर
नेहा की साथ वाली टेबल पे रख दिया.... राज को देख कर डॉली ने उससे थप्पड़ मारने के लिए माफी माँगने लगी...
राज ने उसकी एक ना सुनी और उसके एक इशारे से उन लड़को ने डॉली के कपड़े फाड़ दिए...
डॉली सिर्फ़ अपनी सफेद रंग की ब्रा और पैंटी में उसे टेबल पे थी उसने अपने हाथो से अपने मम्मो
और चूत को ढकने की कोशिश की मगर उन्न लड़को ने उसके हाथ और टाँगें फेला दिए...
राज ने बड़े आराम से डॉली की ब्रा को उतार फेका और उसकी पैंटी को भी उतारके अपने सिर पे टोपी की तरह पहेन लिया....
सारे लड़के उसपर कुत्ते की झपते... कोई उसके बदन को चूस रहा था तो कोई चाट रहा था और कोई काट रहा था..
दर्द के मारे डॉली चिल्लाने लगी तो राज ने उसके होंठो को अपने होंठो से मिला दिया और उसको ज़ोर से चुम्मा दे दिया....
फिर उन सब लड़को ने डॉली और नेहा को छोड़ दिया... 2 सेकेंड के लिए डॉली को राहत मिली मगर अचानक
से नेहा टेबल से उठी और उल्टी होके डॉली के उपर लेट गयी... अपनी छोटी सी ज़ुबान से नेहा डॉली की चूत को चाटने लगी...
डॉली उसको हटाने को कोशिश कर रही थी मगर वो नाकामयाब रही... नेहा की चूत भी डॉली के मुँह के पास थी
मगर उसने अपना मुँह बंद रखा था... राज ने डॉली के बाल तेज़ी से खीचे और दर्द के कारण उसका मुँह खुल गया
और नेहा ने अपनी चूत उसके मुँह में डाल दी.. नमकीन स्वाद डॉली के मुँह में भर गया था....
जब नेहा को फिर से लंड की प्यास लगी तो उसने डॉली को छोड़ दिया और बाकिओ से चुद्वाने लगी...
राज ने डॉली को टेबल से हटाया और खुद उसपे लेट गया... बाकी लड़को ने डॉली की गान्ड को राज के लंड पे रख दिया...
डॉली ने आज तक अपनी गान्ड नहीं मरवाई थी और राज का कब्से मन था डॉली की गान्ड मारने का...
राज ने डॉली की कमर को पकड़ा और उसको उपर नीचे करने लगा... बाकी लड़को से इंतजार नहीं हुआ तो बारी
बारी वो डॉली की टाइट चूत को चोद्ने लगे... डॉली दर्द के मारे चिल्ला रही थी तो नेहा जोकि उसके
साथ ही चुद रही थी उसने डॉली के होंठो को अपने होंठो से बंद दिया.. बारी बारी सबने डॉली और नेहा को चोदा और
अपना वीर्य उनके चेहरे पर डाल दिया...
डॉली चौक के उठी... क्या वो सपना देख रही थी?? ये सवाल उसके ज़हेन में आया...
उसने आस पास देखा तो कमरे में अंधेरा था... उसने पास ही पड़े अपने मोबाइल पे टाइम देखा तो सुबह के
4:30 बज रहे थे... जब डॉली ने अपनी टांगे हिलाई तो उसको उसकी अपनी गीली चूत महसूस हुई...
उसे अपने से घिन आने लगी कि ऐसे सपने से भी उसे मज़े आने लगा... क्या मैं इतनी गिरी हुई लड़की हूँ??
ये सवाल डॉली ने अपने आप से पूछा.... वो उठकर टाय्लेट गयी अपनी चूत को टिश्यू पेपर से सॉफ किया और कुच्छ देर बाद फिर से सो गयी....
क्रमशः……………………….
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
जिस्म की प्यास--4
गतान्क से आगे……………………………………
सुबह जब उसकी आँख तो 11 बज रहे थे... इतने सालो के बाद डॉली इतनी देर तक सोई होगी...
डॉली के ज़हेन मे फिर से वो सपना आया और वो घबरा गयी क्यूंकी उसको लगता था कि हर सपने का कोई ना कोई मतलब होता है मगर इसका क्या मतलब हो सकता है... यह सोच कर वो अपने कमरे के बाहर गयी तो घर पूरा शांत था और शन्नो का कोई अता पता नहीं था... डॉली वापस अपने कमरे में गयी और उसने अपनी मम्मी
को फोन लगाके पूछा तो शन्नो ने बताया कि वो बुआ के घर गयी है और दोपेहर तक आ जाएगी....
डॉली फिर टाय्लेट चली गयी और अपने ट्राउज़र और पैंटी को उतार कर पिशाब करने लग गयी
सिर्र सिर्र करके के आवाज़ फैल गयी पूरे टाय्लेट में डॉली ने अपनी नज़र अपनी पैंटी पे डाली जिसपे अभी भी उस सपने
की वजह से धब्बा पड़ा हुआ था... उसने अपना हाथ अपने टॉप के उपर ही फेरा तो उसे अपने सख़्त चुचियाँ महसूस हुई...
उसने फिर अपना हाथ धीरे से अपने टॉप के अंदर डाला और अपने स्तनो तक ले गयी..
उसके चुचियाँ वाकई में काफ़ी सख़्त थी उस समय.. उसका एक नाख़ून उनपे पड़ा तो डॉली को करेंट लग गया....
उसने अपना उल्टा हाथ अभी भी टॉप से निकाला नहीं था और वो ऐसी ही अपने टाय्लेट के बाहर निकली...
फिर वो अपने बिस्तर पे बैठी तो उसने शीशे मे देखा कि उसकी चुचियाँ कैसे उसके टॉप से भी नज़र आ रही थी..
अपने टॉप के उपर से वो अपनी उंगलिया उनपे चलाने लग गयी... वो बहुत गरम हो गयी थी और उसने अपना टॉप उतार
के रख दिया और अपने आपको शीशे में निहारने लग गयी... अपने पेट से ले जाकर अपना हाथ अपना मम्मो पे रख दिया..
फिर उन्हे ढक दिया और गोल गोल घुमाने लग गयी... डॉली के चेहरे से ही पता चल रहा था कि वो कितनी खुश थी...
काई महीने पहले राज से वो चुदि थी और उसके बाद वो चाहती अपनी चूत चुद्वाना मगर उस दिन
वो चाहत पूरी नहीं हो पाई... आज वो घर पर अकेली थी तो उसने सोचा कि वो अपनी चूत की
चाहत पूरी करने की कोशिश करेगी... डॉली बिस्तर से उठी और अपने ट्राउज़र को अपनी सफेद पैंटी समैत उतार दिया...
उसका जिस्म किसी भी आदमी को उसका दीवाना बना सकता था... उसने अपनी कबॉर्ड में से एक तेल का डिब्बा निकाला और
थोड़ा सा अपने हाथ पे डालकर अपने मम्मो पे मल दिया... और फिर थोड़ा सा अपनी चूत पर...
शीशे के सामने खड़ी वो अपने जिस्म से खेलने लगी... अपनी आँखें खुली रख कर वो देखने लगी कि कहाँ कहाँ
उसके हाथ उसके जिस्म से खेल रहे है... फिर वो बिस्तर पे लेट गयी और उसका याद आया कि वो सपने में भी
ऐसे ही टेबल पे लेटी पड़ी थी जब उसके बदन को सब नौच रहे थे... उसने धीरे से अपने सीधे हाथ की एक उंगली
अपनी चूत में डाली.. एक हल्की आह निकली उसके मुँह से... उस एक उंगली से वो अपने चूत को चोद ने लग गयी...
देखते ही देखते उसने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल दी... उसका उल्टा हाथ भी स्तनो से खेल रहा था...
उसका बदन अपन पसीने और तेल में लत्पथ पढ़ा था... उसने साइड टेबल पर रेनोल्ड्स
का 5 रुपये का पेन पड़ा देखा तो उसको ही उठा लिया और अपनी चूत के अंदर बाहर करने लग गयी....
अंदर बाहर करते करते वो पेन पूरा अंदर ही जाने वाला था ... मगर वो पतला सा पेन कुच्छ कमाल नहीं कर रहा था...
हवस में डूबी हुई वो अपने बिस्तर से उठी और कुच्छ ढूँडने लगी जिससे वो अपनी चूत चोद सके...
उसकी नज़र वहाँ पड़े हुए काले हेर ड्राइयर पे पढ़ी... उसने कुच्छ नहीं सोचा और उसको उठाते हुए बिस्तर
पे बैठ गयी अपनी टाँगें चौड़ी करते हुए... हेर ड्राइयर के पकड़ने वाला पार्ट काफ़ी बड़ा था ये सोचके डॉली ने
उसको अपनी चूत में डालना ठीक समझा... आहिस्ते आहिस्ते वो अपनी चूत में ड्राइयर को डालने लगी...
थोड़ी अंदर जैसे ही गया तो ग़लती से ड्राइयर ऑन हो गया और उसकी (वाइब्रट)हिलने लगा...
डॉली ने डर के मारे उसे निकाल दिया मगर हिलाने के बाद उसे एहसास हुआ कि उसकी चूत को कितना मज़ा आया उसे...
घबराई हुई मगर हवस में डूबी हुई डॉली ने फिर ड्राइयर को अंदर डाला और इस बार जानके उसको ऑन कर दिया...
ड्राइयर हिलने लग और डॉली ना चाहते हुए भी आवाज़ें निकालने लग गयी.... उसको ऐसा लगने लगा कि वो
10 लड़के और ख़ासतौर से राज उसकी चूत को चोद रहा है... उस दर्द में जो खुशी उसको जिस्म को मिल रही थी वो अनमोल थी...
थोड़ी और अंदर डालकर वो पूरी तरह मज़े में डूब गयी थी... वो अपने उंगलिओ से चुचियो को नौचने लगी...
तभी उसका मोबाइल बजने लगा... डॉली ने उसपे ध्यान नही दिया.. मगर फिर 2 मिनट बाद वो फिर से बजने लगा...
उसने नाम पढ़ा तो मम्मी लिखा हुआ था...
ना चाहते हुए उसने फोन उठाया तो शन्नो ने पूछा "ये इतना शोर क्यूँ मच रहा है??"
डॉली बिल्कुल भी बात करने के मूड में नही उसने बोला "वो बाल सूखा रही थी ड्राइयर से"
शन्नो बोली "अच्च्छा सुन चेतन ने गॅस बुक करवा दिया कि नहीं??"
डॉली चिढ़ के बोली "अर्रे मुझे क्या पता... "
शन्नो बोली "अर्रे ऐसी आवाज़ में क्यूँ बोल रही है.. पूछ लो उससे अभी और गॅस बुक करो अगर नहीं करा हो..
और मुझे थोड़ी देर हो जाएगी तो खाना खा लेना दोनो"
डॉली ने जल्दी से ड्राइयर अपनी चूत से निकाला और वो बुर्री तरह घबरा गयी थी.. कहीं उसका भाई घर पर तो नहीं है ना??
उसके कमरे का दरवाज़ा भी बंद हुआ था सुबह तो क्या पता वो हो"
गतान्क से आगे……………………………………
सुबह जब उसकी आँख तो 11 बज रहे थे... इतने सालो के बाद डॉली इतनी देर तक सोई होगी...
डॉली के ज़हेन मे फिर से वो सपना आया और वो घबरा गयी क्यूंकी उसको लगता था कि हर सपने का कोई ना कोई मतलब होता है मगर इसका क्या मतलब हो सकता है... यह सोच कर वो अपने कमरे के बाहर गयी तो घर पूरा शांत था और शन्नो का कोई अता पता नहीं था... डॉली वापस अपने कमरे में गयी और उसने अपनी मम्मी
को फोन लगाके पूछा तो शन्नो ने बताया कि वो बुआ के घर गयी है और दोपेहर तक आ जाएगी....
डॉली फिर टाय्लेट चली गयी और अपने ट्राउज़र और पैंटी को उतार कर पिशाब करने लग गयी
सिर्र सिर्र करके के आवाज़ फैल गयी पूरे टाय्लेट में डॉली ने अपनी नज़र अपनी पैंटी पे डाली जिसपे अभी भी उस सपने
की वजह से धब्बा पड़ा हुआ था... उसने अपना हाथ अपने टॉप के उपर ही फेरा तो उसे अपने सख़्त चुचियाँ महसूस हुई...
उसने फिर अपना हाथ धीरे से अपने टॉप के अंदर डाला और अपने स्तनो तक ले गयी..
उसके चुचियाँ वाकई में काफ़ी सख़्त थी उस समय.. उसका एक नाख़ून उनपे पड़ा तो डॉली को करेंट लग गया....
उसने अपना उल्टा हाथ अभी भी टॉप से निकाला नहीं था और वो ऐसी ही अपने टाय्लेट के बाहर निकली...
फिर वो अपने बिस्तर पे बैठी तो उसने शीशे मे देखा कि उसकी चुचियाँ कैसे उसके टॉप से भी नज़र आ रही थी..
अपने टॉप के उपर से वो अपनी उंगलिया उनपे चलाने लग गयी... वो बहुत गरम हो गयी थी और उसने अपना टॉप उतार
के रख दिया और अपने आपको शीशे में निहारने लग गयी... अपने पेट से ले जाकर अपना हाथ अपना मम्मो पे रख दिया..
फिर उन्हे ढक दिया और गोल गोल घुमाने लग गयी... डॉली के चेहरे से ही पता चल रहा था कि वो कितनी खुश थी...
काई महीने पहले राज से वो चुदि थी और उसके बाद वो चाहती अपनी चूत चुद्वाना मगर उस दिन
वो चाहत पूरी नहीं हो पाई... आज वो घर पर अकेली थी तो उसने सोचा कि वो अपनी चूत की
चाहत पूरी करने की कोशिश करेगी... डॉली बिस्तर से उठी और अपने ट्राउज़र को अपनी सफेद पैंटी समैत उतार दिया...
उसका जिस्म किसी भी आदमी को उसका दीवाना बना सकता था... उसने अपनी कबॉर्ड में से एक तेल का डिब्बा निकाला और
थोड़ा सा अपने हाथ पे डालकर अपने मम्मो पे मल दिया... और फिर थोड़ा सा अपनी चूत पर...
शीशे के सामने खड़ी वो अपने जिस्म से खेलने लगी... अपनी आँखें खुली रख कर वो देखने लगी कि कहाँ कहाँ
उसके हाथ उसके जिस्म से खेल रहे है... फिर वो बिस्तर पे लेट गयी और उसका याद आया कि वो सपने में भी
ऐसे ही टेबल पे लेटी पड़ी थी जब उसके बदन को सब नौच रहे थे... उसने धीरे से अपने सीधे हाथ की एक उंगली
अपनी चूत में डाली.. एक हल्की आह निकली उसके मुँह से... उस एक उंगली से वो अपने चूत को चोद ने लग गयी...
देखते ही देखते उसने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल दी... उसका उल्टा हाथ भी स्तनो से खेल रहा था...
उसका बदन अपन पसीने और तेल में लत्पथ पढ़ा था... उसने साइड टेबल पर रेनोल्ड्स
का 5 रुपये का पेन पड़ा देखा तो उसको ही उठा लिया और अपनी चूत के अंदर बाहर करने लग गयी....
अंदर बाहर करते करते वो पेन पूरा अंदर ही जाने वाला था ... मगर वो पतला सा पेन कुच्छ कमाल नहीं कर रहा था...
हवस में डूबी हुई वो अपने बिस्तर से उठी और कुच्छ ढूँडने लगी जिससे वो अपनी चूत चोद सके...
उसकी नज़र वहाँ पड़े हुए काले हेर ड्राइयर पे पढ़ी... उसने कुच्छ नहीं सोचा और उसको उठाते हुए बिस्तर
पे बैठ गयी अपनी टाँगें चौड़ी करते हुए... हेर ड्राइयर के पकड़ने वाला पार्ट काफ़ी बड़ा था ये सोचके डॉली ने
उसको अपनी चूत में डालना ठीक समझा... आहिस्ते आहिस्ते वो अपनी चूत में ड्राइयर को डालने लगी...
थोड़ी अंदर जैसे ही गया तो ग़लती से ड्राइयर ऑन हो गया और उसकी (वाइब्रट)हिलने लगा...
डॉली ने डर के मारे उसे निकाल दिया मगर हिलाने के बाद उसे एहसास हुआ कि उसकी चूत को कितना मज़ा आया उसे...
घबराई हुई मगर हवस में डूबी हुई डॉली ने फिर ड्राइयर को अंदर डाला और इस बार जानके उसको ऑन कर दिया...
ड्राइयर हिलने लग और डॉली ना चाहते हुए भी आवाज़ें निकालने लग गयी.... उसको ऐसा लगने लगा कि वो
10 लड़के और ख़ासतौर से राज उसकी चूत को चोद रहा है... उस दर्द में जो खुशी उसको जिस्म को मिल रही थी वो अनमोल थी...
थोड़ी और अंदर डालकर वो पूरी तरह मज़े में डूब गयी थी... वो अपने उंगलिओ से चुचियो को नौचने लगी...
तभी उसका मोबाइल बजने लगा... डॉली ने उसपे ध्यान नही दिया.. मगर फिर 2 मिनट बाद वो फिर से बजने लगा...
उसने नाम पढ़ा तो मम्मी लिखा हुआ था...
ना चाहते हुए उसने फोन उठाया तो शन्नो ने पूछा "ये इतना शोर क्यूँ मच रहा है??"
डॉली बिल्कुल भी बात करने के मूड में नही उसने बोला "वो बाल सूखा रही थी ड्राइयर से"
शन्नो बोली "अच्च्छा सुन चेतन ने गॅस बुक करवा दिया कि नहीं??"
डॉली चिढ़ के बोली "अर्रे मुझे क्या पता... "
शन्नो बोली "अर्रे ऐसी आवाज़ में क्यूँ बोल रही है.. पूछ लो उससे अभी और गॅस बुक करो अगर नहीं करा हो..
और मुझे थोड़ी देर हो जाएगी तो खाना खा लेना दोनो"
डॉली ने जल्दी से ड्राइयर अपनी चूत से निकाला और वो बुर्री तरह घबरा गयी थी.. कहीं उसका भाई घर पर तो नहीं है ना??
उसके कमरे का दरवाज़ा भी बंद हुआ था सुबह तो क्या पता वो हो"
Re: जिस्म की प्यास
डॉली जल्दी से टाय्लेट गयी अपनी चूत को पौछा और अपने कपड़े पहेन लिए....
कमरे को ठीक करने के बाद वो बाहर निकली और अपने भाई के कमरे के पास गयी तो अभी दरवाज़ा बंद था...
घबराकर उसने दरवाज़ा खोला तो चेतन बिस्तर पे सोया पड़ा था.. डॉली को कुच्छ राहत मिली...
आज वो पक्का मर जाती अगर उसके भाई ने उसको देख लिया होता... उसने अपने आपको दो-तीन गलिया दी ऐसी हरकते करने के लिए....
जब दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई तो चेतन ने धीरे धीरे अपने चेहरे से चद्दर हटाई और
दरवाज़े की ओर देखा... उसकी बहन चली गयी थी ये देख कर उसके दिल जोकि पिच्छले 45 मिनट से पागलो की तरह
धड़क रहा था थोड़ा शांत होने लगा था... मगर चेतन का लंड अभी भी सख़्त हुआ पड़ा था और
इतना सख़्त वो पहली बार ही हुआ था... उसकी शॉर्ट्स को टेंट बनाके तनतनाया हुआ था उसका लंड...
वो कुच्छ भी करके मूठ मारना चाहता था... वो आराम से बिस्तर से उठा और दबे पाओ टाय्लेट में चले गया..
उसने झट से अपने कपड़े उतारे और टाय्लेट की सीट पे बैठ गया... अपने लंड पे हाथ रखा और आँखें बंद
करके उन 30 मिनट के बारे में सोचने लग गया जो कि उसने अपनी आखों से देखे थे... अपनी बहन को वो
आधे घंटे जो शायद कोई भाई ही देख पाता हो और वो आधे घंटा जिसको शायद ही कोई भाई भुला सकता हो...
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी प्यारी बड़ी बहन ऐसी हरकते कर सकती है.. जिस तरह डॉली के चेहरे पे
दर्द/खुशी बदन में मदहोशी छाई हुई थी वो याद करके चेतन अपने लंड को हिलाने लगा...
डॉली की चूत जोकि गीली हुई थी उस काले ड्राइयर की वजह से उसको वो चाटना चाहता था... वो चुचियाँ जोकि
बड़ी और सख़्त हुई थी उसको वो ऑरेंज बार की तरह चूसना चाहता था...
"क्या दीदी पहले भी लड़को से चुद्वा चुकी है" ये सवाल चेतन के दिमाग़ में चल रहा था...
वो अपनी दीदी के नंगे बदन को पूरा याद करता और फिर उसके बदन मे टाँगों के बीच अजीब सा दर्द जागा जोकि उपर
उठा और उसके लंड में से सफेद रंग वीर्य निकलने लगा... इससे पहले कभी भी चेतन के वीर्य नहीं निकला था
और उसको लगता था कि सिर्फ़ चुदाई के बाद ही ऐसा हो सकता है मगर उसके दीदी के नंगे बदन को देखते ही उसकी ऐसी हालत हो गयी थी...
फिर उसने बड़ी सावधानी से उसे सॉफ किया और जाके अपने बिस्तर पे लेट गया....
उधर दूसरी ओर स्कूल ख़तम हो चुका था.... नारायण को देखकर एक टीचर ने उसे कहा कि आपको
प्रिनिसिपल साब ने बुलाया है जल्दी जाइए. प्रिन्सिपल ने नारायण को देख कर उसको अंदर बुला लिया.
नारायण ने मुस्कुराते हुआ पूछा क्या हुआ "सर अचानक बुला लिया".
प्रिन्सिपल ने कहा " नारायण मैं तुम्हे जो भी बोलूँगा उसे ध्यान से सुनना और सोच समझ के मुझे बताना".
नारायण थोड़ा घबरा गया मगर उसने मुस्कुराते हुए कहा "जी ज़रूर सर... आप बोलिए.."
प्रिनिसिपल ने कहा "तुम जानते हो हमारा स्कूल सबसे पहले भोपाल में खुला था और फिर आगे जाके दिल्ली में भी खुला.
कुच्छ दिन पहले भोपाल में जो स्कूल के प्रिन्सिपल थे उनकी डेत हो गयी थी तो स्कूल
को चलाने के लिए वाइस प्रिनिसिपल को प्रिनिसिपल बना दिया था. ( नारायण चुपचाप पूरी बात सुन रहा था).
अब ऐसा हुआ है कि जो अब प्रिन्सिपल बना है वो भी वो पोस्ट संभाल नही पा रहा है और वो रिज़ाइन करना चाहता है.
अब स्कूल के पास कोई और ऑप्षन नहीं बचा है उस स्कूल को चलाने के लिए और वो हम से मदद माँग रहे है.
तो नारायण मैं चाहता हूँ कि तुम वहाँ के प्रिन्सिपल बन जाओ क्यूंकी तुममे वो सारी क्वालिटीस है
जो अच्छे प्रिन्सिपल की होती है.
" नारायण ने बोला "सर धन्येवाद आपने मुझे इस काबिल समझा मगर मैं..
प्रिन्सिपल ने टोकते हुए कहा देखो नारायण मना मत करना..
तुम्हारा हमारे स्कूल पे बहुत बड़ा एहसान रहेगा.
नारायण ने कहा "लेकिन सर मेरे बीवी बच्चे है उनका भी स्कूल कॉलेज है यहाँ उनका क्या होगा."
प्रिन्सिपल साहब बोले "देखो नारायण तुम्हारा बेटा भोपाल वाले स्कूल में ही पढ़ लेगा और रही बात
तुम्हारी बेटिओ की तो वो अपना कॉलेज यहाँ ख़तम करके तुम्हारे पास आ सकती है. देखो तुम्हारी सॅलरी
बहुत बढ़ जाएगी प्लस रुतबा रहने के लिए घर मिलेगा गाड़ी ड्राइवर और भी इन्सेंटीव्स."
नारायण कुच्छ देर के शांत होके बोला "सर मैं सुबह बताउन्गा मुझे अपने बीवी बच्चो की भी राई लेनी पड़ेगी."
उधर घर में अभी भी चेतन और डॉली की हिम्मत नहीं हो रही थी एक दूसरे को देखने की...
डॉली को यकीन था कि उसके छोटे भाई ने उसको नंगा अपनी चूत से खेलते हुए नहीं देखा था तब भी
उसे एक अजीब सी बेचैनी हो रही है... खैर चेतन हिम्मत करते हुए अपने कमरे से बाहर निकला और
सीधा अपनी बहन डॉली के कमरे में गया... दरवाज़ा खुला हुआ था दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा
फिर चेतन बोला "दीदी खाना खाएँ??"
डॉली ने भी उसके प्रश्न का जवाब सिर्फ़ हां में दिया और किचन में खाना गरम करने चली गयी...
मगर फिर दोनो साथ में टीवी देखने लगे और सब पहले जैसा ही होने लगा...
नारायण ललिता और डॉली को लेके घर आ गया और सबको बिठा के वो सारी बात बताने लग गया
जो प्रिन्सिपल सर ने उसे कही थी... शन्नो सुनके बोली "अगर तुम्हे इतनी सारी चीज़े मिल रही है तो तुम्हे
मेरे ससुराल जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी (एंपी में शन्नो का परिवार था).
चेतन ने बोला "पापा मुझे भी दिल्ली में नहीं रहना, मैं वहाँ पढ़ लूँगा."
डॉली ने कहा "मेरा भी मन ऊब गया है यहाँ से...... मेरा कॉलेज ख़तम ही होने वाला है अगले
हफ्ते उसके बाद एग्ज़ॅम्स होंगे तो मैं एग्ज़ॅम्स देने यहा आ जाउन्गि." ललिता भी चाहती थी जहाँ
उसके मम्मी पापा को अच्छा लगेगा वहाँ वो रह लेगी. शन्नो ने कहा देखो एक काम करते है हम
"तुम 10 दिन का टाइम माँगो
और उसके बाद तुम और डॉली वहाँ चले जाओ. तुम अपना काम करना और डॉली वहाँ एग्ज़ॅम की तैयारी
शांति से करलेगी. यहाँ मैं और बच्चे रहते है 3 महीनो में ललिता की क्लासस और चेतन का स्कूल ख़तम
हो जाएगा उसके बाद हम भी वहाँ आजाएँगे सब कुच्छ बेचके. चेतन वहीं पढ़ लेगा और ललिता भी वहीं से कहीं
अपनी पढ़ाई आगे कर लेगी" सब लोगो ने इस प्लान को ठीक समझा.
पूरी शाम इन्ही बातो में निकल गयी. रात को नारायण ने शन्नो के करीब आने की कोशिश मगर शन्नो ने
सॉफ इनकार कर दिया. उधर चेतन की हालत फिर से खराब हो रही थी... उसके दिमाग़ में से डॉली की
नंगी तस्वीर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी... वो भी डॉली के बारे में सोचता तो उसका लंड खड़ा होजाता...
उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस बीमारी का इलाज वो कैसे करें क्यूंकी वो अपनी बहन के साथ कुच्छ करने
के बारे में सोच भी नहीं सकता था और उसको बैचेनी इस बात की भी हो रही थी कि डॉली कुच्छ ही दिनो में
उससे दूर हो जाएगी और फिर उसकी ज़िंदगी कैसे कटेगी??
जो हालत चेतन की थी वोही हालत ललिता की भी थी.. उसकी सारी सहेलिया किसी ना किसी से चुद चुकी थी और
यह बातें वो हर रोज़ सुनती थी... वो अपनी सहेलिओ में से सबसे ज़्यादा हसीन थी और उसके पीछे भी लड़के
थे मगर वो चाहती कोई बंदा उसका फ़ायदा ना उठाए....
अगली सुबह नारायण ने प्रिन्सिपल को सारी बात बता दी और उन्होने खुशी खुशी रज़ामंदी देदि.
नारायण को खुशी थी कि उसके परिवार ने इस ऑफर को इनकार नहीं किया क्यूंकी इसमें बहुत बड़ी पोज़िशन और पैसा था....
मगर उसे एक बात का गम था कि वो अब दिल्ली की लड़कियों को से दूर हो जाएगा....
उसको दिल्ली की लड़किया बेहद पसंद थी क्यूंकी जितनी भी बनने की कोशिश करती थी कि वो बहादुर है अपना ख़याल
वो खुद रख सकती है उतनी ही नादान हरकते कर बैठती थी..... उसे भोपाल गये काफ़ी समय हो गया था
मगर उसे यकीन था कि भोपाल की लड़किया पहले जैसी निहायती शरीफ होंगी जोकि 24 घंटे कपड़ो में धकि रहती होंगी...
उसे घबराहट तो इस बात की भी थी कि कहीं उसके स्कूल में लड़कियों को स्कर्ट की जगह सलवार कुर्ता ना पहनाया जाता हो...
उधर घर में सब कुच्छ आराम से बीत रहा था... डॉली तो उस बात को भूल भी गयी थी कि ऐसा कुच्छ उसने किया था....
आज वो खुश थी क्यूंकी उसकी सहेली प्रिया का जनमदिन था और उसको उसकी पार्टी में जाना था...
प्रिया ने राज को पार्टी में नहीं बुलाया था ये जानके डॉली को अच्छा लगा....पूरे दिन भर वो सब कुच्छ प्लान
करती रही और सोचती रही कि वो क्या पहनेगी... जहाँ प्रिया उस बात को भूल गयी थी उधर चेतन के
दिमाग़ में यही घूम रहा था... आज उसने एक ऐसी ग़लती कर दी थी जिसको करके वो खुश नहीं था...
उसने स्कूल के टाय्लेट में जाके लिख दिया कि "कल मैने अपनी बहन को अपनी चूत से खेलते हुए देख मूठ मारा"
ये लिखने के बाद डॉली को सोचके उसने कुच्छ 7-8 मिनट के लिए मूठ मारा.....
वो चाहता था कि एक बारी फिरसे वो डॉली को नंगा देख सके...
आज फिर से नारायण ललिता को लिए बगैर घर आ गया और आज सच्ची में ललिता की एक्सट्रा क्लासस थी...
क्लासस ख़तम करने के बाद उसकी सहेली रिचा को अपने मा-बाप के साथ मॉल जाना था तो ललिता को आज
अपने आप ही घर पहुचना था... उसने ऑटो में जाना ठीक समझा मगर हमेशा की तरह उसे ऑटो खाली नहीं मिला...
अंधेरा फिर से छाने लगा था आसमान पर और वो फिर रिक्शा वालो से पुच्छने लगी...
एक दो के मना करने के बाद उसे वोई रिक्शा वाला मिला और उसने तुर्रंत ही ललिता को पहचान लिया था
मगर उसने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया... ललिता के बड़े मोटे मम्मो को 2 सेकेंड के घूर्ने के बाद उसने पुछा "कहाँ जाना है"
ललिता ने बोला "आप पिच्छली बार लेके गये थे ना आनंद विहार की तरह तो वहीं जाना है"
रिक्शा वाला अंजान बनके बोला "आनंद विहार में कहाँ"
ललिता को लगा शायद इसको याद नहीं होगा बस उसको पूरा याद था कि इसने पिच्छली बारी भी उसने यहीं गंदे कपड़े पहेन रखे थे...
ललिता बोली "आनंद विहार के आगे में आपको रास्ता बता दूँगी"
ललिता ने रिक्शा का हॅंडल पकड़ा और अपनी एक टाँग रिक्शा पे रखके थोड़ा अंदर घुसी तो उसकी सफेद कॅप्री
थोड़ी नीचे हो गयी और पर्पल टॅंक टॉप उपर उठ गया... ललिता की पीठ के दर्शन को देख कर उस रिक्शा वाले
की आँखें बड़ी हो गयी.... वो अपने लंड को छूता हुआ रिक्शा पे बैठ गया... उस रिक्शा वाले ने एक गंदी
सी हल्के नीले रंग की लूँगी पहेन रखी थी जोकि उसके घुटने तक थी और उपर एक हरी बनियान...
क्रमशः……………………….
कमरे को ठीक करने के बाद वो बाहर निकली और अपने भाई के कमरे के पास गयी तो अभी दरवाज़ा बंद था...
घबराकर उसने दरवाज़ा खोला तो चेतन बिस्तर पे सोया पड़ा था.. डॉली को कुच्छ राहत मिली...
आज वो पक्का मर जाती अगर उसके भाई ने उसको देख लिया होता... उसने अपने आपको दो-तीन गलिया दी ऐसी हरकते करने के लिए....
जब दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई तो चेतन ने धीरे धीरे अपने चेहरे से चद्दर हटाई और
दरवाज़े की ओर देखा... उसकी बहन चली गयी थी ये देख कर उसके दिल जोकि पिच्छले 45 मिनट से पागलो की तरह
धड़क रहा था थोड़ा शांत होने लगा था... मगर चेतन का लंड अभी भी सख़्त हुआ पड़ा था और
इतना सख़्त वो पहली बार ही हुआ था... उसकी शॉर्ट्स को टेंट बनाके तनतनाया हुआ था उसका लंड...
वो कुच्छ भी करके मूठ मारना चाहता था... वो आराम से बिस्तर से उठा और दबे पाओ टाय्लेट में चले गया..
उसने झट से अपने कपड़े उतारे और टाय्लेट की सीट पे बैठ गया... अपने लंड पे हाथ रखा और आँखें बंद
करके उन 30 मिनट के बारे में सोचने लग गया जो कि उसने अपनी आखों से देखे थे... अपनी बहन को वो
आधे घंटे जो शायद कोई भाई ही देख पाता हो और वो आधे घंटा जिसको शायद ही कोई भाई भुला सकता हो...
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी प्यारी बड़ी बहन ऐसी हरकते कर सकती है.. जिस तरह डॉली के चेहरे पे
दर्द/खुशी बदन में मदहोशी छाई हुई थी वो याद करके चेतन अपने लंड को हिलाने लगा...
डॉली की चूत जोकि गीली हुई थी उस काले ड्राइयर की वजह से उसको वो चाटना चाहता था... वो चुचियाँ जोकि
बड़ी और सख़्त हुई थी उसको वो ऑरेंज बार की तरह चूसना चाहता था...
"क्या दीदी पहले भी लड़को से चुद्वा चुकी है" ये सवाल चेतन के दिमाग़ में चल रहा था...
वो अपनी दीदी के नंगे बदन को पूरा याद करता और फिर उसके बदन मे टाँगों के बीच अजीब सा दर्द जागा जोकि उपर
उठा और उसके लंड में से सफेद रंग वीर्य निकलने लगा... इससे पहले कभी भी चेतन के वीर्य नहीं निकला था
और उसको लगता था कि सिर्फ़ चुदाई के बाद ही ऐसा हो सकता है मगर उसके दीदी के नंगे बदन को देखते ही उसकी ऐसी हालत हो गयी थी...
फिर उसने बड़ी सावधानी से उसे सॉफ किया और जाके अपने बिस्तर पे लेट गया....
उधर दूसरी ओर स्कूल ख़तम हो चुका था.... नारायण को देखकर एक टीचर ने उसे कहा कि आपको
प्रिनिसिपल साब ने बुलाया है जल्दी जाइए. प्रिन्सिपल ने नारायण को देख कर उसको अंदर बुला लिया.
नारायण ने मुस्कुराते हुआ पूछा क्या हुआ "सर अचानक बुला लिया".
प्रिन्सिपल ने कहा " नारायण मैं तुम्हे जो भी बोलूँगा उसे ध्यान से सुनना और सोच समझ के मुझे बताना".
नारायण थोड़ा घबरा गया मगर उसने मुस्कुराते हुए कहा "जी ज़रूर सर... आप बोलिए.."
प्रिनिसिपल ने कहा "तुम जानते हो हमारा स्कूल सबसे पहले भोपाल में खुला था और फिर आगे जाके दिल्ली में भी खुला.
कुच्छ दिन पहले भोपाल में जो स्कूल के प्रिन्सिपल थे उनकी डेत हो गयी थी तो स्कूल
को चलाने के लिए वाइस प्रिनिसिपल को प्रिनिसिपल बना दिया था. ( नारायण चुपचाप पूरी बात सुन रहा था).
अब ऐसा हुआ है कि जो अब प्रिन्सिपल बना है वो भी वो पोस्ट संभाल नही पा रहा है और वो रिज़ाइन करना चाहता है.
अब स्कूल के पास कोई और ऑप्षन नहीं बचा है उस स्कूल को चलाने के लिए और वो हम से मदद माँग रहे है.
तो नारायण मैं चाहता हूँ कि तुम वहाँ के प्रिन्सिपल बन जाओ क्यूंकी तुममे वो सारी क्वालिटीस है
जो अच्छे प्रिन्सिपल की होती है.
" नारायण ने बोला "सर धन्येवाद आपने मुझे इस काबिल समझा मगर मैं..
प्रिन्सिपल ने टोकते हुए कहा देखो नारायण मना मत करना..
तुम्हारा हमारे स्कूल पे बहुत बड़ा एहसान रहेगा.
नारायण ने कहा "लेकिन सर मेरे बीवी बच्चे है उनका भी स्कूल कॉलेज है यहाँ उनका क्या होगा."
प्रिन्सिपल साहब बोले "देखो नारायण तुम्हारा बेटा भोपाल वाले स्कूल में ही पढ़ लेगा और रही बात
तुम्हारी बेटिओ की तो वो अपना कॉलेज यहाँ ख़तम करके तुम्हारे पास आ सकती है. देखो तुम्हारी सॅलरी
बहुत बढ़ जाएगी प्लस रुतबा रहने के लिए घर मिलेगा गाड़ी ड्राइवर और भी इन्सेंटीव्स."
नारायण कुच्छ देर के शांत होके बोला "सर मैं सुबह बताउन्गा मुझे अपने बीवी बच्चो की भी राई लेनी पड़ेगी."
उधर घर में अभी भी चेतन और डॉली की हिम्मत नहीं हो रही थी एक दूसरे को देखने की...
डॉली को यकीन था कि उसके छोटे भाई ने उसको नंगा अपनी चूत से खेलते हुए नहीं देखा था तब भी
उसे एक अजीब सी बेचैनी हो रही है... खैर चेतन हिम्मत करते हुए अपने कमरे से बाहर निकला और
सीधा अपनी बहन डॉली के कमरे में गया... दरवाज़ा खुला हुआ था दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा
फिर चेतन बोला "दीदी खाना खाएँ??"
डॉली ने भी उसके प्रश्न का जवाब सिर्फ़ हां में दिया और किचन में खाना गरम करने चली गयी...
मगर फिर दोनो साथ में टीवी देखने लगे और सब पहले जैसा ही होने लगा...
नारायण ललिता और डॉली को लेके घर आ गया और सबको बिठा के वो सारी बात बताने लग गया
जो प्रिन्सिपल सर ने उसे कही थी... शन्नो सुनके बोली "अगर तुम्हे इतनी सारी चीज़े मिल रही है तो तुम्हे
मेरे ससुराल जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी (एंपी में शन्नो का परिवार था).
चेतन ने बोला "पापा मुझे भी दिल्ली में नहीं रहना, मैं वहाँ पढ़ लूँगा."
डॉली ने कहा "मेरा भी मन ऊब गया है यहाँ से...... मेरा कॉलेज ख़तम ही होने वाला है अगले
हफ्ते उसके बाद एग्ज़ॅम्स होंगे तो मैं एग्ज़ॅम्स देने यहा आ जाउन्गि." ललिता भी चाहती थी जहाँ
उसके मम्मी पापा को अच्छा लगेगा वहाँ वो रह लेगी. शन्नो ने कहा देखो एक काम करते है हम
"तुम 10 दिन का टाइम माँगो
और उसके बाद तुम और डॉली वहाँ चले जाओ. तुम अपना काम करना और डॉली वहाँ एग्ज़ॅम की तैयारी
शांति से करलेगी. यहाँ मैं और बच्चे रहते है 3 महीनो में ललिता की क्लासस और चेतन का स्कूल ख़तम
हो जाएगा उसके बाद हम भी वहाँ आजाएँगे सब कुच्छ बेचके. चेतन वहीं पढ़ लेगा और ललिता भी वहीं से कहीं
अपनी पढ़ाई आगे कर लेगी" सब लोगो ने इस प्लान को ठीक समझा.
पूरी शाम इन्ही बातो में निकल गयी. रात को नारायण ने शन्नो के करीब आने की कोशिश मगर शन्नो ने
सॉफ इनकार कर दिया. उधर चेतन की हालत फिर से खराब हो रही थी... उसके दिमाग़ में से डॉली की
नंगी तस्वीर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी... वो भी डॉली के बारे में सोचता तो उसका लंड खड़ा होजाता...
उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस बीमारी का इलाज वो कैसे करें क्यूंकी वो अपनी बहन के साथ कुच्छ करने
के बारे में सोच भी नहीं सकता था और उसको बैचेनी इस बात की भी हो रही थी कि डॉली कुच्छ ही दिनो में
उससे दूर हो जाएगी और फिर उसकी ज़िंदगी कैसे कटेगी??
जो हालत चेतन की थी वोही हालत ललिता की भी थी.. उसकी सारी सहेलिया किसी ना किसी से चुद चुकी थी और
यह बातें वो हर रोज़ सुनती थी... वो अपनी सहेलिओ में से सबसे ज़्यादा हसीन थी और उसके पीछे भी लड़के
थे मगर वो चाहती कोई बंदा उसका फ़ायदा ना उठाए....
अगली सुबह नारायण ने प्रिन्सिपल को सारी बात बता दी और उन्होने खुशी खुशी रज़ामंदी देदि.
नारायण को खुशी थी कि उसके परिवार ने इस ऑफर को इनकार नहीं किया क्यूंकी इसमें बहुत बड़ी पोज़िशन और पैसा था....
मगर उसे एक बात का गम था कि वो अब दिल्ली की लड़कियों को से दूर हो जाएगा....
उसको दिल्ली की लड़किया बेहद पसंद थी क्यूंकी जितनी भी बनने की कोशिश करती थी कि वो बहादुर है अपना ख़याल
वो खुद रख सकती है उतनी ही नादान हरकते कर बैठती थी..... उसे भोपाल गये काफ़ी समय हो गया था
मगर उसे यकीन था कि भोपाल की लड़किया पहले जैसी निहायती शरीफ होंगी जोकि 24 घंटे कपड़ो में धकि रहती होंगी...
उसे घबराहट तो इस बात की भी थी कि कहीं उसके स्कूल में लड़कियों को स्कर्ट की जगह सलवार कुर्ता ना पहनाया जाता हो...
उधर घर में सब कुच्छ आराम से बीत रहा था... डॉली तो उस बात को भूल भी गयी थी कि ऐसा कुच्छ उसने किया था....
आज वो खुश थी क्यूंकी उसकी सहेली प्रिया का जनमदिन था और उसको उसकी पार्टी में जाना था...
प्रिया ने राज को पार्टी में नहीं बुलाया था ये जानके डॉली को अच्छा लगा....पूरे दिन भर वो सब कुच्छ प्लान
करती रही और सोचती रही कि वो क्या पहनेगी... जहाँ प्रिया उस बात को भूल गयी थी उधर चेतन के
दिमाग़ में यही घूम रहा था... आज उसने एक ऐसी ग़लती कर दी थी जिसको करके वो खुश नहीं था...
उसने स्कूल के टाय्लेट में जाके लिख दिया कि "कल मैने अपनी बहन को अपनी चूत से खेलते हुए देख मूठ मारा"
ये लिखने के बाद डॉली को सोचके उसने कुच्छ 7-8 मिनट के लिए मूठ मारा.....
वो चाहता था कि एक बारी फिरसे वो डॉली को नंगा देख सके...
आज फिर से नारायण ललिता को लिए बगैर घर आ गया और आज सच्ची में ललिता की एक्सट्रा क्लासस थी...
क्लासस ख़तम करने के बाद उसकी सहेली रिचा को अपने मा-बाप के साथ मॉल जाना था तो ललिता को आज
अपने आप ही घर पहुचना था... उसने ऑटो में जाना ठीक समझा मगर हमेशा की तरह उसे ऑटो खाली नहीं मिला...
अंधेरा फिर से छाने लगा था आसमान पर और वो फिर रिक्शा वालो से पुच्छने लगी...
एक दो के मना करने के बाद उसे वोई रिक्शा वाला मिला और उसने तुर्रंत ही ललिता को पहचान लिया था
मगर उसने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया... ललिता के बड़े मोटे मम्मो को 2 सेकेंड के घूर्ने के बाद उसने पुछा "कहाँ जाना है"
ललिता ने बोला "आप पिच्छली बार लेके गये थे ना आनंद विहार की तरह तो वहीं जाना है"
रिक्शा वाला अंजान बनके बोला "आनंद विहार में कहाँ"
ललिता को लगा शायद इसको याद नहीं होगा बस उसको पूरा याद था कि इसने पिच्छली बारी भी उसने यहीं गंदे कपड़े पहेन रखे थे...
ललिता बोली "आनंद विहार के आगे में आपको रास्ता बता दूँगी"
ललिता ने रिक्शा का हॅंडल पकड़ा और अपनी एक टाँग रिक्शा पे रखके थोड़ा अंदर घुसी तो उसकी सफेद कॅप्री
थोड़ी नीचे हो गयी और पर्पल टॅंक टॉप उपर उठ गया... ललिता की पीठ के दर्शन को देख कर उस रिक्शा वाले
की आँखें बड़ी हो गयी.... वो अपने लंड को छूता हुआ रिक्शा पे बैठ गया... उस रिक्शा वाले ने एक गंदी
सी हल्के नीले रंग की लूँगी पहेन रखी थी जोकि उसके घुटने तक थी और उपर एक हरी बनियान...
क्रमशः……………………….